प्रविष्टि क्र. 77 एयरपोर्ट पर एक दिन मल्लिका मुखर्जी " यह मेरा दो टुकड़ों में बँटा पहला हवाई सफ़र था क्योंकि एयर इंडिया की अहमदाबाद से को...
प्रविष्टि क्र. 77
एयरपोर्ट पर एक दिन
मल्लिका मुखर्जी
"यह मेरा दो टुकड़ों में बँटा पहला हवाई सफ़र था क्योंकि एयर इंडिया की अहमदाबाद से कोलकाता सीधी सेवा उपलब्ध नहीं है। इंडिगो एयर लाइन्स की फ्लाइट हमें अहमदाबाद से कोलकाता सिर्फ ढाई घंटे में पहुँचा देती है वह भी एयर इंडिया के किराये से एक तिहाई किराये में! आप सोचेंगे, फिर मैंने यह मुश्किल रूट क्यों चुना?
कारण बताना भी जरूरी है। मैं भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षा विभाग के अधीन गुजरात में स्थित कार्यालय प्रधान महालेखाकार, अहमदाबाद में वरिष्ठ लेखापरीक्षा अधिकारी के पद पर कार्यरत हूँ। केंद्र सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों पर थोपा गया एक आदेश है कि खर्च पाने योग्य केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों को एलटीसी (Leave Travel Concession) पर हवाई यात्रा का लाभ उठाने के लिए, एलटीसी 80 योजना के तहत केवल एयर इंडिया द्वारा यात्रा करनी होगी। हालांकि, एयर इंडिया की अनुपलब्धता के मामले में जब गंतव्य के लिए एयर इण्डिया की फ्लाइट न हो, ऐसी स्थिति में एलटीसी 80 एयर टिकट के तहत यात्रा करना आवश्यक नहीं है। एयरलाइन की वेबसाइट के सिवा केवल दो यात्रा एजेंसियों को ही यात्रा टिकट प्रदान करने के लिए अधिकृत किया गया है। मैसर्स बामर लॉरी एंड कंपनी और अशोक ट्रावेल्स।
हमारा कार्यालय संविधान द्वारा स्थापित प्राधिकरण है और केन्द्रीय कर्मचारियों के सारे नियमों का अनुसरण करता है। मैंने भी एलटीसी (होम टाउन) का खर्च पाने हेतु अपना टिकट मैसर्स बामर लॉरी एंड कंपनी से एलटीसी 80 योजना के तहत बुक करवाया। साथ में सौरभ का भी, जिसका खर्च सरकार से नहीं मिलने वाला था! " - इसी संस्मरण से
‘जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरियसी।’ यह पंक्ति हर इन्सान को प्रिय है जो इस धरती पर जन्म लेता है। देश विभाजन के फल स्वरूप अपनी जन्मभूमि पूर्व बंगाल (उस समय पूर्व पाकिस्तान, अब बाँग्लादेश) से विस्थापित होने के बाद किशोरावस्था में ही माँ और पापा अपने-अपने परिवार के साथ शरणार्थी बन पश्चिम बंगाल में आए। असीम संघर्ष करते हुए धीरे धीरे स्थायी हुए। विवाह-बंधन में जुड़ने के पश्चात वे पश्चिम बंगाल से गुजरात (उस वक्त का बोम्बे स्टेट) में आ बसे। अपनी जमीन और उनसे जुड़ी यादों को वे दोनों कभी भुला नहीं पाए। पापा तो अंतिम साँस तक अपने वतन को याद करते रहे। मेरे शहर अहमदाबाद के ही निवासी प्यारे मौसा-मौसी ने जब फरवरी 2013 को बाँग्लादेश जाने की योजना बनाई, उनके साथ जाने की मैंने भी अपनी सहमति जता दी।
मेरे लिए तो यह एक सपने से कम नहीं था कि मैं इस जीवन में कभी माँ और पापा की जन्मभूमि को देख पाऊँ! यही तय हुआ कि मौसी-मौसा जी के साथ मैं और सौरभ जाएँगे। सौरभ, मेरी दूसरी संतान, को मेरी छोटी बहन माला ने गोद लिया है। तीन महीने की उम्र से ही वह वड़ोदरा निवासी बहन के परिवार का हिस्सा है। मुझे ख़ुशी थी कि इस यात्रा के दौरान मैं सौरभ के साथ थोड़ा समय बिता सकुँगी। हमने तैयारियाँ शुरू कर दी। मौसी-मौसा जी तो बारह जनवरी को ही अहमदाबाद से कोलकाता के लिए रवाना हो गए। उन्हें वहाँ क़रीबी रिश्तेदारों की तीन शादियों में शरीक होना था। मैंने एयर इन्डिया से अहमदाबाद से कोलकाता, वाया दिल्ली, पहली फ़रवरी की दो टिकटें बुक करवा ली। हमें कोलकाता पहुँचकर बाँग्लादेश के डेप्युटी हाई कमीशन के कार्यालय से वीज़ा लेना था। कोलकाता से ढाका भी एयर इन्डिया की फ्लाइट से ही जाना था।
मैंने अपने कार्यालय में छुट्टियों की अर्जी दे दी। कार्यालय से देश छोड़ने की अनुमति भी मिल चुकी थी। देखते ही देखते पहली फरवरी आ गई। सुबह चार बजे ही घड़ी के अलार्म ने नींद उड़ा दी। बेटे सोहम ने कहा था कि घर से सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट की दूरी सिर्फ़ 20 कि.मी. है, क़रीब आधे घंटे में ही पहुँच जाएँगे। सौरभ एक दिन पहले ही वडोदरा से आ चुका था। नित्यकर्म से निपटकर हम तैयार हो गए। सुबह पौने छः बजे तक निकले, कार में आधा घंटा ही लगा। प्रवेश द्वार पर आई. डी. प्रूफ और टिकट की प्रिंट बताकर एयरपोर्ट के अन्दर प्रवेश किया।
सबसे पहले फर्स्ट सिक्योरिटी चॅक के तहत एक्सरे स्कॅनिंग काउंटर पर हेवी लगेज स्कॅन करवाया। चॅकिंग प्रोसेस के बाद एयर इण्डिया के बैगेज चॅक इन काउंटर पर पहुँचे। लंबी लाइन थी। मेरा नंबर आते ही टिकट और आईडी चेक करने के बाद, काउंटर पर बैठे कर्मचारी ने बैगेज के वेट चॅक करवाकर टैग लगाकर कार्गो सेक्शन में भेजने हेतु पटरी पर रखवा दिए। मैंने कोलकाता में ही बैगेज लेने का विकल्प चुना। मुझे बोर्डिंग पास दिए। ये क्या? बोर्डिंग पास दिल्ली तक का ही था, जब कि हमारी टिकटें अहमदाबाद से, वाया दिल्ली, कोलकाता की थीं। मेरे पूछने पर जवाब मिला, ‘दिल्ली पहुँचकर आपको कोलकाता के लिए बोर्डिंग पास लेना होगा।’
‘ठीक है।’ कहते हुए मैं सौरभ के साथ मुख्य सिक्योरिटी चॅक इन काउंटर पर गई। बॉडी स्कॅनिंग मशीन के सामने से गुज़रते हुए, टैग लगी हैंड बैग का भी स्कॅनिंग करवाया। सुरक्षा बल के कर्मचारी ने बोर्डिंग पास पर मोहर लगा दी। अब पास में बताए गए बोर्डिंग गेट में प्रवेश लिया और हॉल में बैठकर इन्तजार करने लगे। दिल्ली से हमें एयर इंडिया की दूसरी फ्लाइट न. एआई 020 से कोलकाता जाना था, जो दोपहर 2.30 बजे दिल्ली से उड़ान भरनेवाली थी। समय काफ़ी मिलेगा सोचकर मैं निश्चिन्त थी।
यह मेरा दो टुकड़ों में बँटा पहला हवाई सफ़र था क्योंकि एयर इंडिया की अहमदाबाद से कोलकाता सीधी सेवा उपलब्ध नहीं है। इंडिगो एयर लाइन्स की फ्लाइट हमें अहमदाबाद से कोलकाता सिर्फ ढाई घंटे में पहुँचा देती है वह भी एयर इंडिया के किराये से एक तिहाई किराये में! आप सोचेंगे, फिर मैंने यह मुश्किल रूट क्यों चुना?
कारण बताना भी जरूरी है। मैं भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षा विभाग के अधीन गुजरात में स्थित कार्यालय प्रधान महालेखाकार, अहमदाबाद में वरिष्ठ लेखापरीक्षा अधिकारी के पद पर कार्यरत हूँ। केंद्र सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों पर थोपा गया एक आदेश है कि खर्च पाने योग्य केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों को एलटीसी (Leave Travel Concession) पर हवाई यात्रा का लाभ उठाने के लिए, एलटीसी 80 योजना के तहत केवल एयर इंडिया द्वारा यात्रा करनी होगी। हालांकि, एयर इंडिया की अनुपलब्धता के मामले में जब गंतव्य के लिए एयर इण्डिया की फ्लाइट न हो, ऐसी स्थिति में एलटीसी 80 एयर टिकट के तहत यात्रा करना आवश्यक नहीं है। एयरलाइन की वेबसाइट के सिवा केवल दो यात्रा एजेंसियों को ही यात्रा टिकट प्रदान करने के लिए अधिकृत किया गया है। मैसर्स बामर लॉरी एंड कंपनी और अशोक ट्रावेल्स।
हमारा कार्यालय संविधान द्वारा स्थापित प्राधिकरण है और केन्द्रीय कर्मचारियों के सारे नियमों का अनुसरण करता है। मैंने भी एलटीसी (होम टाउन) का खर्च पाने हेतु अपना टिकट मैसर्स बामर लॉरी एंड कंपनी से एलटीसी 80 योजना के तहत बुक करवाया। साथ में सौरभ का भी, जिसका खर्च सरकार से नहीं मिलने वाला था!
सरकार इन कारणों के लिए एयर इंडिया एलटीसी 80 एयर टिकट खरीदने के लिए जोर दे रही है कि ये टिकट तिथियों में परिवर्तन और डिफ़ॉल्ट रूप से रद्दीकरण के लिए पात्र हैं। इसलिए, न तो सरकार और न ही कर्मचारी को यात्रा परिवर्तन की तिथि या रद्द करने की स्थिति में नुकसान का सामना करना होगा। इस योजना के तहत टिकट का मूल्य सामान्य से क़रीब दुगुना था। मुझे अगर अहमदाबाद से कोलकाता जाना है तो 8000/- रूपये का टिकट 14500/- में खरीदना पड़ेगा। वास्तव में, एयर इंडिया के कई प्रकार के हवाई किराये उपलब्ध हैं जो कि एलटीसी 80 एयर किराया से कम हैं।
भले ही मुझे ये किराए की रकम सरकार से ही लेनी है, पर सोचने वाली बात ये है कि जो यात्रा मैं इंडिगो एयरलाइन्स में 4000/-रूपये में कर सकती हूँ वो भी सिर्फ ढ़ाई घंटे में और यात्रा परिवर्तन की तिथि या रद्द करने की स्थिति में नुकसान का सामना करना पड़े तो वो जिम्मेदारी भी मेरी है, सरकार की नहीं। फिर विकल्प चुनने का मौका मुझे क्यों नहीं मिलता? वास्तव में एलटीसी 80 नियम के तहत एयर टिकट खरीदने का कारण, केंद्र सरकार की एयर इण्डिया के घाटे से उबारने की एक योजना बताया जाता है। घाटा भी कितना? सिर्फ़ पचास हज़ार (50,000) करोड़ रूपये! अगर यह सच है तो मेरा प्रश्न है सरकार से, एयर इंडिया को पचास हज़ार (50,000) करोड़ रूपये के घाटे से उबारने का यही उपाय बचा था क्या? गुजराती में एक कहावत है- ‘पाड़ाने वांके पखालीने डाम।’
उस दिन ज़ीरो विज़ीबिलिटी की वजह से सभी उड़ानें देर से चल रही थी। सुबह 6.00 बजे दिल्ली से उड़ान भरकर 7.25 को अहमदाबाद पहुँचने वाली फ्लाइट नंबर एआई 817 ही अहमदाबाद से 8.05 को दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाली थी। कुछ ही देर में घोषणा हुई कि दिल्ली से फ्लाइट नंबर एआई 817 सुबह समय से उड़ान नहीं भर सकी है, इस वजह से अहमदाबाद से उड़ान भरने में आधे घंटे की देरी हो सकती है। उड़ान भरने का समय क़रीब 8.40 बताया गया। धीरे धीरे समय बदलता चला, बार बार घोषणा होने लगी, हर बार उड़ान का समय बदल रहा था। पहले 8.40, फिर 9.30, 10.30..
मेरी परेशानी बढ़ने लगी। क्या हम दोपहर ढ़ाई बजे की कोलकाता की कनेक्टिव फ्लाइट दिल्ली से पकड़ पाएँगे? मैंने बेटे सोहम को फोन लगाया। उसने कहा, ‘आप बाहर एयर इण्डिया के काउंटर पर पूछ लीजिये।’ मैं बाहर जाने के लिए गेट की तरफ़ आगे बढ़ ही रही थी कि सुरक्षा कर्मी ने मुझे रोका। कारण बताने पर कहा, ‘आपको पहले अपना बोर्डिंग पास केन्सल करवाना पड़ेगा, फ़िर ही आप बाहर निकल सकोगे। बाहर काउंटर पर जाकर इन्क्वायरी कर लेने के बाद नया बोर्डिंग पास लेकर अन्दर आना पड़ेगा।’
मरता क्या न करता? उनके निर्देशों का पालन करते हुए मैं बाहर पहुँची। बाहर काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने बड़ी निश्चिंतता से कहा, ‘संभवतः आपको कनेक्टिव फ्लाइट मिल जाएगी।’
‘अगर नहीं मिली तो क्या करना होगा?’
‘चिंता की कोई बात नहीं, अगली फ्लाइट पाँच बजे की है वो मिल जाएगी। दिल्ली एयरपोर्ट से ही ये सुविधा आपको उपलब्ध करा दी जायेगी।’
बन्दे ने यह बिलकुल नहीं बताया कि कनेक्टिव फ्लाइट न मिली तो अगली फ्लाइट पकड़ने में कितने पापड बेलने पड़ेंगे! मैं नया बोर्डिंग पास लेकर अन्दर आ गई। अंततः 11.10 को दिल्ली से फ्लाइट नंबर एआई 817 अहमदाबाद आ पहुँची। सब यात्रियों के स्थान ग्रहण करने के बाद क़रीब 12.30 को विमान ने उड़ान भरी। दोपहर दो बजे हम दिल्ली के इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहुँचे जो भारत का व्यस्ततम एयरपोर्ट है।
हमारा बोर्डिंग पास दिल्ली तक का ही था। दिल्ली से कनेक्टिव फ्लाइट दो बजकर तीस मिनट पर थी, सिर्फ आधा घंटा ही बचा था हमारे पास, फ्लाईट नं.एआई 020 तक पहुँचने में! गेट पर एक महिला खड़ी बोले जा रही थी, ‘कृपया ध्यान दें। कोलकाता जाने वाले यात्रियों के लिए एयर इंडिया का फ्लाईट नं.एआई 020 इन्तजार कर रहा है। आप लोग कुछ आगे चलकर बाईं तरफ की लिफ्ट से दूसरी मंज़िल पर चले जाइए। जहाँ आपको कोलकाता का बोर्डिंग पास मिल सकेगा।’
सुनकर बड़ा अच्छा लगा कि इतना विशाल विमान बेसब्री से हमारा इन्तजार कर रहा है! आधे घंटे में हमें बोर्डिंग पास लेकर कोलकाता की फ्लाइट तक पहुँचना था। मैं और सौरभ तेज क़दम चलते हुए दिशानिर्देश के अनुसार दूसरी मंज़िल पर पहुँचे। लम्बी लाईन थी, फिर भी हम खड़े हो गए। अचानक बोर्ड पर नज़र पड़ी, लिखा था- अंतर्राष्ट्रीय प्रस्थान। मेरे आगे खड़े यात्री के हाथ में पासपोर्ट भी दिख रहा था।
मैंने उनसे पूछा, ‘आपको कहाँ जाना है?
‘लन्दन।’
‘ओह, हमें तो कोलकाता जाना है।’
पास खड़े एक सुरक्षा कर्मी से पूछा तो उन्होंने हमें कहा, ‘वहाँ बीच में सीढ़ियाँ हैं वहीँ से ग्राउंड फ्लोर पर चले जाइए। वहीं डोमेस्टिक बोर्डिंग पास इश्यु किये जाते हैं।’
फिर तेज कदमों से हम वहाँ पहुँचे। देखा तो वहाँ भी सभी यात्री हाथ में पासपोर्ट लेकर लाइन में खड़े थे। वहाँ खड़े सुरक्षा कर्मी से पूछने पर उसने एक दूसरे काउंटर की ओर इशारा किया। फिर एक बार हम बोर्डिंग पास लेने की प्रक्रिया से गुजरे। हैंड बैग चॅक करवाने के बाद ही बोर्डिंग पास पर मोहर लगेगी। जाकर मुख्य सिक्योरिटी चॅक इन की लाइन में खड़े हो गए। मेरा नंबर आते ही सामने चल रही पट्टी के ऊपर मैंने अपना हैंड बैग रखा। पट्टी सरकने लगी तभी बैग से मोबाइल बजने की आवाज़ सुनाई दी।
मैंने वहाँ खड़े सुरक्षा कर्मी से अनुरोध किया, ‘मुझे वह हैंड बैग दीजिये, प्लीज़। मोबाइल बज रहा है।’ मुझे संदेह था कि यह फ़ोन मेरी फ्लाइट की परिचारिका का होगा क्योंकि उड़ान का समय हो चुका था। उस व्यक्ति ने जरा भी रुचि न दिखाई। बैग के उस छोर पर पहुँचने तक लगातार फोन बजता रहा। बैग मिलते ही जब मैंने फोन उठाया, फ़ोन कट चुका था। मेरा संदेह सही था, फ्लाइट की परिचारिका ने उड़ान भरने से पहले मुझे संपर्क करने की कोशिश की थी। बोर्डिंग पास पर मोहर लगते ही मैं और सौरभ दौड़ पड़े। क़रीब पौने तीन बज रहे थे। बोर्डिंग पास में गेट नंबर 24 लिखा था, हम तेज क़दमों से मुख्य प्रवेश द्वार पर पहुँचे। दाएँ 15 नंबर का गेट दिखाई दिया। दायें मुड़कर हम लगभग दौड़ते हुए 24 नंबर के गेट पर पहुँचे, देखा वहां कोई यात्री नहीं था न ही कोई हवाई जहाज! एंट्री गेट पर बैठे कर्मचारी ने बताया कि यह विमान अब 14 नंबर के गेट से उड़ान भरनेवाला है। ओह! गेट बदलने पर घोषणा तो होती ही है पर हमारे मुख्य द्वार तक पहुँचने से पहले हुई होगी जो हमने सुनी ही नहीं।
लगभग दौड़ते हुए हम 15 नंबर के गेट तक आ गए, बस अब 14 नंबर का गेट तो कुछ ही क़दम की दूरी पर था। लेकिन ये क्या? 15 के बाद था गेट नंबर 1! यानि अब 1 नंबर के गेट से आगे बढ़ते हुए 14 नंबर तक पहुँचना था! कुल मिलाकर एक छोर से दूसरे अंतिम छोर तक पहुँचना था। मेरी हिम्मत जवाब देने लगी। इस मिशन को प्राप्त करना असंभव था। विमान के उड़ान का समय तो बीत ही चुका था, पर आशा की पतली किरण बची थी कि ये हमारी कनेक्टिव फ्लाइट है तो कुछ देर के लिए विमान जरुर रुकेगा।
इतने लम्बे-चौड़े एयरपोर्ट पर मुझ जैसी 55 वर्ष की महिला की मैराथन हो रही थी। अचानक पास से ही गुज़र रहे मूविंग वॉक वे पर मेरी नज़र पड़ी। एक बड़ी पटरी सरकती जा रही थी। विशाल एयरपोर्ट होने के कारण यात्रियों को इतनी लम्बी दूरी तय करने में मदद करने हेतु इस मार्ग की सुविधा दी गई थी। अब हम दोनों उस मार्ग पर चलती पटरी पर सवार हो गए, पटरी चल रही थी और हम उस पर दौड़ रहे थे! कुछ-कुछ ट्रेड मिल टेस्ट देने जैसा लग रहा था! मैंने सौरभ से कहा, ‘बेटे तुम आगे बढ़ जाओ ताकि पहुँचकर विमान को रोक सको। वह मुझ से कहीं आगे निकल गया। क़दम थक चुके थे। उम्मीद हाँफ रही थी तभी एक बग्गी पर नज़र पड़ी जो कुछ बीमार, वृद्ध और अपाहिज यात्रियों को लेकर 14 नंबर के गेट की तरफ़ जा रही थी।
मैंने दौड़कर ड्राइवर को रोका और संक्षिप्त में अपनी बात बताते हुए अनुरोध किया कि मुझे 14 नंबर के गेट तक पहुँचा दे। उसने मुझे कुछ घूरकर उपर से नीचे तक देखा क्योंकि मैं अपाहिज नहीं थी, बीमार या वृद्ध भी नहीं लग रही थी। ईश्वर की दया थी कि उसने हामी भरी, मैं बग्गी में बैठ गई। सौरभ को फ़ोन लगाया, वह 8 नंबर के गेट तक पहुँच चुका था। जब तक मैं 8 नंबर के गेट तक पहुँचती वह 14 नंबर गेट तक पहुँच चुका था। आशा की एक छोटी-सी किरण अब भी बची हुई थी। वहाँ पहुँचते ही सौरभ दिखाई दिया, पर उसके चेहरे की उदासी बता रही थी कि विमान अपनी उड़ान भर चुका था।
हाय रे, एयर इंडिया! मैंने अपना सिर पिट लिया। मैंने सौरभ से कहा, ‘बेटे, जब हमारा कोलकाता तक जाना तय था, बैगेज भी हमने कोलकाता से ही लेना लिखवाया है तो हमें बोर्डिंग पास अहमदाबाद से कोलकाता का क्यों नहीं दिया गया?’ उसका जवाब था, ‘मासीमोनी, सुरक्षा की दृष्टि से यह किया गया लगता है। आजकल कहीं भी, किसी भी समय आतंकी हमले हो रहे हैं न।’ वर्तमान में हमारे संकट की वास्तविकता और अवधारणा पर उसकी प्रतिक्रिया सुनकर मुझे अच्छा लगा। मैं चुप हो गई। 45 मिनट तक की दौड़ के बाद भी हम बाज़ी हार गए!
हमारा नाम कई बार अनाउंस हुआ था ऐसा गेट पर खड़े कर्मचारी ने सौरभ को बताया। मुझे लगा, काश! एयरपोर्ट अथॉरिटी हमें आतंकी ही समझ लेती और अपने सुरक्षा कर्मचारियों को हमारी खोज में लगा देती कि जो यात्री अहमदाबाद से कोलकाता के लिए रवाना हुए, दिल्ली एयरपोर्ट पर आकर गायब कैसे हो गए? पकड़े जाते तो कम से कम हमें उस कनेक्टिव विमान में तो बैठा दिया जाता!
इतनी असहायता कभी महसूस न हुई थी। बस और ट्रेन छूट जाने के किस्से तो सुने थे पर विमान का छूट जाना! मुझे याद आया अहमदाबाद एयरपोर्ट पर मुझे कहा गया था, ‘अगर 2.30 बजे की फ्लाईट न मिली तो शाम 5.00 बजे की फ्लाइट में आपको सीट दे देंगे।’ आशा की एक नई किरण का उदय हुआ और मैंने उसी बग्गी के ड्राइवर से अनुरोध किया कि हमें मुख्य गेट तक पहुँचा दें। हमारी असहायता देख उसने बिना किसी प्रतिक्रया के तुरंत हाँ कर दी। उसने हमें एक खास बात और बताई, ‘मॅडम, अब दूसरी फ्लाइट में सीट पाने का काम ज़रा मुश्किल है। एयर इंडिया के किसी स्टाफ़ से संपर्क कर पाने पर ही आपका काम हो पाएगा। आप पहले इन्क्वायरी काउंटर पर चले जाना, वहाँ से शायद कुछ मार्गदर्शन मिल जाए।’
मैं सोच रही थी, उसने ‘शायद’ क्यों कहा? बाद में समझ में आया कि उसने सही कहा था। इन्क्वायरी काउंटर पर अगले दो घंटे तक हमें कोई नहीं मिला! अब हम मुख्य हॉल की तरफ़ आगे बढ़े जहाँ एक कोने में एक और काउंटर दिखा। एक सुरक्षा कर्मी बड़े आराम से कुर्सी पर बैठा था। टेबल पर एक रजिस्टर भी पड़ा था। हमने उसे अपनी बात बताई और पूछा कि अब आगे की कार्रवाई के लिए क्या करना होगा।
उसने अपने निराले अंदाज़ में कहा, ‘आप यहाँ खड़े होकर यहाँ से गुज़र रहे अलग-अलग विमानी सेवा के कर्मचारियों को देखते जाइए। जब कोई एयर इंडिया का कर्मचारी दिखे उसे अपनी समस्या बताइए, वो ही आपको मुख्य गेट से बाहर ले जाएगा, अगली फ्लाइट के टिकट एवं नए बोर्डिंग पास मुहैया करवाने के लिए।’
मैंने पूछा, ‘क्या यहाँ अलग-अलग विमानी सेवाओं के काउंटर नहीं है जो ऐसे यात्रियों की मदद कर सके?’
उसने एक बड़े काउंटर की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘है तो, पर अभी वहाँ कोई नहीं है।’ मैं और सौरभ खड़े हो गए कभी इधर, कभी उधर देखने लगे। अति व्यस्त दिख रहे कर्मचारी आ-जा रहे थे पर कौनसे विमानी सेवा के थे, दूर से पता लगाना मुश्किल था। एक नौजवान तब से हमें देख रहा था। मैंने उसके पास जाकर आपबीती सुनाई और मदद के लिए कहा।
वह बोला, ‘मैं आपकी मदद करता लेकिन मैं एयर इंडिया स्टाफ़ नहीं हूँ। अगर किसीने मुझे देख लिया तो मेरी नौकरी खतरे में पड़ जायेगी।’
मैंने कहा, ‘ठीक है, आप हमें ये तो बता सकते हैं ना कि इस रास्ते से गुज़रने वाला कौन व्यक्ति एयर इंडिया का स्टाफ़ है?’
उसने हामी भरी। कुछ देर बाद ही उसने दूर से आते हुए एक सज्जन को देख इशारा किया। मैं तुरंत उन सज्जन के पास पहुँच गई। उन्हें रोका और कहा कि हमारी ढ़ाई बजे की कोलकाता की फ्लाईट मिस हो गई है। हमें नया टिकट दिलाने में मदद करें। उन्होंने घड़ी की ओर देखते हुए कहा, ‘मैं जरा जल्दी में हूँ। अभी कोई अन्य स्टाफ़ यहाँ से निकलेगा वह आपकी हेल्प कर देगा। आप यहीं रुकिए।’
‘जी।’ कहते हुए मैं फिर रास्ता देखने लगी। विभिन्न विमानी सेवाओं के स्टाफ़ आ-जा रहे थे। एक मॅडम को आते देख उस नौजवान ने फिर इशारा किया। मैं चल दी, संक्षिप्त में अपनी कहानी सुनाई। ये भद्र महिला तो और जल्दी में थीं! बिना रुके ही उन्होंने कह दिया कि अब जो आएगा वो हेल्प करेगा। इस तरह तीन और कर्मचारी चले गए, हमारे हाथ में आशा की लालटेन थमाकर!
साढ़े चार बज चुके थे, मतलब पाँच बजे वाली फ्लाइट में सीट मिलने की आशा अब नहीं के बराबर थी। मैंने देखा, वह कोने के काउंटर पर बैठा कर्मचारी अब भी हमें कनखियों से देख रहा था। मुझे महसूस हुआ कि वह मन ही मन मुस्कुरा भी रहा है। मैं फिर उसके पास गई और उसके टेबल पर पड़े फोन की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘क्या आप एयर इण्डिया के किसी जिम्मेदार कर्मचारी को नहीं बुला सकते हमारी मदद के लिए?’
उसने बड़ी बेरुखी से जवाब दिया, ‘आप देखते रहिए कोई न कोई तो आएगा।’
इतने दुःख भरे पलों में भी मुझे वो गीत याद आ गया, ‘आएगा आनेवाला.... आएगा...’ प्यास के मारे गला सूख रहा था। मैंने सौरभ को पानी लाने को कहा। सुबह से हमने कुछ खाया भी न था। मेरा धैर्य जवाब दे रहा था। अब मैंने एक निर्णय लिया। पाँच बजे की फ्लाइट तो मिलने से रही। आख़िरी बार कोशिश करती हूँ। कोई मिला तो ठीक वरना मुख्य गेट से बाहर जाने लगूंगी, ऐसे में कोई न कोई सुरक्षा कर्मचारी तो आएगा पकड़ने! उसीका कॉलर थामकर कहूँगी, ‘अब ले चलो हमें टिकट काउंटर की ओर जहाँ से नया टिकट लेना है।’ सरकारी कर्मचारियों की कार्यप्रणाली देख ईश्वर को भी शर्मिंदगी महसूस हुई, शायद! अचानक एक सूट धारी सज्जन आते दिखाई दिए। उस नौजवान ने मेरे बिलकुल क़रीब आकर धीरे से कहा, ‘मॅम, ये सज्जन एयर इंडिया के बड़े अधिकारी हैं। इनसे बात करिए।’
‘बात? अब तो मैं इन्हें जाने ही न दूंगी।’ जैसे ही वे सज्जन नज़दीक आए मैं उनकी तरफ़ आगे बढ़ी, उनका रास्ता रोककर खड़ी हो गई।
‘भाई साहब आप एयर इंडिया के कर्मचारी हैं?
‘जी, कहिए।’
‘देखिये सर, हम क़रीब दो घंटे से यहाँ खड़े हैं। अहमदाबाद से आनेवाली सुबह की फ्लाइट लेट होने की वजह से हमारी कोलकाता की ढाई बजे की कनेक्टिव फ्लाइट मिस हो गई है। एयर इंडिया के पाँच कर्मचारी अब तक यहाँ से गुज़र चुके हैं। किसीने हमारी मदद नहीं की। अब मैं आपको यहाँ से जाने नहीं दूंगी, जब तक हमारी समस्या का कोई हल नहीं निकलता।’
एक ही साँस में मैंने कह डाला। यह भी तय था कि अगर ये सज्जन भी जाने की कोशिश करेंगे तो मैं उनका हाथ ही पकड़ लूँगी। लेकिन आश्चर्य! वे शांति से मेरी बात सुन रहे थे। मेरी बात ख़त्म होते ही वे बड़ी शालीनता से बोले, ‘मेडम, आपकी मदद करना मेरा कर्तव्य है। आप निश्चिन्त हो जाइए, दूसरी फ्लाईट में आप का अकोमोड़ेशन हो जायेगा। उसके लिए एक फॉर्म भरना पड़ेगा। वो सामने टेबल पर जो भाई बैठे हैं उन्हीं के पास एक रजिस्टर है। उसमें एंट्री करनी पड़ेगी। फिर मैं आपको मुख्य द्वार से बाहर ले जाऊँगा, जहाँ टिकट के काउंटर हैं। वहाँ से मैं आपको नए टिकट और साथ में बोर्डिंग पास भी दिलवा देता हूँ। चलिए मेरे साथ।’
मन ही मन मैं ईश्वर को खूब खरी-खोटी सुना रही थी। ये सज्जन में मुझे साक्षात ईश्वर का रूप लगे। उनके कोट पर एयर इंडिया का जो बैज लगा था, उस पर नाम लिखा था- रामचंद्र! साथ चलते हुए मैंने कहा, ‘भाई साहब, दूसरी फ्लाइट में टिकट लेने के चक्कर में हमने सुबह के लाईट रिफ्रेशमेंट के बाद, अभी तक कुछ खाया नहीं है न ही पानी पीया है।’
‘ओह, मैं आपको खाने की कूपन भी दे देता हूँ। आप 15 नंबर के गेट की एंट्री से पहले दाई तरफ़ जो एक बड़ा रेस्तोरां है, वहाँ खाना खा लीजियेगा।’ रेस्तोरां का नाम भी बताया पर अब याद नहीं आ रहा। इस पल तक एयर इंडिया के कर्मचारियों का जो कटु अनुभव हो रहा था, मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये सज्जन एयर इंडिया के ही कर्मचारी थे!
हम उस टेबल तक पहुँच गए जहाँ बैठा बन्दा पिछले दो घंटे से हमें इधर-उधर दौड़ते हुए देख रहा था! रामचंद्र जी ने उसके टेबल पर पड़ा रजिस्टर उठाया, हमारी यात्रा का पूरा विवरण भरा। वहीँ से किसीको फ़ोन लगाया और फॉर्म लेकर आने को कहा।
मैंने कहा, ‘सर, इनसे तो हम पहले ही मिल चुके हैं लेकिन इन्होंने तो कहा कि पहले कोई बाहर से आएगा तो ही आपका काम होगा।’ रामचंद्र जी ने उसे खूब डाँटा कि फोन क्यों नहीं किया? उसके चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखी। मुझे हमारे कार्यालय के सपाट चेहरे वाले कुछ ऐसे ही कर्मचारी याद आ गए! कुछ ही देर में एक नौजवान फॉर्म लेकर आ पहुँचा। रामचंद्र जी ने ही वह फॉर्म भरा और हमें लेकर मुख्य गेट के बाहर आ गए, जहाँ टिकट काउंटर थे। हर काउंटर पर लम्बी-लम्बी लाइनें थीं। एयर इंडिया के काउंटर पर बुरा हाल था। मेरे जैसे कई यात्री जो अपनी-अपनी कनेक्टिव फ्लाईट चूक गए थे, कतार में खड़े शोर मचा रहे थे। कुछ दूरी पर क़रीब बीस-पचीस लोग ‘एयर इन्डिया मुर्दाबाद’ के नारे लगा रहे थे! हमारे जैसा गम का मारा एक यात्री ऊँची आवाज में कह रहा था, ‘भले ही दो उड़ानों के बीच कितना भी समय हो, आप को कनेक्टिव फ्लाइट नहीं मिल सकती। आपको या तो आठ से बारह घंटे यहीं गुज़ारने हैं या निश्चित की गई होटल पर जाना है जिसका खर्च भी एयर इन्डिया देता है। दिल्ली एयरपोर्ट पर बाकायदा एक काउंटर बना रखा है इन्होंने जहाँ चार-पाँच लोगों का स्टाफ़ सिर्फ़ यही काम करता है, जिनकी फ्लाईट छूट गई उनके लिए होटल का इंतजाम करना! सब मिले हुए हैं। और तो और, एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स के विलय का परिणाम ये है कि आपका सामान भी दिल्ली में इंटरनेशनल कार्गो में गुम हो जायेगा जब कि जाना है कोलकाता।
मैं और सौरभ हतप्रभ थे। आज कसम से, मुझे रेल यात्राएँ याद आने लगी। पापा पश्चिम रेल्वे के कर्मचारी थे तो हमारी अधिकतर यात्राएँ ट्रेन से ही होती थी, सुकून भरी! रामचंद्र जी कतार में खड़े थे हमारी टिकट के लिए। मैं, सौरभ और वो फॉर्म लेकर आनेवाला लड़का भी उनके पास ही खड़े थे। उन्होंने शाम 6.30 की फ्लाईट के दो टिकट माँगे।
काउंटर से जवाब आया, ‘सीट नहीं है।’
‘तो 8.30 में देखिए।’
काउंटर से जवाब आया, ‘उसमें भी सीट प्राप्य नहीं है।’
रामचंद्र जी मेरी ओर देखकर बोले, ‘मॅम, क्या आप रात की फ्लाइट में जाना पसंद करेंगी या सुबह 5.30 की फ्लाइट में करवा दूँ? रात के लिए होटल का इंतज़ाम भी हो जाएगा।’
मैंने कहा, ‘नहीं, आप देखते जाइए रात की कोई भी फ्लाइट चलेगी, मैं इस शहर की सुबह नहीं देखना चाहती।’ मुझे इतना गुस्सा आ रहा था कि इस भले आदमी को क्या कह रही हूँ, होश ही न था। उन्होंने रात 11.30 की बैंगलोर से, वाया दिल्ली, कोलकाता जानेवाली फ्लाइट में टिकट बुक करवाई। मुझे अपनी दस्तख़त की हुई दो कूपन भी दी, उस रेस्तोरां में देने के लिए।
मुझे अचानक याद आया कि हमारे बैगेज का क्या हुआ होगा? क्या अगली फ्लाइट में चला गया होगा? हम तो कोलकाता से ही लेने वाले थे। मेरे पूछने पर रामचंद्र जी ने कहा, ‘आपका सामान पहले 2.30 वाली फ्लाइट में चढ़ा दिया होगा, पर जब आप नहीं पहुँचे तो वापस उतारकर यहाँ के लगेज रूम में रख दिया होगा।’
‘अब हमें क्या करना होगा?’
‘आपके अहमदाबाद वाले बोर्डिंग पास में सामान की चिट लगी होंगी। वो दीजिए।’
उन्होंने वो चिट उस लड़के को दी, जो अब तक हमारे साथ ही था, और कहा, ‘अब इनको खाने के लिए गेट नंबर 15 पर जाने देता हूँ। तुम लगेज रूम से इनका सामान इनकी फ्लाइट में भिजवाने की व्यवस्था करो।’
‘हम इनके साथ जाएँ क्या?’
‘नहीं मॅम, आपको जाने की ज़रूरत नहीं है। ये लड़का ही सारी कार्रवाई कर देगा। आप निश्चिन्त होकर खाना खाइए। चिंता की कोई बात नहीं। आपका बैगेज आपकी फ्लाइट से ही कोलकाता जाएगा।’
धन्यवाद कहने के लिए सही शब्द नहीं थे मेरे पास। उनसे बिदा लेकर हम उस रेस्तोरां की तरफ़ बढे। कूपन प्रस्तुत कर दोपहर का खाना शामके 6.30 बजे खाया। खाना अच्छा था। अब हम 19 नंबर के गेट पर पहुँचे, बैंगलोर से आने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट के लिए। रात के क़रीब 10.45 बजे विमान ने लेंड किया और 11.30 बजे उड़ान भरी। देर रात पौने दो बजे हम कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पहुँचे। मेरे जेठ जी और जेठानी जी हमें एयरपोर्ट पर लेने आए। मध्यरात्रि के क़रीब तीन बजे हम घर पहूँचे।
दिल्ली के इंदिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर एयर इंडिया के कर्मचारियों का मुझे जो विशिष्ट अनुभव मिला वो मैं कभी नहीं भूला पाऊँगी। भला हो एयर इंडिया के अफ़सर रामचंद्र जी का, वे न मिलते तो एयर इण्डिया के कर्मचारियों के प्रति मेरा द्वेष भाव कभी न जाता। अपने कार्य के प्रति रामचंद्र जी जैसी सत्यनिष्ठा गर हर भारतीय में हो तो हमारे देश की उन्नति का रास्ता कोई रोक नहीं सकता। आशा करती हूँ कि एयर इंडिया एक बार फिर ‘महाराजा’ बने और सरकार इस एयर लाइन्स के घाटे का असली कारण खोजकर उस दिशा में कोई ठोस क़दम उठाएँ। कंपनी का नारा है- "Proud to be Indian" "Proud to be Global" गर्व से सर ऊँचा हो जाना चाहिए इस नारे को सुनकर।
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परिचय
नाम : मल्लिका मुखर्जी
जन्म : 23 अक्टूबर, 1956, चंदननगर (पश्चिम बंगाल)
शिक्षा : एम. ए. (अर्थशास्त्र)
एम. ए. (हिन्दी)
संप्रति : कार्यालय प्रधान निदेशक लेखापरीक्षा (केन्द्रीय), गुजरात, अहमदाबाद से वरिष्ठ लेखापरीक्षा अधिकारी पद से सेवानिवृत्त (अक्टूबर 2016), वर्तमान में स्वतंत्र लेखन
साहित्यिक उपलब्धियाँ : प्रकाशित हिन्दी काव्य-संग्रह-
‘मौन मिलन के छन्द’ (2010)
‘एक बार फिर’ (2015)
‘आमार सोनार बाँग्ला’ यात्रा संस्मरण, यश पब्लिकेशन्स, दिल्ली से शीघ्र प्रकाशनाधीन
प्रकाशित अनुवाद कार्य -
वर्ष 2016 में प्रकाशित, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के गुजराती काव्य-संग्रह ‘आँख आ धन्य छे’ का बांग्ला काव्यानुवाद ‘नयन जे धन्य’
प्रकाशित साझा संकलन-
डॉ. अंजना संधीर के परिचयात्मक हिन्दी काव्य संकलन ‘स्वर्ण आभा गुजरात’ में कविताएँ तथा साझा कहानी संकलन ‘स्वर्ण कलश गुजरात’ में कहानी का प्रकाशन
विभिन्न पत्रिकाओं में काव्य, कहानियाँ, लेख आदि का प्रकाशन
सम्मान : वर्ष 2008 में गुजरात राज्य, अहमदाबाद स्थित हिन्दी साहित्य परिषद द्वारा आयोजित ‘डॉ. किशोर काबरा काव्य प्रतियोगिता’ में द्वितीय स्थान प्राप्त करने पर रजतपदक से सम्मानित तथा वर्ष 2010 में डॉ. शांति श्रीकृष्णदास ‘कहानी प्रतियोगिता’ में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर रजतपदक से सम्मानित
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा संचालित ‘हिंदीतर भाषी हिंदी लेखक पुरस्कार’ योजना के अंतर्गत वर्ष 2016 के लिए रूपये 1,00,000/- के नकद पुरस्कार के लिए काव्य-संग्रह 'एक बार फिर’ का चयन
मोबाइल नं : 09712921614
ई मेल : mukherjee.mallika@gmail.com
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