प्रविष्टि क्र. 79 प्रशांत महासागर की लहरों के साथ - साथ कमल कपूर स्मृतियों के झरोखे से झाँक कर देखती हूँ तो अपने अतीत के बचपन वाले घर के...
प्रविष्टि क्र. 79
प्रशांत महासागर की लहरों के साथ - साथ
कमल कपूर
स्मृतियों के झरोखे से झाँक कर देखती हूँ तो अपने अतीत के बचपन वाले घर के कच्चे आँगन में खड़ा पाती हूँ ख़ूब घेरदार फ़्रॉक पहने छोटी सी काली बिंदिया माथे पर टाँके एक नन्हीं सी बच्ची को ,जो आसमान पर उड़ते वायुयानों को देख कर पुलकित हो कर गाती थी " हवाई जहाज़ - हवाई जहाज़ , तेरी चाबी मेरे पास ...." या फिर " उड़नखटोले पर उड़ जाऊँ कभी तेरे हाथ न आऊँ....." पर निम्न मध्यम वर्षीय परिवार की उस बच्ची के ख़्वाबों की भी इतनी औक़ात नहीं थी कि वे उसे हवाई यात्रा कराएँ बल्कि हवाई जहाज़ देखने तक की इजाज़त न थी उसकी हैसियत को। ठीक इसी तरह उसने किताबों में पढ़ा था कि दुनिया का सबसे बड़ा सागर है....प्रशांत महासागर...हुआ करे ,उसने तो अपने शहर के पास से गुज़रने वाली चंबल नदी तक न देखी थी। एक तरसा हुआ वंचित बचपन जी कर वह लड़की यानी कमल उर्फ़ मैं बड़ी हो गई और ब्याह कर एक ठीकठाक से घर में आ गई। एक औसत दर्जे का जीवन जीते हुए बरसों गुज़र गये। बच्चे होनहार निकले और ऊँचे पद पाये दोनों ने। बिटिया पुरवा केलेफोर्निया के ख़ूबसूरत शहर लॉस एंजिल्स में स्थापित हो गई, जहाँ वह एक अति सम्माननीय उच्च पद पर नियुक्त है और मेरी श्रवण कुमारी सी इसी बिटिया ने " जो ख़्वाब रातों ने नहीं देखे वो ख़्वाब दिन में दिखा दिये ".....की तर्ज़ पर सिर्फ़ ख़्वाब दिखाए अपितु उन्हें सुंदर आकार भी दिया।
२७ मई वर्ष २०1६ की मध्य रात्रि को हसरतों से अपना दामन भरे प्रिय जीवन साथी के साथ इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से हमने दोहा एयरवेज़ से उड़ान भरी....विश्व के सर्वाधिक समृद्ध देश अमेरिका के कला और मनोरंजन के सर्वोत्तम प्रदेश केलेफोर्निया के प्रशांत महासागर के तट पर बसे अमरावती से शहर लॉस एंजिल्स के लिये। मन-मयूर मगन हो निरंतर नाचता रहा रात के तम से संवलाए बादलों के बीच से गुज़रते हुए।सिर्फ़ दोहा तक का पवन-पथ ही अँधियारा था, उससे आगे का मेघ पथ तो अमेरिका पहुंचने तक जगमगाते धवल आलोक से उजियारा ही मिला। यान की खिड़की के उस पार था.... श्वेत श्याम ऊदे सुनहरे रुपहरे रक्तिम बादलों का साम्राज्य और नीचे कहीं धरा कहीं पर्वत श्रृंखलाएँ को कहीं महासागर। कई कविताएँ लिख डालीं मैंने उस दिव्य सौंदर्य को पिरोते हुए मैंने। अंतत: अठारह घंटे की लंबी लेकिन अद्भुत यात्रा के बाद हम सात समंदर पार बसे उस अनुपम देस में पहुँच ही गये जहाँ एयरपोर्ट के बाहर अपनी चमचमाती गाड़ी ले कर हमारे दिल का टुकड़ा हमारा इंतज़ार कर रहा था।
लॉस एंजिल्स के बेदाग़ चमकीले स्याह फ़्री वे पर बिटिया सधे हुए हाथों से गाड़ी चला रही थी और उन स्वच्छ सड़कों को देख कर एक अटपटा सा ख़्याल मेरे कवि-हृदय में जन्मा कि यदि फ़िल्म पाकीज़ा के राजकुमार की गुज़र यदि इन सड़कों से हुई होती तो वह " इन पाँवों को ज़मीन पर न रखियेगा, ये मैले हो जायेंगे," न कहते बल्कि यह कहते ," आप नंगे पाँव इन सड़कों पर न चलियेगा हुज़ूर ! ये कहीं मैली न हो जाएँ।" अपने ही बेतुकेपन पर मैं मुस्कुरा दी। आसपास के नये नवेले स्वस्थ नज़ारों से नयनों को सुख देते एक घंटे बाद हम बिटिया के घर पहुँचे....मन मोगरे के फूल सा महक उठा... सर्व सुख-सुविधाओं से संपन्न पुरवा का घर किसी !त्री स्टार से कम न था। हर्षातिरेक से मेरे नैन नम हो गये बेटी का सुख देख कर। जो भाग्य ने मुझे नहीं दिया था वो सब मेरी बच्ची को मुक्त हस्त से दिया था। खुदा की शुक्रगुज़ारी के लिये मेरे पास शब्द न थे।
उसी शाम पुरवा ने एक ऐसा सरप्राइज़ सामने रख दिया कि मेरे लेखक मन ने तुरंत एक नवल मुहावरे का आविष्कार कर डाला..." एक तो अँगूर मीठे ऊपर से आम के रस में घुले "। वह सरप्राइज़ था कि पाँच जून को हम ....यानी मैं, पतिदेव, पुरवा और उसकी किशोर वय की बेटी आस्था क्रूज़ यानी कछुए सी धीमी सागर यात्रा पर जाने वाले हैं। यह यात्रा लॉस एंजिल्स के प्रशांत महासागर के लांगबीच से आरंभित हो मैक्सिको के इनसिनाडा शहर पर समाप्ति होगी। मन-घट कच्चे दूध की गागर सा छलकने लगा। मुझे जल के आशय अर्थात नद , नदी, निर्झर, सरोवर, ताल, समंदर बहुत लुभाते हैं। शादी के बाद विशेषत: लेखन के क्षेत्र में आने के बाद मैं गंगा, यमुना, रावी, झेलम, चनाब, कावेरी, कोसी, काली, गोमती, नर्मदा और ब्रह्मपुत्र नदियों से भी मिली थी ,नैनीताल और मसूरी के तालों से भी और मुंबई तथा त्रिवेंद्रम के समंदरों से भी लेकिन विश्व के सबसे बड़े महासागर से पहली बार मिलना होगा। " मैं तो सागर के पानी से ख़ूब नहाऊँगी," मैंने पुलक कर कहा तो पुरवा हंस कर बोली," हम शिप पर ही रहेंगे मम्मा ! नहाना तो दूर आप पैसिफ़िक के पानी को छू भी नहीं सकते। बस देख-देख कर ख़ुश होना और बाक़ी मैं नहीं बताने वाली कि क्या क्या होगा शिप में। आपको ख़ूब नहाना है तो कल सेंटा मोनिका बीच चलेंगे।"
कुछ जेटलैग और कुछ स्थान और समयांतर की वजह से नींद काफ़ी देर तक नहीं आई और जब आई तो पनीले गीले सपनों का कारवाँ सज़ा कर संग लाई और अगले दिन हम चारों का क़ाफ़िला निकल पड़ा सेंटा मोनिका बीच की ओर। कुछ दूर जाने के बाद से ही महासागर हमारे साथ-साथ दौड़ने लगा। फिर आधे घंटे बाद मैं और सागर आमने सामने बैठे बतिया रहे थे। पहली बात मैंने मन ही मन उससे यह पूछी," सुना है कि सारी नदियाँ अंतत: आ कर तुममें ही मिलती हैं को फिर बताओ न हे महासागर ! क्या मेरी गंगा यमुना और बारी सारी नदियाँ भी तुम्हारे पास आई हैं?" तभी एक ऊँची लहर आ कर मेरे तन-मन को भिगो गई और मैं सिहर उठी और पति का हाथ थाम कर सागर में उतर गई और उमड़ती और उठती-गिरती लहरों में एकलव्य होने लगी। बड़े बूढ़े बच्चों का रंगीन हसीन मेला सा लगा था वहाँ। कुछ सागर के भीतर थे तो कुछ सागर की उजली चमकीली रेत पर बैठे शंख सीपियाँ चुन रहे थे ,रेत के घरौंदे बना रहे थे या यूँ ही मस्ती कर रहे या खा-पी रहे थे। ख़ुशी के ढेर से मोतियों से दामन भर हम लौट आये और अगली सुबह निकल पड़े सेनडीगो के लिये। रास्ता अत्यंत नयनाभिराम था ,जैसे जन्नत की राह से गाड़ी गुज़र रही हो। एक ओर संग साथ चलता नील गगन के नीचे क़ालीन सा बिछा नीला-हरा महासागर तो दूसरी ओर सेंट गैबरेलो की भूरी पहाड़ियाँ। मौसम में मिश्री और बर्फ़ानी मीठी ठंडक घुली हुई थी और गर्म नर्म स्वेटर उस ठंडक से हमें बचा रहे थे। सहसा ख़्याल आया कि मेरे प्यारे भारत में तो इस समय छाँव भी छाँव की तलाश में भटक रही होगी और हम रसीली ठंडक का शर्बत गटक रहे हैं। विदेशी धरती पर विदेशी ही कार में बैठे हम देसी खानों और गानों का लुत्फ़ लेते दाँ पहुँचे थे सेनडीगो के हिस्से में आये प्रशांत महासागर के सामने। यहां हमने अनोखा सिटी टूर किया। एक बस हमें शहर में घुमाने निकली और चलते-चलते अचानक सागर में उतर गई। वह बस से एक बड़ी वॉटर मोटर बोट में बदल गई थी। उसकी खिड़की से हाथ निकालकर मैं पानी से खिलवाड़ करने लगी। नभ पर चमकते सूर्य की छवि सागर में पड़ कर उसे सुनहरा रंग रूप दे रही थी। एक निराली सागरीय दुनिया मेरे आगे पसरी थी,जिसमें जलचर भी थे, छोटी बड़ी रंगारंग मछलियाँ भी थीं और समुद्री वनस्पतियाँ भी। तरल सरल उमंग लिए घर लौट रहे थ हम। लौटती राह मे आस्था ने बताया कि केलेफोर्निया बीचों का प्रदेश है और अकेले लॉस एंजिल्स में ही सात बीच हैं।
पाँच जून की सुबह हम लाँग बीच पर थे अपने भव्य से शिप के सामने। शुभ्र वर्ण के इस शिप पर लाल-नीले अक्षरों से अंकित था " इंसपिरेशन कॉर्नीवाल " और इसमें हम अलग अलग देशों-प्रदेशों से आये तीन हज़ार यात्रियों के साथ चार दिन तक यात्रा करनी थी। न जाने कैसे और क्यों उस पहली यात्रा पर निकले और फिर ध्वस्त हो गये टाइटैनिक का स्मरण हो आया और पल भर को मन दुश्चिंता से भर गया पर उसे अगले ही पल झटक भी दिया मैंने और तमाम औपचारिकताएँ पूरी कर हमने शिप में पदार्पण किया तो सर्वप्रथम यात्रियों को सुरक्षा नियम समझाये गये और खुदा न खास्ता जहाज़ दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो किस तरह लाईफ़ बोट्स तक पहुँचना और उनका प्रयोग करना है, यह बताया गया। पूरे तीन हज़ार यात्री उस विशाल हॉल में जमा थे। मैंने अमेरिका के पर्यटनस्थलों पर देखा था कि एक परिवार या मित्र समूह एक से ही कपड़े पहनते थे। यहाँ भी यही था और हम चारों ने भी इसी तर्ज़ पर लाल टी-शर्ट्स और सफ़ेद ट्राउज़र्स पहने थे। एक सायरन के साथ शिप रवाना हुआ तो लोग नृत्य करने और गाने लगे और फिर हम अपने कमरे में आ गये। पैसा बचाने और साथ रहने के ख़्याल से हमने एक ही कमरा लिया था, जिसमें दो ऊपर और दो नीचे बिस्तर लगे थे और समुद्र का आनंद लेने के लिये एक बड़ी सी खिड़की थी पारदर्शी शीशे वाली लेकिन वह खुलती नहीं थी। वह छोटा सा कमरा हर सुख-सुविधा से संपन्न था। सामान अलमारियों में सज़ा कर हम बाहर आ गये।
वाह और सौ बार वाह वाह कि जहाज़ में जैसे एक पूरा सात सितारा शहर बसा हुआ था। स्वीमिंग पूल, डिकोजी, वॉटर गेम्स, टेनिस कोर्ट गोल्फ क्लब और ढेरों ढेर रेस्टोरेंट बार , जिनमें हर देश के खाने-पीने की बेशुमार वैरायटी....जितना चाहे जब चाहे दिन हो रात खाओ -पियो। ये सब टिकिट्स में शामिल था। सबसे सुंदर था जहाज़ के टॉप फ़्लोर पर बना वॉकिंग ट्रैक सहित बना अति सुंदर बग़ीचा ....जो मेरा प्रिय स्थान बन गया। वहाँ से आसमान जितना साफ़-शफ्फाक दिखता था ,उतना तो मैंने पहले कभी न देखा था और बॉलकनी में बैठ कर पल पल रंग बदलते सागर को निहारना ? उस नयनाभिराम सुख का वर्णन शब्द भी कर पाने में असमर्थ हैं। और सूर्यास्त का दृश्य भी वर्णनातीत है। उस सुनहरी अनल गोले का आहिस्ता आहिस्ता सागर में उतरते हुए पानी को पिघले सोने में बदल देना फिर उसमें समाहित हो कर डूब जाना और परिवेश पर श्यामल रंग की कूची फेर देना....आहा और एक आह भी निकली मन से।
अगले दिन की सुबह शिप मैक्सिको के इनसिनाडा शहर के सीमा-तट पर जा लगा। कई बसें तैयार खड़ी थीं जो हमें शहर घुमाने ले गईं। वहाँ क्या देखा और लौट कर शेष तीन दिन। कैसे अपूर्व अनुभूत आनंद में जिये.... यह एक लंबी दास्ताँ है, जिसे मैंने चंद काल्पनिक पात्रों के माध्यम से एक बड़ी कहानी " सागर " में पिरोया है। अभी तो बस इतना और कहना है मुझे कि " इंसपिरेशन कॉर्नीवाल " से जुदा होते हुए मन इतना अधिक भारी था कि रोने को जी चाह रहा था। उसके चित्रावलियों से सजे गलियारे से गुज़रते हुए मैंने भरपूर नज़र से ,बड़ी हसरत से जहाज़ को। देखा क्योंकि मैंने कहीं पढ़ा -सुना था और मेरा यक़ीन भी है यह कि पीछे मुड़ कर देखने से आप वहाँ दोबारा अवश्य आते हैं और मैं को बार -बार वहाँ लौट कर आने की आरज़ू मन में सँजोए लौट रही थी।
कमल कपूर
२१४४ / ९सेक्टर
फ़रीदाबाद -१२१००६
हरियाणा
बहुत सुन्दर,साहित्यिक कलम से लिखा गया यात्रा वित्रान्त।बधाई
जवाब देंहटाएंIt is a beautiful and very emotional description of the journey. It's lovely how the writer connects her own childhood with what she experiences during this part of her life. Applaudable!!!
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण संस्मरण के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंIt is not a memoire but a true description of writers visit It gives very small small things about life in US. I could correlate the end with my belief of looking at Mount Fugi from the top, throwing a coin in the water tank and offcourse looking back to visit there again.
जवाब देंहटाएंIndeed very interestingly portrayed memories. Excellent !
The write up is the exact description of some one who visits US for the first time. A lengthy flight and jet lag are common to all travellers visiting that country. The small small descriptions are marching to what I observed during my first visit there.
जवाब देंहटाएंThe most touching point of the story is looking back in the end of journey to be able to visit again. Indeed it is a great story excellently portrayed.
So beautifully delineated memories. Mother is the most sweetest word in this world and seeing her enjoying is countless. A daughter can well understand this by the description. Love the bond of mother and daughter. Lovely captured the whole journey.
जवाब देंहटाएंSo beautifully delineated memories. Mother is the most sweetest word in this world and seeing her enjoying is countless. A daughter can well understand this by the description. Love the bond of mother and daughter. Lovely captured the whole journey.
जवाब देंहटाएंTruly thought provoking.
जवाब देंहटाएंI love the way the writer has articulated her feelings through her own experience so beautifully.
Kudos!!
Truly thought provoking!
जवाब देंहटाएंBeautifully written
Eloquently written.. each and every word of beautiful and joyful journey.. best wishes.. :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और साहित्यिक दृष्टि से भी एक खुबसूरत यात्रा व्रतांत बना है आदरणीया..... बहुदा संस्मरण लिखते समय अक्सर कलमकार आसपास के प्राक्रतिक सौन्दर्य पर ही अपना ध्यान केन्द्रित रखता हैं, लेकिन आपकी इस रचना में जिस तरह भावनाओं का दर्शन अपनी पूरी शिद्द्द्त के साथ हुआ है. उसने इस रचना को अद्वितीय बना दिया है. बीच बीच में दि गयी 'दिलचस्प उपमाएं और कल्पनाएँ' इस संस्मरण की जान है कमल जी. हार्दिक बधाई स्वीकार करे आदरणीया.
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