01 ज़र्रा ज़र्रा लगता है सँवरा हुआ -----------------------------------/ बहारों को हमने है न्यौता दिया अभी अपना मन भी है महका हुआ मुस्कान...
ज़र्रा ज़र्रा लगता है सँवरा हुआ
-----------------------------------/
बहारों को हमने है न्यौता दिया
अभी अपना मन भी है महका हुआ
मुस्कानों ने देदी हवा प्रीत को
ईश्वर का नूर है अब बिखरा हुआ
लहरों ने समंदर से क्या कह दिया
आज उसका दिल भी है दरिया हुआ
जिंदगी लगती है ऋतु बसन्त की
हर पल तो गुल सा है गमका हुआ
जबसे मुझे मिली प्रीत में जीत है
ज़र्रा ज़र्रा लगता है सँवरा हुआ
रागिनी शर्मा
इंदौर
02
: *हौसलों के पर फैलाना चाहती है*
----------------------------------------
दूर हर मुश्किल भगाना चाहती है
ज़िन्दगी फिर मुस्कुराना चाहती है
कीमती होती बहुत दोस्ती अनमोल
जान भी अपनी लुटाना चाहती है
प्रीत मेरी है रुहानी देख कर ही
दुनिया इसे आजमाना चाहती है
कौन परिश्रम को पराजित कर सका है
बाधाएँ दामन छुड़ाना चाहती हैं
आसमानों से न पूछे दूर कितने
हौसलों के पर फैलाना चाहती है
*रागिनी शर्मा इन्दौर*
03
*आग नफ़रत की क्यों लगाते हो*
------////---------------/////---------
आग पेट की नहीं बुझाते हो
बस्तियाँ किसलिए जलाते हो
वोट पाने के खातिर ही तुम
मंदिर मस्जिद क्यों लड़ाते हो
दुश्मनी का बवाल मचाते हो
हाथ जाकर खुद ही मिलाते हो
तिनके तिनके से बना आशियाँ
अपने हाथों ही क्यों जलाते हो
प्यार को दे सको तो सहारा दो
आग नफ़रत की क्यों लगाते हो
*रागिनी शर्मा इंदौर*
04
*जलने वालों को पसीना आ गया*
--------------------------------------
जलने वालों को पसीना आ गया
मुझको जब मुश्किल में जीना आ गया
कर ली मनमानी लहरों ने भी बहुत
अब तो साहिल पर सफ़ीना आ गया
मुस्कुराहट ने दिये हैं हौंसलें
आँसू भी हँसकर पीना आ गया
मुहब्बत मिली खिली अब है रागिनी
सासों की सरगम को सींना आ गया
दर्दों की अब गर्द हटती दूर है
दामन में सुख का दफ़ीना आ गया
*रागिनी शर्मा इंदौर*
05
*गुनाह रोशनी के पता करे कोई*
------------------------------////--
जिंदगी दिल से जिया करे कोई
मौत से भी न डरा करे कोई
मोहब्बत अगर ख़ता है यारों
एक बार ये ख़ता भी करे कोई
खंज़र छिपा हाथ मिलाते हैँ
इस तरह न मुझे छला करे कोई
जुगनू की तरह होती उम्मीदें
सूरज से क्यों ग़िला करे कोई
अंधेरों पे इल्ज़ाम लगाते हो
गुनाह रोशनी के पता करे कोई
*रागिनी शर्मा इंदौर*
06
#कल फिर #सुबह होगी .......
✍✍✍✍✍✍✍
उगते सूरज को
प्रणाम क्यों ?
यहाँ रोज ढलते हैं
सूरज !
देखो सूरज लुढ़क रहा है
पर्वत की चोटी से
धीरे -धीरे
किसी ने थाम रखा है हाथ
ले जाना चाहता है
मन्ज़िल की ओर !
हौसला देता सहारा !
जीने के लिए रोज
लड़ना होता है
सूरज की तरह
लिखना होता है
खूनी इतिहास!
तभी तो प्रेरणा देगा
आने वाले कल को!
दुनिया करेगी
इबादत
उसके हौसले की !
लड़ेगा अन्तिम साँस तक
पिघल जाएगा तारों में
बिखर जाएगा
सूरज !
पगडंडियों पर
फैलता साजिशों
का अंधेरा
डरायेगा उसे
लेकिन
जीत हौसले की
कल फिर ##सुबह होगी
कल फिर निकलेगा
सूरज तेज रोशनी के साथ
बड़े हुए आत्मविश्वास के साथ
जो प्रेरणा बनेगा
सृष्टि की !!!!
रागिनी शर्मा
इन्दौर
07
*अपनी ही धुन गुनगुनाते रहे*
-------------/---------/-------------
दर्द मिलते रहे मुस्कुराते रहे
सज़दे में तेरे सर झुकाते रहे
आस्था ज़िन्दगी पर इतनी रही
आशा के ही दीपक जलाते रहे
हृदय की मीठी मधुर सीप में
भावना के मोती सुगबुगाते रहे
जुगनू सी उम्मीदें हँसती रहीं
तारों से सपन झिलमिलाते रहे
महकती रातरानी सी रात जब
प्रीत के फूल मन में खिलाते रहे
गीत कोई दीवाना हुआ जो कभी
रूह को हम अपनी महकाते रहे
बिखरने नहीं दी कभी रागिनी
अपनी ही धुन गुनगुनाते रहे
*रागिनी स्वर्णकार इंदौर*
08
*मैं एक बूँद हूँ लेकिन समंदर देख लेती हूँ*
-------------------------------–-------
न जाने ख़्वाब में कैसे वो मंज़र देख लेती हूँ
मैं एक बूंद हूँ लेकिन समंदर देख लेती हूँ
छुपाने राज़ दिल में मैं ,जतन कितने भी कर डालूँ
नज़र उससे मिलते ही मैं अंदर देख लेती हूँ
आये भी अकेले थे ,अकेले जाना भी होगा
छिपा जो हौसले में है लश्कर देख लेती हूँ
दिखावा दोस्ती का क्यों वो करते हैँ बढ़ चढ़ कर
हैं किरदार में उनके जो खंज़र देख लेती हूँ
खुशियां गुनगुनाती हैँ ,हँसती और हँसाती हैं
मोहब्बत की नज़र से जो , पलभर देख लेती हूँ
*रागिनी स्वर्णकार(शर्मा)*
इंदौर*
09
*अब कहीं सिसके न ग़म से बेटियाँ*
---------------------------------------
दिल में अरमां ले रहे अंगड़ाइयाँ
बज रहीं हैं नव वर्ष की शहनाइयाँ
बीते लम्हों की विदाई है हो रही
वक्त की नई खुल रहीं खिड़कियाँ
अब कदम मन्ज़िल को पाकर ही रुकें
चाहे तूफ़ां आये या फिर आंधियाँ
खत्म बुराई हो जहाँ से हों कोशिशें
सौगात दिल की यही है बधाइयाँ
है गुजारिश इस बरस से बस यही
अब कहीं सिसकें न ग़म से बेटियाँ
*रागिनी स्वर्णकार( शर्मा )इंदौर*
10
: वक्त का बेला महकता रहा है
----------------------------------
चाँद का रातों पर पहरा रहा है
वक़्त का बेला महकता रहा है
सभी की खुशियों में हो जाओ शामिल
यही खुश रहने का इक फ़लसफ़ा है
दिया था तुमने घाव बेरहमी से
जानते नहीं हो ,अभी तक हरा है
दिल में बसी है खुशबू मुहब्बत की
मुहब्बत से ही गुल महका हुआ है
कोशिश हमारी थी आँसू न ढुलके
मुस्कानों का ही सदा सिलसिला है
मुश्किल घड़ी में मुस्कराते रहना
ज़िंदादिली का यही एक निशां है
"रागिनी"अकेली निकली थी कल जो
आज देखो बन गया काफिला है
रागिनी शर्मा
इंदौर
ध्न्यवाद बहुत
जवाब देंहटाएं