` धूल और धुएं के परदे में ` (1999), ` इस गणराज्य में ` (2014), ` चिड़िया का सितार ` (2017) के बाद ` कोहरे में सुबह ` चर्चित वर...
`धूल और धुएं के परदे में` (1999), `इस गणराज्य में` (2014), `चिड़िया का सितार` (2017) के बाद `कोहरे में सुबह` चर्चित वरिष्ठ कवि-साहित्यकार श्री ब्रजेश क़ानूनगो की कविता यात्रा का चौथा पड़ाव हैं. `कोहरे में सुबह` एक ऐसा कविता संग्रह है जो कई मुद्दों और विषयों पर प्रकाश डालता हैं. श्री ब्रजेश क़ानूनग़ो ने अपने कविता संग्रह `कोहरे में सुबह` में अपने जीवन के कई अनुभवों को समेटने की कोशिश की हैं. `कोहरे में सुबह` उलझन भरे कोहरे में उम्मीदों की रोशनी से जगमग करने वाला एक अनूठा काव्य संग्रह हैं. ब्रजेशजी ज़मीन से जुड़े हुए एक वरिष्ठ कवि हैं. इस संग्रह में प्रकृति, प्रेम, गाँव और ग्रामीण जीवन की स्थितियों को अभिव्यक्त करती कविताएं हैं. यह समकालीन कविताओं का एक सशक्त दस्तावेज़ हैं. इस संकलन में 70 छोटी-बड़ी कविताएं संकलित हैं.
ब्रजेश क़ानूनग़ो
इस संग्रह की शीर्षक कविता `कोहरे में सुबह` में कवि कहते है `सुबह का रैपर हटेगा, तो दिखाई देगी तश्तरी में छपी तस्वीर`. वे एक ऐसा दृश्य रचते है जिसमें पाठक कल्पनाओं के लोक में खो जाता हैं. आजकल रिश्ते जीवंतता खोते जा रहे है. `इंतजार करती माँ`, `घर की छत पर बिस्तर`, `क्षमा करें` इत्यादि भावपूर्ण कविताएं रिश्तों की अहमियत पर प्रकाश डालती हैं. `उसका आना` कविता की पंक्तियाँ `हरे चने के पुलाव और मैथी की महक से, दब गई सूनेपन की उदास गंध` बेटी के घर आने पर उनके द्वारा लिखी गई कविता बेटी के प्रति एक पिता के लगाव को महसूस कराती हैं.
`एक टुकड़ा गाँव` एवं `छुट्टी मनाते गाँव के बच्चे` को उनके इस काव्य संग्रह की सबसे सशक्त कविताएं कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. `एक टुकड़ा गाँव` कविता की पंक्तियाँ `पढ़ता हूं अख़बार में जब विकास की कोई नई घोषणा एक गाँव मेरे भीतर मिटने लगता है.` `छुट्टी मनाते गाँव के बच्चे` नामक कविता पाठकों को अंदर तक झकझोर देती हैं. ग्रामीण परिवेश इन कविताओं में बोलता-बतियाता सुना जा सकता हैं. महानगरों में आजकल चारो ओर सीमेंट के जंगल ही जंगल दिखाई देते है और बिल्डरों द्वारा जो विशाल अट्टालिकाएं बनाई जा रही है उनमें जो मजदूर काम कर रहे है वे गाँवों से ही इन महानगरों में आए है. इन मजदूरों ने खाली पड़े हुए ज़मीन के टुकड़ों पर छोटी-छोटी टापरी बना ली है और अपने परिवार के साथ मस्ती में जीवन व्यतीत कर रहे हैं. यह देखकर कवि को अपने गाँव की और अपने बचपन की बातें याद आ जाती हैं. इस कविता संग्रह की कुछ कविताएं कवि के गाँव के साथ लगाव को उजागर करती हैं. कवि ने इन कविताओं के माध्यम से सही प्रश्न उठाया है कि जिसे हम आज विकास का नाम दे रहे है क्या इससे गाँवों में आर्थिक समृद्धि होगी. आज विकास के नाम पर आपसी रिश्तों के बीच खोखले विकास की दीवार खड़ी हो गई हैं. इन कविताओं में ब्रजेशजी की बैचेनी और व्यथा महसूस की जा सकती हैं.
`आभासी दुनिया में`, `तुम लिखो कवि`, `चीख` आदि कविताओं में ब्रजेशजी कला और साहित्य के प्रति व्यथित दिखते हैं. धर्म के नाम पर हिदुस्तान में इंसानों के बीच जो नफ़रत की दीवार खड़ी की जा रही है उस पर भी `छोंक` रचना में `ये कौन-सा छोंक लगाया है, कि धुँआ-धुँआ सा हो गया है चारों तरफ` कवि की चिंता अभिव्यक्त होती हैं. जहाँ `पर्यटक की तरह` कविता में कवि अपने घर में ही तीर्थ स्थान और शांति खोजता हैं तो `पतंगबाज़ी` कविता में उल्लास-उमंग के साथ-साथ हार-जीत का दर्शन हैं. संग्रह की कुछ कविताओं `चीख` एवं `गारमेंट शो रूम में` व्यंग भी है क्योंकि कवि एक व्यंगकार भी हैं. कवि के तीन व्यंग संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं. `गारमेंट शो रूम में` कविता में उपभोक्तावादी संस्कृति की चकाचौंध पर गहरा कटाक्ष हैं. इस कविता में कवि कहते है `खबर है पिपल्या गाँव की कजरी को, सुंदरी का मुकुट पहनाने की कोशिश में है गारमेंट कंपनी`. `भरा हुआ` इस संग्रह की एक ऐसी विशिष्ठ रचना है जो पाठकों को प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं के विविध रंगों से रूबरू करवाती हैं. `किताब की आख़िरी पंक्ति तक` में कवि लिखते है `शायद स्वभाव नहीं था उनका, फिर भी बतियाते रहे कि किस तरह जीवन भी कविता हो जाता है` प्रेम एवं रिश्तों में जीवंतता को अभिव्यक्त करती और मानवीय संवेदनाओं से भरी हुई यह कविता पाठकों को प्रेम, रिश्ते और मानवीय संवेदनाओं से अभिभूत कर देती हैं. वैसे इस संग्रह की सभी कविताएं मानवीय संवेदनाओं से भरी हुई हैं. `डायरी`, `देहरी की ठोकर` और `चकमक` कविताओं में कवि के मन के भीतर चल रही उठा पटक महसूस की जा सकती हैं. इस संग्रह की कुछ कविताएं प्रेम पर लिखी गयी है जैसे- `चाँद के टुकड़े`, प्रेम में गणित, `खाता बही में प्रेम`, `प्रेम कविता का मौसम` एवं `पाँच हज़ार शामों वाली लड़की` पाठकों के तन-मन को शीतल फुहारों से भिगो देती हैं.
ब्रजेशजी की लेखनी का कमाल है कि उनकी रचनाओं में वस्तु, दृश्य, संदेश, शालीनता और मर्यादा सभी मौजूद है एवं उनके कहने का अंदाज भी निराला है क्योंकि वे एक व्यंगकार भी हैं. ब्रजेश जी की कविताओं में गहरी सोच, वैचारिक सूझ एवं उनकी अपनी शालीनता प्रतिबिंबित होती हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि कविता ब्रजेश जी की आत्मा में रची-बसी हैं. कवि की रचनाओं में आदि से अंत तक आत्मिक संवेदनशीलता व्याप्त हैं. संग्रह की रचनाएं ह्रदय में गहरे चिन्ह छोड़ जाती हैं. कवि की रचनाओं में जीवन के तमाम रंग छलछलाते नज़र आते हैं. यह काव्य संग्रह भारतीय कविता के परिदृश्य में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाने में सफल हुआ हैं. 120 पृष्ठ का यह कविता संग्रह आपको कई विषयों पर सोचने के लिए मजबूर कर देता हैं. कविता संग्रह `कोहरे में सुबह` लिखने के लिए ब्रजेशजी और इसे प्रकाशित करने के लिए बोधि प्रकाशन बधाई के पात्र हैं.
पुस्तक : कोहरे में सुबह
लेखक : ब्रजेश क़ानूनगो
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, सी-46, सुदर्शनपुरा, इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन, नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर-302006
मूल्य : 120 रूपए
पेज : 120
दीपक गिरकर
समीक्षक
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर- 452016
मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com
दिनांक : 12.03.2018
"कोहरे में सुबह " कविता संकलन की आपने रचनात्मक तथा सारगर्भित रूप में बहुत ही सुंदरता से प्रत्येक पक्ष की निष्पक्ष समीक्षा प्रस्तुत की है |मैं ब्रजेश जी की कविताओं को बहुत ही पसंद करता हूँ क्योंकि आपकी कविताएँ हमारे आसपास की ,आम आदमी की समस्या ,पीड़ा और दर्द को उसी संवेदना से उजागर करती है जैसे की वह कवि का स्वयं का भोगा हुआ यथार्थ हो | कोहरे में सुबह की रचनाओं को मैंने अनेक बार पढ़ा और हर बार रचना अपना अर्थ एवं भावाभिव्यक्ति विषय के साथ परिवर्तित होती दिखाई पड़ती है |
जवाब देंहटाएंअशोक शर्मा " भारती "