० जिम्मेदारी के निर्वहन में सबसे आगे खड़ी है भारतीय नारी मानवीय सांसारिक जीवन को गतिशीलता प्रदान करने की जिम्मा इस जगत के रचयिता ने नि:संदेह...
० जिम्मेदारी के निर्वहन में सबसे आगे खड़ी है भारतीय नारी
मानवीय सांसारिक जीवन को गतिशीलता प्रदान करने की जिम्मा इस जगत के रचयिता ने नि:संदेह रूप से जिस पात्र पर डाला है, वह सिर्फ और सिर्फ महिला के रूप में हमारे सामने आ रही है। सूर्योदय से पूर्व जिसकी दैनिक क्रियाएं अविराम गति से प्रारंभ होती है, वह भूमिका एक मां के रूप में, एक पत्नी के रूप में, एक बहन के रूप में या फिर उम्र दराज दादी-नानी, चाची-ताई के रूप में दिखाई पड़ रही है। अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य की सुख-शांति और संपन्नता के लिए परिवार की एक महिला ही अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं की निर्वहन करते हुए संपूर्ण जवाबदारी को निभा रही है। परिवार में सबसे छोटे बच्चे से लेकर सास-ससुर और रिश्ते की हर कड़ी को मजबूत धागे में पिरोकर रखने और सहजने वाली उसी नारी पात्र को हमारा समाज आज कौन सा सम्मान दे पा रहा है, इस पर चिंतन की जरूरत है। वर्ष 365 दिनों में से कोई दिन ऐसा नहीं, जब हमारा समाज उसे आराम देने की चिंता करते हुए एक दिन की छुट्टी दे सके। उल्टा हमारी अपनी रविवार और अन्य दिनों की छुट्टी उसके लिए ओव्हर टाईम के रूप में तब्दील हो जाती है। नाश्ते की फरमाईश से लेकर खाने का मीनू तक हम तैयार कर उसके हाथों में ऐसे थमा देते है, मानों वह पारिवारिक सदस्य न होकर महज खानसामा बनकर रह गयी हो।
हम प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाते है, किंतु महिलाओं की संवेदनाओं और उनकी आंतरिक पीड़ा को समझने का प्रयास शायद नहीं कर पा रहे है। हमारा शिक्षित सभ्य और संवेदनशील समाज और उसमें जीवन-यापन कर रहा पुरूष वर्ग इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है कि आखिर उसने उसे जन्म देने वाली मां से लेकर सुंदर परिवार और बच्चों का संसार देने वाली अपनी पत्नी की थकावट को महसूस करने की जरूरत क्यों नहीं समझी? क्या हम इस बात को नकार सकते है कि नारी के बिना हमारा जीवन ठीक उसी तरह नीरस और उजाड़ हो जाता है, जिस तरह एक बगिया के रखवाले माली के बिना बगिया में फूलों का खिलना कठिन हो जाता है। परिवार रूपी बगिया को अपने स्नेहमयी आंचल की छाव और जीवन रूपी जल प्रदान कर सिंचित करने वाली महिला का त्याग और तपस्या ने ही हरा-भरा आवतरण दिया है। इसे हमें स्वीकार करना होगा और समय-समय पर महिला पात्र की उपयोगिता को स्वीकार करते हुए उसके सहज की आधार प्रदान करने अपनी जवाबदारी को समझना होगा। हमें यह भूलने की जरूरत भी महसूस करनी होगी कि महज नारी का जीवन ही त्याग का पर्याय नहीं बल्कि पुरूष वर्ग भी उस त्याग का हिस्सेदार बनाया गया है।
अब एक नजर मशीन की तरह दौडऩे भागने वाली महिला रूपी सदस्य की सुबह से रात तक की दिनचर्या पर डालना भी मैं जरूर समझता हूं। सुबह आसमान में सूरज निकलने से पूर्व स्नान ध्यान के साथ ही पहली जवाबदारी परिवार के उन बच्चों के रूप में शुरू होती है, जो सबसे पहले शिक्षा के मंदिर की ओर रूख करने वाले हो। उनके बस्तें की पूरी तैयारी के साथ ही टिफिन और पानी बॉटल थमाना अपनी मुख्य जवाबदारी के रूप में प्रारंभिक चरण का कार्य माना जा रहा है। इसके समाप्त होते ही चाय-नाश्ते के साथ पति, सास-ससुर और परिवार के अन्य सदस्यों के सम्मुख प्रस्तुत होना भी अपना मुख्य कर्तव्य मानते हुए पूरा करना एक नारी के हिस्से का काम ही होता है। इस बीच बर्तनों को साफ करने के लिए यदि कोई कर्मचारी की व्यवस्था है तो ठीक, अन्यथा उन्हें साफ करने के बाद दोपहर का भेाजन और ऑफिस जाने से पूर्व पति को गरमा गरम भोजन परोसना भी भारतीय नारी की अहम जिम्मेदारी है। इतनी कुछ होने के बाद किचन समेटना और उसे व्यस्थित करने के बाद मशीन रूपी उपकरण कुछ देर के लिए स्थिर तो होता है, किंतु ठीक उसी तरह जैसे पॉवर कट हो जाने से मशीन का संचालन रूक जाता है। परिवार की मुख्य आधार स्तंभ वही महिला शाम होने से पूर्व एक बार फिर से चाय-कॉफी के दौर में व्यस्त हो जाती है, फिर रात का सुस्वाद भोजन और फिर देर रात आराम के कुछ पल ही उसके भाग्य में विधाता ने लिखे है।
भारतीय परिवेश में जीवन यापन कर रही महिलाओं को कानून का संरक्षण नहीं, ऐसी बात नहीं है। बावजूद इसके एक नारी अपने घर परिवार की मान-मर्यादा का पूरा ख्याल रखते हुए अपने उन अधिकारों की भी होली जला देती है। अपने मायके पक्ष से प्राप्त धन राशि, जेवर-जायदाद पर उसका पूर्ण अधिकार होने के बाद भी वह उस अपार धन संपत्ति पर अपने पति को काबिज कर संपूर्ण समर्पण की प्रतिमूर्ति बनती रही है। हमारा पुरूष प्रधान समाज महिला की इस समर्पित सोच को भी अपना अधिकार मानते हुए उसके साथ अत्याचार करने से बाज नहीं आ रहा है। धन-संपत्ति के मामले में पत्नियों पर ज्यादती के अधिक मामले पूंजीपति परिवारों से ही सामने आ रहे है। नई नवेली बहु के साथ दहेज प्रताडऩा से लेकर उत्पीडऩ के बड़े मामलों में भी गरीब परिवारों में इल्जाम धन संपन्नता वाले परिवारों की तुलना में कहीं कम है। हम बात करने चाहते है, अपने भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति पर। हमारे धर्म शास्त्र भी हमें यही शिक्षा देते है कि महिला ही घर की लक्ष्मी होती है। उस पर जुल्म करने वाले परिवार या सदस्यों पर ईश्वर भी कृपा नहीं बरसाता। त्याग नारी की स्वप्रमाणित शक्ति के रूप में सदैव हमारे के लिए चुनौती के रूप में सामने आता रहा है। सब को भरपेट भोजन कराने वाली मां और पत्नी ही कुछ न बचने पर यह कहती पाई जाती है कि आज तबीयत ठीक नहीं, इसलिए कुछ खाने का मन नहीं कर रहा। अपने स्वार्थ के वशीभूत पुरूष प्रधान समाज किचन में झांककर यह देखने की जरूरत भी नहीं समझ रहा कि उसके हिस्से का भोजन बचा भी है या नहीं?
नारी अपने विभिन्न रूपों में सदैव मानव जाति के लिए त्याग, बलिदान, स्नेह, श्रद्धा, धैर्य तथा सहिष्णुता का जीवन बिताती रही है। माता-पिता के लिए आत्मीयता सेवा की जितनी भावना एक पुत्री में भरी होती है, उतनी पुत्र में नहीं। पराये घर जाकर भी वही पुत्री अपने माता-पिता से जुदा नहीं हो पाती है। उसके मन और आत्मा में परायापन घुस भी नहीं पाता है, उसके हृदय में वही सम्मान तथा सेवा की भावना भरी होती है, जो बचपन में हुआ करती थी। कठिनाई के दौर में संसार के सभी लोग मुंह मोड़ ले तो भी एक मां ही है, जो अपने पुत्र के लिए सदैव सब कुछ न्यौछावर करने तैयार खड़ी रहती है। पत्नी के रूप में नारी मनुष्य की जीवन संगिनी ही नहीं वरन, हित साधक के रूप में अपना जीवन त्यागने की क्षमता रखती है। शास्त्रकारों ने पत्नी को छह प्रकार से मनुष्य के लिए हित साधक बताया है-
काय्र्यषु मंत्री, करणेषुदासी, भोज्येषु माता,
रमणेषु रम्भा:
धर्मानुकूला क्षमाया, धरित्री, भार्या, षडगुण्यवती च दुर्लभा।।
नारी की कोमलता, सहिष्णुता को पुरूष ने उसकी निर्बलता मान लिया है। यही कारण है कि उसे अबला जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता है। क्या मां के सिवाये इस संसार में ऐसी कोई हस्ती है, जो शिशु की सेवा तथा पालन पोषण कर सके? इसमें कोई संदेह नहीं कि नारी समाज की निर्मात्री शक्ति है, वह समाज का धारण और पोषण करती है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री के शब्दों में नारी पुरूष की शक्ति के लिए जीवन सुधा है। त्याग उसका स्वभाव है। प्रदान उसका धर्म, सहनशीलता उसका व्रत और प्रेम ही उसका जीवन है।
डा. सूर्यकांत मिश्रा
न्यू खंडेलवाल कालोनी
प्रिंसेस प्लेटिनम, हाऊस नंबर-5
वार्ड क्रमांक-19, राजनांदगांव (छ.ग.)
COMMENTS