लोककथा // ईकटोमी और बतखें // सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ — उत्तरी अमेरिका–ईकटोमी : चालाक ईकटोमी संकलनकर्ता सुषमा गुप्ता 8 ईकटोमी और बतखें [1] एक बार ईकटोमी [2] कहीं जा रहा थ...

देश विदेश की लोक कथाएँ — उत्तरी अमेरिका–ईकटोमी :

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चालाक ईकटोमी


संकलनकर्ता


सुषमा गुप्ता


8 ईकटोमी और बतखें[1]

एक बार ईकटोमी[2] कहीं जा रहा था। पर वह अपना घोड़ा ढूंढ रहा था क्योंकि वह उस पर परेड में चढ़ना चाहता था।

उसने मन में सोचा — “आज तो मैंने अपने सबसे अच्छे कपड़े पहन रखे हैं। मैं अपने घोड़े पर चढ़ कर तो बहुत ही शानदार लगूंगा।

मैं परेड में आगे आगे चलूंगा। सब लोग मुझे देखेंगे। वे अपने बच्चों से कहेंगे — “वह देखो, वह हमारी लड़ाई का सरदार जा रहा है जो बहादुरों से भी बहादुर है। ”

ईकटोमी चलता जा रहा था चलता जा रहा था और अपने आप ही आप बोलता जा रहा था — “पर मेरा घोड़ा कहाँ गया? मुझे यकीन है कि जरूर ही उसे किसी सफेद आदमी[3] ने चुराया है। और अगर उसने नहीं चुराया तो फिर वह गया कहॉ?”

ईकटोमी ने इधर देखा उधर देखा पर उसको अपना घोड़ा कहीं दिखायी नहीं दिया।

इतने में ईकटोमी ने कुछ बतखों को एक तालाब में आनन्द करते देखा तो उसको ख्याल आया “भुनी हुई बतखें”। काश मैं इन बतखों को पकड़ सकता।

ईकटोमी ने कुछ सोचा और फिर वह कुछ झाड़ियों के पीछे छिप गया और वहाँ से एक मोटी सी डंडी तोड़ ली।

फिर उसने अपना कम्बल जमीन पर बिछाया और मुठ्ठी भर भर कर घास तोड़ कर उसने उस कम्बल पर उसका एक बहुत बड़ा ढेर बना लिया। फिर उसने वह डंडी और घास दोनों उस कम्बल में लपेट ली।

वह पोटली उसने अपने कन्धे पर डाल ली और उस भारी सी पोटली को अपने कन्धे पर ले कर तेज़ी से उस तालाब के किनारे की तरफ चल दिया जहाँ वे बतखें तालाब में आनन्द कर रही थीं।

वह ऐसे चलने का बहाना कर रहा था जैसे कि वह बहुत जल्दी में हो। और यह दिखाने के लिये वह अपने माथे से पसीना भी पोंछता जा रहा था।

बतखें उसको देख रही थीं। उन्होंने उसको पुकारा — “ओ ईकटो। यह तुम्हारी पीठ पर क्या है?”

ईकटोमी चलता रहा जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं।

बतखें फिर बोलीं — “ईकटो, रुक जाओ। हमसे बात तो करो। तुम्हारे इस कम्बल में क्या है?”

ईकटोमी बोला — “मेरा यह कम्बल गीतों से भरा है। मैंने इन गीतों को अभी अभी धुन में बॉधा है। मैं इनको गॉव के पाउवाउ[4] में गाने वाला हूं। हर आदमी इन गीतों पर नाचना चाहेगा। ”

बतखों ने उससे जिद की — “तुम कुछ गीत हमको भी तो सुनाओ न ईकटो। ”

कुछ और बतखें भी बोलीं — “हाँ हाँ कुछ गीत हमको भी तो सुनाओ न। ”

वह बोला — “मुझे अफसोस है कि मैं रुक नहीं सकता। मुझे पाउवाउ में पहुंचने की बहुत जल्दी है। ”

बतखों ने फिर उससे कुछ गीत सुनाने की प्रार्थना की — “सुनाओ न ईकटो। ”

ईकटोमी बोला — “अच्छा ठीक है सुनाता हूं, पर बस केवल एक गीत। ”

यह सुन कर बतखें किनारे पर आ गयीं और हिलती हुई छोटे छोटे कदमों से किनारे पर चलने लगीं।

इकटोमी ने अपनी पोटली में अपना हाथ डाला और घास का एक पत्ता निकाला और बतखों से बोला — “मैं यह गाना गाऊँगा। तुम लोग ऐसा करो कि एक गोले में इकठ्ठी हो जाओ और फिर हम सब एक साथ गायेंगे और नाचेंगे।

मैं जो अभी गीत गाऊँगा वह एक बहुत ही खास गीत है। इसमें तुम सबको अपनी आंखें बन्द करके रखनी है। अगर तुम उनको खोलोगी तो वे लाल हो जायेंगीं। मैं अपने ढोल की डंडी[5] से जमीन पर ताल देता रहूंगा। ”

यह कह कर उसने अपनी पोटली से वह मोटी वाली डंडी निकाली और बोला — “अच्छा अब अपनी आंखें बन्द करो और मेरे गीत पर नाचना शुरू करो —

आंखें बन्द करो और मेरे साथ नाचो उनको बन्द रखना वरना वे लाल हो जायेंगीं

आंखें बन्द करो और मेरे साथ नाचो

ईकटोमी अपनी उस डंडी से जमीन पर ताल देता जा रहा था। थम्प थम्प थम्प थम्प। ताल देते देते ईकटोमी चिल्लाया — “पैर पटक पटक कर नाचो, ज़ोर ज़ोर से नाचो। ”। ”

बतखें उसके साथ साथ नाचने लगीं, आंखें बन्द करके, पैर पटक पटक कर, ज़ोर ज़ोर से, अपनी पूरी ताकत के साथ।

अचानक ईकटोमी ने जमीन पर ताल देने की बजाय बतखों के सिर पर डंडी मारना शुरू कर दिया। थम्प थम्प – एक बतख मर गयी। थम्प थम्प – फिर दूसरी बतख गयी।

इस तरह से ईकटोमी ने कई बतखें मार दीं। एक बतख ने आधी आंख खोल कर कोने से देखा कि ईकोटोमी क्या कर रहा है।

वह चिल्लायी — “ए बतखों भागो। ईकटोमी तो हमको मार रहा है। ” यह सुन कर सारी बतखें वहाँ से उड़ कर भाग गयीं। ईकटोमी ने यह कितना भयानक काम किया, किया न?

क्या कभी तुमने देखा है कि कुछ बतखों की आंखें लाल होती हैं। ये बतखें उन्हीं बतखों के बच्चे हैं जिन्होंने नाचते समय अपनी आंखें खोलीं थीं।

फिर ईकटोमी ने आग जलायी। उसने उन मरी हुई बतखों को लोहे की सलाइयों में घुसाया और उनको आग के चारों तरफ भुनने के लिये रख दिया। एक बतख को उसने राख के अन्दर भुनने के लिये रख दिया।

जैसे जैसे उन बतखों में से उनके भुनने की खुशबू आती जा रही थी उसके मुंह में पानी आता जा रहा था और उसका पेट बोलता जा रहा था “मुझे खाना चाहिये”।

हवा बहने लगी थी। पेड़ भी उस हवा से इधर से उधर हिलने लगे थे। इस हवा से दो पेड़ चरचराये और आपस में टकरा गये। उनके टकराने की आवाज ईकटोमी को बहुत बुरी लगी।

वह उनसे बोला — “भाई भाई को आपस में लड़ना नहीं चाहिये। तुम लोग अपनी लड़ाई बन्द करो वरना मुझे खुद आ कर तुम लोगों को अलग करना पड़ेगा। ”

जब पेड़ों ने उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया तो ईकटोमी उन दोनों में से एक पेड़ पर चढ़ गया और उन पेड़ों को अलग अलग करने लगा।

जब वह ऐसा कर रहा था तो हवा चलनी बन्द हो गयी और वह उन दोनों पेड़ों के बीच फॅस गया क्योंकि वे पेड़ हिलने बन्द हो गये थे।

वह चिल्लाया — “यह तुम क्या कर रहे हो पेड़ों? मुझे जाने दो। मैं ईकटोमी हूं मैं तुमको नीचे गिरा दूंगा और काट दूंगा। ”

वह वहाँ से छूटने की कोशिश करने लगा। वह सीधा हुआ, वह टेढ़ा हुआ। उसने पेड़ों को हाथ से मारा, पैर से मारा पर उन्होंने तो उसको बन्दी बना कर रखा हुआ था।

कायोटी दूर खड़ा यह सब देख रहा था। वह धीरे धीरे ईकटोमी की आग के पास आया। उसको अपनी आग के पास आया देख कर ईकटोमी वहीं से चिल्लाया — “भागो वहाँ से। मैं तुमको कुछ नहीं दूंगा। ”

पर कायोटी ने कुछ नहीं सुना और बतखें खाने में लग गया।

जब ईकटोमी ने देखा कि कायोटी ने उसकी सारी भुनी हुई बतखें खा ली हैं तो उसने कोयोटे से प्रार्थना की — “कम से कम मेरे लिये तुम वह राख में भुनी हुई बतख तो छोड़ दो, वह मेरी है। ”

कोयोटे ने ईकटोमी की तरफ पीठ कर ली ताकि वह यह न देख सके कि वह क्या कर रहा था। उसने राख में से बतख निकाली, उसको लाल कोयलों से भरा और फिर उसको राख में उसी जगह ही दबा दिया।

यह सब करके कायोटी मुस्कुराया और अपनी बतखों का मांस चाटते हुए धीरे धीरे अपने रास्ते चला गया।

कुछ देर में ही हवा फिर से बहने लगी और ईकटोमी उन पेड़ों के बीच में से छूट गया। पेड़ से उतर कर वह तुरन्त ही अपनी आग की तरफ भागा और अपनी राख में दबायी हुई बतख बाहर निकाली।

उसने भगवान को लाख लाख धन्यवाद दिया कि कायोटी ने कम से कम उसके लिये उसकी वाली, जो सबसे अच्छी बतख थी, वह बतख छोड़ दी थी।

वह बहुत भूखा था सो उसने एक तुरन्त ही उसमें से एक बड़ा सा कौर काटा – और पता है उसे क्या मिला? एक बड़ा सा मुंह भर कर जलते कोयले।

वह तो ऊपर नीचे उछलने कूदने लगा और मुंह में से अंगारे और राख चारों तरफ थूकने लगा। फिर वह तालाब की तरफ दौड़ा और दौड़ कर पानी में कूद गया।

कुछ देर बाद जब उसके मुंह की गरमी कुछ शान्त हुई तो वह बोला — “ठहर जा ओ चोर कायोटी, मैं तुझे अभी देखता हूं। ”

कहता हुआ और शरीर से पानी टपकाता हुआ वह अपने घर की तरफ चला गया।

इन बतखों के चक्कर में ईकटोमी तो यह भूल ही गया कि वह अपना घोड़ा ढूंढने निकला था। तो फिर क्या हुआ उसके घोड़े का?


[1] Iktomi and the Ducks – a story of Native American Indians, North America.

Adapted from the book “Iktomi and the Ducks: a plains Indian story”, by Paul Goble. NY, Orchard Books. 30 pages unnumbered. A 1-story Children’s Book with pictures.

[This is the story like “Skunk Ne Caayotee Ko Pachhada” story. Read it in the book entitled “Chipmunk, Mink Aur Skunk”, by Sushma Gupta written in Hindi language.

[2] Iktomi is a spider fairy but can take any form.

[3] Translated for the word “White Man”. As these stories are from Native Indians of America they call the immigrants from Europe as White Men. In the whole Africa all people from Europe, America, Russia, China etc are called “White Men”,

[4] A Pow-wow (also Powwow, Pow wow or Pau wau) is a gathering of some of North America's Native People. A similar gathering by California Native Peoples usually in the fall is called a Big Time. A modern Pow-wow is a specific type of event for Native American people to meet and dance, sing, socialize, and honor Native American/First Nations culture. Pow wows may be private or public. There is generally a dancing competition, often with significant prize money awarded. Pow-wows vary in length from a one-day event, to major Pow-wows called for a special occasion which can be up to one week long.

[5] Translated for the word “Drumstick”


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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,इथियोपिया व इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

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रचनाकार: लोककथा // ईकटोमी और बतखें // सुषमा गुप्ता
लोककथा // ईकटोमी और बतखें // सुषमा गुप्ता
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