( मेरी यह रचना आपबीती घटना पर आधारित है | कुछ वर्षों पूर्व मेरा शहर जब एक बाढ़ - विपत्ति में फंसा तब उस भयानक प्राकृतिक हादसे के वक्त स्वयं म...
( मेरी यह रचना आपबीती घटना पर आधारित है | कुछ वर्षों पूर्व मेरा शहर जब एक बाढ़ - विपत्ति में फंसा तब उस भयानक प्राकृतिक हादसे के वक्त स्वयं मैंने बहुत नजदीक से बाढ़ -पीड़ितों की करुण दशा को और उनके आस-पास चल रही राजनीति को देखा |सही मायने में इस संस्मरण को लिखने का उद्देश्य किसी प्रतियोगिता में पुरूस्कार पाना या समाज के किसी वर्ग विशेष पर उंगली उठाना नहीं है | इस रचना का उद्देश्य अधिकारियों , व्यापारियों ,सामाजिक कार्यकर्ताओं , सेवाभावी- संस्थानों , शासन -प्रशासन गणमान्यों से लेकर कथित -पीड़ित ,और उन तमाम 'परिपक्व दिमागों ' को बेनकाब करना है जो भंयंकर प्राकृतिक हादसों की ऐसी घडी में भी अपने तिकड़मी - कारनामों और चालाक - इरादों से किसी भी हद तक वे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं केवल समाचारों में अपना स्थान बनाने के लिए | रचना के उस हिस्से को जहाँ छत्तीसगढ़ी बोली का उपयोग हुआ है , "रचनाकार .कॉम " के बहुभाषी पाठकों की सुविधा के लिए ,उस प्रसंग का हिंदी में रूपांतरण भी कर दिया गया है | रचना का प्रारंम्भिक अंश संवाद शैली/नाट्य -शैली है में है ...योगेश अग्रवाल )
... घूँघट के पट खोल रे 1...
दृश्य 1-
स्वयं सेवक - " माई ! तोर टूटे छानी ला छा दो का ? " ( माँ तेरे टूटे हुए छप्पर को ठीक करवा दूँ क्या ? )
माई - " राहन दे बेटा ...! टुटहा देखिही तभे तो ओमन हां पईसा देही |" ( रहने दे बेटा ! टूटा हुआ देखकर ही तो वे लोग पैसा देंगे |)
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दृश्य 2 -
एक - " महूँ हां नाम लिखवाहूँ , मुआवजा बर ...! " ( मुआवज़ा के लिए मैं भी अपना नाम लिखवाऊंगा )
दो - " काबर ??? " ( क्यूँ ??? )
एक - " मोरो घर हा तड़क गेहे | " ( मेरा घर भी टूट रहा है )
दो - " चल लबरा ! वो तो पहिली ले ओदरे रिहिस...( चल झूठा कहीं का | वो तो पहले से ही टूटा हुआ था )
एक - " तोला का करना हे ? चुप्प रहिबे ...नहीं तो तोरो ला बता दुहूँ !! " ( तेरे को क्या करना है ? तू बिल्कुलचुप्प रहना ...नहीं
तो तेरा पोल भी खोल दूंगा )
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दृश्य 3 -
अधिकारी 1 - आज मीटिंग क्यों बुलवाई गई है ?
अधिकारी 2 - पता नहीं ... !
अधिकारी 1 - शायद सभी NGOs को भी बुलवाए गए हैं !
अधिकारी 2 - पता नहीं ...!
अधिकारी 1 - खिचाई हो सकती आज अपनी ...!
अधिकारी 2 - हूँ ...!
अधिकारी 1 - " चंदे का हिसाब पूछेंगे तो क्या बोलोगे ???
अधिकारी 2 - पता नहीं ...!!!
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दृश्य 4 -
व्यापारी 1 - तुमने कितना दिया ???
व्यापारी 2 - क्या ???
व्यापारी 1 - बाढ़ पीड़ितों को चन्दा ! और क्या ? शहर में इन दिनों एक ही तो मुद्दा है... चन्दा उगाही का !
व्यापारी 2 - आफत कहो आफत ! उस बाढ़ के साथ... माँगने वालों की भी बाढ़ आ गई है शहर में !!!
व्यापारी 1 - सभी सूटेड - बूटेड - अपटुडेट होते हैं ...
व्यापारी 2 - ...और ढीठ भी ! देना ही पड़ता है , बिन लिए हटते ही नहीं साले !!!
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... घूँघट के पट खोल रे 2...
हम दोस्तों के बीच वह प्रख्यात है - मास्टर माइंडेड उर्फ़ 'गुरू 'के नाम से | हमेशा समाचारों में बने रहने के लिए वह कुछ ना कुछ उठा -पटक करते रहता है | नई समस्यायें खड़ी कर देता है या मरी हुई समस्याओं को फिर से नई / जिन्दा कर देता है | देश और समाज से समस्याओं का खालीपन सालता है उसे |
पिछले कुछ पखवाड़े से सड़कों में करवटें बदलता ,उदास घूमने वाला मेरा वह मित्र आजकल बेहद व्यस्त और सुर्ख़ियों में है फिर से |जब से मूसलाधार , दमतोड़ जमकर बारिश हुई है शहर में ..मेरे यार 'गुरू' उर्फ़ मास्टर माइंडेड की शहर में चर्चा है चारों ओर| उत्सुकतावश मैं भी निकला उससे मिलने | थोडा सा खोजने पर बाढ़ -पीड़ितों की एक शिविर में , उन्हें खाना खिलाते हुए वो मिला | लगभग २५० से ३०० लोगों की भीड़ के बीच बेहद व्यस्त था वो | सीएसपी सहित प्रेस प्रतिनिधियों और गणमान्य नागरिकों का काफिला , एक खद्दरधारी के साथ बाढ़-पीड़ितों से उनकी दारुण दशा का घूम -घूम कर मुआयना ले रहा था| उस खद्दर और पीड़ितों के बीच का वार्तालाप कुछ इस प्रकार था -
खद्दरधारी- " ( एक वृद्ध से ) तुम्हारा क्या बहा बाबा ?"
बाबा - " सब कुछ बेटा ! बस मैं ही बचा !"
खद्दरधारी - " यहाँ खाना आपको किसके द्वारा मिल रहा है ?"
बाबा - "शासन द्वारा नहीं मिल रहा है | " बाबा ने रटा -रटवाया जवाब दिया |
खद्दर - " हमने पूछा कि यहाँ खाना आपको कौन खिला रहा है ? "
बाबा - " वो सामने चार - पांच पोस्टर लगे हैं उसमें उनका नाम लिख्खा हुआ है बेटा !"
उसी समय एक फोटोग्राफ़र की फ़्लैश लाईट चमकी | पोस्टरों में लिखे नाम कैमरे में कैद कर लिए गए | नेता जी ( खद्दर ) जैसे ही आगे बढे , अपना यार ' गुरू ' ...चावल का चम्मच हाथ में लिए खद्दर के आगे आ डटा | खद्दर की आँखों में प्रश्न कौंधा | यार ने तुरंत कमान संभाली और अपना परिचय देते हुए चीखा - यहाँ का सारा काम हमारा ही संगठन संभाल रहा है सर ... और में प्रेसीडेंट हूँ | फ़्लैश लाईट पुनः चमकी | इस बार मेरा यार था कैमरे के निशाने पर | खद्दरधारी मुस्कुराया , था तो वह कांग्रेसी पर ... इस मुस्कान से उसका चेहरा खिलकर " कमल " हो गया | अब मुश्किल था उसकी पार्टी को पहचानना..| खद्दर खुश था | वह आगे बढ़ा , मेरे मित्र के कंधे में हाथ रखकर उसे साथ लेकर , बतियाते हुए खद्दर और उसके साथ आई भीड़ आगे बढ़ी | मेरे यार ने फोटोग्राफ़र को तत्काल इशारा किया , मेरा यार कैमरे में कई एंगलों से कैद होते रहा | पूरे पोज़ में उसके कंधे पर खद्दरधारी का हाथ था और...खद्दर के साथ साथ संगठन के चेले -चपाटी अगल -बगल थे | उस विहंगम दृश्य का वर्णन बहुत शार्ट में समझना हो तो यूँ समझो कि बाहुबली-2 के कन्धे पर बाहुबली - 1 का हाथ था | वे दोनों बीचों बीच चल रहे थे और आजू -बाजू कटप्पों की पूरी भीड़ थी ...कदम ताल सा करते हुए | खद्दर , यार से कह रहा था , शाबाश बेटे ! ऐसे ही भिड़े रहो ! बहुत अच्छा प्रयास है तुम्हारा , तुम्हारे संगठन का ! लोगों को , समाज को , शासन को तुम लोगों से सीख लेनी चाहिए ! तुम्हें कुछ कहना है ? दरअसल तुम जैसे ही लोगों की हमारी पार्टी को जरुरत है ! मास्टर माइंडेड उर्फ़ 'गुरू ' ने अपना रोना रोया | इस शिखर -वार्ता को उसने गति दी और खद्दर से कहा - " क्या और कितना कहें सर ?किससे -किससे कहें सर ? कोई सुने तब ना ! पिछले पांच रोज़ से यह कैम्प हमने कैसे टिकाया हुआ है ये हम ही जानते हैं ...और लोग यहाँ केवल फोटो खिचवाने चले आते हैं | रोज़ लगभग ८०० से १००० लोगों का खाना -पीना , नाश्ता क्या मामूली बात है सर ? जनसहयोग भी ठीक से नहीं मिल रहा है ! वैसे मिल तो रहा है थोडा बहुत ...ऊपर से शासन भी बहुत गलत -सुस्त रुख अपनाए हुए है ! "
तुम शांति से अपनी बात कहो ! " खद्दर ने मित्र से कहा |
इसी बीच भीड़ को चीरकर एक नया चेहरा उभरा | वह संगठन का ही कोई ओहदेदार था | " सबसे बड़ी समस्या यहाँ पानी के टैंकर का है सर ! साफ़ -सफाई वाला भी यहाँ कोई नहीं आता है ! बोलते रहो -बोलते रहो ! बुलाते रहो -बुलाते रहो , कोई असर ही नहीं पड़ता उन्हें ! "
" नगर -निगम में नरसों से बोला हुआ है, आवेदन भी दिया हुआ है ! " तीसरे ने मोर्चा संभाला !
" खाने -पीने वालों की ...मतलब खाना -खाने वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है | सहयोग लेने निकलो तो लोग पूछते हैं- और कितना दें ? पहले ही क्विंटलों दे चुके हैं ..." चौथे ने दहाड़ा |
" पर आखिर सामान कहाँ घुसा पडा है भगवान् ही जाने ..." | पांचवे ने विस्फोट किया |
" आस -पास के गाँव में भी बहुत चिंताजनक स्थिति है... "
" हमारी संस्था वहाँ भी राहत पहुंचा रही है ..."
" पैदल पहुंचा रही है ...|" मास्टर माइंड ने तत्काल करेक्शन किया |
पूरी भीड़ उचक उचक कर इन रणबांकुरों का चेहरा देखने का पुरजोर प्रयास कर रही थी | अचानक मेरी नज़र एक काले-कोट पर पड़ी | वह इस इंट्रेस्टिंग एटमास्फियर को छोड़कर , बाद पीड़ितों की एक टोली से सतर्कता से कुछ फुसफुसा रहा था | मैंने बहुत धीरे से अपने कान उधर धर दिए| काला-कोट उस टोली से फुसफुसा रहा था | अधपके बालों और मोटे चश्मा धारी उस कोट के मालिक ने टोली को समझाना शुरू किया...वह बेहद सतर्क था | मैंने अपने कान और उसके पास धर दिए , कुछ इस अंदाज़ में कि चेहरा मेरा बिल्कुल दूसरी ओर था| मुझे देखने पर लगता था कि मैं कही देखने में मगन हूँ ... पर सच्चाई ये थी कि मैं अपनी ही आँखों के ठीक विपरीत दिशा में सुनने के लिए सतर्क था | उस काले -कोट की हरकतों ने उस वक्त मेरे रोम -रोम को विशुद्ध कान बना दिया था | उस क्षण मैं हजारों -हज़ार कानों का मालिक था | तो मैंने बहुत स्पष्ट सुना ... वह उस बाद पीड़ितों की टोली से कह रहा था..." जब नेता जी पास आये तो उनसे कहना , एक साथ कहना कि शासन को हमारे दुःखों से कोई लेना -देना नहीं है , यदि ऐसा ही रहा तो हमें सड़क पर उतरना पड़ेगा ! आन्दोलन , धरना -प्रदर्शन करना पड़ेगा ! आखिर हमारे पास चारा ही क्या बचा है ? हम भी नहीं चाहते हिंसा -विन्सा की राह ! पर आखिर हम करें भी तो क्या ? ... बोलो ये सब नेता जी से कह पाओगे ? " प्रतिउत्तर में झोपड़ -वासियों ने सहमती में अपने सर हिला दिए | खाना खाते हुए उस भीड़ / पंडाल के एक दूसरे हिस्से को , अपने घुटने के बल बैठकर काले -कोट ने फिर से समझाना शुरू किया ..." नेताजी से कहना , हमारा कुच्छ नहीं बचा ,घर -बार सब कुछ बह गया , हमें तत्काल उचित मुआवजा मिलना चाहिए ..."
..." पर भैय्या !! मेरे घर में तो केवल पानी घुसा है , फिर मैं ये कैसे कह दूंगा ? इतना बड़ा झूठ पकड़ में नहीं आ जायेगा ? " उस भीड़ से एक पीड़ित ने जैसे ही अपनी ईमान हांकी ..., काला -कोट उस पर भड़क गया और उसे घूरकर पूछा - " अच्छा ? केवल पानी घुसा है ? ? बस इसीलिए तो तुम लोग जिन्दगी भर ऐसे ही रहोगे, सड़ते रहोगे ,पर समय आने पर भी दिमाग नहीं लगाओगे ! समझता तो है नहीं तू बात को ! आज नहीं तो कल ... या दो -चार हप्तों में ,पानी तेरे भी घर में जब घुस्स ही चुका है तो ... मिटटी का तेरा वो घर धस्स नहीं जायेगा ...? बोल ? बोल ना ? आंय ? और फिर थोडा-मोड़ा कोई प्राब्लेम आएगा , कोर्ट -कचहरी तक की नौबत को सँभालने के लिए तक , मैं तो हूं ही ना !!! अब समझा कि नहीं ? ...काले -कोटधारी ने उस ईमान-धारी को 'सेट' करने की नियत से अपना आखिरी दांव खेला और उससे कहा - " ध्यान से सुन, अभी मुआवजे के लिए जितने का एलान हुआ है , पूरा थोड़े ही तेरे हाथ में आ जाएगा ! समझा ? इसलिए थोड़ा बढ़ा कर ही बताना है...ठीक ?? अब मैं चल रहा हूँ क्योंकि नेता जी इसी ओर आ रहे हैं ..." इतना कुछ सुनकर -समझकर ( कि उलझकर ठीक -ठीक पता नहीं मुझे ) झुग्गी झुक गई और अपनी असमंजस -सहमति के साथ झोपडी, नेताजी पर बरसने के लिए खड़ी हो गई | ...और इधर वो काला - कोट दूसरे झुण्ड के बीच अपने मिशन में मगन था |
इधर मैं , शून्य में गोते खा रहा था | दिमाग के सारे नस हिल गए थे मेरे | वे हजारों -हज़ार कान मेरे , एक साथ बहरे हो चुके थे |समझ ही नहीं आ रहा था मुझे कि पीड़ित कौन है ???
...इधर भीड़ के बीच से खद्दर को चलना अब थोडा मुश्किल हो रहा था पर खद्दर आदी और खुश था इस भीड़ को पाकर |
खाना खाती हुई एक बुढ़िया के पास जैसे ही वे झुकने को हुए ,फोटोग्राफ़रों ने अपना कैमरा संभाला और ठीक उसी समय ,सेकण्ड के हजारवें पल में 'गुरू' , चावल का एक चम्मच लिए उस बुढिया की ओर लपके और अपने हाथ बुढ़िया को परोसने की स्टाईल में उसके पत्तल की ओर कर दिया ...पर बेडलक ..लाईट चमक चुकी थीं और कैमरामैन पलट चुके थे | मास्टर-माइंड का दिमाग खराब हो गया | कुछ देर की अफरा -तफरी के बाद पूरा महकमा एक दूसरे बाढ़-ग्रस्त इलाके की ओर बढ़ गया | मौक़ा पाकर मैंने अपने यार को अपना हाथ दिखाया | वह लपका मेरी ओर | खींचकर अपनी ओर , उसने मुझसे पूछा -
" कब आये ?"
" काफी देर से हूँ ..."
" काफी देर से ? उस नेता के साथ जब मैं था तो आ गए थे क्या तुम ?"
" हाँ .. था ना मैं उस समय "
" सवाल- जवाब मेरा सुना कि नहीं ? "
" हाँ , सुना ना ..."
" मज़ा आया कि नहीं ? "
" मज़ा ??? "
"अरे यार ! इनसे न ऐसे ही बातें करनी पड़ती है | देखा नहीं ,कैसे घबरा गया था वो मेरे से ? कैसे मेरे कन्धे पर हाथ रखकर चल रहा था ? नेता बना फिरता है, .. स्साले बातें करते हैं बड़ी -बड़ी ! हिला के रख दूंगा | समझते क्या हैं खुद को ??? ....
..अचानक वह चम्मच के साथ पलटा और तेजी से पुनः परोसने लगा |मैं कुछ समझता उससे पहले मेरी नज़र सामने से आते प्रेस रिपोर्टर्स की भीड़ पर पड़ी |
फिर मेरा यार उन रिपोर्टर्स की ओर देखकर मुस्कुराया | उनकी ओर गर्मजोशी से उसने हाथ बढ़ाया |
उनमें से एक ने मित्र से बिना हाथ मिलाये , औपचारिकता निभाई और पूछा - " आप ..."
" हमारा ही संगठन जुटा हुआ है यहाँ सेवा कार्य में और मैं प्रेसिडेंट हूँ ..."
" अच्छा ???"
"वैसे आप किस प्रेस से हैं ? " मित्र की आवाज़ गुड़ की चाशनी से लबरेज़ थी |
" मैं विमल देशमुख ! दैनिक त्रिकालदर्शी से ...और आप ??? "
" अरे रहने भी दो भाई ! मुझे ना काम करना पसंद है बस , चुपचाप ! बिना किसी दिखावा या आडम्बर के ! शोबाज़ी से बहुत दूर रहते हैं अपन !"
" आप लोग इतना अच्छा काम कर रहें है तो आपका काम लोगो तक प्रेस के द्वारा पहुँचना भी तो चाहिए ना भई ? अपना नाम क्या बताया आपने ? "
"ज्ञानगुरु !! मित्र ने अवसर नहीं गंवाया | मित्र फिर शुरू हुए ..." ज्ञानगुरु , प्रेसिडेंट ऑफ़ मानव सेवादल...और ये ...योगेश ,उसने मेरी ओर इशारा किया , योगेश अग्रवाल ...हमारे ही संगठन का एक मोस्ट एक्टिव मेम्बर ...पिछले पांच दिनों से रात-दिन ये भी यहीं डटा हुआ है पीड़ितों की सेवा करने के लिए ...इनका भी नाम लिखें प्लीज़ ...! "
" क्या नाम बताया इनका ? योगेश अग्रवाल ?? " उसने नोट किया |
" मैंने बहुत धीरे से मित्र के कान में फुसफुसाया ..."यार योगेश तो कई हैं शहर में , पूरा पता नोट करवाओ ना ...योगेश अग्रवाल, सृष्टि कॉलोनी गली नम्ब..."
" अरे यार ,पेपर में इतना कुछ नहीं छपता | वे केवल नाम देंगे | " मैं उदास हो गया |
" अच्छा देशमुख जी ! आपके प्रेस के लिए हमारी तीन-तीन विज्ञप्तियां जा चुकी है लेकिन छपी केवल दो हैं ...प्लीज़ तीसरा , कल वाला भी देख लीजिएगा...वैसे दूसरे वाले न्यूज़ में मेरा नाम नहीं छप पाया था ... शायद भूल गए होंगे , थोडा हिंट कर दीजियेगा ना आप !"
" इन बाढ़ ग्रस्तों के कारण हम विज्ञप्ति -त्रस्त हो चुके हैं सर ! " रिपोर्टर ने अपनी भड़ास निकाली | ..." डेली वही -वही मैटर , नया कुछ भी नहीं फिर भी लोग चाहते हैं कि रोज़ उनके नाम पेपर में छपें | एक भी नाम इधर से उधर हो जाएँ , भूल से छूट जाए तो फिर देखो उन्हें ...फोन कर -करके नाक में दम कर देते हैं ...खैर छोड़िये देख लूंगा मैं आपकी विज्ञप्ति को ......"
"... मैं चलूँ देशमुख जी ! पीड़ितों के लिए शाम का खाना बनवाना है ..." भड़के रिपोर्टर से मास्टर -माइंड ने कन्नी काटी |
रिपोर्टर के प्रस्थान करते ही मास्टर माइंड से मैंने पूछा - " यार ! तूने इतना बड़ा झूठ उनसे क्यों बोला कि मैं पिछले पांच दिनों से यहाँ डटा हुआ हूँ इनकी सेवा में ...जबकि मैं तो आज ही बस ऐसे ही तेरे से मिलने आ गया था ..."
सुनकर मुस्कुराया वह | बोला कुछ नहीं वह ... लेकिन उसकी आँखों में देखा मैंने पूरे जमाने की परिपक्वता | ...इस बार उसका हाथ मेरे कंधे पर था | बहुत हौले से दबाया उसने मेरे बाजुओं को ...और मेरे बालों को सहलाते हुए मेरा वह परिपक्व यार उस काले- कोट की ओर बढ़ गया जो पीड़ितों के एक नये झुण्ड को परिपक्व कर रहा था... |
चलते -चलते --- "व्यस्तता के कारण इस बाढ़ विपत्ति में " वे " अपना सहयोग किसी भी प्रकार से नहीं दे पाए ,इसका गहन अफ़सोस है उन्हें | समाचार बनने के लिए ईश्वर से वे रोज़ दुआ मांगते हैं ऐसे ही एक और बाढ़ की ...!!! "
योगेश अग्रवाल , राजनांदगांव छत्तीसगढ़ |
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