देश विदेश की लोक कथाएँ — पूर्वीय अफ्रीका की लोक कथाएँ जिबूती, ऐरिट्रीया, केन्या, मैडागास्कर, रीयूनियन, सोमालिया, सूडान, यूगान्डा संकलनकर्ता ...
देश विदेश की लोक कथाएँ —
पूर्वीय अफ्रीका की लोक कथाएँ
जिबूती, ऐरिट्रीया, केन्या, मैडागास्कर, रीयूनियन, सोमालिया, सूडान, यूगान्डा
संकलनकर्ता
सुषमा गुप्ता
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9 फ़सीटो बाजार गया[1]
यह लोक कथा हमने तुम्हारे लिये पूर्वीय अफ्रीका के यूगान्डा देश की लोक कथाओं से चुनी है।
एक सुबह फ़सीटो[2] बहुत जल्दी उठा, मुर्गे की पहली बाँग पर, सूरज उगने से भी पहले।
आज उसको अपने पिता की साइकिल पर बाजार जाना था क्योंकि उसके पिता को बुखार आ रहा था। आज वह एक बड़े आदमी की तरह केला ले कर साइकिल पर चढ़ता और बाजार जाता, अपना सिर ऊँचा करके, बड़े आदमियों में आदमी की तरह।
उसने अपनी सोने वाली चटाई मोड ,कर रखी और बाहर झाँका। आसमान केले के पेड़ों के पीछे जहाँ सूरज उगता था वहाँ पीला पीला हो रहा था। ओस अभी भी घास पर पड़ी थी।
वह एक सुन्दर सुबह थी – अपने आपसे बाजार जाने के लिये, जेब में पैसे लाने के लिये और सबके सामने उनको गिनने के लिये, जैसा कि उसका पिता किया करता था।
जब सैन्ट और शिलिंग[3] के सिक्के उसके हाथ के लकड़ी के कटोरे में पड़ेंगे तब सब कहेंगे — “आहा, इतने सारे पैसे? फ़सीटो तुम तो सचमुच बहुत ही होशियार हो। तुम तो दुनियाँ जानते हो। ”
घर के बाहर ठंडी सुबह में उसकी माँ केला बाँध रही थी। केला बाँध कर उसने फ़सीटो को बुलाया — “फ़सीटो, आ कुछ खा ले। ”
फ़सीटो बोला — “नमस्ते माँ, आज तुम कैसी हो?”
माँ केला साइकिल की रैक से बाँधते हुए बोली — “मैं ठीक हूँ बेटा तू कैसा है। ”
“मैं ठीक हूँ माँ। ”
उसकी साइकिल एक पेड़ के सहारे खड़ी थी। फिर उसकी माँ एक तूम्बा[4] ले आयी और फ़सीटो को उसमें से एक कटोरा दलिया निकाल कर दिया। वह वूले पेड़[5] के नीचे बैठ गया और अपना दलिया खाने लगा।
इस बीच उसकी माँ ने एक रूमाल में थोड़ी से सिक्के डाले और कई बार उस रूमाल को अलबेटा दे कर उसमें कस कर गाँठ बाँध दी।
फ़सीटो ने पैसे लिये और उनको अपनी गहरी वाली जेब में रख लिया ताकि वे कहीं खोयें नहीं। वह उनको अपनी टाँग से छूता हुआ महसूस कर रहा था। उसने सोचा वह वहाँ पर सुरक्षित थे। फिर उसने अपनी साइकिल उठायी और सड़क पर चल दिया।
उसकी माँ चिल्लायी — “नमस्ते फ़सीटो। ”
“नमस्ते माँ” फ़सीटो ने जवाब दिया और अपनी साइकिल भगा दी। पर उसकी साइकिल उस समय केले की वजह से बहुत भारी हो रही थी। वह उस समय से ज़्यादा भारी थी जब वह अपने पिता के बाजार से लौटने के बाद शाम को उससे खेला करता था।
केले का भारी बोझ उस साइकिल को इधर से उधर हिला रहा था। पहले इस तरफ फिर उस तरफ और फिर उसकी साइकिल फिसल गयी और लाल जमीन पर गिर पड़ी।
“उफ। ” फ़सीटो ने अपनी ज़बान काटी और उसको साइकिल का हैण्डिल पकड़ कर उसको उठाना ही मुश्किल हो गया।
उसने सोचा — “यकीनन मेरे पिता बहुत ज़्यादा ताकतवर होंगे जो वह इतनी आसानी से इस साइकिल पर बाजार जाते होंगे। पर आज मैं अपने पिता जैसा बनूँगा। मैं किसी को यह कहने का मौका नहीं दूँगा कि फ़सीटो इस बोझे की वजह से साइकिल से लुढ़क गया। ”
वह अपनी साइकिल धकेलता रहा धकेलता रहा जहाँ तक कि सड़क ढलान पर जाती थी। फिर वह उस पर बैठ गया, थोड़ा झुका और पैडल मार कर चल दिया।
ठंडी हवा उसके चेहरे पर लग रही थी और चिड़ियें उसके रास्ते से उड़ी जा रहीं थीं – “कनाक, कनाक। ”
फ़सीटो बोलता जा रहा था — “उसको रास्ता दो जो तुमसे ज़्यादा ताकतवर है। फ़सीटो को रास्ता दो जो आज आदमियों में आदमी की तरह से बाजार जा रहा है। ”
सूरज अब उसके पीछे था और केले की पत्तियों पर चमकने लगा था। लाल गुड़हल[6] के फूल अपनी पंखुड़ियाँ खोलने लगे थे और दूसरे फूलों की मीठी महक हवा में फैलने लगी थी। बुलबुल ने भी गाना शुरू कर दिया था।
सूरज और ऊपर उठा और घाटी में फैला कोहरा छँट गया।
जल्दी ही सड़क पर फ़सीटो ने एक बूढ़ा आदमी देखा। वह अपने हाथ में एक टोकरी लिये हुए झुका हुआ चला जा रहा था। वह बूढ़ा मुसोके[7] था।
जैसे ही फ़सीटो उसके पास से निकला तो वह उससे बोला — “नमस्ते। ”
“नमस्ते फ़सीटो। तुम्हारे पिता को आज क्या हुआ कि उसने आज तुमको इस तरह हिलते हुए बाजार जाने के लिये अपनी साइकिल दे दी?”
फ़सीटो की मुसोके से बिल्कुल नहीं बनती थी। मुसोके ने कभी तौर तरीके नहीं सीखे थे फिर भी वह बोला — “आज उनको बुखार है इसलिये आज केला ले कर बाजार मैं जा रहा हूँ। ”
बूढ़े मुसोके ने दुख प्रगट किया और फ़सीटो की कमर सहलायी। उसने झुर्रियों में से अपनी छोटी काली आँखों से फ़सीटो की तरफ देखा और बोला — “मेरे बच्चे, मैं बूढ़ा हूँ और मेरी कमर भी अकड़ी हुई है। ई ई ई, बहुत अकड़ी हुई है। क्या तुम मेरे पपीते बाजार ले जा कर मेरा चलना बचा दोगे?”
मुसोके के पास बहुत सारे पपीते थे और उसकी टोकरी बहुत भारी लग रही थी। अगर वह उसके पपीते ले जाता तो उसको उस टोकरी को अपने हैन्डिल से बाँधना पड़ता।
तो सोचो कि फिर साइकिल चलाना कितना मुश्किल पड़ता। पर फिर भी एक बूढ़े आदमी को मना करना अच्छे तौर तरीकों में नहीं आता सो वह बोला — “ठीक है। मैं आपके पपीते ले जाता हूँ। ”
बूढ़ा मुसेको बोला — “यह कुछ अच्छे बच्चे वाली बात हुई न। मैं तुम्हारे पिता से कहूँगा कि तुम्हारा बेटा बहुत ही सलीके वाला आदमी है। ”
पर जब उसने मुसेको से उसके पपीते लिये तो उसने एक गहरी साँस ली क्योंकि वह जानता था कि यह बूढ़ा मुसेको उसकी इस मेहरबानी को शाम से पहले पहले ही भूल जायेगा और फिर जब वह उससे अगली बार मिलेगा तो वह उससे फिर झगड़ेगा।
उसने पपीते अपनी साइकिल से बाँधे और बूढ़े की तरफ घूम कर देखा। मुसोके तब तक बैठ चुका था और उसने अपना तम्बाकू का थैला निकाल लिया था।
फ़सीटो बोला — “नमस्ते बूढ़े बाबा। ”
बूढ़ा मुसोके बोला — “नमस्ते बेटा फ़सीटो। ” और वह एक पेड़ की छाया में लेट गया और अपने मिट्टी के पाइप में तम्बाकू भर लिया।
अब तो वह साइकिल और भारी हो गयी थी। अब फ़सीटो जब पैडल मारता था तो उसके पैरों में दर्द होने लगता था। वह बहुत ही नाउम्मीद हो चुका था।
उसको लग रहा था कि वह अपने पिता की साइकिल पर बाजार बड़ी शान से जायेगा पर यह तो बहुत मुश्किल हो गयी। फिर भी मैं आदमियों में एक आदमी हूँ। यही मेरे लिये बहुत कुछ है।
सूरज और ऊपर चढ़ा और सड़क पर बहुत सारे आदमी बाजार जाने के लिये आ गये।
“नमस्ते नालूबाले[8]। ” फ़सीटो ने पुकारा।
नालूबाले ने भी जवाब में अपना हाथ हिलाया। वह बहुत सुन्दर थी। पर मुश्किल यह थी कि वह फ़सीटो से बड़ी थी और शादीशुदा भी थी। वह नालूबाले को बहुत चाहता था।
नालूबाले ने कहा — “ठीक से जाना फ़सीटो। ”
सड़क के दोनों तरफ बहुत सारी स्त्र्यिाँ पानी के बरतन लिये जा रही थीं और बच्चे उनके पीछे अपने बड़े बड़े छल्ले[9] और डंडियाँ या फिर मूँगफली की छोटी छोटी टोकरियाँ ले कर भाग रहे थे।
“फ़सीटो, मेरे बच्चे, ज़रा रुकना। ”
फ़सीटो रुक गया। वह सोच रहा था कि अब मुझे किसने पुकारा? उसने देखा कि कसीन्गी[10] अपने तीन मुर्गों को साथ लिये भागी चली आ रही थी। वे मुर्गे आपस में टाँगों से बँधे थे।
“बच्चे, मेहरबानी करके मेरे ये मुर्गे भी ज़रा बाजार ले चलो। इससे मेरा बहुत काम बच जायेगा। और हाँ मेरी चिल्लर ठीक से ले आना – 5 शिलिंग हर एक मुर्गे का दाम। नहीं नहीं, बड़े वाले का 7 शिलिंग लगा देना। ” और उसने अपने मुर्गे फ़सीटो को पकड़ा दिये।
फ़सीटो ने सोचा — “ये लोग क्या समझते हैं कि मैं क्या कोई खच्चर हूँ जो इतना सारा सामान ले जाऊँ? क्या ये सब लोग मेरे पिता के साथ भी ऐसा कर सकते थे?
फ़सीटो बोला — “कसीन्गी, मैं तुम्हारे ये तीनों मुर्गे इन केलों और पपीतों के साथ कहाँ रखूँगा?” कसीन्गी ने उन बन्डलों की तरफ देखा और फिर अपनी आँखें टेढ़ी करके उसने केलों की तरफ इशारा कर दिया।
“वहाँ बच्चे वहाँ। क्या तुमको दिखायी नहीं देता? तुम्हारे केलों के ऊपर तो 10 मुर्गो की जगह है। ”
उसने केले के पत्तों की बनी रस्सी ली और उससे अपने तीनों मुर्गों को केलों के ऊपर बाँध दिया।
साइकिल के ऊपर अब वह ढेर इतना बड़ा हो गया कि फ़सीटो के हाथ उसके ऊपर मुश्किल से पहुँच रहेे थे। कसीन्गी फिर बोली — “सँभाल कर जाना। अगर मेरे मुर्गे बाजार तक जाते जाते मर गये तो मैं तुम्हारे पिता से शिकायत कर दूँगी। ”
और फ़सीटो यह जानता था कि कसीन्गी ऐसी चीज़ों को उसके पिता से कहना कभी नहीं भूलेगी। उसने एक लम्बी साँस ली और फिर से अपनी साइकिल पर चढ़ गया।
“नमस्ते, और मेरे पैसे मत भूलना। ”
“नमस्ते, कसीन्गी। नहीं भूलूँगा। ”
अब बहुत गरम हो गया था। पसीना उसके चेहरे पर और उसकी कमीज के नीचे उसकी पीठ पर बहने लगा था। वह हाँफने भी लगा था। उसको चिन्ता थी कि क्या वह बाजार समय पर पहुँच पायेगा?
जितना उसने सोचा था बाजार उससे कहीं ज़्यादा दूर था। हर थोड़ी देर के बाद कोई न कोई उठी हुई जमीन आ जाती और जब उसकी साइकिल उसके ऊपर से गुजरती तो मुर्गे “टाक, टाक” चिल्ला पड़ते।
तभी उसको एक लड़का अपने आगे जाता दिखायी दिया। वह बहुत पतला सा था और बहुत धीरे चल रहा था। वह सीधा भी नहीं चल रहा था। वह किक्यो[11] था। किक्यो तो बहुत बीमार था तो फिर आज यह कहाँ जा रहा है?
वह चिल्लाया — “ए किक्यो, मेरी तरफ देख। मैं केला ले कर बाजार जा रहा हूँ। मेरे पिता को बुखार आया हुआ है। तू कहाँ जा रहा है?”
किक्यो बोला — “मैं अपनी दवा लेने अस्पताल जा रहा हूँ। क्या तुम मुझे अपने साथ साइकिल पर बिठा कर नहीं ले चलोगे फ़सीटो? मेरी टाँगें बहुत थकी हुईं हैं। ”
फ़सीटो चिल्लाया — “पर तुम बैठोगे कहाँ?”
वह अन्दर ही अन्दर गुस्सा हो रहा था। उसने मन ही मन में कहा “इन सब चीज़ों के साथ ही मुझे बहुत परेशानी हो रही है फिर मैं तुझे कहाँ बिठाऊँगा।
बूढ़े मुसोके ने पहले मुझे अपने पपीते दिये, फिर कसीन्गी ने मुझे अपने मुर्गे दिये। अब मेरे पास किसी बच्चे के लिये जगह नहीं है, किक्यो। मैं क्या कोई सामान लादने वाला खच्चर हूँ जो हर एक को बाजार ले जाऊँ? तू अपने आप जा। नमस्ते। ”
और वह किक्यो को वहीं छोड़ कर जल्दी से अपनी साइकिल पर चढ़ कर आगे बढ़ गया।
पर किक्यो का चेहरा उसकी नजरों के सामने से नहीं हटा। किक्यो की आँखें बड़ी बड़ी थीं, चेहरा पतला था और उसके नाक नक्श तीखे थे। उसकी पसलियाँ उसके पेट के ऊपर आगे को निकली हुईं थीं। उसके पैरों के जोड़ सूजे हुए थे। उसकी बाँहें और टाँगें बहुत पतली थीं।
क्या उसको किक्यो को अस्पताल नहीं ले जाना चाहिये? आखिर किक्यो ने उससे कितने अच्छे तरीके से पूछा था जबकि उस बूढ़े मुसोके और किसीन्गी ने इतने अच्छे तरीके से पूछा भी नहीं था।
सो उसने फिर एक लम्बी साँस ली और रुक गया। फिर वह घूमा और पुकारा — “किक्यो, आजा जल्दी से आजा। जल्दी कर। अगर तू चुपचाप बैठा रहा और गिरा नहीं तो मैं तुझे शहर ले जाऊँगा। आजा जल्दी कर। ”
किक्यो दौड़ा दौड़ा आया और बोला — “धन्यवाद फ़सीटो, धन्यवाद मेरे दोस्त। ”
फ़सीटो बोला — “आजा और इस गद्दी पर बैठ जा और हाँ, देख हिलना नहीं। बिल्कुल बिना हिले डुले चुपचाप बैठे रहना। अगर तू हिला तो मेरी साइकिल भी गिर जायेगी और उसके ऊपर रखा सब कुछ गिर जायेगा। ” किक्यो तुरन्त ही साइकिल की गद्दी पर चढ़ कर बैठ गया।
वहाँ बैठ कर वह बहुत खुश दिखायी दे रहा था। वह फिर बोला — “धन्यवाद मेरे दोस्त। मैं इस पर चूहे की तरह बिना हिले डुले बैठूँगा तू फिकर मत कर। ”
फ़सीटो ने अपनी साइकिल फिर से चलानी शुरू कर दी। अब वह ढलान पर जा रहा था। उसकी टाँगें और बाँहें दोनों दुख रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे साइकिल हिलना ही न चाहती हो।
गरमी में सड़क भी पानी की तरह हिलती दिखायी दे रही थी। और टिड्डों की चिल्लाहट से उसका सिर फटा जा रहा था। पर बस अब केवल एक पहाड़ी पार करनी और रह गयी थी।
तभी किक्यो बोला — “फ़सीटो मुझे भूख लगी है क्या मैं एक केला खा लूँ?”
फ़सीटो बोला — “नहीं, ये केले बाजार में बेचने के लिये हैं। मेरे पिता क्या कहेंगे जब उनको यह मालूम पड़ेगा कि बच्चों ने उनके केले रास्ते में ही खा लिये। ”
किक्यो बोला — “हाँ, यह तो ठीक है। ”
पर फिर फ़सीटो ने सोचा कि किक्यो कितना पतला सा है, छोटा सा और भूखा सा। और वह केवल 7 साल का ही तो था। इतनी छोटी सी उमर में उसने काफी सहा था।
सो वह किक्यो से बोला — “तू एक केला ले सकता है। पर देखना केवल एक ही लेना और सँभाल कर लेना कभी केले के पूरे के पूरे ढेर को ही खराब कर दे। ”
किक्यो बोला — “धन्यवाद फ़सीटो। उसने एक केला लिया, उसे छीला और खाते हुए बोला — “यह केला तो बहुत अच्छा है फ़सीटो। बहुत बहुत धन्यवाद। ”
अब वे उस पहाड़ी पर खड़े थे जहाँ से शहर दिखायी देता था, पीले रंग के फूलों के पेड़ों के बीच में लाल और कत्थई रंग का शहर।
वहाँ बाजार में आम के पेड़ों के नीचे बहुत सारे लोग खड़े थे। कुछ लोग अपनी लम्बी लम्बी पोशाकें पहने खड़े बात कर रहे थे। कुछ लोग बीयर[12] पी रहे थे।
स्त्र्यिाँ अपनी इन्द्रधनुष के सारे रंगों की लम्बी लम्बी चमकीली पोशाकें पहने दूकानों में बैठी थीं जैसे रंगीन चिड़ियें छाया में आराम कर रही हों।
फ़सीटो बोला बाजार जाना कितना अच्छा है। आदमियों में आदमी लगना कितना अच्छा है। किक्यो ने केले का एक और टुकड़ा काटा और बोला — “तुम सच कह रहे हो फ़सीटो, तुम बहुत ही मजबूत आदमी हो। ”
यह सुन कर फ़सीटो की छाती उसके सीने में फूल गयी और वह बिल्कुल सीधा खड़ा हो कर नीचे बाजार की तरफ देखने लगा। तभी उसके पीछे से कोई ज़ोर से हँसा।
फ़सीटो ने पीछे देखा तो बोसा, काग्वे, वस्वा और मटाबी[13] झाड़ियों में से निकल रहे थे। उसको बोसा बिल्कुल पसन्द नहीं था और बोसा को भी फ़सीटो बिल्कुल पसन्द नहीं था। सो वह उनसे मुँह फेर कर अपनी साइकिल ले कर ढलान पर चल दिया।
बोसा चिल्लाते हुए फ़सीटो के साथ साथ भागा — “देखो उधर कौन जा रहा है? उधर देखो कौन अपने पिता की इतनी बड़ी साइकिल ले कर हिलता हुआ चला जा रहा है? देखो वह कौन कूड़ा कबाड़ा लिये चला जा रहा है?”
काग्वे, वस्वा और मटाबी भी बोसा के पीछे पीछे और कीग्वे की तरफ इशारा करते हुए और चिल्लाते हुए भागे — “देखो गुब्बारे जैसा केला खाता हुआ कौन बाजार जा रहा है?”
फ़सीटो चिल्लाया — “तुम सब मुझसे जलते हो क्योंकि तुम्हारे पास चढ़ने के लिये साइकिल ही नहीं है। ” और ढलान पर तेज़ी से नीचे उतरता चला गया। ”
बोसा चिल्लाया — “तुम झूठ बोलते हो, तुम झूठ बोलते हो। ”
काग्वे चिल्लाया — “इस तरह से बदतमीजी से बोलने के लिये मैं तुम्हें सबक सिखाऊँगा। ”
बोसा आगे भागा और एक पेड़ की डंडी तोड़ ली। वह उसने इस तरह से पकड़ ली कि वह साइकिल के पहियों के तारों में जा कर उलझ जाये और जिस साइकिल पर फ़सीटो और किक्यो बैठे थे वह जमीन पर गिर जाये।
फ़सीटो ने उसको ऐसा करते देख लिया तो अपनी साइकिल को एक तरफ करने की कोशिश की पर बोसा उसके सामने फिर आ गया।
अब फ़सीटो कुछ नहीं कर सकता था। वह देख रहा था कि वह और किक्यो दोनों साइकिल से गिर जायेंगे और केले, पपीते और मुर्गे सब कुचल जायेंगे।
बोसा हँसा — “हा हा हा, सो तुम सोचते हो कि तुम आदमियों में आदमी हो। जब तुम सड़क पर गिर जाओगे तो बच्चों की तरह से रोओगे। ” बोसा अपनी डंडी ले कर फ़सीटो के और पास आ गया।
उसी समय एक आधा खाया केला उसकी आँखों पर आ कर लगा और फिर उसके बाद किसी ने केले का एक छिलका उसके मुँह पर बड़ी ज़ोर से फेंका। किक्यो हँसा और बोसा अपना मुँह साफ़ करते हुए सड़क के एक तरफ को हो गया।
किक्यो हँसते हुए ज़ोर से बोला — “भाग फ़सीटो भाग। ”
पर मटाबी जो उन सबमें सबसे बड़ा था पीछे से भागा — “ओ बबून, तुम क्या समझते हो कि तुम हमारे साथ बदतमीजी से बरताव कर सकते हो? मैं तुमको दिखाता हूँ कि मैं शान बघारने वालों के साथ क्या कर सकता हूँ। ”
कह कर वह केले के ढेर को नीचे खींचने के लिये ऊपर को उठा कि अचानक दर्द से चिल्ला कर पीछे की तरफ हट गया — “औ, अई। ” क्योंकि एक मुर्गे ने उसके चेहरे और बाँह पर अपनी चोंच मार दी थी।
फ़सीटो ने सोचा — “अच्छा हुआ मैं कसीन्गी के ये मुर्गे अपने साथ ले आया था। ”
पर उनका अभी वस्वा से पाला नहीं पड़ा था। वस्वा ने एक पत्थर उठाया और फ़सीटो पर फेंका। “फटाक”। वह फ़सीटो की पीठ पर जा कर लगा जिससे उसको काफी दर्द हुआ।
वस्वा उसके पीछे चिल्लाते हुए भागा — “ओ छोटे कायर, छोटे कायर लोग तो बजाय सामना करने के बस भाग खड़े होते हैं। छोटा कायर कहीं का। ”
वह दूसरा पत्थर उठाने के लिये नीचे झुका कि तभी “बौन्क”। एक सख्त पपीता हवा में उड़ कर आया और उसके कान पर आ कर लगा। वस्वा अपना सिर पकड़े झाड़ियों की तरफ भाग गया।
फ़सीटो ने फिर सोचा — “ओह अच्छा हुआ कि मैंने बूढ़े मुसोके के पपीते लेने से मना नहीं किया। ”
किक्यो उसके पीछे से हँस कर बोला — “तेज़ चलो फ़सीटो और तेज़। अब हमें कोई नहीं पकड़ सकता। ”
फ़सीटो ने साइकिल तेज़ चलानी शुरू की। ज़ीईईईई , , , साइकिल में से आवाज आयी। किक्यो की हँसी अभी भी उसके कानों में गूँज रही थी। वे तेज़ और और तेज़ भागते जा रहे थे। अब उनको कोई नहीं पकड़ सकता था।
फ़सीटो बोला — “किक्यो, हालाँकि तुम बहुत छोटे हो फिर भी तुम बहुत ही होशियार बच्चे हो। बहुत अच्छे। अगर तुमने यह केले का छिलका और पपीते उनकी तरफ इतनी तेज़ी से नहीं फेंके होते तो हम लोग तो कहीं सड़क पर पड़े होते और वे चोर हमारी चीज़ें चोरी करके ले गये होते। ”
उसने अपने मन में सोचा कि अच्छा हुआ कि वह किक्यो के ऊपर मेहरबान हो गया था और उसको अपने साथ बिठा लाया।
अब तो वे दोनों सड़क पर उड़ते हुए से भागे चले जा रहे थे। पेड़ और मकान सब पीछे छूटे जा रहे थे। अचानक वे बाजार में आ गये। आदमी और मुर्गे और कुत्ते सभी उनके सामने से हट गये।
“ए फ़सीटो, क्या कोई बुरी चीज़ तुम्हारा पीछा कर रही है जो तुम इतनी तेजी से भागे चले जा रहे हो? मेरी मूँगफलियों का ख्याल रखना। मेरे अंडों का ख्याल रखना। मेरे पपीतों का ख्याल रखना। ”
उसकी बुआ ने अपनी दूकान से पुकारा — “फ़सीटो, मेरे भतीजे। क्या ऐसे बाजार आते हैं जैसे मैदान में तूफान?”
पर उसकी बुआ मुस्कुरा रही थी और वह फ़सीटो, पीछे की सीट पर बैठे किक्यो के साथ बाजार में अपना सिर ऊँचा किये चला जा रहा था।
फ़सीटो हँसा और साथ में किक्यो भी। उसकी कमर गर्व से सीधी हो गयी। वह अपने पिता के केले तो बेचने के लिये लाया ही था, मुसोके के पपीते और कसीन्गी के मुर्गे भी बिना किसी नुकसान के ले आया था।
आज वह आदमियों में एक आदमी की तरह साइकिल पर चढ कर आया था।
देश विदेश की लोक कथाओं की सीरीज़ में प्रकाशित पुस्तकें —
36 पुस्तकें www.Scribd.com/Sushma_gupta_1 पर उपलब्ध हैं।
नीचे लिखी हुई पुस्तकें हिन्दी ब्रेल में संसार भर में उन सबको निःशुल्क उपलब्ध है जो हिन्दी ब्रेल पढ़ सकते हैं।
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1 नाइजीरिया की लोक कथाएँ–1
2 नाइजीरिया की लोक कथाएँ–2
3 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1
4 रैवन की लोक कथाएँ–1
नीचे लिखी हुई पुस्तकें ई–मीडियम पर सोसायटी औफ फौकलोर, लन्दन, यू के, के पुस्तकालय में उपलब्ध हैं।
Write to :- E-Mail : thefolkloresociety@gmail.com
1 ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ — 10 लोक कथाएँ — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध
2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1 — 45 लोक कथाएँ — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध
नीचे लिखी हुई पुस्तकें हार्ड कापी में बाजार में उपलब्ध हैं।
To obtain them write to :- E-Mail drsapnag@yahoo.com
1 रैवन की लोक कथाएँ–1 — इन्द्रा पब्लिशिंग हाउस
2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1 — प्रभात प्रकाशन
3 इथियोपिया की लोक कथाएँ–2 — प्रभात प्रकाशन
नीचे लिखी पुस्तकें रचनाकार डाट आर्ग पर मुफ्त उपलब्ध हैं जो टैक्स्ट टू स्पीच टैकनोलोजी के द्वारा दृष्टिबाधित लोगों द्वारा भी पढ़ी जा सकती हैं।
1 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1
http://www.rachanakar.org/2017/08/1-27.html
2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–2
http://www.rachanakar.org/2017/08/2-1.html
3 रैवन की लोक कथाएँ–1
http://www.rachanakar.org/2017/09/1-1.html
4 रैवन की लोक कथाएँ–2
http://www.rachanakar.org/2017/09/2-1.html
5 रैवन की लोक कथाएँ–3
http://www.rachanakar.org/2017/09/3-1-1.html
6 इटली की लोक कथाएँ–1
http://www.rachanakar.org/2017/09/1-1_30.html
7 इटली की लोक कथाएँ–2
http://www.rachanakar.org/2017/10/2-1.html
8 इटली की लोक कथाएँ–3
http://www.rachanakar.org/2017/10/3-1.html
9 इटली की लोक कथाएँ–4
http://www.rachanakar.org/2017/10/4-1.html
10 इटली की लोक कथाएँ–5
http://www.rachanakar.org/2017/10/5-1-italy-lokkatha-5-seb-wali-ladki.html
नीचे लिखी पुस्तकें जुगरनौट डाट इन पर उपलब्ध हैं
1 सोने की लीद करने वाला घोड़ा और अन्य अफ्रीकी लोक कथाएँ
https://www.juggernaut.in/books/8f02d00bf78a4a1dac9663c2a9449940
2 असन्तुष्ट लड़की और अन्य अमेरिकी लोक कथाएँ
https://www.juggernaut.in/books/2b858afc522c4016809e1e7f2f4ecb81
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Updated on Sep 27, 2017
लेखिका के बारे में
सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र् और अर्थ शास्त्र् में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइबे्ररी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश, लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आ गयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी एँड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी – www.sushmajee.com। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भि्ान्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला – कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देख कर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी – हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं।
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको “देश विदेश की लोक कथाएँ” क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे।
विंडसर, कैनेडा
मई 2016
[1] Fesito Goes to Market – a folktale from Uganda, East Africa.
Adapted from the book: “Favorite African Folktales”, edited by Nelson Mandela.
Told by Cicely Van Straten
[2] Fesito – a Ugandan male name
[3] Cents and Shillings were the currency in Uganda in those times.
[4] Translated for the words “Milk Gourd” also called “White Gourd” or “Bottle Gourd” (laukee in Hindi, Dodhee in Gujaraatee, Saurikai in Tamil) – the dried outer cover of this vegetable. All gourds are used as storage device in Africa to keep dry or wet things there. See its picture above.
[5] Mvule tree – a tall tree abaundantly found in Uganda
[6] Red Hibiscus flower. See its picture above
[7] Musoke – a Ugandan name of a male
[8] Nalubale – a Ugandan female name
[9] Translated for the word “Hoop”
[10] Kasiingi – a Ugandan female name
[11] Kikyo – a Ugandan male name
[12] Beer is a very light kind of alcoholic drink. It is very common in most African countries.
[13] Bosa, Kagwe, Waswa and Matabi – all are Ugandan male names
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.
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