देश विदेश की लोक कथाएँ — पूर्वी अफ्रीका–ज़ंज़ीबार : ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ संकलनकर्ता सुषमा गुप्ता 10 डाक्टर का बेटा और साँपों का राजा [1] एक बा...
देश विदेश की लोक कथाएँ — पूर्वी अफ्रीका–ज़ंज़ीबार :
ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ
संकलनकर्ता
सुषमा गुप्ता
10 डाक्टर का बेटा और साँपों का राजा[1]
एक बार एक शहर में एक बहुत बड़ा डाक्टर रहता था। वह अपनी पत्नी और एक छोटे बेटे को छोड़ कर मर गया। जब वह बेटा बड़ा हो गया तो उसकी माँ ने उसके पिता की इच्छा के अनुसार उसका नाम हसीबू करीमुद्दीन[2] रखा।
जब हसीबू ने स्कूल में पढ़ना लिखना सीख लिया तब उसकी माँ ने उसको एक दरजी के पास सिलाई का काम सीखने के लिये भेजा पर वह दरजी का काम नहीं सीख सका। फिर उसकी माँ ने उसको एक चाँदी की चीजें, बनाने वाले के पास भेजा पर वह वह काम भी नहीं सीख सका।
इसके बाद वह कई और जगह भी कुछ कुछ काम सीखने के लिये गया पर वह वहाँ भी कुछ नहीं सीख सका। तब उसकी माँ ने कहा कि वह अब कुछ दिन घर बैठे। यह उसको ठीक लगा।
एक दिन हसीबू ने अपनी माँ से पूछा कि उसके पिता क्या काम करते थे तो उसकी माँ ने उसको बताया कि वह एक बहुत ही अच्छे डाक्टर थे।
“तो फिर उनकी किताबें कहाँ हैं?”
माँ बोली — “काफी दिनों से मैंने उनको देखा नहीं है पर वे यहीं कहीं होंगी, शायद पीछे पड़ी होंगी। देख लो। ”
उसने उनको इधर उधर ढूँढा। काफी देर तक ढूँढने को बाद आखिर में वे किताबें उसको मिल गयीं पर वे करीब करीब सारी की सारी कीड़ों ने खा ली थीं और वह उनमें से बहुत कम पढ़ सका।
एक दिन उनके चार पड़ोसी उनके घर आये और उसकी माँ से कहा कि अपने बेटे को हमारे साथ जंगल में लकड़ी काटने के लिये भेज दो। वे लोग वहीं पास में ही काम करते थे। वे जंगल से लकड़ी काटते थे, गधों पर लादते थे और शहर जा कर उसे बेच देते थे। लोग उस लकड़ी से आग जलाते थे।
उसकी माँ ने हाँ कर दी और कहा — “कल मैं उसके लिये एक गधा खरीद दूँगी और फिर वह तुम्हारे साथ तुम्हारे काम धन्धे में लग जायेगा। ”
अगले दिन हसीबू की माँ ने उसके लिये एक गधा खरीद दिया और वह अपने गधे को ले कर उन चारों आदमियों के साथ लकड़ी काटने चला गया।
उस दिन उन लोगों ने बहुत काम किया और बहुत सारा पैसा कमाया। यह सब छह दिनों तक चला पर सातवें दिन बहुत तेज़ बारिश हो गयी और उन सबको बारिश से भीगने से बचने के लिये एक गुफा में जाना पड़ा।
हसीबू गुफा में एक तरफ अकेला बैठा था। उसके पास कुछ करने को तो था नहीं सो वह एक पत्थर उठा कर उसे जमीन पर मारने लगा। उसने वह पत्थर दो चार बार ही मारा था कि उसको वहाँ से कुछ ऐसी आवाज आयी जैसी कि खोखली जमीन पर मारने पर आती है।
उसने अपने साथियों को आवाज लगायी और बोला कि ऐसा लगता है कि यहाँ कोई छेद है। पहले तो किसी ने उसकी आवाज ही नहीं सुनी पर जब उसने दोबारा आवाज लगायी तो वे लोग आये और यह जानने के लिये कि वह खोखली जमीन की आवाज कहाँ से आरही थी उन्होंने वहाँ खोदना शुरू किया।
वे लोग बहुत देर तक नहीं खोद पाये थे कि उनको कुँए की तरह का एक बहुत बड़ा गड्ढा दिखायी दिया जो शहद से भरा था। उस दिन उन्होंने कोई लकड़ी नहीं काटी बल्कि सारा दिन शहद इकठ्ठा करने और उसको बेचने में ही लगा दिया।
सारा शहद जल्दी से जल्दी निकालने के चक्कर में उन्होंने हसीबू को उस शहद के कुँए में नीचे उतार दिया और उससे शहद ऊपर देने के लिये कहा और वे खुद उस शहद को बरतनों में इकठ्ठा कर करके बाजार बेचने के लिये ले जाते रहे।
आखीर में जब वहाँ बहुत कम शहद रह गया तो उन्होंने उस लड़के से उसको भी इकठ्ठा करने के लिये कहा और वे खुद एक रस्सी लाने चले गये ताकि वे उस लड़के को बाहर निकाल सकें।
पर बाद में उन्होंने उस लड़के को उसी कुँए में छोड़ दिया और शहद बेचने से जो पैसा उन्होंने कमाया था उसे भी केवल आपस में ही बाँट लिया। उस लड़के को कुछ भी नहीं दिया।
लड़के ने भी जब सारा शहद बटोर लिया तो रस्सी के लिये आवाज लगायी। पर वहाँ कोई होता तो बोलता। वे लोग तो सब वहाँ से चले गये थे।
तीन दिन तक वह लड़का उसी कुँए में पड़ा रहा। अब उसको यकीन हो गया था कि उसके साथी लोग उसको छोड़ कर चले गये थे।
उधर उसके चारों साथी उसकी माँ के पास गये और उससे कहा कि उसका बेटा जंगल में उनसे बिछड़ गया। उसके बाद उन्होंने शेर की दहाड़ की आवाज भी सुनी। काफी ढूँढने पर भी लड़के और उसके गधे का कहीं पता नहीं चला। इससे ऐसा लगता ही कि हसीबू और उसके गधे दोनों को शेर ने खा लिया।
जाहिर है कि हसीबू की माँ अपने बेटे के लिये बहुत रोयी बहुत चिल्लायी पर क्या कर सकती थी। बेचारी रो पीट कर बैठ गयी। उसके पड़ोसियों ने उसके हिस्से का पैसा भी रख लिया था।
उधर हसीबू उस कुँए में इधर उधर चक्कर काटता रहा और सोचता रहा कि आखिर उसका होगा क्या? तब तक वह शहद खाता रहा, थोड़ा सोता रहा और बाकी समय में सोचता रहा।
चौथे दिन जब वह बैठा बैठा सोच रहा था तो उसने एक बहुत बड़ा बिच्छू ऊपर से गिरता हुआ देखा। उसने उस बिच्छू को मार तो दिया पर वह यह सोचने लगा कि यह बिच्छू आया कहाँ से? इसका मतलब है कि इस कुँए में किसी और जगह भी कोई छेद है जहाँ से यह आया है। मैं ढूँढता हूँ उस जगह को।
सो उसने चारों तरफ देखना शुरू किया तो उसने देखा कि एक पतली झिरी में से रोशनी आ रही है। उसने तुरन्त अपना चाकू निकाला और उस झिरी को बड़ा करने में लगा रहा जब तक कि वह छेद इतना बड़ा नहीं हो गया जिसमें से वह निकल सकता।
उस छेद में से फिर वह बाहर निकल आया। अब वह एक ऐसी जगह आ गया था जो उसने पहले कभी नहीं देखी थी। उसे एक सड़क दिखायी दी तो वह उसी सड़क पर चल दिया और एक बड़े मकान के सामने पहुँच गया।
उस मकान का दरवाजा खुला था सो वह उस मकान के अन्दर घुस गया। वहाँ उसने सोने के दरवाजे देखे जिनमें सोने के ताले लगे थे और मोती की चाभियाँ लगीं थीं। वहाँ उसने सुन्दर कुरसियाँ भी देखीं जिनमें बेशकीमती पत्थर जड़े हुए थे।
बाहर वाली बैठक में उसने एक बहुत सुन्दर काउच देखा जिसके ऊपर एक बहुत कीमती चादर पड़ी थी। वह उस काउच पर लेट गया।
पर तभी उसको लगा कि किसी ने उसको उठा कर कुरसी पर बिठा दिया और सुना कि कोई कह रहा था — “देखो इसको चोट न लगे, इसको सँभाल कर जगाओ। ”
तभी उसकी आँख खुल गयी और उसने देखा कि उसके चारों तरफ तो बहुत सारे साँप थे और उनमें से एक साँप ने तो शाही कपड़े भी पहन रखे थे।
वह लड़का बोला — “तुम लोग कौन हो?”
वह साँप बोला — “ंमैं सुलतानी वानीओका[3] हूँ, साँपों का राजा, और यह मेरा घर है। तुम कौन हो?”
लड़का बोला — “मैं हसीबू करीमुद्दीन हूँ। ”
“तुम कहाँ से आये हो?”
“मुझे नहीं मालूम मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। ”
साँपों का राजा बोला — “खैर, अभी तुम इसकी चिन्ता मत करो। पहले तुम कुछ खा लो। मुझे लग रहा है कि तुम बहुत भूखे हो और मुझे भी बहुत भूख लगी है। ”
राजा ने हुकुम दिया तो कई साँप बहुत सारे बहुत बढ़िया फल ले आये। वे उन्हें खाते रहे और बात करते रहे। जब खाना खत्म हो गया तो राजा ने हसीबू की कहानी सुननी चाही। हसीबू ने अपनी सारी कहानी सुना दी और फिर राजा से उसकी कहानी सुननी चाही।
साँपों के राजा की कहानी
साँपों के राजा ने कहा — “मेरी कहानी थोड़ी लम्बी है फिर भी मैं तुमको उसे सुनाऊँगा। काफी दिन पहले मैं हवा पानी की बदली के लिये यह जगह छोड़ कर अल काफ पहाड़[4] पर चला गया। एक दिन मैंने एक अजनबी को आते देखा तो उससे पूछा कि तुम कहाँ से आ रहे हो?”
तो उसने जवाब दिया — “मैं तो ऐसे ही जंगलों में भटकता घूम रहा हूँ। ”
मैंने उससे पूछा — “तुम किसके बेटे हो?”
वह बोला — “मेरा नाम बोलूकिया[5] है। मेरे पिता एक सुलतान थे। जब वह मर गये तो मैंने उनकी एक छोटी सी सन्दूकची खोली। उस सन्दूकची में एक थैला था और उस थैले में एक पीतल का बक्सा था।
जब मैंने वह पीतल का बक्सा खोला तो उसमें ऊनी कपड़े में लिपटी हुई कुछ लिखी हुई चीज़ रखी थी। वह किसी धर्मदूत[6] की तारीफ में लिखी हुई थी।
उनमें वह एक बहुत ही अच्छा आदमी दिखाया गया था सो मुझे उस आदमी को देखने की इच्छा हुई। पर जब मैंने उसके बारे में पूछताछ की तो पता चला कि वह धर्मदूत तो अभी पैदा ही नहीं हुआ था।
तभी मैंने सोच लिया कि मैं तब तक घूमता रहूँगा जब तक मैं उससे मिल नहीं लूँगा। सो मैंने अपना देश छोड़ा, अपना घर छोड़ा और तब से मैं घूमता ही फिर रहा हूँ। ”
मैंने पूछा — “अगर वह अभी तक पैदा ही नहीं हुआ है तो तुम उसे कहाँ देखने की उम्मीद रखते हो? हाँ अगर तुम्हारे पास “साँप का पानी” हो तो तुम शायद तब तक ज़िन्दा भी रह सको जब तक वह पैदा हो और तुम उसको देख सको। पर उस पानी की बात करने से भी क्या फायदा क्योंकि वह तो बहुत दूर है। ”
उसने कहा — “मुझे तो घूमते ही रहना है। ” और मुझसे विदा लेकर वह चला गया।
घूमते घूमते वह मिश्र[7] पहुँच गया जहाँ किसी ने उससे पूछा — “तुम कौन हो?”
उसने जवाब दिया — “मैं बोलूकिया हूँ तुम कौन हो?”
उस आदमी ने कहा — “ंमैं अल फान[8] हूँ तुम कहाँ जा रहे हो?”
“मैंने अपना देश छोड़ा अपना मकान छोड़ा और मैं धर्मदूत को ढूँढ रहा हूँ। ”
अल फान बोला — “मैं तुमको एक ऐसे आदमी को ढूँढने की बजाय जो अभी तक पैदा भी नहीं हुआ और अच्छा काम बता सकता हूँ। चलो पहले हम साँपों के राजा के पास चलते हैं और उससे कोई जादुई दवा लेते हैं।
फिर हम राजा सोलोमन के पास चलते हैं और उससे उसकी अँगूठी लेते हैं। उस अँगूठी से हम जिनी[9] को अपना नौकर बना लेंगे और फिर उससे जो चाहे वह काम ले लेंगे। ”
बोलूकिया बोला — “मैं साँपों के राजा से अल काफ पहाड़ पर मिल चुका हूँ। ”
अल फान बोला — “तो चलें। ”
अब अल फान तो सोलोमन की अँगूठी लेना चाहता था ताकि वह एक बहुत बड़ा जादूगर बन जाये और जिनी और चिड़ियों आदि को अपने बस में कर सके जबकि बोलूकिया तो केवल धर्मदूत से ही मिलना चाहता था।
सो दोनों साँपों के राजा के पास चल दिये। जब वे जा रहे थे तो अल फान बोला — “एक पिंजरा बना लेते हैं उसमें हम साँपों के राजा को कैद कर लेंगे और उसको साथ में ले चलेंगे। ”
“ठीक है। ”
सो दोनों ने एक पिंजरा बनाया, उसमें एक प्याला दूध रखा और एक प्याला शराब रखी और उसको अल काफ पहाड़ पर ले आये।
मैंने बेवकूफ की तरह वह सारी शराब पी ली और नशे में धुत हो गया। उसी हालत में उन्होंने मुझे पिंजरे में बन्द किया और अपने साथ ले गये।
जब मुझे होश आया तो मैंने अपने आपको एक पिंजरे में बन्द पाया और मैंने देखा कि बोलूकिया उस पिंजरे को ले जा रहा था। मैं बोला — “तुम आदमी के बच्चे बहुत खराब हो। तुम क्या चाहते हो मुझसे?”
वे बोले — “हमें कोई ऐसी दवा चाहिये जिसको हम अपने पैरों पर लगा कर जहाँ भी हमें अपने सफर में पानी पर चलने की जरूरत हो हम उस पर चल सकें। ”
“ठीक है, चलो। ”
चलते चलते हम एक ऐसी जगह आ गये जहाँ बहुत सारे और बहुत तरीके के पेड़ थे। जब उन पेड़ों ने मुझको देखा तो कहने लगे “मैं इस चीज़ की दवा हूँ, मैं उस चीज़ की दवा हूँ। मैं हाथों की दवा हूँ, मैं पैरों की दवा हूँ। ”
उसी समय एक पेड़ ने कहा — “अगर मुझे कोई पैरों पर लगा ले तो वह पानी पर चल सकता है। ”
जब मैंने उन दोनों को यह बताया तो वे बोले यही तो हम चाहते थे सो उन्होंने उस पेड़ से बहुत सारी वह दवा ले ली। इसके बाद वेे मुझे पहाड़ वापस ले गये, आजाद कर दिया और चले गये।
मुझे छोड़ कर वे अपने रास्ते चले गये और समुद्र के किनारे तक पहुँच गये। वहाँ उन्होंने वह दवा अपने पैरों पर लगायी और पानी पर काफी दिनों तक चलते रहे जब तक वे सोलोमन की जगह के पास तक नहीं पहुँच गये। वहाँ उन्होंने एक जगह इन्तजार किया जहाँ अल फान ने फिर से दवाएँ बनायीं।
फिर वे सोलोमन के पास पहुँचे। उस समय वह सो रहा था और उसका जिनी उसका पहरा दे रहा था। उसका वह हाथ उसकी छाती पर रखा था जिसमें वह वह अँगूठी पहनता था।
जैसे ही बोलूकिया सोलोमन की अँगूठी लेने के लिये उसकी तरफ बढ़ा तो एक जिनी ने पूछा — “तुम कहाँ जा रहे हो?”
बोलूकिया बोला — “मैं अल फान के साथ हूँ और अल फान सोलोमन की अँगूठी लेने आया है। ”
जिनी बोला — “जाओ यहाँ से। वह आदमी तो मरने वाला है। ”
जब अल फान की तैयारियाँ पूरी हो गयीं उसने बोलूकिया से कहा — “तुम यहीं मेरा इन्तजार करो मैं अभी आता हूँ। ” और वह अँगूठी लेने चला गया।
जैसे ही वह अँगूठी लेने के लिये बढ़ा तो उसे एक बहुत ज़ोर से चिल्लाहट सुनायी दी और किसी अनदेखी ताकत ने उसको उठा कर बहुत दूर फेंक दिया।
किसी तरह वह उठा और अभी भी अपनी दवा में विश्वास रखते हुए वह फिर अँगूठी लेने के लिये बढ़ा। तभी साँस का एक ज़ोर का झोंका उसके चेहरे पर लगा और वह जल कर राख हो गया।
जब बोलूकिया यह सब देख रहा था एक आवाज बोली — “जाओ यहाँ से। देखो यह आदमी मर चुका है। ”
वह आवाज सुन कर बोलूकिया वहाँ से लौट पड़ा और समुद्र तक आया। वहाँ आ कर उसने फिर से अपने पैरों पर पानी पर चलने वाली दवा लगायी और समुद्र पार कर समुद्र के दूसरी तरफ आ गया। उसके बाद भी वह कई सालों तक इधर उधर घूमता रहा।
एक सुबह उसने एक आदमी देखा जिससे उसने कहा — “सलाम। ”
उस आदमी ने भी उसको सलाम किया।
बोलूकिया ने उससे पूछा — “तुम कौन हो?”
वह आदमी बोला — “मेरा नाम जान शाह[10] है। तुम कौन हो?”
बोलूकिया ने उससे उसकी कहानी सुनाने की प्रार्थना की। वह आदमी जो कभी हँस रहा था कभी रो रहा था उसने बोलूकिया से पहले उसकी कहानी सुनाने के लिये कहा।
बोलूकिया की कहानी सुनने के बाद जान शाह बोला — “बैठो, मैं तुमको शुरू से अपनी कहानी सुनाता हूँ। मेरा नाम जान शाह है। मेरे पिता ताईगेमस[11] सुलतान थे। वह रोज जंगल में शिकार खेलने जाया करते थे।
एक दिन मैंने उनसे कहा कि मैं भी आपके साथ शिकार पर जाना चाहता हूँ। वह बोले — “नहीं बेटा, तुम अभी घर में ही रहो, तुम अभी यहीं ठीक हो। ”
इस पर मैंने बहुत जोर से रोना शुरू कर दिया। मैं क्योंकि अपने माता पिता का अकेला बच्चा था और मेरे पिता मुझे बहुत प्यार करते थे, वह मेरा रोना नहीं देख सके सो वह बोले — “अच्छा अच्छा चलो, रोओ नहीं। ”
इस तरह हम सब जंगल गये। हमारे साथ बहुत सारे नौकर चाकर थे। जब हम जंगल पहुँच गये तो वहाँ जा कर हम लोगों ने खाना खाया और शराब पी और फिर सब शिकार के लिये निकल गये। मैं अपने सात नौकरों के साथ शिकार पर गया।
हमें एक सुन्दर हिरन दिखायी दिया। हम उसके पीछे समुद्र तक भागते चले गये। भागते भागते वह हिरन पानी में चला गया तो मैंने और मेरे चार नौकरों ने भी एक नाव ली और उस हिरन का पीछा किया। बाकी बचे मेरे तीन नौकर मेरे पिता के पास लौट गये।
हम उस हिरन का पीछा करते करते समुद्र में काफी दूर तक निकल गये पर किसी तरह हमने उसे पकड़ लिया और मार दिया। उसी समय बहुत तेज़ हवा चलने लगी और हम समुद्र में रास्ता भटक गये।
जब वे तीन नौकर मेरे पिता के पास पहुँचे तो मेरे पिता ने उनसे पूछा — “तुम्हारा मालिक कहाँ है?”
उन्होंने मेरे पिता को हिरन, उसके समुद्र में भाग जाने, और हमारा नाव में उसका पीछा करने के बारे में बताया तो वह रोकर बोले — “मेरा बेटा तो गया, मेरा बेटा तो गया। ” और घर लौट कर मुझे मरा हुआ समझ कर वह बहुत रोये।
कुछ समय समुद्र में इधर उधर घूमने के बाद हम एक टापू पर आये जहाँ बहुत सारी चिड़ियाँ थीं। वहाँ हमें फल और पानी मिल गया था सो हमने फल खाये और पानी पिया। रात हमने एक पेड़ के ऊपर सो कर गुजारी।
सुबह को हम फिर से अपने सफर पर चल दिये और एक दूसरे टापू पर आये। पिछले टापू की तरह से हमको यहाँ भी फल और पानी मिल गया सो हमने फल खाये और पानी पिया और रात पेड़ के ऊपर गुजारी। रात में कुछ जंगली जानवरों की आवाजें आती रहीं।
सुबह जितनी जल्दी हो सकता था हमने वह टापू भी छोड़ दिया और अपने सफर पर निकल पड़े। चलते चलते हम एक तीसरे टापू पर आये। वहाँ भी हमने खाना ढूँढने की कोशिश की तो हमें एक पेड़ दिखायी दिया जो लाल धारी वाले सेबों से लदा हुआ था।
जैसे ही हमने एक सेब तोड़ने की कोशिश की हमें किसी की आवाज सुनायी दी — “इस पेड़ को नहीं छूना। यह पेड़ राजा का है। ” हम रुक गये।
रात के समय वहाँ बहुत सारे बन्दर आये जो हमें ऐसा लगा कि हमको देख कर बहुत खुश थे। वे हमारे लिये बहुत सारे फल लाये जिनको हम खा सकते थे।
तभी मैंने उनमें से एक बन्दर को यह कहते हुए सुना — “हम इस आदमी को अपना सुलतान बना लेते हैं। ”
दूसरा बोला — “हमें इसको अपना सुलतान बनाने से क्या फायदा? ये सब तो सुबह होने पर भाग जायेंगे। ”
तीसरा बोला — “पर अगर हम उनकी नाव तोड़ दें तब वे नहीं भाग सकते न। ”
और वही हुआ। जब हम सुबह अपनी नाव में जाने के लिये तैयार हुए तो हमने देखा कि हमारी नाव तो टूटी पड़ी है। अब हमारे पास वहाँ रुकने और उन बन्दरों के साथ खेलने के अलावा और कोई चारा नहीं था। बन्दर हम लोगों से काफी खुश दिखायी देते थे।
एक दिन मैं उस टापू पर टहल रहा था कि मुझे एक पत्थर का बहुत बड़ा मकान दिखायी दिया। उसके दरवाजे पर लिखा हुआ था — “जब भी कोई आदमी इस टापू पर आता है तो उसके लिये इस टापू को छोड़ना मुश्किल है क्योंकि यहाँ के बन्दर किसी आदमी को अपना राजा बनाना चाहते हैं।
अगर वह यहाँ से भागने का रास्ता ढूँढने की कोशिश करता है तो उसको लगता है कि ऐसा कोई रास्ता है ही नहीं, पर एक रास्ता है और वह रास्ता यहाँ से उत्तर की तरफ है।
अगर तुम उस तरफ जाओगे तो तुमको एक मैदान मिलेगा जहाँ बहुत सारे शेर और साँप रहते हैं। तुमको उन सबसे लड़ना होगा और जब तुम उनको जीत लोगे तभी तुम आगे जा सकते हो।
आगे जा कर तुम्हें एक और मैदान मिलेगा जहाँ कुत्तों जितनी बड़ी चींटियाँ रहतीं हैं। उनके दाँत भी कुत्तों के दाँत जैसे हैं और वे बड़ी भयानक हैं। तुमको उनसे भी लड़ना होगा और अगर तुमने उनको जीत लिया तो बस फिर आगे का रास्ता साफ है। ”
मैंने यह खबर अपने नौकरों को बतायी तो हम लोग इस नतीजे पर पहुँचे कि मरना तो हमें दोनों तरीके से है तो क्यों न हम अपनी आजादी को पाने के लिये लड़ते हुए मरें।
हम सबके पास हथियार थे सो हम लोग उत्तर की तरफ चल दिये। जब हम पहले मैदान में पहुँचे तो शेर चीतों और साँपों से लड़ाई में हमारे दो नौकर मारे गये। फिर हम दूसरे मैदान में पहुँचे। वहाँ भी हमारे दो नौकर मारे गये सो मैं अकेला ही वहाँ से बच कर निकल पाया।
उसके बाद मैं बहुत दिनों तक घूमता रहा। जो कुछ मिल जाता था वही खा लेता था। आखिर मैं एक शहर में आ पहुँचा जहाँ मैं कुछ दिन रहा। वहाँ मैंने नौकरी ढूँढने की भी कोशिश की पर कोई नौकरी मुझे मिली ही नहीं।
एक दिन एक आदमी मेरे पास आया और बोला — “क्या तुम काम की तलाश में हो?”
“हाँ, हूँ तो। ”
“तो मेरे साथ आओ। ” और मैं उसके साथ उसके घर चला गया।
वहाँ पहुँचने पर उसने मुझे एक ऊँट की खाल दिखायी और बोला — “मैं तुमको इस खाल में बन्द कर दूँगा और एक बहुत बड़ा चिड़ा तुमको दूर के एक पहाड़ पर ले जायेगा। जब वह तुमको वहाँ ले जायेगा तो वहाँ वह तुम्हारी इस खाल को फाड़ देगा।
उस समय तुम उसको भगा देना और कुछ जवाहरात जो तुमको वहाँ मिलेंगे उनको नीचे फेंक देना। जब वे सब जवाहरात नीचे आ जायेंगे तो मैं तुमको नीचे ले आऊँगा। ”
सो उसने मुझे उस ऊँट की खाल में बन्द कर दिया और एक चिड़ा मुझे एक पहाड़ की चोटी पर ले गया। वहाँ वह मुझे खाने ही वाला था कि मैं उस खाल में से कूद पड़ा और मैंने उसको डरा कर भगा दिया। उसके बाद मैंने बहुत सारे जवाहरात नीचे की तरफ फेंक दिये।
जवाहरात फेंकने के बाद मैंने उस आदमी को कई बार पुकारा पर उसने काई जवाब नहीं दिया। वह आदमी वे जवाहरात ले कर चला गया था और मैं उस पहाड़ पर ही रह गया।
मैंने तो अपने आपको मरा हुआ ही समझ लिया था। मैं वहाँ उस बड़े जंगल में बहुत दिनों तक घूमता रहा कि मुझे एक अकेला घर मिला।
उस घर में एक बूढ़ा रहता था उसने मुझे खाना और पानी दिया जिससे मेरी जान में जान आयी। मैं वहाँ काफी समय तक रहा। वह बूढ़ा मुझे अपने बेटे की तरह से प्यार करता था।
एक दिन वह बूढ़ा कहीं बाहर गया तो उसने मुझे अपनी सारी चाभियाँ देते हुए कहा कि मैं उसके घर का कोई भी कमरा खोल सकता हूँ सिवाय एक कमरे के।
और जैसा कि अक्सर होता है कि अगर किसी आदमी को किसी काम करने से मना करो तो वह आदमी सबसे पहले वही काम करता है सो जैसे ही वह बूढ़ा चला गया मैंने उसका वही कमरा सबसे पहले खोला जिसको उसने मुझसे खोलने के लिये मना किया था।
मैंने वह कमरा खोला तो वहाँ मुझे एक बड़ा सा बगीचा दिखायी दिया जिसमें एक छोटी सी नदी बह रही थी। उसी समय वहाँ तीन चिड़ियाँ उडकर आयीं और उस नदी के किनारे बैठ गयीं।
बैठते ही वे तीनों चिड़ियाँ तीन बहुत सुन्दर लड़कियों में बदल गयीं। तीनों ने अपने कपड़े उतार कर किनारे पर रखे, नदी में नहायीं, फिर कपड़े पहने और फिर से चिड़ियों में बदल कर फुर्र से उड़ गयीं। मैं यह सब देखता रहा।
मैंने दरवाजे को ताला लगा दिया और चला गया। पर मेरी भूख गायब हो गयी थी। मैं इधर उधर बिना किसी काम के घूमता रहता। जब वह बूढ़ा घर वापस लौटा तो उसने मेरा यह अजीब हाल देखा तो मुझसे पूछा — “क्या बात है तुम ऐसे क्यों घूम रहे हो?”
मैंने उसे बता दिया कि मैंने वे तीन लड़कियाँ देखीं थीं जिनमें से एक मुझे बहुत अच्छी लगी। अगर मैं उससे शादी नहीं कर पाया तो मैं मर जाऊँगा।
उस बूढ़े आदमी ने बताया कि यह तो मुमकिन ही नहीं था क्योंकि वे तीनों लड़कियाँ जिनी के राजा की लड़कियाँ थीं और जहाँ हम थे वे वहाँ से तीन साल की दूरी पर रहतीं थीं।
मैंने उससे कहा कि मेरा मन इस बात को नहीं मानता और किसी तरह वह मेरी शादी उस लड़की से करा दे नहीं तो मैं मर जाऊँगा। आखिर उसने मुझे एक सलाह दी।
वह बोला जब तक वे दोबारा आती हैं तब तक तुम उनका इन्तजार करो और जब वे आयें तो जिसको तुम सबसे ज़्यादा चाहते हो छिप कर उसके कपड़े चुरा लेना।
सो मैंने उनका इन्तजार किया। जब वे आयीं तो मैंने उस लड़की के कपड़े चुरा लिये जिससे मुझको शादी करनी थी। जब वह नहाकर पानी में से बाहर निकली तो उसे उसके कपड़े नहीं मिले।
वह इधर उधर देखने लगी तो मैंने आगे बढ़ कर उससे कहा — “तुम्हारे कपड़े मेरे पास हैं। ”
उसने मुझसे अपने कपड़े माँगे — “मेरे कपड़े दे दीजिये मैं जाना चाहती हूँ। ”
मैंने उससे कहा कि मैं तुमको बहुत प्यार करता हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ। वह बोली मैं अपने पिता के पास जाना चाहती हूँ,। मैंने कहा तुम अब अपने पिता के पास नहीं जा सकतीं।
उसकी बहिनें तो अपने अपने कपड़े पहन कर उड़ गयीं पर वह नहीं जा सकी क्योंकि उसके कपड़े मेरे पास थे। मैं उसको घर के अन्दर ले आया। उस बूढ़े ने हमारी शादी करवा दी और मुझसे उसके कपड़े जो मैंने चुरा लिये थे देने के लिये मना कर दिया।
बल्कि उसने मुझसे कहा कि मैं उनको छिपा कर रख दूँ क्योंकि अगर उसको वे कपड़े मिल गये तो वह फिर उड़ कर अपने पिता के घर चली जायेगी और फिर मुझे वापस नहीं मिलेगी। सो मैंने उसके कपड़ों को एक गड्ढा खोद कर उस गड्ढे में दबा दिया।
लेकिन एक दिन जब मैं घर में नहीं था तो उसने वे कपड़े गड्ढे में से निकाल लिये और पहन लिये और एक नौकरानी से जो मैंने उसकी सेवा के लिये दे रखी थी बोली — “जब तुम्हारे मालिक लौट कर आयें तो उनको बोलना कि मैं घर चली गयी हूँ। अगर वह मुझसे सच्चा प्यार करते होंगे तो मेरे पीछे पीछे चले आयेंगे। ” और वह उड़ गयी।
जब मैं घर आया तो उन लोगों ने मुझे यह सब बताया। मैं कई सालों तक उसकी तलाश करता रहा। आखिर मैं एक शहर में आया जहाँ मुझसे एक आदमी ने पूछा — “तुम कौन हो?”
मैंने कहा — “जान शाह। ”
“और तुम्हारे पिता का नाम?”
“ताईगैमस। ”
वह फिर बोला — “क्या तुम ही वह आदमी हो जिसने हमारी मालकिन से शादी की थी?”
मैंने पूछा — “कौन है तुम्हारी मालकिन?”
“सैदाती शम्स[12]। ”
मैं खुशी से चिल्ला पड़ा — “हाँ मैं ही तो हूँ वह। ”
वह मुझे अपनी मालकिन के पास ले गया। यह वही लड़की थी जिससे मैंने शादी की थी। वह मुझे अपने पिता के पास ले गयी और उसको बताया कि मैं ही उसका पति था। सब लोग बहुत खुश हुए।
फिर हमने सोचा कि हम एक बार अपना पुराना घर देख कर आयें तो उसके पिता का जिनी हमको तीन दिन में वहाँ ले गया। हम वहाँ एक साल रहे और फिर लौट आये। लेकिन कुछ ही समय बाद मेरी पत्नी मर गयी।
उसके मरने के बाद मैं बहुत दुखी हो गया। उसके पिता ने मुझे बहुत समझानेे की कोशिश की। अपनी दूसरी बेटी की शादी भी मुझ से करनी चाही पर मुझे उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता था और आज तक मैं उसी के दुख में दुखी हूँ। यही है मेरी कहानी। ”
अपनी कहानी सुनाने के बाद बोलूकिया अपने रास्ते चला गया और इधर उधर घूमता रहा फिर मर गया। ”
कहानी सुनने के बाद हसीबू ने साँपों के राजा से उसको घर भेजने की प्रार्थना की। पर साँपों के राजा सुलतानी वानीओका ने हसीबू से कहा — “जब तुम घर चले जाओगे तुम जरूर ही मुझे नुकसान पहुँचाओगे?”
हसीबू को उसका यह विचार बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा पर वह बोला — “मैं किसी भी तरह आपको किसी भी तरह का नुकसान पहुँचाने की सोच भी नहीं सकता। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे मेरे घर भेज दीजिये। ”
साँपों का राजा बोला — “मैं तुमको घर भेज तो दूँगा पर मुझे यकीन है कि तुम वापस जरूर आओगे और मुझे मार डालोगे। ”
हसीबू फिर बोला — “मैं इतना बेवफा कभी नहीं हो सकता कि मैं आपको मारने के लिये यहाँ वापस आऊँ। मैं कसम खाता हूँ कि मैं आपको कभी कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। ”
साँपों के राजा ने कहा — “ठीक है, मैं तुम्हारी बात माने लेता हूँ पर मेरी एक बात का ख्याल रखना कि जहाँ बहुत सारे लोग वहाँ कभी नहीं नहाना। ”
हसीबू बोला — “ठीक है मैं वहाँ नहीं नहाऊँगा। ” और राजा ने उसको उसके घर भेज दिया।
हसीबू अपनी माँ के पास गया। उसकी माँ तो उसको देख कर बहुत ही खुश हो गयी कि उसका बेटा ज़िन्दा है।
अब हुआ क्या कि जहाँ हसीबू रहता था वहाँ का सुलतान बहुत बीमार पड़ा। वहाँ के डाक्टरों ने कहा कि केवल साँपों के राजा को मार कर उसको उबाल कर उसके सूप को राजा को पिलाने से ही वह ठीक हो सकता था।
राजा का वजीर जादू के बारे में कुछ जानता था सो उसने बाहर सड़कों पर जो नहाने के घर बने हुए थे वहाँ बहुत सारे आदमी खड़े कर दिये और उनको कह दिया कि अगर कोई ऐसा आदमी यहाँ नहाने आये जिसके पेट पर कोई निशान हो तो उसको पकड़ कर मेरे पास ले आना।
इधर हसीबू को साँपों के राजा के पास से लौटे तीन दिन हो गये थे। वह साँपों के राजा की इस बात को बिल्कुल ही भूल गया था कि उसको जहाँ बहुत सारे आदमी हों वहाँ नहीं नहाना था सो वह भी दूसरे लोगों के साथ उस जगह नहाने चला गया जहाँ और बहुत सारे लोग नहा रहे थे।
तभी अचानक उसको कुछ सिपाहियों ने पकड़ लिया और उसको वजीर के पास ले आये।
वजीर ने कहा — “तुम मुझे साँपों के राजा के पास ले चलो। ”
हसीबू बोला — “मैं नहीं जानता वह कहाँ है। ”
वजीर ने कहा — “बाँध दो इसको। ”
फिर उन्होंने उसको इतना पीटा गया कि उसकी पीठ इतनी घायल हो गयी कि वह बेचारा ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था।
वह चिल्लाया — “रुक जाओ, मैं तुमको वह जगह दिखाता हूँ। ”
इस प्रकार हसीबू वजीर को साँपों के राजा के घर ले गया। साँपों का राजा उसको देखते ही बोला — “मैंने तुमसे कहा था न कि तुम मुझे मारने के लिये वापस आओगे। ”
हसीबू चिल्लाया —“मैं क्या करता। जरा मेरी पीठ तो देखिये। पीट पीट कर क्या हाल कर दिया है उन्होंने मेरी पीठ का। ”
“किसने मारा तुमको इतनी बेदर्दी से?”
“इस वजीर ने। ”
साँपों का राजा एक लम्बी साँस ले कर बोला अब मेरे लिये कोई उम्मीद नहीं रह गयी है पर तुम खुद मुझे वहाँ ले कर जाओगे।
जब वे लोग शहर जा रहे थे तो साँपों के राजा ने हसीबू से कहा — “जब हम शहर पहुँच जायेंगे तो वहाँ जा कर मुझे मार दिया जायेगा और मुझे पकाया जायेगा। उसका पहला रस यह वजीर तुमको पिलायेगा पर तुम उस रस को पीना नहीं बल्कि एक बोतल में रख लेना।
फिर वह तुमको दूसरा रस देगा। उसका दूसरा रस तुम पी लेना। उस रस को पी कर तुम बहुत बड़े डाक्टर बन जाओगे। उसका तीसरा रस वह दवा होगी जो सुलतान को ठीक करेगी।
जब वजीर तुमसे यह पूछे कि क्या तुमने वह पहले वाला रस पी लिया तो तुम उसको बोलना कि हाँ मैंने वह रस पी लिया। यह कह कर वह पहले रस वाली बोतल निकाल कर उस रस को वजीर को देना और कहना कि यह दूसरा रस तुम्हारे लिये है।
जैसे ही वह पहला वाला रस पियेगा वह मर जायेगा। इस तरह से हम दोनों का बदला पूरा हो जायेगा।
हसीबू ने वैसा ही किया जैसा कि साँपों के राजा ने उसे करने के लिये कहा था।
साँपों के राजा को पकाने के बाद उस वजीर ने उसका पहला रस पीने के लिये हसीबू को दिया पर साँपों के राजा की बात याद करके उसने वह रस एक बोतल में रख लिया।
जब उसको दूसरा रस दिया गया तो वह उसने पी लिया जिसने उसको एक बहुत बड़ा डाक्टर बना दिया। तीसरा रस उसने रख लिया क्योंकि वह तो राजा को ठीक करने वाला रस था।
जव वजीर ने उससे पूछा कि क्या उसने वह पहला वाला रस पी लिया तो उसने झूठ बोल दिया कि हाँ मैंने वह रस पी लिया और उसने पहली वाली बोतल निकाल कर उसको दे दी और उससे कहा कि “लो यह दूसरी बोतल तुम्हारे लिये है। ”
वजीर ने दूसरी बोतल का रस पी लिया और मर गया। तीसरी बोतल के रस कोे उसने सुलतान को पिला दिया जिससे सुलतान ठीक हो गया।
यह देख कर और सारे डाक्टर हसीबू की एक अच्छे डाक्टर की हैसियत से बहुत इज़्ज़त करने लगे।
देश विदेश की लोक कथाओं की सीरीज़ में प्रकाशित पुस्तकें —
36 पुस्तकें www.Scribd.com/Sushma_gupta_1 पर उपलब्ध हैं।
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1 नाइजीरिया की लोक कथाएँ–1
2 नाइजीरिया की लोक कथाएँ–2
3 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1
4 रैवन की लोक कथाएँ–1
नीचे लिखी हुई पुस्तकें ई–मीडियम पर सोसायटी औफ फौकलोर, लन्दन, यू के, के पुस्तकालय में उपलब्ध हैं।
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1 ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ — 10 लोक कथाएँ — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध
2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1 — 45 लोक कथाएँ — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध
नीचे लिखी हुई पुस्तकें हार्ड कापी में बाजार में उपलब्ध हैं।
To obtain them write to :- E-Mail drsapnag@yahoo.com
1 रैवन की लोक कथाएँ–1 — इन्द्रा पब्लिशिंग हाउस
2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1 — प्रभात प्रकाशन
3 इथियोपिया की लोक कथाएँ–2 — प्रभात प्रकाशन
नीचे लिखी पुस्तकें रचनाकार डाट आर्ग पर मुफ्त उपलब्ध हैं जो टैक्स्ट टू स्पीच टैकनोलोजी के द्वारा दृष्टिबाधित लोगों द्वारा भी पढ़ी जा सकती हैं।
1 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1
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2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–2
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3 रैवन की लोक कथाएँ–1
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4 रैवन की लोक कथाएँ–2
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5 रैवन की लोक कथाएँ–3
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6 इटली की लोक कथाएँ–1
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7 इटली की लोक कथाएँ–2
http://www.rachanakar.org/2017/10/2-1.html
8 इटली की लोक कथाएँ–3
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9 इटली की लोक कथाएँ–4
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10 इटली की लोक कथाएँ–5
http://www.rachanakar.org/2017/10/5-1-italy-lokkatha-5-seb-wali-ladki.html
11 इटली की लोक कथाएँ–6
http://www.rachanakar.org/2017/11/6-1-italy-ki-lokkatha-billiyan.html
नीचे लिखी पुस्तकें जुगरनौट डाट इन पर उपलब्ध हैं
1 सोने की लीद करने वाला घोड़ा और अन्य अफ्रीकी लोक कथाएँ
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Updated on Sep 27, 2017
लेखिका के बारे में
सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र् और अर्थ शास्त्र् में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइबे्ररी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश, लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आ गयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी एँड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी – www.sushmajee.com। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भि्ान्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला – कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देख कर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी – हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं।
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना प्रारम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको “देश विदेश की लोक कथाएँ” क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे।
विंडसर, कैनेडा
मई 2016
[1] The Physician’s Son and the King of the Snakes – a folktale of Zanzibar, Eastern Africa.
[My Note – I really wonder that this tale of Zanzibar mentions about Jesus Christ (as Prophet), and Solomon and his Genie and ring. This shows that it has been told since the times of Solomon – before 3000 years. Secondly this story seems like an Arabian Nights story in which one story comes out from another story.
[2] Haseeboo Kareemuddeen – a Muslim name
[3] Sultaanee Waaneeokaa – the King of the Snakes
[4] Al Kaaf Mountain
[5] Bolukiya
[6] Translated for the word “Prophet”
[7] Egypt
[8] Al Faan – name of a Muslim man
[9] King Solomon to control his Genie or Jinn
[10] Jan Shah – a Muslim name of a man
[11] Taaeeghamus
[12] Sayadaatee Shams – name of the dajughter of the King of Jini
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.
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(कहानियाँ क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
किसी भी देश की संस्कृति का खजाना उसकी लोकभाषा और लोकसाहित्य में छुपा होता है.आदरणीया सुषमा गुप्ता ने यह बड़ा स्तुत्य कार्य किया है.1200 लोककथाओं का संकलन हिंदी में करके आपने हिंदी पाठको को उपलब्ध कराया,इसके लिए आपका अभिनंदन और भाई रवि रतलामी और 'रचनाकार' का आभार!
जवाब देंहटाएंकिसी भी देश की संस्कृति का खजाना उसकी लोकभाषा और लोकसाहित्य में छुपा होता है.आदरणीया सुषमा गुप्ता ने यह बड़ा स्तुत्य कार्य किया है.1200 लोककथाओं का संकलन हिंदी में करके आपने हिंदी पाठको को उपलब्ध कराया,इसके लिए आपका अभिनंदन और भाई रवि रतलामी और 'रचनाकार' का आभार!
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