‘कालजयी चिन्तक महाप्राण निराला’ रायबरेली के प्रख्यात साहित्यकार कवि समालोचक एवं हाइकुकार डॉ० रामनिवास पंथी द्वारा सम्पादित ग्रन्थ है जि...
‘कालजयी चिन्तक महाप्राण निराला’ रायबरेली के प्रख्यात साहित्यकार कवि समालोचक एवं हाइकुकार डॉ० रामनिवास पंथी द्वारा सम्पादित ग्रन्थ है जिसमें महाप्राण निराला के व्यक्तित्व व कृतित्व पर हाइकु शिल्प में आबद्ध एक कविता तथा सम्पादक सहित 36 हिन्दी विद्वानों के समीक्षात्मक आलेख संकलित किये गये हैं। सम्पादकीय में डॉ० राम निवास पंथी ने निराला के प्रति यह सच ही लिखा है, ‘‘निराला ने जो जिया उसे ही लिखा। निराला का जीवन एक ऐसी प्रयोगशाला है जिसमें समाधिस्थ होकर उनके कवि ने नाना प्रकार के प्रयोग सिद्ध किये हैं। उनकी कल्पना हवाई ही नहीं अपितु यथार्थ की धरती को अनुप्राणित करने वाली है।’’ वे अपने आलेख में लिखते हैं ‘वह एक साथ कवि, कथाकार, निबन्धकार, समालोचक, जीवनी लेखक, नाट्य, गीतकार, दार्शनिक, हास परिहास का पंण्डित, लोक जीवन में त्यागी दानी, संगीतज्ञ, मानवता का पोषक, गरीबों का निवाज, अत्याचारी का कट्टर शत्रु मिथ्या आंडबरों का घोर विरोधी, तीखा तिक्त और तलवार की धार से पैना था। अतः महाप्राण निराला आज के युग के युग पुरुष हैं। आइये डलमऊ के इस दामाद को श्रद्धावनत हो लें और अपरिमित सम्मान दे दें।’’
डॉ० महावीर सिंह ने ‘निरालाजी’ के क्रोधी स्वभाव व उनकी सहजता सरलता तथा दयालुता पर लिखा है, ‘‘युग पुरुष निराला जी का क्रोधी स्वभाव जगविदित है। वे अपनी अवमानना कभी बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। जब भी कभी उनके सम्मान को ठेस लगती थी उनका बैसवारी रक्त अवमानना की ताप पाकर उबल पड़ता था। यह भी सच है कि जितना अधिक वे क्रोधी थे उतना ही सहज, सरल और दयालु भी थे। डॉ० षिव गोपाल मिश्र ने अपने आलेख में लिखा है ‘‘निराला जी महामानव थे, उनमें मानवता कूट-कूट कर भरी थी। वे दलितों श्रमिकों के प्रति दया एवं करुणा से ओत-प्रोत थे। साथ ही अवढर दानी भी थे।’’ डॉ० विद्या बिन्दु सिंह ने अपने आलेख में लिखा है, ‘‘महाप्राण निराला की प्रतिभा बहुआयामी है। वे कवि, कथाकार और समीक्षक हर रूप में अपने को सिद्धहस्त प्रमाणित करते हैं।’’ डॉ० रमाकान्त श्रीवास्तव ने लिखा है, ‘‘निराला को अपनी प्रतिभा, साधना, तपस्या, अथक अनवरत श्रम, नयापन लाने की लालसा तथा सतत संघर्षशीलता के कारण अन्ततः अतिशय मान्यता मिली।’’ डॉ० उपेन्द्र बहादुर सिंह ‘उपेन्द्र’ ने लिखो है, ‘‘निराला जी जीवन भर दीनों दुखियों, दलितों, शोषितों एवं पिछड़ों के अन्तरंग से जुड़े रहे।’’
डॉ० ओम प्रकाश सिंह ने अपने आलेख में लिखा है, ‘‘निराला जी मूलतः विद्रोह, बन्धन मुक्त और प्रयोग के कवि हैं। वह एक ऐसी चुम्बकीय परिधि से बाहर जगत का अवलोकन करते हैं जिसमें स्वानुभूति के साथ-साथ एक सामाजिक दर्शन की चेतना भी निहित है।’’ स्वामी गीतानन्द गिरि लिखते हैं, ‘‘महाप्राण निराला ने अपनी कृति ‘कुल्ली भाट’ में लिखा है कि जब दुनिया जीवन के पीछे दौड़ रही थी, मैंने जीवन पाने के लिए दौड़ लगा दी। उनका यह महावाक्य उनके साहित्य और जीवन का मूलमंत्र है।’’ डॉ० चम्पा श्रीवास्तव ने निराला के उपन्यास ‘कुल्ली भाट’ के पात्र कुल्ली भाट के बारे में लिखा है, ‘‘निराला का कुल्ली प्रेमचन्द्र के होरी की भाँति थककर मृत्यु का वरण नहीं करता अपितु निराला की भाँति आमरण संघर्षशील रहता है।’’ राम नारायण रमण ने लिखा है, ‘‘विष्वकवि निराला की पितृभूमि गढ़ाकोला भले ही रही हो, उनके साहित्य की गंगोत्री तो डलमऊ ही है। निराला को हिन्दी में साहित्य सृजन की प्रेरणा तो डलमऊ की कन्यारत्न कवि की धर्मपत्नी मनोहरा जी से ही मिली।’’ डॉ० नरेन्द्र नारायण राय ने निराला के दलित विमर्श के बारे में लिखा है, ‘‘दलित विमर्श पर भी निराला ने खूब लिखा। साहित्य की बँधी बँधाई परिपाटी की उन्होंने धज्जियाँ उड़ा दीं। इस क्रम में उनकी भिक्षुक कविता देखी जा सकती है। निराला ने पूँजीवाद का जमकर विरोध किया।’’ डॉ० वैशाली चन्द्रा ने निराला के स्त्री विमर्श पर लिखा है, ‘‘निराला जी ने नारी को प्रेयसी, बहन, बेटी, पत्नी, वेश्या आदि विविध रूपों में अन्तरण करके उसे समाज में श्रेष्ठ स्थान की अधिकारिणी सिद्ध किया है।’’ डॉ० गिरिजा शंकर त्रिवेदी ने निराला की प्रयोग धर्मिता पर लिखा है, ‘‘निराला की लेखनी ने कभी विराम नहीं लिया है। वे प्रयोग धर्मी रचनाकार थे। उन्होंने पात्र, भाषा, कथ्य और शिल्प सभी क्षेत्रों में प्रयोग किये हैं। छायावाद के कवियों में तुकान्त-अतुकान्त कविता का प्रयोग निराला से बढ़कर किसी ने नहीं किया।’’ डॉ० शुकदेव प्रसाद ‘छैल’ ने निराला के कुश्ती प्रेम पर लिखा है, ‘‘निराला कुश्ती के शौकीन थे। वह कसरत करके कुश्ती लड़ने का अभ्यास करते हुए बलिष्ठ शरीर बनाने में सफल भी हुए।’’
डॉ० स्नेह लता ने निराला को नयी राहों का अन्वेषी, कृष्ण कुमार यादव ने सहृदय कवि, डॉ० करुणा शंकर उपाध्याय ने उदारमना महाकवि, रामसागर यादव ने क्रान्ति का अग्रदूत, डॉ० सन्तोष कुमार विश्वकर्मा ने सामाजिक कुरीतियों, विषमताओं के विरुद्ध आवाज उठाने वाला कवि, डॉ० किरन श्रीवास्तव ने भारतीय जीवन मूल्यों के प्रति गहरी आस्था रखने वाला कवि, राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी बन्धु ने युग पुरुष, रिंकी सिंह ने साहित्यिक चेतना का वाहक, राजेन्द्र बहादुर सिंह ‘राजन’ ने शिखर पुरुष, राजेश वर्मा ने युग परिवर्तन का कवि, हौषिला अन्वेषी ने जनपक्षीय कवि, डॉ० माधव पण्डित ने सर्वहारा का कवि, डॉ० रामबहादुर वर्मा ने नयी राहों का कुशल शिल्पी, डॉ० आजेन्द्र प्रताप सिंह ने व्यक्ति नहीं विराट समष्टि, देव नारायण त्रिवेदी ‘देव’ ने अद्वैत भाव को प्रतिस्थापित करने वाला कवि, अमरेन्द्र कुमार पाल ने युग प्रेरक, कैलाश बिहारी ने एक योगी कवि, आचार्य उत्पल यादव ने एक भावुक कवि बताया है। रणंजय सिंह ने स्वामी विवेकानन्द एवं महाप्राण निराला की तुलना की है। दिनेश मिश्र बैसवारी ने निराला की मातृभूमि गढ़ाकोला व उनकी ससुराल डलमऊ के सम्बन्ध में एक यात्रा वृतांत, अर्चना वर्मा ने निराला के काव्य ‘खजोहरा’ की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत की है।
श्री शम्भू शरण द्विवेदी ‘बन्धु’ ने अपनी हाइकु शिल्प में आबद्ध कविता में कहा है-
जिया जीवन
युग पुरुष बन
नित निराला।
अन्त में निष्कर्शतः कहा जा सकता है कि समीक्ष्य पुस्तक ‘कालजयी चिन्तक महाप्राण निराला’ महाप्राण निराला के व्यक्तित्व व कृतित्व का एक कालजयी दस्तावेज बन गयी है जो हिन्दी साहित्य में एक विशिष्ट पहचान बनायेगी। पुस्तक के सम्पादक श्री रामनिवास पंथी एक सच्चे साहित्य साधक हैं। उन्होंने हिन्दी साहित्य को अनेक अमूल्य मौलिक तथा सम्पादित कृतियाँ प्रदान की हैं। हिन्दी साहित्य को बहूमूल्य कृतियाँ प्रदान करने वाले तथा महनीय शोध कार्य करने वाले पंथी जी को किसी विश्वविद्यालय द्वारा पी-एच०डी० की मानद उपाधि प्रदान कर देनी चाहिए। निराला स्मृति संस्थान डलमऊ के अध्यक्ष श्री राजाराम भारतीय ने उनके बारे में सच ही लिखा है, ‘‘‘पंथी’ अबाध गति से पंथ तय करता हुआ सबको साहित्य का पुष्प भेंट करता हुआ निस्प्रह भाव से साहित्य सेवा में लगा है।’’ पुस्तक में संकलित समस्त रचनाकारों ने अपने आलेखों के माध्यम से महाप्राण निराला के व्यक्तित्व व कृतित्व का सम्यक मूल्यांकन किया है तथा अपने समीक्षक धर्म का सही निर्वाह किया है। हिन्दी साहित्य को एक कालजयी समीक्षा कृति प्रदान करने के लिए पुस्तक के सम्पादक श्री रामनिवास पंथी को शुभकामनाएँ।
समीक्ष्य कृति- कालजयी चिन्तक महाप्राण निराला (समीक्षा)
सम्पादक- राम निवास पंथी
प्रकाशक- साहित्य संगम, नया 100, लूकरगंज, इलाहाबाद-211001
संस्करण - प्रथम 2018
मूल्य- पाँच सौ रुपये
पृष्ठ- 176
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समीक्षक - डॉ० हरिश्चन्द्र शाक्य, डी0लिट्0
शाक्य प्रकाशन, घंटाघर चौक
क्लब घर, मैनपुरी-205001 (उ.प्र.) भारत
स्थाई पता- ग्राम कैरावली पोस्ट तालिबपुर
जिला मैनपुरी-205261(उ.प्र.) भारत
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