प्रबोध कुमार गोविल के उपन्यास अकाब को यहाँ पढ़ सकते हैं [ ई-बुक लिंक ] झाँकता सा एक थ्रिल्ड अहसास ----------------------------------------- ...
प्रबोध कुमार गोविल के उपन्यास अकाब को यहाँ पढ़ सकते हैं [ई-बुक लिंक]
झाँकता सा एक थ्रिल्ड अहसास
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'अकाब ' श्री प्रबोध कुमार गोविल जी का उपन्यास एक नवीन प्रयोगधर्मिता का अहसास करता है |
'जल तू जलाल तू' के बाद उनका एक और उपन्यास पढ़ा था 'आखेट महल' जिसकी पृष्ठभूमि ऐतिहासिक होते हुए भी इतिहास नहीं है |हाँ,उसे पढ़कर कुछ पुराने राजा-महाराजाओं के ठाठ की स्मृतियाँ अवश्य मन के भीतरी तहखाने में खुल जाती हैं | उपरोक्त दो उपन्यासों को पढ़ने के बाद अकाब पढ़ना एक आश्चर्य भी लगा और उसने कुछ झुरझुरी भी पैदा की |
इन दोनों के बाद अकाब पढना बिलकुल ऐसा लगा जैसे किसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से निकलकर पूरी दुनिया की परिक्रमा में होड़ लगाने की पंक्ति में आ खड़े हुए हों |आज का जमाना ,हम सब जानते ही हैं होड़ का है |एक फैशन शुरू हुआ नहीं कि चाहे अपने ऊपर सूट करे या न करे ,हम उससे महरूम होना नहीं चाहते |आज अंग्रेज़ी का युग है |गिने-चुने हमारी पीढी के या तो फिर वो 'बेचारे' जो किन्ही कारणवश अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा ग्रहण न कर पाए हों ,वे भी हिन्दी के साहित्य को डरते-डरते हाथ लगाते हैं,जैसे कोई छूत का रोग लगने की संभावना हो ,क्योंकि बड़ी कक्षाओं में अथवा नौकरी में जाकर वे भी हिन्दी को भूलभुलैया के रॉकेट में बिठाकर उड़ा देते हैं |
'अकाब' एक अलग प्रकार का उपन्यास इसीलिए है क्योंकि मुझे लगता है कि इसने अपने भीतर आज की स्थिति को समेटकर अपने लिए अंग्रेज़ी-हिन्दी के पाठकों के भीतर एक अलग गूँज पैदा की है में |तनिष्क उपन्यास का मुख्य पात्र जापान से मसरू ओस्से जो एक वेल्डर थे ,उनके साथ अपनी माँ को छोड़कर अमेरिका आ गया था |कई स्थितियों से गुजरने के बाद वह एक शेख़ के बहुत खूबसूरत व नामचीन पार्लर में बड़ी संजीदगी से मालिश का काम सीखकर शरीर को भली-भांति पहचानने लगा था | और न जाने कहाँ कहाँ की भूमि पर विचरण करता हुआ अंत में भारत-भूमि पर आता है और श्रीनगर में थमता है |ताउम्र संसार के विभिन्न देशों की पवन अपने भीतर समेटे तनिष्क न जाने कितनी चीजों से बाबस्ता होता है |बालपन से एक उद्वेलन को महसूस करता हुआ तनिष्क किसी ऎसी कगार पर खड़ा होता है जहाँ वह अपने शरीर से एक परिवार बनाने की खूबसूरत ख्वाहिश को पालता है किन्तु अमेरिका के बेहद आलीशान पार्लर में कार्यरत तनिष्क वैसे तो न जाने कितने शरीरों को महसूस करता है ,पार्लर में आने वाली खूबसूरत महिलाओं के शरीरों को मसाज देते हुए तनिष्क बना तो एक मालिश वाला ही रहता है जो जापान से मसरू अंकल के साथ वैल्डिंग का काम करते हुए अमेरिका तक खिंचा चला आया था और लंबे समय तक मसरू अंकल के साथ रहा था किन्तु फिर भी वह मसरू अंकल के परिवार के बारे में कुछ भी नहीं जानता है |अंत में श्रीनगर में जब वह अपना एम्पोरियम खोलता है जिसके लिए वह न जाने कितने स्थानों से नायाब चीजें लाकर हासिल करता है और धन्यवाद प्रदान करने के लिए वह मसरू अंकल की तस्वीर उस एम्पोरियम में लगाता है |अचानक तब घूमते हुए मसरू अंकल की पत्नी अपने पहले पति की बेटी जो लद्दाख में रहती थी और लेह में रहकर बच्चों को पढ़ाती थी तनिष्क के 'शो रूम' पर पहुँच जाते हैं ,वहीँ मसरू अंकल की तस्वीर टंगी देखकर उनकी पत्नी ठिठक जाती है जिसे अपने लापता पति के बारे में वर्षों तक कोई जानकारी नहीं थी | पहचान खुलने पर उसके माध्यम से मसरू ओस्से के बारे में तनिष्क के मन में उठने वाले बहुत से छिपे हुए प्रश्नों के उत्तर उसे प्राप्त हो जाते हैं |
मसरू अंकल की पत्नी की बेटी का नाम अनन्या है ,माँ,बेटी कई बार श्रीनगर आते हैं | एक बार अनन्या को अकेले श्रीनगर आना हुआ और तनिष्क के मन में बरसों से दबी नारी देह की गंध ने उसे पिघलाकर शरीर का वास्तविक स्पर्श करने के लिए मजबूर कर दिया |उस रात देह की सीमा पार हो हृदय के स्त्रोत में बह गईं और तनिष्क व अनन्या विवाह के बंधन में बंध गए |
उपन्यास में एक ओर सेलिना नाम की खूबसूरत ऐक्ट्रेस को मालिश करने से उठी एक गंध व सरसराहट है तो दूसरी ओर अमेरिका के ट्विन टॉवर पर हुई खौफ़नाक दुर्घटना की तस्वीर भी उतनी ही शिद्दत के साथ उतरी है ;
"चंद मानव बुतों ने आकाश में उड़ने वाले विमानों का अपहरण करके उन्हें जमीन की गगनचुंबी अट्टालिकाओं पर किसी मिसाइल की तरह दाग दिया और हज़ारों मासूम बेगुनाहों को पल भर में नेस्तनाबूद कर दिया |" पढने पर एक बार तो उपन्यास थ्रिल से उठकर मानवता की उस दुखद दहलीज़ पर आ खड़ा होता है जिसको न जाने दरिन्दे कब जहाँ-तहाँ अपने राक्षसी पँजों से लहूलुहान करते रहते हैं ,तुषारापात होने के बाद जब सब कुछ तहस नहस हो जाता है तब इसका पता चल पाता है |
बालपन से ही तनिष्क के मन में पलने वाले मासूम से कई सवाल उभरते रहते हैं जो बार-बार सिर तो उठाते हैं किन्तु अपने पूरे उत्तर नहीं पाते |तनिष्क का मासूम मन उन सवालों में गोल-गोल घूमता ही रहता है जिनका उत्तर उसे अंत में अनन्या में प्राप्त होता है जो जीवन के ,ज़िंदगी की वास्तविकता से जुड़े हैं |
उपन्यास में कई और ऎसी घटनाओं का ज़िक्र किया गया है जो पाठक पढ़कर ही महसूस कर सकता है |एक अजीब सी छुअन से पूरा उपन्यास ही सराबोर है | अंत में एक अजीब सी मनोदशा में तनिष्क को वो शेख़ भी हवाई अड्डे पर मिलता है जिसके पार्लर में काम करके तनिष्क के मन में शरीर-गंध का अहसास शुरू हुआ था |अनन्या का गर्भवती होना तनिष्क के परिवार के पूर्ण होने का संकेत है |
हिन्दी की पुस्तकों के न पढ़े जाने की शिकायत चारों ओर सुनाई देती है
इतना होने पर भी हिन्दी का साहित्य लिखा जा रहा है और किस वर्ग में अधिक पढ़ा जा रहा है ,यह तो मैं नहीं कह सकती परन्तु प्रकाशित तो हो ही रहा है और जा भी रहा ही होगा |आखिर प्रकाशक पुस्तकें प्रकाशन का काम यूँ ही तो नहीं कर रहे हैं ,उनके मन में कहीं न कहीं अपनी पुस्तकों के माध्यम से मातृभाषा की सेवा का भाव भी दृढ़ रूप से आसन जमाए हुए है |
इस नवीन उपन्यास की एक अलग प्रकार की फीलिंग लिए मैं प्रबोध गोविल जी को बधाई देना चाहूंगी जिनकी भाषा पाठक को सदा पकड़कर रखती है | उपन्यास में एक प्रकार का थ्रिल पूरे वातावरण में छाया हुआ है ,कभी-कभी वातावरण पाठक को उत्तेजित भी करता है इसके उपरांत भी उपन्यास के पात्रों की ओर बढती जिज्ञासा पाठक के मन में बरकरार रहती है |आशा है हिन्दी साहित्य के पाठकों के द्वारा इस नवीन उपन्यास का स्वागत किया जाएगा जिसकी शैली निश्चय ही पाठक में उत्सुकता बनाए रखती है |
अनेकानेक बधाई व अभिनन्दन सहित
डॉ.प्रणव भारती
अहमदाबाद
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अकाब
लेखक;श्री प्रबोध कुमार गोविल
दिशा प्रकाशन 138 /16
त्रिनगर
दिल्ली-110 035
मूल्य-तीन सौ रूपये
पेपरबैक -दो सौ रूपये
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