हास्य-व्यंग्य : आत्मकथा लिखने वाले // सुशील यादव

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इधर साहित्य से जब धकिया दिए जाते हैं तो लोग, आत्मकथा लेखन की औऱ उसी तरह मुड़ जाते हैं जैसे समाजवाद से जी भर जाने के बाद आदमी वामपंथ की तरफ मु...

इधर साहित्य से जब धकिया दिए जाते हैं तो लोग, आत्मकथा लेखन की औऱ उसी तरह मुड़ जाते हैं जैसे समाजवाद से जी भर जाने के बाद आदमी वामपंथ की तरफ मुड़ जाता है |

उन्होंने तरह-तरह के लेख, कहानी, कविता, यात्रा-विवरण यहाँ तक कि दो-चार स्टेटिक्स  जुगाड़  कर शहर की बदहाली का रिपोर्ताज भी लिखा |

उनके लिखे की सराहना करने वाले बिरले ही मिले |

किसी के श्री मुख से वाह सुनने की हसरत ही रह गई |

नटवर लाल उर्फ नट्टू मेरे  शागिर्दों में से हैं |


वो मेरे आलेख को अपने दफ्तर के टाइप-राइटर पर बाकायदा तीन कॉपी में टाइप कर लाते थे |

उन दिनों का ज़माना, टाइपराइटर की कुंजियों में घूमता था |

बड़े -बड़े ड्राफ्ट आदेश इसी पर बनते थे |

नट्टू भाई, अपर-डीविजन की क्लर्की के धौस वाले , बड़े बाबू का ओहदा प्राप्त इंसान थे|लिहाजा कोई गैर-शासकीय कार्य वे दफ्तर में अंजाम देते तो उफ नहीं किया जाता|   

शिकायत वगैरह ऊपर पहुंचने की परंपरा उन दिनों परवान  चढ़ी हो ऐसा नहीं  होता था |भाई चारा वाला ज़माना था | भाई को चारे की ढेर में बैठा देख, कोई अपनी सांड ढीलने की हिमाकत किया हो ऐसा कोई प्रसंग प्राप्त  नहीं होता |


उनके मातहत इन्हें दस -बीस पेज में खोया-बिधा  पाकर चुपचाप बिना अनुमति  मैटिनी शो की तरफ खिसक  लेते थे |

नटवर भाई को एक्सचेंज ऑफर का  बुनियादी ज्ञान था|

वो  टाइपिंग की मजदूरी के नाम पर अपनी लिखी आधी- अधूरी कहानी संशोधन के नाम पर छोड़ जाता |

उसकी  लिखी कहानी को साकार रूप करा पाने में प्रायोजित चाय-पानी के  बाकायदा आठ दस मीटिंग्स लग जाते जो करीब के बुद्धू होटल में,  होटल के शटर गिराने की सूचना तक चलती|

नट्टू अपनी शार्टहैंड पटुता का प्रदर्शन कर मेरे बताये संवाद और पंच लाइन को बाकायदा नोट कर ले जाता |


सलीम-जावेद कथा लेखन में  संयुक्त रूप से कौन सा तरीका इस्तमाल करते थे....?  नट्टू अक़सर पूछता, जिसे बता पाने की मेरी अज्ञानता आज तक बरकरार हैं  |

अपनी  कहानी के  फाइनल अंजाम पहुंचने वाले दिन को सेलीब्रेट करना नहीं चूकता| मेरे आशीर्वचनों के साथ उसे  किसी बड़े मासिक में प्रकाशन के लिए भेजता  |

वहां से सखेद वापसी पर, लोकल अखबारों के रविवारीय पृष्टों की तरफ रुख करता | जहाँ छपने की गुंजाइश होती|

वो  रविवार को बाकायदा बस स्टेण्ड में सभी पेपर को खंगालता ,किसी रविवार को उनकी छप जाती तो आधा किलो जलेबी के साथ पहुंचता |

गुरुजी देखो हप्ते भर में देखो  छप गई |


आप सही कहते हैं बड़ी मैगजीन में लाबी चलती है ,लाबी ,,,,

अपने गुट के गिने चुनो की छापते हैं वे लोग |

मान गए गुरुदेव!  आपको इस फील्ड का खासा तजुर्बा है |

मेरी तन्मयता इस तारीफ के बावजूद उसके लाए जलेबी के सामने  भंग नहीं होती |

जलेबी भक्षण दौरान ,नट्टू मुझे अबोध ,अल्पज्ञानी केटेगरी का दीखता |

मैं उसके प्रतिप्रश्न करने के पहले, किसी नई कहानी के प्लाट  का दूसरा सिरा  पकड़ा देता |


वो  कल्पना के नए गोते में उतराने लगता, मैं सद्य-प्रकाशित ईसु पर,  तब तक उसके लन्च का  मेन्यू पूछ लेता |

कहता ,अगर चिकन या बिरयानी हो तभी लाना ,वह इसे गुरुआज्ञा की तरह शिरोधार्य करता | ठीक एक बजे लम्बे टिफिन के साथ हाजिर हो जाता | कहानी के प्लाट की आगे चर्चा करने- कराने की उसकी गरज को एक  वाक्य में समेट के कहता अभी हीरो के केरेक्टर पर ध्यान दो ,शुरूआती दो तीन पेज लिख लो फिर देखेंगे |

एक दिन नटवर  भन्नाया हुआ आया |

मुझे लगा 'कौशल जी' ने मेरी लेखकीय क्षमता पर ,जरूर मेरे खिलाफ कुछ भड़का दिया है |

मैंने  गिरती विकेट को अपील की नजर से देखा |

तीसरे एम्पायर के तौर, उसका तुरन्त फैसला सुनने मिल गया |


गुरुदेव अब मैंने ठान लिया है मैं अपनी आत्मकथा लिखूंगा ....|

इस धमाके से मैं चौका मगर संयत होते हुए मैंने कहा... अच्छी बात है , अब तुम्हें मेरे दिशानिर्देशों की जरूरत नहीं पड़ेगी ,जरूर लिखो ....|

उसकी तमतमाहट में तुरन्त  नरमी दिखी .. नहीं गुरुदेव आप तो अपनी जगह पर बाकायदा रहेंगे ...|

  आफिस में  मेरा मामला  झोल खा रहा है इसलिए थोड़ा रिएक्शन गड़बड़ है |

-खुल के कहो आत्मकथा और आफिस का कनेक्शन क्या है ...?

-वो कहने लगा ,अपने बड़े साहब हैं ना, बड़ी -बड़ी तोप मारते हैं |

स्टाफ को परेशान किये रहते हैं |

जाने किस-किस का लिए-खाये रहते हैं, कि उनको हर काम चुटकियों में चाहिए होता है |

डाट -फटकार में असंसदीय हो जाते हैं |


रात आठ से पहले मातहतों को दफ्तर छोड़ने का नहीं देते | भले ,चाहे वे दो-तीन बजे आएं |

गुरुदेव आपको बताएं , हम उनके डिक्टेट किये ड्राफ्ट को टाइपिंग करते -करते 'पर' गिनने में माहिर हो गए है|

कल जब डांट-डपट की हदें पार हुई तो हमने फैसला किया कि आत्मकथा लिखने  की आड़ में उनको धो देंगे |

यूँ तो हमने ,खूब विचार किया कि फर्जी नाम से कंप्लेंट करें ,आर टी आई का सहारा ले मगर सब में एक्सपोज होने और सर्विस में बन आने की बात थी | यही मार्ग यानी आत्मकथा वाला सटीक लगा |

हमने उसे समझहते हुए  कहा ,नट्टू आत्मकथा साहित्य की ऐसी धरोहर है जिसमें आदमी के संघर्ष का निचोड़ होता है

| हर ऐरे -गेरे के द्वारा ये लिखने की ये चीज नहीं है | आत्मकथा को कोई कामलेंट बुक के रूप में कैसे इस्तेमाल कर सकता है भला ....?

एक बात और.... इसके कॉन्टेंट में क्या डालोगे ? तुम्हारी कोई ख़ास उपलब्धि तो किसी फील्ड में  है नहीं ? गिनती की दो -चार लाइन इधर-उधर  छपी है | तुम अभी अपने मोहल्ले में भी ठीक से जाने नहीं जाते | बुद्धू होटल ,और दफ्तर से बाहर कोई हैं गिनती के लोग  जो तुम्हारे किये के  मूल्यांकन को खड़े हो जाएँ  ?


तुम्हारे बचपन की ,जवानी की यादे,सब  बिलो पॉवर्टी लाइन में व्यतीत होने की वजह से,पढ़ने वालों पर  डेसिंग इंप्रेशन छोड़  नहीं सकते ...?

किताब छपवा तो लोगे ,पढ़ने वाला मिलेगा नहीं .....? तुम जानते हो, केवल इस शाश्वत सच की वजह से मेरी सारी रचनाएं जो लगभग दस पुस्तकों का आकार ले सकती हैं, कम्यूटर में बस फाइल बनी पड़ी हुई हैं  |

नट्टू , मेरी बात बीच में अमूनन नहीं काटता ,मगर बोला गुरुजी आप पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर ये सब कह रहे हैं ...?

मैं नए वाचाल नट्टू को देख रहा था ...

-पूर्वाग्रह यानी ....?

-सर, अभी हमने अपनी आत्मकथा लिखी  नहीं आपने अनुमान कहाँ से लगा लिया इसमें दम नहीं होगा ....?

इसमें मसाला- संवाद तो आप डालेंगे| प्रसंग हम रखते जाएंगे , बस एक बार बॉस को निपटा दूँ ऐसी मेरी दिल की  इच्छा है|

-मैंने कहा नट्टू ,आत्मकथा लिखना, ये मायने नहीं देता कि जगह -जगह आप हीरो बनते फिरो .....?


ज्यादातर लिखने वाले "हीरो बनने की कवायद" करते नजर आते हैं | समझ रहे हो |

ये पाठक तय करता है आप कहाँ सताये गए कहाँ पिटे ,कहाँ पिटते-पिटते बचे...?

कब  आपकी टाँगे टूटनी थी, किस फरिश्ते ने आपको बक्श देने की फरियाद की ....?

और हाँ एक अहम बात और बता दूँ कहीं आपकी राइटिंग में चूक हुई तो 'आहत-पार्टी' आप पर मानहानि का दावा ठोंक सकती है | आजकल अखबारों में मानहानि वाले प्रसंगों में,बड़े -बड़े नेता,  माफी माँगते  नजर आ रहे हैं ,जानते ही होओगे ...?

- तो गुरुजी ये आइडिया ड्रॉप करना होगा .....? बॉस नुमा घूसखोर  इंसान , हम पर हॉबी होते रहेंगे ....?

-नहीं .... तुम पर नाइंसाफी नहीं होने देंगे |


तुम अपनी आत्मकथा लिखने का शौक  पाले रहो ,दफ्तर में जोरों से प्रचारित करो कि तुम्हें आत्मकता लिखने का शौक चर्राया है | पहले बॉस प्रसंग से ही निपट लो | जो भी ख़ास तुमने  उनके लिखे ड्राफ्ट को टाइपिंग करते पाया है, उसे तफसील से बयान करो | कहते हैं दाई से पेट छिपती नहीं |

तुम पेज दो पेज टाइप कर मटेरियल घर  लेते आओ|हाँ नया कार्बन इस्तेमाल कर, कार्बन साबुत वहीँ छोड़  देना|

इसके बाद ,अपने आफिस में बॉस के किसी ख़ास चहेते-चमचे को अच्छे से बता देना की तुम बॉस के कितने राज को फाश कर सकते  हो | चमचा अपना काम कर जाएगा |

बॉस द्वारा , आपकी खिलाफत वाली तैयारी देखकर  सस्पेंशन की तैयारी, तुम्हें चमकाने के लिए अविलंब होगी | यहीं तुम्हे अपने अडिग होने का परिचय देना है | आपके अडिग होने से ही बात बनेगी |

आपकी आत्मकथा के अंश को मामूली पेपर में छपवाने पर बाकी काम आप ही आप हुआ समझो |

नट्टू ने कहा सर .... इतनी मारक क्षमता वाली, अगर आत्मकथा होती है, तो फिर लोग क्यों नहीं लिखते ....?


नट्टू के गुरुजी के बदले 'सर' के संबोधन ने मुझे अभिभूत करके अवगत  करा दिया की बात उसके भेजे में कहीं ज़रा सी घुस गई है |

सुशील यादव

0२. ०५.१८ 

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रचनाकार: हास्य-व्यंग्य : आत्मकथा लिखने वाले // सुशील यादव
हास्य-व्यंग्य : आत्मकथा लिखने वाले // सुशील यादव
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