दक्षिणी अफ्रीका की लोक कथाएँ // 3 - माडीपैटसैने[// सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ — दक्षिणी अफ्रीका की लोक कथाएँ अंगोला, बोट्सवाना, लिसोठो, मलावी, मोरेशस, मौज़ाम्बीक, नामिबिया, स्वाज़ीलैंड, जाम्बिया, ज़...

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देश विदेश की लोक कथाएँ — दक्षिणी अफ्रीका की लोक कथाएँ

अंगोला, बोट्सवाना, लिसोठो, मलावी, मोरेशस, मौज़ाम्बीक, नामिबिया, स्वाज़ीलैंड, जाम्बिया, ज़िम्बाब्वे

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संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता

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3 माडीपैटसैने[1]

यह लोक कथा दक्षिण अफ्रीका देश के अन्दर स्थित लिसोठो देश की लोक कथाओं से ली गयी है। बड़े आदमी लिसोठो में माडीपैटसैने की यह कहानी उन बच्चों को सुनाते हैं जो अपने बड़ों का कहना नहीं मानते।

एक दिन माडीपैटसैने की माँ ने उसको बुलाया — “ही–ला[2], माडीपैटसैने। ”

“आयी मे[3]। ”

जब वह अपनी माँ के पास आयी तो उसकी माँ ने उससे कहा — “सुनो बेटी, ये टोकरी लो अैर हमारे लिये मैदान से कुछ जड़ें ले आओ और सूप बनाने के लिये कुछ जंगली पालक भी ले आना। ”

माडीपैटसैने ने टोकरी उठाई और मैदान की तरफ चल दी। जड़ इकठ्ठा करने के लिये उसे काफी दूर जाना पड़ा। उसने जड़ इकठ्ठा करने के लिये कई जगह खोदा।

जब वह जड़ निकाल लेती थी तो उसको वह घास पर मार मार कर उसकी मिट्टी साफ करती थी और फिर अपनी टोकरी में रख लेती थी।

पास में ही एक आदमखोर राक्षस लैडीमोे[4] आ रहा था। उसने उस लड़की को देखा और उस लड़की ने भी उस राक्षस को देखा।

वह राक्षस बहुत ही बदसूरत था। पेड़ के बराबर ऊँचा था और काली रात से भी ज़्यादा काला था। उसके दाँत जंगली सूअर के दाँतों से भी बड़े थे।

वह माडीपैटसैने से बोला — “ही–ला माडीपैटसैने, तुम यहाँ क्या खोद रही हो?”

उसकी आवाज इतनी भयानक थी जितनी कि बारिश की चिड़िया जब पत्थरों में अपने अंडे देने के लिये जमीन पर आती है तब वह जैसी आवाज करती है।

पर माडीपैटसैने उससे डरी नहीं। उसने तो उसको जवाब भी नहीं दिया। उसने एक बार माडीपैटसैने को फिर से पुकारा — “ही–ला माडीपैटसैने, तुम यहाँ क्या खोद रही होÆ”

इस बार माडीपैटसैने ने उसको ऐसी आवाज में जवाब दिया जैसे हवा सारे मैदान में फैल गयी हो — “मैं लैडीमो के खेत की जड़ें खोद रही हूँ और पालक के नरम पत्ते तोड़ रही हूँ जो गोबर के ढेर के पास उग रहे हैं। ”

वह राक्षस उसके पास आया और उसको पकड़ कर खाने की कोशिश करने लगा क्योंकि वह तो आदमखोर था। पर वह लड़की उसके हाथ से खेत के चूहे की सी तेज़ी से बाहर निकल गयी और एक बिल में जा कर छिप गयी।

वह बिल लैडीमो जैसे बड़े आदमखोर के लिये बहुत छोटा था सो वह उसको नहीं पकड़ सका। वह ज़ोर से बोला — “रुक जा ओ लड़की। मैं बहुत होशियार हूँ और तुझे पाने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लूँगा। ”

कह कर उसने अपने होठ चाटे और थूक निगला। उसके थूक निगलने की आवाज ऐसी थी जैसे कोई मेंढक पानी में कूदता है।

पर माडीपैटसैने उसके ऊपर खूब हँसी। उसने उसका खूब मजाक बनाया और कहा कि वह तो रेंगने वाला जानवर जैसा लगता है। यह कहते हुए उसने गाया —

साई गोकगो[5], साई गोकगो, साई गोकगो, साई गोकगो, साई साई साई

उसका यह गीत लैडीमो को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उसको ऐसा लग रहा था जैसे उसके कान में कीड़े काट रहे हों। जब वह उसे और ज़्यादा नहीं सुन सका तो वह अपने घर वापस चला गया।

उस शैतान लड़की ने खेत के चूहे की तरह से बिल में से झाँका और जब पक्का कर लिया कि वह राक्षस चला गया तो वह बाहर निकल आयी और घास और झाड़ियों के बीच से होती हुई अपने घर आगयी।

घर आ कर वह बोली — “ये रहीं जडं,े मे। ”

माँ ने पूछा — “पर बेटी अब तक तुम कहाँ थीं? तुमको तो बहुत देर हो गयी। ”

“ओ मे, मुझे इनको लेने के लिये बहुत दूर लैडीमो के खेत में जाना पड़ा। पास में कहीं कुछ मिला ही नहीं। ”

माँ बोली — “तुम सुनती क्यों नहीं हो? क्या तुम्हारे कानों को सूअर ने काट लिया था जब तुम छोटी थीं? मैंने तुमसे कितनी बार कहा है कि तुम उससे दूर रहा करो पर तुम सुनती ही नहीं। ”

वह शैतान लड़की बोली — “उँह, मैं उससे नहीं डरती। ”

माँ बोली — “तुम उससे क्यों नहीं डरतीं? वह किसी भी सरदार से बहुत बड़ा है। वह किसी भी उस पानी के साँप से ज़्यादा खतरनाक है जो तालाबों में रहते हैं। ”

“ज़रा मेरी तरफ देखो मे। ” माडीपैटसैने बोली। “मैं कितनी छोटी और कमजोर हूँ पर मैं उससे कहीं ज़्यादा होशियार हूँ। वह मुझे नहीं पकड़ सकता क्योंकि मैं फोकोज्वे गीदड़[6] की तरह होशियार हूँ। ”

माँ बोली — “तुम अपने आपको समझती क्या हो? तुम कहना क्यों नहीं मानती हो?”

माडीपैटसैने फिर बोली — “मे मुझे मालूम है कि गीदड़ कैसे काम करता है। मैं जमीन के अन्दर एक बिल में छिप जाती हूँ और राक्षस लैडीमो उस बिल के अन्दर जा ही नहीं सकता। उसके अन्दर जा कर मैं उसको खिझाती रहती हूँ –

साई गोकगो, साई गोकगो, साई गोकगो, साई गोकगो, साई साई साई

“फिर क्या होता है?”

माडीपैटसैने बोली — “फिर वह गुस्सा हो जाता है। वह पूहू बैल[7] की तरह जमीन पर पैर पटकता है और मैं केवल उसके पैर पटकने की आवाज सुनती हूँ। ”

उसकी माँ ने फिर अपनी बेटी से कहा कि वह ऐसा न करे पर माडीपैटसैने ने उसकी उस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया।

अगले दिन सुबह जब उसकी माँ झरने से अपने मिट्टी के बरतन में पानी भर रही थी तो माडीपैटसैने ने फिर से अपनी टोकरी उठायी और लैडीमो के खेत की तरफ जड़ें खोदने और जंगली पालक की नरम पत्तियाँ तोड़ने भाग गयी जो गोबर के ढेर के पास उग रही थीं।

लैडीमो ने देखा कि माडीपैटसैने घुटने के बल बैठी हुई जमीन खोद रही थी। वह फिर बोला — “ही–ला, सुबह सुबह इतनी जल्दी तुम यह जमीन क्यों खोद रही हो माडीपैटसैने?”

माडीपैटसैने बोली — “मैं लैडीमो के खेत में से जड़ें खोद रही हूँ और वह जंगली पालक चुन रही हूँ जो गोबर के ढेर के पास उग रहा है। ”

लैडीमो उसको पकड़ने के लिये उसकी तरफ बढ़ा पर वह पिछली बार की तरह से फिर से खेत के चूहे की तरह उसके हाथ से फिसल कर घास और झाड़ियों मे से होती हुई बिल में घुस गयी जो गीदड़ ने उसके लिये खोद रखा था।

लैडीमो फिर उसको नहीं पकड़ सका सो वह फिर गुस्सा हो गया। उसको माडीपैटसैने के शरीर की खुशबू बहुत ज़ोर से आ रही थी जो उसको उसके मीठे और रसीले माँस को खाने के लिये लुभा रही थी।

उस बिल के बाहर से वह उसकी आवाज सुन रहा था —

साई गोकगो, साई गोकगो, साई गोकगो, साई गोकगो, साई साई साई

यह आवाज उसको तीर जैसी लग रही थी। लैडीमो जानता था कि वह खुद बहुत होशियार है, गीदड़ से भी ज़्यादा चालाक है पर माडीपैटसैने इस बात को नहीं जानती थी। लैडीमो उससे बहुत गुस्सा था पर वह उससे कुछ कह नहीं रहा था।

वह उस बिल के पास बाहर इस तरीके से बैठ गया जैसे कोई बुढ़िया अपना खाना लाने के लिये अपने बच्चों का इन्तजार करती है। वह एक ऐसी बिल्ली की तरह बैठा हुआ था जैसे वह छेद से चूहे के बाहर निकलने के इन्तजार में बैठी रहती है।

पर माडीपैटसैने उससे भी ज़्यादा चालाक थी। वह चूहे की तरह चालाक थी। वह चुपचाप बैठी हुई थी और लैडीमो के जाने का इन्तजार कर रही थी।

तब लैडीमो ने एक तरकीब सोची जो माडीपैटसैने को उस छेद में से जरूर ही बाहर निकालेगी।

“माडीपैटसैने तुमको बाहर निकलना ही पड़ेगा। सूरज अपने पूरे ज़ोर से चमक रहा है। तुम्हारी माँ पहले से ही एक बड़ी चट्टान पर खड़ी है और तुमको ढूँढ रही है। वह जड़ों और पालक के पत्तों का इन्तजार कर रही है क्योंकि उसे भूख लगी है। ”

माडीपैटसैने ने उसको अन्दर से ही फिर चिढ़ाया —

साई गोकगो, साई गोकगो, साई गोकगो, साई गोकगो, साई साई साई

यह सुन कर वह इतना गुस्सा हुआ कि टूटे हुए पेड़ की तरह जमीन पर गिर पड़ा।

माडीपैटसैने को मालूम था कि वह अभी मरा नहीं है सो वह बिल के अन्दर चुपचाप बैठी रही। जब उसको भूख लगेगी तब वह वे जड़ें खा लेगी जो उसने इकठ्ठा की हैं पर वह अपनी इस जगह से हिलेगी भी नहीं।

अब लैडीमो ने एक और तरकीब सोची कि वह उसकी माँ की आवाज में बोलेगा। सो वह ऊँची आवाज में बोला — “ही–ला माडीपैटसैने, मेरी बच्ची, तुम कहाँ हो? देखो सूरज पश्चिम में पेड़ों के पीछे डूबने वाला है। अब तो आ जाओ। ”

लेकिन माडीपैटसैने भी बेवकूफ नहीं थी। वह लैडीमो पर हँस रही थी और उसको चिढ़ा रही थी —

साई गोकगो, साई गोकगो, साई गोकगो, साई गोकगो, साई साई साई

ओह तो क्या तुम मेरी माँ हो? तुम जो बबून की तरह बदसूरत हो। तुम्हारे दाँत जंगली सूअर की तरह हैं और तुम्हारा पेट बीयर के बड़े बरतन की तरह है। भूल जाओ माडीपैटसैने को। ”

लैडीमो फिर चुपचाप बैठ गया और माडीपैटसैने की यह सब बातें सुनता रहा और सोचता रहा और सोचता रहा और सोचता रहा कि वह उसको उस बिल में से बाहर निकालने के लिये क्या करे। शायद उसको अपनी आवाज और मीठी और मुलायम बनानी पड़ेगी।

सो उसने उसको फिर पुकारा — “माडीपैटसैने, मेरी प्यारी बेटी तुम कहाँ हो? बहुत देर हो चुकी है। देखो सूरज अब डूबने ही वाला है। वह अब पेड़ों की शाखों की पीछे भी चला गया है। ”

उसने फिर उसको चिढ़ाया — “साई साई साई, गोकगो। क्या तुम मेरी माँ हो? तुम तो इतने खुरदरे हो जितनी कि एक चट्टान। मे की आवाज तो उस रेत की तरह चिकनी है जो पानी के किनारे धोती है। साई साई साई गोकगो। ”

और वह बिल के अन्दर से हँस दी।

इस बार लैडीमो बहुत मुलायमियत से बोला — “माडीपैटसैने, बेटी घर आ जाओ। मैं जड़ों और पालक के पत्तों का इन्तजार कर रही हूँ। देखो अब तो सूरज भी पश्चिम में पहाड़ियों की चोटी को छू रहा है। ”

पर उसकी आवाज अभी भी बहुत ही सख्त और मजबूत थी। वह माडीपैटसैने की माँ की आवाज से ज़रा भी नहीं मिलती थी।

बिल के अन्दर से माडीपैटसैने ने जवाब दिया — “जाओ और जा कर सोने की कोशिश करो, लैडीमो। मैं तुमसे पहले ही कह चुकी हूँ कि जब मेरी मे बोलती है तो उसकी आवाज रेत के छोटे छोटे दानों की तरह होती है जो एक बच्चे के पैरों को भी तकलीफ नहीं पहुँचा सकती अगर वह उस पर चले तो। ”

और जब गोल गोल सूरज पश्चिम में पहाड़ियों के पीछे चला गया तो माडीपैटसैने ने लैडीमो को घर जाते हुए सुना। चूहे की तरह से वह बहुत ही चुपचाप बिल में से निकली और अपने घर भाग गयी।

उस रात लैडीमो को एक बहुत ही ज़ोरदार विचार आया। सो वह रात में ही घास के ऊपर खरगोश की तरह उस बिल की तरफ भागा जिस बिल में माडीपैटसैने उससे हर बार छिपती थी।

उसने अपने बड़े बड़े हाथों से वह बिल पत्थरों से भर दिया और उसके ऊपर का हिस्सा केवल इतना खुला छोड़ दिया जिसमें माडीपैटसैने का सिर आ जाये और फिर वह सोने चला गया।

अगली सुबह उस कहना न मानने वाली लड़की ने फिर अपनी टोकरी उठायी और लैडीमो के खेत की तरफ जड़ें खोदने और पालक के पत्ते तोड़ने चल पड़ी।

उस दिन लैडीमो उस लड़की को पकड़ने के लिये सुबह जल्दी ही निकल पड़ा। वह अपने खेत पर आया और बोला — “ही–ला माडीपैटसैने, तुम यहाँ क्या खोद रही हो?”

लड़की ने जवाब दिया — “मैं लैडीमो के खेत से जड़ें खोद रही हूँ। ” यह सुन कर वह फिर से गुस्सा हो कर उसकी तरफ दौड़ा।

लड़की भी खेत के चूहे की तरह तेज़ी से दौड़ कर अपने बिल में जा कर छिप गयी पर इस बार उसको यह नहीं पता था कि वह बिल पहले ही सारा का सारा पत्थर से भरा हुआ था।

हर बार की तरह उसने एक छोटे चूहे की तरह उस बिल के अन्दर ठीक से छिपने की कोशिश की पर उसके अन्दर तो उसका केवल सिर ही आ पाया। उसका सारा शरीर तो बाहर ही रह गया क्योंकि वह सारा बिल तो पत्थरों से भरा हुआ था।

यह देख कर लैडीमो ज़ोर से हँसा — “हा हा हा। ” और एक ऐसी आवाज निकाल कर जैसे बच्चे तालाब के पानी में छप छप करते हैं उसने अपने होठ चाटे और उस बच्ची को पकड़ कर जो अपनी माँ का कहना नहीं मानती एक थैले में रख कर चल दिया।

माडीपैटसैने रोती और चिल्लाती रही — “ऊँ ऊँ ऊँ। मैं अब ऐसा नहीं करूँगी जब तक में बड़ी नहीं हो जाऊँगी।

जब तक मेरे सारे दाँत इन पेड़ों के पत्तों की तरह से नहीं गिर जायेंगे। जब तक मेरी आँखें नीली नहीं हो जायेंगी जैसे गोरे लोगों की होती हैं। मै यहाँ जड़ खोदने के लिये अब कभी नहीं आऊँगी। मुझे जाने दो। ”

पर लैडीमो ने कुछ नहीं सुना। वह उसका रोना सुन ही नहीं रहा था वह तो उसका चिढ़ाना सुन रहा था — “साई साई साई, गोकगो गोकगो। ”

उसने अपने थैले में गाँठ बाँधी और उसको अपने कन्धे पर डाला और अपने घर चल दिया जहाँ जा कर अब वह उसको खायेगा।


तो यह था बच्चों इस कहना न मानने वाली लड़की का अन्त और यह थी उसकी सजा।


[1] Mmadipetsane (Story No 11) – a folktale from Lesotho, Southern Africa.

Adapted from the Book : “Favorite African Folktales”, edited by Nelson Mandela.

This tale is retold by Minnie Postma, and translated by Leila Latimer in English

[2] Hee-Laa word is used to address in place of “O” or “Listen” in Basotho language of Lesotho.

[3] Mme – pronounced as “May”. This word is used to address ladies in place of Madam or mother in Lesotho

[4] Ledimo – the name of the monster

[5] Sai Kgokgo

[6] Phokojwe jackal – name of the jackal in Eastern and Southern African Countries.

[7] Puhu bull

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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रचनाकार: दक्षिणी अफ्रीका की लोक कथाएँ // 3 - माडीपैटसैने[// सुषमा गुप्ता
दक्षिणी अफ्रीका की लोक कथाएँ // 3 - माडीपैटसैने[// सुषमा गुप्ता
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रचनाकार
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