संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 120 : चश्मे की याद // अनूप शुक्ल

SHARE:

प्रविष्टि क्र. 120 चश्मे की याद अनूप शुक्ल --------------------- सुबह दफ़्तर के लिये निकले। लगा कुछ छूट सा गया है। असुरक्षित सा महसूस हुआ। दस...

प्रविष्टि क्र. 120

चश्मे की याद

अनूप शुक्ल

---------------------

सुबह दफ़्तर के लिये निकले। लगा कुछ छूट सा गया है। असुरक्षित सा महसूस हुआ। दस कदम चलने के बाद याद आया। मोबाइल चार्जिंग में ही लगा रह गया था। ’इस्स’ कहते हुये सर पर हल्की चपत लगाई। वापस लपके। मोबाइल जेब में धरा। सुरक्षा का एहसास मोबाइल के साथ ही, एक के साथ एक फ़्री वाले अंदाज में, आ गया।

मोबाइल का छूट जाना मतलब असुरक्षित सा हो जाना है। बिना मोबाइल आदमी ’जल बिन मीन’ सा हो जाता है। ऐसा लगता है बिना जिरह-बख्तर के पानीपत की लड़ाई में उतार दिये गये। बिना मोबाइल के कलयुगी इंसान की गत वही होती है जो महाभारत में बिना गांडीव के अर्जुन की होती होगी। ’लक्स कोजी’ बनियाइन का विज्ञापन आता है-’अपना लक पहन के चलो।’ बनियाइन पर भले लागू न हो लेकिन मोबाइल पर फ़ुल लागू होता है लक वाला फ़ंडा। कहीं के लिये निकलो, मोबाइल साथ ले के चलो। मोबाइल साथ में, लक आपके हाथ में।

दफ़्तर पहुंचकर राउंड के लिये निकले। सुबह-सुबह राउंड लेने से मातहत और अफ़सर दोनों को दिन भर निठल्ले रहने की छूट मिल जाती है। अफ़सर का आत्मविश्वास एवरेस्ट पर पहुंच जाता है तो मातहत का भी कंचनजंघा से नीचे तो नहीं रहता है। राउंड करते हुये अफ़सर को निपटाकर मातहत दिन भर की बला टल जाने का सुकून पाता है।

एक जगह तेजी से राउंड निपटाकर दूसरी जगह को लपकते हुये चश्मा जेब से निकालकर माथे पर लगाने की सोची। लेकिन जेब में चश्मा मिला नहीं। सर टटोला वहां भी विराजमान नहीं था चश्मा। जेब और माथे दोनों जगह चश्मा न मिलने का एहसास होते ही सामने साफ़ दिखता आदमी धुंधला दिखने लगा। सामने से आती गाड़ियों के आकार बदल गये। मतलब साफ़ था। दिमाग ने आंखों से चुगली कर दी थी -’ तुम बिना चश्मे के हो। साफ़ देखना बन्द करो।’ फ़लत: आंखें ’वर्क टु रूल’ के अनुसार काम करने लगीं। थोड़ी देर पहले साफ़ दिखने वाली चीजें धुंधला गयीं।

दिमाग की यह हरकत उसी तरह की थी जिस तरह अपराध करते कोई पकड़ा जाता है लेकिन असल अपराधी कोई और होता है। दंगा कराने वाले शांति का संदेश देते हुये अपने आदमियों को जल्दी से जल्दी बवाल फ़ैलाने के लिये आदेश देते हैं। चश्मा न होने पर आंख कुछ देर तक बदस्तूर अपनी ड्य़ूटी बजाती रही। लेकिन जैसे ही दिमाग ने उसको हड़काया -“ बिना चश्में के तुम साफ़ देख रही हो। पकड़ जाओगी।“ सुनते ही आंखों ने सकपकाकर साफ़ देखना बन्द कर दिया होगा।

बहरहाल, धुंधला देखते ही दौरा पूरा किया। आंखों को असहयोग के लिये मन किया हड़का दें। लेकिन सोचा -’ उस बेचारी की भी क्या गलती। जैसा हाईकमान बोलेगा वैसा ही तो करेगी। आंख कोई सांसद/विधायक तो है नहीं जो अंतरात्मा की आवाज के नाम पर मनमानी करे।’ इसलिये छोड़ दिया।

दफ़्तर पहुंचते ही अर्दली को चश्मा खोजने पर लगा दिया। फ़ाइल टटोलने लगे। दराज झांकने लगे। जमीन की पैमाइश भी कर डाली। फ़टाफ़ट खोजाई के बाद चश्मा मिला नहीं। शक हुआ कि जहां पहली बार राउंड पर गये थे वहां ही छूटा होगा चश्मा। और जा कहां सकता है?

अर्दली को बताया गया कि साहब सुबह राउंड पर चश्माविहीन थे। मतलब लोग राउंड करते अफ़सर के पहनावे पर निगाह रखते हैं। इसके बाद जिसने राउंड पर निकलते समय देखा था वह दिख गया। उसने भी कहा -’राउंड पर निकलने समय आप चश्मा नहीं लगाये थे।’ बाद में दफ़तर में घुसते हुये नमस्ते करने वाले ने भी बयान जारी किया कि दफ़तर बिना चश्मे के आये थे। बहुमत ने यह साबित कर दिया कि हम दफ़्तर बिना चश्मे के आये थे। सुकून हुआ कि चश्में की ही खोज हो रही हैं पतलून की नहीं। वरना कौन जानता है कि उसके बिना भी दफ़तर आने के बयान जारी हो जाते। बैठे-बिठाये कलयुगी आर्किमिडीज बन जाते।

दफ़तर से निराश होकर हमने घर पर आसरा किया। शायद घर में ही भूल गये हों। जितने कोने-अतरे हैं उससे दोगुने-तीन गुने में सघन तलाशी अभियान चलाया गया। फ़र्श पर छिपकली की तरह लेटकर बिस्तर के नीचे तलाशा गया। लेकिन चश्मा मुआ लोकतंत्र में शिष्टाचार की तरह नदारद ही दिखा। लगा कि हो न हो दफ़्तर में ही छूट गया हो।

लौटकर दफ़्तर-दफ़तर खोये चश्मे की खोज शुरू हुई। जिस भी मेज पर चश्मा दिखता लगता वह मेरा ही है। बिना चश्मे के होने के कारण यह धारणा बनाने में आसानी भी हुई। दूरी के कारण हमको हर मेज पर धरा चश्मा अपना लगता। चश्मे की तरफ़ हाथ बढाते हुये मेज पर बैठने वाले को ’चोर’ भले ने मान रहे थे लेकिन चोर से कम भी मानने का मन नहीं हो रहा था। लेकिन अफ़सोस यही कि चश्मा पास से देखते ही इस धारणा पर टिक नहीं पाते। चश्मा उसी का निकलता और हमें मजबूरन उसको शरीफ़ ही मानना पड़ता।

शाम तक पूरी कायनात में हल्ला मच गया कि हमारा चश्मा मिल नहीं रहा है। लेकिन अफ़सोस कि हमारे अलावा कोई इससे परेशान नहीं दिखा। परेशान तो सच कहें अपन भी नहीं थे क्योंकि चश्मे के साथ भी कोई बहुत साफ़ नहीं दिखता था क्योंकि चश्मा पुराना था और इस बीच हमारी नजर और गड़बड़ा गयी थी। लेकिन फ़िर भी चश्में के रहते थोड़ा सुकून का एहसास था जैसे लोकतंत्र में बावजूद अधोषित तानाशाही के जम्हूरियत का एहसास, भले ही कहने को हो, बना रहता है।

अब सड़क पर कार चलाते भी एहसास तगड़ा होता गया कि चश्मा विहीन हैं अपन। हर सामने आती गाड़ी देखकर लगता कि इसको भी पता है अपन को साफ़ दिखता नहीं। ठेलने के इरादे से आ रही है सामने से। लेकिन गाड़ी बिना ठोंके बगल से निकल जाती तो लगता कि वह मुझे सिर्फ़ धमका कर निकल गयी।

घर में आते तो लगता दफ़तर में खोया है। दफ़तर में सोचते घर में गुम हुआ। बीच में कार की तलाशी तो आते-जाते होती ही रहती।

मन किया कि हर जगह इस्तहार लगवा दें -’चश्में बेटे लौट आओ। तुम्हारे बिना आंखे सूनी हैं। नाक को तुम्हारी कमी खल रही है। तुम्हारे बिना चेहरे की रौनक दफ़ा हो गयी है। जल्दी आ जाओ।’ लेकिन चश्मे की भाषा ही नहीं पता थी तो इश्तहार कैसे छपवाते। डर यह भी लग रहा था कि इधर इश्तहार छपवायें, उधर चश्मा मिल जाये। बेफ़ालतू में पैसे बरबाद होंगे।

ऐसे ही होते करते दिन निकलते गये। लगा कि अब चश्मा रहा नहीं हमारे बीच। इस बीच एक मीटिंग की खबर आई। लगा चश्मा जरूरी है। नया बनवाया जाये। लौटते में पहुंच गये चश्मे की दुकान।

दुकान पर ’सेल्स महिला’ ने तरह-तरह के चश्मे दिखाने शुरु किये। हमने कहा अभी कामचलाऊ फ़्रेम दिखाओ। बाकी अच्छा मतलब मंहगा बीबी-बच्चे के साथ आकर पसंद करेंगे।

इस सीधी सी बात से साफ़ हो जाता है कि अपन खुद के खुद मंहगी चीजें खरीदने से बचते हैं। कामचलाऊ से ही काम चलाते हैं। दूसरी बात यह भी कि अपन को खुद की पसंद पर भरोसा नहीं। तीसरी बात यह कि ..। अब छोडिये तीसरी बात ! बात बढाने से क्या फ़ायदा। निकलेगी तो चश्मे से बहुत दूर निकल जायेगी।

चश्मे का फ़्रेम तय करते हुये हम अपने खोये चश्मे के जैसा ही फ़्रेम खोजते रहे। ऐसा नहीं कि उसमें हम बहुत हसीन लगते हों। या बहुत साफ़ दिखता हो उसमें। लेकिन जिसके साथ रह चुके उसकी आदत पड जाती है न। उससे बहुत ज्यादा अलग सोचना मुश्किल होता है। अगर आज देश के लिये कोई नयी व्यवस्था चुनने के लिये कहे तो जो चुनी जायेगी उसमें कमोवेश इत्ती ही अराजकता, इत्ती ही अनुशासनहीनता, इतना ही भ्रष्टाचार, इतनी ही भाई-भतीजावाद, ऐसा ही जातिवाद , समप्रदायवाद होगा। इससे अलग होगा तो हम शायद असहज रहें।

जल्दी ही अपने खोये चश्मे के फ़्रेम जैसा ही फ़्रेम मिल गया। बनावट, रंग और दीगर चीजों से ज्यादा उसकी कीमत पुराने चश्मे के अल्ले-पल्ले थी। इससे मुझे और कन्फ़र्म हुआ कि उस जैसा ही चश्मा है। यह बात अलग कि पुरानी फ़्रेम हमने दिल्ली से लिया था और यह दुकान कानपुर की थी।

जो फ़्रेम मैंने तय किया वह दुकान के सबसे सस्ते फ़्रेमों में था। बिक्री महिला ने हमको उससे अच्छे फ़्रेम दिखाने और उनको पसंद करने के लिये बहुत उकसाया लेकिन हम अपने निर्णय पर अडिग रहे। अपनी त्वरित निर्णय क्षमता पर हमें गर्व टाइप भी हुआ। अपने तय किये फ़्रेम से अलग उसने जो भी फ़्रेम दिखाया वह उससे मंहगा था लिहाजा हमें अच्छा नहीं लगा।

हमारे द्वारा सबसे सस्ता फ़्रेम करने को ’सेल्स महिला’ ने चुनौती के रूप में लिया। चश्मे में एंटी ग्लेयरिंग, पास और दूर के लिये अलग ग्लास तय करने की पेशकश की। हमने सबको ठुकराते हुये नजर टेस्टिंग के लिये अपनी आंखे हाजिर कर दीं।

नजर टेस्ट कराना भी बवाल है। हर बार ग्लास लगाते हुये पूछती यह अच्छा कि यह। यह अच्छा कि वह। वो तो कहो कि नजर टेस्ट कराने में पावर के हिसाब से दाम नहीं बढते। वर्ना हो सकता है कि अपन सबसे सस्ते वाले ग्लास के लिये हां बोलकर चश्मा तौलवा लेते, भले ही दिखने के उसमें देखने से बेहतर बिना उसके देखना होता।

बहरहाल, शाम को चश्मा लेने गये। लगाते ही दुनिया और खूबसूरत लगने लगी। टेस्ट करने वाली महिला भी। मन किया एक बार फ़िर चश्मा टेस्ट करवायें। लेकिन उसको घर जाने की जल्दी थी।

दुकान पर ही पता चला कि जिस दुकान से चश्मा बनवाया है वह साठ साल पुरानी है। उसके 84 साल की उमर के मालिक से भी मुलाकात हुई। चश्मा और अच्छा लगने लगा।

अब हाल यह है कि नये चश्मे के साथ नया सरदर्द मुफ़्त में मिल गया है। बीच-बीच में तारे टाइप नजर आने लगे हैं। लगता है चश्में में गूगल अर्थ फ़िट कर दिया हो जो बिना इंटरनेट के तारे-सितारे दिखा रहा है। चश्मा खरीदने में त्वरित निर्णय लेने में भले सफ़ल रहे हों लेकिन हफ़्ता भर बाद भी यह तय नहीं कर पा रहे कि गड़बड़ कहां हुई? चश्में की पावर तय करने में या चश्में के साथ सेटिंग में।

कई बार दुकान के सामने से निकल चुके हैं लेकिन अंदर जाने का मन नहीं हुआ। डर लग रहा है कि कहीं ग्लास बदलने की बात न उठ जाये। पैसे खर्च होने से बचाने की चाहत हमें इस नये चश्में के प्रति मोहब्बत पैदा हो गयी है।

पुराना चश्मा भी फ़िर से याद आ रहा है। गाने का मन हो रहा है- ’आ लौट के आजा मेरे मीत रे, तुझे मेरी आंखें बुलाती हैं।’

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 120 : चश्मे की याद // अनूप शुक्ल
संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 120 : चश्मे की याद // अनूप शुक्ल
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgAbCCz6Kg_IgaJJFSR1unc_emaawmdjuU7sfyaEXQ5nGMwbkJFK-ypO3bULU0IrmYfZLRynXmImDGzWFEgLbvCOVCqamP-EOZq15Hj2KVjgQzPLjYO-O-zYmovkahcdBF9hM7Uxw/s1600/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%AA+%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgAbCCz6Kg_IgaJJFSR1unc_emaawmdjuU7sfyaEXQ5nGMwbkJFK-ypO3bULU0IrmYfZLRynXmImDGzWFEgLbvCOVCqamP-EOZq15Hj2KVjgQzPLjYO-O-zYmovkahcdBF9hM7Uxw/s72-c/%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%AA+%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B2.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/04/120.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/04/120.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content