आध्यात्मिकता से एकता एवं समन्वय लेखक डॉ. निरंजन मोहनलाल व्यास भाषांतर हर्षद दवे -- प्रस्तावना | अध्याय 1 | अध्याय 2 | अध्याय 3 | अध्याय ...
आध्यात्मिकता से एकता एवं समन्वय
लेखक
डॉ. निरंजन मोहनलाल व्यास
भाषांतर
हर्षद दवे
--
प्रस्तावना | अध्याय 1 | अध्याय 2 | अध्याय 3 | अध्याय 4 | अध्याय 5 | अध्याय 6 |
अध्याय : ७ :
आध्यात्मिकता : मनुष्य और समाज
"इस के आगे की सरहद हमारे सामने नहीं, हमारे भीतर है."
- सेनेटर जोसेफ लीबरमेन.
इस अध्याय के प्रारंभ में मैं कुछ विद्वानों के आध्यात्मिकता विषयक अभिप्राय प्रस्तुत कर रहा हूँ:
माइकल दान्तले : (Michael Dantley) : लिखते हैं:
"आत्मा जीवन को जिवंत बनाता है. यह हमारा खुद का ही ऐसा अदृश्य पहलू है कि जो हमें अपने आप से कोई महान तत्व के साथ जोड़ता है. यह शब्दशः हमें प्रेरित करता है और हमारे हेतु को जोड़ती कड़ी बनता है और हमारे जीवन को सार्थक करता है. आत्मा मनुष्यजाति का एक अभिन्न हिस्सा है जो हमें सावधानी से समुदाय में दूसरों के साथ संबंधित रखता है. यह हमारी न्यायबुद्धि व प्रामाणिकता को राह दिखाती है और विकास की ओर प्रेरित करती है. और यह हमारे कार्य, ध्येय अथवा हेतु को आकार देती है."
विलियम ब्लूम : (William Bloom) : का निरिक्षण ऐसा है कि:
"अपार सौंदर्य के पल चाहे कितने भी भावनाशून्य या शंकाशील मनुष्य के ह्रदय में भी कोमल भाव जगा सकते हैं और मन में शांति के प्रवाह को बहा सकता है, जिस से मानसिक उद्वेग से मुक्ति मिलती है. मनुष्य की आंतरिक और भौतिक शक्तियों का सुयोग होता है, इस से मृदुता और शांति का ही अनुभव होता है. उतना ही नहीं परंतु उस से हमें कुदरत की शक्ति सर्जनात्मकता और विश्व की चेतना के साथ जुड़े हुए होने का अनुभव होता है. ऐसे पल में सजगता से कार्य करते समय या कुछ भी सर्जन करते समय हम अपनी आध्यात्मिक शक्ति और बुद्धिमत्ता को पूर्णरूप से प्रकट कर सकते हैं. मानव अस्तित्व की रोजमर्रा की भौतिक दुनिया से आध्यात्मिक विश्व कहीं अधिक चेतनायुक्त है. उस के पहलू अत्यंत विशाल और सर्जनात्मक हैं, उस में अगाध प्रेम है, यह अत्यंत शक्तिमान है, उस में अपूर्व दीर्घदृष्टि और दक्षता है और यह बहुत ही रहस्यमय है."
यहां पर आध्यात्मिकता के इस अर्थ की धार्मिकता या अन्य किसी विश्वास के साथ तुलना करनेवाली बात नहीं है.
लोक, लेवाइन, सर्ल्स और वेइनबर्गर (Lock, Levine, Searls and Weinberer): आध्यात्मिकता को इस प्रकार से प्रस्तुत करते हैं:
"हम सब को अपने ह्रदय के उदगार फिर से सुनाई देने लगे हैं. बीस साल पहले एकदूसरे के साथ कहीं भी, कभी भी बात करना संभव ही नहीं था और औद्योगिक क्रांति के प्रारंभ से पहले इसका कोई अस्तित्व ही नहीं था. अब, इस धरती के एक छोर से दूसरे छोर तक इंटरनेट और वर्ल्ड वाइड वेब द्वारा इस प्रकार वार्ता करना अत्यंत व्यापक और बहु आयामी बन गया है. उनमें करोड़ों वर्षों की अव्यक्त आशाएं, निराशाएं, स्वप्न और भूतकालीन घटनाएं एकदूसरे में उलझे हुए दो सांप जैसी सांकेतिक स्थिति में थे. मनुष्य के मन में जो मूलभूत, पुनीत, विलक्षण, रोचक विचारधाराएं दबी हुई पड़ी थीं ये अब इस इक्कीसवीं शताब्दी में नए उपकरणों के जरिये सैलाब की तरह अपूर्व रूप से हमारे सामने आतीँ हैं."
इन संवादों में बहुत से तानेबाने और पूर्वापर संबंध पाए जाते हैं, परंतु उस के दोनों छोर पर हमारे सामने मनुष्य का अस्तित्व प्रकट होता है.
वेब के लिए यह तीव्र इच्छा और ललक से साफ़ नजर आता है कि यह आध्यात्मिक भाव प्रकट करने का प्रयास मात्र है. यह ललक सूचित करती है कि हमारे जीवन में कोई कमी है. और जो कमी है वह हमारे भीतर की आवाज है ऐसा मान सकते हैं. वेब इस कमी को, इस आवाज को, फिर से बुलंद करने का अति मूल्यवान साधन बन गया है.
ऑस्टिन: की आध्यात्मिकता की परिभाषा इस प्रकार से है:
'अधिक निश्चित रूप से कहा जाए तो आध्यात्मिकता का संबंध उन मूल्यों के साथ है जिन को हम सब से अधिक चाहते हैं, पसंद करते हैं और जिन के प्रति हमें आदर हैं. हम कौन है और कहाँ से आए हुए हैं इस की जानकारी, हम यहां किस लिए हैं यह जानने की आकांक्षा - जिसे हम अपने कार्य में और अपने जीवन में पाने के लिए मथते हैं, जीवन का एक ऐसा अर्थ और हेतु - और हमारी एकदूसरे के साथ रहने की तथा हमारी सकल संसार के साथ जुड़े हुए रहने की भावना इन सब के साथ आध्यात्मिकता का संबंध है.'
हेंग: (Hang) : अपने दैनिक जीवन के साथ तुलना करती हुई आध्यात्मिकता की परिभाषा निम्नानुसार प्रस्तुत करते हैं:
'जीवन में घटती घटनायों को अर्थ देने के लिए और जीवन किस दिशा की ओर विकसित हो रहा है उसे प्रकट करने के लिए आध्यात्मिकता हमारे पास एक ढांचा प्रस्तुत करती है. आध्यात्मिकता हमारी स्वार्थपरता से परे हैं. यह हमें हमारे अपने प्रति, अन्य लोगों के प्रति और पर्यावरण के प्रति करुणायुक्त बनाती है और जोड़े रखती है. यह आशा को जीवित रखती है, कृतज्ञता तथा सुंदरता की कदर करने की भावना दृढ़ करती है; यह हेतुयुक्त साहसिक जीवन का समर्थन करती है. आध्यात्मिकता मनुष्य की मानसिक प्रक्रिया, ममता और आचरण विकासमान कर के जीवन के मूल्य में वृद्धि करती है. यह नियत (रूढ) विश्वासों की सूची नहीं है, परंतु प्रगतिशील एवं गतिशील प्रक्रिया है जो मनुष्यों को सर्वांगीण शिक्षा से और जीवन के उचित अनुभवों से परिचय करवाती है.
बेनिफिअल : (Benefiel) : की आध्यात्मिकता की परिभाषा धार्मिक विषयों की सीमायों को लांघ जाती है :
'आध्यात्मिकता बौद्धिक, भावनात्मक और गहन संबंध रखनेवाले मानुषिक लक्षणों को समाविष्ट करती हैं. इस के उपरांत यह मनुष्य को निरंतर निजी विकास एवं उत्क्रांति की उत्कृष्ट इच्छा की ओर ले जाती है.
इन में आध्यात्मिकता से संपन्न मनुष्य का अन्तःकारण निरंतर उसी में खोया हुआ रहता है.'
आध्यात्मिकता की भिन्न भिन्न परिभाषाएँ और उस विषय से संबंधित निबन्धों का निष्कर्ष यह है कि आध्यात्मिक मनुष्य कई प्रकार के मूल्यवान लक्षणों से संपन्न हो सकता है. उनमें से कुछ निम्नानुसार हैं:
ü प्रेरक ज्ञानप्राप्ति की खोज में रहना.
ü अधिकृत बनना. सच्चा मनुष्य बनना.
ü अपने साथ और अन्य लोगों साथ निकट के संबंधों से जुड़े हुए रहने की उच्च भावना विकसित करना.
ü जीवन का अर्थ व हेतु जानकर उस दिशा में आगे बढ़ना.
ü विश्वसनीय बनने की भावना विकसित करना.
ü प्रेमपूर्ण, क्षमाशील, करुणावान, सत्यप्रिय, सर्जनात्मक, आदरभावयुक्त, ध्यान रखने की भावनायुक्त, सहयोग देने के लिए तत्पर, सहिष्णु, दाता, सदभावनायुक्त, कृतज्ञ इत्यादि गुणों से संपन्न होना.
ü दूसरों की सेवा करने की भावना और इच्छा होना.
ü अखंडितता, प्रामाणिकता, स्वस्थता और स्व में स्थित, केंद्रित रहने के लक्षण होना.
ü आंतरिक रूप से स्वस्थ, प्रसन्न, शांत रहना.
ü जीवन के अर्थ की खोज करने के लिए उत्सुक रहना.
यह सूची संपूर्ण नहीं है, परंतु यह आध्यात्मिकता के महत्वपूर्ण पहलूयों को उजागर करती है.
विश्व के विद्यमान और विगत विद्वान और विचारकों कि जिन्हें हम अत्यंत ज्ञानी और आध्यात्मिक रूप से उच्च कोटि के मानते हैं, उन्होंने ही मानव जीवन के उपर्युक्त मानदंड दिए हैं. जीवन में अपनाने लायक अदभुत आदेशों के बारे में विश्व की प्रत्येक सभ्यता के धर्मग्रंथों में उनका ऐसा निरीक्षण पाया जाता है.
हम मानव इतिहास के सब से अधिक महत्वपूर्ण समय में अपना अस्तित्व रखते हैं.
पिटर ड्रकर : (Peter Drucker) : इस समय के विचारक और मैनेजमेंट के महान लेखक का कहना है कि:
'कुछ शताब्दियों के बाद जब हमारे ज़माने का इतिहास लिखा जाएगा तब यह संभव है कि उस समय के इतिहासकार जिस सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना का आलेखन करेंगे वह टेक्नोलोजी, इंटरनेट या इ-कोमर्स के विषय की नहीं होगी, वह होगी मनुष्य की स्थिति में आया हुआ अपूर्व परिवर्तन. वास्तव में पहली ही बार तेजी से बढती जा रही आबादी के अधिकाधिक लोग वर्तमान में अपनी पसंद से, अपने तरीके से जीवन जीने के लिए समर्थ बने हैं. पहली ही बार उन्हें खुद अपना मार्गदर्शन कैसे करें यह सिखाना पड़ेगा और इस के लिए समाज अभी संपूर्ण रूप से तैयार नहीं हुआ है.'
अब हम औद्योगिक युग से जानकारी रखनेवाले युग में (बुद्धिपूर्वक, बुद्धिमत्ता से कार्य करते) युग में आ गए हैं. फिर पिटर ड्रकर औद्योगिक मजदूरों के युग की प्रवर्तमान जानकारी रखनेवाले (बुद्धिपूर्वक/बुद्धिमत्ता से कार्य करते हुए) कार्यकर्तायों के युग के साथ निम्नानुसार तुलना करते हैं:
२० वीं सदी में मैनेजमेंट का सब से अधिक योगदान मजदूरों की उत्पादकता में पचास गुना वृद्धि हुई यह था.
इसी प्रकार से मैनेजमेंट के लिए २१ वीं सदी में जानकारी रखनेवाले (बुद्धिमत्ता से कार्य करनेवाले) कार्यकर्तायों की उत्पादकता में वृद्धि करनी होगी.
२० वीं सदी की कंपनियों में सब से अधिक मूल्यवान संपत्ति उनके उत्पादन की साधन-सामग्री (मशीनरी) थी. किंतु २१ वीं सदी के व्यापारी या बिनव्यापारी संस्थानों की सब से अधिक मूल्यवान संपत्ति उन के जानकार संपन्न कार्यकर्ता और उनकी उत्पादन शक्ति पर आधारित रहेगी.
· मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए सुझाव :
स्टीवन कवि (Stephen Covey) अपनी पुस्तक 'दि एइटथ हेबिट' (The 8th Habit) में 'इफेक्टिवनेस टू ग्रेटनेस' (Effectiveness to Greatness) में सर्वांगीण विकास की आवश्यकता अत्यंत स्पष्ट रूप से समझाते हुए कहते हैं कि मनुष्य की मूलभूत क्रियायों में उस की आत्मा और आध्यात्मिकता प्रमुख स्थान पर होनी चाहिए. आप पूछते हैं कि: 'एक मुख्य और बुनियादी कारण क्या है कि जिस से इतने सारे लोग अपने कार्य से असंतुष्ट रहते हैं और अधिकतर संस्थान अपने कार्यकारों की श्रेष्ठ प्रतिभा, चातुर्य और रचनात्मकता का लाभ नहीं उठा पाते और कभी भी सही माने में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते? इस का एक ही जवाब है: मनुष्य के सर्वांगीण विकास का अभाव.'
दरअसल मनुष्य 'यंत्र' नहीं कि उन्हें नियंत्रित करना पड़े. मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए उन के चार पहलूयों के बारे में जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है. ये चार पहलू हैं शरीर, बुद्धि, ह्रदय और आत्मा:
· सर्वांगीण विकास के चार पहलू:
० शरीर | ० बुद्धि |
० आत्मा | ० ह्रदय |
· मनुष्य की चार आवश्यकताएँ :
० शरीर - जीना, जीवित रहना ० आत्मा - दूसरों की सेवा | ० बुद्धि - सीखना, मानसिक वृद्धि एवं विकास ० ह्रदय - प्रेम करना |
= जीवन का अर्थ और हेतु जानना | = अंतरमन संबंधों का सिलसिला |
· सर्वांगीण विकास से कार्य शक्ति की परिपूर्णता :
० शरीर शरीर को उचित पोषण दें | ० बुद्धि बुद्धि का उपयोग रचनात्मक तरीके से करें |
० आत्मा आत्मा का आदर्श: मानव सेवा करें | ० हृदय / अंतरमन अंतरमन करूणामय रखें |
* स्टीवन कवि की पुस्तक 'दि एइट्थ हैबिट' में से.
जब स्टीवन कवि निम्नानुसार लिखते हैं, तब समस्त मनुष्यजाती के लिए और हमारे समाज के लिए वे आगमवाणी का उच्चारण कर रहे हो ऐसा लगता है:
"हम सब के भीतर गहराई में एक आंतरिक उत्कंठा है. यह उत्कंठा हकीकत में यथेष्ट सुन्दरतम जीवन जीने की और विश्व के लिए कुछ कर गुजरने की है कि जिस से दूसरों के जीवन में सही माने में कोई परिवर्तन हो. इस के लिए शायद हमें अपने मन में, आपने आप पर, अपने सामर्थ्य पर आशंका उत्पन्न हो सकती है. परंतु मुझे पूरा भरोसा है कि प्रत्येक मनुष्य में ऐसा जीवन जीने का सामर्थ्य है जो सब में एक बीज के रूप में पडा है. उसे अंकुरित करने का, उसे विकसित करने का प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है."
जैसे कि हमने पहले देखा है, सर्वांगीण विकास के लिए शरीर, बुद्धि, हृदय और आत्मा की आवश्यकता है, उनके अनुरूप चार चेतना और लब्धियाँ इस प्रकार से हैं:
- शारीरिक चेतना = Physical Intelligence = PQ = शारीरिक स्तर/अंक.
- मानसिक चेतना = Mental Intelligence = IQ = बुद्धिमत्ता का स्तर/अंक.
- भावनात्मक चेतना = Emotional Intelligence = EQ = भावनात्मकता का स्तर/ अंक (जो हृदय अथवा अंतरमन के साथ तालमेल बिठाता है)
- आध्यात्मिक चेतना = Spiritual Intelligence = SQ = आध्यात्मिकता का स्तर/अंक
§ यहां प्रतीक (क्यू) का अर्थ है: क्वोशंट (Quotient) जिसका अर्थ है लब्धि/स्तर या अंक.
v शारीरिक चेतना: Physical Intelligence = PQ = शारीरिक स्तर/अंक.
हमारा शरीर एक अदभुत साधन है. प्रकृति ने हमारे शरीर की जो रचना की है, यह एक अदभुत जटिल यंत्र जैसी है. हमारे हृदय की धडकनें, फेफड़ों के द्वारा होती श्वासोच्छवास की क्रिया, पाचनतंत्र की जो आहार को रक्त में और अन्य महत्वपूर्ण ऊर्जा शक्ति में रूपांतरित करने की शक्ति; ये शारीरिक क्रियाएं बिना किसी नियंत्रण के सक्रिय रूप में अपने आप चलतीं रहतीं हैं.
v मानसिक चेतना : Mental Intelligence = IQ = बुद्धिमत्ता का स्तर/अंक:
हमारी बुद्धि क्या करती है इस से प्रत्येक मनुष्य परिचित है. यह हमारी समझदारी का मानदंड है. संस्था में नौकरी के लिए किसी को पसंद करते समय संदर्भित व्यक्ति के बुद्धिमत्ता के स्तर को देखा जाता है. यह उस व्यक्ति की तार्किक विश्लेषणात्मक विचारशक्ति की मानसिक रूप से देख पाने की, शब्दों में व्यक्त करने की और परिस्थिति का पूर्ण रूप से सही जायजा लेने की क्षमता का मानदंड है. समाज का झुकाव इस स्तर / आईक्यू / IQ पर अनजाने में ही इतना तो केंद्रित हो गया है कि हम अन्य तीन प्रकार के अंक शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिकता के अंकों पर ध्यान ही नहीं देते.
v भावनात्मक चेतना = Emotional Intelligence = EQ = भावनात्मकता का स्तर/अंक :
भावनात्मकता विशेष रूप से अन्य मनुष्यों के साथ असरदार ढंग से और समझदारी से व्यवहार-वर्तन करने में उपयोगी बनती है. इस के उपरांत पूर्वग्रह रहित, निष्पक्ष रूप से दूसरों से कुछ सीखने और तदनुसार अपने विश्वासों में परिवर्तन करना, सब को गौर से सुनना, दूसरों की व समाज की परिस्थिति समझने के लिए उद्यत रहने से संबंधित है. उच्च भावनात्मक चेतना संपन्न मनुष्य में स्वयं जागृति और विशेष जानकारी का समन्वय दिखाई देता है.
इस चेतना को कई बार बाइ ओर के दिमाग की कार्यक्षमता से अधिक दाई ओर के दिमाग की कार्यक्षमता के सन्दर्भ में स्वीकारा जाता है. बाएं दिमाग की कार्यक्षमता में कार्य-कारण और तर्क, खास प्रकार से ही सोचने की, समझाने की शक्ति तथा स्थिति का जायजा लेने की क्षमता का समावेश होता है. जब कि दाहिने दिमाग की चेतना में अधिक अच्छी मानसिक दक्षता (सोफ्ट स्किल्स / Soft Skills) जैसे कि भीतरी प्रेरणा, रचनात्मकता, दूसरों को परखने की शक्ति, अनुभूति और सर्वांगीण रूप से देखने की दृष्टि का समावेश होता है. अनुसन्धान-अन्वेषण से पता चलता है कि आईक्यू और इक्यू (IQ & EQ) का समन्वय करने से निर्णयशक्ति का, उस के संतुलन का और विवेकबुद्धि का तथा अच्छी दक्षता का विकास होता है.
इक्यू (EQ) के शोधकर्ता और लेखक विद्वान डेनियल गोलमेन निम्नानुसार कहते हैं:
"हर जगह प्रत्येक क्षेत्र में सर्वोत्तम कार्य करने के लिए, भावनात्मक (EQ) योग्यता का महत्व केवल आईक्यू (IQ) पर आधारित क्षमता से दुगुना होता है. संस्था के संचालक के बतौर सर्वोच्च कोटि की सफलता पाने के लिए सब से बड़ा योगदान भावनात्मक योग्यता का रहता है. हाल ही में किये गए अनुसंधानों के आधार पर श्रेष्ठ कार्य करने की योग्यता के महत्वपूर्ण तत्वों का दो तृतीयांश या उससे अधिक हिस्सा भावनात्मक चेतना के क्षेत्र से आता है. प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि ऐसी क्षमता संपन्न लोगों को संस्था में लाने से अथवा अपने खुद के विद्यमान कार्यकारों में ऐसी क्षमता अंकुरित करने से ऐसी संस्थाएं अपने मूल्यों में कई गुना वृद्धि कर सकते हैं. उदाहरण के लिए मशीनरी का संचालन कर रहे कर्मचारी और सामान्य लिपिक में सब से अच्छा काम करनेवालों की संख्या केवल एक प्रतिशत ही थी. उस में भावनात्मक चेतना संपन्न कार्यकारों की उत्पादन शक्ति तीन गुना अधिक पाई गई थी. (मूल्य के अनुसार). जब कि मध्यम कोटि के बिक्री विभाग के लिपिक और बड़ी मशीनरी चलानेवाले कार्यकारों में सब से अच्छा कार्य करती व्यक्ति, जो भावनात्मक चेतना संपन्न थी, उसकी उत्पादन शक्ति दूसरों से बारह गुना अधिक थी. (मूल्य अनुसार).
जो लोग उच्च आईक्यू (IQ) संपन्न होते हैं परंतु इक्यू (EQ) के महत्व की ओर ध्यान नहीं देते हों या फिर इक्यू (EQ) की मात्रा कम हों वे शायद प्रभावशाली संचालक नहीं बन सकते. क्यों कि उन में दूसरों के साथ प्रभावकारी ढंग से हिलमिल के बातचीत करने की और दूसरों को समझने की तत्परता का आभाव पाया जाता है. इक्यू (EQ) को किस प्रकार से पोषित किया जा सकता है और उस में वृद्धि कैसे की जा सकती है यह नए ज़माने की, हमारे समाज के लिए और हमारी संस्थायों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
v आध्यात्मिक चेतना: Spiritual Intelligence = SQ = आध्यात्मिकता का स्तर/अंक :
हमारे समाज में और व्यवसाय में, शैक्षणिक संस्थानों में और वैज्ञानिक समुदायों में इस समय आध्यत्मिक चेतना सब का ध्यान सब से अधिक आकर्षित कर रही है. यह चेतना चारों चेतनायों में सब से अधिक महत्वपूर्ण है. क्यों कि उसके द्वारा ही अन्य तीन चेतनायों का संवर्धन एवं मार्गदर्शन होता है. मानवजात के लिए एसक्यू (SQ) जीवन का अर्थ तथा हेतु जानने के लिए और परमशक्ति के साथ संपर्क बनाए रखने का प्रेरक तत्व है.
स्टीवन कवि (Stephan Covey) दर्शाते है कि: आध्यात्मिक चेतना हमारे अंतरात्मा के हिस्से जैसे सही सिद्धांत परखने में हमारी मदद करती है. उसे 'कम्पास' (दिक् सूचक) जैसे सांकेतिक शब्दों से पहचाना जाता है. कम्पास यह सिद्धांत के लिए उचित भौतिक मिसाल है क्यों कि यह हमेशा उत्तर दिशा ही दर्शाता है.
उच्च कोटि का नैतिक और आध्यात्मिक मानदंड निरंतर बनाए रखने के लिए 'उत्तर दिशा के सही' सिद्धांतों का अनुसरण हमेशा करना चाहिए. यही तो है आध्यात्मिक जीवन जीने की चाबी.
रिचर्ड वोल्मन 'थिंकिंग विद् युअर सोल' (Richard Wolman: Thinking With Your Soul) के लेखक 'आध्यात्मिक' शब्द को इस प्रकार से स्पष्ट करते हैं:
'आध्यात्मिक मतलब एकनिष्ठ मनुष्य की सनातन खोज. स्वयं की अपेक्षा उस तत्व की खोज जो हमारा ध्यान रखता है. अपनी आत्मा के प्रति, एकदूसरे के प्रति, इतिहास के विश्व के साथ तथा प्रकृति के साथ, अविभाजित चैतन्य के प्रवाह के साथ और जीवित-जिवंत रहने का रहस्य जानने की हमारी युगों पुरानी खोज का नतीजा है आध्यात्मिकता.'
दानाह झोहर और आईन मार्शल (Danah Zohar and Ian Marshall) भी अपनी पुस्तक 'एसक्यू: कनेक्टिंग विद अवर स्पिरिचुअल इंटेलिजेंस' (SQ : Connecting With Our Spiritual Intelligence) में कहते हैं कि: आईक्यू (IQ), जो कि कम्प्यूटर के पास है और इक्यू (EQ) जो उच्च कोटि के पशुयों में नजर आता है, परंतु एसक्यू (SQ) केवल मनुष्य में ही पाया जाता है. इन तीनों में (EQ,SQ,IQ) यह मूलभूत है. यह मानवजाति की अर्थ एवं हेतु जानने की आवश्यकता के साथ जुडा हुआ है. यह जानने की तीव्र आकांक्षा हमारे मन में सब से अग्रिम स्थान पर है...एसक्यू (SQ) का उपयोग हम अपनी आध्यात्मिक प्यास बुझाने के लिए तथा अपने जीवन का हेतु, उसकी दिशा, अर्थ और मूल्य की समझदारी को विकसित करने के लिए करते हैं. यह हमें स्वप्न देखने के लिए तथा उसे साकार करने के लिए प्रेरित करता है. हमारे विश्वास और हमारे मूल्य हमारे जीवन की गतिविधियों में क्या मायने रखते हैं इस का आधार यह चेतना है. यह सही चेतना ही हमें सच्चा मनुष्य बना सकती है.
एसक्यू (SQ) की यह बातचीत स्टीवन कवि की पुस्तक 'दि एइट्थ हैबिट' से लिए गए इस उद्धरण के साथ पूर्ण होती है:
'जब विश्व का और उसके संस्थानों का, समाज और समुदायों का, परिवारों का तथा मनुष्यों का इतिहास लिखा जाएगा तब उसके केन्द्र में लोग अपनी सामाजिक अच्छे-बुरे की विवेकबुद्धि के अनुसार कितना जिएं यह नहीं होगा, परंतु उनकी दिव्य अंतरात्मा की आवाज के अनुसार कितना जिएं यह होगा. उसी में ही मनुष्य की अंतर्दृष्टि और दक्षता के सिद्धांत अथवा प्राकृतिक नियम विश्व के सारे प्रमुख धर्मों में और मनुष्य जाती के वर्षों का गहन तत्वज्ञान गूथा हुआ पडा हैं.'
इस इतिहास में प्रादेशिक राजनीति, अर्थशास्त्र, सरकार, युद्ध, सामाजिक संस्कृति, कला, शिक्षा या देवस्थान संबंधित हकीकतों का जिक्र नहीं होगा, परंतु उस में नैतिक और आध्यात्मिक बातों के बारे में और समाज तथा संस्थानों ने कितने सच्चे तरीके से ये वैश्विक और सनातन नियमों का पालन किया इन का जिक्र होगा. ये नियम ही हमें सही-गलत के प्रति जागृत करते हैं. यही तत्व सभी को सम्मिलित करता हुआ एक महान एवं अद्वितीय तत्व है.
v इस समय के मानव समाज की समस्याएँ :
Ø संस्थानों के लोभ-लालसा.
Ø शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल.
Ø अत्यंत हानिकरता नशीले व मादक द्रव्यों का व्यसन.
Ø धनवान और ग़रीबों के बीच बढती जा रही आय की असमानता.
Ø सौजन्य, विवेक व आदर का अभाव.
Ø गरीबी.
Ø विभिन्न देश, जूठ व संस्थानों के बीच हो रहे लड़ाई-झघड़े.
Ø वैश्विक तापमान: पर्यावरण का विनाश.
Ø भ्रष्टाचार, घूसखोरी, रिश्वत.
Ø आतंकवाद.
Ø मनुष्य के मूलभूत अधिकारों का भंग, अवहेलना.
Ø धार्मिक असहिष्णुता.
Ø जाति और जातिपांति के भेदभाव.
Ø बच्चों का शोषण, उन पर अत्याचार.
Ø देह का व्यापार/वेश्यावृत्ति.
...और यह सूची बढती ही जा रही है.
v संस्थानों में लोभ-लालसा :
संस्थानों में लोभ लालसा एक बीमारी है. उच्च अधिकारी एवं संचालक धन अर्जित करने के रोग से बुरी तरह से पीड़ित है अतः वे क़ानून के सारे नियमों को नजरअंदाज करते हैं. इस में गलत लाभ-हानि के रिपोर्ट बनाने, कंपनी के शेयर धारकों का गलत पथप्रदर्शन करना, स्टोक/शेयर्स के लेनदेन में गैरकानूनी तरीके से ग्राहकों की राशि अन्य संस्थानों के नाम कर देना, हिसाबों में अवास्तविक पत्रक, गलत या नहीं किए गए खर्च जोड़ देना और कोंट्रेक्ट (ठेका) पाने के लिए राजनीतिज्ञों को रिश्वत देना इत्यादि बातों का समावेश होता है. २००८ की महामंदी के लिए अमरीका के सब से बड़े बैंकों के संचालक जिम्मेदार थे. उन्होंने अमर्यादित जोखिम उठाया था और साहूकारी-उधारी के नए तरीकों का कुचक्र चलाया था. आम लोग तो उसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते थे. अंततः कई बैंकों का खात्मा हो गया और कुछ बैंकों को अमरीकन सरकारने धन उधार दे कर बचा लिया. उस समय विश्व के सारे विराट वित्तीय संस्थान एकदूसरे से संबंधित होने से मंदी का प्रभाव योरप के साथ विश्व के कई देशों में बहुत गंभीर रूप से पडा था.
इस मंदी का प्रभाव बड़ा ही विनाशक था. उदाहरण के लिए, आइसलैंड जैसा छोटा देश दिवालिया हो गया. लाखों लोगों को अपने नौकरी-पेशे से हाथ धोने पड़े. कई लोग बेघर हो गए. मंदी का चिंताजनक प्रभाव गरीब देशों के ऊपर अधिक गहरा हुआ. उन की आय का प्रमुख आधार कच्चे माल के निर्यात पर था. अमरीका की और योरप की महामंदी से उनकी कच्चे माल की मांग बिलकुल कम हो गई और ऐसे देशों को अत्यंत मुश्किलों का सामना करना पडा. संस्थानों के संस्थाकीय लोभ-लालसा के कारण कई निर्दोष लोग मंदी के शिकार बन गए.
बोलमेन और डील अपनी पुस्तक 'लीडिंग विद सोल' (Bolman and Deal: Leading with Soul) में कहते हैं कि: "जब कोई लालची हो जाता है तब वह बिलकुल निम्न कोटि का हो जाता है और धन का लालच गलत बात नहीं ऐसा मानते हुए गलत आचरण करता है. जीवन का मुख्य हेतु या अर्थ खोजने की जो तत्परता होनी चाहिए उस की उसे बिलकुल परवाह नहीं होती."
अमरीका के सब से अधिक सम्मानित और धनवान नेता वोरन बफेट (Warren Buffet) ने एकबार कहा था कि: "वे नए कार्यकारों में तीन प्रकार की गुणवत्ता खोजते हैं: प्रामाणिकता, बुद्धिमत्ता और काम करने की तत्परता. उनका कहना है कि यदि उन में पहला गुण नहीं होता है तो शेष दूसरे दो गुण आपकी संस्था के लिए विनाशक सिद्ध होगा. प्रामाणिकता आध्यात्मिकता का अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है. यह नेतृत्व का हार्द है और उसकी आत्मा है. ऐसे कई दृष्टांत हैं कि जिस में संस्था के नेतायों ने आध्यात्मिकता द्वारा मार्गदर्शन पाया हो."
एरोन फ्युअर स्टाइन (Aron Feurestein) टेक्सटाइल उत्पादक माल्डन मिल्स के अध्यक्ष थे. उनका वर्तन कई बार सबको आश्चर्यजनक लगता था, विशेष रूप से उनके कर्मचारियों को. दिसंबर, १९९५ में उन की अधिकतर मिले आग में भस्मीभूत हो गईं और कारोबार ठप्प हो गया. बाद में दूसरे ही दिन उन्होंने घोषणा की कि उन के सारे - तीन हजार के करीब - कार्यकारों का वेतन अगले महिने में चालू रहेगा, मतलब कि उनकी नौकरी बरकरार रहेगी. जनवरी में उन्होंने फिर घोषित किया कि वे एक महिने तक कर्मचारियों को वेतन देंगे. यही प्रस्ताव उन्होंने फरवरी महिने के लिए भी दोहराया. जब उन्होंने ऐसा दूसरी बार कहा था तब सब को विस्मय हुआ था. परंतु जब तीसरी बार भी यह सिलसिला जारी रहा तब सब की आँखे सजल हो गईं थीं. मार्च तक मिल ठीक हो गई और उनके अधिकतर कर्मचारी फिर काम पर लग गए. फ्युअरस्टाइन की उदारता उसकी संस्था के बोर्ड की सलाह के विरुद्ध थी. इस से उसे लाखों डॉलर का घाटा भुगतना पडा. परंतु कार्यकर और समाज दोनों के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उन्होंने यह निर्णय किया था. उन्होंने पहली सदी के तालमुद (यहूदी पवित्र ग्रन्थ) के विद्वान हिलेल (Hillel) का वाक्य कहा: 'अपनी संपत्ति में वृद्धि करनेवाले सभी बुद्धिमान नहीं होते.' और फिर फ्युअरस्टाइन ने कहा: 'यदि आप भी ऐसा सोचते हैं कि संस्था के प्रमुख संचालक का कार्य केवल शेअरहोल्डरों की संपत्ति में वृद्धि करनेका ही है, तो फिर हम धर्मग्रन्थ, या शेक्सपिअर को पढाने में अथवा सांस्कृतिक कला के लिए जो समय बिताते हैं वह निरर्थक है. परंतु यदि आप ऐसा सोचते हैं कि संचालक को अपनी जिम्मेदारियां सब को ध्यान में रखते हुए सोच-समझ कर निभानी चाहिए तो ऐसी विचारधारा समाज को अतीत, भविष्य और वर्तमान के साथ जोड़ती है.'
बिलकुल खराब ठंडी आबोहवा होते हुए भी, सब लोगों की अपेक्षा से अधिक तेजी से माल्डन मिल ने फिर से उत्पादन का प्रारंभ किया. फ्युअरस्टाइन ने कहा, 'हमारे कर्मचारी अधिक रचनात्मक हो गए हैं. सब प्रतिदिन २५ घंटे तक हृदयपूर्वक कार्य करने के लिए उद्यत हो गए हैं.'
ऐसी ही एक बात टाटा ग्रुप कम्पनिझ ऑफ इंडिया के चेअरमेन श्री रटन टाटा के बारे में भी है. टाटा ग्रुप बम्बई की सुविख्यात ताजमहल होटल का स्वामित्व रखता है और इस का संचालन करता है. इस होटल पर नवंबर २६, २०१० के दिन पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हमला किया था.
एक पत्रकार ने रटन टाटा से प्रश्न किया कि, 'टाटा ग्रुप रिलायंस ग्रुप जितनी कमाई (मुनाफा) क्यों नहीं करता? (रिलायंस ग्रुप भारत का दूसरे क्रम का एक बड़ा कोर्पोरेशन है. रिलायंस ग्रुप के मालिकों के नाम विश्व के शीर्षस्थ दस धनिकों में हैं.) तब आपने जवाब दिया: 'हम उद्योगपति हैं और वे व्यापारी हैं.'
रटन टाटा ने २६/११ के दिन बम्बई में आतंकवादी हमले से प्रभावित लोगों के लिए जो कुछ किया यह अत्यंत विशिष्ट और उल्लेखनीय है. आपने व्यावहारिक दृष्टि से समग्र विश्व को 'संस्था की सामाजिक जिम्मेदारी' का अर्थ समझाया. उस कठिन समय में टाटा ने निम्नानुसार कार्य किए :
१. जब तक होटल बंद रहा तब तक सभी वर्ग के कर्मचारियों को काम पर उपस्थित मान लिया गया. उन में जो एक दिन के लिए ही छुट्टी पर थे उनका भी समावेश किया गया था.
२. सभी लोगों को राहत और मदद दी गई थी, जिन में जो लोग रेलवे स्टेशन के आसपास हमले में आहत हुए थे उनका भी समावेश किया गया था, जिन में पाँवभाजी बेचनेवाले और पान की दुकानवाले भी थे.
३. जब तक होटल बंद रहा तब तक सब का वेतन मनीआर्डर से भेजा गया.
४. जिन को आवश्यकता हो ऐसे लोगों के लिए टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल सायन्सीज के सहयोग में एक मानसिक चिकित्सा केन्द्र स्थापित किया गया था.
५. लोगों के मन में घुमराते विचार और संभवित चिंता पर निरंतर ध्यान रखा जा रहा था.
६. जहाँ कर्मचारी आसानी से पहुँच सके ऐसे स्थानों पर केन्द्र खोले गए थे और वहीँ पर आहार, पानी, स्नानादि सुविधा, प्राथमिक चिकित्सा, सांत्वना देते व सहानुभूति प्रकट करते हुए सलाहकारों की सुविधा दी गई थी. इस सुविधा के अंतर्गत १६०० कर्मचारियों की चिकित्सा की गई थी.
७. प्रत्येक कर्मचारी के लिए एक निजी सलाहकार की नियुक्ति की गई थी. यह सलाहकार की जिम्मेदारी थी कि कर्मचारी को जो भी सहाय की आवश्यकता हो उसे तुरंत पूरी करे.
८. जिन कर्मचारियों के परिवार में कोई भी आहत हुआ था या किसी की मृत्यु हुई थी ऐसे ८० परिवारों से रटन टाटा ने स्वयं व्यक्तिगत रूप से मुलाक़ात ली थी.
९. कर्मचारी पर पलते उस के परिवार के लोगों को हवाईजहांज द्वारा मुंबई लाए गए थे और उनको मानसिक सांत्वना और राहत दे कर उन का ध्यान रखा गया था. सभी के लिए तीन सप्ताह तक होटल प्रेसिडेंट में ठहरने का प्रबंध कर दिया गया था.
१०. रटन टाटा ने खुद उन परिवारजनों के पास जा कर वे उनके लिए क्या कर सकते हैं इस विषय पर सहानुभूति से बातचीत कर के उन्हें ढाढस बंधाई थी.
११. टाटा ने अपने कर्मचारियों की सुविधा हेतु एक नए ट्रस्ट की रचना केवल २० दिनों में की थी.
१२. सब से अदभुत बात यह थी कि अन्य लोग, रेलवे कर्मचारी, पुलिस महकमे के कर्मचारी, राहदारी कि जिन्हें टाटा के साथ किसी प्रकार का संबंध नहीं था, परंतु जिनको आतंकवादियों ने घायल किया था उन्हें भी मुआवजे की योजना के अंतर्गत शामिल कर दिया गया था. उन में से प्रत्येक को परिवार के निर्वाह के लिए छः महिने तक प्रति मास रुपये दस हजार दिए गए थे.
१३. एक फेरीवाले की चार वर्ष की बेटी को चार गोलियाँ लगी हुई थीं. गवर्नमेंट अस्पताल में उनमें से केवल एक ही गोली निकाली गई थी. उस बेटी को मुंबई अस्पताल में ले जाया गया और शेष तीन गोलियाँ निकाल कर उसे ठीक करने के लिए लाखों रुपये का खर्च टाटा द्वारा किया गया था.
१४. जिन लोगों ने अपने ठेले गंवाएं थे उन को नए ठेले दिए गए थे.
१५. आतंकवाद के शिकार बने हुए ४६ बच्चों की पढ़ाई का दायित्व टाटा ने अपने जिम्मे ले लिया था.
१६. संस्थान के अस्तित्व की सही कसौटी तो तब हुई जब उस के तीन वरिष्ठ मैनेजर, कि जिन में से एक रटन टाटा थे, तीन दिनों तक जिनकी मृत्यु हुईं थीं उन सब की अंतिम यात्रा में उपस्थित रहे थे.
१७. प्रत्येक मृत व्यक्ति के वारिसों को रु.३६ से रु.८५ लाख की राशि दी गई थी.
इन के अलावा नीचे दर्शाए गए लाभ भी मृत कर्मचारियों के परिवारजनों को दिए गए थे:
· कर्मचारी के परिवार अथवा उस के ऊपर आधारित व्यक्ति को जीवनपर्यंत कर्मचारी को जो मिल रहा था वह वेतन.
· विश्व में कहीं भी पढ रहे कर्मचारियों के सन्तान या उन के ऊपर आधारित परिवार की ब्याक्तियों की पढ़ाई की संपूर्ण जिम्मेदारी टाटा ग्रुप ने उठाई थी.
· पूरे परिवार की तथा कर्मचारी पर आधारित व्यक्तियों की जीवनपर्यंत मेडिकल चिकित्सा.
· कर्मचारियों को सभी प्रकार के लोन-ऋण व उधार, कर्ज, चाहे कितनी भी राशि के हों, सारे चुकाने से मुक्ति दी गईं.
· प्रत्येक परिवार के लिए जीवनपर्यंत व्यक्तिगत सहानुभूति जताने के लिए सलाहकार नियुक्त किए गए.
होटल के कर्मचारियों को आतंकवादियो के हमले के समय वफादारी की जो अद्वितीय मिसाल, जो भावना, व्यक्त की थी, इसे कर्मचारियों में किस प्रकार से विकसित की गई? संस्था इस बात पर स्पष्ट थी कि कर्मचारियों के लिए जो कुछ भी किया गया उस का श्रेय मान, सन्मान या यश किसी एक व्यक्ति को नहीं जाता. उन्होंने जैसा वर्तन किया और जो कुछ भी किया वह किस प्रकार से और क्यों किया? कर्मचारियों को ऐसा आचरण करने के लिए कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया था. यदि कोई ऐसा कहे भी तो लोग उस बात को हंसी-मजाक समझेंगे. इस का आधार टाटा संस्थायों की अपनी भीतरी संस्कृति और उन के वातावरण पर है. उसे इस संस्था के डीएनए (DNA) कहा जाना चाहिए, जो वंशानुगत होते हैं. यह संस्था का मूल-मन्त्र है कि जिस में ग्राहक और अतिथि सर्वोपरि हैं और जान की परवाह किए बगैर भी सब से पहले उनका ध्यान रखा जाना चाहिए.
जब जमशेदजी टाटा का एक ब्रिटिश होटल में अपमान किया गया था और उनको उस होटल में ठहरने नहीं दिया गया था, तब आपने होटल के व्यवसाय का प्रारंभ किया था जो आज टाटा ग्रुप के नाम से जाना जाता है. उस के बाद आपने ऐसी कई संस्थायों का निर्माण किया जो आज समूचे विश्व में प्रगति, सभ्यता और आधुनिकता के प्रतीक बने हुए हैं.
जब संस्था के कर्मचारियों का ख़याल रखते संचालकों ने कर्मचारियों की सहायता हेतु कुछ खर्च करने का एक प्रस्ताव रतन टाटा के सामने प्रस्तुत किया तब टाटा ने कहा: 'क्या आप को ऐसा लगता है कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं यह पर्याप्त है?' पूरा प्रस्ताव कुछ करोड की राशि के व्यय पर होटल का नवसर्जन किया जाए ऐसा था. रतन टाटा ने कहा: 'क्यों न ऐसा ही खर्च जिन्होंने संस्था के लिए अपना जीवन समर्पित किया है ऐसे कर्मचारियों के लिए किया जाए?'
इस विषय पर भारत के न्यूज चैनल्स के द्वारा कोई प्रसारण नहीं हुआ, न ही उसका कहीं और उल्लेख किया गया.
(फोरम ऑफ इंडस लेडिज पोलिटिक्स एंड सोसायटी में प्रकाशित).
v स्वास्थ्य की देखभाल :
अमरीका की शैक्षणिक संस्था: परिवार के डॉक्टर (Family Doctors) के मंतव्य के अनुसार: 'आध्यात्मिकता ऐसा मार्ग है कि जिस में आप को आप के जीवन का अर्थ जानने-समझने का अवसर मिलता है, इस के उपरांत आशा, संतोष और आंतरिक शांति प्राप्त होती है. कई लोग धार्मिक आचरण द्वारा आध्यात्मिकता पाते हैं तो कोई संगीत द्वारा, कला द्वारा अथवा प्रकृति द्वारा उस के साथ तादात्म्य साध कर आध्यात्मिकता प्राप्त करते हैं. कुछ और लोग अपने जीवन के मूल्य और सिद्धांतों में से आध्यात्मिकता और तृप्ति पाते हैं.'
विद्यमान मेडिकल अध्ययन ऐसा सुझाव देता है कि जो लोग अपने आप को आध्यात्मिक कहते हैं वे आत्महत्या तथा शरीर को बहुत हानिकर्ता पदार्थों से दूर रहते हैं (जैसे कि धूम्रपान, मादक द्रव्यों का सेवन, शराब इत्यादि). कम मानसिक व्यथा का अनुभव करते हैं और बहुत ही संतोषपूर्ण जीवन जीते हैं. आध्यात्मिकता से हताशा कम होती है, रक्तचाप में (ब्लड प्रेशर में) सुधार होता है और रोगप्रतिकारक शक्ति में भी वृद्धि होती है.'
डॉ. हेरोल्ड जी. कोनिंग (Dr. Harold G. Koening), जो कि ड्यूक युनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के आध्यात्मिक थियोलोजी एवं हेल्थ केंद्र के सह-संचालक हैं, उनका कहना है कि:
'शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य एकदूसरे के साथ जुड़े हुए हैं. उदाहरण के तौर पर व्यथा का प्रभाव शरीर के कोशों पर होता है. जो स्त्री मानसिक रूप से व्यथित हो उस के कोष दस वर्ष कम सक्रिय रहते हैं. व्यथा व चिंता का दुष्प्रभाव ह्रदय पर पडता है और उस से हृदयरोग का हमला हो सकता है. परंतु उस से बचने के लिए आध्यात्मिकतायुक्त विचारधारा से सकारात्मक प्रभाव होता है. ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि आध्यात्मिकता से अति उच्च ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण पाया जा सकता है और बिमारी से जल्दी ठीक होने में प्रेरक प्रभाव होता है.'
हेल्थ डे न्यूज के अनुसार अमरीका के अधिकतर डॉक्टर ऐसा मानते है कि धर्म और आध्यात्मिकता मरीज के स्वास्थ्य के बारे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मेडिकल अभ्यास इस बात का स्वीकार करता है कि आध्यात्मिकता का मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव होता है.
जब परिवार प्रतिकूल स्थिति से गुजर रहा हो, जिस में स्वास्थ्य संबंधित मुश्किलें भी हों, ऐसी असहाय स्थिति में वे अपने धार्मिक विश्वास और श्रद्धा से सांत्वना पाते हैं और मुश्किल हालात का स्वीकार करने की शक्ति भी पाते हैं. कई परिवारों के जीवन में आध्यात्मिकता बहुत ही सशक्त और महत्वपूर्ण आधारशिला बनी रहती है.
v अत्यंत हानिकर्ता मादक द्रव्यों का व्यसन :
'शराब के अनामी व्यसनी' ('Alcoholics Anonymous' - AA) : यह एक ऐसी संस्था है कि जो लोगों को शराब के व्यसन से मुक्त करने के लिए उनकी मानसिक चिकित्सा करती है. जो भी मनुष्य यहां चिकित्सा हेतु आता है उस का नाम यह संस्था गुप्त रखती है जिससे समाज में उसका रुतबा बना रहे. यह संस्था ऐसा दर्शाती है कि आध्यात्मिक शिस्त शराब और मादक द्रव्यों से निजात पाने का कारगर उपाय है. नियमित प्रार्थना और ध्यान करने से ऐसी बुरी आदतों से छुटकारा पाया जा सकता है.
कोलेज के विद्यार्थियों के द्वारा ऐसे पदार्थों के उपयोग पर आध्यात्मिकता के प्रभाव से संबंधित कुछ जानकारी और अनुसन्धान प्रकाशित हुए हैं. उन से पता चला है कि शराब और गांजे जैसे अन्य नशीले पदार्थों का बुरा प्रभाव कम करने में आध्यात्मिकता प्रभावकारी है. ऐसे प्रमाण भी मिलते हैं कि ऐसी घटनायों में आध्यात्मिकता को समाविष्ट करने से बहुत ही अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं.
v धनवान और गरीबों के बीच बढती जा रही आय की असमानता:
१९९० में अर्थशास्त्रियों ने अमरीका में बढती जा रही आय की असमानता पर व्यवस्थित रूप से ध्यान देना आवश्यक समझा और इस विषय में जानकारी एकत्रित करना प्रारंभ किया. वैश्विकीकरण के कारण आय की ऐसी असमानता विकसते हुए देशों में अधिक तेजी से बढ़ने लगी है. यह बात निम्न जानकारी से सिद्ध हुई है:
इस अन्वेषण के अनुसार सब से अधिक आय प्राप्त करनेवाला वर्ग जो जनसंख्या का एक प्रतिशत मात्र है उस की आय पिछले तीन वर्ष में दुगुनी हो गई है.
२०११ में अमरीका में साधारण लोग आय की ऐसी असमानता के खिलाफ विरोध प्रदर्शित करने लगे. इस के उपरांत उन्होंने व्यापारी संस्थानों की अमर्यादित लालसा, बड़े बैंक तथा अंतरराष्ट्रिय व्यापारी संस्थानों की बढती जा रही खतरनाक सत्ता के विरोध में भी आन्दोलन शुरू किया था.
पश्चिम की सभ्यता व्यक्तिवादी है और व्यक्ति की आवश्यकताएं पूर्ण करने की और व्यक्ति को अपने तरीके से जीने की स्वतंत्रता देती है. जब कि विश्व की अन्य सभ्यताएं व्यक्ति की अपेक्षा समाज के मूल्य और आवश्यकतायों पर अधिक जोर देती हैं.
भौतिकवाद (वस्तुयों का संग्रह) और पूंजीवाद (मिलकत और धन अर्जित करने का व्यक्तगत स्वातंत्र्य) पश्चिम की सभ्यता की ठोस बुनियाद है. समाज की दृष्टि से जिन लोगों के पास बेशुमार धन है वे सब ऐश कर रहे हैं. उन के पास धन-भंडार भले ही होगा, किंतु शायद उनमें से बहुत ही कम लोग ऐसे होंगे जो आध्यात्मिकता का पालन करते होंगे. हकीकत में आध्यात्मिक होना और धनवान होना इन दोनों बातों को कईबार परस्पर विरोधी माना जाता है. अपनी भारतीय सभ्यता में भी कहा जाता है कि शायद लक्ष्मी और सरस्वती अकसर एक ही घर में एकसाथ नहीं पाए जाते.
v सौजन्य, विवेक और आदर का अभाव :
हमारे समाज में सौजन्य की कमी दिनों दिन बढती जा रही है. एक विद्वान लिखते हैं कि:
'अपने मानवबंधुयों के प्रति जिम्मेदार, दूरदर्शी और आदरपात्र वर्तन सौजन्य की सरल परिभाषा है. यद्यपि ऐसा माना जाता है कि विवेकी और अच्छा वर्तन करने की समझदारी पढ़ाई के द्वारा मिल सकती है परंतु यह कोई पाठ्यक्रम का हिस्सा हो ऐसा शायद ही पाया जाता है. शिक्षित लोग सौजन्यशील हो ऐसी आशा की जाती है. परंतु सौजन्य्शील कैसे बना जाए यह कोई नहीं सिखाता. और इस की उम्मीद भी नहीं की जाती - यह एक सनातन पहेली है.'
अमरीका और अन्य देशों में चुनाव के मौसम के दौरान राजनितिक प्रत्याशी सब से अधिक असभ्य व्यवहार करते हैं. भिन्न भिन्न अखबार, टेलीविजन और रेडियो के विवेचक भी ऐसा ही वर्तन करते हैं. खेलकूद की प्रतियोगितायों में विरोधी टीम के खिलाड़ी एकदूसरे का अपमान करते हैं और कभी कभी तो वे हाथापाई पर भी उतर आते हैं. कई बार ख़याल आता है कि लोग सामनेवाले पक्ष को तहस-नहस कर देने की हद तक पहुँच जाने से कब बाज आएँगे और लुप्त होती जा रही सौजन्यता फिर से कब आपनाएंगे?
हमारे समाज में उच्चतर शिक्षा का प्रमुख कार्य यह निश्चित करने का है कि विद्यार्थियों में सर्वांगीण रूप से सोचने की निपुणता का विकास हो. इस निपुणता में बातचीत के दरमियान सब को अपने मन सौम्य और खुला रखने की आवश्यकता होती है. दूसरी महत्वपूर्ण बात सामनेवाली व्यक्ति को अत्यंत ध्यानपूर्वक सुनाने के कौशल्य को विकसित करने की है.
एक और विद्वान बताते हैं कि: 'यदि आध्यात्मिकता एकदूसरे का संपर्क करने की निपुणता पर आधारित हो तो जिस में गलाकाटू हरिफाई हो और जहाँ एकदूसरे के विरुद्ध विभाजित आवाजें सुनाई देतीं हों ऐसे कलुषित वातावरण हो ऐसे में उसका विकास कैसे संभव है,?'
आध्यात्मिकता और सौजन्य के विषय में कौन सही हे और कौन गलत है यह तय करने से समझदारी और आदर का महत्व कई ज्यादा है. दरअसल यहां पर सही जवाब मिलना चाहिए यह विचार अनावश्यक है. एक चिन्तक ने लिखा है कि: 'आप सही है ऐसा प्रमाणित करने के बजाय आप भले हैं ऐसा प्रमाणित करना बेहतर है.' यह चर्चा ऐसे सुझाव की ओर ले जाती है कि हमें प्रत्येक मतभेदों का आदरपूर्वक निराकरण करके और अपनी सहज मानवता पर एकाग्र रहते हुए धैर्य रखना चाहिए. सही आध्यात्मिकता का यही हार्द है.'
v गरीबी :
विश्व की बरीबी के बारे में विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित जानकारी ध्यान देने योग्य है. तदनुसार विकासमान देशों में १९९० और २००५ के बीच अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा के नीचे जी रहे लोग, मतलब कि प्रति दिन १.२५ डॉलर से भी कम आयवाले लोगों की संख्या १.८२ अरब से कम हो कर १.३७ अरब की हो गई थी. उस के बाद २००८ तक के लगातार तीन वर्ष, बैंक के द्वारा प्रस्तुत किए गए प्राथमिक अनुमान के अनुसार वैश्विक गरीबी में और भी २० करोड की कमी हुई थी. चीन में गरीबी में ४७.५ करोड की कमी हुई थी. यह ऐसा निर्दिष्ट करती है कि इस अवधि में गरीबी कहीं और बढ़ी थी. केवल भारत में ही २००५ में ऐसी वृद्धि ९.१० करोड तक की थी. विश्व के तक़रीबन ३० प्रतिशत के करीब गरीबों की संख्या भारत से है, और अफ्रिका के सहरा की मरुभूमि इलाके में २५ प्रतिशत से अधिक है.
v हमें गरीबों की परवाह क्यों करनी चाहिए?
दुनिया की गरीबी के विषय में हमारी चिंता असंगत नहीं है यह समझने के लिए दो बातें हैं: नैतिक और आध्यात्मिक. इन बातों पर दारुण गरीबी अक्षम्य यातना है ऐसा भाव शिक्षा के आधार पर जागृत होता है. जिस गरीबी की ओर दुर्लक्ष करने से राजनितिक अन्याय उत्पन्न हुआ है यह और जिस के कारण विश्व के गरीब एवं धनवान लोगों के बीच जो फांसला और विभाजन रहता है उसके खिलाफ यह नैतिक दृष्टिकोण अधिक दृढ़ हुआ है.
१९४८ में मानव अधिकारों की समग्र विश्व में घोषणा हुई उन में गरीबी का समावेश सर्वसम्मति से किया गया था. जिस में आग्रहपूर्वक कहा गया था कि: 'प्रत्येक मनुष्य को खुद का और अपने परिवार के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए उचित जीवन स्तर के अनुसार जीने का अधिकार है.' मानव अधिकार के क़ानून के अंतर्गत गरीबी कम करना यह मनुष्य धर्म का एक हिस्सा है ऐसा संयुक्त राष्ट्र की अनेक संस्थायों के ध्येय में अभिव्यक्त किया गया है. हमें गरीबों की परवाह करनी चाहिए, इस का दूसरा कारण यह है कि उस में हमारा खुद का हित समाविष्ट है, यह हमारे कल्याण की बात है. अंतरराष्ट्रिय बनती जा रही इस दुनिया में छोटे-बड़े देश एकदूसरे पर आधारित रहने लगे हैं.
अत्यंत गरीबी के कारण मजदूर काम की खोज में दूसरे देशों में जाने के लिए उत्सुक रहते हैं, परंतु समृद्ध देश उनको अपने देश में प्रवेश देने के लिए स्पष्ट रूप से मना कर देते हैं. यदि विकासमान कमजोर देशों के कार्यकर समृद्ध देशों के संस्थानों में काम नहीं कर पाएंगे तो गरीबी के इस मर्ज की दवा करना मुश्किल हो जाएगा. आतंकवाद के मूल को समझना कठिन है, परंतु असह्य गरीबी उस का बड़ा उदभव स्थान हो सकता है और यह अत्यंत गरीब लोगों को आतंकवादी बनने के लिए मजबूर कर सकती है. उदारतावादी धनवान देशों का पूंजीवादी सामाज ऐसा समझता है कि गरीबी दूर करने से विश्व का अर्थतंत्र विराट बन सकता है यह सब के लिए लाभकारी है. अफ्रिका में समृद्धि बढ़ेगी तो विश्व के अन्य गरीब देश भी समृद्ध बन सकते हैं. यदि भारत हमारी अधिकतर ग्राम्य और बड़े शहरों की गरीबी हटा पाएगा तो भारत को विश्व की महासत्ता बनाने का सौभाग्य प्राप्त होगा.
v भ्रष्टाचार :
कई देशों में भ्रष्टाचार अनियंत्रित रूप से फैला हुआ है. गैरसरकारी संस्था ट्रांसपेरंसी इंटरनेशनल (टीआई), बर्लिन में जिस की स्थापना मई, १९९३ में हुई है. उसकी गणना मानव अधिकार के क्षेत्र की आदर्श संस्था के रूप में होती है. इस संस्था का हेतु यही है कि सभी राजनीतिज्ञों और बड़े व्यापारी संस्थान अपने व्यवहार पारदर्शी या प्रामाणिक रखें. संक्षेप में, प्रत्येक व्यवहार में सत्य का पालन करें. टीआई के स्थापक, बेईमान व्यापारीयों और कई देशों के घूसखोर सरकारी अधिकारियों के वर्तन से उन की कड़ी भर्त्सना व आलोचना करते हैं. उनका ध्येय विश्व के विभिन्न देशों का सहयोग प्राप्त कर के इस देश के सरकारी क़ानून, नीति-नियम एवं रिश्वत विरोधी कार्यक्रम बना कर उन का ठीक से पालन कराने का है. 'द करप्शन परसेप्शन इंडेक्स' (सीपीआई/भ्रष्टाचार अंक) व्यापारी एवं सरकारी अधिकारीयों से प्राप्त जानकारी से निश्चित किया जाता है. सीपीआई का सर्जन इस प्रकार से किया गया है कि जिस से जिस देश में कम से कम भ्रष्टाचार हो अथवा कम रिश्वत ली जाती हो उसे सर्वाधिक, १० अंक मिलते हैं. इस अंक से विदेशी व्यापारी संस्था यह सुनिश्चित कर सकती है कि किस देश में कारोबार या व्यापार-व्यवसाय करने में किस प्रकार की बाधायों का सामना करना पड़ेगा.
साधारण रूप से स्केन्डिनेवियन देशों में सब से कम भ्रष्टाचार है. जब कि अन्य कुछ देश जैसे की आफ्रिका, दक्षिण अफ्रिका और अन्य विकासमान देशों में सब से अधिक भ्रष्टाचार है. अमरीका ऐसा देश है कि जिस का अंक प्रति वर्ष कम होता जाता है और इस का अर्थ यह है कि वहां भ्रष्टाचार की मात्रा बढती जा रही है.
'एक फली में दो मटर' नामक लेख के लेखक थोमस एल. फ्रीडमेन हैं, और यह लेख न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित हुआ था. उस में विश्व के सब से बड़े दो लोकतान्त्रिक देशों के भ्रष्टाचार की तुलना की गई है: अमरीका और भारत:
'विश्व के सब से बड़े दो लोकतान्त्रिक देश भारत और अमरीका आंतरिक रूप से उल्लेखनीय एक सी परिस्थिति से गुजर रहे हैं. इस विषय में गहन अवलोकन करना आवश्यक है. दोनों देशों में भ्रष्टाचार के अतिरेक पर विरोध प्रदर्शित होता है. फर्क यह है कि, भारत में कोई भी प्रशासनिक कार्य करवाने के लिए प्रत्येक चरण पर रिश्वत देनी पड़ती है जो कि गैरकानूनी है और उसका विरोध किया जाता है. जब कि अमरीका में जो उद्योगपति अमरीका के कोंग्रेसपक्ष को और अन्य राजनितिक पक्षों को खरीदने के लिए बहुत सारा धन लगाते हैं उनको राजनितिक पक्षों से इस प्रकार राशि एकत्रित करने के रूप को (रिश्वत को) सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा, स्वीकृति दी जाती है. उसका बाकायदा विरोध होता है परंतु इन देशों के बीच का साम्य इतना ही नहीं. जिस विषय ने भारत के करोड़ों लोगों को 'भ्रष्टाचार मुक्त' भारत के आंदोलन का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया है इसी विषय को ले कर अमरीका की आम जनता ने वहां के बड़े बैंक और व्यापारी संस्थायों के घपले के विरुद्ध प्रदर्शन किया है. दोनों देशों में लोकतान्त्रिक पद्धति से चयनित सरकारें हैं, परन्तु ये सरकारें ऐसी रिश्वतखोरी की स्थिति में सुधार नहीं ला सकतीं क्यों कि दोनों देशों की सरकारों के लिए यह मनपसंद बात है! इसलिए दोनों सरकारों को कोई बाहरी झटका लगे ऐसी कोई चिकित्सा की आवश्यकता है.'
सब से बड़ा फर्क यह है कि अमरीका में आम लोगों के आंदोलन में कोई नेता नहीं या सब की मांगे एक समान नहीं और उनकी संख्या कम है. भ्रष्टाचार विरोधी लोग भारत में करोड़ों हैं और उन में प्रभावक नेता हैं. सामाजिक आंदोलन करनेवाले अण्णा हजारे, जो कि जब तक भारतीय पार्लामेंट (संसद) लोकपाल समिति का गठन करने के लिए सहमत नहीं होती तब तक अनशन (भूख हड़ताल) पर थे. उस बिल के अनुसार सरकारी कर्मचारी और सत्ताधारियों पर भी भ्रष्टाचार के सिलसिले में जांच हो सकती है, तथा उनके विरुद्ध भी कार्रवाई की जा सकती है ऐसा प्रबंध है. परंतु इस विषय पर बड़े जोरों से चर्चा चल रही है कि लोकपाल समिति का गठन होने के बाद यह समिति ही कहीं 'बड़ी तानाशाह' नहीं बन बैठेगी इस का क्या भरोसा? परंतु लोकपाल पद के लिए कुछ नई बैठकों का सृजन किया जाएँ ऐसी संभावना है.
वास्तव में भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने के लिए सही 'आध्यात्मिक जागृति' की आवश्यकता है.
v पर्यावरण को सुरक्षित रखना :
एक वैज्ञानिक ने कहा है कि जब मनुष्य अपनी चेतना और समग्र सृष्टि की चेतना को एक अविभाज्य अंश समझेगा तब यह स्पष्ट होगा कि जीव-विज्ञान विषयक समझदारी उसके मूल अर्थ के अनुसार आध्यात्मिक है.
दूसरे एक शिक्षणशास्त्री शिक्षा का हेतु इस प्रकार दर्शाते हैं:
'अपने चारों ओर जिसका भी अस्तित्व है उस में वह स्वयं भी पूर्ण रूप से विद्यमान है यह बात जिसने समझ ली है और सिवा मनुष्य के जो कुछ भी है उन को सुरक्षित कैसे रखें यह बात जिसने सीख ली है, वह मनुष्य शिक्षित समझा जाएगा.'
सी.ए.बोवर्स इस नई विचारधारा को 'पर्यावरण की यथार्थता' के रूप में व्यक्त करते हैं, जिस में प्राकृतिक और सामाजिक, दोनों प्रकार की आध्यात्मिक उन्नति का उचित रूप से समावेश हो जाता है.
ए. अरेनस (A. Arenas) इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि कोलेजों एवं युनिवर्सिटीयों को इस के बाद जो कार्य करना चाहिए उस पर सविस्तार बात करना बहुत आवश्यक है. इस में सब से महत्वपूर्ण एवं चिंताजनक समस्याएँ आज पर्यावरण और समाज से संबंधित हैं. पर्यावरण से संबंधित समस्यायों के सन्दर्भ में ऐसी जानकारी प्राप्त होती है कि 'हम जिसकी कभी क्षतिपूर्ति नहीं कर सकते ऐसा घाटा यह है कि प्रतिदिन एक प्रकार की सजीव वनस्पति पृथ्वी से लुप्त होती जा रही है. प्रति सेकण्ड १.३ एकड़ के हिसाब से हमारे उष्ण कटिबंध स्थित घने जंगलों का विनाश होता जा रहा है; जमीन के बेशुमार अपक्षरण से प्रति वर्ष ७५० करोड मेट्रिक टन जमीन का अपक्षरण होता जा रहा है; ओझोन के आवरण में अंदाजन अमरीका के विस्तार जितना सूराख़ (छिद्र) हो गया है; और अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति दिन लगभग २,५४,००० लोगों की आबादी विश्व में बढती है.'
और सामाजिक समस्याएँ तथा मानव अधिकार के भंग का क्या? विश्व में लगभग १३ करोड लोग प्रति दिन एक डॉलर पर जीवित रहने के लिए निरर्थक हाथ-पैर पटकते हैं, बिलखते हैं और अन्य तीस करोड लोग शायद ही प्रति दिन दो डॉलर पाते होंगे. जिन की रोकथाम संभव है ऐसी बीमारीयों के कारण प्रति वर्ष १५० करोड लोगों की मृत्यु हो जाती है, उन में क्षय (टीबी) और मलेरिया का समावेश होता है. पृथ्वी के सब से अधिक धनवान दस लोगों के पास सब से ज्यादा गरीब ४८ देशों की कुल राष्ट्रीय आय से भी अधिक धन-राशि है! अमरीका का तंत्र ऐसे असंगत मोड पर है जहाँ लोग प्रति वर्ष ८० करोड डॉलर केवल शरीर-सौंदर्य वर्धक वस्तुएँ (प्रसाधन) खरीद कर के बर्बाद करते हैं - पूरे विश्व के छोटी उम्र के सारे बच्चों को एक साल तक प्राथमिक शिक्षा देने के लिए करीब जिस राशि की जरुरत होती है उस से बीस करोड अधिक व्यय होता है ये प्रसाधनों के लिए!
इन दिनों समाज जो गंभीर से गंभीर मुश्किलों का सामना कर रहा है उन में कई प्रकार के अलग अलग और अकसर विरोधी मंतव्य प्रकट करती बातों के साथ सुमेल से कैसे जिया जा सकता है यह सीखना अत्यंत आवश्यक है. तदुपरांत, पर्यावरण द्वारा एकता और सुमेल कैसे प्राप्त कर सकते हैं यह सोच हमें याद दिलाती है कि इस धरती के सारे मानव समूह - ऑस्ट्रेलिया के मूल आदिवासियों से ले कर अमरीका के शेअर बाजार का अधिकारी वर्ग, सब जीवित रहने के लिए पूर्ण रूप से इस धरती पर आधारित है. सभी सभ्यतायों में एक समान बात यह है कि यदि कोई समूह या सभ्यता धरती की जीव-सृष्टि का संतुलन बनाए रखने की समझदारी नहीं दिखाएगा तो वह लंबे अरसे तक अपना अस्तित्व नहीं रख पाएगा.
ऐसे विद्यार्थी जो कभी गरीब और बेघर लोगों से मिले ही न हों या उनके साथ बैठकर, उनके साथ भोजन कर के बातचीत नहीं कि हों वे उनके हालात पर सोच-विचार करें ऐसा शायद ही संभव है. ऐसे लोगों की परवाह करना और उनके विकास की कोशिश करना ये सब उनके आत्मीय सहवास के बिना संभव नहीं. उस निकटता में भी नई आध्यात्मिक दृष्टि होनी चाहिए. और निष्कपट भाव से एकदूसरे के साथ मेलजोल बढ़ाएँ और आदरभाव दर्शाएँ ऐसा वर्तन होना चाहिए.
आबोहवा और हवामान के पलटते रुख की समस्या सभी राष्ट्रों के लिए एकसामान है. प्रत्येक राष्ट्र न्याय, सहकार, परोपकार (निस्वार्थ), आदर, विश्वास, सौम्यता और सेवा भावना के एकसमान ध्येय को अपनाते हैं और उस में वे एकदूजे के साथ सहभागी या साझेदार बने यह आवश्यक है. आबोहवा में होते परिवर्तनों का सामना करने के लिए उचित ढांचा बनाने में आध्यात्मिकता बहुत सहायक बन सकती है और इस विषय में लोगों में जागृति लाई जा सकती है. इस के उपरांत पर्यावरण का नियमन करने के लिए आवश्यक त्याग भावना आध्यात्मिकता के पालन द्वारा लाई जा सकती है. विश्व में बढ़ता जाता तापमान और इस के कारण आबोहवा में हो रहे परिवर्तन हमारी समग्र मानवजाती के लिए गंभीर समस्या है. केवल विज्ञान इस समस्या का समाधान नहीं कर पाएगा.
v यूनाइटेड नेशन्स मिलेनियम डिवेलपमेंट गोल्स: एमडीजीएस: (United Nations Millennium Development Goals : MDGS) : अर्थात संयुक्त राष्ट्रों के युगांतरकारी विकासमान ध्येय:
इस अध्याय में पहले जिस का उल्लेख हो चुका है ऐसी अधिकतर सामाजिक समस्याएँ विश्व के सारे देशों को प्रभावित करती हैं. संयुक्त राष्ट्र संस्था ने उनके सामने जागृत होने की चुनौती दी है. उसने सहकर की भावना पर आधारित इस विकास के लिए कुछ ध्येय निश्चित किये हैं. मानव इतिहास में इस के पहले ऐसा कभी नहीं हुआ. संयुक्त राष्ट्रों के द्वारा सुनिश्चित किए गए ध्येयों का रिपोर्ट देखने लायक है. रिपोर्ट का शीर्षक हैं: 'हम सब देशों के लोग: २१ वीं शताब्दी में संयुक्त राष्ट्र संस्थायों की जिम्मेदारी'.
इस में अंतरराष्ट्रिय विकास के आठ ध्येय दर्शाए गए हैं, जो २०१५ तक प्राप्त करने के हैं. इस लिए संयुक्त राष्ट्र से जुड़े १९३ देश और अन्य २३ अंतरराष्ट्रिय संस्थाएं सम्मत हुईं हैं. ये आठ ध्येय इस प्रकार हैं:
ü दारुण गरीबी एवं भूख से मरनेवाली स्थिति से छुटकारा.
ü विश्व में सब को प्राथमिक शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराना.
ü स्त्री-पुरुष के बीच की समानता को प्रोत्साहन और स्त्री के अधिकारों की रक्षा.
ü बाल मृत्यु का दर/प्रमाण कम करना.
ü एच.आई.वी. (HIV)/एड्स (AIDS), मलेरिया और अन्य रोगों का सामना करना.
ü पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना.
ü सर्वांगीण विकास के लिए अंतरराष्ट्रिय साझेदारी में वृद्धि करना.
इस प्रत्येक ध्येय के लिए नियत लक्ष्यांक और उसे प्राप्त करने की तारीख तय की गई है. विकास गतिशील बने इस के लिए प्रमुख ८ देशों के (अमरीका, केनेडा, जापान, जर्मनी, इटली, फ़्रांस, इंग्लैण्ड और रशिया) वित्तमंत्री विश्व बैंक को जून २००५ में आवश्यक राशि देने के लिए सहमत हुए थे, इंटरनेशनल मोनेटरी फंड (आईएमएफ) और आफ्रिकन डिवेलपमेंट बैंक (एडीबी) ने गरीब देशों को दी गई उधार राशि में से ४००-५५० करोड डॉलर की वसूली नहीं करने का निर्णय लिया कि जिस से वे अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर सकें और इस राशि का उपयोग स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार करने के लिए तथा गरीबी घटाने के लिए कर सकें.
ध्येय प्राप्त करने के कार्य में अब तक जो प्रगति हुई है वह संतोषजनक नहीं. कुछ देशों ने काफी ध्येय प्राप्त किए हैं. जब कि अन्य देशों ने अभी तक एक भी ध्येय प्राप्त नहीं किया.
संयुक्त राष्ट्र संस्था का लक्ष्य विश्व के सब से अधिक गरीब देशों में सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति में सुधार ला कर उन्हें विकास करने के लिए प्रोत्साहित करने का है. पिछले अध्याय में हमने आध्यात्मिकता की एक परिभाषा इस प्रकार देखी थी:
'अपने जीवन का जो अर्थ और हेतु हम समझते हैं, उस हेतु या अर्थ को सिद्ध करने के लिए हम एकदूसरे के साथ और हमारे आसपास के विश्व के साथ जुड़े रहने की जो भावना रखते हैं वह आध्यात्मिकता है.'
आध्यात्मिकता की इस परिभाषा के अनुसार संयुक्तराष्ट्र संस्था के ये ध्येय परम आध्यात्मिक मान सकते हैं. इन ध्येयों की जानकारी संक्षेप में इस प्रकार है:
१. मनुष्य की गुणवत्ता, जिसे मानवपूँजी समझी जा सकें उसका विकास.
२. बुनियादी सुविधायों का विकास, जिस में संचार-व्यवस्था, रास्ते, यातायात के
साधन, विद्युत उत्पादन, पर्यावरण का संरक्षण, कृषि उत्पादन में वृद्धि/विकास, नई टेकनोलॉजी का उपयोग इत्यादि का समावेश होता है.
३. सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक अधिकारों में बढौतरी करना. और इस में भी अधिकतर ध्यान जीवन-स्तर के विषय में प्राथमिक सुविधायों में वृद्धि करने पर केंद्रित है.
जिन हेतुयों की पसंदगी मानव पूँजी पर केंद्रित करने के लिए हुई हैं उन में पोषण (आहार) में सुधार, स्वास्थ्य की देखभाल, नवजात बच्चों के मृत्यु दर कम करना, एचआईवी (HIV), एइड्स (AIDS), क्षय, मलेरिया इत्यादि रोगों में कमी और बढती जा रही जनसंख्या की समस्या का समाधान और शिक्षा का समावेश किया गया है. अंत में सामाजिक आर्थिक और राजनितिक हेतुयों में: स्त्रीयों के अधिकारों की रक्षा, हिंसा में कमी, राजनीती में जागृति, राज्य से प्राप्त सुविधा हर किसी को मिल सके ऐसा प्रबंध और मिलकत के अधिकारों की सुरक्षा बढ़ाना इत्यादि बातों का समावेश होता है.
जिन ध्येयों को पसंद किए गए हैं उन का आशय मनुष्य की शक्ति का विकास करने का है, संतोषप्रद जीवन जीने के उपकरण बढ़ाने का और उन का अच्छा उपयोग करने का है. ये ध्येय प्राप्त करने के लिए प्रत्येक राष्ट्र को अपनी आवश्यकता के अनुसार उचित पद्धति अपनानी चाहिए; इसलिए अधिकतर सुझाव साधारण हैं जिन में कोई भी देश आवश्यक परिवर्तन कर सकता है.
उपर्युक्त आठवें ध्येय पर विशेष जोर दिया जाता है. उस में घोषित किया है तदनुसार विकसित देशों को चाहिए की वे विकासमान देशों को सहाय करने का अपना कर्तव्य निभाएं. विकासमान देशों के लिए प्रामाणिक रूप से व्यापार, ऋण, उस पर ब्याज न लगाना, अधिक सहाय, सामर्थ्य अनुसार आवश्यक दवाईयों की उपलब्धि तथा टेकनोलॉजी पाने का सम्भावित प्रबंध इत्यादि का उनके कर्तव्यों में समावेश किया गया है. इस प्रकार विकासमान देशों को ये ध्येय प्राप्त करने के लिए खुद के भरोसे ही नहीं छोड़ दिया गया, किंतु उन्हें विकसित-विकासमान देशों के एक सच्चे साझेदार के रूप में स्वीकारने का प्रबंध है, जो पूरे विश्व में गरीबी घटाने-हटाने के लिए अत्यंत आवश्यक है.
आध्यात्मिकता, मूल्य और अंतरराष्ट्रिय समस्या समिति : (जिनीवा, स्विटज़रलैंड) (The Committee on Spirituality, Values and Global Concerns: CSGVC-Geneva)
इस समिति को ज्ञात है कि आध्यात्मिकता, मानवता के मूल्य, न्याय, सत्य, सहयोग और शांति किसी एक देश का, धर्म का या सभ्यता का एकाधिकार (इजारा) नहीं है. यह तो प्रत्येक सभ्यता और प्रत्येक मानव समाज की पवित्र विरासत है. दुनिया के धर्म, सभ्यता एवं परम्पराएं हमारी अंतरात्मा के साथ एकता बनाए रखने के बहुत सारे उपाय करते हैं. एकदूसरे पर अपने जीवन के नित्यक्रम (चक्र) में मौन, चिंतन, प्रार्थना, विधि, उत्सव, मनन और ध्यान इत्यादि द्वारा आंतरिक शांति प्राप्त करने के लिए हम सब उत्सुक हैं. सब के भले के लिए और मनुष्य की उन्नति के लिए परिवार, सामाजिक जूथ और सारा देश कि जिन में विश्व की सारी जीवसृष्टि का समावेश हो जाता है - ये सब ऐसे आंतरिक सहयोग के लिए प्रयास करते हैं. मानव सभ्यता और उसके मूलभूत मूल्यों की प्रकृति के वैविध्य के साथ तुलना की जा सकती है.
यह समिति आध्यात्मिक जीवन और उस के मूल्यों के आचरण का समावेश करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संस्था प्रत्येक क्षेत्र में और आम जनता के लिए संयुक्त राष्ट्र संस्था के घोषणा पत्र में और प्रस्तावों में इस का लिखित एवं मौखिक विधान तैयार कर के देते हैं.
इस समिति का विश्वास है कि आध्यात्मिकता और सार्वत्रिक मूल्य - मानव अधिकारों का भंग, यथार्थ वितरण/आवंटन का अभाव, जातिवाद द्वारा अन्याय, धार्मिक असहिष्णुता और भेदभावमूलक सारे रूप, घर्षण, हिंसा, आतंकवाद और युद्ध जैसी विश्व की चिंताजनक समस्यायों के समाधान पाने का सब से महत्वपूर्ण तत्व है. यह समिति नियमित रूप से बहुत सारे कार्यक्रमों का आयोजन करती है जिन में परिचर्चा हेतु लोग एकत्रित होते हैं और व्यक्तिगत एवं सामाजिक दायित्व में आध्यात्मिकता का उपयोग किस प्रकार से किया जा सकता है इस के बारे में उन को जागृत किया जाता है. यह संस्था ऐसी परिचर्चायों के निबंध प्रकाशित करती है जिन में ऐसे प्रमाण उद्धृत करती हैं कि आध्यात्मिकता के आचरण से और इस के मूल्यों को समझने से मनुष्य में और विश्व में हर जगह परिवर्तन संभव हुआ है.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के सारे महामंत्री सर्वसम्मत और आध्यात्मिक मूल्यों के महत्व के बारे में आग्रहपूर्वक कहते हैं कि इन मूल्यों की बुनियाद पर ही संयुक्त संस्था की पूरी इमारत निर्माण की गई है. ये मूल्य ही संस्था को मजबूत बना रहे हैं जिन के द्वारा वे विश्व की वर्द्धमान आवश्यकतायों के लिए सेवा प्रदान करती है. जिनीवा की यह समिति ऐसी आवश्यकतायों के विषय में अधिक योगदान करने का लक्ष्य रखती है जिस से मनुष्य की श्रेष्ठ व सर्वोच्च गुणवत्ता अपने आप विकसित हो और मानव जीवन की संपूर्ण संभावना व्यक्त हो सके और बनी रहे.
सेम कीन (Sam keen) अपनी पुस्तक में सामाजिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के संकेत मतलब कि समाज में यदि सही आध्यात्मिकता होती है तो उसे कैसे पहचानें? यह कैसे परख सकते हैं? इत्यादि सूचित करते हैं.
v सामाजिक - आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लक्षण:
विद्यमान मानवजात के बाद की, संभावित परंतु अधिक विश्वसनीय नहीं ऐसी, एकदूसरे के साथ सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करनेवाले मनुष्यों से भरे विश्व की भविष्यवाणी कोई मूर्ख या अव्यवहारिक भविष्यदृष्टा ही कर सकता है. यह संभव है कि हमारे पास दो विकल्प हैं. एक विकल्प में हमें एकदूसरे के साथ मिलजुल के, सहानुभूतिपूर्वक और नम्रता से रहना सीखना पड़ेगा जिस में पुराने खयालात जैसे कि दो देशों के बीच की सरहद, सामाजिक वर्ग और धार्मिक विश्वास को लांघना पड़े. अथवा दूसरे विकल्प में आर्थिक लड़ाई-झघडे या युद्ध कर के परस्पर एकदूसरे का विनाश करने के लिए न्यौता दे सकते हैं. परंतु इस समय की परिवर्तनशील दुनिया में यदि अधिकतर लोग राजनितिक बातों में सच्चा मैत्रीपूर्ण और समझदारीयुक्त वर्तन करेंगे तो सचमुच विश्व में कैसे वातावरण का निर्माण होगा यह नहीं कह सकते. परंतु ऐसी स्थिति का सर्जन करने के लिए हमें हमारे बुनियादी मूल्य और समाज के मूलभूत सिद्धांतों में जबरदस्त परिवर्तन करने पड़ेंगे. ऐसे परिवर्तन किस प्रकार के होने चाहिए कि जिन से ऐसे समाज का सृजन किया जा सके इस के बारे में कुछ जानकारी निम्नानुसार है:
o प्रगति की गलत धारणायों से ऊपर उठकर, लंबे अरसे तक बने रहे ऐसे ठोस विकास की ओर अग्रसर रहना.
o स्वार्थ साधक मनुष्य को सामाजिक निर्माण की समझदारीभरे मनुष्य में तब्दील करना.
o भिन्न भिन्न देशों के बीच सत्ता के संतुलन की राजनीति के ध्येय के बदले पर्यावरण की शुद्धि के ध्येय की ओर मोडना.
o स्पर्द्धा के प्रति झुकाव बदल के आर्थिक सलाहकार की ओर आगे बढ़ना.
o केवल युद्ध और हिंसा को उचित प्रमाणित करने के प्रति झुकाव के बजाय संघर्षपूर्ण स्थिति में शांतिपूर्ण समाधान के प्रति कदम बढ़ाना.
o अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि की ओर से नियंत्रित आबादी की दिशा में जाना.
o राष्ट्रवाद, सार्वभौमिकता का सिद्धांत और नीति-रीती के घर्षण के बदले प्रभावक अंतरराष्ट्रिय नियमों का अनुसरण करना.
o ऐसे प्रचलित विश्वासों के प्रति झुकाव कि जिस में कुदरती वस्तुएँ मनुष्य के लिए कच्चे माल की आपूर्ति के लिए ही सृजन हुआ है और इस से उसका अमर्यादित रूप से विनाश करने के बदले कुदरत के लिए पवित्र भावना रखना.
o गरीब और धनवान जैसे दो हिस्सों में विश्व का विभाजन नहीं करते हुए संपत्ति का अधिक न्यायपूर्ण आवंटन करने के लिए आगे बढ़ना.
o अधिक जटिल और नई नई टेक्नोलोजी से पर्यावरण को नुक्सान करने के बजाय उस का जतन करे ऐसे उत्पादनों की ओर मुडना.
o मनरंजन करते मीडिया (टीवी, अखबार, रेडियो इत्यादि) जिन की आय विज्ञापन देते संस्थानों से आती हैं और जो अपने उत्पादन हमें जाने अनजाने में अपनाने की आदत डालते हैं, उस से मुक्त हो कर ये मीडिया या माध्यम के साथ निष्कपट संबंध कायम करना ताकि वे समाज को अच्छे मूल्यों की ओर ले जाएँ.
ये सब बिलकुल अवास्तविक और आदर्शवादी कल्पना सा लगता है. किंतु इस के लिए केवल उमदा सिद्धांतों पर आधारित एक अच्छा समाज स्थापित करने का प्रयास करने की आवश्यकता है. भले ही शायद यह असंभव सा लगे, किंतु ऐसे समाज के उदाहरण इतिहास में पाए जाते हैं. कई आदिवासी जातियां अदलाबदली (विनिमय) कर के व्यवहार निभाते हैं, वस्तुयों के वितरण से या बिक्री से नहीं. ऐसी अदलाबदली में उदारता की बहुत बड़ी भूमिका है. ऐसे विनिमय से समाज में एकता की और परस्पर एकदूसरे पर आधारित होने की भावना को समर्थन मिलता है. हिमालय के देशों में जाते पश्चिम के यात्री कईबार जब वहां की आवभगत, उदारता और आतिथ्य-सत्कार का परिचय पाते हैं तब चकित रह जाते हैं.
अधिकतर समाजों में इस समय ऐसे विचार पाए जाते हैं कि केवल स्वार्थ से जुड़े व्यवहार और अपने कब्जेमें करने के विचारों के बल पर हम अच्छे समाज का निर्माण नहीं कर सकते. बिना उदारता के अच्छा समाज संभवित नहीं है. अनजान लोगों की एकदूसरे के प्रति सहृदयता के अभाव में समाज हिंसावादियों के पड़ाव में बदल जाएगा. माता-पिता के निस्वार्थ बलिदान और त्याग के अभाव में स्नेह से वंचित बच्चे बड़े हो कर तंग और असभ्य बन जाते हैं. पुत्र-पिता-दादा और पुत्री-माता-दादी के बीच के स्नेहपूर्ण संबंधों के अभाव में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी का जोड़ टूट जाएगा और आंतरिक समझदारी लुप्त हो जाएगी.
इस अध्याय को हम 'वैष्णवजन' काव्य के साथ पूर्ण करेंगे. वैष्णवजन का मतलब है 'आध्यात्मिक मनुष्य', इस काव्य की रचना गुजरात के आध्यात्मिक भक्त कवि नरसिंह मेहता ने १५ वीं शताब्दी में की थी.
इस कविता का नित्य पठन करना महात्मा गाँधी की रोज की प्रार्थना का एक हिस्सा था. इस काव्य के शब्द हमें उसकी सरलता और शुद्धता से मंत्रमुग्ध करते हैं. यह कविता आध्यात्मिक मनुष्य की सर्वोत्तम परिभाषा है:
वैष्णवजन तो तेने कहिए जे पीड पराई जाणे रे;
परदुखे उपकार करे तो ये, मन अभिमान न आणे रे... वैष्णवजन ...१.
सकळ लोकमां सहुने वंदे, निंदा न करे केनी रे;
वाच-काछ-मन निश्चल राखे, धन धन जननी तेनी रे...वैष्णवजन...२.
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, परस्त्री जेने मात रे;
जिव्हा थकी असत्य न बोले परधन नव झाले हाथ रे...वैष्णवजन...३.
मोह-माया व्यापे नहि जेने, दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे;
रामनाम शुं ताळी रे लागी, सकळ तीरथ तेनां तनमां रे...वैष्णवजन...४.
वणलोभी ने कपट रहित छे, काम, क्रोध निवार्याँ रे;
भणे नरसैयो तेनुं दर्शन करतां कुळ एकोतेर तार्याँ रे...वैष्णवजन...५.
नरसिंह मेहता के अभिप्राय के अनुसार जब सब के मन में ऐसे आध्यात्मिक मनुष्य के दर्शन करने की अभिलाषा जागे, सब ऐसे आध्यात्मिक मनुष्य बनें तब समस्त मनुष्यजाति की आध्यात्मिक उन्नति होती है.
------------------------------------------------------------------------------------------------
इस अध्याय से संबंधित सुविचार
- हममें से अधिकतर लोग इस संसार में सहज और सरल जीवन व्यतीत करके चले जाते हैं. हमारी याद में कोई सम्मलेन या स्मारक बनने की संभावना नहीं, किंतु इस का अर्थ ऐसा नहीं है कि हमारे जीवन का महत्व कम है. क्यों कि विश्व में कई लोग है जो ईश्वर के द्वारा दी गई शक्तियों का उपयोग कर सकते हैं; जिन को आवश्यकता है हमारे प्रोत्साहन के दो शब्दों की और सहानुभूति की. हम चाहें तो कुछ समय तक उनको सहयोग दे कर उन के जीवन में उत्साह भर सकते हैं. कई बार हमें पता नहीं होता कि केवल स्नेह से किसी का हाथ अपने हाथ में लेने से, उनके सामने स्मित करने से, भावपूर्व प्रशंसा के दो शब्दों से, उन्हें शांत भाव से ध्यानपूर्वक सुनने से या प्रेमपूर्ण आचरण करने से उनके जीवन की दिशा बदल सकती है. खुशी की बात यह है कि हमें दूसरों के लिए हमारे ह्रदय की भावना अभिव्यक्त करने के कई अवसर मिलते ही रहते हैं.
लियो बस्काग्लीया.(Leo Buscaglia)
- हमारे पास धन और धन से खरीदी जा सके ऐसी बहुत सारी वस्तुयों का होना बहुत अच्छी बात है. इतनी ही अच्छी दूसरी बात यह है कि हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जो चीज धन से नहीं खरीदी जा सकती उसको हमने गँवा तो नहीं दिया है न? जैसे कि आंतरिक शांति, करूणा, प्रेम, सत्यनिष्ठा... -ओग मांडीनो (Og Mandino)
- हम क्या बन सकते हैं इस विषय में हम केवल आधे जागृत हैं. हमारे आंतरिक अग्नि को हम बुझने देते हैं और उसे मिलता वायु रोक लेते हैं. इस से हमारी आंतरिक और मानसिक शक्ति के अल्प हिस्से का ही उपयोग कर पाते हैं, यह बड़े दुःख की बात है. - विलियम जेम्स (William James)
- मनुष्य की आत्मा चैतन्य स्वरूप है, यह चैतन्य विश्व में सर्वत्र व्याप्त है और सबकुछ इसी से जुड़ा हुआ है. यह जब समझ में आएगा तब पर्यावरण शुद्धि की जागृति अपने आप आ जाएगी और यह आध्यात्मिकता की सक्रियता का उच्चतम प्रतिक बन जाएगा. -फ्रिटजोफ काप्रा (Fritjof Capra)
- जब आप के भीतर प्रबल आंतरिक शक्ति का उदभव होता है तब आपने सपने में भी नहीं सोच सकते ऐसे अज्ञात और अजाग्रत तत्व, विचारशक्ति और अंतर्ज्ञान अत्यंत सजग बन जाते हैं और आप एक महान व कार्य-सक्षम मनुष्य है ऐसा अनुभव करने लगते हैं. -पतंजलि.
- मान लीजिए कि आप एक साथ पांच गेंदें हवा में उछाल कर एक के बाद एक गेंद को पकड़ लेने का खेल खेल रहे हैं. ये पांच गेंदों के नाम है काम-धंधा, परिवार, स्वास्थ्य, मित्र एवं अंतःकरण. काम-धंधा रब्बर के गेंद जैसा है जो हाथ से छूट जाता है तो उछल के वापस आएगा. परंतु शेष चार गेंदें कांच (शीशे) के हैं. इन में से एक भी नीचे गिरा तो ये उछलकर वापस नहीं आनेवाला और गिरने के बाद यह जैसा था वैसा भी नहीं रहेगा. इसलिए जीवन में उन चार गेंदों को सतर्कता से सम्हालना कभी मत भूलना. -ब्रायन डायसन (Brian Dyson)
- आप के तीन साथी: पहला साथी आप की वो चीजें जिन के आप मालिक हैं, जो आप के मुश्किल समय में भी घर के बाहर नहीं निकलेंगी. वे वहीँ पर रहेगी जहाँ पर हैं.
आप का दूसरा साथी आप का परम मित्र है जो आप की अंतिम यात्रा तक आप के साथ रहेगा. वह स्मशान तक उपस्थित रहकर सहानुभूतिपूर्ण बातें करेगा. किंतु इस से आगे नहीं.
तीसरा साथी, आपने अपने जीवन में क्या क्या किया, कैसे कार्य किए वे आपके साथ आएँगे और अंततः आप को यादगार बनाए रखने में सहायक बनेंगे. बस इस तीसरे साथ पर कायम भरोसा करना. उस का ख़याल रखें. -सूफी कवी रूमी (Rumi)
- परस्पर समझदारी पर आधारित व्यावहारिक संबंध एकदूसरे के सहयोग पर निर्भर रहते हैं; जिस में संस्था के विचार, मूल्य एवं शासकीय प्रवृत्तियों के बारे में निष्कपट रूप से विचारों का आदान-प्रदान होता है. ऐसा प्रेरक वातावरण संस्था की आवश्यकताएं पूर्ण करने में सहायक बनाते हैं, अर्थपूर्ण कार्य करने में बड़ा योगदान देता है और सफलता की भावना का अनुभव कराता है. ऐसे आपसी निकट के संबंध एकता की सद्भावना और समता दर्शाते हैं. -मेक्स डी.प्री. (Max De Pree)
जहाँ अनादर है वहां मुझे प्रेम के बीज बोने दीजिए,
जहाँ ठेस पहुंचाई हो वहां क्षमा याचना,
जहाँ संदेह हो वहां श्रद्धा,
जहाँ निराशा हो वहां आशा,
जहाँ अंधकार हो वहां प्रकाश,
जहाँ दुःख हो वहां आनंद फ़ैलाने की शक्ति दीजिए.
हे परम परमात्मा! मुझे ऐसा वरदान दीजिए
ताकि मैं ऐसा कर सकूं कि:
सांत्वना पाने बदले मैं किसी और को सांत्वना दे सकूं,
दूसरों को समझाने के बदले दूसरों को समझ सकूं,
दूसरों से प्रेम पाने के बदले दूसरों को प्रेम कर सकूं.
क्योंकि देने से ही पाया जा सकता है;
क्षमा करने से हमें भी क्षमा मिल सकती है.
अपने अहं का त्याग करने से ही
हम शाश्वत जीवन पा सकते हैं.
-असीसी के सेंट फ्रांसिस (Saint Fransis of Assisi)
***
- लोग कई बार बिना सोचे समझे, अनुचित व स्वार्थपरक बन कर वर्तन करते हैं उन्हें क्षमा कीजिए.
यदि आप भले बनेंगे तो कुछ पाने की वृत्ति से भलाई कर रहे हैं ऐसे आक्षेप किए जाएंगे, फिर भी आप भलाई करने का कार्य चालू रखें. यदि आप सफलता प्राप्त करेंगे तो कई गलत मित्र पाओगे और संभव है, कई सच्चे दुश्मन भी पाओगे. फिर भी सफलता की दिशा में अग्रसर रहें.
यदि आप प्रामाणिक और निष्कपट बनेंगे तो लोग आप के साथ धोखाधड़ी करेंगे, फिर भी आप प्रामाणिक और निष्कपट बने रहें.
जिसका निर्माण करने में आपने कई वर्ष बिताएं हैं और कोई उसे एक ही रात में जमीनदोस्त कर देता है तो भी फिर से नए निर्माण करते रहें.
यदि कोई आप को आंतरिक रूप से शांत व सुखी देखें तो वह आप की इर्ष्या करेगा, फिर भी आप शांत व सुखी बने रहें.
यदि आज आपने किसी के लिए कुछ अच्छा किया है तो कल वह उस अच्छाई को भूल भी सकता है, फिर भी अप दूसरों के लिए अच्छा करते रहें.
विश्व के लिए आप आपसे हर संभव श्रेष्ठ कार्य करेंगे फिर भी उस की अपेक्षा पूर्ण नहीं कर पाओगे, तो भी आप आपसे संभव सर्व प्रकार के कार्य करते रहें.
आप देख पाएंगे कि अंत में ये सारी बातें आप की और परमेश्वर के बीच की है. यह बात आप के और लोगों के बीच की है ही नहीं!
-केन्ट एम. कीथ (Kent M. Keith)
- अपने जीवन का सही संतोष लेने में नहीं है किंतु देने में है. पाई हुई सफलता के मीठे फल का आनंद हम सब लेते हैं परंतु उस का सही स्वाद का मजा तब लिया जा सकता है जब हम उस में दूसरे को साझेदार बनाते हैं. मित्र या अनजान मनुष्य में कोई भेद किए बगैर और बदले में कुछ भी पाने की आशा नहीं करते हुए हमेशा देना जीवन की अनुपम कला है. यह अच्छे स्वास्थ्य के लिए मन की सुख-शांति के लिए, सफलता के लिए और कुछ भी पाने के लिए जीवन का सब से महत्वपूर्ण और अत्यंत महत्वपूर्ण आचरण है. सुखी जीवन जीने के लिए ऐसे आदेश हजारों वर्षों से शिलालेखों की तरह विश्व के शास्त्रों में अंकित किए गए हैं. -ओग मांडिनो (Og Mandino)
- दिन में मुझे कईबार ख्याल आता है कि मेरे बाह्य और अंतरंग जीवन के निर्माण में कितने जीवित और मृत मनुष्यों के अथाह एवं कठिन श्रम का योगदान रहा है और मैं सच्चे दिल से तथा दृढता के साथ यह ऋण चुकाने के लिए मैं भरपूर कोशिश करता हूँ.
-अल्बर्ट आईनस्टाइन (Albert Einstein)
=================================================
(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
COMMENTS