पौराणिक साहित्य का अर्थ है प्राचीन कथाओं का विशद वर्णन । भारतीय जन मानस और विश्व जनमानस पर पौराणिक साहित्य और चरित्रों का बहुत गहन प्रभाव पर...
पौराणिक साहित्य का अर्थ है प्राचीन कथाओं का विशद वर्णन । भारतीय जन मानस और विश्व जनमानस पर पौराणिक साहित्य और चरित्रों का बहुत गहन प्रभाव परिलक्षित होता है ।पुराण विश्व साहित्य के प्राचीनतम ग्रँथ हैं। उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। पुराणों से पहले वेदों ने भारतीय जनमानस को विश्वगुरु बनाया था। वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है। इस कारण पुराणों का सृजन हुआ पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं। उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं। विशेष तथ्य यह है कि पुराणों में देवा-देवताओं, राजाओं, और ऋषि-मुनियों के साथ साथ जन साधारण की कथायें भी उल्लेख किया गया हैं जिस से पौराणिक काल के सभी पहलुओं का चित्रण मिलता है।
पौराणिक चरित्रों को मिथक भी कहा जाता है।
मिथक शब्द अंग्रेजी के 'मिथ' का हिंदी रूप है ।यह शब्द हिंदी जगत को 'आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी' से मिला। मिथ मूलतः ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है - 'वाणी का विषय'। वाणी का विषय से तात्पर्य है - एक कहानी, एक आख्यान जो प्राचीन काल में सत्य माने जाते थे और कुछ रहस्यमय अर्थ देते थे। मिथ शब्द के कुछ कोशगत अर्थ भी हैं - कोई पुरानी कहानी अथवा लोक विश्वास, किसी जाति का आख्यान, धार्मिक विश्वासों एवं प्रकृति के रहस्यों के विश्लेषण से युक्त देवताओं तथा वीर पुरुषों की पारंपरिक गाथा, कथन, वृत्त, किवदंती, परंपरागत कथा आदि।प्राचीन काल में भारतीय सभ्यता अति समृद्ध थी. हमारी सभ्यता इतनी उन्नत थी कि हम आज भी उस पर गर्व करते हैं. किसी भाषा के वाचिक और लिखित सामग्री को साहित्य कह सकते हैं. विश्व में प्राचीन वाचिक साहित्य आदिवासी भाषाओं में प्राप्त होता है. भारतीय संस्कृत साहित्य ऋग्वेद से प्रारंभ होता है. व्यास, वाल्मीकि जैसे पौराणिक ऋषियों ने महाभारत एवं रामायण जैसे महाकाव्यों की रचना की. भास, कालिदास एवं अन्य कवियों ने संस्कृत में नाटक लिखे, साहित्य की अमूल्य धरोहर है। इन सभी साहित्य रचनाओं के पात्रों ने मानव प्रजाति को नई दिशा दी है।
चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ईश्वरीय ज्ञान हैं जो कि सृष्टि के आरम्भ में चार ऋषियों क्रमशः अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा को वैदिक भाषा संस्कृत के ज्ञान सहित दिये गये थे। इन वेदों में ईश्वर ने वह ज्ञान मनुष्यों तक पहुंचाया जो आज करोड़ों वर्ष बाद भी सुलभ है। यह वेदों का ज्ञान ही मनुष्य की समग्र उन्नति का आधार है। इस ज्ञान को माता-पिता और आचार्यों से पढ़कर मनुष्य की समग्र शारीरिक, बौद्धिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति होती है। उदाहरण के रूप में हम आदि पुरूष ब्रह्माजी, महर्षि मनु, पतजंलि, कपिल, कणाद, गौतम, व्यास, जैमिनी, राम, कृष्ण, चाणक्य, दयानन्द आदि ऐतिहासिक महापुरूषों को ले सकते हैं जिनकी शारीरिक, बौद्धिक और आत्मिक उन्नति का आधार वेद था।
हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के प्रारंभ से ही मिथकों के महत्व वाली रचनाओं का सृजन आरंभ हो चुका था। हिंदू जाति बहुल देश के बौद्धिक निर्माण में पुराणों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। जाने अनजाने यहाँ की एक बहुत बड़ी जनता पौराणिक देवताओं के चरित्रों और आदर्शों से प्रभावित और प्रेरित होती रही है। चेतना के निम्नतम और गहरे स्तर पर भी पौराणिक मिथकों का असर रहा है। इस दृष्टि से यह एक सहज सत्य है कि नए कवियों ने पौराणिक कथाओं और विश्वासों को युगबोध के स्तर पर पुनः नए ढंग से दुहरा कर या अपनी कविता में सजाकर अपनी युगानुकूल प्रवृत्ति को एक चमक प्रदान करने के लिए पुराण का सहारा लिया। भक्तियुग में राधा-कृष्ण, राम-सीता, शिव-पार्वती आदि का सहारा भक्तों ने अपनी भावनाओं के लिए लिया था। रीतिकाल में भी रति और राग की विभिन्न क्रीड़ाओं को अभिव्यंजित करने के लिए राधा-कृष्ण का उपयोग कवियों ने अपने ढंग से किया। परिस्थिति को पुराण की दृष्टि से देखने की आदत कवियों में पुराकाल से ही चली आ रही है। भारतीय समाज में धर्म एक अभिन्न तत्व है। भारतीय समाज के समस्त क्रियाकलाप, जन्म से लेकर मृत्यु तक,धर्म से आबद्ध होते हैं। धर्म के इतर भारतीय जन-जीवन की कल्पना अधूरी है। ऋग्वैदिक काल से लेकर आज तक हिन्दू समाज में करोड़ों देवताओं का आविर्भाव हुआ वे पूजनीय, पोषणीय रहें और वर्तमान में भी अनेक देवताओं की कल्पना करता हुआ हिन्दू समाज नये-नये देवताओं को गढ़ रहा है। इसी प्रगतिशील सोच ने अपने आदि कालीन देवी-देवताओं को प्राचीन काल की अपेक्षा निम्नतर स्थिति में पहुँचा दिया है। प्राचीन काल में शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य, गणपति, आदि मानव जीवन उपास्य और नियन्ता थे। प्रस्तुत देवताओं में भी भगवान सूर्य की उपासना के प्रमाण प्रागैतिहासिक काल से ही मिलने लगते है जो कि ऋग्वैदिक काल के वैदिक देवमण्डल में प्रमुखस्थान पर स्थापित देव हो गए थे।
भारत के महान कवियों यथा भास, कालिदास, भवभूति एवं अनेक कवियों ने वाल्मीकि की रामायण से कथानक ग्रहण किए एवं उनका अपने काव्यों और नाटकों में नियोजन किया। न केवल संस्कृत के ही कवियों को इस अदभुत काव्य से प्रेरणा मिली, अपितु भारत की परवर्ती भाषाओं की कविता को भी इसी अदभुत काव्य से प्रेरणा मिली। मध्ययुगीन कवियों के कर्णधार महाकवि तुलसीदास का रामचरितमानस पर वाल्मीकि रामायण का ही प्रभाव है। रामायण का यह प्रभाव केवल उत्तर भारत तक ही सीमित नहीं है। तमिल भाषा में लिखी गर्इ कम्बन रामायण का दक्षिण में भी वही प्रभाव रहा जो कि उत्तर भारत में तुलसीदास के रामचरितमानस का। रामायण के इस कथानक ने भारत की सीमाओं के परे भी प्रभाव डाला। आज भी दक्षिण एशिया के बालि द्वीप में श्रीराम के इस कथानक का प्रचार मिलता है। इस कथानक का प्रभाव नासितक बौ( साहित्य पर भी हुआ जैसे कि 'दशरथजातक से स्पष्ट हो जाता है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि 'महाभारत से सिर्फ ( केवल एक ही त्योहार है जन्माष्टमी, किन्तु श्रीराम के कथानक से अनेक त्योहार मिलते
हैं, जैसे रामनवमी, विजयदशमी एवं दीपावली। विजयदशमी न केवल राम को रावण के ऊपर विजय इंगित करती है, वह अच्छार्इकी बुरार्इ के ऊपर, पुण्य की पाप के ऊपर एवं प्रकाश की अंध्कार के ऊपर विजय को भी इंगित करती है। इसी प्रकार दीपावली न केवल भगवान राम के अयोध्या आगमन विषयक अदभुत आनन्द को ही प्रस्तुत करती है, अपितु हमारे जीवन में नैतिक आदर्शों के पुनरागमन को भी सूचित करती है। इस तरह रामायण भारतीयों के लिए उत्साह का एक अखंड स्रोत रही है।अगर भारतीय साहित्य के दो महान ग्रंथों का विश्लेषण किया जाये तो महाभारत इनमें से प्रथम अर्थात इतिहास की श्रेणी में आता है और रामायण द्वितीय समेकित कविता की श्रेणी में। परवर्ती आलंकारिकों के द्वारा दी गयी काव्य की परिभाषा के समस्त गुण रामायण में उपलब्ध् हैं। अलंकारों के प्रयोग का प्रारम्भ इसी ग्रंथ से परिलक्षित होता है जो कि आगे चलकर अलंकारशास्त्र के रूप में विस्तृत हुए। यद्यपि दोनों महाकाव्यों में प्रयुक्त 'श्लोक छन्द एक ही है फिर भी महाभारत में हमें प्राचीनतर प्रक्रिया परिलक्षित होती है, जैसे कि उपजाति एवं वंशस्य जैसे आर छन्दों का प्रयोग जो कि वैदिक छन्दों-त्रिष्टुप एवं जगतो के विकसित रूप हैं। तीसरे, महाभारत में अनेक पात्रों का कथन इन शब्दों द्वारा प्रस्तुत किया गया है संजय उवाच-जोकि कविता या श्लोकों के अंग नहीं हैं और इस कारण से प्राचीन गधाख्यानों के अवशिष्ट रूप लगते हैं।
पौराणिक कथाओं में प्रकृति की उपस्थिति देखी जाती है। लोक-कथाओं में प्रकृति के विभिन्न आयाम तथा मनुष्य के उसके अन्तर्सम्बन्धों के अलावे पशु-पक्षियों से उसके परस्पर वार्तालाप की दिलचस्प बातें देखने को मिलती हैं। यहाँ पशु-पक्षियों के वार्तालाप भी मनुष्य की भाषा में होते हैं, जिसमें सामाजिक गतिविधियाँ प्रतिबिंबित होती हैं। इनमें लोक नीति और सामाजिक व्यवहार के कई ऐसे पात्र दृष्टिगोचर होते हैं जिनसे समाज में अच्छे-बुरे कर्मों के लिए दण्ड और वरदान जैसे विधि-विधान के माध्यम से बुराई से बचने और अच्छाई की ओर अग्रसर होने के उपदेश मिलते हैं।
पंचतंत्र की बहुत सी कथाएँ लोक-कथाओं के रूप में जनजीवन में प्रचलित हैं। किंतु यह भी सही है कि जितनी कथाएँ (पंचतंत्र के प्रकार की) लोकजीवन में मिल जाती हैं उतनी पंचतंत्र में भी नहीं मिलतीं। यदि यह कहा जाए कि विष्णु शर्मा ने लोकजीवन में प्रचलित कथाओं से लाभ उठाया होगा तो कोई, अनुपयुक्त बात नहीं होगी। हितोपदेश, बृहदश्लोक संग्रह, बृहत्कथा मंजरी, कथा बेताल पंचविंशति आदि का मूल लोकजीवन है। जातक कथाओं को अत्यधिक प्राचीन माना जाता है। इनकी संख्या ५५० के लगभग है किंतु लोककथाओं की कोई निर्धारित संख्या नहीं है। प्राकृत भाषा में भी अनेक कथाग्रंथ हैं। मूल पैशाची में लिखित "बहुकहा" कथा सरित्सागर, बृहत्कथा आदि का उपजीव्य बनी।वैदिक साहित्य का अध्ययन किए हुए युवक व युवति का विवाह योग्य सन्तान और देश के श्रेष्ठ नागरिकों की उत्पत्ति के लिए होता है। संसार के शिक्षित और अशिक्षित सभी माता-पिता अपनी सन्तानों को स्वस्थ, दीर्घायु, बलवान, ईश्वरभक्त, धर्मात्मा, मातृ-पितृ-आचार्य-भक्त, विद्यावान, सदाचारी, तेजस्वी, यशस्वी, वर्चस्वी, सुखी, समृद्ध, दानी, देशभक्त आदि बनाना चाहते हैं। इसकी पूर्ति केवल वैदिक धर्म के ज्ञान व तदनुसार आचरण से ही सम्भव है। आज की स्कूली शिक्षा में वह सभी गुण एक साथ मिलना असम्भव है जिससे ऐसे योग्य देशभक्त नागरिक उत्पन्न हो सकें। केवल वैदिक शिक्षा से ही इन सब गुणों का एक व्यक्ति में होना सम्भव है जिसके लिए अनुकूल सामाजिक वातावरण भी आवश्यक है। चाहे पौराणिक चरित्र हों या सामाजिक चरित्र हमारे जीवन और विचारधारा को इन्होंने हर युग में संवेदनात्मक रूप से प्रभावित किया है।
चाहे रामायण के आदर्श नायक और आदर्श खलनायक हों या महाभारत के सामाजिक और राजनीतिक पात्र सभी ने भारतीय जन मानस को एक अलग विचार और समृद्धशाली सोच में ढालने का काम किया है।
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