दक्षिणी अफ्रीका की लोक कथाएँ // 7 - जादुई खीरे // सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ — दक्षिणी अफ्रीका की लोक कथाएँ अंगोला, बोट्सवाना, लिसोठो, मलावी, मोरेशस, मौज़ाम्बीक, नामिबिया, स्वाज़ीलैंड, जाम्बिया, ज़...

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देश विदेश की लोक कथाएँ — दक्षिणी अफ्रीका की लोक कथाएँ

अंगोला, बोट्सवाना, लिसोठो, मलावी, मोरेशस, मौज़ाम्बीक, नामिबिया, स्वाज़ीलैंड, जाम्बिया, ज़िम्बाब्वे

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संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता

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7 जादुई खीरे[1]

यह लोक कथा हमने तुम्हारे लिये दक्षिणी अफ्रीका के ज़िम्बाब्वे देश की लोक कथाओं से ली है।

एक बार ज़िम्बाब्वे देश के एक गाँव में एक नौजवान रहता था। उसका नाम वाँगे[2] था। हालाँकि उस गाँव में बहुत सारी लड़कियाँ थीं पर फिर भी वह अभी तक कुँआरा ही था क्योंकि उन लड़कियों का कहना था कि वह बहुत ही पतला दुबला और बदसूरत था।

उसकी उमर के दूसरे नौजवानों की शादियाँ हो चुकी थीं और वहाँ के रीति रिवाजों के अनुसार किसी किसी के तो एक से ज़्यादा भी पत्नियाँ थीं।

इसलिये इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि वाँगे यह सब देख देख कर और सोच सोच कर ही दिन पर दिन दुबला हुआ जा रहा था। वह देखने में तो सुन्दर नहीं था परन्तु वह दयालु बहुत था।

एक दिन उस गाँव के लोगों ने कुश्ती का प्रोग्राम रखा। सुबह सवेरे ही गाँव के सारे लोग मैदान में इकठ्ठा हो गये। वाँगे भी उनके साथ था। दोपहर तक उन सबमें खूब कुश्ती हुई। दोपहर को जब काफी गरम हो गया सो सभी लोग कुश्ती रोक कर पेड़ों की छाया में लेट गये।

एक आदमी ने ढोल बजाना शुरू किया तो उनकी पत्नियों को पता चल गया कि उनके पतियों के दोपहर के खाने का समय हो गया है सो वे सब अपने अपने पतियों के लिये दोपहर का खाना लेकर कुश्ती के मैदान को चलीं।

सभी ने अपनी अपनी पत्नियों के हाथ का स्वाददार खाना पेट भर कर खाया परन्तु वाँग की तो कोई पत्नी ही नहीं थी इसलिये न तो उसके लिये कोई खाना ही ले कर आया और न ही वहाँ उसको किसी ने खाना खाने के लिये पूछा।

वाँगे बेचारा भूख से परेशान था। उसने सोचा — “काश, मेरी भी कोई पत्नी होती तो वह भी मेरे लिये खाना लाती। अब तो मुझे अपने आप ही अपना खाना ढूँढना पडे,गा। चलूँ, पास की नदी से ही कोई मछली पकड़ता हूँ। ”

ऐसा सोच कर वह पास की नदी की तरफ चल दिया।

उसने अपना मछली पकड़ने वाला काँटा नदी में फेंका। काँटा खींचने पर भारी लगा तो उसने सोचा कि “लगता है आज कोई बड़ी मछली फँसी है क्योंकि मेरा काँटा खूब भारी हो गया है। आज तो मजा आ गया। ”

यह सोच कर उसने जैसे ही वह काँटा ज़ोर लगा कर ऊपर खींचा तो उस काँटे की रस्सी टूट गयी और वह काँटा नदी में डूब गया।

वह दुखी हो कर बोला — “अरे, यह तो रस्सी भी टूट गयी, मेरा काँटा भी गया। मैं मछली भी नहीं पकड़ सका और में भूखा भी रह गया। मैं इस बड़ी मछली को किसी भी हाल में अपने हाथ से जाने नहीं दूँगा। ” और वह तुरन्त ही नदी में कूद गया।

पर चारों ओर देखने पर भी उसको नदी में मछली तो कोई दिखायी नहीं दी, हाँ, एक बहुत बड़ा मगर जरूर दिखायी दे गया।

वाँगे ने उससे पूछा — “क्या तुमने मेरा काँटा चुराया है?”

मगर ने जवाब दिया — “नहीं, इन सब खेलों के लिये तो मैं अब काफी बूढ़ा हो चुका हूँ लेकिन मैंने तुम्हारा काँटा चुराने वाले को उस रास्ते पर जाते हुए जरूर देखा है। अगर तुम जल्दी से उधर चले जाओ तो शायद उसे पकड़ पाओ। ” यह कह कर उसने पानी में जाते एक रास्ते की तरफ इशारा कर दिया।

जिस तरफ मगर ने इशारा किया था वाँगे ने उस तरफ देखा तो उसे पानी में जाता एक पथरीला रास्ता दिखायी दिया जिसके दोनों तरफ घास लगी हुई थी। उसने मगर को धन्यवाद दिया और उस रास्ते पर चल दिया।

सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह थी कि वह रास्ता पानी के अन्दर था और उसको पानी के अन्दर साँस लेने में कोई मुश्किल नहीं हो रही थी।

वह उस रास्ते पर ऐसे बढ़ता चला जा रहा था जैसे धरती पर चल रहा हो। रास्ते में उसने सुनहरी रुपहली मछलियाँ देखीं, पानी के साँप देखे और हरे केकड़े भी देखे।

चलते चलते अचानक ही वह काले सफेद पत्थरों से बने एक घर के सामने जा पहुँचा। वहाँ पहुँच कर उसने आवाज लगायी — “नमस्ते, अन्दर कोई है?”

मकान के अन्दर से आवाज आयी “नमस्ते” और कुछ ही पल में झुकी हुई कमर वाली एक बुढ़िया बाहर आयी।

वाँगे ने बुढ़िया से पूछा — “यहाँ किसी ने मेरा काँटा चुरा लिया है क्या आप बता सकती हैं कि मेरा काँटा किसने चुराया है?”

बुढ़िया ने पूछा — “पर तुम यहाँ इस पानी के राज्य में क्या कर रहे हो, ओ आदमी के बच्चे?”

वाँगे बोला — “ंमैं नदी पर मछलियाँ पकड़ रहा था कि मेरा काँटा खो गया। मैं उसे ढूँढते ढूँढते यहाँ तक आ गया। ”

बुढ़िया बोली — “क्या? तुम एक छोटे से काँटे के लिये इतनी तकलीफ उठा रहे हो? बड़े गरीब लगते हो। ”

वाँगे बोला — “जी हाँ यही मेरे खाने पीने का सहारा है इसलिये मैं इसे खोना नहीं चाहता। ”

बुढ़िया के मुँह से निकला “ओह” और पास से उसने एक स्पंज तोड़ लिया और वाँगे से कहा — “यह स्पंज लो और ज़रा मेरी पीठ तो साफ कर दो। ”

हालाँकि वाँगे इस समय बुढ़िया की पीठ साफ करने के बिल्कुल भी मूड में नहीं था परन्तु क्योंकि स्वभाव से ही वह बहुत दयालु था इसलिये वह उस स्पंज से बुढ़िया की पीठ साफ करने लगा।

थोड़ी देर बाद वह बुढ़िया से बोला — “यह लीजिये, आपकी पीठ साफ हो गयी। अब यह चाँद की तरह चमक रही है। ”

बुढ़िया ने कहा — “नहीं, अभी नहीं, थोड़ा और साफ करो। ”

तो वाँगे ने फिर से उसकी पीठ साफ करनी शुरू कर दी। थोड़ी देर बाद वह फिर बोला — “यह लीजिये, अब शायद आपकी पीठ साफ हो गयी है क्योंकि अब यह सूरज की तरह चमक रही है। ”

बुढ़िया ने कहा — “धन्यवाद बेटा, मैं तुमसे बहुत खुश हूँ। अब तुम मुझसे जो चाहे माँग लो। बोलो तुम्हें क्या चाहियेÆ”

वाँगे अपना काँटा खोने का दुख तो भूल गया और खुशी से भर कर बोला — “मुझे एक सुन्दर सी पत्नी चाहिये। क्या आप मुझे वह दे सकेंगी?”

बुढ़िया बोली — “जरूर जरूर, क्यों नहीं। ” कह कर वह घर के अन्दर गयी और चार सुन्दर चिकने खीरे ले आयी।

उन खीरों को वाँगे को देते हुए वह बोली — “लो ये खीरे लो और घर वापस चले जाओ। जब तुम नदी के किनारे पहुँचोगे तब इनको तोड़ना। हर खीरे में से एक एक सुन्दर लड़की निकलेगी।

लेकिन याद रखना कि इन खीरों को नदी के किनारे ही तोड़ना, उससे पहले नहीं, क्योंकि ये लड़कियाँ तुरन्त ही पीने के लिये पानी माँगेंगी और अगर तुमने इनको तुरन्त ही पानी न दिया तो ये सब गायब हो जायेंगी और फिर कभी नहीं आयेंगी। ”

वाँगे को हालाँकि बुढ़िया की इन बातों पर जरा भी विश्वास नहीं हुआ पर फिर भी सिर झुका कर उसने “अच्छा जी” कहा और वे खीरे उससे ले कर अपनी जेब में रख लिये।

फिर बोला — “धन्यवाद, मेरे ऊपर यह आपकी बड़ी मेहरबानी है कि आपने मुझे इतनी सुन्दर भेंट दी। जैसा आपने कहा है मैं वैसा ही करूँगा। ”

ऐसा कह कर वह वहाँ से अपने घर की तरफ चल दिया। रास्ते में उसने सोचा — “अब मैं कभी अपना काँटा वापस नहीं पा सकूँगा इसलिये जब मैं धरती पर पहुँच जाऊँगा तब इन खीरों को खा लूँगा। ”

धरती पर पहुँच कर उसने देखा कि वह बूढ़ा मगर अभी भी वहीं लेटा हुआ है। वाँगे ने उसको नमस्ते की और ऊपर चल दिया।

ऊपर अभी भी बहुत गरम था इसलिये वह नदी से कुछ दूर पर लगे एक पेड़ की छाया में बैठ गया। कुछ देर बाद उसने अपनी जेब से चारों खीरे निकाले और उनको अपने हाथों में उलटने पलटने लगा। वे उसे बहुत ही रसीले और ताजे दिखायी दे रहे थे।

उसे बहुत तेज़ भूख लगी थी सो वह उन खीरों को खाना चाहता था। उसने खीरा खाने के लिये हाथ बढ़ाया ही था कि उसे बुढ़िया के शब्द याद आये कि इन खीरों को नदी के पास ही तोड़ना।

उसने तय किया कि वह पहले बुढ़िया के कहे अनुसार ही करेगा। अगर वे जादू के खीरे हुए तो उनमें से लड़कियाँ जरूर निकलेंगी सो उसने ऐसा ही किया। पर वह यह अन्दाज नहीं लगा सका कि उसको वे खीरे पानी के कितने पास तोड़ने चाहिये।

उसने पहले एक खीरा तोड़ा। तुरन्त ही उसमें से एक सुन्दर लड़की निकल कर उसके सामने खड़ी हो गयी और बोली “पानी दो”। वाँगे तो उसको देख कर आश्चर्यचकित सा बैठा ही रह गया, न हिल सका न डुल सका।

उस लड़की ने फिर कहा “मुझे पानी चाहिये। ” अब वह जैसे सपने से जगा और उसे ख्याल आया कि उसे तो ये खीरे नदी के किनारे तोड़ने चाहिये थे। वह तुरन्त ही नदी से पानी लेने भागा और पानी ले कर उलटे पैरों वापस आया पर उसे देर हो गयी थी और वह लड़की गायब हो चुकी थी।

सो बुढ़िया की बात तो सच निकली। वह पछताने लगा कि अपनी बेवकूफी से उसने अपनी इतनी सुन्दर पत्नी खो दी।

अब वह बाकी बचे हुए खीरे नदी के किनारे ले आया और उसने पानी भी अपने पास रख लिया।

उसने फिर दूसरा खीरा तोड़ा। उसमें से भी एक सुन्दर सी लड़की निकली और बोली “पानी”। वाँगे ने काँपते हाथों से उसे पानी पिलाया। अब की बार वह लड़की गायब नहीं हुई बल्कि उसको देख कर मुस्कुरा दी।

इसी तरह उसने बाकी बचे दो खीरे भी तोड़े और उनमें से भी दो सुन्दर लड़कियाँ निकलीं। उसने उनको भी तुरन्त ही पानी पिलाया।

कुछ देर के लिये तो वह हक्का बक्का रह गया, उसके मुँह से एक शब्द भी न निकला। फिर जब वह होश में आया तो उन तीनों लड़कियों से बोला — “चलो घर चलते हैं। जब वह घर पहुँचा तो रात हो चुकी थी। वह जल्दी से अपनी तीनों पत्नियों को ले कर घर के अन्दर घुस गया ताकि उन्हें कोई देख न ले।

अगली सुबह फिर कुश्ती हुई। वाँगे भी उनके साथ था। दोपहर को जब खाने का समय हुआ तो सभी लोगों की पत्नियाँ अपने अपने पतियों के लिये खाना ले कर आयीं।

पहले दिन की तरह से उस दिन भी किसी ने भी वाँगे को खाना नहीं दिया सो वह उनसे कुछ दूर हट कर बैठ गया।

अचानक उसने सरसराहट और फुसफुसाहट की आवाजें सुनी। उसके सभी साथी फुसफुसा रहे थे। तभी उसकी नजर सामने पड़ी तो उसने देखा कि उसकी तीनों पत्नियाँ कुछ न कुछ अपने सिर पर रखे चली आ रही थीं।

उसकी पहली पत्नी ने उसके आगे दलिये का बरतन रखा, दूसरी ने माँस का और तीसरी ने पीने के साफ पानी का। वाँगे ने बडे, प्रेम से खाना खाना शुरू कर दिया।

वहाँ बैठे सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि कल तक तो यह अकेला था और आज इसके लिये इसकी तीन तीन पत्नियाँ खाना ले कर आयी हैं। यह मामला क्या है?

वे तुरन्त ही दौड़े दौड़े वाँगे के पास पहुँचे और उससे सवाल पर सवाल करने शुरू कर दिये — “तुमको ये पत्नियाँ कहाँ से मिलीं?” “तुम कोई सरदार हो जो तुम तीन तीन पत्नियाँ रखे हो?”

“हमने इतनी सुन्दर लड़कियाँ तो पहले कभी नहीं देखीं। ” “हमारी पत्नियाँ तो इनके आगे बहुत ही बदसूरत और भद्दी दिखायी देती हें। ” आदि आदि वाक्य वाँगे के कानों में पड़ने लगे।

वाँगे ने जवाब दिया — “आप लोग शान्ति से बैठें तो मैं आपको सब कुछ बताता हूँ। ” कह कर उसने काँटा खोने से ले कर पत्नियाँ मिलने तक की पूरी कहानी उन सबको बता दी।

उसकी कहानी सुनते ही वे सब भी विचार करने लगे कि किस तरह पानी में जा कर वैसी सुन्दर लड़कियों को लाया जाये।

तुरन्त ही वे सब घर गये और अपनी अपनी पत्नियों को कह आये कि तुम सभी बड़ी बदसूरत हो इसलिये तुम अपने अपने पिता के घर जाओ अब हम तुम्हें नहीं रखेंगें। पत्नियाँ बेचारी रोती हुई अपने अपने पिता के घर चली गयीं।

उधर वे सब लोग नदी के किनारे आ गये जहाँ वाँगे ने अपना मछली का काँटा खोया था। उन्होंने भी अपने अपने काँटे पानी में फेंके और इस बात का इन्तजार किये बिना ही कि कोई मछली उसमें फँसी कि नहीं वे नदी में कूद गये।

वह बूढ़ा मगर आश्चर्यचकित सा अभी भी वहीं लेटा हुआ था। वे सभी उसको ऐसे ही छोड़ कर घर को जाने वाले पथरीले रास्ते की तरफ बढ़ गये।

वे लोग इतनी जल्दी में थे कि न तो वे मछलियों की सुन्दरता ही देख सके और न ही हरे केकड़ों पर नजर डाल सके। आखिर वे उस पथरीले रास्ते पर चलते हुए उसी काले सफेद पत्थरों के बने हुए घर के सामने आ खड़े हुए जहाँ वाँगे पहुँचा था।

किसी को वहाँ न देख कर उन्होंने चिल्लाना शुरू किया — “ओ बुढ़िया, अरी ओ बुढ़िया, जल्दी से बाहर निकल और हम सबको सुन्दर सुन्दर पत्नियाँ दे वरना हम सभी मिल कर तुझे पीटेंगे। ”

बेचारी बुढ़िया काँपती सी घर के बाहर आयी और पहले की तरह एक स्पंज तोड़ा और उसे उन लोगों की तरफ ले जा कर बोली — “मेरी पीठ बड़ी गन्दी हो रही है पहले ज़रा मेरी पीठ साफ कर दो। ”

पर वे सभी इस बात पर ज़ोर से हँस कर बोले — “यह हमारा काम नहीं है। हम तेरी पीठ साफ क्यों करेंगे? हमको तो बस तू जल्दी से वे जादू के खीरे दे दे जिनको तोड़ने पर सुन्दर सुन्दर लड़कियाँ निकल आती हैं नहीं तो हम तेरे टुकड़े टुकड़े कर देंगे। ”

वह बुढ़िया बेचारी धीरे धीरे घर के अन्दर गयी और दो टोकरी में बहुत सारे खुरदरे खीरे ले आयी। सभी लोगों ने टोकरी की टोकरी छीननी शुरू कर दी परन्तु बुढ़िया ने सबको केवल सात सात खीरे ही दिये।

उन लोगों ने सोचा कि हम तो वाँगे से बहुत अच्छे हैं क्योंकि वाँगे को तो केवल तीन ही खीरे मिले थे पर हमको तो सात सात खीरे मिले हैं। हमारी किस्मत उससे ज़्यादा अच्छी है। वे दौड़ते भागते खीरे तोड़ने के चक्कर में तुरन्त ही नदी के किनारे जा पहुँचे।

जल्दी जल्दी उन्होंने खीरे तोड़े। सबसे पहले आदमी ने जैसे ही अपना पहला खीरा तोड़ा वह डर गया क्योंकि उसके सामने एक उससे भी लम्बी और बदसूरत औरत खड़ी थी।

सभी के साथ ऐसा ही हुआ। इस उम्मीद में कि किसी खीरे में से तो कोई सुन्दर सी लड़की निकलेगी उन्होंने सारे खीरे तोड़ डाले।

पर उन खीरों में निकली हर औरत पहली औरत से कहीं ज़्यादा लम्बी और कहीं ज़्यादा बदसूरत होती गयी।

उनमें से सबसे लम्बी और सबसे ज़्यादा बदसूरत औरत ने कहा — “तुम हमको बदसूरत कहते हो?” और ऐसा कह कर उन्होंने सबने मिल कर उन सबको पीटना शुरू कर दिया।

दर्द से चिल्लाते हुए सभी आदमी गाँव की तरफ भागे और उन बदसूरत औरतों से बचने के लिये अपने घरों में छिप कर दरवाजा बन्द कर लिया। पर वे सब औरतें गाँव में आते ही गायब हो गयीं।

जब सब कुछ शान्त हो गया तब वे लोग अपने अपने घरों से बाहर निकले। अब उन्हें लगा कि वे कितने भूखे थे परन्तु वहाँ कोई भी औरत खाना बनाने के लिये नहीं थी क्योंकि अपनी सभी पत्नियों को तो उन्होंने उनके पिता के घर भेज दिया था।

कुछ लोगों ने अपनी पत्नियों को वापस लाने की कोशिश भी की पर बेकार। पत्नियों ने कहा — “तुम लोगों ने हमारे दिल को ठेस पहुँचायी है इसलिये ऐसे बेरहम पतियों के पास हमें हमारे माता पिता भेजने को तैयार नहीं हैं। ”

उधर वाँगे के पास अब तीन पत्नियाँ थीं और सब लोग उसको इज़्ज़त से देखने लगे थे। अच्छा खाना मिलने से अब वह सुुन्दर भी हो गया था।

दूसरे लोगों को पत्नियों की खोज में फिर से दूर दूर जगह जाना पड़ा। फिर जब उनको पत्नियाँ मिल गयीं तो उन्होंने फिर कभी उनको बदसूरत नहीं कहा।



[1] Magical Cucumbers – a folktale of Zimbabwe, Southern Africa.

[2] Wange – name of the man who was not married

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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रचनाकार: दक्षिणी अफ्रीका की लोक कथाएँ // 7 - जादुई खीरे // सुषमा गुप्ता
दक्षिणी अफ्रीका की लोक कथाएँ // 7 - जादुई खीरे // सुषमा गुप्ता
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