कहानी // हार-जीत // राजेश माहेश्वरी

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सुमन दसवीं कक्षा में एक अंग्रेजी माध्यम की शाला में अध्ययन करती थी। वह पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी गहन रूचि रखती थी और लम्बी दूरी की दौड़ ...

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सुमन दसवीं कक्षा में एक अंग्रेजी माध्यम की शाला में अध्ययन करती थी। वह पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी गहन रूचि रखती थी और लम्बी दूरी की दौड़ में हमेंशा प्रथम स्थान पर ही आती थी। उसको क्रीड़ा प्रशिक्षक कोचिंग देकर यह प्रयास कर रहे थे कि वह प्रादेशिक स्तर पर भाग लेकर शाला का नाम उज्ज्वल करे। इसके लिये उसके प्राचार्य, शिक्षक, अभिभावक और उसके मित्र सभी उसे प्रोत्साहित करते थे। वह एक सम्पन्न परिवार की लाड़ली थी। वह क्रीड़ा गतिविधियों में भाग लेकर आगे आये इसके लिये उसके खान-पान आदि का ध्यान तो रखा ही जाता था उसे अच्छे व्यायाम प्रशिक्षकों का मार्गदर्शन दिये जाने की व्यवस्था भी की गई थी। उसके पिता सदैव उससे कहा करते थे कि मन लगाकर पढ़ाई के साथ-साथ ही खेल कूद में भी अच्छी तरह से भाग लो तभी तुम्हारा सर्वांगीण विकास होगा।

सुमन की कक्षा में सीमा नाम की एक नयी लड़की ने प्रवेश लिया। वह अपने माता-पिता की एकमात्र सन्तान थी और एक किसान की बेटी थी। वह गाँव से अध्ययन करने के लिये शहर में आयी थी। उसके माता-पिता उसे समझाते थे कि बेटी पढ़ाई-लिखाई जीवन में सबसे आवश्यक होती है। यही हमारे भविष्य को निर्धारित करती है एवं उसका आधार बनती है। तुम्हें क्रीड़ा प्रतियोगिताओं में भाग लेने से कोई नहीं रोकता किन्तु इसके पीछे तुम्हारी शिक्षा में व्यवधान नहीं आना चाहिए।

एक बार शाला में खेलकूद की गतिविधियों में सुमन और सीमा ने लम्बी दौड़ में भाग लिया। सुमन एक तेज धावक थी। वह हमेशा के समान प्रथम आयी और सीमा द्वितीय स्थान पर रही। प्रथम स्थान पर आने वाली सुमन से वह काफी पीछे थी।

कुछ दिनों बाद ही दोनों की मुलाकात शाला के पुस्तकालय में हुई। सुमन ने सीमा को देखते ही हँसते हुए व्यंग्य पूर्वक तेज आवाज में कहा- सीमा मैं तुम्हें एक सलाह देती हूँ तुम पढ़ाई लिखाई में ही ध्यान दो। तुम मुझे दौड़ में कभी नहीं हरा पाओगी। तुम गाँव से आई हो। अभी तुम्हें नहीं पता कि प्रथम आने के लिये कितना परिश्रम करना पड़ता है। तुम नहीं जानतीं कि एक अच्छा धावक बनने के लिये किस प्रकार के प्रशिक्षण एवं अभ्यास की आवश्यकता होती है।

मेरे घरवाले पिछले पाँच सालों से हजारों रूपये मेरे ऊपर खर्च कर रहे हैं और मैं प्रतिदिन घण्टों मेहनत करती हूँ तब जाकर प्रथम स्थान मिलता है। यह सब तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिये संभव नहीं है इसलिये अच्छा होगा कि तुम अपने आप को पढ़ाई-लिखाई तक ही सीमित रखो। इतना कहकर वह सीमा की ओर उपेक्षा भरी दृष्टि से देखती हुई वहाँ से चली गई।

सीमा एक भावुक लड़की थी उसे सुमन की बात कलेजे तक चुभ गई। इस अपमान से उसकी आँखों में आंसू छलक उठे। घर आकर उसने अपने माता-पिता दोनों को इस बारे में विस्तार से बताया।

पिता ने उसे समझाया- बेटा! जीवन में शिक्षा का अपना अलग महत्व है। खेलकूद प्रतियोगिताएं तो औपचारिकताएं हैं। मैं यह नहीं कहता कि तुम खेलकूद में भाग मत लो किन्तु अपना ध्यान पढ़ाई में लगाओ और अच्छे से अच्छे अंकों से परीक्षाएं पास करो। तुम्हारी सहेली ने घमण्ड में आकर जिस तरह की बात की है वह उचित नहीं है लेकिन उसने जो कहा है वह ध्यान देने लायक है। तुम हार-जीत की परवाह किए बिना खेलकूद में भाग लो और अपना पूरा ध्यान अपनी शिक्षा पर केन्द्रित करो। उसकी माँ भी यह सब सुन रही थी। उसने सीमा के पिता से कहा- पढ़ाई-लिखाई तो आवश्यक है ही साथ ही खेलकूद भी उतना ही आवश्यक होता है। इसमें भी कोई आगे निकल जाए तो उसका भी तो बहुत नाम होता है।

सीमा के पिता को उसकी माँ की बात नागवार गुजरी। वह भी सीमा को बहुत चाहते थे। उनकी अभिलाषा थी कि बड़ी होकर वह बड़ी अफसर बने। सीमा दोनों की बातें ध्यान पूर्वक सुन रही थी। उसकी माँ ने उससे कहा- दृढ़ इच्छा शक्ति और कठोर परिश्रम से सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है।

सीमा अगले दिन से ही गाँव के एक मैदान में जाकर सुबह दौड़ का अभ्यास करने लगी। वह प्रतिदिन सुबह जल्दी उठ जाती और दैनिक कर्म करने के बाद दौड़ने चली जाती। एक दिन जब वह अभ्यास कर रही थी तो वह गिर गई जिससे उसके घुटने में चोट आ गई। वह कुछ दिनों तक अभ्यास नहीं कर सकी, इसका उसे बहुत दुख था और वह कभी-कभी अपनी माँ के सामने रो पड़ती थी। जब उसकी चोट ठीक हो गई तो उसने फिर अभ्यास प्रारम्भ कर दिया। अब वह और भी अधिक मेहनत के साथ अभ्यास करने लगी। वह उतनी ही मेहनत पढ़ाई में भी कर रही थी। इसके कारण उसे समय ही नहीं मिलता था। वह बहुत अधिक थक भी जाती थी। उसके माता-पिता दोनों ने यह देखा तो उन्होंने यह सोचकर कि विद्यालय आने-जाने के लिये गाँव से शहर आने-जाने में उसका बहुत समय बरबाद होता है। उन्होंने उसके लिये शहर में ही एक किराये का मकान लेकर उसके रहने और पढ़ने की व्यवस्था कर दी। शहर में उसके साथ उसकी माँ भी रहने लगी। इससे उसके पिता को गाँव में अपना कामकाज देखने में बहुत परेशानी होने लगी किन्तु उसके बाद भी उन्हें संतोष था क्योंकि उनकी बेटी का भविष्य बन रहा था।

शहर आकर सीमा जिस घर में रहती थी उससे कुछ दूरी पर एक मैदान था। लोग सुबह-सुबह उस मैदान में आकर दौड़ते और व्यायाम करते थे। सीमा ने भी अपना अभ्यास उसी मैदान में करना प्रारम्भ कर दिया। एक बुजुर्ग वहाँ मारनिंग वॉक के लिये आते थे। वे सीमा को दौड़ का अभ्यास करते देखते थे। अनेक दिनों तक देखने के बाद वे उसकी लगन और उसके अभ्यास से प्रभावित हुए। एक दिन जब सीमा अपना अभ्यास पूरा करके घर जाने लगी तो उन्होंने उसे रोक कर उससे बात की। उन्होंने सीमा के विषय में विस्तार से सभी कुछ पूछा। उन्होंने अपने विषय में उसे बतलाया कि वे अपने समय के एक प्रसिद्ध धावक थे। उनका बहुत नाम था। वे पढ़ाई-लिखाई में औसत दर्जे के होने के कारण कोई उच्च पद प्राप्त नहीं कर सके। समय के साथ दौड़ भी छूट गई। उन्होंने सीमा को समझाया कि दौड़ के साथ-साथ पढ़ाई में उतनी ही मेहनत करना बहुत आवश्यक है। अगले दिन से वे सीमा को दौड़ की कोचिंग देने लगे। उन्होंने उसे लम्बी दौड़ के लिये तैयार करना प्रारम्भ कर दिया।

शाला में प्रादेशिक स्तर पर भाग लेने के लिये चुने जाने हेतु अंतिम प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इसमें 1500 मीटर की दौड़ में प्रथम आने वाले को प्रादेशिक स्तर पर भेजा जाना था। प्रतियोगिता जब प्रारम्भ हो रही थी सुमन ने सीमा की ओर गर्व से देखा। सुमन पूर्ण आत्मविश्वास से भरी हुई थी और उसे पूरा विश्वास था कि यह प्रतियोगिता तो वह ही जीतेगी। सुमन और सीमा दोनों के माता-पिता भी दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे। व्हिसिल बजते ही दौड़ प्रारम्भ हो गई।

सुमन ने दौड़ प्रारम्भ होते ही अपने को बहुत आगे कर लिया था। उसके पैरों की गति देखकर दर्शक उत्साहित थे और उसके लिये तालियाँ बजा-बजा कर उसका उत्साह बढ़ा रहे थे। सीमा भी तेज दौड़ रही थी किन्तु वह दूसरे नम्बर पर थी। वह एक सी गति से दौड़ रही थी। 1500 मीटर की दौड़ थी। प्रारम्भ में सुमन ही आगे रही लेकिन आधी दौड़ पूरी होते-होते तक सीमा ने सुमन की बराबरी कर ली। वे दोनों एक दूसरे की बराबरी से दौड़ रहे थे। कुछ दर्शक सीमा को तो कुछ सुमन को प्रोत्साहित करने के लिये आवाजें लगा रहे थे। सुमन की गति धीरे-धीरे कम हो रही थी जबकि सीमा एक सी गति से दौड़ती चली जा रही थी। जब दौड़ पूरी होने में लगभग 100 मीटर रह गये तो सीमा ने अपनी गति बढ़ा दी। उसकी गति बढ़ते ही सुमन ने भी जोर मारा। वह उससे आगे निकलने का प्रयास कर रही थी लेकिन सीमा लगातार उससे आगे होती जा रही थी। दौड़ पूरी हुई तो सीमा प्रथम आयी थी। सुमन उससे काफी पीछे थी। वह द्वितीय आयी थी।

सीमा की सहेलियाँ मैदान में आ गईं थी वे उसे गोद में उठाकर अपनी प्रसन्नता जता रही थीं। वे खुशी से नाच रही थीं। तभी मंच पर प्राचार्य जी आये। उन्होंने सीमा की विजय की और उसे शाला की ओर से प्रादेशिक प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिये भेजे जाने की घोषणा की। तभी सीमा अपने पिता के साथ प्राचार्य जी के पास पहुँची। उसने उनसे बतलाया कि वह प्रादेशिक स्तर पर नहीं जाना चाहती है। उसकी बात सुनकर प्राचार्य जी और वहाँ उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित थे। प्राचार्य जी ने उसे समझाने का प्रयास किया किन्तु वह टस से मस नहीं हुई।

सीमा ने उनसे कहा कि वह आईएएस या आईएफएस बनना चाहती है। इसके लिये उसे बहुत पढ़ाई करने की आवश्यकता है। दौड़ की तैयारियों के कारण उसकी पढ़ाई प्रभावित होती है इसलिये वह प्रादेशिक स्तर पर नहीं जाना चाहती। अन्त में प्राचार्य जी स्वयं माइक पर गये और उन्होंने सीमा के इन्कार के विषय में बोलते हुए सुमन को विद्यालय की ओर से प्रादेशिक स्तर पर भेजे जाने की घोषणा की। यह सुनकर सुमन सहित वहाँ पर उपस्थित सभी दर्शक भी अवाक रह गये। सुमन सीमा के पास आयी और उसने पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया। सीमा उसे भी वही बतलाती है जो उसने प्राचार्य से कही थी। उसने सुमन को एक ओर ले जाकर उससे कहा कि मेरा उद्देश्य क्रीड़ा प्रतियोगिता में आने का नहीं था वरन मैं तुम्हें बताना चाहती थी समय सदैव एक सा नहीं होता। कल तुम प्रथम स्थान पर थी आज मैं हूँ कल कोई और रहेगा। उस दिन पुस्तकालय में तुमने जो कुछ कहा था उसे तुम मित्रता के साथ भी कह सकती थी किन्तु तुमने मुझे नीचा दिखाने का प्रयास किया था जो मुझे खल गया था। मेरी हार्दिक तमन्ना है कि तुम प्रादेशिक स्तर पर सफलता प्राप्त करो।

नियत तिथि पर सुमन स्टेशन पर प्रतियोगिताओं में भाग लेने जाने के लिये उपस्थित थी। विद्यालय की ओर से प्राचार्य और आचार्यों सहित उसके अनेक साथी एवं उसके परिवार के लोग भी उसे विदा करने के लिये आये हुए थे। प्राचार्य जी ने उसे शुभकामनाएं देते हुए कहा- सच्ची सफलता के लिये आवश्यक है कि मन में ईमानदारी, क्रोध से बचाव, वाणी में मधुरता किसी को पीड़ा न पहुँचे, अपने निर्णय सोच-समझकर लेना ईश्वर पर भरोसा रखना और उसे हमेशा याद रखना यदि तुम इन बातों को अपनाओगी तो जीवन में हर कदम पर सफलता पाओगी। जीवन में सफलता की कुंजी है वाणी से प्रेम, प्रेम से भक्ति, कर्म से प्रारब्ध, प्रारब्ध से सुख लेखनी से चरित्र, चरित्र से निर्मलता, व्यवहार से बुद्धि और बुद्धि से ज्ञान की प्राप्ति होती है। मेरी इन बातों को तुम अपने हृदय में आत्मसात करना ये सभी तुम्हारे लिये सुख-समृद्धि वैभव व मान-सम्मान प्राप्त करने की आधार शिला बनेंगे।

सुमन सभी से मिल रही थी और सभी उसे शुभकामनाएं दे रहे थे किन्तु उसकी आँखें भीड़ में सीमा को खोज रही थीं। ट्रेन छूटने में चंद मिनिट ही बचे थे तभी सुमन ने देखा कि सीमा तेजी से प्लेटफार्म पर उसकी ओर चली आ रही है। वह भी सब को छोड़कर उसकी ओर दौड़ गई। सीमा ने उसे शुभकामनाओं के साथ गुलदस्ता भेंट किया तो सुमन उससे लिपट गई। दोनों की आँखों में प्रसन्नता के आंसू थे।


परिचय

राजेश माहेश्वरी का जन्म मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में 31 जुलाई 1954 को हुआ था। उनके द्वारा लिखित क्षितिज, जीवन कैसा हो व मंथन कविता संग्रह, रात के ग्यारह बजे एवं रात ग्यारह बजे के बाद ( उपन्यास ), परिवर्तन, वे बहत्तर घंटे, हम कैसें आगे बढ़े एवं प्रेरणा पथ कहानी संग्रह तथा पथ उद्योग से संबंधित विषयों पर किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।

वे परफेक्ट उद्योग समूह, साऊथ एवेन्यु मॉल एवं मल्टीप्लेक्स, सेठ मन्नूलाल जगन्नाथ दास चेरिटिबल हास्पिटल ट्रस्ट में डायरेक्टर हैं। आप जबलपुर चेम्बर ऑफ कामर्स एवं इंडस्ट्रीस् के पूर्व चेयरमेन एवं एलायंस क्लब इंटरनेशनल के अंतर्राष्ट्रीय संयोजक के पद पर भी रहे हैं। लेखक को पाथेय सृजन सम्मान एवं जबलपुर चेंबर ऑफ कामर्स द्वारा साहित्य सृजन हेतु लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

आपने अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, सिंगापुर, बेल्जियम, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग आदि सहित विभिन्न देशों की यात्राएँ की हैं। वर्तमान में आपका पता 106 नयागांव हाऊसिंग सोसायटी, रामपुर, जबलपुर (म.प्र) है।

प्रकाशित पुस्तकें -

क्षितिज - कविता संग्रह - प्रकाशक - जबलपुर चेम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इण्डस्ट्रीज।

जीवन कैसा हो, मन्थन - कविता संग्रह - प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली।

परिवर्तन, वे बहत्तर घण्टे - कहानी संग्रह - प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली।

रात के 11 बजे - उपन्यास - प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली।

पथ - लघु उपन्यास - प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली।

हम कैसे आगे बढ़े - कहानी संग्रह - प्रकाशक - पी∙एम∙ पब्लिकेशन, नई दिल्ली।

प्रेरणा पथ - कहानी संग्रह - प्रकाशक - पी∙एम∙ पब्लिकेशन, नई दिल्ली।

रात 11 बजे के बाद - उपन्यास - प्रकाशक - पी∙एम∙ पब्लिकेशन, नई दिल्ली।

जीवन को सफल नही सार्थक बनाए - प्रकाशक - कहानी संग्रह - प्रकाशक - ग्रंथ अकादमी , नई दिल्ली ।

92 गर्लफ्रेन्ड्स - उपन्यास - इंद्रा पब्लिकेशन, भोपाल।

संपर्क -

RAJESH MAHESHWARI

106, NAYAGAON CO-OPERATIVE

HOUSING SOCIETY, RAMPUR,

JABALPUR, 482008 [ M.P.]

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रचनाकार: कहानी // हार-जीत // राजेश माहेश्वरी
कहानी // हार-जीत // राजेश माहेश्वरी
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