दस कविताएं / सामाजिक चिंतन // सामाजिक चिंतक देवेन्द्र कश्यप

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                                          1- जिन्दगी जिन्दगी मुश्किलों का अजायबघर है दीदार करना ही पड़ेगा , आयेंगे जितने राह में झंझावत नि...

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                         1- जिन्दगी
जिन्दगी मुश्किलों का अजायबघर है दीदार करना ही पड़ेगा ,
आयेंगे जितने राह में झंझावत निपटना ही पड़ेगा ।
गर कोई कहे खाओ पियो मौज मनाओ बस यही है जिन्दगी ,
समझो वह बुझा रहा है पहेलियां जिन्दगानी की बूझना ही पड़ेगा ।।

जीवन ज्वालाओं से तपकर स्वर्णिम हो जाते इन्सान ,
शूरबीर जीवन-जंजालों से लड़ते बुज़दिल हो जाते ख़ाक समान ।
जन-जीवन की ज्योति जले है यही कामना मेरी ,
किंचित विस्मित भयभीत न हो ऐसे जन बनते पुरुष महान ।।

जुल्म-ज्यादती सामाजिक आर्थिकी में सिमटी है जिन्दगी की जंग ,
क्योंकि इनसे ही पैदा होती है समस्याएं और जिन्दगी के रंग ।
मत धैर्य छोड़ो मत मोह मोड़ो मत संकोच पालों दिमाग़ में ,
इल्म से काम लो क्योंकि यह भर देती खुशियों की ढ़ेरों तरंग ।।

जिन्दगी लिपटी है बचपन जवानी व बुढ़ापा में
पूरी उम्र गुजरती है तमन्नाओं की आपाधापी में ।।
बचपन जवानी इस कदर गुजारों सूझबूझ कर यारों !
न सहना पड़े मुश्किलातों को जीवन के बुढ़ापा में ।।

मेरी जिन्दगी तूफानी है कोई न रोक पायेगा ,
लगा दे चाहे जितनी दम कोई बेदम न कर पायेगा ।।
हम अवामी हक के लिए हाक़िम से कर रहे है जंग ,
करेंगे जिन्दगी को जिन्दाबाद मिशन कोई न तोड़ पायेगा ।।
      
                             2- प्रेरणा

जुल्म-ज्यादती के ख़िलाफ जंग करना ही पड़ेगा ,
  जीवन में तरक्की के लिए आगे आना ही पड़ेगा ।
  गर बैठे रहे धरे हाथ पर हाथ जिन्दगानी में ,
न मिलेगा सम्मान अपितु अपमान सहना ही पड़ेगा ।।

अपमान की जिन्दगी जीने से कौमे हो रही बरबाद ,
शिक्षा व मेहनत के दम पर हो सकते हो आबाद ।
फिर क्यों नहीं निकल पड़ते लेकर शिक्षा की मशाल ,
भस्म कर दो अपमानी ताकतों को कायम कर शिक्षा से संवाद ।।

शिक्षा का संवाद बनेगा जन-जन का हथियार ,
नहीं रहेगी कोई बाधा खुद हो जाओगे होशियार ।
जीवन बनेगा सबसे सुन्दर होगा पाओगे सम्मान ,
शिक्षा के संवाद बदौलत तुम्हें मिलेगा अधिकार ।।

शिक्षा सिखाती जुल्म-ज्यादती से लड़ना ,
मिटाती अंधेरा दुर्गम राहों से बताती निकलना
दिलाती है आदर बढ़ाती नम्रता-विनम्रता ,
हासिल करो शिक्षा न पड़े किधर भी भटकना ।।

तमन्नाओं ने मेरी जिन्दगी को सहारा दिया है ,
  इस्तक़बाल बेमिसाल कर मुतमईन किया है ।
ऐ तमन्नाओं तुझे पेश है लाखों सलाम ,
तूने जिन्दगी को आखिर जो मालामाल किया है ।।

3 -तलाक जैसी कुरीति को उन्मूलन करने के लिए समर्पित

पति-पत्नी विवाद में कुछ बच्चे भेंट चढ़ रहे हैं ,
क्यों समझते नहीं दम्पत्ति बच्चों के भविष्य बिगड़ रहे हैं ।
जिद की जाल में फंस जाते हैं कुनबे के मुस्तक़बिल ,
संभल जाएं वादे कसमें खाने वाले कुल क्यों उजाड़ रहे हैं ।।

जिस मॉ बाप ने लपटाया अपने बच्चों को सीने से ,
खुद की कलह में फंस कर कभी-कभी पेश आते हैं बद्तमीजी से ।
ऐ जन्मदाताओं ! स्वयं की कलह से बच्चों को मत दो तनाव ,
वरना समाज कहेगा भला-बुरा तुम्हें बड़े सलीके से ।।

मासूम बच्चे न जानते हैं ऐसे अभागे होगे माता-पिता ,
सम्बन्ध तोड़कर अनाथों की फेहरिश्त है बढ़ाता ।
न होता है जिस सन्तान पर साया मॉ बाप का
यतीम बन वह खाता ठोकरें दरदर कोसता भटकता ।।

माता-पिता होते हैं बच्चों के आईना ,
मगर जब आईना ही बदरंग हो बच्चों का कैसा होगा करीना ।
गर नहीं सुधरेगा आईना बच्चों के कुनबे का ,
कुछ न आबाद होगा हो जायेगा सब कुछ वीराना ।।

जिन्दगी ने जब मौका दिया तुम्हें आगे बढ़ने का ,
तुम अपनी जिद के गुलाम बन सोच रहे हो कुछ न करने का ।
मत चूके मौका पाकर दुनिया को देने का बेहतर सन्देश ,
वरना जिन्दगी भी तुम्हें देगी दगा कुछ न रहेगा शेष बताने का ।।

दम्पत्ति मिलकर न करें जो सन्तानों का भाग्य उदय ,
साख गिराते हैं मॉ-बाप की यह मानो बिल्कुल तय ।।
पितरौ हो जाओ खबरदार यह खेल नहीं है बचपन का ,
भग्न करो न दो कुल को नैतिकता-सामाजिकता का करो न क्षय ।।

                      4 - राष्ट्रवादी चिंतन

राष्ट्रवादी बनो , राष्ट्रवादी बनो , असली राष्ट्रवादी बनो ।
वंचितों को दिलाओ हक , दिखाओे एका सब ।
न किसी के अधिकारों में बाधा बनो , न बाधा बनो ।।
राष्ट्रवादी बनो .........
जन-जन से राष्ट्र है बनता , जन की रक्षा से होती राष्ट्र सुरक्षा
उपेक्षित जन के रक्षक बनो , शोषित जन के न भक्षक बनो ।।
राष्ट्रवादी बनो .......
होने के दावे करते हैं जो राष्ट्रवादी , क्या फिक्र है उन्हें जनता के हक की ।
बगैर आम जन के हितवर्धन , कैसे होगा राष्ट्रवाद का समर्थन ।।
आमजन के समर्थक बनो , आमजन के समर्थक बनो ।।
राष्ट्रवादी बनो.......
महज ध्वज ढ़ोने से न बनता कोई राष्ट्रवादी , गरीबों के हक छीन रहा जो क्या है जनवादी ।
बहुरुपिए हुब्बलवतनी का जो पहने है लिबास , इन स्वांगियों से देश का हो रहा विनाश ।।
ऐसे बहुरुपिए न बनो , ऐसे बहुरुपिए न बनो ।
राष्ट्रवादी बनो......
शोषित पीड़ित मजलूमों की हक की खातिर ,
लगा दे जान बाजी की ऐसे हो भारतीय शातिर ।
है यही असली राष्ट्रवाद और कर्मवाद भी ,
भारतीय होने का सुन्दर सुसभ्य अहसास भी ।।
ऐसे राष्ट्रवादियों के ही अनुयायी बनो , ऐसे राष्ट्रवादियों के ही अनुयायी बनो ,
राष्ट्रवादी बनो ......


                    5-उपेक्षित एकलव्य जी
लगनशील त्यागशील निष्ठावान जिसका स्वभाव है ,
अतुलनीय दानशील कर्तव्यवान जिसका हावभाव है ,
वह निषाद हिरण्यधनु के सुपुत्र है परमबीर धनुर्धारी एकलव्य जी ,
चहुँदिशि चहुँक्षितिज फैला हुआ प्रकाशमान जिसका परभाव है ।।

तिरस्कृत बहिस्कृत होकर भी जीवन में विकट अलख जगाई है ,
न थके न हारे न डरे न मन मारे ऐसी शिक्षा की मशाल जलाई है ।
ऐसे वीर योद्धा की गजब कहानी है न कोई सानी है ,
महाप्रतापी धनुर्धारी एकलव्य ने शिष्यत्व की अजब भूमिका निभाई है ।।

सामाजिक शोषण का शिकार हुआ पर न परेशान हुआ ,
गुरु द्रोण से एकलव्य व्यथित हुआ पर न तनिक विचलित हुआ ।
शिक्षा देने की मनाही पर एकलव्य में लगन का संचार बढ़ा ,
एकाग्रता के दम पर जोशीला हुआ विश्वव्यापी नाम हुआ ।।

अब नहीं जरूरत द्रोणरूपी गुरुओं की जो एकलव्य प्रतिभा का संहार करें ,
जो न गुरु गौरव का ध्यान करें वरन् प्रतिभा को भी तार-तार करें ।
न बने एकलव्य-द्रोण की जोड़ी भारत में जो गुरु-शिष्य नाम पर कालिख हो ,
सिर्फ अर्जुन का जो सम्मान करें एकलव्य का क्यों अपमान करें ।।

पर देखो हुक्मरानों को जो बांटते हैं द्रोण अर्जुन के नाम पर पुरस्कार ,
तनिक भी संवेदना न आई जो न बांटते एकलव्य के नाम पर उपहार ।
देकर गुरु दक्षिणा एकलव्य ने विश्वफलक पर भारत का रोशन किया नाम ,
प्रणाम है इस प्रतिभा की लगन को जिम्मेदार जल्द जारी करे एकलव्य पुरस्कार ।।

              6- पूज्य पिताजी मेरे
              ( अवधी हिन्दी शैली )

दया दान करुणा के प्रतीक थे पूज्य पिताजी मेरे ,
निडर साहसी निश्छलता की मूर्ति थे पूज्य पिताजी मेरे ।
जंग छेड़ते रहे बेईमानों से ईमान की बन साक्षात चिनगारी ,
गुणवान शीलवान कर्तव्यवान की सूरत थे पूज्य पिताजी मेरे ।।

इल्म की ललक जगाने वाले ऐसे हिम्मत के मालिक मेरे पूज्य पिताजी थे ,  
सबसे बड़ी इल्म है दौलत यह बात बताने वाले मेरे पूज्य पिताजी थे ।
इल्मवान हो मुल्क हमारा इसलिए सब कुछ कर दिया अर्पण ,
तालीम दिलाने वाले नये ख्वाब दिखाने वाले मेरे पूज्य पिताजी थे ।।

बड़े साहसी बाप थे हमरे कबहुँ डरे न कैइसिउ मुश्किल से ,
डरे न कैइसिउ मुश्किल से लड़त रहे जीवन भरि जीवन से ,
शोषण करनि सामन्ती जन पर कबहुँ न हारे अपने मकसद से ।।
कबहुँ न हारे अपने मकसद से जीवन के सन्तापन् से ।।

रहइ दया की खान अउ करुणा के भण्डार ,ऐसे पूज्य पिताजी को वन्दन बारम्बार ।।
वन्दन बारम्बार धन्य है ज्ञान के सागर , दइकइ शिक्षा का सन्देश किया जीवन का उद्धार ।।
किया जीवन का उद्धार किया हम पर ऐसे भी उपकार ,
करति अभिनन्दन जब हम खुशियां मिलती बड़ी अपार ।।

( पूज्य पिताजी श्री एसआर कश्यप की स्मृति में श्रद्धाञ्जलि स्वरूप चन्द शब्द पुष्प समर्पित )

                            7- जन्म भूमि

जन्म भूमि का आदर करना अच्छे इंसानों की पहचान है ,
जन्म भूमि जो भूल गया वह कर रहा धरती का अपमान है ।
हे जन्म भूमि ! तुझे प्रणाम तेरी महिमा को लाखों सलाम है ,
जो करे न तेरी कीर्ति बखान वह नर स्वार्थी और बेईमान है ।।
   मै जन्म भूमि का सेवक हूँ कर सकता इसका तिरस्कार नहीं ,
    यह यादों का दर्पण है भूल सकता इसका उपकार नहीं ।
   यह अमूल्य धरोहर जीवन की निशानी प्यार-दुलारन की ,
   प्रतिक्षण-प्रतिपल यह हृदय में है कर सकता मै इन्कार नहीं ।।
   जिस माटी में खेले कूदे है वह प्राण से हमको प्यारी है  ।
यह जीवन की अनमोल रतन है यह माटी सबसे न्यारी है ।।
गर कोई आंख उठा दे इस पर जो मेरी आंख की है पुतली ।
सौगन्ध है इस माटी की वह आंख मिटाकर उसकी हालत कर दूं पतली ।।

!!!!!जय जन्म भूमि!!!!!जय जन्म भूमि!!!!!
!!!!!तेरा अभिनन्दन!!!!!!तेरा वन्दन!!!!!

( सीतापुर जिले के सिधौली के अल्लीपुर जन्म भूमि को समर्पित )


                               8 -इंकलाब
सामाजिक क्रांति का बिगुल फूंकने आया हूँ ,
हक़ अब तक जो ले न सके उन्हें जगाने आया हूँ ।
बंटे रहोगे गर बहना-भाई अधिकार न अपना पाओगे ।
अनमोल टके की बात है यह तुम्हें बताने आया हूँ ।।

बहू-बेटियों की आबरू से खेले कोई , हरगिज ऐसा होने नहीं दूंगा ।
मादरे वतन ही महबूब मेरा , इसकी अस्मत लुटने नहीं दूंगा ।
चाहे जिस मुश्किल का करना पड़े मुकाबला , पैर पीछे हटने नहीं दूंगा ।।

जो बंटा रहा है परिवारों से , वह छंटा रहा है अधिकारों से ।
मन्त्र एकजुटता का अब सीखो तुम ,
नहीं तो मारे जाओगे अपमानों के तलवारों से ।।

अहंकारी का घमण्ड तोड़ती स्वाभिमान का करती है आगाज ,
सत्तान्ध को सत्ता च्युत करती यह है क्रांति का प्रताप ।
देश निर्माण में अहम किरदार है जिस इंकलाब का ,
उस इंकलाब से बुलन्द होती है मजलूमों-महरूमों की आवाज ।।

क्रान्ति महापुरुषों का हथियार रहा है ,
उपेक्षित पीड़ित अवाम का उपहार रहा है ।
सर उठाकर चलना बताती सिखाती है इंकलाब ,
इसे अपनाओ यह वंचितों का अलम्बरदार रहा है ।।

          9 - सामाजिक मुहिम का आवाहन

जब हमने ठाना है , सामाजिक आन्दोलन को अंजाम तक पहुँचाना है ।

तब दुश्मनों ने हमारे अज्ञान लोगों को फुसलाया हो , फिर इन्हीं अपनों से जब अपना सामना हो ।

दिल तो दुखता है क्या करूं , ऐसे नादानों का संघात करूं या दानिश्वर बनाने की भावना पैदा करूं ।

फिर समझ में आता है , ज्ञान से सब ठीक हो जाता है ।

जब ये लोग इल्म से लबरेज होंगे , तो अपने लोग अपनों के न विरुद्ध होंगे ।

फिर कोई युद्ध जीत लेंगे , चाहे दुश्मन कितने विराट होंगे ।

समाजप्रेमी सामाजिक आन्दोलन में भाग लेते हैं , गिरवीधारी दिमाग़ वाले आन्दोलन से भाग लेते हैं ।

इसलिए लोग न परतन्त्र हो , अपनों में भी शिक्षा का यन्त्र हो ।

और एकजुटता का मन्त्र हो , सब संघर्ष के लिए स्वतन्त्र हो ।

फिर सामाजिक क्रांति होगी , सामाजिक नव निर्माण होगा ।

जन-जन में चेतना होगी , देश का भी सन्तुलित विकास होगा ।


                        10 - आतंकी कुत्ते
फज़ले हक की माटी में आतंक फैल रहा है कुत्तों से ,
बच्चे-बूढ़े चिंतित और संशकित है नरभक्षी  कुत्तों से ,
चन्द महीनों से आदमखोर हो गये कस्बे के कुत्ते ,
जान बचाये बच्चों की शासन खूं के प्यासे कुत्तों से ।

बड़े फख्र से गुफ्तगूं होती है कस्बे की फजले हक खैराबादी के नाम से ,
माहौल बिगाड़ दिया कुत्तों ने अपने खूनी खुंखारों के अंजाम से ,
जन-जागरुकता से कर  जन-जीवन की रक्षा सुरक्षा ,
अब शासन-प्रशासन पुख्ता सुरक्षा दे कहता हूँ पैगाम से ।।

कस्बे बाशिन्दे परेशां हो रहे इस कदर कुत्तों की आबादी से ,
कैसे निपटा जाये इन आवारा कुत्तों की आजादी से ।
कुत्तों के हमले से बचे नाम न धूमिल हो फजले हक़ खैराबादी का ,
कमर कसे हाकिम-हुक्काम नजर न फेरे कस्बे की बरबादी से ।।

लड़ी-लड़ाई फिरंगियों से कभी यही भूमि बड़ी शान से ,
आई आंच थी जब मुल्क पर अगुवाई की थी फजले हक़ ने सीना अपना तान के ।
आज जब कस्बे को घेर कर रक्खा है कुत्तों ने अपने खूनी पंजों में ,
दिल दुखता याद आती है इस धरती के शान शौकत की बड़ी आन से ।।

( ख़ैराबाद -सीतापुर,उप्र में कुत्तों के द्वारा तमाम बच्चों को डालने पर सरकार का ध्यान खींचने के लिए समर्पित चन्द पंक्तियां )

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            ----सामाजिक चिंतक देवेन्द्र कश्यप सीतापुर

रचनाकार परिचय - सामाजिक चिंतक देवेन्द्र कश्यप
ग्राम - अल्लीपुर
पत्रालय - कुर्सी
तहसील-सिधौली
जनपद - सीतापुर
राज्य - उत्तर प्रदेश
पिन कोड - 261303

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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रचनाकार: दस कविताएं / सामाजिक चिंतन // सामाजिक चिंतक देवेन्द्र कश्यप
दस कविताएं / सामाजिक चिंतन // सामाजिक चिंतक देवेन्द्र कश्यप
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