प्लेगारिज़्म डॉ. मधु संधु प्लेगारिज़्म यानी साहित्यिक चोरी, बौद्धिक संपत्ति की चोरी- आज की शब्दावली में कॉपी पेस्ट- यानी गुपचुप तरीके से चोरी ...
प्लेगारिज़्म
डॉ. मधु संधु
प्लेगारिज़्म यानी साहित्यिक चोरी, बौद्धिक संपत्ति की चोरी- आज की शब्दावली में कॉपी पेस्ट- यानी गुपचुप तरीके से चोरी के माल पर अपने नाम का ठप्पा। राम- नाम जपना, पराया माल अपना। सपाट बुद्दि पर बुद्धिजीवी होने का मोहर। आँख के अंधे द्वारा नयनसुख कहलवाने का षड्यंत्र ।
प्लेगारिज़्म के अनगिनत फायदे हैं। हींग लगे न फिटकरी रंग चौखा होय। धर्म अर्थ काम मोक्ष, यश में से साहित्यिक चोर का छपा हुया नाम उसे बहुत कुछ देगा। यू. जी. सी. ने पीएच. डी. की डिग्री का एक सोपान शोध पत्र प्रकाशन भी रखा हुआ है। पहले शोध पत्र चोरी करो और फिर शोध ग्रंथ उड़ा लो- यानी डाका। इस उपलब्धि में धर्म, अर्थ, यश, मोक्ष- सभी आपका पानी भरने लगते हैं। शोध पत्रों, शोध ग्रन्थों की लूट मची है, जितना लूट सकते हो लूट लो- दोनों हाथों से- वैतरणी पार कर जाओगे। हो क्या जाएगा ? डरने की जरूरत ही नहीं। चोरी वह उजागर होती है, जो सुरक्षा घेरों में हो। ताले- कुंजी के अंदर हो, आपने कौन सा किसी का ताला तोड़ा है। बाकी नैतिक- अनैतिक कुछ नहीं होता। साहित्यिक चोर कामचोर भी होते हैं और सीनाजोर भी। आँखें झुकाते नहीं, दिखाते हैं। न इसे अनैतिक मानते हैं, न वर्षों तक, दशकों तक, प्रलय काल तक उनका भेद उजागर होने की संभावना होती है। कभी नसीब नसीबा बन जाये तो वर्षों बाद भेद खुल सकता है कि जिस डिग्री ने आपको नौकरी दिलाई, वही चोरी की थी।
प्लेगारिज़्म बौद्धिक मौलिकता की इतिश्री है। “coping, borrowing, theft, appropriation इसके समानार्थी हैं।“[1]
विकिपीडिया के अनुसार,
“किसी दूसरे की भाषा, विचार, उपाय, शैली आदि का अधिकांशत: नकल करते हुये अपनी मौलिक कृति के रूप में प्रकाशित करना साहित्यिक चोरी कहलाती है। ....जब हम किसी के द्वारा लिखे हुये साहित्य को बिना उसका संदर्भ दिये अपने नाम से प्रकाशित कर लेते हैं, इस प्रकार से लिया गया साहित्य अनैतिक बन जाता है और इसे साहित्यिक चोरी कहा जाता है। वर्तमान में प्लेगारिज़्म अकादमिक बेईमानी समझी जाती है। प्लेगारिज़्म कोई अपराध नहीं है बल्कि नैतिक आधार पर अमान्य है।“[2]
अमेरिकन हेरिटेज डिक्शनरी में साहित्यिक चोरी को ऐसे परिभाषित किया है-
“किसी अन्य लेखक के विचारों तथा भाषा का अनधिकृत उपयोग या नक़ल करके उसको अपनी मूल कृति के रूप में प्रस्तुत करना। [3]
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने दिन दोगुनी रात चौगुनी फल फूल रही प्लेगारिज़्म की इस बीमारी की रोक-थाम और अनुसंधान की शुचिता बनाए रखने के लिए छात्रों, अध्यापकों और दूसरे स्टाफ के लिए नए कड़े नियमों का प्रावधान किया है। उनके लिए दंड योजना का आयोजन किया है। यू. जी. सी. कहती है कि ..साहित्यिक चोरी के दुष्परिणामों को स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम का हिस्सा बना कर लेखन, शोध और अनुसंधान में ईमानदारी और जागरूकता लाई जाये। इस विषय पर सेमिनार, वर्कशाप, भाषण करवाए जाए। यू. जी. सी. साहित्यिक चोरी का पता लगाने और उसे रोकने के लिए शैक्षिक और अनुसंधान केन्द्रों में अलग तंत्र स्थापित करने, आधुनिक तकनीकी टूल्स के प्रशिक्षण से चोरी पकड़ने की भी अनुशंसा करती है। .........विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियम स्पष्ट कहते हैं कि साहित्यिक चोरी का मामला सामने आने पर एकेडेमिक मिसकंडक्ट पेनल (ए. एम. ( पी डिसिप्लिनरी अथॉरिटी ऑफ प्लेगारिज़्म)डी. ए. पी.) को जांच सौंपी जाएगी। इसके बाद कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। प्लेगारिज़्म की पुष्टि होने पर अध्यापक की नौकरी और विद्यार्थी का पंजीकरण समाप्त हो सकता है।[4] 2017 में साहित्यिक चोरी पर बने रेग्युलेशन में ज़ीरो टोलरेंस का समर्थन किया गया है।[5] उत्तर प्रदेश के तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पी. के गर्ग साहित्यिक चोरी को अपराध मानते कहते हैं - ‘आयोग इसे लेकर सख्ती के मूड में है।‘
लेकिन चतुर, लालची, बेबाक, निडर, मुंहजोर चोरों पर इसका कोई असर नहीं। वे आश्वस्त हैं कि मूल लेखक इस चोरी को पकड़ ही नहीं सकता। कभी कभार ही इनके औंधे मुँह गिरने की नौबत आती है। जैसे गुरु नानक देव विश्वविद्यालय की रिसैप्शनिस्ट- कम-क्लर्क अविन्दर कौर ने प्राइवेट कैंडिडेट के रूप में 1997 में पीएच. डी. शुरू की और 2000 में उपाधि ले ली। इसी दौरान कुछ शिकायतें आने पर सिंडीकेट ने अविन्दर कौर के पीएच. डी. के थीसिस और गाइड डॉ बेदी के डी. लिट. के थीसिस की जांच कारवाई और दोनों में शत - प्रतिशत नकल पाई गई। ऐसे ही अन्य विभागों से भी प्लेगारिज़्म के चार आँय केस भी थे। डॉ मधु संधु की सन्मार्ग प्रकाशन, दिल्ली से 1984 में प्रकाशित पुस्तक ‘साठोतरी महिला कहानीकार’ को ही टाइप करवा कर डिग्री लेने वाली अविन्दर कौर को टरमिनेट भी किया गया और उसकी डिग्री भी वापिस ले ली गई। क्योंकि अन्य दोषियों को कोई खास सज़ा नहीं दी गई थी, 23 अगस्त 2017 को उसे फिर से नौकरी पर बहाल करने का फैसला आया। यह प्लेगारिज़्म नाक के नीचे होने वाला प्लेगारिज़्म था। उसी विश्व विद्यालय के उसी विभाग से चोर, लेखक और गाइड थे।[6] एक दूसरी आपबीती/ दुर्घटना का भी उल्लेख करना चाहूंगी। 'जनकृति' के वर्ष 2, अंक 23, जनवरी-मार्च 2017 में प्रकाशित आलेख –‘प्रवासी एवं भारतीय महिला कथा साहित्य में नारी उत्पीड़न एवं सशक्तिकरण’ – (सोनिया माला, शोधार्थी, पंजाब विश्वविद्यालय) प्रकाशित हुआ। जिसे डॉ मधु संधु की पुस्तक -'हिन्दी का भारतीय एवं प्रवासी महिला कथा लेखन ' – (नमन प्रकाशन, दिल्ली, 2013) के षष्ठ अध्याय - 'नारी उत्पीड़न एवं सशक्तिकरण के संदर्भ में भारतीय एवं प्रवासी महिला लेखन का तुलनात्मक अध्ययन ' में से शब्दशः कॉपी किया गया । इस चोरी का पता उन्हें मई 2018 को चला. रहा नहीं गया और संपादक से संपर्क किया और संपादक कुमार गौरव मिश्रा ने तुरंत अपनी प्रतिक्रिया देते कॉपी करने वाली सोनिया माला को भविष्य में पत्रिका में न छापने का निर्णय लिया । यही सूचना फेसबुक पर डाली, तो परिणाम चौंकाने वाले थे – कि सोनिया माला के गाइड लुधियाना कॉलेज के प्रो. सिंह हैं, कि उसे 2017 में डिग्री मिल चुकी है, कि वह लुधियाना के सरकारी कॉलेज में पढ़ा रही है। ढेरों प्रतिक्रियाए मिली। इसे दुखद, अनैतिक, अनुचित, दण्डनीय, अपराध मानते, गाइड और सोनिया माला – दोनों के दोषी होने की आशंका और ऑथोरिटीज द्वारा दोनों को कटघरे खड़े करने की डॉ. शैली जग्गी, प्रिन्सिपल ज्योति ठाकुर, और मित्रों ने पुष्टि की। डॉ. अंजना शर्मा (मोनू शर्मा) टिप्पणी में लिखती हैं- मैंने अपनी यूनिवर्सिटी में एक बार हू-ब-हू एक जैसी दो किताबें देखी थी। लेखक अलग- अलग थे। पूरी चोरी की हुई। जिन्होंने चोरी की थी, उनका नाम यहाँ नही ले सकती।
पठानकोट से डॉ. सुनीता डोगरा ने लिखा- यह तो अठन्नी चोर है, बड़े बड़े शातिर तो सामने डाका डाल कर बच रहे हैं। ऐसे में प्लेगारिज़्म के ढेरों केस/अपराध याद आते हैं। राजीव मल्होत्रा द्वारा एंड्रयू जे निकोलसन की नकल एक बड़ा मुद्दा था। हावर्ड के विश्वनाथन का नाम भी इसी बुराई से जुड़ा है। भारतीय मूल के अमेरिकी पत्रकार फरीद जकारिया को साहित्यिक चोरी के कारण सीएनएन और टाइम द्वारा निलंबित होना पड़ा, जिसे बाद में जिसे बाद में पत्रकारीय भूल मान उन्हें वापिस ले लिया गया।[7] दिल्ली विश्व विद्यालय के पूर्व उपकुलपति दीपक पेंटल को इसी प्लेगारिज़्म के कारण स्थानीय अदालत ने प्रो. पी सारथी की अपील पर गिरफ्तार करने का आदेश दिया।[8] जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रो. गौस मशकूर खान की नियुक्ति को साहित्यिक चोरी के कारण चुनौती दी गई और हर बार कोर्ट में न पहुँचने पर उन पर 25000 का जुर्माना किया गया।[9] बेंगलुरु से अनविता वाजपेयी ने भी चेतन भगत पर प्लेगारिज़्म का आरोप लगाया और अदालत ने उनकी पुस्तक ‘ वन इंडियन गर्ल’ को बिक्री से कुछ देर के लिए रोक दिया।[10] द कपिल शर्मा शो के किकू शारदा पर भी चुटकला चोरी का आरोप लगा।[11] पिछले दिनों शायद फेसबुक पर ही सुधा ओम ढींगरा ने अपनी एक कविता और स्मृति आदित्य ने आलेख की चोरी का जिक्र किया था। थोड़ा सा गहरे पानी उतारो, छोटे- बड़े नकलचियों के अंबार मिल जाएँगे। आम बुद्धिजीवी के लिए यह भिड़ों के छत्ते को छेड़ने जैसा है। मगर से वैर लेने जैसा।
भारत में शोध कार्यों की नकल में लगातार हो रही वृद्धि शोध व्यवस्था की जड़ों को खोखला कर रही है। यह कार्य छात्र ही नहीं, विश्वविदयालयों में बरगद बन कर बैठे लोग भी कर रहे हैं। प्रतियोगिता में बने रहने का यह सर्वाधिक सुगम/ कुटिल ढंग है। यह अकादमिक दिवालियापन ही नहीं, कॉपी राइट का अतिक्रमण भी है, जो अपराध के घेरे में आता है।
संदर्भ:
[1] https://www.collinsdictionary.com-
[2] http://hi.m.wikipedia.org
[3] https://hindi.yourstory.com/read/766f0c2bbf/-39-revitalization-20, 7 सितम्बर, 2017 से उद्धृत
[4] http://www.newspost.live/ugc-comes-out-with-stringent-rules-to-curb-theft-of-intellectual-property/
छात्रों पर यह होगी कार्रवाई
लेवल 1: 10% से 40% साहित्यिक चोरी- इस मामले में छात्र को किसी भी प्रकार से कोई अंक या क्रेडिट प्रदान नहीं किया जाएगा। साथ ही छह महीने के अंदर दोबारा साहित्यिक चोर से मुक्त शोध सामग्री जमा कराने का मौका दिया जाएगा।
लेवल 2: 40% से 60% साहित्यिक चोरी- ऐसे मामले में संबंधित छात्र को कोई अंक या क्रेडिट प्रदान नहीं किया जाएगा। साथ ही शोध पुन: जमा करने के लिए अधिकतम 18 महीने का समय दिया जाएगा।
लेवल 3: 60% से अधिक की साहित्यिक चोरी- ऐसे प्रकरण में संबंधित छात्र को कमेटी द्वारा कोई अंक या क्रेडिट प्रदान किया जाएगा। साथ ही मामले की गंभीरता को देखते हुए रजिस्ट्रेशन भी रद्द कर दिया जाएगा।
फैकल्टी व स्टाफ पर यह होगी कार्रवाई
लेवल 1: 10% से 40% साहित्यिक चोरी- मामले में मैनूस्क्रिप्ट (हस्तलिपी) वापस लेने को कहा जाएगा। साथ ही किसी भी प्रकार के प्रकाशन पर एक वर्ष का प्रतिबंध।
लेवल 2: 40% से 60% साहित्यिक चोरी- मामले में मैनूस्क्रिप्ट वापस लेने को कहा जाएगा। किसी भी प्रकार के प्रकाशन पर दो वर्ष के प्रतिबंध के साथ ही एमफिल या पीएचडी स्कॉलर के गाइड के रूप में कार्य करने पर प्रतिबंध।
लेवल 3: 60% से अधिक की साहित्यिक चोरी- अगले दो साल तक वेतनमान में वृद्धि पर रोक। प्रकाशन के लिए दी गई मैनूस्क्रिप्ट स्वीकार नहीं की जाएगी। तीन वर्ष तक प्रकाशन पर प्रतिबंध व एमफिल या पीएचडी स्कॉलर के गाइड के रूप में कार्य करने पर 3 वर्ष का प्रतिबंध।
[5] https://hindi.yourstory.com/read/766f0c2bbf/-39-revitalization-20, 7 सितम्बर, 2017
[6] http:// Indiankanoon.org-doc
[7] https://khabar.ndtv.com/topic/plagiarism/news, august 11, 2012
[8] वही, 25 नवंबर, 2014
[9] https://news.raftaar.in/delhi-high-court-assistant-professor-plagiarism-खबर-jnu-असिस्टेंट-प्रोफेसर-साहित्यिक-चोरी-आरोप-कोर्ट-हजार-रुपया-जुर्माना/
[10] वही, 28 अप्रैल, 2017
[11] वही, 26 अप्रैल, 2017
madhu_sd19 @yahoo.co.in
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