आजीवन जिद और जीवटता के साथ ब्रह्माण्ड के रहस्यों को खंगालने में लगे रहे महान भौतिकी के वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग आखिरकार पंच-तत्वों से बने ब्र...
आजीवन जिद और जीवटता के साथ ब्रह्माण्ड के रहस्यों को खंगालने में लगे रहे महान भौतिकी के वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग आखिरकार पंच-तत्वों से बने ब्रह्माण्ड में ही विलीन हो गए। 22 साल की उम्र में असाध्य बीमारी से ग्रस्त और बोलने से लाचार होने के बावजूद स्टीफन 55 साल तक मौलिक अनुसंधानों से दुनिया को चमत्कृत करने के साथ विज्ञान को लोकप्रिय बनाने और विज्ञान के माध्यम से खगोलीय रहस्यों की तार्किकता सिद्ध करने में लगे रहे। वे शायद एकमात्र ऐसे वैज्ञानिक थे, जो प्रकृति के जटिल रहस्यों को आम भाषा में सरल तरीके से समझाने में लगे रहे। ब्लैकहोल, बिग-बैंग थ्योरी उनके दिए प्रसिद्ध सिद्धांत है, साथ ही ‘ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम‘ यानी ‘समय का संक्षिप्त इतिहास‘ उनकी ऐसी पुस्तक है, जो अंग्रेजी की सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में शुमार है। 1988 में छपी इस किताब की 1 करोड़ से भी अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। इसके अलावा उनकी 30 अन्या किताबें भी हैं। ये सभी कार्य उन्होंने तब किए जब लाचार अवस्था में व्हील चेयर पर वे टिके रह गए थे। एक दिव्यांग की ये चुनौतीभरी उपलब्धियां उम्मीद और प्रेरणा की अतुलनीय स्रोत हैं।
यह दुनिया कैसे बनी ? कैसे जीव-जगत और पेड़-पौधे अस्तित्व में आए ? इसका आमतौर से सीधा व सरल उत्तर ईश्वर खोज लिया गया है। किंतु स्टीफन ने अपनी किताब ‘द ग्रैंड डिजाइन‘ में यह लिखकर तहलका मचा दिया था कि जो ब्रह्माण्ड है, उसे किसी ईश्वर ने नहीं बनाया, बल्कि वह गुरुत्वाकर्षण जैसे भौतिकी के नियमों के कारण शून्य से अवतरित होकर इस विराट रूप में हमारे समक्ष है। इसे प्रमाणित करने के लिए 2010 में लार्ज हैड्रोन कोलाइडर (एलएचसी) की मदद से बिग बैंग अर्थात महाविस्फोट का प्रयोग भी किया। यह विशाल मशीन स्विट्जरलैंड से फ्रांस की सीमा के आर-पार 100 मीटर तक फैली हुई थी। यह प्रयोग प्रमाणिक कर्णों को प्रकाश की गति से टकराकर किया गया। हालांकि इसके निष्कर्ष में अततः यही निकला कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति ईश्वरीय कणों से हुई है। हालांकि भारतीय दर्षन में हजारों साल पहले खासतौर से उपनिषदों के शून्यवाद में यह सिद्धांत दिया गया है कि जड़-पदार्थों से चेतना पैदा हुई और जड़-पदार्थ शून्य से पैदा हुए। भारतीय दर्शन की अवधारणा के अंतर्गत जो दशावतार हैं, उनके पहले चार अवतारों मत्स्य, कूर्म, वराह और नरसिंह में ब्रह्माण्ड के रहस्यों का उद्घाटन वणि्र्त है। यह भी कहा गया है कि अलग-अलग ब्रह्मण्डों में स्थान, समय और गुरुत्वाकर्षण भिन्न है और इसी गुरुत्वाकर्षण के दबाव से धरती व अन्य ग्रह अपनी-अपनी परिधि में टिके हुए है।
स्टीफन हॉकिंग ने महाविस्फोट के जरिए ब्लैक होल अर्थात कृष्ण विवर बनने की संभावना जताई है। यह विवर इतना बड़ा और गुरुत्वाकर्षण शक्ति रखने वाला है कि इसमें सब कुछ समा सकता है। इसलिए यह समय व स्थान में जाने के लिए प्रवेश द्वार का काम कर सकता है। ब्लैकहोल सिद्धांत के आधार पर ही हॉकिंग ने पृथ्वी का निर्माण और स्वरूप का निर्धारण किया। यह भी तय किया कि पृथ्वी का आकार घट एवं बढ़ सकता है। पृथ्वी को कृष्ण विवर में बदलना है तो इसे टेनिस गेंद के आकार तक दबाना होगा। हालांकि एनएचसी में छोटे कर्ण दब कर अत्यंत सूक्ष्म कृष्ण विवर में बदलते देखे गए हैं। बावजूद इनमें फैलने की पूरी गुंजाइश देखी गई। दरअसल महाविस्फोट के जरिए प्राकृतिक रूप में जब ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आया तब वह पदार्थ के लघुतम स्वरूप में हुए विस्फोट का ही ही परिणाम था। अमेरिकी भौतिक शास्त्री एलन गुथ ने यह प्रमाणित भी किया कि भौतिकी के मौजूदा नियमों के तहत यह संभव है।
स्टीफन हॉकिंग ने समय को लेकर बेहद गंभीर अध्ययन किया है। समय के इतिहास को लेकर उनकी लिखी पुस्तक समय का संक्षिप्त इतिहास बेहद रुचिकर है। इस दृष्टि से हॉकिंग की अंतरिक्ष में आने-जाने के समय के बारे में किया गया चिंतन बेहद महत्वपूर्ण है। हॉकिंग के सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार प्रकाश की गति से तेज कोई वस्तु नहीं चल सकती है। इस लिहाज से हमने यदि कोई अंतरिक्ष यान अपने निकटतम पड़ोसी तारे, एल्फा, सेण्टौरी, जो हमसे लगभग 4 प्रकाश वर्ष दूर है, पर भेजा तो यात्रियों को लौटकर आने तथा हमें यह बताने में कि यात्रियों ने अंतरिक्ष में कहां पर क्या-क्या देखा इसे कहने में लगभग 8 वर्ष लग जाएंगे। यदि अपनी आकाश-गंगा के केंद्र की ओर जाने का अभियान हो तो लौटकर आने में कम से कम 1 लाख वर्ष लगेंगे। अंतरिक्ष यात्रा से केवल कुछ वर्ष बूढ़ा होकर लौटने में यात्री को उस समय कोई खुशी नहीं होगी, जब यात्री पृथ्वी पर छोड़े गए सभी व्यक्तियों को मरे हुए भी हजारों वर्ष बीत चुके होंगे।
ब्रह्माण्ड के संबंध में स्टीफन की दलील है कि यदि हम ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के संबंध में कोई एक पूर्ण सिद्धांत खोज भी लेते हैं तो भी वह कुछ वैज्ञानिकों तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि कुछ समय के अंतराल पर यह एक विस्तृत एवं स्पष्ट सिद्धांत के रूप में प्रत्येक व्यक्ति के लिए समझने लायक हो जाएगा। तब दार्शनिक, वैज्ञानिक तथा आम आदमी भी इस तरह की परिचर्चा में भागीदारी करने में सक्षम हो जाएगा कि आखिर ब्रह्माण्ड का अस्तित्व क्यों हैं। यदि हम इस जिज्ञासा का उत्तर प्राप्त कर लेते है, तब यह मानव तर्क शक्ति की अंतिम विजय होगी, क्योंकि तब हमें ईश्वर के मानस का बोध हो जाएगा। हॉकिंग की इस सोच से पता चलता है कि विज्ञान के जरिए वे आम आदमी को भी तर्कशील बनाना चाहते थे। हॉकिंग का ईश्वर के संदर्भ में यह भी कहना था कि कुछ लोग कहते हैं कि सब कुछ भगवान ने बनाया है। उसकी इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है। परंतु यही कहने वाले लोग जब सड़क पार करते है तो आजू-बाजू देखकर आगे बढ़ते हैं। दरअसल इस समय वे अपनी सुरक्षा को लेकर सोच रहे होते है कि सब कुछ ईश्वर ने नहीं निर्धारित किया है।
इस सब के बावजूद अभी हम ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और खोज की प्रक्रिया में ही है। भौतिक शास्त्री इसे समझने की कोशिश में लगे है। दरअसल ब्रह्माण्ड की सारी घटनाएं भौतिक, रसायन और जीव-विज्ञान के नियमों से गतिशील हो रही हैं। इन सबमें जड़ता होने के बावजूद चेतना है और विज्ञान की विडंबना यह है कि वह अब तक वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित किसी भी वस्तु में चेतना नहीं डाल पाया है। यदि मनुष्य से जुड़ी अनुवांशिकी कि बात करें तो मानव शरीर की कई बीमारियों को दूर करने में हम सक्षम हो चुके हैं। किंतु यह कहना अभी भी मुश्किल है कि शरीर के निर्माण में ईश्वर या किसी अज्ञात शक्ति की कोई जरूरत नहीं रह गई है। संभव है हम किसी के द्वारा निर्मित किए ब्रह्माण्ड के वासी हों ? लेकिन सवाल उठता है कि हमारी दुनिया का निर्माण करने वाली चेतना कौन सी है और वह जड़ व चेतन में कैसे आई। विज्ञान, धर्म और अध्यात्म का यही विरोधाभास है। यही वजह है कि वैज्ञानिक अवधारणाएं बनती और बदलती रहती है। स्टीफन हॉकिंग ने इन धारणाओं की सूक्ष्मताओं को समझने के कारगर प्रयास किए है। इस नाते उनकी धारणाएं विज्ञान की अमूल्य धरोहर हैं।
प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
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लेखक, साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार है।
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