1 है चाह मिलूं उससे जो अक्सर नहीं मिलता । दीवार घरों में है मगर घर नहीं मिलता । ये आप भी देखें है कि बस मुझ...
1
है चाह मिलूं उससे जो अक्सर नहीं मिलता ।
दीवार घरों में है मगर घर नहीं मिलता ।
ये आप भी देखें है कि बस मुझको भरम है ।
हर शख़्स परेशान है खुलकर नहीं मिलता ।
इस ज़िन्दगी के चिथड़े सिलाने है मुझे सब ।
इस शहर में पर कोई रफूगर नहीं मिलता ।
जज्बाती दिलों ने मेरे जब आग लगा ली ।
इस से कोई गमगीन तो मंज़र नहीं मिलता ।
सन्नाटे हैं तनहाई है रुसवाई है दिल में ।
धोखा जो जमाना दे वो पढ़ कर नहीं मिलता ।
वो प्यास बुझा देती मेरी आज सभी , पर ।
अच्छा है कि प्यासे को समंदर नहीं मिलता ।
हैं दोस्त भी ' अरविन्द बहुत सारे मेरे पर ।
जब दिल को जरूरत हो तो दिलवर नहीं मिलता ।
2
जख्म हूं दर्द हूं ज़हर भी हूं ।
मैं समन्दर भी हूं लहर भी हूं ।
आ तुझे ' आईना बना दूं मैं ।
आईने का ही शीशगर भी हूं ।
तुम जरा अपनी ही नजर देखना ।
मैं जमाने की हर नजर भी हूं ।
कौन मुझको ही ' माँ रुलायेगा ।
मैं दुआ का तेरी असर भी हूं ।
कतरनों में करो नहीं शामिल ।
जान लो आप सुख़नवर भी हूं ।
जबसे तूने निगाह फेरी है ।
बन गया एक खंडहर भी हूं ।
जिस्म 'अरविन्द में बसाओ तब ।
रात का तेरे हम - सफ़र भी हूं ।
3
नहीं तकदीर में जो मेरे क्यों फिर जुस्तजू करते ।
मेरी किस्मत में क्या है वो पता जाकर के यूं करते ।
रखी इज्जत हमेशा है जिसने अपना समझकर तो ।
उसी इंसान को ऐसे नहीं बे - आबरू करते ।
हमें मिलने का मौका तो नहीं मिल पायेगा जानम ।
कभी ख्वाबों में आ जाओ तो जी भर गुफ़्तगू करते ।
ज़हर का घूंट पीकर भी बचे यदि तो बचा लेना ।
किसी भी हाल में साहब नहीं 'रिश्तों का खूं करते ।
ये दिल का 'आइना है जो सदा सच ही दिखाता है ।
मुखौटे को अलग रखकर जो इसको रूबरू करते ।
मुहब्बत रास आएगी हँसेगी मुस्कुराएगी ।
बशर्ते सच में शिद्दत से मुहब्बत तो शुरू करते ।
तमन्नाएँ मचलती हैं ' ये मचलेंगी यही सच है ।
मगर काबू में रख इनको बहुत मत सुर्खरू करते ।
नहीं कोई करेगा तो , हमें क्या है लेना - देना ।
भली जो बात लगती हो उसे खुद ही शुरू करते ।
सभी आदत इरादा आरजू ' अरविन्द तुम कर लो ।
जो तुम हो सोचते वो सब गलत है हूबहू करते ।
4
गैर के जख्मों को हर रोज सुखाते रहिये ।
अपने किरदार का किरदार निभाते रहिये ।
राब्ता ही न रहा मुझसे तो शिकवा कैसा ।
करके बर्बाद मुझे ज़श्न मनाते रहिये ।
उनको फुर्सत ही कहां हाल सुनाने की पर ।
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए ।
कब कहा मैंने ज़रूरत नहीं मुझको तेरी ।
ख़्वाब में आ के मुझे यूँ ही सताते रहिए ।
कोई तो आपके नज़रों से ही घायल होगा ।
आप नज़रों से यूँ ही तीर चलाते रहिए ।
वो नज़ारे वो नजाकत वो अदाएं वो हँसी ।
अपने ज़ज़्बात सभी दिल के सुनाते रहिये ।
हाले ' अरविन्द नहीं पूछता है कोई गर ।
जब मिले मौका नये दोस्त बनाते रहिये ।
5
सबको रस्ता दिखा रहा हूं मैं ।
साथ ' मिट्टी उड़ा रहा हूं मैं ।
इन दरख्तों में अब भी जिंदा हूं ।
अपना साया मिटा रहा हूं मैं ।
मुझको लाकर लिटा गए जबसे ।
कब्रे - रौनक बढा रहा हूं मैं ।
आइने में नजर न आयेंगे ।
ऐसे चेहरे बना रहा हूं मैं ।
इश्क करना ही सीख लो मुझसे ।
इश्क करना सिखा रहा हूं मैं ।
सब मुझे बदतमीज कहते हैं ।
खुद जो खुद का बता रहा हूं मैं ।
वो रुलाती रही मुझे हरदम ।
कह जिसे ' बेवफा रहा हूं मैं ।
चाहता हूं लिपट के फिर रो लूं ।
माँ तेरे घर से जा रहा हूं मैं ।
आग अरविन्द मय्यसर लेना ।
अपनी बस्ती जला रहा हूं मैं ।
6
बिना किये मेहनत आसमान चाहता है ।
क़दम कदम पे नया बस मकान चाहता है ।
ज़रूरतों की हरेक चीज़ जिसको हासिल हो ।
वो अपने घर में ही सारा जहान चाहता है ।
ख़ुदा करे कि मुहब्बत में ये मकां आये ।
कि छाती चीर दिखा दूं निशान चाहता है ।
मिला नहीं है मुझे दोस्त एक अरसे से ।
वो मुझसे दोस्ती का इम्तिहान चाहता है ।
किसी के इश्क में पागल है सरफिरा है जो ।
खिलाफ़े - इश्क के देना बयान चाहता है ।
रखोगे क़ैद तो ' परवाज़ भूल जाऊंगा ।
क़फस खोलो न परिन्दा उड़ान चाहता है ।
वो बन गये है खुदा इश्क के मेरे जबसे ।
बस रख देना मेरी हथेली पे जान चाहता है ।
उसे खुदा की ' मुहब्बत पे जाने है शक क्यों ।
तसल्ली के लिये वो ' इम्तिहान चाहता है ।
नुमाइँदा नहीं अरविन्द हैं कबूतर ये ।
जो पर निकलने से पहले उड़ान चाहता है ।
7
एक दिन आसमां से गुजर जायेंगे ।
कब्र दर कब्र में हम उतर जायेंगे ।
आँधियों से ये कह दो रहें होश में ।
गर नहीं तो गुजर रौंदकर जायेंगे ।
लाख तूफ़ान दरिया उठाती रही ।
बस तेरा नाम लेकर गुजर जायेंगे ।
क्या करूँ मैं सभी लोग बिगड़े यहाँ ।
पर घरों में रहें तो सुधर जायेंगे ।
चाँद तारों से कह दो घरों में रहें ।
सामने से नहीं तो गुजर जायेंगे ।
मानता हूँ , दिलों में ही महफूज हैं ।
गर यहाँ से गये तो बिखर जायेंगे ।
चाँद तारों रहो हद में सब , गर नहीं।
लफ्ज तासीर तक भी उतर जायेंगे ।
ए परिंदे उड़ो तुम जमीं देखकर ।
जो मरेंगे खुदा के ही घर जायेंगे ।
अब जरा देख 'अरविन्द गुब्बार को ।
पर हवा साथ खुद ही गुजर जायेंगे ।
8
रोग जाता ही नहीं कितनी दवा ली हमने ।
माँ के क़दमों में झुके और दुआ ली हमने ।
इस ज़माने ने सताया भी बहुत है मुझको ।
आग ये सीने की अश्कों से बुझा ली हमने ।
जब नजर आई नहीं ख्वाब में ' माँ की सूरत ।
अपनी आंखों से हर इक नींद हटा ली हमने ।
देखने तो आज सभी आये तमाशा मेरा ।
जब से दीवार घरों में ही उठा ली हमने ।
तेरी चाहत में हुआ हाल ' दीवानों जैसा ।
अपनी पगड़ी ही सरे आम उछाली हमने ।
हर तरफ ही यूं नजर आने लगी उल्फ़त जब ।
दिल में नफरत थी मुहब्बत ही सजा ली हमने ।
खत्म हो जाये न ये दौर मुलाकातों का ।
ज़िंदगी बस तेरे वादे पे बिता दी हमने ।
माँ के क़दमों में ये सारा ही जहां दिखता है ।
बस तेरी याद में हस्ती भी मिटा ली हमने ।
खौफ था मुझको चरागों से ही घर जलने का ।
आग ' अरविन्द ' घरों में ही लगा ली हमने ।
9
मुफलिसी जहां की बस मैं जबान रखता हूं ।
आज हाथ में अपने आसमान रखता हूं ।
गौर कर जरा बस्ती पे कभी खुदा मेरे ।
हैं गरीब सब तो घर में दुकान रखता हूं ।
है खबर जमीं तो तुमने खरीद ली सारी ।
आसमान पे , लो अपना मकान रखता हूं ।
तुम्हें गर लगाना है आग तो लगा दो , पर ।
आँख में जहाँ वालों मैं तूफ़ान रखता हूं ।
जानते रहे बेईमान है खुदा हम भी ।
इसलिए बेईमां के घर पे जान रखता हूं ।
काश इश्क का वो आगाज तो करें गर 'मैं ।
इक तरफ मुहब्बत ए कद्रदान रखता हूं ।
जब यहाँ वहाँ का अरविन्द ने जमीं छोड़ा ।
हाथ में तेरे लो ' सारा जहान रखता हूं ।
10
हुआ हूँ ख़ाक यहां रह गया ' धुआं मेरा ।
किसी में दम है तो रोको ये कारवां मेरा ।
सभी ये कहते है अक्सर ज़मीन मेरी है ।
कोई ये क्यों नहीं कहता है आसमां मेरा ।
बदन से रूह तलक मैं ही बस गया तुझमें ।
मिटायेगा तू कहाँ तक बता निशां मेरा ।
मेरे लबों से हँसी तू मिटा न पायेगी ।
ए ज़िन्दगानी ले कितना भी इम्तिहां मेरा ।
नहीं है खौफ कि दुश्मन जहां हुआ कैसे ।
कि अब जहां का खुदा खुद है मेहरबां मेरा ।
कई हज़ार फफोले हैं पावँ में लेकिन ।
खुदा गवाह ' अभी अज़्म है जवां मेरा ।
ये और बात कि मेरी ज़बान कट जाये ।
मगर बदल नहीं सकता कभी बयां मेरा ।
फकत यही न कि तुमसे ये दिल लगा बैठे ।
रोशन तुम्ही से है सारा ये आशियां मेरा ।
वो दिल्लगी हुई अरविन्द खत्म सारी पर ।
ये दिल भी तो नहीं भटका कहाँ कहाँ मेरा ।
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१.पूर्ण नाम: - अरविन्द शुक्ला
२.साहित्यिक उपनाम: - कुमार अरविन्द
३.जन्मतिथि: - 31/07/1994
४.वर्तमान पता: - बंजरिया , पोस्ट - विशुनपुर संगम , इंटियाथोक
५.शहर - गोंडा
६.जिला - गोंडा ( 271202 )
७.राज्य - उत्तर प्रदेश
८.विधा: - गजल
१०.अणुडाक (ईमेल): - arvindshukla91700@gmail.com
११.अंतरताना (वेबसाइट या ब्लॉग) : - कोई नहीं
बहुत बढ़िया ग़ज़लें
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना हेतु बधाई,
जवाब देंहटाएंमेरे हिन्दी ब्लॉग "हिन्दी कविता मंच" पर "अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस" के नए पोस्ट "मजदूर - https://hindikavitamanch.blogspot.in/2018/05/world-labor-day.html " पर भी पधारे और अपने विचार प्रकट करें|
काबिले गौर बहुत काबिले तारीफ़ कहन.
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