अरुणिमा, गिरते ही बेहोश हो गयी ! वहां से बहुत सी ट्रेन इधर से उधर निकली पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया ! वो पूरी रात ऐसी ही ट्रैक पर पड़ी रही...
अरुणिमा, गिरते ही बेहोश हो गयी ! वहां से बहुत सी ट्रेन इधर से उधर निकली पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया ! वो पूरी रात ऐसी ही ट्रैक पर पड़ी रही ! उसका, एक पैर कट चुका था और उसको बहुत तकलीफ थी ! सुबह, जब गाँव के लोगों ने देखा, तो उसे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया ! जब अरुणिमा की आँख खुली, तो वो एक अस्पताल में थी !
अरुणिमा को कुछ, समझ ही नहीं आ रहा था ! एक ही पल में उसकी जिंदगी पूरी तरह से पलट गयी थी ! कल जहाँ, वो अपने सुनहरे सपनों में खोयी थी वहीँ आज इतनी मुश्किल घडी में ! वो बहुत परेशान हो रही थी ! जो भी उसको देखने आता वो उसके दुःख पर आंसू बहाता और कहता कि अब इस लड़की का क्या होगा ? कैसे यह अपनी जिंदगी गुजार पाएगी ? इस हालात में, कौन इससे शादी करेगा ? इसका तो जीवन ही बर्बाद हो गया !!!
सभी लोग बहुत परेशान थे, लेकिन अरुणिमा के मन में कुछ और ही चल रहा था ! उसने सोचा कि यदि इतनी परेशानियों के बावजूद —- आज अगर वो जिन्दा है, तो यह ऐसे ही नहीं है — इसके पीछे जरूर भगवान् का कोई न कोई बड़ा मकसद होगा ! शायद भगवान् उससे कुछ बड़ा काम करवाना चाहते हैं ! उसने भगवान् को धन्यवाद दिया और कुछ बड़ा करने की ठान ली !
जब वो ठीक हुई तो वो अपने घर नहीं गयी वो वहां से सीधी बछेंद्री पाल जी ( एवरेस्ट फतह करने वाली प्रथम भारतीय महिला ) के पास गयी और बताया कि वो भी एवरेस्ट फतह करना चाहती है !बछेंद्री पाल ने उसकी हिम्मत की तारीफ़ की और उससे कहा कि इतनी मुश्किल के बाद भी यदि यह ख़याल तेरे मन में आया है — तू तो एवरेस्ट फतह कर चुकी, बस दुनिया को अब तारीख का पता होना बाकी है !
अरुणिमा की पूरी ट्रेनिंग बछेंद्री पाल जी की देख-रेख में पूरी हुई ! 18 महीने की कड़ी मेहनत के बाद उसने, अपने मिशन की शुरुआत की ! शुरू में शारीरिक और आर्थिक, बहुत तकलीफ हुई पर जब tata steel ने उसे scholarship दी तो उसने पूरे जोश के साथ और पूरी focus के साथ अपने मिशन की तरफ कदम बाधा दिए अरुणिमा के कृत्रिम (artifitial) पैर के साथ मुश्किल यह दी की कभी-कभी उस पर सूजन आ जाती थी, जिससे उसे बहुत तकलीफ होती थी ! साथ ही साथ उसके सीधे पैर में भी लोहे की रोड थी, चढ़ाई के दौरान उसे बहुत मुश्किल होती थी ! उसे बताया गया की यह काम तुम्हारे बस की बात नहीं है – ऐसा करना मानो मौत के मुंह में जाना हो – लेकिन उसने, अपने मन को अच्छे से समझा लिया कि अब चाहे कुछ हो जाए मुझे Everest फतह करना ही है !
52 दिनों की कठिन चढ़ाई के बाद आखिरकार, वो मुबारक सुबह भी आ गयी जब, अरुणिमा अपने सपने को साकार करने वाली थी ! |
21 मई 2013 को उन्होंने एवरेस्ट फतह कर ली | एवरेस्ट फतह करने के साथ ही वे विश्व की पहली विकलांग महिला पर्वतारोही बन गई|
(पदम् श्री अरुणिमा सिन्हा जी की कहानी प्रणव भारद्वाज के ब्लॉग से साभार )
जीवन को जाने बिना, उद्देश्य को समझे बिना तथा समाज के हित में ही अपना हित है यह अहसास किए बिना किसी भी मनुष्य या समाज की सर्वागीण प्रगति नहीं हो सकती । मनुष्य परमात्मा की अलौकिक कृति है । वह विश्वम्भर परमात्म देव की महान रचना है ।वेदान्त विज्ञान के चार महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं- तत्त्वमसि ‘‘अयमात्मा ब्रह्म’’, ‘‘प्रज्ञानं ब्रह्म’’, ‘‘सोऽहम् ’’। इन चारों का एक ही अर्थ है कि परिष्कृत जीवात्मा ही परब्रह्म है। हीरा और कुछ नहीं, कोयले का ही परिष्कृत स्वरूप है। भाप से उड़ाया हुआ पानी ही वह स्रवित जल (डिस्ट्रिल्ड वाटर) है, जिसकी शुद्धता पर विश्वास करते हुए उसे इञ्जेक्शन जैसे जोखिम भरे कार्य में प्रयुक्त किया जाता है। मनुष्य और कुछ नहीं, मात्र भटका हुआ देवता है। यदि वह अपने ऊपर चढ़े मल- आवरण और विक्षेप को, कषाय- कल्मषों को उतार फेंके, तो उसका मनोमुग्धकारी अतुलित सौंदर्य देखते ही बनता है। गाँधी और अष्टावक्र की दृश्यमान कुरूपता उनकी आकर्षकता, प्रतिभा, प्रामाणिकता और प्रभाव गरिमा में राई- रत्ती भी अन्तर न डाल सकी। मनःस्थिति ही परिस्थितियों की जन्मदात्री है। मनुष्य जैसा सोचता है, वैसा ही करता है एवं वैसा ही बन जाता है। किए हुये भले- बुरे कर्म ही संकट एवं सौभाग्य बनकर सामने आते हैं। उन्हीं के आधार पर रोने- हँसने का संयोग आ धमकता है। इसलिए परिस्थितियों की अनुकूलता और बाहरी सहायता प्राप्त करने की फिराक में घूमने की अपेक्षा, यह हजार दर्जे अच्छा है कि भावना, मान्यता, आकांक्षा, विचारणा और गतिविधियों को परिष्कृत किया जाये।सद्गुणों को अपने दृष्टिकोण, स्वभाव एवं अभ्यास में उतारने का सबसे अच्छा अवसर परिवार- परिकर के बीच मिलता है। यदि घर के आवश्यक कार्य परिवार- परिकर के सभी सदस्य साथ- साथ सहयोगपूर्वक निपटाया करें, उत्साह की प्रशंसा और उपेक्षा की भर्त्सना किया करें, तो इतने से ही स्वल्प परिवर्तन से, परिवार के हर सदस्य को सुसंस्कारी बनाने का अवसर मिल सकता है।
अपनी निज की समर्थता, दक्षता, प्रामाणिकता और प्रभाव- प्रखरता एक मात्र इसी आधार पर निखरती है कि चिन्तन, चरित्र और व्यवहार में उत्कृष्टता का अधिकाधिक समावेश हो। अनगढ़, अस्त- व्यस्त लोग गई- गुजरी जिन्दगी जीते हैं। दूसरों की सहायता कर सकना तो दूर, अपना गुजारा तक जिस- तिस के सामने गिड़गिड़ाते, हाथ पसारते या उठाईगीरी करके बड़ी कठिनाई से ही कर पाते हैं, पर जिनकी प्रतिभा प्रखर है, उनकी विशिष्टताएँ मणि- मुक्तकों की तरह झिलमिलाती हैं, दूसरों को आकर्षित- प्रभावित भी करती हैं और सहारा देने में भी समर्थ होती हैं। अर्नाल्ड बेनेट ने एक जगह लिखा है कि जो आदमी यह महसूस करता है कि किसी महान निश्चय के समय वह साहस से काम नहीं ले सका, जिंदगी की चुनौती को कुबूल नहीं कर सका, वह सुखी नहीं हो सकता। मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
परम आदरणीय सुशील शर्मा जी का लेख प्रेरक है !समाज को नई दिशा देने वाले लेखन और लेखक को नमन!
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