लाइन में लगना लाइन में लगना कोई सामान्य-सी बात नहीं है. सच तो यह है कि आधा घंटा लाइन में लगने से जितने अनुभव हमें प्राप्त होते हैं, वे कई बा...
लाइन में लगना
लाइन में लगना कोई सामान्य-सी बात नहीं है. सच तो यह है कि आधा घंटा लाइन में लगने से जितने अनुभव हमें प्राप्त होते हैं, वे कई बार आधे बरस में मिले अनुभवों से भी अधिक होते हैं.
अपने आम जीवन में तो आप बस भागदौड़ में ही रहते हैं. दो पल रूककर कुछ सोचने का मौका ही कहाँ मिलता है आपको, मगर जब आप लाइन में लगे होते हैं, तो आपके पास लाइन में लगने के अलावा और कोई काम नहीं होता. ऐसे में आप अपने आसपास के वातावरण को निहारने लगते हैं, तब आप लाइन में अपने से आगे खड़े आदमी (या औरत) की वेशभूषा, हेयर स्टाइल या जूतों का गहन अवलोकन कर सकते हैं; उस इमारत की छत की ओर नज़र डालकर यह देख सकते हैं कि वहाँ मकड़ी के जाले लगे हैं या नहीं; दरवाज़ों और खिड़कियों के डिजाइन को निहार सकते हैं. वग़ैरह-वग़ैरह अपने आम जीवन में ऐसा करने का मौका आपको कभी मिलता है भला?
आप लाइन में लगे होते हैं, तो आपको कई ऐसे लोग मिलेंगे जो आएंगे और झट-से लाइन के शुरू में लग जाएंगे. पूछने पर कहेंगे कि वे तो वरिष्ठ नागरिक (सीनियर सिटिज़न) हैं. अब अगर उन लोगों का चेहरा-मोहरा इस बात की गवाही न भी देता हो कि वे लोग वरिष्ठ नागरिक हैं, तो भी आप कुछ नहीं कर सकते. आखि़र आप ऐसे लोगों से उनका आयु प्रमाणपत्र तो माँगने से रहे. और अगर बेशरमी से माँग भी लिया जाए तो रटा-रटाया यही जवाब मिलेगा कि आयु प्रमाणपत्र क्या हम साथ लिए-लिए घूमते हैं. ऐसे में आप बस पानी पी-पीकर अपनी उम्र को कोस सकते हैं और यह सोच-सोचकर आहें भर सकते हैं कि हाय! हम वरिष्ठ नागरिक क्यों न हुए.
लाइन के शुरू में जाकर अधिकारपूर्वक खड़े होनेवाले इन लोगों के अलावा ऐसे लोगों से भी वास्ता पड़ता है जो पहले तो लाइन के पास आकर चुपचाप खड़े रहेंगे. फिर इधर-उधर की बातें करके एक-दो लोगों से अपनापा जोड़ेंगे और फिर मौका देखकर चुपचाप लाइन में लग जाएंगे. ऐसे बेशरम घुसपैठियों को आप लाख मना करते रहें, वे अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आते.
इसके अलावा ऐसे लोग भी होते हैं जो लाइन में घुसपैठ तो नहीं करते, मगर लाइन में पहले से खड़े किसी जने को पटाकर अपना बिल वगैरह उसे पकड़ा दिया करते हैं. ऐसे में आपके पास बस जल-भुनकर कबाब हो जाने के अलावा और चारा नहीं बचता.
कई बार यूँ भी होता है कि लाइन में लगे लोग लाइन में ही लगे रहते हैं और कोई जना पिछले दरवाजे़ से बड़े अधिकारपूर्वक काउंटर पर बैठे कर्मचारी से अपना काम करवा ले जाता है. ऐसे में लाइन में लगे लोगों के पास (अपना-अपना) सिर धुनने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता.
वैसे लाइन की महिमा भी न्यारी होती है. कई बार आप जल्दी में होते हैं और यह चाहते हैं कि लाइन छोटी हो तो अच्छा है, लेकिन पता चलता है कि लाइन तो हनुमान की पूँछ की तरह लम्बी है. इसके विपरीत कई बार आप यह सोचकर कि लाइन तो खूब लम्बी होगी ही, आधे-पौने घंटे के समय का बन्दोबस्त करके लाइन में लगने जाते हैं, लेकिन जाकर पता चलता है कि वहाँ तो लाइन नाम की चिड़िया ही मौजूद नहीं है. आप एक-दो मिनट में ही फारिग होकर फिर धूल चाटने सड़क पर होते हैं.
आमतौर पर लाइन आगे की तरफ सरकती रहती है, भले ही उसकी रफ़्तार कैसी हो, मगर लाइन के आगे सरकने पर कभी-कभी पूर्ण विराम भी लग जाता है, जब काउंटर पर बैठा कर्मचारी फोन सुनने, चाय पीने या किसी से गप लड़ाने जैसा काम करने लगता है या किसी कारण कुर्सी छोड़कर नदारद ही हो जाता है.
अब जहाँ तक इस लेख की बात है, इसे हमने लाइन में लगे-लगे ही लिखा है. आपके लिए इसे फिलहाल पढ़ना ज़रूरी नहीं. जब आप कभी लाइन में लगे होंगे, तो इसे आराम से पढ़ लीजिएगा.
-0-0-0-0-0-0-
नाम हरीश कुमार ‘अमित’
जन्म 1 मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी);
पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन 700 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. एक कविता संग्रह 'अहसासों की परछाइयाँ', एक कहानी संग्रह 'खौलते पानी का भंवर', एक ग़ज़ल संग्रह 'ज़ख़्म दिल के', एक बाल कथा संग्रह 'ईमानदारी का स्वाद', एक विज्ञान उपन्यास 'दिल्ली से प्लूटो' तथा तीन बाल कविता संग्रह 'गुब्बारे जी', 'चाबी वाला बन्दर' व 'मम्मी-पापा की लड़ाई' प्रकाशित. एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित.
प्रसारण - लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.
पुरस्कार-
(क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994ए 2001ए 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत
(ख) 'जाह्नवी-टी.टी.' कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत
(ग) 'किरचें' नाटक पर साहित्य कला परिाद् (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त
(घ) 'केक' कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त
(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत
(च) 'गुब्बारे जी' बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत
(छ) 'ईमानदारी का स्वाद' बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त
(ज) 'कथादेश' लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत
(झ) 'राट्रधर्म' की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2016 में व्यंग्य पुरस्कृत
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त
पता - 304ए एम.एस.4ए केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56ए गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)
ई-मेल harishkumaramit@yahoo.co.in
COMMENTS