फैन मेल सुना है बड़े-बड़े कलाकारों को उनके प्रशंसकों के ढेरों पत्र मिला करते हैं. ऐसी डाक को ‘फैन मेल’ भी कहा जाता है. अब बेशक हमारी कोई रचना ...
फैन मेल
सुना है बड़े-बड़े कलाकारों को उनके प्रशंसकों के ढेरों पत्र मिला करते हैं. ऐसी डाक को ‘फैन मेल’ भी कहा जाता है.
अब बेशक हमारी कोई रचना छठे-छमाही ही कहीं छपती है, पर फिर भी हम अपनेआप को किसी महान लेखक से कम नहीं समझते. इतना कम छपने के बावजूद हमें संतोष इसी बात का है कि हमारे घर की एक अदद अलमारी की शोभा बढ़ा रही सैंकड़ों अनछपी रचनाओं के रचयिता हम ही हैं.
कभी-कभार छपने वाली हमारी रचनाओं के साथ अक्सर हमारा पता नहीं छपा होता (वैसे तो एक-दो बार ऐसा भी हुआ है कि रचना के साथ हमारा नाम ही नहीं छपा था!). अब अगर हमें ‘फैन मेल’ के दर्शन नहीं होते तो हम अपने दिल को बस यही सोच-सोचकर तसल्ली दे लिया करते हैं कि जब पाठकों को हमारा पता ही मालूम नहीं है तो वे बेचारे हमारी रचनाओं की प्रशंसा भरे ख़त हमें भेजें भी तो कहाँ. हम तो इन्हीं ख़्वाबों में खोए रहते हैं कि हमारी रचनाएँ पढ़कर पाठकगण अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत करवाने के लिए बहुत बेचैन रहा करते होंगे.
यूँ ऐसा भी नहीं कि हमें किसी पाठक का पत्र अब तक आया ही न हो. हमने तो बाकायदा ‘फैन मेल’ की एक फाइल बना रखी है, जिसमें ऐसे सभी पत्र रखे जा सकें. वैसे एक राज़ की बात आपको बता ही दें कि कुछ साल पहले हम थोक के भाव ऐसी दो दर्जन फाइलें यह सोचकर खरीद लाए थे कि इन्हें पत्रों से भरने में वक़्त ही कितना लगेगा. थोक में फाइलें कुछ सस्ती मिल रही थीं - यह अलग फायदा था. मगर ‘फैन मेल’ की हमारी इकलौती फाइल में अब तक कुल मिलाकर दो दर्जन पत्र भी नहीं हैं. इन पत्रों में कुछ पत्र ऐसे भी हैं जो कुछ पाठकों ने रचनाएँ भेजने की विधि इत्यादि पूछने के लिए हमें लिखे थे.
हमारी फाइल में रखे पत्रों में कुछ पत्र ऐसे भी हैं जिनमें पाठकों ने हमारी रचना पढ़कर सिर धुनते हुए हमारी रचना की ढेरों ख़ामियाँ गिनवाई थीं. लेकिन हमारा बड़प्पन देखिए कि हमने इन पत्रों को भी इसी फाइल में बड़े यत्नपूर्वक सजाकर रखा हुआ है.
इसके बावजूद कुल मिलाकर दो-तीन पत्र ऐसे ज़रूर हैं जिनमें हमारी रचनाओं के बारे में कुछ अच्छी बातें लिखी थीं. इन पत्रों को अपने जीवन की अमूल्य निधि मानते हुए हम बड़ा संभालकर रखते हैं.
एक बात और, ऐसे सब पत्रों के जवाब देने में हम ज़रा भी देर नहीं लगाते. हमें लगता है कि जब तक पत्र भेजनेवाला यह सोचता होगा कि उसका पत्र हम तक पहुँच गया होगा, तब तक तो हमारा उत्तर भी उसे मिल जाता होगा.
वैसे यह ख़याल हमें अक्सर आया करता है कि लिखते-लिखते हमें करीब पैंतीस साल तो हो ही गए हैं, फिर हमारे पास ‘फैन मेल’ के नाम पर पैंतीस पत्र भी क्यों नहीं हैं. हमने तो सुना है कि फिल्मी कलाकारों के यहाँ तो बोरियाँ भरकर डाक आती है, जिसे पढ़ने क्या देखने तक का वक़्त उन लोगों के पास नहीं होता. और एक हम हैं कि ‘फैन मेल’ की बाट ही जोहते रहते हैं और पुरानी चिट्ठियों को ही बार-बार पढ़कर अपने मन को संतोष देते रहते हैं. अब तो हमें अपनी इन चुनिंदा चिट्ठियों का एक-एक शब्द तक अच्छी तरह याद हो गया है.
कभी-कभी हमें लगता है कि कहीं डाक विभाग के लोग तो ऐसी कोई साजि़श नहीं कर रहे कि हमारी ‘फैन मेल’ हम तक पहुँचे ही नहीं. हो सकता है कि वे हमारी प्रतिभा, प्रसिद्धि और लोकप्रियता से जलते हों और इसी वजह से हमारी ‘फैन मेल’ हम तक पहुँचने न देते हों. अपनी इस शंका का निराकरण करने के लिए हमने खुद ही कुछ चिट्ठियाँ अपने नाम पर लिखकर डाक में डाली थीं, मगर अफसोस की बात है कि ऐसी सब चिट्ठियाँ हमारे पास सही-सलामत और वक़्त से पहुँच गईं.
पिछले कुछ दिनों से हम पर एक नई खब्त सवार हुई है कि हमने नाम बदल-बदलकर अपनेआप को ही ‘फैन मेल’ लिखना षुरू कर दिया है. ऐसी चिट्ठियाँ जब डाक से हमें मिलती हैं तो हमें अतीव आनन्द की अनुभूति होती है. ऐसी ‘फैन मेल’ लिखने में हमारा मन अब इतना ज़्यादा रमने लगा है कि हमने नई रचनाएँ लिखना ही छोड़ दिया है. हम यह भी सोचने लगे हैं कि ‘फैन मेल’ लिखने का ही धन्धा क्यों न शुरू कर दिया जाए. हर ज़रूरतमन्द लेखक से यथोचित धनराशि लेकर उसे मनचाही संख्या में ‘फैन मेल’ भेजी जा सकती है. आइडिया बुरा तो नहीं है. क्या ख़याल है आपका?
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नाम हरीश कुमार ‘अमित’
जन्म 1 मार्च, 1958 को दिल्ली में
शिक्षा बी.कॉम.; एम.ए.(हिन्दी);
पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
प्रकाशन 700 से अधिक रचनाएँ (कहानियाँ, कविताएँ/ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ, बाल कहानियाँ/कविताएँ आदि) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. एक कविता संग्रह 'अहसासों की परछाइयाँ', एक कहानी संग्रह 'खौलते पानी का भंवर', एक ग़ज़ल संग्रह 'ज़ख़्म दिल के', एक बाल कथा संग्रह 'ईमानदारी का स्वाद', एक विज्ञान उपन्यास 'दिल्ली से प्लूटो' तथा तीन बाल कविता संग्रह 'गुब्बारे जी', 'चाबी वाला बन्दर' व 'मम्मी-पापा की लड़ाई' प्रकाशित. एक कहानी संकलन, चार बाल कथा व दस बाल कविता संकलनों में रचनाएँ संकलित.
प्रसारण - लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण. इनमें स्वयं के लिखे दो नाटक तथा विभिन्न उपन्यासों से रुपान्तरित पाँच नाटक भी शामिल.
पुरस्कार-
(क) चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की बाल-साहित्य लेखक प्रतियोगिता 1994ए 2001ए 2009 व 2016 में कहानियाँ पुरस्कृत
(ख) 'जाह्नवी-टी.टी.' कहानी प्रतियोगिता, 1996 में कहानी पुरस्कृत
(ग) 'किरचें' नाटक पर साहित्य कला परिाद् (दिल्ली) का मोहन राकेश सम्मान 1997 में प्राप्त
(घ) 'केक' कहानी पर किताबघर प्रकाशन का आर्य स्मृति साहित्य सम्मान दिसम्बर 2002 में प्राप्त
(ड.) दिल्ली प्रेस की कहानी प्रतियोगिता 2002 में कहानी पुरस्कृत
(च) 'गुब्बारे जी' बाल कविता संग्रह भारतीय बाल व युवा कल्याण संस्थान, खण्डवा (म.प्र.) द्वारा पुरस्कृत
(छ) 'ईमानदारी का स्वाद' बाल कथा संग्रह की पांडुलिपि पर भारत सरकार का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, 2006 प्राप्त
(ज) 'कथादेश' लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में लघुकथा पुरस्कृत
(झ) 'राट्रधर्म' की कहानी-व्यंग्य प्रतियोगिता, 2016 में व्यंग्य पुरस्कृत
सम्प्रति भारत सरकार में निदेशक के पद से सेवानिवृत्त
पता - 304ए एम.एस.4ए केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56ए गुरूग्राम-122011 (हरियाणा)
ई-मेल harishkumaramit@yahoo.co.in
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