प्रकृति और जीवन के विविध रंग // डॉ0 सुरंगमा यादव

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प्रकृति और जीवन के विविध रंग डॉ0 सुरंगमा यादव डॉ0 राजीव कुमार पाण्डेय हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं में सृजनरत हैं। ’मन की पाँखें’ आपकी प्...

प्रकृति और जीवन के विविध रंग

डॉ0 सुरंगमा यादव

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डॉ0 राजीव कुमार पाण्डेय हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं में सृजनरत हैं। ’मन की पाँखें’ आपकी प्रथम हाइकु कृति है। जैसा नाम से ही प्रकट होता मन पंख लगाकर धरा से आकाश तक उड़ान भरता है और अनेकानेक भावों को समेट कर बड़ी कुशलता से सबसे छोटी कविता हाइकु के माध्यम से सहृदय तक संप्रेषित कर देता है। ’मन की पाँखें’ आकर्षक आवरण वाली सजिल्द पुस्तक है। इसकी भूमिका सुप्रसिद्ध हाइकुकार परम आदरणीया डॉ0 मिथिलेश दीक्षित जी ने लिखी है। जो इस कृति की विशेष उपलब्धि है। इसमें संग्रहीत लगभग सभी हाइकु एक विशेष प्रभाव छोड़ते हैं। इनमें सांस्कृतिक परंपराएं,प्रकृति सौंदर्य, प्रेम निरूपण, प्रतीक योजना, मानवीय संवेदनाएं, लोकतत्त्व, दार्शनिकता, समाजपरक चिंतन आदि की छटा बिखरी पड़ी है।

हमारी भारतीय संस्कृति में ये परंपरा रही है कि किसी भी शुभ काम का प्रारंभ पूजा-अर्चना और वंदना से करते हैं। कवि ने अपनी उसी परंपरा का निर्वहन करते हुए हाइकु कविताओं का शुभारंभ माँ शारदे की स्तुति से किया है-

वरद हस्त/नव सृजन हित/मातु दीजिए

मैं अकिंचन/अम्ब विमल मति/मेरी कर दो

हंसवाहिनी/माँ धवल धारिणी/कृपा रस दो


प्रकृति के अनुपम सौंदर्य और उसके संकेतों को कवि ने बहुत तन्मयता से महसूस किया है। उनकी हाइकु कविताओं में प्रकृति अपने कोमल और कठोर दोनों रूपों में प्रकट हुई है। मेघों की स्नेहसिक्त फुहारें पाकर धरा की कोख से नव अंकुर फूट पड़ना,मेघ गर्जन पर मयूर नर्तन,कलियों को देखकर पगडंडियों का महकना,पलाश का खिलना,कोयल का मीठे स्वर में कुहुकना,मलय पर्वत से आने वाली त्रविध समीर का बहना,बूँदों का स्पर्श पाकर सुगंध लुटाती धरा, बसंत ऋतु में पीली चुनरी ओढ़े इठलाती पूरी प्रकृति मन को आह्लादित कर देती है। प्रकृति के विविध वर्णी रूप की एक बानगी प्रस्तुत है-

धरा के बीज/रिमझिम फुहार/पा मुसकाये

मेघ गर्जन/मयूरों का नर्तन/ग्रीष्म मर्दन

खिला पलाश/ले के अंगड़ाइयाँ/हँसा आकाश

गंध बिखेरे/मलय पवन भी/साँझ सवेरे


प्रकृति मनुष्य की चिर सहचरी है।लेकिन कभी-कभी प्राकृतिक आपदाएँ भारी विनाश का कारण बन जाती हैं।प्रकृति जब अपने उग्र रूप में प्रकट होती है तो मानव का उस पर कोई वश नहीं चलता। कितनी सभ्यताएँ प्रकृति के कोप का भाजन बन चुकी हैं-

आंधी के झोंके/प्रकृति का कहर/किसने रोके

जहाँ भी आया/धरती का कंपन/सभ्यता नष्ट

शब्द हमेशा/निरूत्तरित होता/प्रलय देख


एक सहृदय साहित्यकार अपनी प्रणय भावना को बड़े संयत ढंग से अभिव्यक्त करता है-

अमर प्रेम/समर्पण पाकर/श्री वृद्धि पाता

प्रेम बढ़े तो/महके उपवन/ बिना बहाने

तिरछी दृष्टि/नयनों का काजल/प्रिय बुलाये


प्रतीकों का सुंदर प्रयोग इस हाइकु संग्रह की एक अन्य विशेषता है-

प्याजी छिलके/देख देख मचले/डिगे धर्म से

आम बौराया/प्रदूषित व्यवस्था/फल न पाया

भौंकता स्वान/रीझता रोटी पर/छोड़ता शान

नीड़ में शिशु/आसमान ताकता/भूख प्यास से


राजीव जी की हाइकु रचनाओं में लोकतत्त्व भी यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। लौकिक परंपराओं,रीति-रिवाजों और मान्यताओं के अलग-अलग रूप यहाँ देखाने को मिलते हैं।विभिन्न पर्वोत्सवों की दृष्टि से भारतीय लोक जीवन बड़ा समृद्ध रहा है। ये त्योहार हमारे जीवन में ऊर्जा का संचार करते हैं तथा संबंधों में प्रगाढ़ता लाते हैं। एक प्रचलित कहावत है कि हमारे यहाँ प्रत्येक दिन त्योहार ही होता है। हर तिथि के साथ कोई न कोई किंवदंती जुड़ी हुई है-

सभी तिथियाँ/लिए किंवदंतियाँ/अनोखा देश

पीपल पास/जनश्रुति है खास/ब्रह्म निवास

ऋतु पावस/तिथि हो अमावस/प्रिय मिलन

शनि पूजन/अमंगल मंगल/हो न दंगल

कठिन व्रत/महिलाएँ रखतीं/सुहाग हित


खोखली परंपराओं और रूढ़ियों पर कवि ने व्यंग्य भी किया है-

मन संतोषी/पितरे खिलाकर /काग रूप में

आशीष देंगे/स्वर्ग में बैठकर/विश्वास करें


कवि का मन मानवीय संवेदनाओं से भरा हुआ है। बढ़ती हुई मंहगाई,गरीबी का दंश झेलता निम्न वर्ग,मजदूरी करता बचपन उनके मन को द्रवित कर देता -

देख वेदना /यथार्थ जीवन की/नयन भरे

चूल्हा भी ठण्डा/त्योहार भी निकला/कटोरे संग

सत्य बात है/रो रहे फुटपाथ/मंहगाई में

होटलों पर/ भारतीय भविष्य/बर्तन धोता


भोगवादी प्रवृत्ति के कारण बढ़ती लालसाएं पतन का कारण बन रही हैं-

बढ़ती भूख/रह रह मन में/उठती हूक

बिकते देखे/अपनी व्यवस्था में/सत्यवादी भी

है खाली पेट/पर चाहिए इन्हें/इंटरनेट


महिलाओं से जुड़ी तमाम समस्याएं मुँह बाये खड़ी हैं जिनका समाधान होना बाकी है। दहेज,भ्रूण हत्या,दुष्कर्म आदि समाज के माथे पर कलंक के समान हैं-

दहेज बिना/आजकल लड़की/सिर्फ ईंधन

युग बदला/कूड़ेदान की चीख/कुत्तों ने सुनी

बनते वीर/ दुर्बल नारियों का/ खींचते चीर

विवश नारी/अस्मत को गँवाया/बनी माँ क्वारी

पूछिए मत/सुरक्षा कवच में/कितने छेद


हाइकुकार ने समाज में व्याप्त विसंगतियों और संकीर्ण मानसिकता को उजागर करते हुए उनका विरोध किया है। उसे देश और समाज की चिंता है। बालक,युवा,वृद्ध अलग-अलग समस्याओं से जूझ रहे हैं। बचपन बस्तों के बोझ तले दब रहा है,युवा बेराजगार है,वृद्धों को अकेलेपन ने घेर रखा है। दूषित राजनीति समाज को जाति और धर्म के नाम पर बाँट रही है-

भारी बस्ते में/दबता बचपन/उपाय खोजें

बिकती शिक्षा/घटते रोजगार/दूषित हवा

मन की बातें/अपनों से करता/अकेलापन

विकास हारा/चुनाव में केवल/ जातियाँ जीतीं


कवि ने शहर के कारखानों से निकलने वाले जहर,हिन्दी की दीन दशा तथा अंग्रेजी का वर्चस्व,काले धन की समस्या, संबंधों में बढ़ती स्वार्थपरता,साधु-संतों पर लगते प्रश्न चिन्ह, समाज में बढ़ती अव्यवस्था,चारित्रिक पतन,बढ़ता हुआ कंक्रीट का वन,मानव के प्रकृति विरोधी कृत्य आदि पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। लेकिन वे भविष्य के प्रति आशान्वित हैं-

संयम रखें/सीता राम का युग/भविष्यागत


राजीव जी बहुत ही संवेदनशील रचनाकार हैं।प्रकृति और जीवन के विविध रंगों से सजा उनका हाइकु संग्रह ’मन की पाँखें’ निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। उनके हाइकु सद्विचारों के वाहक हैं।उनका चिंतन मूल्यपरक है।इस संग्रह से हिन्दी हाइकु साहित्य समृद्ध होगा ,ऐसा हमें दृढ़ विश्वास है। इस सुंदर,मनभावन और संदेशपरक सृजन के लिए डॉ0 राजीव कुमार पाण्डेय जी को बधाई एवं अशेष शुभकामनाएं !


’मन की पाँखें (हाइकु संग्रह) डॉ0 राजीव कुमार पाण्डेय, पृ0 105, मूल्य 175/- प्रकाशन वर्ष 2017,

प्रकाशक-हर्फ़ मीडिया,बी-84 ग्राउंड फ्लोर, नई दिल्ली 110059

डॉ0 सुरंगमा यादव

असि0 प्रो0 हिन्दी

महामाया राजकीय महाविद्यालय महोना, लखनऊ

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: प्रकृति और जीवन के विविध रंग // डॉ0 सुरंगमा यादव
प्रकृति और जीवन के विविध रंग // डॉ0 सुरंगमा यादव
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रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/06/0.html
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