देश विदेश की लोक कथाएँ — पूर्वी अफ्रीका–ज़ंज़ीबार : ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ संकलनकर्ता सुषमा गुप्ता 9 हामदानी [1] एक बार हामदानी नाम का एक आदमी थ...
देश विदेश की लोक कथाएँ — पूर्वी अफ्रीका–ज़ंज़ीबार :
ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ
संकलनकर्ता
सुषमा गुप्ता
9 हामदानी[1]
एक बार हामदानी नाम का एक आदमी था जो इतना गरीब था कि वह बेचारा दरवाजे दरवाजे भीख माँग कर गुजारा करता था।
कुछ दिनों बाद लोग उसको शक की नजर से देखने लगे और उन्होंने उसको भीख देना बन्द कर दिया ताकि वह उनके घर से दूर ही रह सके।
इसके बाद तो उसकी यह हालत हो गयी कि अब वह बेचारा सुबह सुबह कूड़े के ढेर पर जाता और वहाँ से उसको अगर खाने की कोई चीज़ मिलती तो वह खा लेता या फिर कुछ बाजरे के दाने उठा कर खा लेता नहीं तो भूखा ही रह जाता।
एक दिन वह जब कूड़े के ढेर में कुछ ढूँढ रहा था कि उसको एक 10 सैन्ट का सिक्का मिल गया। उसने उसको अपने फटे कपड़े के एक कोने में बाँध लिया। वह उस कूड़े के ढेर में बाजरे के दाने भी ढूँढता रहा पर वे उसको कहीं मिले ही नहीं।
उसने सोचा कि अब तो उसके पास 10 सैन्ट हैं सो वह अब घर जा कर सोयेगा। वह घर गया, ठंडा पानी पिया, जरा सा तम्बाकू अपने मुँह में रखा और सो गया।
अगली सुबह जब वह कूड़े के ढेर में फिर कुछ ढूँढ रहा था तो उसको एक आदमी डंडियों की बनी बहुत बड़ी टोकरी ले जाता हुआ दिखायी दे गया।
उसने उस आदमी को पुकार कर पूछा — “तुम्हारी इस टोकरी में क्या है?”
उस आदमी का नाम मुहादीम[2] था, वह बोला — “हिरन। ”
हामदानी बोला — “यहाँ लाओ उनको, मैं जरा देखूँ तो। ”
पास में ही तीन अमीर आदमी खड़े थे वे मुहादीम से बोले — “तुम बेकार में ही उनको हामदानी के पास ले जाने की तकलीफ कर रहे हो। ”
मुहादीम ने पूछा — “क्यों जनाब?”
“क्योंकि इस आदमी के पास तो एक सैन्ट भी नहीं है। यह हिरन क्या खरीदेगा। ”
मुहादीम बोला — “मुझे पता नहीं था कि इस आदमी के पास बिल्कुल ही पैसे नहीं हैं मुझे लगा कि इसके पास बहुत सारे पैसे होंगे। ”
वे बोले — “नहीं, इसके पास कुछ भी नहीं हैं। ”
एक बोला — “तुम देख नहीं रहे हो कि यह कूड़े के ढेर के पास बैठा है? यह यहाँ रोज आ कर इस कूड़े के ढेर को बाजरे के कुछ दानों के लिये मुर्गी की तरह कुरेदता है ताकि यह ज़िन्दा रह सके।
अगर इसके पास पैसे होते तो अपनी ज़िन्दगी में क्या यह अपने लिये एक वक्त का खाना नहीं खरीद लेता? यह एक हिरन क्या खरीदेगा? और फिर उसका यह करेगा भी क्या। यह अपने लिये तक तोेे खाना जुटा नहीं पाता फिर हिरन को क्या खिलायेगा?”
मुहादीम बोला — “जनाब, मैं तो यहाँ अपनी कुछ चीज़ बेचने आया था। जो भी मुझे बुलायेगा मुझे उसके पास तो जाना ही पड़ेगा। मेरा कोई प्रिय नहीं है और कोई मेरा दुश्मन भी नहीं है। इसने मुझे बुलाया तो मैं इसके पास जा रहा हूँ। ”
पहला आदमी बोला — “ठीक है। तुम्हें हमारे ऊपर विश्वास नहीं है न तो तुम जाओ इसके पास पर हम इसके बारे में सब जानते हैं कि यह कहाँ रहता है और यह क्या खरीद सकता है। ”
दूसरा आदमी बोला — “हाँ हाँ यही बात है। तुमको उससे बात करके पता चल जायेगा कि हम ठीक कह रहे हैं या गलत। ”
इसके बाद तीसरा आदमी बोला — “बादलों से पता चलता है कि बारिश आने वाली है पर हमको कहीं कुछ ऐसा नहीं लगता कि यह कोई पैसा खर्च कर सकता है। ”
मुहादीम बोला — “ठीक है। पर बहुत सारे लोग जो इस आदमी से देखने में कहीं ज़्यादा अमीर लगते हैं मुझे बुलाते हैं और जब मैं उनके पास जा कर अपने हिरन दिखाता हूँ तो कहते हैं कि ये बहुत मँहगे हैं। सो अगर यह आदमी भी यही कहेगा तो मुझे बुरा नहीं लगेगा। इसलिये मैं इसके पास जाता हूँ। ”
उन तीनों में से एक ने कहा — “देखते हैं यह भिखारी क्या खरीदता है। ”
दूसरा बोला — “हुँह, वह क्या कुछ खरीदेगा? जहाँ तक मैं जानता हूँ उसने तीन साल में एक खाना तक तो खरीदा नहीं है वह हिरन क्या खरीदेगा। ऐसा आदमी हिरन खरीद भी कैसे सकता है।
खैर, चलो चल कर देखते हैं। और अगर वह इस बेचारे आदमी को केवल यह बोझा ही यहाँ से वहाँ तक ले जाते हुए देखना चाहता है ताकि वह हिरन देख सके तो हम उसको कसके एक एक छड़ी मारेंगे ताकि वह सीखे कि किसी भले व्यापारी से कैसे बरताव किया जाता है। ”
जब वे सब हामदानी के पास आये तो उन तीनों में से एक ने कहा — “ये रहे हिरन। अब एक खरीदो। तुम उनको केवल देख सकते हो पर खरीद नहीं सकते। ”
लेकिन हामदानी ने उनके कहने पर कोई ध्यान नहीं दिया और उस आदमी से पूछा — “तुमने एक हिरन कितने का दिया हैÆ”
तभी दूसरा आदमी बीच में बोला — “तुम बहुत भोले बन रहे हो। यह तो तुम भी जानते हो और हम भी जानते हैं कि हिरन तो रोज ही 25 सैन्ट के दो बिकते हैं। ”
फिर भी हामदानी ने उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और उस आदमी से बोला — “मैं 10 सैन्ट में एक हिरन खरीदना चाहता हूँ, बोलो दोगे मुझे?”
वे तीनों हँसे और बोले — “10 सैन्ट में एक हिरन? क्यों नहीं, क्यों नहीं। फिर कहोगे कि हिरन खरीदने के लिये मुझे 10 सैन्ट भी दो। क्यों?” और एक आदमी ने उसके गाल पर हाथ से हल्का सा चपत लगा दिया।
इस पर हामदानी ने उससे कहा — “तुमने मेरे गाल पर चपत क्यों मारी जबकि मैंने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा? मैं तो तुमको जानता तक नहीं। मैंने तो इस आदमी को बुलाया था कुछ खरीदने के लिये और तुम अजनबी लोग हमारी खरीद खराब कर रहे हो। ”
फिर उसने अपने फटे कोट के एक कोने में से 10 सैन्ट का एक सिक्का निकाला और मुहादीम को देते हुए कहा — “मेहरबानी करके मुझे 10 सैन्ट का एक हिरन दे दो। ”
इस पर उस आदमी ने पिंजरे में से एक छोटा सा हिरन निकाला और यह कहते हुए उसको थमा दिया कि “यह लो, मैं इसको कीजी पा बुलाता हूँ। ”
फिर वह हिरन बेचने वाला उन तीनों आदमियों की तरफ देख कर हँसा और बोला — “कैसा रहा? तुम लोग जो बढ़िया सफेद कपड़े पहनते हो, पगड़ी बाँधते हो, तलवार रखते हो और पैरों में जूते पहनते हो और जिनके पास बहुत सारी जायदाद है।
और तुमने कहा था कि यह आदमी तो इतना गरीब है कि कुछ भी नहीं खरीद सकता फिर भी उसने 10 सैन्ट का एक हिरन खरीद लिया। मुझे लगता है कि तुम्हारे पास तो आधा हिरन खरीदने के लिये भी पैसे नहीं हैं अगर 5 सैन्ट का भी एक हिरन होता तो। ”
उसके बाद मुहादीम और वे तीनों आदमी अपने अपने रास्ते चले गये।
हामदानी उस कूड़े के ढेर को तब तक उलटता पलटता रहा जब तक उसको उसमें से बाजरे के कुछ दाने नहीं मिल गये – कुछ अपने लिये और कुछ कीजी पा हिरन के लिये। फिर वह भी अपने घर चला गया। उसने अपनी चटाई बिछायी और दोनों साथ साथ सो गये।
कूड़े के ढेर पर जाना, बाजरे के दाने ढूँढना और फिर घर आ कर चटाई बिछा कर सो जाना, यह सब करीब एक हफ्ते तक ही चला था कि एक रात हामदानी की आँख कोई आवाज सुन कर खुल गयी। उसे लगा कि कोई पुकार रहा था “मालिक, मालिक”।
उसने जवाब दिया — “मैं यहाँ हूँ। कौन बुला रहा है मुझे?”
हिरन बोला — “मालिक, मैं पुकार रहा हूँ आपको। ”
हामदानी ने चाराें तरफ देखा तब भी उसे कोई नहीं दिखायी दिया। वह घबरा गया तभी वह हिरन फिर बोला — “मालिक, मैं पुकार रहा हूँ आपको। आपका हिरन। ”
अब तो हामदानी की समझ में ही नहीं आया कि वह बेहोश हो जाये या उठ कर भाग जाये। उसको परेशान सा देख कर कीजी पा बोला — “क्या बात है मालिक, आप इतना क्यों परेशान हो रहे हैं?”
हामदानी बोला — “यह मैं क्या आश्चर्य देख रहा हूँ। ”
हिरन बोला — “आश्चर्य? आपने ऐसा कौन सा आश्चर्य देख लिया मालिक जिसकी वजह से आप इतने परेशान हो गये?”
हामदानी बोला — “यह तो वाकई आश्चर्य है। मैं जाग रहा हूँ या सपना देख रहा हूँ? कौन विश्वास करेगा कि कोई हिरन भी बोल सकता है। ”
कीजी पा हँसा और बोला — “बस इसी लिये? अभी तो इससे भी ज़्यादा आश्चर्यजनक चीज़ें हैं देखने के लिये। पर अब आप वह सुनिये जिस बात के लिये मैंने आपको पुकारा था। ”
“यकीनन, मैं तुम्हारी हर बात सुनूँगा क्योंकि तुम्हारी बात सुने बिना तो मैं रह ही नहीं सकता। ”
कीजी पा बोला — “तो हुआ यों कि मैंने ही आपको अपना मालिक चुना और मैं अब आपके पास से भाग भी नहीं सकता इस लिये मैं चाहता हूँ कि आप मुझसे एक समझौता कर लें और मैं आप से एक वायदा कर लूँ जिसको मैं कभी नहीं तोड़ूँगा। ”
हामदानी बोला — “बोलो, क्या बोलते हो?”
हिरन आगे बोला — “किसी को भी आपको बहुत ज़्यादा देर तक यह जानने की जरूरत नहीं है कि आप बहुत ही गरीब हैं।
ज़िन्दा रहने के लिये यह कूड़े के ढेर से रोज रोज बाजरे के दाने चुनना आपके लिये तो ठीक हो सकता है क्योंकि आपको इसकी आदत पड़ी हुई है क्योंकि इसके बिना आपका काम भी नहीं चल सकता।
पर अगर मैं आपके साथ कुछ दिन और रहा तो आपके पास कोई हिरन नहीं रह जायेगा क्योंकि मैं तो भूख से मर जाऊँगा। कीजी पा मर जायेगा मालिक।
इसलिये अपना खाना खाने के लिये मैं रोज बाहर जाना चाहता हूँ और मैं वायदा करता हूँ कि मैं रोज शाम को आपके पास वापस आ जाऊँगा। ”
हामदानी ने बेमन से उसको बाहर जाने की इजाज़त दे दी।
इतने में सुबह हो गयी था सो कीजी पा बाहर भाग गया। हामदानी उसके पीछे पीछे गया। पर हिरन तो बहुत तेज़ भागता है सो कुछ ही पल में वह हामदानी की नजर से गायब हो गया और हामदानी उसे वहीं खड़ा देखता रह गया।
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और वह अपने हाथ उठा कर चिल्लाया — “ओ मेरी माँ, ओ मेरे बाप, मेरा हिरन तो गया। ”
उसके पड़ोसियों ने जब उसका यह रोना चिल्लाना सुना तो बोले — “तुम बेवकूफ हो और एक बहुत ही बेकार के आदमी हो। ”
एक पड़ोसी बोला — “तुम जाओ और उस कूड़े के ढेर के पास बैठ कर उसे ही कुरेदते रहो। पता नहीं कितनी देर तक, और हो सकता है तब तक जब तक कि तुम्हारी तकदीर से तुमको एक 10 सैन्ट का सिक्का और न मिल जाये।
और अगर तुमको एक 10 सैन्ट का सिक्का मिल भी गया तो भी तुमको तो इतनी भी समझ नहीं कि उससे जा कर कुछ अच्छा खाना खरीद लो। तुम तो उससे एक हिरन खरीद लाओगे और फिर उसको भी भाग जाने दोगे।
अब तुम क्यों रो चिल्ला रहे हो? यह सब मुसीबत तो तुम्हारी अपनी बुलायी हुई है। ”
हामदानी को यह हमदर्दी अच्छी लगी और वह तुरन्त ही फिर अपने कूड़े के ढेर के पास चला गया। वहाँ से कुछ बाजरे के दाने बीने और घर वापस आ गया। आज उसको अपना घर बहुत अकेला लग रहा था क्योंकि आज कई दिनों के बाद कीजी पा नहीं था न घर में।
शाम को कीजी पा दौड़ता हुआ घर आ गया। हामदानी उसको देख कर बहुत खुश हो गया “ओह मेरे दोस्त तुम वापस आ गये?”
कीजी पा बोला — “मैंने आपसे वायदा किया था न कि मैं रोज सुबह अपने खाने की तलाश में जाऊँगा और शाम को घर वापस आ जाऊँगा। सो मैं आ गया।
मुझे तभी लग रहा था जब आपने मुझे खरीदा था कि आपके पास उस समय जितना भी पैसा था वह सारा पैसा आपने मेरे ऊपर खर्च कर दिया था, चाहे वह 10 सैन्ट ही थे।
तब मैं आपको दुख क्यों दूँ? मैं तो ऐसा कर ही नहीं सकता। अगर मैं जाता भी हूँ तो मैं खाना खा कर हमेशा ही शाम को घर वापस आ जाऊँगा। आप बेफिकर रहें। ”
जब पड़ोसियों ने देखा कि हिरन रोज सुबह चला जाता है और रोज शाम को घर वापस आ जाता है तो उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने हामदानी पर शक करना शुरू कर दिया कि वह जादूगर था।
इस सबको होते हुए भी पाँच दिन बीत गये। रोज सुबह हिरन बाहर चला जाता और शाम को घर वापस आ जाता। शाम को आ कर वह अपने मालिक को उन जगहों के हाल सुनाता जहाँ जहाँ वह दिन में हो कर आया था। फिर अपने खाने के बारे में बताता।
छठे दिन जब हिरन एक घने जंगल में कँटीली झाड़ियों में अपना खाना खा रहा था कि उसने उसके पास में उगे हुए एक बड़े पेड़ की जड़ की घास में खुरचना शुरू किया। इत्तफाक से वहाँ उसको एक बड़ा सा चमकीला हीरा मिल गया।
तुरन्त ही उसके मुँह से निकला — “अरे यह तो बहुत बड़ा खजाना है। और अगर मैं गलत नहीं हूँ तो यह तो हीरा है और एक पूरा का पूरा राज्य खरीद सकता है।
उसने सोचा अगर मैं इसको ले जा कर अपने मालिक को दे दूँगा तो लोग उनको मार देंगे क्योंकि वे पूछेंगे कि इतने गरीब आदमी के पास इतना कीमती हीरा कहाँ से आया।
और अगर वह यह जवाब देगा कि मुझे यह पड़ा हुआ मिला तो भी उसका कोई विश्वास नहीं करेगा। और अगर उसने यह कहा कि मुझे किसी ने दिया तो भी कोई उसका विश्वास नहीं करेगा।
मैं अपने मालिक को किसी तरह की मुश्किल में नहीं डालना चाहता। मुझे मालूम है कि मुझे क्या करना चाहिये। मैं किसी ऐसे बड़े आदमी को ढूँढता हूँ जो इसको ठीक से इस्तेमाल कर सके। ”
सो कीजी पा ने वह हीरा एक पत्ते में लपेटा, अपने मुँह में दबाया और जंगल में दौड़ गया। वह दौड़ता गया, दौड़ता गया पर उस दिन उसको कोई शहर ही नजर नहीं आया सो उस दिन वह जंगल में ही सो गया।
सुबह उठ कर वह फिर अपने रास्ते पर चल दिया। पर दूसरा दिन भी पहले दिन की तरह ही गुजर गया।
तीसरे दिन वह फिर सुबह से अपने सफर पर चला। शाम को जा कर उसको कहीं छिटके छिटके घर दिखायी दिये। घर फिर धीरे धीरे बड़े होते गये और घने होते गये। इससे उसको लगा कि वह किसी शहर में पहुँच गया है।
चलते चलते वह शहर की एक बड़ी सड़क पर पहुँच गया जो सुलतान के महल को जाती थी। बस वहाँ से वह बहुत तेज़ी से भाग लिया।
सड़क पर आते जाते लोग हरे पत्तों में लिपटी किसी चीज़ को मुँह में दबाये एक तेज़ी से भागते हुए हिरन को बड़े आश्चर्य से देख रहे थे।
जब कीजी पा सुलतान के महल में पहुँचा तो सुलतान अपने महल के दरवाजे के पास ही बैठा हुआ था। कीजी पा महल के दरवाजे से कुछ दूरी पर ही रुक गया। उसने वह हीरा नीचे डाल दिया और खुद भी हाँफता हुआ उसके पास ही लेट गया।
फिर वह चिल्लाया — “कोई है? कोई है?”
उस देश में ऐसी आवाज बाहर खड़े हो कर कोई तभी लगाता था जब उसको घर में अन्दर घुसना होता था और वह बाहर तब तक इन्तजार करता था जब तक घर में से उसकी आवाज का कोई जवाब नहीं दे देता था।
हिरन को यह आवाज कई बार लगानी पड़ी तब कहीं जा कर सुलतान ने अपने नौकरों से कहा — “देखो तो बाहर यह कौन पुकार रहा है?” एक नौकर ने देख कर बताया कि एक हिरन पुकार रहा है।
सुलतान ने कहा — “ठीक है, उस हिरन को अन्दर बुलाओ। ”
सुलतान के तीन नौकर हिरन को बुलाने के लिये दौड़ पड़े और हिरन से बोले — “चलो, सुलतान ने तुमको अन्दर बुलाया है। ”
सो हिरन अपने मुँह में हीरा दबाये अन्दर आया। उसने हीरा सुलतान के पैरों के पास रख दिया और बोला — “सलाम हुजूर। ”
सुलतान बोला — “सलाम। अल्लाह तुम्हारा भला करे। ”
फिर सुलतान ने अपने नौकरों को एक कालीन और एक बड़ा तकिया लाने के लिये कहा और हिरन को उस पर आराम से बैठने को कहा।
जब हिरन ने मना किया और कहा कि वह वहीं ठीक था जहाँ वह बैठा था तो सुलतान ने उससे उस कालीन पर बैठने की जिद की तो फिर तो कीजी पा को उस पर बैठना ही पड़ा। उस कालीन पर बैठा हुआ वह हिरन एक बड़ा खास इज़्ज़तदार मेहमान लग रहा था।
इसके बाद सुलतान के नौकर हिरन के खाने के लिये कुछ दूध और चावल ले आये। सुलतान ने हिरन से कहा कि वह पहले दूध और चावल खा ले फिर कुछ आराम कर ले तब वह उससे बात करेगा।
हिरन ने कुछ बोलना भी चाहा पर सुलतान उससे कुछ भी सुनने के लिये तैयार नहीं था जब तक कि उसने वे दूध और चावल नहीं खा लिये और थोड़ा आराम नहीं कर लिया।
जब सब कुछ हो चुका तब सुलतान ने हिरन से कहा — “अब बताओ मेरे दोस्त तुम्हें क्या कहना है। ”
कीजी पा बोला — “मुझे मालूम नहीं कि आप इस खबर को कैसी समझेंगे पर सच तो यह है कि मैं आपको बेइज़्ज़त करने के लिये भेजा गया हूँ। मैं आपसे लड़ने के लिये भेजा गया हूँ। मैं आपके पास शादी का पैगाम ले कर आया हूँ। ”
सुलतान बोला — “ओह हिरन, हिरन होते हुए भी तुम बहुत अच्छा बोलना जानते हो। मैं तो खुद ही कोई ऐसा आदमी ढूँढ रहा था जो मुझे बेइज़्ज़त करे, जो मेरे साथ लड़े। मैं तो शादी के लिये बहुत ही बेचैन हो रहा था। आगे बोलो। ”
कीजी पा बोला — “तो आप मेरे लिये अपने मन में कुछ बुरा नहीं सोच रहे हैं न? मैं तो केवल पैगाम लाने वाला हूँ। ”
सुलतान बोला — “नहीं नहीं, बिल्कुल नहीं। आगे बोलो। ”
कीजी पा बोला — “तब आप इसको देखें जो मैं यह ले कर आया हूँ। ”
कह कर उसने पत्तों में लिपटा वह हीरा सुलतान की गोद में डाल दिया। सुलतान ने पत्ता खोला तो उसमें एक बड़ा सा चमकदार हीरा देख कर आश्चर्यचकित हो गया और बोला “सो?”
कीजी पा बोला — “मैं यह हीरा अपने मालिक सुलतान दाराई[3] की तरफ से ले कर आया हूँ। उन्होंने सुना है कि आपके घर में शादी लायक एक बेटी है इसी लिये उन्होंने यह हीरा आपको भेजा है और आपसे वह यह उम्मीद करते है कि आप उनको इस छोटी सी भेंट से ज़्यादा कीमती भेंट न भेजने के लिये माफ करेंगे। ”
सुलतान ने मन में सोचा — “क्या? वह सुलतान इसको छोटी सी भेंट कहते हैं?”
फिर वह हिरन से बोला — “ओह, यह ठीक है, यह ठीक है। मैं राजी हूँ। सुलतान दाराई मेरी बेटी से शादी कर सकते हैं और मुझे उनसे और कोई भी चीज़ नहीं चाहिये। वह खाली हाथ भी मेरी बेटी से शादी करने आ सकते हैं।
और अगर उनके पास ऐसी छोटी छोटी भेंटें और हैं भी तो भी वह उनको अपने घर पर छोड़ कर आ सकते हैं। यही मेरा जवाब है। मुझे उम्मीद है कि तुम अपने मालिक को यह सब बातें साफ साफ कह दोगे। ”
हिरन ने सुलतान को भरोसा दिलाया कि वह उसकी बात ठीक से कह देगा। फिर वह बोला — “ठीक है अब मैं सीधा अपने मालिक के पास जाता हूँ और 11 दिन के अन्दर अन्दर हम वापस लौट कर आते हैं। ” दोनों ने एक दूसरे को सलाम किया और हिरन वहाँ से चला गया।
इस बीच का हामदानी का समय बहुत ही मुश्किल से निकला। कीजी पा के गायब हो जाने के बाद वह कई दिनों तक उसको ढूँढता हुआ इधर से उधर घूमता रहा। पड़ोसी उसके ऊपर फिर हँसे। हिरन के खोने और पड़ोसियों के हँसने से तो वह पागल सा ही हो गया था।
एक शाम जब वह सोने जा रहा था तो कीजी पा घर में घुसा। उसको देख कर वह अपने बिस्तर से कूद पड़ा और अपने हिरन को गले लगा लिया। उसको गले लगा कर वह काफी देर तक रोता रहा।
जब हिरन ने देखा कि मालिक का अब काफी रोना हो गया तो वह बोला — “मालिक, अब आप यहाँ चुपचाप बैठिये। आज मैं आपकेे लिये एक बहुत ही अच्छी खबर ले कर आया हूँ। ”
लेकिन वह भिखारी तो अपने हिरन को गले से लगाये हुए रोये ही जा रहा था “मैं सोच रहा था कि मेरा कीजी पा मर गया। ”
हिरन बोला — “देखिये मालिक, मैं मरा नहीं हूँ ज़िन्दा हूँ। अब आप मेरी खुशखबरी सुनने के लिये जरा सँभल जाइये और फिर जैसा मैं कहता हूँ वैसा ही कीजिये। ”
भिखारी बोला — “बोलो बोलो मुझे क्या करना है मैं वही करूँगा जो तुम कहोगे। अगर तुम कहोगे कि तुम पीठ के बल लेट जाओ और पहाड़ी से लुढ़क जाओ तो मैं वह भी कर लूँगा। ”
हिरन बोला — “अभी मैं बहुत सारी बातें आपको नहीं समझा सकता लेकिन मैं अभी केवल इतना ही कह सकता हूँ कि मैंने बहुत किस्म के खाने देखे हैं, जो खाने लायक हैं वह भी और जो नहीं खाने लायक हैं वह भी, पर जो खाना आज मैं आपको खिलाने जा रहा हूँ वह बहुत मीठा है। ”
हामदानी बोला — “क्या दुनियाँ में कोई ऐसी चीज़ भी है जो पूरी तरीके से अच्छी हो? क्योंकि हर चीज़ में अच्छाई और बुराई दोनों ही होते हैं। खाना जो तीखा और मीठा दोनों होता है वही अच्छा होता है लेकिन जिस खाने में केवल मिठास होती है क्या वह नुकसान नहीं करता?”
हिरन जँभाई लेते हुए बोला — “मैं अभी आपसे बहुत सारी बातें नहीं कर सकता क्योंकि मुझे नींद आ रही है। अभी सोते हैं। कल सुबह उठ कर बस आपको मेरे पीछे पीछे चलना है। ” यह कह कर हिरन तो वहीं सो गया तो हामदानी भी सोने चला गया।
सुबह उठते ही दोनों चल दिये हिरन आगे आगे, और भिखारी पीछे पीछे। पाँच दिन तक वे जंगल में चलते रहे। पाँचवें दिन वे एक नदी के पास आये। वहाँ आ कर हिरन ने भिखारी से कहा — “अब आप यहाँ पर लेट जाइये। ”
भिखारी लेट गया तो हिरन ने उसको बहुत मारा, और इतना मारा कि वह बेचारा चिल्ला पड़ा — “रुक जाओ, रुक जाओ, तुम मुझे इतना क्यों मार रहे हो?”
हिरन रुक गया और बोला — “ठीक है ठीक है अब मैं आपको और नहीं मारता। अब मैं चलता हूँ पर जब तक मैं लौटूँ नहीं आप यहीं रहियेगा और किसी भी हालत में यह जगह नहीं छोड़ियेगा। ”
कह कर हिरन भाग गया और 10 बजे सुबह ही सुलतान के महल पहुँच गया।
जिस दिन से कीजी पा सुलतान के महल से गया था उसी दिन से सुलतान ने अपनी सड़कों पर इस उम्मीद में अपने बहुत सारे आदमी खड़े कर रखे थे कि पता नहीं सुलतान दाराई कब आ जायें।
सो जैसे ही एक आदमी ने हिरन को आते देखा वह सुलतान से कहने गया — “सुलतान, ओ सुलतान, सुलतान दाराई आ रहे हैं। मैंने अभी अभी कीजी पा को इधर ही आते देखा है। ” सुलतान और उसके आदमी सब सुलतान दाराई को मिलने के लिये तैयार हो गये।
पर जब सुलतान सुलतान दाराई को लेने के लिये शहर से कुछ दूरी पर गया तो देख कर आश्चर्यचकित रह गया कि हिरन तो अकेला ही चला आ रहा था। हिरन जब पास आ गया तो बोला — “सलाम मालिक। ”
सुलतान ने बड़ी नम्र आवाज में उसके सलाम का जवाब दिया और उससे उसकी खबर पूछी। कीजी पा बोला — “बस कुछ न पूछिये मालिक। मैं बड़ी मुश्किल से चल कर यहाँ तक आया हूँ और खबर भी अच्छी नहीं है। ”
सुलतान ने उसे तसल्ली दे कर पूछा — “कीजी पा कुछ बोलो तो सही कि हुआ क्या है। ”
कीजी पा बोला — “बहुत बुरा हुआ है सुलतान बहुत बुरा हुआ है। सुलतान दाराई और मैं दोनों यहाँ आ रहे थे। काफी दूर तक तो हम लोग ठीक ही आ गये पर जब हम घने जंगल में पहुँचे तो रास्ते में हमें कुछ डाकू मिल गये।
डाकुओं ने मेरे मालिक को पकड़ लिया और बाँध कर उनको खूब मारा। उन्होंने हम जो शादी के लिये सामान ले कर आ रहे थे वह सब भी लूट लिया। यहाँ तक कि वे उनके शरीर के कपड़े भी ले गये। उफ, यह सब क्या हो गया। ”
सुलतान बेचारा तो यह सब सुन कर बहुत परेशान हो उठा। वह बोला — “हमें तुरन्त ही सुलतान दाराई की सहायता के लिये चलना चाहिये। ” और वह तुरन्त ही घर की तरफ वापस चल दिया।
वहाँ जा कर उसने अपने एक आदमी को उसके अस्तबल का सबसे अच्छा घोड़ा तैयार करने और उस पर सबसे अच्छी जीन[4] कसने के लिये कहा। और एक दासी को अपनी आलमारी में से पहनने के कपड़ों का एक थैला लाने के लिये कहा।
जब वह कपड़ों का थैला ले आयी तो उसने उस थैले में से एक नीचे पहनने वाला कपड़ा, एक सफेद लम्बा चोगा, एक काली जैकेट कपड़ों के ऊपर पहनने के लिये, एक शाल कमर में बाँधने के लिये और एक पगड़ी निकाल ली। वे सब बहुत बढ़िया कपड़ों के थे।
फिर उसने सोने की मूठ की एक तलवार, सोने का बारीक काम की गयी एक छोटी कटार[5] और एक बहुत ही बढ़िया छड़ी भी साथ में ले ली।
फिर वह कीजी पा से बोला — “मेरे कुछ सिपाही साथ ले लो जो ये सब चीजें सुलतान दाराई को ले जा कर दे देंगे ताकि वह ठीक से तैयार हो कर मेरे पास आ सके। ”
कीजी पा बोला — “क्या मैं ये सिपाही अपने सुलतान के सामने ले जा कर उनको शरमिन्दा करूँगा? नहीं नहीं सुलतान, नहीं। वह वहाँ पर लुटे हुए और पिटे हुए पड़े हैं। ऐसी हालत में तो मैं उनको किसी को देखने भी नहीं दूँगा। यह सब मैं उनके लिये खुद ही ले कर जाऊँगा। ”
सुलतान बोला — “पर यह घोड़ा है, ये कपड़े हैं, ये हथियार हैं। तुम एक छोटे से हिरन इतना सब कैसे ले कर जाओगे?”
कीजी पा बोला — “आप यह सब सामान इस घोड़े की पीठ पर लाद दीजिये। घोड़े की लगाम का एक सिरा उसकी गरदन से बाँध दीजिये और दूसरा सिरा मेरे मुँह में दे दीजिये। बस मैं यह सब सामान ले जाऊँगा। ”
सुलतान ने ऐसा ही किया और सबके देखते देखते कीजी पा वह सब सामान ले कर वहाँ से चल दिया। यह सब देख कर लोग उसकी बहुत तारीफ करने लगे।
जब कीजी पा अपने मालिक के पास आया तो उसने अपने मालिक को वहीं नदी के पास लेटा पाया। वह कीजी पा को देख कर बहुत खुश हुआ।
कीजी पा आते ही बोला — “देखिये मालिक मैंने आपको जिस मीठे खाने का वायदा किया था वह मैं ले आया हूँ। अब आप उठ जायें और नहा धो कर ये कपड़े पहन कर तैयार हो जायें। ”
भिखारी को तो नहाने धोने की आदत थी नहीं सो वह बड़ी हिचक के साथ नदी में घुस कर थोड़े से पानी से अपने आपको भिगोने लगा।
कीजी पा बोला — “मालिक इस थोड़े से पानी से कुछ नहीं होगा। आप पानी के अन्दर ठीक से घुस कर नहाइये। ”
भिखारी बोला — “यहाँ तो बहुत सारा पानी है और जहाँ बहुत सारा पानी होता है वहाँ बहुत भयानक किस्म के जानवर होते हैं। ”
कीजी पा आश्चर्य से बोला — “जानवर? किस किस्म के जानवर?”
“यही जैसे मगर, पानी की छिपकलियाँ, साँप, मेंढक आदि और वे लोगों को काट लेते हैं। मुझे उनसे बहुत डर लगता है। ”
कीजी पा बोला — “अच्छा अच्छा ठीक है। आप जो चाहें करें पर अपने आपको ठीक से मल मल कर साफ कर लें। हाँ अपने दाँत भी बालू से मल कर ठीक से साफ कर लें वे बहुत गन्दे हैं। ”
जल्दी ही भिखारी ठीक से नहा लिया और उसने अपने दाँत भी ठीक से साफ कर लिये। नहाने के बाद तो उसकी शक्ल ही बदल गयी थी।
कीजी पा ने उसको वे कपड़े पहनने को कहा जो सुलतान ने उसके लिये दिये थे। वह बोला — “सूरज डूबने वाला है और हमको इससे पहले ही यहाँ से चल देना चाहिये था। ”
भिखारी ने जल्दी से सुलतान के भेजे हुए कपड़े पहने, उसके भेजे हुए घोड़े पर सवार हुआ और चल दिया – कीजी पा आगे आगे और भिखारी घोड़े पर पीछे पीछे।
कुछ दूर जाने पर हिरन रुक गया और भिखारी से बोला — “जो कोई भी आपको यहाँ देखेगा उसको यह पता नहीं होगा कि आप वही आदमी हैं जो कूड़े के ढेर में से बाजरे के दाने बीन कर खाया करते थे।
और अगर वे आपके शहर जा कर भी आपके बारे में पूछताछ करेंगे तो भी वे आपको पहचान नही पायेंगे क्योंकि आज आपका चेहरा और दाँत बहुत साफ हैं। आपकी शक्ल तो ठीक ठाक है पर एक बात के लिये सावधान रहियेगा।
जहाँ हम जा रहे हैं वहाँ के सुलतान की बेटी से मैंने आपकी शादी पक्की कर दी है। जो भेंट देनी होती है वह भी मैंने दे दी है। आप बस वहाँ चुप रहियेगा।
“आप कैसे हैं?” और “और क्या खबर है?” के सिवाय और कुछ मत कहियेगा। आपकी तरफ से मैं ही बात कर लूँगा। ”
भिखारी बोला — “ठीक है, यह मेरे लिये बिल्कुल ठीक है। ”
कीजी पा बोला — “क्या आपको मालूम है कि आपका नाम क्या है?”
“हाँ हाँ मुझे मालूम है मेरा नाम क्या है। ”
“क्या है आपका नाम?”
“मेरा नाम हामदानी है। ”
कीजी पा हँसा और बोला — “नहीं, अब नहीं। अब आपका नाम हामदानी नहीं है बल्कि अब से आपका नाम सुलतान दाराई है। ”
“ठीक है। ”
वे लोग फिर आगे चले। थोड़ी ही दूर चलने के बाद उनको सुलतान के सिपाही दिखायी देखने लगे। उनमें से 14 सिपाही उनके साथ साथ चल दिये। कुछ और आगे जाने पर उनको सुलतान, वज़ीर, अमीर, जज आदि भी दिखायी दिये। ये सब उनसे मिलने के लिये वहाँ आये हुए थे।
कीजी पा बोला — “अब आप अपने घोड़े पर से उतर कर अपने ससुर जी को सलाम करिये। वह वहाँ बीच में हल्के नीले रंग की जैकेट पहने खड़े हैं। ”
भिखारी बोला — “ठीक है। ” और वह अपने घोड़े पर से उतरा और दोनों सुलतानों ने एक दूसरे से हाथ मिलाये, एक दूसरे को चूमा और फिर दोनों सुलतान के महल की तरफ चल दिये।
सब लोगों की बहुत बड़ी दावत हुई, खुशियाँ मनायी गयीं और वे सब लोग रात गये तक बातें करते रहे। इस बीच सुलतान दाराई और हिरन अन्दर के कमरे में थे। तीन सिपाही उनकी सेवा और हिफाजत के लिये उनके कमरे के बाहर खड़े थेे।
सुबह होने पर कीजी पा सुलतान के पास गया और बोला — “अब हम लोग वह काम कर लें जिसके लिये हम यहाँ आये हैं। आपकी बेटी की शादी सुलतान दाराई से कर दी जाये। जितनी जल्दी आप शादी कर देंगे सुलतान को अच्छा लगेगा। ”
सुलतान बोला — “बिल्कुल ठीक। दुलहिन तैयार है। म्वाली मू[6] को बुलाया जाये और शादी का इन्तजाम किया जाये। ” म्वाली मू आया तो सुलतान ने उसको अपनी बेटी की शादी सुलतान दाराई से करने को कहा। म्वाली मू ने दोनों की शादी करा दी।
अगले दिन सुबह कीजी पा अपने मालिक से बोला — “मालिक मैं करीब एक हफ्ते के लिये बाहर जा रहा हूँ। जब तक मैं लौटूँ तब तक आप यहीं रहियेगा। ”
फिर वह सुलतान के पास गया और बोला — “सुलतान जी, यह सब तो हो गया। अब मुझे मेरे सुलतान ने हुकुम दिया है कि मैं उनके घर जाऊँ और उसे ठीक करके आऊँ। उन्होंने मुझे एक हफ्ते के अन्दर अन्दर आने के लिये कहा है। जब तक मैं लौट कर आऊँ वे यहीं रहेंगे। ”
सुलतान ने पूछा — “तुमको कुछ सिपाही तो अपनी सहायता के लिये नहीं चाहिये?”
हिरन बोला — “नहीं, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। मुझे अब किसी की जरूरत नहीं है। बस जब तक मैं लौट कर आऊँ तब तक आप मेरे सुलतान का ख्याल रखियेगा। ”
“ठीक है। ” और सुलतान से विदा ले कर हिरन अपने सफर पर चल दिया।
लेकिन कीजी पा अपने पुराने गाँव नहीं गया। वह वहाँ से दूसरी सड़क पकड़ कर एक दूसरे बहुत ही अच्छे शहर में गया।
वहाँ सब कुछ बहुत अच्छा था परन्तु उसने देखा कि वहाँ कोई रहता नहीं था। उसे वहाँ न तो कोई आदमी दिखायी दिया, न ही कोई औरत और न ही कोई बच्चा।
बड़ी सड़क पर चल कर उसके आखीर में वह एक बहुत ही बड़े और सुन्दर मकान के सामने आ खड़ा हुआ। ऐसा मकान तो उसने पहले कभी नहीं देखा था। वह मकान नीलम, फिरोजा और कीमती पत्थरों[7] का बना हुआ था।
उसने सोचा कि यही मकान उसके मालिक के लिये ठीक रहेगा। देखूँ तो कि यह मकान भी इस शहर के दूसरे मकानों की तरह से खाली है या कोई यहाँ रहता है? सो उसने उस मकान का दरवाजा खटखटाया।
कीजी पा के “कोई है? कोई है?” कई बार पुकारने पर भी अन्दर से कोई नहीं बोला तो कीजी पा ने सोचा — “यह बड़ी अजीब सी बात है। अगर कोई अन्दर नहीं है तो घर का दरवाजा बाहर से बन्द होना चाहिये और अगर कोई अन्दर है तो वह अन्दर से बोला क्यों नहीं?
हो सकता है कि यहाँ रहने वाले घर के किसी दूसरे हिस्से में हों या सो रहे हों। मैं थोड़ा ज़ोर से पुकारता हूँ। ”
उसने फिर ज़ोर से पुकारा तो तुरन्त ही एक बुढ़िया ने अन्दर से ही जवाब दिया — “कौन है जो इतनी ज़ोर से चिल्ला रहा हैÆ”
कीजी पा बोला — “मैं हूँ आपका पोता दादी माँ। ”
उस बुढ़िया ने जवाब दिया — “अगर तुम मेरे पोते हो तो तुरन्त अपने घर वापस चले जाओ। यहाँ आ कर तुम खुद भी मत मरो और मुझे भी मत मारो। ”
कीजी पा बोला — “दादी माँ, मुझे अन्दर आने दो मैं आपसे कुछ बात करना चाहता हूँ। ”
वह बुढ़िया फिर बोली — “मेरे प्रिय पोते, मैं तुम्हारे लिये दरवाजा इसलिये नहीं खोल रही क्योंकि दरवाजा खोलने पर मेरी और तुम्हारी दोनों की ज़िन्दगी के लिये खतरा है। ”
कीजी पा फिर बोला — “दादी माँ, चिन्ता न करो। हम दोनों कम से कम कुछ देर के लिये तो सुरक्षित हैं ही इसलिये आप दरवाजा खोलें और मुझे अन्दर आ कर वह कहने दें जो मैं कहना चाहता हूँ। ” सो उस बुढ़िया ने दरवाजा खोल दिया और हिरन अन्दर चला गया।
आपस में एक दूसरे के बारे में पूछने के बाद उस बुढ़िया ने कीजी पा से पूछा — “प्रिय पोते, अब बताओ कि तुम यहाँ क्या कहने आये हो। ”
हिरन बोला — “दादी माँ हमारे यहाँ तो सब ठीक है आपके यहाँ कैसा है?”
वह बुढ़िया रोती हुई बोली — “यहाँ के हाल तो बहुत बुरे हैं बेटा। अगर तुम मरना चाहते हो तो यहाँ रह सकते हो। और मुझे तो यह लगता नहीं कि तुम आज मरना चाहते हो। ”
कीजी पा बोला — “एक मक्खी के लिये शहद में मरना कोई बुरी बात नहीं है और इससे शहद को भी कोई नुकसान नहीं पहुँचता। ”
बुढ़िया फिर बोली — “तुम्हारे लिये यह सब ठीक हो सकता है पोते, पर जब वे लोग नहीं बच सके जिनके पास तलवार और ढाल थे तो तुम जैसी छोटी चीज़ का क्या कहना? मैं तुमसे फिर कहती हूँ कि तुम जहाँ से आये हो वहीं वापस चले जाओ। मुझे तुम्हारी सुरक्षा की तुमसे ज़्यादा चिन्ता है। ”
कीजी पा बोला — “दादी माँ, अभी तो मैं यहाँ से वापस नहीं जा सकता। मैं इस जगह के बारे में कुछ और जानना चाहता हूँ। यह जगह है किसकी?”
बुढ़िया बोली — “ओह मेरे पोते, यहाँ बहुत सारा खजाना है, बहुत सारे आदमी हैं, सैंकड़ों घोड़े हैं। और इसके मालिक का नाम है नीओका एमकू[8], एक बहुत बड़ा साँप। असल में वही इस सारे शहर का भी मालिक है। ”
कीजी पा बोला — “अच्छा तो यह बात है। दादी माँ क्या आप मुझे किसी ऐसी जगह रख सकती हैं जो उस साँप के पास हो और जब वह मेरे पास हो तब मैं उसको वहाँ से मार सकूँÆ”
यह सुन कर वह बेचारी बुढ़िया की तो सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गयी। वह बोली — “अरे अरे ऐसी बात मत करो पोते। तुमने तो बहुत पहले से ही मुझे खतरे में डाल रखा है क्योंकि मुझे यकीन है इस घर में जो कुछ भी कहा जाता है उसको वह साँप कहीं भी हो सब सुन लेता है।
तुम देख रहे हो न कि मैं एक गरीब बुढ़िया हूँ और मुझे उसने यहाँ ये बरतन दे कर अपने लिये खाना बनाने के लिये रखा है। जब वह साँप आता है तब हवा चलनी शुरू हो जाती है। धूल ऐसे उड़नी शुरू हो जाती है जैसे आँधी आने वाली है।
वह जब आँगन में आ जाता है तो यहाँ से वह तभी हटता है जब उसका पेट भर जाता है। फिर वह अन्दर पानी पीने जाता है। जब वह यह सब कर लेता है तो फिर चला जाता है। जब सूरज सिर पर चढ़ आता है तब वह फिर यही सब करता है।
मैं तुम्हें उसके बारे में एक बात और बता दूँ, और वह यह कि उसके सात सिर हैं। उसके बारे में यह सब सुन कर अब तुम क्या सोचते हो कि क्या तुम उसका मुकाबला कर सकते हो?”
कीजी पा बोला — “देखिये दादी माँ, आप मेरी बिल्कुल चिन्ता न करें। आप मुझे बस यह बतायें कि क्या इस बड़े साँप के पास कोई तलवार भी है?”
“हाँ है न। यह लो। ” कह कर वह बुढ़िया अन्दर गयी और एक चमचमाती तेज धार वाली तलवार निकाल लायी और कीजी पा को थमा दी।
फिर बोली — “इसमें चिन्ता करने की क्या बात है, हम लोग तो पहले से ही मरे हुए हैं। ”
कीजी पा बोला — “देखते हैं क्या होता है। ”
तभी ज़ोर की हवा चलने लगी और धूल ऐसे उड़ने लगीे जैसे कि आँधी आने वाली हो। यह देख कर वह बुढ़िया चिल्लायी — “तुम सुन रहे हो न यह आँधी की आवाज, वह आ रहा है। ”
कीजी पा बोला — “हुँह, अगर वह बड़ा है तो मैं भी बड़ा हूँ बल्कि मुझे तो यह भी फायदा है कि मैं घर के अन्दर हूँ। जानवरों के एक बाड़े में दो साँड़ नहीं रह सकते। इस घर में या तो वह रहेगा या मैं। ”
बुढ़िया बेचारी समझ ही नहीं पा रही थी कि वह किस मुश्किल में आ फँसी थी फिर भी वह छोटे से हिरन के भरोसे पर मुस्कुरा दी। वह बार बार हिरन को याद दिलाती रही कि इस साँप ने तलवार और ढाल लिये हुए कितने सारे लोग मार दिये हैं।
हिरन बार बार यह सब सुन कर झल्ला गया और बोला — “आप अपनी ये बातें बन्द करिये दादी माँ। आप केले का रंग और साइज़ देख कर केले का अन्दाज नहीं लगा सकतीं। ज़रा इन्तजार कीजिये और फिर देखिये कि क्या होता है। ”
थोड़ी ही देर मे वह बड़ा साँप नीओका एमकू अपने आँगन में आ गया और चारों तरफ घूम घूम कर सारे बरतनों का सामान खा गया। फिर वह दरवाजे के पास आया और बोला — “ओ बुढ़िया, यह अन्दर आज किसी नयी तरह की खुशबू कैसी आ रही है?”
बुढ़िया बोली — “किसी तरह की भी नहीं। मैं तो यहाँ इतनी देर से काम कर रही थी कि मुझे अपने आपको देखने का भी समय नहीं मिला। हाँ आज सुबह ही मैंने थोड़ी सी खुशबू अपने कपड़ों में जरूर लगायी थी आपको उसी की खुशबू आ रही होगी। ”
इस समय कीजी पा ने अपनी तलवार बाहर खींच ली थी और वह दरवाजे के अन्दर की तरफ खड़ा था सो जैसे ही साँप ने अपना सिर घर के अन्दर किया कीजी पा ने उसका सिर इतनी जल्दी से काट दिया कि साँप को पता ही नहीं चला।
फिर साँप ने अपना दूसरा सिर अन्दर किया तो कीजी पा ने उसको भी वैसे ही काट दिया। इस बार साँप को कुछ लगा तो वह बोला — “अन्दर कौन है जो मुझे इस तरह खुजला रहा हैÆ”
फिर उसने अपना तीसरा सिर अन्दर किया तो वह भी इसी तरह काट दिया गया। इस तरह कीजी पा ने उसके छह सिर काट दिये।
अब साँप ने अपना सातवाँ सिर अन्दर किया तो हिरन चिल्लाया — “अब तुम्हारा समय आ गया है। तुम बहुत सारे पेड़ों पर चढ़ चुके हो पर तुम इस पेड़ पर नहीं चढ़ सकते। ” और यह कह कर उसने उसका आखिरी सिर भी काट दिया।
पर फिर वह खुद बेहोश हो गया।
हालाँकि वह बुढ़िया 75 साल की थी फिर भी साँप को मरते देख कर वह एक नौ साल की बच्ची की तरह खुशी से कूद पड़ी, चिल्ला पड़ी और हँसने लगी। फिर वह पानी लाने गयी और पानी ला कर हिरन के ऊपर छिड़का। उसका सिर तब तक इधर उधर घुमाया जब तक कि उसको छींक नहीं आ गयी।
फिर उसने हिरन की हवा की, उसका शरीर सहलाया और तब तक देखभाल की जब तक उसको ठीक से होश नहीं आ गया। जैसे ही उसको होश आया वह बुढ़िया बहुत खुश हो गयी और बोली — “मेरे पोते, कौन जानता था कि तुम उसका मुकाबला कर सकते हो?”
कीजी पा बोला — “चलिये दादी माँ, अब सब खत्म हो गया। अब आप मुझे वह सब कुछ दिखाइये जो इस घर में है। ” बुढ़िया ने हिरन को ऊपर से ले कर नीचे तक सब कुछ दिखा दिया।
उसने कीजी पा को मँहगे खाने के सामान से और दूसरे सामान से और बहुत सारे लोगों से भरे सारे कमरे दिखाये। बहुत सारे लोग उस साँप ने बन्दी बना कर रखे हुए थे उसने हिरन को वे भी दिखाये।
कीजी पा ने बुढ़िया से पूछा कि साँप के मरने के बाद उसके सामान पर कब्जा करने वाला और कोई तो नहीं है। वह बोली “नहीं और कोई नहीं है अब यह सब तुम्हारा ही है। ”
कीजी पा बोला — “ठीक है। जब तक मैं अपने मालिक को ले कर आता हूँ तब तक आप इस सबकी देखभाल कीजिये। यह जगह अब मेरे मालिक की है। ”
कीजी पा ने तीन दिन तक वहाँ ठहर कर उस घर को देखा और सोचा “ंमैंने अपने मालिक के लिये जो कुछ किया है उसे देख कर वह बहुत खुश होंगे और जैसी ज़िन्दगी वह बिता रहे थे उसके मुकाबले में इस ज़िन्दगी की बहुत तारीफ करेंगे।
और जहाँ तक उनके ससुर का सवाल है उनके तो शहर भर में इस जैसा एक भी मकान नहीं है। ”
चौथे दिन वह वहाँ से चल दिया और ठीक समय से अपने मालिक के पास आ गया। सुलतान उसको देख कर बहुत खुश हुआ और उसका अपना मालिक तो इतना खुश हुआ जैसे उसको नयी ज़िन्दगी मिल गयी हो क्याेंकि कीजी पा के बिना वह बहुत अकेला महसूस कर रहा था।
कुछ देर बाद कीजी पा ने अपने मालिक से कहा कि आज से चार दिन बाद वह अपनी पत्नी के साथ अपने घर चलने के लिये तैयार हो जायें।
फिर वह सुलतान के पास गया और उससे कहा — “सुलतान दाराई चार दिन के बाद अपनी पत्नी के साथ अपने राज्य जाना चाहेंगे। ”
यह सुन कर पहले तो सुलतान ने मना किया पर फिर अपने दामाद[9] की इच्छा के अनुसार अपनी बेटी को विदा करने को तैयार हो गया।
जाने वाले दिन सुलतान दाराई को छोड़ने के लिये बहुत सारे लोग जमा हुए – दुलहिन की नौकरानियाँ, नौकर, घुड़सवार और कीजी पा उन सबके आगे था।
वे लोग तीन दिन तक सफर करते रहे। जब दोपहर होती तो वे आराम करते और हर शाम 5 बजे खाने और सोने के लिये रुक जाते। सुबह जल्दी ही उठते, खाना खाते और फिर चल देते।
इस बीच कीजी पा ने बहुत कम आराम किया। वह सारा दिन काफिले के सभी आदमियों और जानवरों की देखभाल करने में लगा रहता कि सबको खाना ठीक से मिला कि नहीं, सबने ठीक से आराम किया कि नहीं, किसी को कोई तकलीफ तो नहीं है। इसलिये सारा काफिला उसको बहुत प्यार करता था।
चौथे दिन तीसरे पहर के समय कुछ मकान दिखायी देने शुरू हुए तो कारवाँ ने कीजी पा का ध्यान उधर खींचा। कीजी पा बोला — “हाँ यही हमारा शहर है। और तुम लोग वह बड़ा वाला मकान देख रहे हो न, वही हमारे सुलतान दाराई का महल है। ”
उस महल का आँगन तो काफिले के सारे लोगों से भर गया और सुलतान और उसकी पत्नी महल में अन्दर चले गये।
जब उस बुढ़िया ने कीजी पा को देखा तो उसने तो खुशी से नाचना और चिल्लाना शुरू दिया जैसे वह जब नाची थी जब कीजी पा ने नीओका एमकू साँप को मारा था। उसने उसका पैर उठा कर चूम लिया।
कीजी पा बोला — “दादी माँ, यह मेरा नहीं बल्कि हमारे मालिक सुलतान दाराई का काम था। आप जा कर उनके पैर चूमिये। जब भी वह मौजूद हाें तो पहली इज़्ज़त उन्हीं को मिलनी चाहिये। ”
बुढ़िया ने सुलतान को न जानने के लिये कीजी पा से माफी माँगी। कीजी पा और सुलतान फिर सारा मकान देखने गये।
सुलतान ने सारे कमरे साफ करवाये, कुर्सियाँ और मेज आदि साफ करवाये, सारे बन्दियों को आजाद किया, घोड़ों को घास खाने के लिये घास के मैदान भेज दिया गया। नौकरों ने इसी बीच खाना तैयार कर दिया।
सबको उनके रहने की जगह बता दी गयी। सब लोग खुश थे। कुछ दिन रहने के बाद सुलतान की पत्नी की नौकरानियों ने अपने घर जाने की इजाज़त चाही। कीजी पा ने उन्हें और कुछ दिन के लिये रोक लिया पर फिर वे चली गयीं।
कीजी पा ने उन सबको बहुत सारी भेंटें दे कर भेजा। इससे उनके दिल में कीजी पा के लिये अपने सुलतान से भी ज़्यादा इज़्ज़त बढ़ गयी। अब वहाँ सब लोग खुशी से रहने लगे।
एक दिन कीजी पा बुढ़िया से बोला — “मुझे ऐसा लगता है कि मेरे मालिक बहुत ही भोले हैं। जबसे मैं उनके साथ हूँ मैंने उनका भला ही किया है। मैंने यहाँ इस शहर में आ कर उनके लिये बहुत से खतरे मोल लिये। और जब सब कुछ हो गया तो मैंने उनको वह सब कुछ दे दिया।
पर उन्होंने कभी यह नहीं पूछा कि “तुमको यह घर कैसे मिला? या तुमको यह शहर कैसे मिला? या इस घर का मालिक कौन था? या तुमने ये सब चीज़ें किराये पर लीं या फिर तुमको किसी ने दीं? यहाँ के रहने वालों का क्या हुआ? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ।
इसके अलावा हालाँकि मैंने उनके लिये अच्छे के अलावा और कुछ नहीं किया फिर भी उन्होंने मेरे लिये एक भी अच्छा काम नहीं किया। देखा जाये तो यहाँ उनका अपना तो कुछ भी नहीं है। उन्होंने ऐसा घर, ऐसा शहर तो जिस दिन से वह पैदा हुए हैं कभी देखा ही नहीं।
मुझे लगता है कि बड़े बूढ़े लोग ठीक कहते थे “जब तुम किसी के लिये कुछ अच्छा करो तो उसके लिये बहुत ज़्यादा अच्छा मत करो। कभी कभी उसका थोड़ा सा नुकसान भी करो तभी वह तुम्हारी अच्छाइयों को पहचानेगा। ”
खैर अब तक जो कुछ मैं कर सकता था मैंने कर दिया पर अब मैं देखता हूँ कि वह मेरे लिये बदले में क्या करते हैं। ”
अगली सुबह हिरन की पुकार ने बुढ़िया को जल्दी ही जगा दिया — “माँ माँ। ”
जब बुढ़िया उठ कर उसके पास गयी तो उसने देखा कि कीजी पा बहुत बीमार था। उसको बुखार था, उसकी टाँगें और पेट दोनों दर्द कर रहे थे। उसने माँ को सुलतान से जा कर यह कहने को कहा कि उसकी तबियत ठीक नहीं थी।
सो वह ऊपर गयी जहाँ सुलतान और उसकी पत्नी हिन्दुस्तान के बनी सिल्क की चादर ओढ़े संगमरमर के काउच पर बैठे थे। सुलतान ने पूछा — “ओ बुढ़िया क्या बात है?”
बुढ़िया बोली — “मालिक, कीजी पा की तबियत ठीक नहीं है। ”
सुलतान की पत्नी तो यह सुन कर घबरा गयी। वह तुरन्त बोली — “क्या हुआ उसको?”
बुढ़िया बोली — “उसका सारा बदन दर्द कर रहा है और वह तो पूरे का पूरा ही बीमार लग रहा है। ”
सुलतान बोला — “तो मैं क्या कर सकता हूँ। लाल बाजरा ले लो जो हम लोग जानवरों को खिलाते हैं और उसका दलिया बना कर उसको खिला दो। ”
सुलतान की पत्नी आश्चर्य से बोली — “अरे क्या आप उसको वह खिलाना चाहते हैं जो एक घोड़ा बहुत भूखा होने पर भी नहीं खायेगा। यह आपके लिये ठीक नहीं है। ”
सुलतान बोला — “जाओ, तुम्हारा तो दिमाग खराब हो गया है। चावल तो हम लोग खाते हैं। क्या 10 सैन्ट का लाल बाजरा उसके लिये काफी नहीं होगा?”
पत्नी बोली — “पर वह कोई मामूली हिरन नहीं है। वह तो आपको अपनी आँख के तारे जितना प्यारा होना चाहिये। जैसे आगर आँख में रेत का एक कण भी पड़ जाये तो तकलीफ देता है उसी तरह से उसको तकलीफ में देख कर आपको भी तकलीफ होनी चाहिये। ”
सुलतान अपनी पत्नी से बोला — “तु,म बोलती बहुत हो। ”
फिर वह उस बुढ़िया से बोला — “जाओ और वैसा ही करो जैसा कि मैंने तुमको करने को कहा है। ” सो बुढ़िया नीचे चली गयी और हिरन को देख कर रोने लगी।
हालाँकि बुढ़िया कीजी पा को सुलतान की बात बताना नहीं चाहती थी पर कीजी पा ने भी उसको वह कहने पर मजबूर कर दिया जो सुलतान ने उससे कहा था।
उसको अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ सो उसने दोबारा दादी माँ से पूछा — “माँ, क्या उन्होंने ऐसा कहा कि मुझे लाल बाजरे का दलिया बना कर दे दिया जाये?”
बुढ़िया बोली — “अगर उन्होंने ऐसा नहीं कहा होता तो क्या मैं तुमसे ऐसा कहती पोते?”
कीजी पा फिर बोला — “मुझे लगता है कि बड़े लोग ठीक ही कहते थे। पर ठीक है हम उनको दूसरा मौका देंगे। आप दोबारा उनके पास जायें और उनसे कहें कि मैं इतना ज़्यादा बीमार हूँ कि लाल बाजरे का दलिया भी नहीं खा सकता। ”
सो वह बुढ़िया फिर ऊपर गयी। इस बार उसने देखा कि दोनों पति पत्नी खिड़की के पास बैठे काफी पी रहे थे। सुलतान ने बुढ़िया को फिर से वहाँ देख कर पूछा — “अब क्या बात है बुढ़िया?”
बुढ़िया बोली — “मालिक मुझे कीजी पा ने फिर भेजा है। लगता है कि वह वाकई बहुत बीमार है क्योंकि जैसा दलिया आपने मुझ से बनाने के लिये कहा था मैंने वैसा ही दलिया उसको बना कर दिया पर उससे वह भी नहीं खाया गया। ”
सुलतान नाराज होकर बोला — “अपनी जीभ को काबू में रखो, टाँगें जमा कर रखो, आँखें बन्द करके रखो और कानों में रुई लगा लो। अब की बार अगर वह हिरन तुमसे ऊपर आने को कहे तो उसको बोल देना कि तुम्हारी टाँगें अकड़ गयीं हैं।
और अगर वह तुमसे कुछ सुनने के लिये कहे तो कह देना कि तुम बहरी हो गयी हो। और अगर वह तुमसे कुछ देखने के लिये कहे तो कहना कि तुमको कुछ दिखायी नहीं देता।
अगर वह तुमसे कोई बात करना चाहे तो उससे बात नहीं करना, कहना कि तुम्हारी जीभ को लकवा मार गया है। ”
बुढ़िया ने जब यह सुना तो वह तो वहीं की वहीं सुलतान को देखती खड़ी की खड़ी रह गयी, हिल भी न सकी। सुलतान की पत्नी का चेहरा भी उदास हो गया और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
सुलतान यह देख कर बोला — “ओ सुलतान की बेटी, तुमको क्या हुआ? तुम क्यों रो रही हो?”
पत्नी बोली — “जो आदमी दूसरों का उपकार नहीं मानता वह पागल होता है। ”
सुलतान ने पूछा — “तुम ऐसा कैसे सोचती हो?”
पत्नी बोली — “जिस तरीके से आप कीजी पा के साथ बरताव कर रहे हैं मैं उससे बहुत दुखी हूँ। जब भी मैं उस हिरन के बारे में कुछ अच्छा बोलती हूँ वह आपको सुनने में अच्छा नहीं लगता। मुझे आपके ऊपर दया आती है कि आपकी समझ को क्या हो गया है। ”
सुलतान बोला — “तुम मुझसे इस तरह से बात क्यों करती हो?”
पत्नी बोली — “क्यों, सलाह मिलनी तो बहुत ही अच्छी बात है अगर उसको ठीक से लिया जाये तो। पति को पत्नी से सलाह लेनी चाहिये और पत्नी को पति से। यही दोनों के लिये अच्छा है। ”
सुलतान ने जल्दी से कहा — “इस सबसे साफ जाहिर है कि तुम्हारी समझ बिल्कुल ही खत्म हो गयी है। तुमको तो बाँध देना चाहिये। ”
फिर उसने बुढ़िया से कहा — “तुम इसकी बातों को मत सुनना और जहाँ तक इस हिरन का सवाल है उसको कहना कि वह मुझे परेशान करना बन्द करे। इससे तो ऐसा लगता है जैसे सुलतान मैं नहीं वह है। मैं खा नहीं सकता, मैं पी नहीं सकता, मैं सो नहीं सकता। उसकी इन बातों ने तो मुझे परेशान कर रखा है।
पहले तो वह बीमार है और फिर वह वह खा नहीं सकता जो उसे खाने को दिया जाता है। अगर वह यह सब नहीं कर सकता तो बन्द कर दो उसको। अगर वह कुछ खाना पसन्द करता है तो उसको खाने दो और अगर वह कुछ नहीं खाना चाहता तो मरे।
मेरी माँ मर गयी मेरे पिता मर गये और मैं अभी भी ज़िन्दा हूँ और खा रहा हूँ। क्या मैं उस हिरन के लिये मर जाऊँ जिसको मैंने 10 सैन्ट में खरीदा था और जो मुझसे यह कह रहा है कि मुझे यह चाहिये और वह चाहिये।
जाओ और जा कर उससे कह दो कि उसको अपने बड़ों से ठीक से बरताव करना सीखना चाहिये। ”
यह सब सुन कर बुढ़िया बेचारी नीचे चली गयी। नीचे जा कर उसने देखा कि हिरन के मुँह से तो बुरी तरह से खून निकल रहा है। वह उसको इस हालत में देख कर केवल इतना ही कह सकी — “मेरे बच्चे, तुमने सुलतान के लिये जो कुछ भी अच्छा किया लगता है कि वह सब बेकार गया पर धीरज रखो। ”
और जब उस बुढ़िया ने उसको यह बताया कि ऊपर क्या हुआ था तो उसको तो सुन कर हिरन बहुत रोया और बोला — “माँ, मैं मर रहा हूँ केवल इसलिये नहीं कि मैं बीमार हूँ बल्कि आदमी की बेवफाई पर शरम और गुस्से की वजह से भी मुझे मौत आ रही है। ”
कुछ देर बाद कीजी पा ने बुढ़िया को फिर ऊपर भेजा और उससे कहा कि वह सुलतान से जा कर कह दे कि ऐसा लगता है कि कीजी पा मरने वाला है।
अब की बार जब बुढ़िया ऊपर गयी तो सुलतान गन्ना खा रहा था। उसने ऊपर जा कर कहा — “मालिक, हिरन की हालत तो खराब होती जा रही है। उसकी हालत तो बजाय अच्छे होने के और ज़्यादा खराब हो गयी है। लगता है कि वह तो मर ही जायेगा। ”
सुलतान ने अब की बार उसको डाँट कर कहा — “मैंने तुमसे कितनी बार कहा कि मुझे तंग मत करो। ”
यह सुन कर उसकी पत्नी बोली — “एक बार नीचे जा कर आप उस बेचारे हिरन को देख तो आइये न। अगर आप नहीं जाना चाहते तो मुझे जाने दीजिये मैं देख आती हूँ। उस बेचारे हिरन ने आपसे कभी कोई अच्छी चीज़ नहीं पायी। ”
सुलतान ने उस बुढ़िया से कहा — “जाओ और जा कर उस हिरन से कह दो कि वह अगर ग्यारह बार मरना चाहता है तो मरे। ”
इस बार उसकी पत्नी बोली — “उस हिरन ने आपका क्या बिगाड़ा है? क्या उसने आपका कुछ नुकसान किया है जो आप उसके लिये ऐसे शब्द इस्तेमाल कर रहे हैं?
ऐसे शब्द तो लोग केवल अपने दुश्मनों के लिये ही इस्तेमाल करते हैं। और इतना मैं यकीन के साथ कह सकती हूँ कि यह हिरन आपका दुश्मन नहीं है।
सारे लोग जो उसको जानते हैं चाहे वे अमीर हों या गरीब सभी उसको बहुत प्यार करते हैं। और अगर आप उसके साथ ऐसा बरताव करेंगे तो वे सब आप ही को बुरा कहेंगे। सो ओ सुलतान, मेहरबानी करके उसके साथ कुछ तो दया का बरताव कीजिये। ”
परन्तु सुलतान दाराई ने अपनी पत्नी की बात बिल्कुल नहीं सुनी। वह बुढ़िया बेचारी एक बार फिर वापस नीचे चली गयी और उसने हिरन को और भी बुरी हालत में पाया।
इस बीच सुलतान की पत्नी ने अपने एक नौकर को हिरन के लिये थोड़ा चावल पकाने के लिये दे दिया। एक मुलायम शौल उसके ओढ़ने के लिये और एक मुलायम तकिया उसके लेटने के लिये भी भिजवा दिया।
साथ में उसने उसको यह भी कहलवा दिया कि अगर वह चाहेगा तो वह अपने पिता का सबसे अच्छा डाक्टर उसके इलाज के लिये बुलवा देगी।
पर यह सब बहुत देर से पहुँचा। जब तक यह सब पहुँचा तब तक तो कीजी पा मर गया था। जैसे ही लोगों ने यह सुना कि कीजी पा मर गया वे इधर उधर भागने लगे और रोने लगे।
पर सुलतान दाराई पर इसका कोई असर नहीं हुआ। वह बोला — “तुम लोगों ने यह सब इतना हंगामा क्यों किया हुआ है? और वह भी इस छोटे से हिरन पर जिसको मैं ने 10 सैन्ट में खरीदा था। तुम्हारे हंगामे से तो ऐसा लगता है जैसे हिरन नहीं बल्कि मैं मर गया हूँ। ”
पर उसकी पत्नी बोली — “यही वह हिरन था जो आपके लिये मेरे पिता से मेरा हाथ माँगने गया था। यही वह हिरन था जो मुझे मेरे पिता के घर से यहाँ तक ले कर आया था। यही वह हिरन था जिसको मेरे पिता ने मुझको दिया था।
उसने आपको हर अच्छी से अच्छी चीज़ दी। आपकेे पास अपनी तो कोई चीज़ है ही नहीं, सब उसी की दी हुई हैं। आपकी सहायता करने के लिये वह जो भी कर सकता था उसने किया और आपने बदले में उसे क्या दिया? अपना यह बेरहम बरताव।
पर अब क्या। अब तो वह मर गया है और आपने अपने आदमियों को उसके शरीर को कुँए में फेंकने के लिये बोल दिया है। अब तो हम केवल उसके लिये रो ही सकते हैं। ” सुलतान के हुकुम से हिरन को एक कुँए में फेंक दिया गया।
सुलतान की पत्नी ने तब अपने पिता को एक चिठ्ठी लिखी कि वह उस चिठ्ठी को मिलते ही उसके पास चले आयें और अपने खास आदमियों के हाथ उस चिठ्ठी को अपने पिता के पास भेज दिया। चिठ्ठी मिलते ही सुलतान अपनी बेटी से मिलने के लिये आ गया।
वहाँ आ कर उसे पता चला कि हिरन मर गया है और उसके शरीर को कुँए में फेंक दिया गया है तो वह और उसके साथ आये सब लोग बहुत रोये।
फिर वे सब उस कुँए में गये और कीजी पा के शरीर को कुँए में से निकाल कर लाये। उसको वहाँ से ले जा कर उन्होंने उसके शरीर को दूसरी जगह ठीक से दफन कर दिया।
उसी रात को सुलतान की पत्नी को सपना आया कि वह अपने पिता के घर में है और जब सुबह हुई तो उसने देखा कि वह तो वाकई अपने पिता के घर में अपने ही बिस्तर पर सोयी हुई थी।
उधर उसके पति ने भी सपना देखा कि वह कूड़े के ढेर में से कुछ ढूँढ रहा है। और जब वह सुबह उठा तो उसके दोनों हाथ धूल से भरे हुए थे और वह कूड़े के ढेर में से बाजरे के दाने ढूँढ रहा था।
पागलों की तरह से इधर उधर देखते हुए वह चिल्लाया — “अरे मेरे साथ यह चाल किसने खेली? मैं यहाँ वापस कैसे आ गया?”
उसी समय कुछ बच्चे उधर से गुजर रहे थे। उसको देख कर वे हँस पड़े, आवाजें निकालने लगे और बोले — “अरे हामदानी तुम अब तक कहाँ थे और कहाँ से आ गये? हमको तो लगा कि तुम बहुत पहले मर गये। ”
इस तरह सुलतान की बेटी अपने घर में खुशी से रहने लगी और वह भिखारी फिर से कूड़े के ढेर से बाजरे के दाने चुनने लगा और तब तक चुनता रहा जब तक वह मरा।
[1] Haamdaanee –a folktales of Zanzibar, East Africa.
[My Note – This folktale is similar to several other folktales published in “Joote Mein Bille Jaisi Kahaniyan” by Sushma Gupta in Hindi language.]
[2] Muhadeem – name of the deer seller
[3] Daraaee – name of Hamdani given to him by the deer
[4] Translated for the word “Saddle”
[5] Translated for the word “Dagger” – see its picture above.
[6] Mwaalee Moo, the priest
[7] Translated for the words “Sapphire, turquoise, and precious stones”
[8] Neeokaa Mkoo – the name of the python
[9] Translated for the word “Son-in-Law” – means the husband of the daughter
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.
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(कहानियाँ क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
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