भाग 1 4. ऐतिहासिक बोस्टन तथा उसके उत्तरांचल वासी हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक साल रहने के समय मैं कई बार बोस्टन शहर की अलग-अलग जगहों पर ...
4. ऐतिहासिक बोस्टन तथा उसके उत्तरांचल वासी
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक साल रहने के समय मैं कई बार बोस्टन शहर की अलग-अलग जगहों पर घूमा हूँ। विश्वविद्यालय से जब भी बाहर जाता हूँ तो मुझे बोस्टन शहर की दो चीजें जरूर याद रहती हैं। पहली बोस्टन की चाय-पार्टी, जो आधुनिक अमेरिकन सभ्यता की एक नींव की र्इंट है। दूसरी, वही नार्थ एंडर्स, जिसे छोटी सिसिली और इटली का छोटा रूप कहा जाता है, क्योंकि अति सरल, विशाल बोस्टन शहर की यह एक वर्गमील जगह ही मूलत: बोस्टन है कलकत्ता के सूतानटी की तरह। सन् 1630 सदी में यहां उत्तर सीमांत का निर्माण हुआ था। यूरोप से बहुत सारे लोग यहां आए थे। पहले-पहल अंग्रेज लोग, फिर अमेरिकन, उसके बाद आयरिश, फिर यहूदी। सन 1870 से इटली के लोग यहां प्रवास करने लगे। उसके पीछे कई कारण थे जैसे दक्षिण इटली में गरीबी का होना, रोग एवं अस्वास्थ्यकर परिवेश, प्राकृतिक विपदाएं, आर्थिक एवं राजनैतिक अत्याचार। अनेक इतिहासकारों का मानना है कि दक्षिण इटली से बोस्टन उत्तर-सीमांत की यह यात्रा एक प्रकार का बहिष्करण थी। सन 1876 से 1976 तक अर्थात् सौ साल के भीतर लगभग 250 करोड़ से ज्यादा लोग अपना देश छोड़कर बोस्टन शहर के उल्लेखनीय अंश बन गए।
सी.आई.एफ.ए में मेरे इटालियन मित्र ने मुझे इस जगह पर एक बार घुमाया था। इसलिए मैं उनका कृतज्ञ हूँ। संकरी गलियाँ, उपगलियाँ, प्रसिद्ध पाग्लिअका इटालियन रेस्टोरेंट, इटालियन खाने की सुगंध, इटालियन सिगार, वायोलिन, बेंजो पर इटालियन गाने, ताली बजाने में भाग ले रहे आदमियों को देखना मेरे लिए एक सौभाग्य की बात थी। अचानक एक आदमी गिटार या वायोलिन लेकर रास्ते में आ जाता है, धीरे-धीरे पहुंच जाते हैं उसके पीछे एक-दो, फिर होते-होते पंद्रह-बीस आदमी और औरतें। सभी के होठों पर गीतों की थिरकन, हाथों से तालियों का गुंजन और चेहरे पर खुशी के भाव। छोटे-छोटे ड्रम बजाते तथा अपने तरह-तरह की शारीरिक भाव-भंगिमाओं का प्रदर्शन करते। पुराने इतिहास को वे याद दिलाते हैं। बहुत बुजुर्ग लोग अपनी-अपनी अनुभूतियां तथा दूसरे अपने माँ, पिताजी, दादा-दादी से सुनी सुनाई कहानियों को दोहराते हैं। दक्षिण इटली के असहनीय परिवेश से वे यहां आए थे। यहां भी जीवन जीना उसके लिए घी अथवा मधु के समान नहीं था।पहले-पहल उन्हें अनेक कष्ट सहने पड़े हैं। केवल दूसरों का अत्याचार या शोषण नहीं था, बल्कि अपने आपको एक नए परिवेश में ढ़ालना तथा अपनी गोष्ठी की स्वतन्त्रता को बचाए रखना किसी काव्य-शैली से कम नहीं था। एक व्यक्ति के शब्दों में “इस नई जगह पर अलग वातावरण में सभी इटालियन हो गए थे,मानो एक परिवार हो।” सन 1930-40 के दशक के दौरान यहां लगभग 42000 लोग आए थे जिसमें से लगभग 40000 इटालियन थे। मेरे वार्तालाप (1987-88) तक यह संख्या घटकर लगभग 20000 तक रह गई थी। उसके अलावा अनेक टूरिस्ट थे. हमारी तरह के बाहरी दर्शक अथवा हार्वर्ड बोस्टन विश्वविद्यालय और एमआईटी से रेस्टोरेंट में खाना खाने का मजा लेने आते युवक-युवतियां।
बोस्टन पोताश्रय, अक्टूबर महीने की शुरुआती ठंड और बीच-बीच में चमकता सूर्य- इन सब चीजों को पीछे छोड़कर मैं कई बार हानोवर स्ट्रीट में गया हूं, बोस्टन के औपनिवेशिक ढाँचे से सनी बड़ी-बड़ी कोठियों में इटली-सिसली की महक को मैंने अनुभव किया है।किसी ने कहा- “अपने घर में हम सिसिलियन, भाषा भी वही, खाना भी वही-मगर बाहर में अमेरिकन-इस देश के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हैं।”
मेरे एक लेखक बंधु ने एक बुजुर्ग सिसिलियन का उदाहरण देते हुए हमें हंसाया था- “मैं इस खाने के टेबल के पास में मरना चाहूंगा, सामने पड़ी होगी बड़ी प्लेट भरी लासाग्ने और दोनों तरफ रखे होंगे बड़े-बड़े मांस-कबाव।”
हो सकता है वह और भी कुछ जोड़ सकते थे “दूर से सुनाई पड़ रहा होगा गिटार या वायोलीन पर इटालियन संगीत के स्वर”। होनोवर स्ट्रीट के जोहनी और गिनो हरी स्टाइलिंग दुकान पर मेरे मित्र तथा उनकी पत्नी ने एकाध बार बाल कटवाएं हैं। (शायद सजवाएं है, शब्द ठीक रहेगा)। मैंने हार्वर्ड में रहते समय सस्ती दुकानों पर ही बाल कटवाए हैं।
ग्रीष्म समारोह के समय यह उत्तर सीमांत अदभुत परीलोक की तरह सजता है। सेंट एंटानी तथा दूसरे संतों की पूजा-आराधना के साथ-साथ नाच-गीत से रास्ते भर जाते थे। कई दिनों तक वही तीसरी-चौथी पीढ़ी के सिसिली के निवासी उत्साह से कल्पना और सपनों में इटली का निर्माण करने लगते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध में लडाई में भाग लिए कोई पुराने बुजुर्ग आनंद से ताश खेलते हैं, तमाशा देखते हैं, अपने देश की प्रसिद्ध वाइन पीते हैं और अपनी यादों को तरोताजा करते हैं।
उत्तर सीमांत अंचल में चार्ल्स नदी, बोस्टन का पोताश्रय और जॉन फिजगेराल्ड एक्सप्रेस वे द्वारा सीमाबद्ध है। लेखक इरला ज़्विंगल के शब्दो में “ The North End is a complex breed composed of Mediterranean emotion,Yankee drive, and seemingly limitless passion for their own ”
कापूचिनो, पोस्ता, लासाग्न, लम्बे-लम्बे वास्तानों ब्रेड, तरह-तरह के फल-केक, वाइन, गपशप, ताश, गीत और वाद्य। ‘शरीर भले यहां हो, मगर आत्मा इटली में।’ किसी ने कहा।
जो बूढ़े हो गए हैं, उनमें से कुछ सोचकर कहने लगे, “हम अपने भाग्य से सहन कर रहे हैं दो प्रकार के निर्वासन। पहला, हम अपने अतीत, देश और संस्कृति से कोसों दूर।दूसरा, हमारे अपने बच्चों के नूतन भविष्य को लेकर, जिसमें हम अपने आप को ढ़ाल नहीं पाते। मुझे उस समय ऐसा लगा, हो न हो, अमेरिका में बसे किसी बुजुर्ग भारतीय आदमी की भी यही दारुण आत्मकथा होगी।
अनेक लोगों की वेशभूषा में रेशमी टाई, शर्ट और इटालियन सूट, पतला, सुंदर तथा साधारण पेंट-शर्ट। सर्दी आने पर स्वेटर और ओवरकोट प्रयोग में लाने लगते हैं।
बोस्टन में सर्दी के दिन बड़े दुखद होते हैं। उत्तर से बहने वाली ठंडी हवाओं के कारण वहां का तापमान शून्य से बीस डिग्री नीचे तक चला जाता है। जिसे विंड चिल फेक्टर कहा जाता है। ओवरकोट, सूट, अंदर में शर्ट और ऊनी गंजी, मफलर लगाकर अपार्टमेंट से विश्वविद्यालय के तीन फलांग रास्ते में कई बार ठिठुरती ठंड से कांपा हूँ, आँखों से पानी गिरा है। उत्तर सीमांत बोस्टन के निवासी दक्षिण इटली भूमध्य सागरीय जलवायु तथा सूरज को सर्दी की ऋतु में खूब याद करते हैं। स्थानीय लोगों की अंग्रेजी भाषा में नेपोलियन, सिसिलियान, वेनिसयान के स्वर ज्यादा ही विचित्र सुनाई देते हैं।
हाँ, एक वह भी समय था जब वे अंगूर खरीदकर वाइन बनाते थे, अपने लिए ब्रेड-केक तैयार करते थे।कभी-कभी दूसरों के साथ भयंकर लड़ाई भी हो जाती थी। इटालियन और आयरिशों में फिर आवेगपूर्ण, मेल-जोल वाले, साथी-प्रिय, क्रोधी व्यक्तियों पर नजर रखी जाती थी। एक वर्ष वहां रहते समय ऐसी खबरें ‘बोस्टन ग्लोब’ में कई बार पढ़ने को मिलती थी।
वे बुजुर्ग लोग बैठे-बैठे अपने अतीत को बहुत ज्यादा याद करते थे। अतीत कितना सुंदर था! वास्तव में, सारे सुख-दुख हमारे सामाजिक जीवन में होने के बाद भी हम आराम से दुख को भूल जाते थे तथा आमोद-प्रमोद से जीवन बिताते थे। अब अपने देश अर्थात् इटली जाने पर भी वहां के स्थानीय निवासी हमें अपना आदमी समझना तो दूर की बात, सोचने लगते हैं इटली घूमने आए हम अमेरिकन टूरिस्ट हैं। उत्तर-सीमात में रेस्टोरेंटों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। रसोईघर में उनके खाना बनाने वाले इटालियन नहीं हैं, उत्तर अफ्रीका या मध्य-अमेरिका के लोग हैं। मेरा इटालियन दोस्त सिगार प्रिय था। कई बार ‘बैला फुमा सिगार शॉप’ पर रुकता था। उसके शब्दों में, इस सिगार की गंध दूसरे तरह की है।मैंने कहा, “ठीक, इटली के स्वप्नपरी की तरह है न ?”
5. हमारा सेंटर (सिफा): चार्ल्स नदी, कॉनकॉर्ड ऐवन्यू
हमारे सेंटर में भाषण के कार्यक्रम बहुत कम थे। हर सप्ताह बड़ी मुश्किल से एक भाषण का आयोजन होता था। सप्ताह में कभी-कभी दो भाषण। वक्तागण में हमारे भीतर थे सेंटर के डायरेक्टर सैमुअल हंटिटन, दूसरे शीर्षस्थ अध्यापक, विश्वविद्यालय के बाहर से आमंत्रित व्यक्ति तथा विश्व राजनीति और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नाम कमाने वाले व्यक्तिगण। उदाहरणस्वरूप यूरोपियन कमिशन के मुखिया, हमारे देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी, स्पेन के प्रधानमंत्री , अमेरिकन डेवलेपमेंट कमीशन के चेयरमैन, यूनेस्को के डायरेक्टर जनरल। इन सभी को भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था। हर भाषण का आयोजन मध्यान्ह भोजन अथवा रात्रि-भोजन के साथ किया जाता था। इसके पीछे यह उद्देश्य होता था कि भाषण सुनने के बाद अनौपचारिक वातावरण में फेलो (अर्थात् हमसब) वक्ताओं के साथ बातचीत कर सकते हैं। अन्य विश्वविद्यालय से जो वक्तागण आये थे, उनमें जहां तक मुझे याद आ रही है, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लिच, शिकागो विश्वविद्यालय के बर्नाड कोन, येल विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख और ऐसे बहुत सारे। सारे भाषण साधारणतया सेंटर के कुलिज हॉल अथवा कावट हॉल में आयोजित किये जाते थे।हार्वर्ड के दो विशिष्ट अर्थशास्त्रियों में जॉन केनेथ, गिलब्रथ तथा स्टीव मार्गलिन ने भाषण दिये थे। दोनों का परिचय देने का दायित्व मुझे सौंपा गया था। गिलब्रथ के भाषण का शीर्षक था- थर्ड वर्ल्ड इकोनोमिक डेवलपमेंट तथा स्टीव के भाषणका शीर्षक था- द गोल्डन एज ऑफ केपिटलिज्म 1946-70। अपने भाषण में गिलब्रथ ने धनी पाश्चात्य देशों की असहयोग मनोवृति, वर्ल्ड बैंक एवं आईएमएफ़ के अतिशय व्यवसायी मनोभाव तथा सबसे ज्यादा तीसरे विश्व के देशों में कार्यदक्षताओं का अभाव- इन तीनों विषयों पर उन्होंने विशद भाव से व्याख्यान दिया था। स्टीव के मतानुसार 19वीं शताब्दी में सन् 1945 से पूंजीवाद ने एक नया रूप ग्रहण किया था और वह रूप सन् 1970 में खत्म हो गया। संक्षिप्त में पूंजीवाद के विवर्तन, अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उसका प्रवाहमान तथा आधुनिक आवश्यक अनेक दृष्टिकोण पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त किये थे। बदलते परिप्रेक्ष में पूंजीवाद अर्थशास्त्र के भविष्य के बारे में भी उन्होंने कुछ कहा था तथा उस अर्थशास्त्र के अवश्यंभावी बदलाव पर अपने सुझाव दिये थे। दोनों व्याख्यानों में बहुत सारे फेलो ने भाग लिया था तथा उन पर गंभीर चर्चा भी हुई थी। उपरोक्त व्याख्यानों को छोड़कर सेंटर में जितने दूसरे व्याख्यान दिये गये, उनमें से जो मुझे पसंद आये या जिसने मुझे आकर्षित किया, उनकी संक्षिप्त तालिका निम्न है :-
1) प्रोफेसर फ्रेंकलिन का व्याख्यान
Dominance and state power in Modern India
2) सर क्रिसपिन टिकेल (इंग्लैंड के UN में स्थायी प्रतिनिधि )
The value of Security Council in Today’s World Affairs
3)यूरोपीयन कम्यूनिटी के सर रय डेनमान
European Community and U.S. Trade Issue
4. प्रोफेसर वाशब्रुक
Class Conflict, Popular Culture and Resistance in Colonial India
5) लारेंस फ्रिडमेन
Do we need Arms Control?
6) सैमुअल हांटिटन
American Strategy and How it is not made ?.
7) स्पेन प्रधानमंत्री फेलिप गंजालोस -
International Economic Co-operation and the European Community.
विश्वविद्यालय के बाकी सभी एकेडेमिक लेक्चरों में साहित्य संबंधित लेक्चरों की तरफ आपको ले जाना चाहता हूं। फ्लेचर स्कूल ऑफ डिप्लोमेसी में हम सभी निमंत्रित थे । विशेष तीन व्याख्यानो में लगभग हम सभी फेलो गये थे। व्याख्यान का परिवेश हर समय अनौपचारिक रहता है। अनेक बार ऐसा हुआ कि वक्तागण हमारे भीतर संपर्कित विषयों से अभिज्ञ फेलो साथियों को संबंधित विषय पर कहने के लिए अनुरोध करते थे। वक्तव्य को छोड़कर प्रत्येक फेलो को एक साल में दो विषयों पर भाषण देने पड़ते हैं। मैंने स्वयं ने जिन दो विषयों पर भाषण दिया था। वे हैं -
1) अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक विनिमय कार्यक्रम, यूनेस्को तथा विश्वशांति
2) अंतरराष्ट्रीय अर्थनीति में सहयोग-द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय सहयोग की रूपरेखा।
व्याख्यान तथा समीक्षा के एक सत्र पूर्व वक्तव्य की प्रतिलिपि प्रस्तुत करके बाँट दी जाती थी। व्याख्यान संबंधित मेरे दोनों आलेखों में पचास के आस-पास पृष्ठ थे।दूसरे सभी फेलो के भाषण भी व्याख्या के अनुरूप शिक्षणीय थे तथा उनकी भी जमकर समीक्षा हुई। भारतवर्ष में शोधकार्य कर रहे तीन शोधार्थियों से अलग-अलग समय पर मेरा वार्तालाप हुआ। एक साल रहने के अंदर प्रत्येक फेलो अपनी जानकारी से संबंधित विषयों पर जिस प्रकार शोधार्थी अपना काम करते हैं, को उनकी सहायता करने के लिए कहा जाता था।इसे छोड़कर अन्य अमेरिकन विश्वविद्यालयों में फेलो को भी वक्तव्य देने के लिए आमंत्रित किया जाता था। सेंटर में हर शुक्रवार चार बजे चीज एवं वाइन की पार्टी आयोजित की जाती है। उसमें सेंटर के सारे अध्यापक, अन्य कर्मचारी और सारे फेलो भाग लेते हैं। इस अवसर पर फेलो के प्रोग्राम विश्वविद्यालय की दूसरी कई बातें, अध्यापकों के शोध विषयों पर अनौपचारिक भाव से समीक्षा की जाती है।
सेंटर की लाइब्रेरी बहुत ही बड़ी है।उसमें अंतरराष्ट्रीय राजनीति, अर्थनीति, संस्कृति, आमदनी, व्यवसाय से संबंधित विषयों पर खूब सारी पुस्तकें एवं पत्र- पत्रिकायें पढ़ने की सुविधा मिलती है।संक्षिप्त में कहने से सेंटर में पढने-लिखने, अलोचना करने तथा अध्यापकों से मिलने के सारे कार्य अत्यंत आनन्ददायक होते थे।एक जगह मैंने कहा है कि सेंटर में मेरा जो कमरा है,उसके ठीक बगल वाले कमरे में बैठते थे मेक्सिको के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार कार्लो फूएन्टेस। सेंटर में लंच के समय हम दोनों अधिकांश बार एक साथ खाते थे। कमरे में एक साथ कॉफी बना कर पीते थे। उसके बाद साहित्य, भारत और मेक्सिको का इतिहास, कला, अर्थनीति सभी विषयों पर विचार-विमर्श करते थे। मध्याह्न भोजन के समय कैंटीन में लगभग सभी लोग देखने को मिलते हैं। जो विश्वविद्यालय से थोड़ी दूरी पर रहते थे और जिनके पास गाड़ी थी, वे सभी अपने घर जाकर मध्यान्ह भोजन करके लौट आते थे।
एक बार कैनेडी स्कूल के Mason Fellows, फ्लेचर स्कूल के फेलो और हम लोग- इस प्रकार से तीन गोष्ठियों ने इकट्ठी होकर दो दिन के सेमिनार का आयोजन किया था। जिसमें हांटिटन, फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉं तथा डिप्लोमेसी के प्रोफेसर थॉम्पसन तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया था। तीसरी दुनिया के विकास की समस्या, सामाजिक वैषम्य तथा न्याय, गणतन्त्र एवं विकास, सांस्कृतिक परम्परा और विकास, अंतरराष्ट्रीय अर्थनीति के प्रभाव आदि विषयों पर इस सेमिनार में अच्छी तरह चर्चा हुई। सेंटर के तीन प्रोफेसर श्री कूपर, श्री हागार्ड तथा ओरनन आदि के सयुंक्त व्याख्यान If not Gatt, What ? भी शामिल है। इसके अतिरिक्त एशिया पेसेफिक अर्थनीति संबंधित दो दिन के सेमिनार, एक दिवसीय यूनेस्को तथा विश्व-संस्कृति संबंधित सेमिनार (उसके लिए यूनेस्को डायरेक्टर जनरल आये थे) एवं संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी पुनर्वास संबंधित दो दिन का सेमिनार बहुत ही ज्यादा गुणात्मक एवं शिक्षणीय हुआ था। सेंटर में लंच करने का प्रायः अभ्यास हो गया था। विभिन्न खाद्य-पेयों में से अपनी आवश्यकता अनुसार ट्रे में लेकर बिल देना पड़ता था और भीतर के डायनिंग हॉल में बैठकर खाने की सारी सुविधा मिलती थी। अनेक दोस्तों के साथ एक साथ लंच करने तथा गपशप करने में बहुत ही आनंद आता था । उस समय मेरे पास मेक्सिको के उपन्यासकार कार्लो फूएंटेंटस , आयरिश कवि सियामस हिनी, तीन महीनों के लिए शिकागो से हार्वर्ड आये हुए मेरे दोस्त ए.के रामानुज बैठते थे।
मैं रहता था विश्वविद्यालय के सबसे नजदीक कॉनकॉर्ड एवेन्यू की छः मंजिला अपार्टमेंट की सबसे ऊँची कोठरी में। इस बड़ी कोठरी की पार्टिशन कर दो भाग कर दिये गये थे। एक भाग में ड्राइंग रूम तथा दूसरे में बेडरुम। स्नानघर रसोईघर दोनों बहुत छोटे थे। रसोई घर में गैस तथा बिजली हीटर से लेकर सारी चीजें यहाँ तक कि प्लेट, चाकू, चम्मच इत्यादि उपलब्ध थी। यह बात अलग है कि मैंने अपनी आवश्यकता के अऩुसार कुछ अतिरिक्त सामान खरीदा था।
टेलिविजन नहीं होने के कारण मैंने एक टेलिविजन खरीदा था क्योंकि बर्फ गिरते समय तथा अन्य किसी खाली समय टेलिविजन की खबरें तथा प्रोग्राम देखने की बहुत इच्छा होती थी। उस समय बाहर जाना संभव नहीं था।
अपार्टमेंट ब्लॉक में धीरे-धीरे बहुत सारे दोस्त भी दिखने लगे। ग्राउंड फ्लोर पर एक लाउंज तथा टीवी था। अधिकतर समय हम लोग वहीं पर इकट्ठे होते थे। मेरे बैठक रूम से हमारे सेंटर तक पैदल जाने में लगभग दस मिनट लगते थे। ओवर कोट सिर पर टोपी, कंधे पर मफ़लर, हाथ में ग्लोव्स पहनने के बावजूद शीत के प्रभाव को ज्यादा अनुभव किया जा सकता है। खासकर दिन में ठंडी हवा बहती है, आखों से आँसू निकलना शुरु हो जाते हैं। मेरे अपार्टमेंट के रास्ते की तरफ एक बालकॉनी है, जहाँ पर कुर्सी लगाकर मैं कई बार किताब पढ़ता था। बर्फ गिरते समय हवा के साथ ओले उड़कर बालकॉनी से एक-दो फूट दूरी पर जमा होने लगते थे। ठंड में मैं लगभग चार बजे सेंटर छोड़ देता था क्योंकि उस समय अंधेरा होने लगता था। कमरे में लौटते ही पहले चाय, कॉफी या गर्म सूप जब तक नहीं पी लेता था तब तक कुछ भी अच्छा नहीं लगता था।
रहने के दौरान मैंने हर फेलो दोस्त तथा अध्यापकों को एक बार खाने पर घर में बुलाया था। जो फेलो वहां के रहने वाले थे, उनके घर में रात्रि-भोजन के समय उनके देश का खाना खाने का अवसर मिला था।अकेले होने के कारण मैंने रात्रि-भोज फेकल्टी क्लब में दिया था, इसलिए वहां भारतीय खाद्य खिलाना संभव नहीं हुआ। बीच-बीच में अपने परिवार के साथ रहने वाले फेलो के घर भी मुझे आमंत्रित किया गया था, जिसमें मुख्य थे दक्षिण कोरिया, इटली, जर्मनी और यूरोपियन यूनियन के चार दोस्त। इनके घर मुझे बहुत बार आमंत्रित किया गया था। मुझे आज भी याद है, सबसे स्वादिष्ट भोजन मिला था मेरे स्वीडिश दोस्त के घर में। सही पूछा जाए तो मुझे स्वीडन के खाने के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी। मुझे खाने के टेबल पर रखी सारी चीजों का नाम पूछह ना पड़ा था। स्वीडिश दोस्त की लंबाई थी 6 फीट 2 इंच, हम सारे फेलो में वह सबसे ऊंचा था। उसका नाम था मिटकाशल। मजाक-मजाक में हम उसे केंडल-स्टीक कहकर पुकारते थे। सबसे कम ऊंचाई वाला दोस्त था जापान का सोटारो याचिंकर।
कॉनकॉर्ड ऐवन्यू तथा हमारे सेंटर से चार्ल्स नदी पास में थी। नदी के दोनों किनारे रास्ते और रास्तों से नदी के पानी तक घास के लॉन लगे हुए थे। नदी के पुल पार कर थोड़ी दूर जाने पर पड़ता था बोस्टन विश्वविद्यालय का कैम्पस। हमारे विश्वविद्यालय के पास नदी के किनारे आधा किलोमीटर दूरी तय करने पर आता था मैसेच्यूट इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी। तीनों विश्वविद्यालय के अध्यापकों में से उस समय 9 अध्यापक नोबल पुरस्कार विजेता थे। हार्वर्ड और एमआइटी दोनों विश्वविद्यालय दुनिया भर में सुपरिचित हैं । किसी एक विश्वविद्यालय में जब कभी किसी एक विशिष्ट विषय पर लेक्चर होता है, तब दूसरे विश्वविद्यालय के फेकल्टी सदस्यों को भी निमंत्रण-पत्र मिलता है।
चार्ल्स नदी के किनारे भ्रमण, वहां बेंच पर देर समय तक बैठना और पढ़ना, छोटी-छोटी नौकाओं में बैठकर नदी में विहार करना, ये सारी बातें हमेशा याद रहेगी। अप्रेल और मई महीने में लॉन के फूलों का प्राचुर्य मन को मोहित करता है।
विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के व्यायाम के दौरान दौड़ते समय कानों में सोनी वॉकमेन लगाकर गाने सुनते हुए देखना आम दृश्य था। हार्वर्ड स्केवयर और वहां से दोनों तरफ जाने वाले रास्तों में किताबों की खूब सारी दुकानें पड़ती हैं। एक ही जगह पर इतनी सारी किताबों की दुकानें तथा किताबों का संग्रह मैंने अन्यत्र बहुत ही कम देखा है। इस तरह की दुकानें तथा किताबों का संग्रह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय और कॉलेज के सामने यहां की तुलना में पांचवा हिस्सा भी नहीं होगा, ऐसी मेरी धारणा है।अनेक किताबों की दुकानों में पढ़ने के लिए अलग से कमरा भी बना हुआ होता है, लाइब्रेरी की तरह। मैंने अपने देश में किताबों की दुकानों में ऐसी व्यवस्था कहीं नहीं देखी है। एक किताब की दुकान पर प्राचीन जमाने की किताबों का विशेष अंश संग्रहित है। सत्तरहवीं और अठारहवीं सदी की पुरानी किताबों तथा कई पुराने संस्करण वहां देखने को मिलते हैं। किताबों की दुकानों के बीच हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रेस का शोरूम एक बहुत बड़ी दुकान में लगा हुआ है। हार्वर्ड स्केवयर में पत्रिका की दुकान से लेकर दुनिया के किसी भी कोने में अंग्रेजी में प्रकाशित सारी पत्रिकाएं वहां उपलब्ध होती है। स्केवयर से थोडी दूरी पर तरह-तरह के रेस्टोरेंट बने हुए हैं, उनमें से मुझे चाइनीज और मेक्सिकोन रेस्टोरेंट बहुत अच्छे लगते थे। उसके आगे था एक बहुत बड़ा कॉफी हाऊस। यहां पर दुनिया के विभिन्न अंचलों की तरह-तरह कॉफियों में से कम से कम बीस तरह की कॉफियो का मैंने यहां रसास्वादन किया है। स्केवयर से थोड़ी दूरी पर एक सिनेमा घर बना हुआ है, जिसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी, क्योंकि उसमें दुनिया के सबसे बड़े निर्देशकों की फिल्में प्रदर्शित होती हैं । पढ़ाई समाप्त होने के बाद शास्त्रीय संगीत सुनना तथा अच्छी फिल्में देखना मेरा सबसे बड़ा शौक था। एक साल के वहां रहने के दौरान कम से कम चालीस अच्छी फिल्में देखने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
हमारे सेंटर की तरह केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट भी बहुत विख्यात था। वहां दुनिया के अलग-अलग देशों के अपेक्षाकृत कनीय सरकारी अधिकारी, अर्थशास्त्री तथा राजनीतिज्ञ सभी पढ़ने आते हैं। हमारे सेंटर तथा केनेडी स्कूल परस्पर काफी संश्लिष्ट थे। बहुत सारे अध्यापक दोनों जगहों पर पढ़ाते हैं। मेरे सेंटर के बाहर अर्थशास्त्र-विभाग, पुरातत्व विभाग और फाईन आर्ट विभाग में मैं कई बार गया हूं। अर्थशास्त्र विभाग में मेरे मित्र स्टीव मार्गलीन के साथ रूम में बैठकर बहुत सारे विषयों पर चर्चा करते थे। उनके रूम से सटकर एमरिटस अध्यापक गिलब्रेथ का रूम था, वे विभाग में बहुत ही कम समय आते थे। सिर्फ उनसे मेरी दो बार मुलाकातें हुईं। पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर डेविड मेचूटीलुइस के साथ मेरी ज्यादा दोस्ती थी। वे विभागाध्यक्ष थे और दक्षिण अमेरिका के ब्राजिल के विभिन्न अंचलों खासकर अमेजन नदी के अववाहिका अंचल में विकास-योजना की प्रभावशालीता तथा पारंपरिक सामाजिक सांस्कृतिक व्यवस्था के अवक्षय के संबंध में खास ज्ञान रखते थे। प्रोफेसर डेविड के साथ कई बार उनकी फेकल्टी में बैठकर बातचीत करने में बहुत अच्छा लगता था।
ऐसे फाइन आर्ट विभाग तथा उससे जुड़े कारपेंटर सेंटर में साहित्य, कला और संगीत इत्यादि विषयों पर मैंने कई बार वक्तव्य दिए हैं। अंग्रेजी विभाग में सिआमस हिनी के आने के बाद मेरा उनसे गहरा जुडाव हो गया। हमारे विभाग की ओर से लेमेंट लाइब्रेरी में महीने में एक बार कविता पाठ का आयोजन होता है। वहां एक बार मुझे भी कविता पाठ करने का सुअवसर मिला। हिनी की सांध्य-कविता पाठ में मैंने हिस्सा लिया था। तब उन्हें साहित्य का नोबल पुरस्कार नहीं मिला था। मगर उनकी कविताएं विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में बहुत ज्यादा चर्चित हो गई थी। विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ वर्ल्ड रिलीजन एक अन्यतम प्रसिद्ध अनुष्ठान है। इस संस्था के निर्देशक मोनी एडामस अफ्रीका की धार्मिक परंपरा पर विशेष ज्ञान रखते हैं।उनकी अफ्रीका के पारंपरिक धर्म तथा कला विषयों पर खूब सारी पुस्तकें लिखी हुई है। मेरे मित्र ए.के. रामानुजन वहाँ तीन महीने के लिए आमंत्रित हुए थे। कुछ दिनों के लिए भारत के दार्शनिक मतिलाल आए थे। प्रोफेसर विमल मतिलाल तब ऑल सॉल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में थे Spading Professor of Eastern Religions and Ethics थे, ओड़िशा के दर्शन शास्त्र के सुप्रसिद्ध अद्यापक श्री जितेन मोहंती की रचनाओं का उन्होंने संपादन किया था। यही नहीं, अमेरिका तथा इंग्लैंड के जाने-माने दर्शन-शास्त्र के अध्यापकों में उन्हें गिना जाता था। विश्वविद्यालय में रहने के दौरान मैं हार्वर्ड बिजनेस स्कूल तथा हार्वर्ड मेडिकल स्कूल देखने गया था, क्योंकि उनकी ख्याति न केवल भारत में वरन् सारे विश्व में फैली हुई थी। एम.आई.टी॰ का अर्थशास्त्र विभाग तथा बोस्टन विश्वविद्यालय का पुरातत्व विभाग भी बहुत ही नामी विभाग है। बोस्टन के पुरातत्व विभाग में मुझे एक बार लेक्चर देने के लिए आमंत्रित किया गया था।
सेंटर की प्रशासनिक संस्था बहुत ही दक्ष मगर छोटी थी। सारे फेलों के हार्वर्ड में पहुंचने से पहले उनके पूर्व सूचित निवास-स्थान में रहने के लिए गृह उपयोगी सहायता से लेकर स्वास्थ्य, सोशियल सिक्योरिटी आईडी नं., कोपरेटिव सोसायटी के सदस्य के रूप में जोडने, विभिन्न बाहर की यात्राओं की सुविधा करने, विभिन्न अनुदान (स्वास्थ्य, पुस्तक-क्रय, घर पहुंचने के बाद गृह प्रवेश अनुदान) और सिफा के बजट इत्यादि के लिए कई अधिकारी थे। इटालियन फाइनेंसिल उपदेष्टा माइकल टियोरानो बहुत ही कौतूहल-प्रेमी इंसान थे, सभी के साथ हंसी-मजाक करके उन्हें खुश कर देते थे। श्रीमती जॉन सेक्रेटरी थी तथा उनके दो सहायक थे इवा और करोल। लेस ब्राउन फेलो प्रोग्राम के डायरेक्टर थे। इन पांच व्यक्तियों के हाथों में हमारे प्रोग्राम का सारा दायित्व था। चेयरमैन थे सैमुअल हंटिटन हमारे ‘सैम’। सिफा में अनेक विशेष प्रोग्राम उल्लेखनीय थे। उनमें से कुछ का मैं यहां उल्लेख कर रहा हूं :-
राकेल कारसन तथा साइलेंट स्प्रिंग (1962) की रौप्य-जयंती :-
राकेल कारसन ने सन 1962 में अपनी नामी पुस्तक ‘साइलेंट स्प्रिंग’ लिखी थी। बड़े आदर के साथ मैंने वह किताब पढ़ी थी, मुझे बहुत अच्छी लगी थी। पर्यावरण वैज्ञानिक, विकास, अर्थशास्त्री, विभिन्न देशों के योजना बनाने वाले अधिकारीगण तथा कॉलेज, विश्वविद्यालय स्तरीय छात्रों एवं अध्यापकों में वह किताब बहुत चर्चित तथा प्रशंसित हुई थी। अमेरिका में इस किताब को बहुत ही आदर की दृष्टि से देखा गया। अमेरिका के जनसामान्य को उन्होंने पर्यावरण प्रदूषण संबंधित खतरों से अवगत कराया था। समय रहते अगर सावधानी नहीं बरती गई तो वह समय दूर नहीं है जब बसंत ऋतु आने पर कोयल की कूक सुनाई नहीं देगी, गीत गाने वाली चिडियां नहीं होगी। उस “नीरव बसंत” में हम जिंदा रहेंगे।
इस किताब के प्रकाशित होने के ठीक दो साल बाद अर्थात् 1964 में राकेल कैंसर से मर गए। सन् 1987 में उनकी ‘साइलेंट स्प्रिंग’ पुस्तक की रजत जयंती मनाई गई। हार्वर्ड में सेटर फॉर इंटरनेशनल अफेयर की तरफ से कई परिचर्चा-चक्रों का आयोजन किया गया। इसके 25 साल बाद राकेल की स्मृति में कोर्स में भाग लेने वाले हमारे देश में उसके प्रभाव और साधारण भाव से पर्यावरण परिस्थिति के संबंध में परिचर्चाएं होने लगीं । राकेल की शोध पुस्तक मुख्यत: रासायनिक प्रदूषण के बारे में थी। इस विषय पर परिचर्चा करने के लिए स्थानीय अध्यापकों तथा दूसरे गणमान्य लोगों को भी बुलाया गया था। आमंत्रित अतिथियों में थी पर्यावरणविद राकेल जी की मित्र और शोधार्थी श्रीमती शिरले ब्रिगस। उस समय उनकी उम्र 69 वर्ष थी। वह थी रॉकेल कारसन काउंसिल की एक्जूकिटिव डायरेक्टर। ब्रिगस और रॉकेल, दोनों ने चौथे दशक में ‘यू॰एस॰ फिश एंड वाइल्ड लाइफ सर्विस’ में एक साथ काम किया था। रॉकेल के शोधकार्य में उनका बहुत सहयोग था। उनकी मौत के उपरांत श्रीमती ब्रिगस ने एक काउंसिल का निर्माण करके अमेरिका के जनसाधारण को रासायनिक प्रदूषण खासकर विषैले रासायनिक द्रव्यों के प्रयोग के संबंध में जानकारी देने की कोशिश की थी। इस काउंसिल के बहुत बडे-बड़े ज्ञानी लोग सदस्य थे। कीड़े मारने की दवाइयां तथा रासायनिक वस्तुओं के उपयोग के संबंध में यह काउंसिल अमेरिका में सबसे ज्यादा काम करती है। लंच के समय ब्रिगस से मुलाकात करके मैंने उनसे काफी बातचीत की। रॉकेल के संबंध में अपने व्यक्तिगत अनुभूतियों के बारे में उन्होंने बहुत बताया था।
इस काउंसिल के अलावा श्रीमती ब्रिगस औडोबोर्न नेचुरलिस्ट सोसायटी से साथ प्रगाढ़ तरीके से जुड़ी हुई थी, इसलिए वे अमेरिका की अनेक नेचुरल सोसायटी को देख चुकी थीं और उनके बारे में उन्होंने बताया था । इस संदर्भ में इस सोसायटी के प्रकाशनों के संपादन का सारा दायित्व उनके कंधे पर था। पर्यावरण संरक्षण पर संकलन करने के अलावा बांधों के निर्माण, हाइवे द्वारा चिड़ियों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बर्ड काउंट स्टडी का कार्यक्रम प्रारंभ किया था। बातचीत के दौरान उन्होंने मुझसे कहा कि सन् 1962 में जब स्टर्लिंग चिड़ियाँ की गणना शुरु हुई थी, वाशिंगटन-पोस्ट के संवाददाता के प्रश्न का उत्तर देते हुए मैंने कहा था –
You do not know how many of those little rascals there are until you stand and count them on a cold night.
राजनीति शास्त्र के सुप्रसिद्ध प्रोफेसर ब्रिशत की बेटी शिरले आवा विश्वविद्यालय की छात्रा थी, स्थपति विद्या में एम.ए. पास किया था। उसके बाद वह Smithsonian के नेशनल म्यूजियम ऑफ नेशनल हिस्ट्री के साथ जुड़ गई। इस रौप्य जयंती (रॉकेल कारसेन के साइलेंट स्प्रिंग) सेमिनार और उसमें हिस्सा लेना मेरे हिसाब से बहुत ही शिक्षाप्रद और उपयोगी था। खासकर कई देशों के और अमेरिका के पर्यावरण प्रदूषण के संबंध में विशेष ज्ञान रखने वाली श्रीमती ब्रिगस के साथ साक्षातकार एवं व्यक्तिगत बातचीत करने का अवसर मिला था।
फेलों के ब्रेकफास्ट तथा लंच मीटिंग :-
हर महीने के दूसरे सप्ताह में हम लोग एक फेलों-ब्रेकफास्ट का आयोजन करते थे। वहां हम सभी अपने निजी जीवन, परिवार, व्यक्तिगत अभिरुचियों तथा प्रोफेशनल जीवन के विषय में संक्षेप में बताते थे। कोर्स समाप्त होने से पहले तीन दोस्तों को कहीं जाना था, इसलिए उन्हें पहले कहने का अवसर दिया गया। दक्षिण अफ्रीका में इंग्लैंड के राष्ट्रदूत सर पैट्रिक मोबर्ली ने पहले अपने विचार रखे। मुझे उनके विचार बहुत अच्छे लग रहे थे।
दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरन उनका नेलसन मंडेला के साथ साक्षात्कार के अनुभव जीवंत लग रहे थे। वह ‘सर’ उपाधि प्राप्त बहुत सीनियर थे। विदेशी सेवा में कार्यरत होने के बाद भी लिखने का कुछ काम करते थे। दूसरे मलेशिया के भूतपूर्व उप-प्रधानमंत्री डातु मूसा बिन हातम ने अपने देश, संस्कृति, राजनीति तथा अपने राजनैतिक अनुभवों के बारे में बहुत कुछ बताया। तीसरे जॉन कोलान जिनका विशेषज्ञ के रूप में योगदान देना निश्चित हो गया था। उन्होंने अमेरिका की राजनीति और धर्म के समानान्तरता तथा अमेरिका, यूरोप की तुलना में किस प्रकार ज्यादा धार्मिक है, इस विषय पर अपने व्याख्यान दिया था। एक गैल-अप पोल में 70 प्रतिशत अमेरिकन अपने को धर्मविश्वासी मानते थे, 60 प्रतिशत गिरजाघरों में मास (Mass) तथा रविवार को पूजा करते हैं, इस संबंध में उन्होंने ज्यादा तथ्य-परक भाषण दिया था। हमने अपने व्यक्तिगत जीवन तथा कर्मक्षेत्र के इतिहास के बारे में बताया। कितने सारे तथ्य, कितने विचार, कितने देशों के समाज, संस्कृति, इतिहास, राजनीति और अर्थनीति की स्थिति का आकलन आंखों के सामने आया था। अनौपचारिक तौर पर ब्रेकफास्ट के दौरान फेकेल्टी क्लब के एक अलग कमरे में ये सारी जानने का अवसर मिला था, वह आज भी शिक्षणीय, उपभोग्य तथा अविस्मरणीय होकर मन में समाई हुई है। हमारे द्वारा दिए गए पेपर (सी.आई.एफ.ए कोर्स की अन्यतम मुख्य दिशा) बहुत ही उपभोग्य तथा ज्ञानवर्धक थे, जिसमें सी.आई.एफ.ए के सीनीयर प्रोफेसरों तथा शोधकर्ताओं ने योगदान दिया था। उनके अलावा जो अपने पेपर प्रस्तुत करते हैं, वे जिन्हें चाहें उन्हें आमंत्रित कर सकते हैं। जैसे मैंने अपने पेपर के लिए स्टीव मार्गलिन को आमंत्रित किया था, दो पेपर सभी को देने थे। मगर समय के अभाव के कारण सभी को एक पेपर पढ़ने का ही अवसर दिया गया। यह सारा कार्यक्रम सी.आई.एफ.ए के सेमिनार हॉल में हुआ। पहले-पहल प्रत्येक श्रोता और वक्ता पास के सेल्फ सर्विस केफेटेरिआ से अपना लंच लेकर आते हैं। बैठने की व्यवस्था एक विशाल दीर्घवृत्तीय टेबल के कोने में वृताकार भाग में खाने के समय अनौपचारिक तरीके से बातचीत शुरु करने के लिए की गई थी। अपरिचित आगंतुक अपना परिचय देते हैं। पेपर पहले से ही दिया जाता है। लंच खत्म होने के बाद वक्ता आंधे घंटे के भीतर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करता है, उस पर एक घंटे तक चर्चा होती है।
पेपर निम्न विषयों पर आधारित थे :-
मध्यप्राच्य, चीन-जापान संबंध, अमेरिका-जापान संबंध, अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंध तथा यूनेस्को, अमेरिका में उच्च शिक्षा की स्थिति और (समस्याएं, अंतरराष्ट्रीय युद्ध समस्या, शरणार्थी समस्या की सामग्रिक समस्या और विश्व-शांति का भविष्य, मानवाधिकार को नई दिशा, अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोग में गैर-सरकारी संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका इत्यादि।अंत में, सुप्रसिद्ध अध्यापक आर्केस्ट वोगेल ने सुदूर प्राच्य (फार ईस्ट) के बारे में अपने विचार रखे। उन्होंने इस विषयों के पारंगत फेलों के चीन-जापान-कोरिया जाने से पूर्व सी.आई.एफ.ए॰ में यह आयोजन किया था।
फेलों के लंच तथा आलेख-पाठ तथा ब्रेकफास्ट के दौरान अनौपचारिक चर्चाएं बहुत ही शिक्षाप्रद होती थीं ।
6. हार्वर्ड में पहला कदम:अकेलेपन के वे दिन
जब मैं अपने भीतर झाँकता हूँ तो लगता है कि मैं गृहासक्त हूँ। जब मैं घर-परिवार और दोस्तों की परिधि के बाहर निकलता हूँ तो मेरी अवस्था पानी से बाहर निकलने पर तड़पती मछह ली की तरह होती है।अवश्य, ऐसी भावना लगभग सार्वभौमिक है, मगर मेरे भीतर कुछ ज्यादा ही है। धीरे-धीरे उस शून्य को भरने के लिए नए-नए तरीके मिल जाते हैं, नहीं तो कभी-कभी उन तरीकों का आविष्कार भी करना पड़ता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ।
विजय बाबू और मैंने बोस्टन हवाई अड्डे पर मेरी पत्नी (वासंती) और बेटे (सत्यकाम) को छोड़ दिया। वे पहले मॉन्ट्रियल गए। वहाँ हमारे संबंधी अशोका (मेरी पत्नी के मौसा नवकिशोर मोहंती की बेटी) और उनके पति दिलीप हरिचंदन रहते थे। अशोका मॉन्ट्रियल के मैकगिल विश्वविद्यालय में काम करती थी और दिलीप वहाँ वरिष्ठ अधिकारी थे। उनके साथ मेरी पत्नी और बेटे ने टोरंटो और बफेलो के रास्ते कनाड़ा की तरफ से नियाग्रा देखा था। उनके मॉन्ट्रियल प्रवास के अंतिम चरण में सीफा के तत्त्वावधान में कनाड़ा सरकार के निमंत्रण पर दो सप्ताह कनाड़ा घूमने का अवसर प्राप्त हुआ था, जिसका पहला ठहराव था मॉन्ट्रियल। मॉन्ट्रियल के महापौर ने होटल ‘फोर सीजन्स’ में हमारा स्वागत किया। अगले दिन स्थानीय अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श, उसके बाद हम सेंटलॉरेंस नदी के तट पर स्थित कनाड़ा के सबसे पुराने और उत्तरी अमेरिका के सबसे सुंदर शहर क्यूबेक गए। अशोका और दिलीप से फिर मेरी मुलाक़ात हुई। बेटे सत्यकॉम की नियाग्रा अनुभूति का वर्णन अधूरा रह गया था। मैंने उसे सलाह दी, "घर जाकर नियाग्रा समेत जो कुछ अपनी आंखों से देखा है, उसे अपनी कॉपी में लिखना। घर लौटकर मैं उसे देखूंगा।"
वे मॉन्ट्रियल से ओहियो के काउंटी (हमारे करीबी गनी बाबू यहाँ रहते थे) से होते हुए कैलिफोर्निया के सैनहोज़ गए, जहां स्वर्गीय गोपीनाथ मोहंती और उनकी पत्नी (सगे मामा-मामी) की बेटी डॉ॰ अंजलिका (अंजली) और दामाद वरिष्ठ आईबीएम अधिकारी सूर्य रहते थे। मुझे नहीं पता था कि मैं सैनहोज़ में फिर से जाऊँगा और उनके साथ कुछ दिन बिताऊंगा। कैलिफोर्निया की कॉलेजों के डीन और समाजशास्त्र के प्रोफेसर सुसान सीमोर ग्राहम ने मुझे वहाँ व्याख्यान देने और कविता पाठ करने के लिए आमंत्रित किया था। सैनहोज़ स्टेट यूनिवर्सिटी के नृतत्त्वविद जेम्स फ्रीमन ('अनटचेबल’ के प्रसिद्ध लेखक) ने भी मुझे वहाँ व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया था। मैं व्याख्यान की चर्चा बाद मैं करूंगा। लेकिन मैंने यहाँ की फाइजर कॉलेज में आठ दिन बिताए थे। उन आठ दिनों में सूर्य और मामा के साथ हम विभिन्न स्थानों पर गए। हम सैनफ्रांसिस्को में दो बार गए, एक बार स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, उसका परिसर और वहां की विशाल किताबों की दुकानें देखने के लिए। हार्वर्ड, येल के अतिरिक्त स्टैनफोर्ड अमेरिका का प्रमुख विश्वविद्यालय है। इसका परिसर सुंदर है। विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार पर सड़क के दोनों किनारों पर घने खजूर के पेड़ मन मोह रहे थे। इसके बाद खुले गगन के तले कांस्य स्थापत्य की प्रतिमाएँ नजर आईं । वे प्रतिमाएँ अमेरिका के व्यक्तियों और मानवीय गुणों की स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व कर रही थीं। मैंने अमेरिकन इंडियन की कई पुस्तकें और बांसुरी-वादन की चार कैसेट खरीदी। हम कैलिफोर्निया के बर्कले विश्वविद्यालय के परिसर में भी गए। स्टैनफोर्ड की तुलना में बर्कले का परिसर कुछ संकीर्ण था,मगर पर्यावरण ज्यादा हरा-भरा था। हरे-भरे लॉन और फूलों की क्यारियाँ भरी हुई थीं । दूसरी बार हमने सैन फ्रांसिस्को का गोल्डन गेट ब्रिज और मछुआरा-घाट देखा।वहाँ तली मछह ली खाकर हम समुद्र तट पर घूमने लगे। फिर हम सैन फ्रांसिस्को की प्रसिद्ध सड़क से नीचे गए। ऊपर से नीचे ले जाने वाली सड़क में कई मोड़ थे और प्रत्येक मोड पर सुंदर-सुंदर फूलों की क्यारियाँ सजी हुई थीं।
सैनफ्रांसिस्को के बाद हम ‘मोंटेरी बे’ गए। बहुत ही सुंदर जगह थी। मैं मोंटेरी बे और रेडवुड पेड़ों के बारे में बाद में लिखूंगा। उस दिन मेरी पत्नी और बेटा,मामा-मामी के साथ सिंगापुर-कोलकाता के रास्ते घर लौट गए। उसके बाद मेरा एकाकीपन शुरू हुआ।
फाइजर कॉलेज से विमान द्वारा सैनहोज पहुंचने में आधा घंटा लगता है। कॉलेज लॉस एंजेल्स शहर के बाहरी इलाके में था। तीनों परिसर एक-दूसरे के आस-पास थे। वहां के व्याख्यान और कविता-पाठ के बारे में बाद में लिखूंगा। यहाँ मैं अपने व्यक्तिगत दुर्भाग्य के बारे में थोड़ा-बहुत कहूँगा। उस समय शरद ऋतु समाप्त हो चुकी थी। कैलिफ़ोर्निया में सर्दी बहुत कष्टप्रद नहीं थी। वहाँ बहुत ठंड नहीं पड़ती थी। इसलिए एक स्वेटर से काम चल जाता था। सभी कार्यक्रमों के पूरा होने के बाद मैं विमान से बोस्टन लौट आया। बोस्टन हवाई अड्डे पर विमान उतरने से ठीक पहले घोषणा की गई थी: 'रन-वे पर काफी बर्फ है। यहाँ कल से बर्फ़ गिर रही है। रन-वे साफ किया जा रहा है। इसलिए दस मिनट लगेंगे।' हमारा विमान तब तक आकाश में चक्कर काटता रहा। अंत में, नीचे उतरा। टैक्सी के लिए मैं भी बाकी यात्रियों के साथ कतार में खड़ा रहा। जब तक मैं जिंदा रहूँगा, तब तक मैं उसे भूल नहीं पाऊँगा। जब तक टैक्सी नहीं आई, तब तक मैं खुले में खड़ा रहा। मेरी आंखों और नाक से पानी बहने लगा। मेरे कान मानो फट जा रहे थे। मैंने अपनी उंगलियों से अपने कान बंद कर दिए थे। टैक्सी लेकर मैं अपार्टमेंट पहुंचा। उस रात मुझे 104 डिग्री सेल्सियस का बुखार आया। ठंड से कंप-कंपी छूटी, बिस्तर से उठकर बाथरूम जाते समय मेरा सिर भयंकर रूप से घूमने लगा। मेरा फोन पाते ही विजय वहाँ पहुंचे। वह अपने परिवार के साथ चैन्सी स्ट्रीट पर रहते थे, मेरे अपार्टमेंट से सात मिनट की पैदल दूरी पर। वह कहने लगे, "आप अकेले हैं । यूनिवर्सिटी के अस्पताल में भर्ती हो जाना ठीक रहेगा।" मैंने वैसा ही किया। अस्पताल में पहले मेरे रक्तचाप की जांच की गई। वह सामान्य था।
प्रारंभिक चिकित्सकीय राय यह बनी, भयानक ठंड के कारण मुझे चक्कर आ रहे हैं। डरने की जरूरत नहीं है। मुझे अस्पताल में तीन दिन रहना पड़ेगा, पूरी जांच के लिए। मैंने वैसा ही किया। मुझे बुरा लगा कि मेरी पत्नी के जाने के बाद मैं बीमार हो गया। अगले दिन मैंने अस्पताल से भुवनेश्वर अपने घर फोन कर बता दिया कि मैं ठीक हूँ। मैंने फोन इस उद्देश्य से किया था कि कल अगर वे मेरे अपार्टमेंट में फोन करते हैं और उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता है तो वे चिंतित होंगे।
मेडिकल जांच खत्म हो गई। रक्त परीक्षण, ईसीजी और यहां तक कि ब्रेन स्कैन भी।आखिरकार निष्कर्ष यह निकला कि अत्यधिक ठंड के कारण दोनों कानों की नसें बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई हैं। हियरिंग एड लगाना पड़ेगा, जो आज तक बाएँ कान में लगा हुआ है। लेकिन नसें खराब हो जाने से भविष्य में स्पष्ट नहीं सुन पाऊँगा। हियरिंग एड केवल ध्वनि को बढ़ाता है,सुनने के लिए। कान के गह्वर का माप लिया गया और मुझे हियरिंग एड पहनाया गया। ईएनटी विशेषज्ञ नीग्रो की मधुर बातें आज भी याद हैं। मैं अपार्टमेंट वापस आ गया। ये सारी बातें अब मेरा इतिहास बन गई हैं।
एकाकी रहने के दिन शुरू हुए।मेरी पत्नी ने फ्रिज में सब्जी, मछह ली और मांस भर दिया था। मुझे समय निकालकर खाना बनाना सीखना पड़ेगा। विजय की पत्नी सुवर्ण ने मुझे कुछ खाना पकाना सिखा दिया था। उसका बेटा गिटार बजाता था। दिन बीतते चले गए। मैंने अपनी पसंद के सभी तरह के सूप खरीदकर रख लिए थे। सूप के मामले में विशेषज्ञ बन गया था मैं। सूप बनाना आसान था। इसके अलावा, मैं सूप का बहुत शौकीन था। मेरा दूसरा मुख्य भोजन चिकन पैरों का पैकेट था, उसका नाम था ‘ड्रम स्टिक’ (सजना की छिमी की तरह दिखता था)। दही, उपयुक्त मसालों के साथ मिश्रित कर मैं फ्रिज में रख देता था, फिर जरूरत पड़ने पर उसका तंदूरी चिकन तैयार करता था। लंच करता था सिफ़ा के स्वयं सेवा वाले कैंटीन में, नहीं तो हार्वर्ड स्क्वायर के चीनी या मैक्सिकन रेस्तरां (उस क्रम में) में। पच्चीस किस्मों वाले कॉफ़ी हाउस में कॉफी पीता था। अपने प्रवास के दौरान मैंने बीस किस्मों की कॉफी का स्वाद लिया था। सबसे अच्छी लगी कोलंबिया की कॉफी। दक्षिण भारत की मिश्रित कॉफी को भी कई लोग पसंद करते थे। तुर्की कॉफी बहुत कड़वी होती थी, उसमें न तो दूध डाला जाता था और न ही शक्कर, मुझे वह कॉफी बिलकुल पसंद नहीं आती थी। फिर भी एक बार मैंने इसे चखा था। जब ज्यादा सर्दी होती थी, सड़कों पर हिमपात होने लगता था,तब मैं जल्दी से अपार्टमेंट में जाकर खाना पकाने लगता था। खाने के बाद संगीत सुनता था या फिर टीवी देखने बैठ जाता था या फोन पर दोस्तों से बात करने लगता था।खालीपन धीरे-धीरे भरने लगा था।
बीच-बीच में सुवर्ण मुझे भारतीय या पाकिस्तानी दुकान में ले जाती थी। वहाँ सारी चीजें थीं। कंदमूल से लेकर केले तक। मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। मेरा उन चीजों से क्या लेना-देना? उनके घर भूनी मछह ली और तरकारी खाता था। मशरूम बनाता था रसोईघर में। चिकन करी के रेडीमेड मसालें खरीदकर एक दिन उसने मुझे चिकन करी बनाना सिखाया। मेरा पहला प्रयास भयंकर तरीके से विफल रहा। बाद में मुझे पता चला कि जिस बर्तन का मैंने इस्तेमाल किया था, वह इलेक्ट्रिक स्टोव के लिए नहीं था। चिकन करी की खुशबू का आनंद लेते समय तेज आवाज के साथ बर्तन के टुकड़े-टुकड़े हो गए, चिकन स्टोव पर गिर गया, मेरे लिए बच गया रसोईघर की सफाई का काम।
फिर भी, मैंने धीरे-धीरे बहुत कुछ सीखा। पास की दुकान से दो बड़े बैग में सभी आवश्यक सामान लेकर आता था और उन्हें फ्रिज में रख देता था। आलसवश मैंने स्नो-बूट नहीं खरीदे थे। एक दिन जब मैं शॉपिंग कर अपार्टमेंट लौट रहा था, बर्फ पर फिसल गया था। जैसे-तैसे सामान लेकर मैं अपार्टमेंट पहुंचा। इस तरह से मेरे दिन कट रहे थे। बीच-बीच में कई दिन खाना पकाने से राहत मिल जाती थी। कोर्स के विविध टूर, अन्य विश्वविद्यालयों का भ्रमण, दोस्तों के घर खाने का आमंत्रण मिल जाता था।
देखते-देखते हार्वर्ड में दिन पार हो रहे थे। सब-कुछ धीरे-धीरे अपनी जगह ले रहा था। विश्वविद्यालय के हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा कार्ड प्राप्त करना पड़ता था। अमेरिका में हर नागरिक के लिए सामाजिक सुरक्षा आवश्यक है। मुझे अपने प्रवास के पहले महीने में कैम्ब्रिज शहर जाकर निर्धारित सोशल सिक्योरिटी ऑफिस से यह कार्ड लेना पड़ा था। अमेरिका के नागरिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा पद्धति और उसके लिए वार्षिक देय, सीमित दिनों के लिए बाहर से आए हुए लोगों की सुरक्षा पद्धति और उसके लिए वार्षिक देय बिलकुल अलग है। मगर अमेरिका में रहने वाले हर आदमी को अपने साथ यह कार्ड रखना पड़ता है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की अपनी स्वास्थ्य सेवा है। बहुत बड़े अस्पताल में विधिबद्ध वार्ड, ऑपरेशन थिएटर, पोषण तथा विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ हैं। स्वास्थ्य सेवा के लिए पंजीकरण कराना आवश्यक है। अपेक्षित शुल्क जमा करने के बाद एक स्वास्थ्य कार्ड मिलता है। बेशक, फ़ेलोशिप की व्यवस्था करने वाला संगठन ही ऐसी फीस का भुगतान करता है। फोर्ड फाउंडेशन ने मेरे फैलोशिप की सिफ़ारिश की थी। विश्वविद्यालय के सभी प्रोफेसरों, छात्रों और दोस्तों को एक निर्दिष्ट डॉक्टर के साथ जोड़ा जाता है। हर किसी को स्वस्थ हाल में पहली बार अपने डॉक्टर से मिलना आवश्यक था। संबंधित चिकित्सक व्यक्ति का इलाज करता है और यदि आवश्यकता पड़ती है तो अन्य विशेषज्ञों की सलाह भी लेता है। विश्वविद्यालय स्वास्थ्य सेवा के लिए आवश्यक दवाइयाँ खुद को खरीदनी पड़ती है। वहाँ के अधिकांश चिकित्सक हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से प्रशिक्षित हैं। मुझे देखने का प्रभार डॉ॰कस्तूरी नागराज को सौंपा गया था। वे 1978 से यूनिवर्सिटी की स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी हुई थीं । दिल्ली से एमडी करने के बाद वे लेडी हार्डिंगे मेडिकल कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के पद पर थीं । बाद में, उन्होंने 1978 में हार्वर्ड स्वास्थ्य सेवा में शामिल होने से पहले हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
रोगियों के प्रति उनका व्यवहार और दृष्टिकोण बेहद अच्छा था। जब उन्हें पता चला कि मैं भारत के ओड़िशा राज्य से हूं तो वे अक्सर अपने डाक्टरी अनुभवों तथा अपने परिवार के बारे में मुझे बताती थीं । उनके पति का नाम श्री शिव नागराज था और उनके तीन बच्चे थे। दो लड़कियां थीं, अर्चना और ज्योति। सबसे छोटा लड़का था, जिसका नाम आधि था। सबसे बड़ी अर्चना, जिसकी उम्र, सोलह साल थी।
अलग-अलग समय पर मैंने उनसे मुलाकात कर चिकित्सा-सलाह और उपचार प्राप्त किया। मुझे याद है कि एक दिन सुबह ग्यारह बजे मुझे उनसे मिलना था। उससे पूर्व मुझे शाम को भुवनेश्वर से मेरी मौसी के निधन का समाचार मिला। वह ज्यादा बूढ़ी नहीं थी। वह मुझे और मेरी पत्नी को माँ की तरह प्यार करती थी। मैं अपनी पत्नी से टेलीफोन पर यह खबर सुनकर बेहद दुखी हुआ था। दूसरे दिन सुबह सबसे पहले मैं सेंटर गया,जैसे मैं हर दिन जाया करता था। मैंने हर रोज की तरह लेटर-बॉक्स से अपने पत्र लिए, पुस्तकालय में कुछ समय पढ़ाई की और दोस्तों के साथ गपशप करने लगा। कमरे में चाय पीकर सभी अपने-अपने काम में लग गए। उस दिन मेरे लेटर-बॉक्स में एक पत्र था। यह बीजिंग विश्वविद्यालय से आया था। मैंने लिफाफा खोला और देखा, मेरे पत्र के साथ एक छोटा नोट लिखा हुआ था। पत्र बीजिंग विश्वविद्यालय के नृतत्व विभाग के प्रोफेसर का था, जिनसे मेरा लगभग दस सालों से घनिष्ठ संबंध था। संयोग से, हार्वर्ड आने से पहले उनसे मेरी दिल्ली में भी मुलाक़ात हुई थी। उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि संकाय के तौर पर आमंत्रित किया गया था। मेरे पत्र के साथ लगे छोटे नोट पर लिखा हुआ था, 'हमारे प्रोफेसर मित्र की दिल का दौरा पड़ने से अचानक मृत्यु हो गई।' इसलिए मेरा पत्र मुझे लौटा दिया गया। मुझे अपनी मौसी की मौत की खबर शाम को पहले मिल चुकी थी। एक और मौत की खबर से मुझे गहरा दुख हुआ। कुछ समय सेंटर में रहकर मैं 11 बजे डॉ॰ कस्तुरी नागराज से मिलने के लिए अस्पताल गया। मैं नियमानुसार पहले उनके सचिव से मिला।उसने कहा, "डॉ॰ महापात्रा, शायद आपको पता नहीं हैं। दिल का दौरा पड़ने से आज सुबह कुछ समय पहले ही श्रीमती नागराज का निधन हो गया है और कल 12.30 बजे यूनिवर्सिटी के मेमोरियल चर्च में उनके लिए शोक-सभा का आयोजन होगा।”
अपने जीवन में मैंने कई मौतों का सामना एक साथ कभी नहीं किया था, उसके बाद एक साथ तीन अत्यंत करीबी लोगों की मृत्यु। दुखी मन से सेंटर लौट आया। वहां कुछ समय तक रहा। फिर अपने अपार्टमेंट चला गया। सोते-सोते पंडित जसराज के भजन सुनने लगा, कुछ हद तक अपने आपको आश्वस्त किया। मैंने बाहर खाने की बजाय घर पर कुछ सूप बनाया। सूप पीकर चार्ल्स नदी के तट पर चला गया। वहां कुछ समय बैठा और फिर अपार्टमेंट लौट आया। हार्वर्ड के एक साल प्रवास में 24 मार्च, शुक्रवार मेरे लिए सबसे दुखद दिन था। अगले दिन मैं मेमोरियल चर्च में शोक-सभा में गया। मैं वहां पहली बार उनके पति श्री शिव नागराज और उनकी सबसे बड़ी बेटी अर्चना से मिला। उससे पहले उनके घर में उनकी छोटी बेटी और बेटे से मिल चुका था।
एक ही दिन, एक के बाद तीन मौतों की खबर ने मुझे विचलित कर दिया था। दो-चार दिन किसी भी चीज में मेरा मन नहीं लग रहा था। कुछ समय बाद मुझे एक अन्य चिकित्सक के साथ जोड़ दिया गया। वह अमेरिकी नीग्रो थे और कस्तूरी नागराज को बहुत अच्छी तरह से जानते थे। अक्सर स्वर्गीय नागराज के बारे में मेरी उनके साथ चर्चा होती थी। उनके सहयोगी के हिसाब से वे भी अपने अनुभव सुनाते थे।
(क्रमशः अगले भागों में जारी...)
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