१९९४, मैं मण्डला में पदस्थ था. अभिरुचि के अनुरूप लेखन, प्रकाशन के कार्य चल रहे थे. एक दिन अचानक फोन की घंटी बजती है, दूसरी ओर से आवाज आती है...
१९९४, मैं मण्डला में पदस्थ था. अभिरुचि के अनुरूप लेखन, प्रकाशन के कार्य चल रहे थे. एक दिन अचानक फोन की घंटी बजती है, दूसरी ओर से आवाज आती है " मैं साज जबलपुरी, वर्तिका, जबलपुर से बोल रहा हूं. आपका कविता संग्रह आक्रोश पढ़ा. हम वर्तिका के वार्षिकोत्सव में आपको सम्मानित करना चाहते हैं. क्या आप जबलपुर आ सकेंगे ? मैंने सहर्ष स्वीकृति दे दी. रचनाकार को साहित्य जगत में उसकी रचनाओं के जरिये मान्यता मिले इससे बड़ा भला क्या सम्मान हो सकता है ! नियत तिथि, समय पर मैं रानी दुर्गावती संग्रहालय जबलपुर के सभागार में पहुंचा. द्वार पर ही गुलाब के पुष्प से हमारा स्वागत किया गया, स्मरण नहीं पर संभवतः झौये से निकाल कर हर प्रवेश करने वाले को पुष्प देते हुये ये शायद विजय नेमा अनुज, और डा विजय तिवारी, सुशील श्रीवास्तव ही थे. इन सबसे यह मेरा प्रथम परिचय था, जो संबंध आज मेरी पूंजी बन चुका है. इससे पहले भी मैंने भोपाल, दिल्ली, इलाहाबाद में अनेक बड़े साहित्यिक आयोजनों में भागीदारी की थी पर किसी साहित्यिक आयोजन में और वह भी गैर सरकारी, स्वागत की यह शैली सचमुच अद्भुत थी, जो मेरे लिये चिर स्मरणीय बन गई. आज जब वर्तिका के प्रांतीय अध्यक्ष के रूप में जब पीछे मुड़कर देखता हूं तो लगता है कि ऐसे ही छोटे छोटे प्रयोग और आत्मीयता, सबको अवसर, सबको सम्मान, सबको जोड़ना वर्तिका में हमारी विशिष्टता हैं.
वर्तिका जबलपुर की पंजीकृत सक्रिय साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संस्था है. संस्था की निरंतर आयोजन क्षमता उसकी सबसे बड़ी विशेषता है. संस्था ने जबलपुर में विगत अनेक वर्षों से प्रति माह अंतिम रविवार को मासिक काव्य गोष्ठी आयोजित कर एक रचनात्मक वातावरण बनाया है. बिना विवाद के दसों वर्षों से ऐसे आयोजन निर्विघ्न होते रहना अद्भुत है. इस मौके पर जिन साहित्यकारों का जन्म दिवस उस माह में होता है उनकी रचनाओं पर आधारित काव्य पटल का विमोचन शहर की साहित्यिक गतिविधियों के केंद्र ड्रीमलैंड फन पार्क में किया जाता था, जिसे ड्रीम लैंड फन पार्क के विस्थापन के बाद प्रतिष्ठित शहीद स्मारक में लगाया जाने लगा है. जहां यह काव्य पटल पूरे माह आम जनता के लिये पठन मनन हेतु प्रदर्शित रहता है. आज जब पाठकों की कमी होती जा रही है, ऐसे समय में नई पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने के लिये बड़े बैनर में कविता प्रकाशित कर उसे सार्वजनिक स्थल पर प्रदर्शित करने की वर्तिका की पहल ने लोगों का ध्यान खींचा है. काव्य गोष्ठी का आयोजन डा बी एन श्रीवास्तव चेरिटेबल ट्रस्ट मदन महल, ड्रीमलैण्ड फन पार्क के नये स्थान देवताल के सामने फिर हरिशंकर परसाई भवन भातखण्डे विद्यालय में जारी है. बीच बीच में किसी रचनाकार के निवास पर भी आयोजन होते रहे हैं, जिनमें विजय नेमा अनुज , डा विजय तिवारी, सुनीता मिश्रा के घर पर भी आयोजन संपन्न हुये हैं.
वर्तिका ने समय समय पर युवा रचनाकारों के मार्गदर्शन हेतु गजल कैसे लिखें ?, दोहा कैसे लिखें ?, जैसे विषयों पर विद्वानों की कार्यशालायें आयोजित कर एक अलग पहचान बनाई है.हम प्रत्येक वर्ष एक वार्षिकोत्सव भी मनाते हैं. जिसमें संस्था ने देश के विभिन्न अंचलों से अनेक रचनाधर्मियों को आमंत्रित कर सम्मानित किया जाता है, सम्मानित विद्वानों में श्री चंद्रसेन विराट, साहित्य अकादमी के निदेशक डा त्रिभुवन नाथ शुक्ल भोपाल, प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध, आचार्य भगवत दुबे, श्री संजीव सलिल, दिल्ली के श्री जाली अंकल, हैदराबाद के श्री विजय सत्पट्टी, श्री अनवर इस्लाम, श्री कुंवर प्रेमिल डेली हंट के श्री आभास चौबे आदि आदि विद्वान शामिल हैं.
इसके अतिरिक्त समाज के विभिन्न क्षेत्रों जैसे शिक्षा, चिकित्सा, समाज सेवा, आदि में महत्वपूर्ण योगदान करने वाली विभूतियों को भी समाज के ही लोगों से सहयोग लेकर अलंकृत करने की हमारी परम्परा है. जिससे ऐसे लोग दूसरों के लिये उदाहरण बनते हैं और उन्हें अपने कार्यों को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन मिलता है. शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान करने वालों को शिक्षाविद् श्रीमती दयावती श्रीवास्तव स्मृति वर्तिका शिक्षा अलंकरण, चिकित्सा के क्षेत्र में डा बी एन श्रीवास्तव स्मृति अलंकरण तथा अन्य सामाजिक गतिविधियों हेतु भी संस्था उल्लेखनीय कार्यों के लिए सम्मानित करती आ रही है । जो सुधीजन अपने स्वजनों की स्मृति में ये अवार्ड प्रदान करना चाहते हैं उनसे वर्तिका के पदाधिकारी संपर्क कर सहयोग राशि लेकर सम्मान आयोजित करते हैं.
इस हेतु साहित्य प्रेमियों से प्रकाशित किताबों या निरंतर साहित्य सेवा के अन्य साक्ष्य सहित नामांकन आमंत्रित किये जाते हैं. नामांकन हेतु कोई शुल्क न होना हमारी खासियत है. नामांकन स्वयं या कोई भी साहित्य प्रेमी कर सकता है. नामांकन सादे कागज पर स्वयं का तथा नामांकित व्यक्ति या संस्था का पूर्ण विवरण लिखते हुये संस्था के पदाधिकारियों के पास भेजने होते हैं. हमारी एक और विशेषता है कि हमने साहित्य व समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय संस्थाओं को भी पुरस्कृत करने की योजना बनाई है. गुंजन, गरीब नवाज कमेटी आदि को हम सम्मानित कर चुके हैं. वर्तिका की एक उच्चस्तरीय चयन समिति प्राप्त नामांकनों तथा स्वप्रेरणा से व्यक्तियों व संस्थाओं के योगदान के आधार पर अवार्ड का निर्णय करती है. निर्णायकों में हमारे संरक्षक,पदाधिकारी व वरिष्ठ साहित्यकार प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध आदि रह चुके हैं.
इस अवसर पर सामूहिक काव्य संकलन का प्रकाशन भी अद्भुत प्रयोग है. श्री विजय नेमा अनुज का सहयोग इस प्रकाशन में रहा है. वार्षिकोत्सव में इसका विमोचन अतिथियों के द्वारा किया जाता है. वर्तिका को कोई उल्लेखनीय वित्तीय सहयोग शासन से नहीं मिला, हमारी वित्त पोषण व्यवस्था परस्पर आंतरिक सहयोग पर आधारित है, संरक्षक एक मुश्त राशि सहयोग स्वरूप देते हैं,जिसे बैंक में वर्तिका के खाते में जमा कर दिया जाता है, समय समय पर उसका ब्याज ही समिति की अनुशंसा पर निकाला निकाला जाता है. सदस्यता शुल्क, मासिक गोष्ठी में काव्य पटल शुल्क, तथा विशेष आयोजनों के लिये सदस्यों से स्वेच्छा से दी गई राशि से ही संस्था चलाई जा रही है. संस्था के आयोजनों का साहित्यिक स्तर अति विशिष्ट रहा है. हमसे जुड़े अनेक रचनाकार राष्ट्रीय व वैश्विक क्षितिज पर महत्वपूर्ण साहित्यिक प्रतिष्ठा अर्जित करते दिखते हैं. हमारी एक विशेषता यह भी है कि जो हमसे एक बार जुड़ जाता है, हम उससे निरंतर जुड़े रहते हैं, श्री अंशलाल पंद्रे आजीवन हमसे जुड़े रहे, जबलपुर में कमिश्नर रहे श्री मदन मोहन उपाध्याय, श्री वामनकर, आदि ढ़ेरों ऐसे नाम हैं जो वर्तिका से लंबे समय से जुड़े रहे हैं. न केवल साहित्यिक वरन पारिवारिक उत्सवों सहित जीवन के हर सुख दुख के क्षेत्र में वर्तिका के सदस्य परस्पर प्रेम भाव से जुड़े दिखते हैं यही हमारी वास्तविक पूंजी है.
मैं वर्तिका से जुड़े रहने में गर्व महसूस करता हूं. व वर्तिका की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता हूं.
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प्रांतीय अध्यक्ष, वर्तिका
ए १, विद्युत मण्डल कालोनी, शिला कुन्ज
जबलपुर
vivek1959@yahoo.co.in
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