सरस्वती वंदना है दया निधे गुण निधे स्वामिनी नित उठ प्रसून चढ़ाऊं मैं है मात शारदे दृष्टि धरों चरणों में शीष झुकाऊं मैं॥ मैं अज्ञान अभ...
सरस्वती वंदना
है दया निधे गुण निधे स्वामिनी
नित उठ प्रसून चढ़ाऊं मैं
है मात शारदे दृष्टि धरों
चरणों में शीष झुकाऊं मैं॥
मैं अज्ञान अभागा माते
विद्या मुझको दे दो तुम
दुःख संताप हरो सब मेरे
चरण कंवल बलि जाऊ मैं।
है दया निधे गुण निधे स्वामिनी
नित उठ प्रसून चढ़ाऊं मैं
है मात शारदे दृष्टि धरों
चरणों मे शीष झुकाऊं मैं॥
जलादो घट में ज्ञान का दीपक
वात्सल्य बरसा दो तुम
उठ प्रभात करूं मैं सेवा
मंगल गीत सुनाऊं मैं॥
है दया निधे गुण निधे स्वामिनी
नित उठ प्रसून चढ़ाऊं मैं
है मात शारदे दृष्टि धरों
चरणों में शीष झुकाऊं मैं॥
कविता
कर्म से महान
कहते है ग्रंथ सभी
वेद और पुराण
कि बनता है मनुष्य
कर्मों से ही महान॥
शोभा नहीं देता है
शूद्रों का अपमान
सोच समझकर देख प्राणी
कर्म है महान॥
करता है ग्रंथ गीता
ये ही तो बखान
तीन गुणों में जकड़ दिया है
ये सारा जहान॥
गुण तीनों के मनुष्य
इस सारे संसार
जैसी जिसकी गुण स्थिति
करता है व्यवहार॥
कविता
बेटी बचाओ
याद करो ओ देश वासियों
बेटियों का इतिहास पढ़ो
कितनी पहुँची उच्च शिखर पर
ना भ्रूण हत्या का पाप मढ़ो॥
गिना ना पाऊँगा मैं उनको
अनगिनत ने नाम किया
देश - विदेश में परचम लहराया
अपने देश का नाम किया॥
छोड़ो अब ये पाप कमाना
बेटी को ना बोझ समझो
घर आँगन खुशहाल करो और
कन्यादान कर चरण पूजो॥
भ्रूण हत्या तो बड़ा पाप है
क्यों तुम बड़ा ये पाप करो
संकल्प करलो सोच समझकर
बेटी बचाओ प्रचार करो॥
कविता
बेटियां
मनचलों की हरकतों से
भयभीत बेटियां
चलते-फिरते हुये
डरती है बेटियां॥
जब-जब भी घर से
निकलती है बेटियां
भय और शंका में
रहती है बेटियां॥
हर जगह छेड़छाड़ से
परेशान है बेटियां
कब तक सहेगी ये
अत्याचार बेटियां॥
दहेज लालचियों ने बहुत
मारी है बेटियां
गर्भ में उजाडी जा रही है
आज ये बेटियां॥
कविता
नारी
होना चाहिये पुरूष को भी
थोड़ा यह तो भान
प्रकृति पुरूष के संयोग
से ही तो ...................
रचा अखिल ब्रह्माण्ड
प्रकृति स्वयं रूपा है नारी
देवी सम्पदा सम्पूर्ण है नारी
जन्मदात्री पालक है नारी
प्रताड़ित क्यों हुई फिर नारी॥
सह रही क्यों कई घरों में
नित नये अपमान
बंदिशों की बेड़ियों में
क्यों जकड़ रहा इंसान॥
शक - शंका को त्याग कर
करता जा सद्व्यवहार
सुख - सम्पत्ति आवे घर
फलें - फूले परिवार॥
माँ बेटी और बहिन है नारी
जग - जननी जग चंडी है नारी
अर्द्धांगनी स्वरूपा है नारी
शिव - शक्ति आदि शक्ति के
है इसके कई अवतार
हर नारी मे देव विराजे
क्यों पुरूष बना अज्ञान॥
कविता
नव वर्ष का हर्ष
मनाते है हम
हर वर्ष नव वर्ष
होता है हम सबको
नव वर्ष का हर्ष
देते है हम शुभ - कामनायें
सभी को ......................................
कि हो तुम्हारा शुभ मंगलमय
यह नव वर्ष
पर कहा निभाते है हम
एक-दूसरे की मदद का
हमारा फर्ज॥
नहीं पूछते हैं हम
बाकी दिनों में साल भर तक
एक - दूसरे का दर्द
जो कर सके हम
पूरी दूसरों की शर्त॥
पूछना होगा हमें
बाकी दिनों में भी
एक - दूसरे का दर्द
पीड़ाओं की हमें
हटानी होगी गर्द॥
तभी तो होगा सार्थक
हमारी शुभकामनाओं का
नव वर्ष का हर्ष
नव - वर्ष नव - वर्ष नव - वर्ष॥
कविता
नव वर्ष का आगाज
नव वर्ष में हो कुछ
ऐसा आगाज॥
सर्वजन हितायः
सर्वजन सुखायः
सर्व धर्म समभाव का
बन्धुत्व के स्नेह भाव का
वासुधैव कुटुम्बकम् का
दिल में हमारे हो
सम्पुटित संचार॥
नव वर्ष में हो कुछ
ऐसा आगाज॥
जाति मजहब
भेदभाव का
ऊँच - नीच की
मलीनता का
अमीर - गरीब की
विचारधारा का
करलो संकल्प मिटाने का
अब सब इन्सान॥
नर्व वर्ष में हो कुछ
ऐसा आगाज॥
कविता
पिता ने भी
पिता ने भी पुत्र के लिए
कष्ट कितने उठाये होंगे
जब गर्भ में था माँ को रोज
फल लाकर खिलाये होंगे
समय - समय पर डॉक्टर को भी
चैक - अप कराये होंगे॥
जब तक न हुआ होगा प्रसव तो
मन में कितने घबराये होंगे
होते होंगे जब ऑफिस में तो
माँ के हाल पूछने के लिए
फोन कितने लगाये होंगे
अरमान मन में कितने बसाये होंगे॥
पैदा होने पर वो पुत्र के लिये
खिलौने कितने लाये होंगे
हाथों से अपने झूला झुलाये होंगे,
गोद में अपनी बिठाये होंगे,
लालन - पालन व पढ़ाई - लिखाई में
पैसे कितने लुटाये होंगे।
जब हो गया जवान तो
शादी में रूपये कितने खर्चाये होंगे॥
इतना सब करने के बाद भी वही पुत्र
पिता के वृद्ध हो जाने पर
जब वृद्धाश्रम छोड़ आये तो
पिता के दिल पर उसने
शूल कितने चुभाये होंगे।
शूल कितने चुभाये होंगे।
शूल कितने चुभाये होंगे।
कविता
बादल बरसते हैं
बरसात में बादल बरसते हैं
ये हरदम राह बदलते हैं॥
बिन मौसम भी ये बरसते हैं
लोगों को कहते सुनते हैं॥
हर इक प्राणी इनको तरसते हैं
संग हवा के जब ये चलते हैं॥
मन कृषकों के मचलते हैं
आकाश में जब ये गरजते हैं॥
क्यों न ये समय पे बरसते है
जब सूरज से जीव झुलसते हैं॥
हम भी विनय इनसे करते हैं
धरती के आँचल तपते हैं॥
कविता
चेत रे चेत
चेत रे चेत नर तू
क्यों अचेत हो रहा है
वायु मण्डल तो सारा
प्रदूषित हो रहा है॥
करता नही विचार तू
वाहन चला रहा है
वृक्ष एक लगाया नहीं
धुँआ उड़ा रहा है॥
रहने के लिए तो तू
बंगला बड़ा बना रहा है
अपने ऐशो-आराम के लिए
वृक्षों को कटा रहा है॥
नजर फैला के देख जरा
जल नदियों का सूख रहा है
ताल-तलैया कुंए बावड़ी
सब खाली दिख रहा है॥
सूरज तपन बढ़ा रहा हैं
आग उगल रहा है
धरा के आँचल में प्राणी
त्राहि-त्राहि कर रहा है॥
कविता
कोई है ऐसा
कोई है ऐसा
जो दिल को धड़कने से रोक पाया है
है कोई ऐसा जिसका दिल
तड़पने से बच पाया है
होती है हर इक जवां दिल की हसरत
कोई एक चाहत -
जो ला देती है उसमें नजाकत
चाहे स्त्री हो या पुरुष॥
बड़ा ही मुश्किल होता है
दिल को सम्भालना
किसी पर आने के बाद
न चैन न आराम
हो जाता है सब हराम॥
अरे ओ दुनिया वालों
जरा सुनलो जवां लोगों
रखना इसे सम्भाल कर
बड़ा नाजुक है ये
पतले दर्पण की तरह॥
सहन नहीं कर पायेगा ये
नैनों के तीखे बाणों को
धार वाली आँखों की कटारों को
बेवफाई के सितमों को
हिफाजत रखना इसकी
कई टूटकर न जाये बिखर
हो जाये ना अस्त - व्यस्त
अन गिनत टुकडे - टुकडे॥
कविता
बड़ा ही मुश्किल
बड़ा ही मुश्किल होता है
बाकी जीवन को गुजारना
जीवन साथी के ......................
बिछड़ जाने के बाद॥
लगता नहीं है मन कही भी
और खो जाता है यह
कभी यादों में उसकी
हो जाता है बेचैन अनायास॥
बहुत ही कठिन होता है
आधे अधूरे जीवन में
साथी का बिछड़ जाना
रहता है मन हरदम उदास॥
रह जाता है एक अकेला
एक ही पंख वाले
पंछी की तरह तो
वह कैसे उड़े आकाश॥
परिचय
नाम ः- रामनिवास डांगोरिया
पिता ः- स्व. श्री दरियावराम डांगोरिया
जन्म ः- 30 जून 1971 बाराँ, राजस्थान (भारत)
शिक्षा ः- सीनियर सैकेण्डरी
सदस्य ः- अ.भा.सा.परि. राजस्थान (ईकाई-बाराँ)
विविध ः- जिला स्तरीय समाचार पत्रों में 16 वर्षो से हिन्दी - हाड़ौती
भाषा में सामाजिक उत्थान की कविताएँ प्रकाशित
सम्मान ः- भारतीय दलित साहित्य अकादमी जिला बाराँ शाखा द्वारा
जिला स्तरीय समारोह में (डॉ. भीमराव अम्बेडकर विशिष्ट सेवा सम्मान) एवं विभिन्न साहित्य सम्मेलनों में सम्मान।
सम्पर्क ः- शिवाजी नगर मारवाड़ा बस्ती, जिला-बाराँ (राजस्थान)
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