प्रविष्टि क्र. 59 घड़ी दीपक गिरकर बात उस समय की है जब मेरी बैंक में पहली पोस्टिंग तराना (जिला उज्जैन) में हुई थी. मेरा निवास उज्जैन में था....
प्रविष्टि क्र. 59
घड़ी
दीपक गिरकर
बात उस समय की है जब मेरी बैंक में पहली पोस्टिंग तराना (जिला उज्जैन) में हुई थी. मेरा निवास उज्जैन में था. मैं उज्जैन से तराना प्रतिदिन बस से अपड़ाउन करता था. मैं उज्जैन में एक बस स्टाप से बस पकड़ता था. मेरे साथ काफ़ी लोग अपड़ाउन करते थे. एक दिन में बस स्टाप पर बस का इंतजार कर रहा था. उस दिन बस लेट हो गई थी. मेरी नई नौकरी होने के कारण मैं काफ़ी अधिक बेचैन हो रहा था. मैंने मेरे साथ अपड़ाउन करने वाले एक बुजुर्ग व्यक्ति से बातचीत करनी चाही. मैंने उनसे पूछा की घड़ी मे कितने बजे है ? उन बुजुर्ग ने मुझे समय नहीं बताया और कुछ भी बातचीत नहीं की. कुछ समय बाद बस आई और मैं बस में बैठकर तराना पहुँच गया. मैंने लंच समय में हमारे अकाऊंटेंट साहब से उन बुजुर्ग व्यक्ति के बारे में चर्चा की. अकाऊंटेंट साहब ने बताया की वे बुजुर्ग तो काफ़ी मिलनसार है. वे यही तराना में तहसील कार्यालय में बड़े बाबू हैं. यह आश्चर्य की बात है की उन्होंने तुमसे बातचीत नहीं की.
हमारे अकाऊंटेंट साहब ने एक दिन इस संबंध में उन बुजुर्ग व्यक्ति से चर्चा की `कि आपने मिस्टर गिरकर को उस दिन घड़ी में कितने बजे है क्यों नहीं बताया था? और उससे बातचीत भी नहीं की थी. वैसे मिस्टर गिरकर काफ़ी शांत, शालीन, ईमानदार और मेहनती हैं. आपको उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना था.` उन बुजुर्ग व्यक्ति ने इसका स्पष्टीकरण दिया वह इस प्रकार था. `मैंने मिस्टर गिरकर से इसलिए वार्तालाप नहीं किया क्योंकि उस दिन मैं घड़ी में देखकर समय बता देता तो हो सकता कि वह लड़का मेरे से प्रतिदिन नमस्कार करता और मेरे से बातचीत करने का प्रयत्न प्रयास करता. फिर प्रतिदिन बस में अप डाऊन करते हुए बातचीत होती, धीरे-धीरे यह पहचान बढ़ती जाती और फिर कभी वह मुझे अपने घर बुलाता और कभी वह मेरे घर आता. मेरे घर में मैं और मेरी जवान बेटी रहते है. वह मेरे घर आता तो मेरी बेटी से उसकी जान पहचान हो जाती. आगे जाकर यह जान पहचान यदि प्यार में बदल जाती और दोनों शादी के लिए तैयार हो जाते. लेकिन मैं इस रिश्ते के लिए कभी भी तैयार नहीं हो पाता क्योंकि मैं मेरी बेटी की शादी ऐसे लड़के के साथ नहीं करना चाहता जिसके हाथ में घड़ी न हो.` यह बात आई-गई हो गई. वैसे मैंने उन बुजुर्ग सज्जन का नाम `घड़ी वाले अंकल` रख दिया था.
एक दिन शाम को जब मैं बैंक में सारा कार्य निपटाने के बाद उज्जैन जाने के लिए तराना के बस स्टेंड पर पहुँचा तो वहाँ देखा कि वे घड़ी वाले अंकल भी उज्जैन जाने के लिए बस के इंतजार में खड़े हुए हैं. उस दिन शनिवार था, इसलिए वे अंकल मुझे उस दिन दिख गये. बैंक में उन दिनों प्रत्येक शनिवार को हाफ़ डे रहता था. लेकिन मुझे हर शनिवार को बैंक में पाँच या सवा पाँच बज जाते थे और उसके बाद ही मैं उज्जैन के लिए बस पकड़ पाता था. मैं बस का इंतजार कर ही रहा था कि मैंने देखा कि अचानक उन घड़ी वाले अंकल को चक्कर आए और देखते ही देखते वे धड़ाम से नीचे गिर पड़े. मैंने और वहाँ उस समय उपस्थित लोगों ने उन्हें उठाकर पास के ही एक रेस्टोरेंट में लेटा दिया और उन्हें पानी पिलाया. तत्पश्चात मैं गाँव में गया और एक डॉक्टर को बुलाकर उनका चेकअप करवाया. डॉक्टर ने चेकअप करके बताया कि इनका बीपी बढ़ा हुआ हैं. डॉक्टर ने पर्ची पर एक टेबलेट लिख कर दी वह टेबलेट लाकर मैंने उन्हें पानी के साथ दे दी. टेबलेट के साथ मैं मेडिकल से ग्लूकोज का पैकेट भी ले आया था. ग्लुकोज को पानी में घोलकर मैंने उन्हें पिलाया और फिर मैंने अपने शाखा प्रबंधक के पास जाकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया. शाखा प्रबंधक काफ़ी दयालु थे. उन्होंने तुरंत ही गाँव के ही एक सेठ को फ़ोन लगाकर एक जीप बुलवा ली और ड्राइवर को सारी हिदायतें दे दी.
हम जीप से शीघ्र ही उज्जैन के सरकारी अस्पताल में पहुँच गये और डॉक्टर से पूर्ण चेकअप करवाया. डॉक्टर ने उन घड़ी वाले अंकल से पूछा कि `आपको बीपी की शिकायत कब से हैं? क्याँ आप बीपी की कोई टेबलेट लेते है क्याँ?` उन अंकल ने बताया कि `उन्हें बीपी की शिकायत कभी भी नहीं रही और वे कोई भी टेबलेट नहीं लेते हैं.` फिर डाक्टर ने 15 दिनों के लिए बीपी की टेबलेट लिख कर दे दी एवं शुगर टेस्ट (सुबह खाली पेट एवं दोपहर को भोजन के दो घंटे के बाद) करवाने के लिए लिख दिया. डॉक्टर ने उन अंकल को हिदायत दी कि अब आपको नमक कम खाना है, अचार, पापड़ खाना बंद कर दे, 15 दिनों के बाद आकर चेकअप करवाएं और आराम करें एवं किसी प्रकार की चिंता न करें. मैंने बीपी की टेबलेट अस्पताल के बाहर स्थित एक मेडिकल स्टोर से ली और फिर हम उन घड़ी वाले अंकल को लेकर उनके निवास पर गये. उनके निवास पर उनकी बेटी ने जैसे ही दरवाजा खोला मैं उसे देखता ही रह गया. उनकी बेटी वास्तव में ही सुंदर थी. उनकी बेटी हम सब को देखकर घबरा उठी और पूछा कि `मेरे पापा को क्या हुआ? ये ठीक तो हैं? उन अंकल ने कहा` बेटी हमें अंदर तो आने दो सारी बाते बताता हूँ.` फिर उन्होंने शुरू से लेकर अंत तक सारी बात बताई और बोले आज इन बैंक बाबू ने ही मेरी जान बचाई है और बहुत सेवा की हैं. उनकी बेटी ने मेरी ओर कृतघ्नता भरी आँखों से देखा और मुझे धन्यवाद दिया. फिर बोली कि कुछ देर बैठो, मैं चाय बनाकर लाती हूँ. मैंने चाय के लिए मना कर दिया और कहा कि मेरे घर पर मेरी आई मेरा रास्ता देख रही होगी. अब हम चलते है, कल सुबह इनका खाली पेट ब्लड टेस्ट करवाना है. मैं कल सुबह 7 बजे आ जाऊंगा और इन्हें लेकर ब्लड़ टेस्ट करा आऊंगा. मैं अगले दिन सुबह जल्दी तैयार होकर अपनी नई साइकल से, जो की मैंने बैंक लोन से खरीदी थी, उन घड़ी वाले अंकल के घर पर पहुँच गया और उन अंकल को लेकर सरकारी अस्पताल में उनका शुगर टेस्ट के लिए ब्लड का सैंपल देकर उन्हें वापस उनके घर पर छोड़ दिया. फिर उनसे पूछा कि आप खाना कितने बजे खाते है? उन्होंने कहा कि वे दिन में 1 बजे खाना खाते हैं. मैंने कहा ठीक है मैं सवा दो बजे आपके घर आ जाऊँगा और आपको अस्पताल शुगर टेस्ट के लिए ले चलूँगा. इतना कहकर मैं अपने घर चला गया. उस दिन ठीक सवा दो बजे मैं उनके घर पहुँच गया और सरकारी अस्पताल में शुगर टेस्ट के लिए उनका ब्लड सैंपल देकर उन्हें उनके घर पर छोड़ दिया और कहा कि मैं कल अस्पताल में जाकर आपकी ब्लड रिपोर्ट पैथोलॉजी से लेकर डॉक्टर साहब को बताकर फिर मैं आपसे मिलूँगा. उनकी बेटी ने कहा `आप क्यों तकलीफ़ करते हो? कल आपको तो बैंक जाना होगा. मैं ही अस्पताल चली जाऊंगी.` मैंने उन्हें बताया कि कल 2 अक्टोबर गाँधी जयंती है और बैंकों को भी छुट्टी हैं. इसलिए मैं ही अस्पताल चला जाऊँगा. डॉक्टर साहब के द्वारा लिखी गयी पर्ची मेरे पास ही थी. फिर अगले दिन सोमवार को मैं 10 बजे सरकारी अस्पताल पहुँच गया और पैथोलॉजी से ब्लड रिपोर्ट लेकर डॉक्टर साहब को बता दी. उनकी ब्लड शुगर नार्मल निकली थी. डॉक्टर साहब ने और नई दवाई नहीं लिखी और कहा कि ये बीपी की टेबलेट ही उन्हें समय-समय से देते रहो और मुझे 15 दिनों के बाद बताना. मैं उनके घर पर गया और उन्हें और उनकी बेटी को सारी बाते समझा दी और कहा कि घबराने की बात नहीं है और 15 दिन बाद इन्हें डॉक्टर साहब को बताना हैं.
इस घटना के बाद मैं बहुत व्यस्त हो गया. मैं सीएआईआईबी पार्ट-1 कर चुका था और मेरी नौकरी को भी चार साल पूर्ण हो गये थे. मुझे बैंक में अधिकारी वर्ग की परीक्षा में बैठने की पात्रता मिल गयी थी. मैंने अपना पूरा ध्यान इस परीक्षा की ओर लगा दिया. परीक्षा की तैयारी के लिए मेरे शाखा प्रबंधक महोदय ने मेरी 15 दिनों की छुट्टी भी स्वीकृत कर दी थी. मुझे इस परीक्षा में सफलता मिल गयी और इसके बाद हुए साक्षात्कार में भी मुझे सफलता मिल गयी थी और मेरा चयन ट्रेनी आफिसर के रूप में हो गया था. ट्रेनी आफिसर के लिए दो वर्ष का प्रोबेशन पीरियड था. इस प्रोबेशन पीरियड के दौरान मैने बैंक की चार शाखाओं में 6-6 माह के लिए कार्य किया और बैंक का कार्य सीखा. प्रोबेशन पीरियड में मेरी पहली शाखा भोपाल की हमीदिया रोड शाखा थी. जहाँ मैंने सामान्य बैंकिंग का कार्य सीखा. इस प्रोबेशन पीरियड के दौरान मैं सीआईआईबी पार्ट-2 की भी तैयारी करता रहा. क्योंकि बैंक में सीआईआईबी पार्ट-1 पास करने के बाद एक अतिरिक्त इंक्रीमेंट मिलता था और सीआईआईबी पार्ट-2 पास करने के बाद दो अतिरिक्त इंक्रीमेंट मिलते थे. प्रोबेशन पीरियड में मेरी दूसरी शाखा देवास की औद्योगिक क्षेत्र शाखा थी जहाँ मैंने लोन से संबंधित कार्य सीखा. फिर वहाँ से मुझे फारेन एक्सचेंज का कार्य सीखने के लिए 6 माह के लिए इंदौर की पी.वाय. रोड़ शाखा में भेजा गया. मेरी 6 माह की अंतिम ट्रेनिंग कृषि ऋण का कार्य सीखने के लिए बैंक की कृषि विकास शाखा बदनावर में हुई.
जब मैं बदनावार में था उस दौरान वे घड़ी वाले अंकल उज्जैन हमारे घर पर गये और मेरी आई से मिलकर उनकी बेटी का मेरे साथ शादी का प्रस्ताव रखा. मेरी आई उनके परिवार को अच्छी तरह से जानती थी और उनकी बेटी को भी बहुत बार समाज के कार्यक्रमों में देखा हुआ था. मेरी आई ने उनके प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया. जब मैं रविवार की छुट्टी के दिन बदनावर से अपने घर आया तब मेरी आई ने मुझे बताया की `तेरी शादी के लिए मैंने एक लड़की देख ली हैं. लड़की काफ़ी सुंदर, सुशील हैं और मुझे बहुत पसंद हैं. मैंने आई से कहा `आपको लड़की पसंद है तो मुझे शादी से कोई आपत्ति नहीं हैं.` फिर एक दिन एक सादे समारोह में मेरी शादी उन घड़ी वाले अंकल की बेटी के साथ हो गई. होनी को कौन टाल सकता है जो होना था वह होकर रहा. कोई भी घड़ी हमारे बीच में नहीं आई. वे ही घड़ी वाले अंकल मेरे ससुर है और उनकी स्मार्ट बेटी मेरी पत्नी है. मेरे ससुर जी ने मुझे शादी में रिस्ट वाच दी थी जिसे मैंने कुछ दिनों तक ही अपनी कलाई पर बाँधी थी. और फिर मैंने कलाई पर रिस्ट वाच बाँधना बंद कर दिया. शादी में स्मार्ट फ़ोन (पत्नी) के साथ घड़ियाल दहेज में मिला था.
आज घर में एक घड़ी नहीं कई घड़ियाँ है और बहुत सारे घड़ियाल भी है लेकिन मेरी कलाई अभी भी सूनी है. मुझे कभी भी कलाई पर घड़ी बाँधने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई. क्योंकि शादी के पहले मेरी आई सुबह जब मेरे हाथ में लंच बाक्स पकड़ा देती तो इसका अर्थ होता था कि अब मुझे बैंक के लिए निकलना है और बस स्टाप से तराना के लिए बस पकड़ना हैं. बैंक में प्रतिदिन का सारा कार्य निपटने पर जब शाखा प्रबंधक मुझे घर जाने की अनुमति देते तब मैं तराना के बस स्टेंड से उज्जैन के लिए बस पकड़ता. मेरी आई मुझे उनके अपने बचपन की बातें बताती थी. वे कहा करती थी कि जब वे छोटी थी तब यहाँ उज्जैन में एक ही घंटाघर की घड़ी थी. मिल का भोपू बजने से ही समय का पता चलता था.
शादी के बाद प्रातःकाल जब मेरे ससुर के खांसने की आवाज़ आती है तो मैं समझ जाता था की सुबह के 5 बज गये है. जब पत्नी बच्चों को स्कूल के लिए तैयार कर उन्हें बस स्टाप पर छोड़ने के लिए मेरे सामने खड़े कर देती थी तो इसका मतलब होता था घड़ी में सुबह के 7 बज गये है. पत्नी बाथरूम में पानी निकाल कर रख देती थी अर्थात 9 बज गये है नहा धोकर, नाश्ता करके तैयार हो जाए. जब पत्नी मेरे हाथ में लंच बाक्स रख देती थी इसका मतलब है साढ़े 9 बज गये है और अब मुझे बैंक के लिए निकलना है. बैंक में कार्य करते हुए यदि मेरे स्मार्ट फ़ोन की घंटी बजती थी और घर से पत्नी का काल आता था इसका अर्थ होता था शाम के सवा 5 बज गये है. पत्नी का प्रतिदिन एक ही आदेश होता था `बैंक से घर आते समय लिस्ट के अनुसार सभी सामान ले आना. मैंने लिस्ट एसएमएस कर दी है.` मेरी पत्नी मुझसे कहती थी `आप तो रोबोट हो. आप तो सीधे बैंक से घर आ जाते हो और घर से बैंक चले जाते हो. इतना भी नहीं कर सकते कि बैंक से घर आते समय कुछ फल-फ्रूट, स्वीट्स अपनी मर्ज़ी से ले आए.` और जब-जब मैं अपनी मर्ज़ी से कोई वस्तु ले आता तब-तब उसका कहना होता `क्या बेकार की फ़िज़ूलखर्ची करते रहते हो.` वैसे घर में रोबोट शब्द का प्रयोग पहली बार मैंने ही किया था. मैं अपनी पत्नी को चिढ़ाया करता था की घड़ी वाले अंकल तो रोबोट है और उनकी बेटी भी रोबोट ही हैं. घड़ी वाले अंकल अर्थात मेरे ससुर सुबह जब बीपी की टेबलेट लेते है तब आप अपनी घड़ी मिला सकते है क्योंकि उस समय ठीक 9 बजे होते हैं. दोपहर को जब वे टेबलेट लेते है तब दिन के 2 बजे होते हैं. रात को जब वे बीपी की टेबलेट लेते है तब घड़ी में ठीक 9 बजे होते हैं. मेरी धर्मपत्नी मुझे हमेशा ताने मारती रहती है की तुम हमेशा प्रतियोगिताओं में भाग तो ले लेते हो लेकिन कभी भी प्रतियोगिता में जीतते नहीं हो. मैं हमेशा एक ही बात दोहराता रहता `कि यदि मैं प्रतियोगिता जीत भी जाऊं तो क्या होगा? जीतने पर प्रमाण पत्र मिलेगा और उस प्रमाण पत्र को लेकर मैं क्याँकरूँगा. घर में प्रमाणपत्र को टाँगने के लिए जगह ही कहाँ बची हैं. घर की सारी दीवारों पर तो घड़ी वाले अंकल ने बड़े-बड़े घड़ियाल टाँग रखे हैं. हमारा घर तो घड़ियों का म्यूज़ियम बन चुका हैं.`
मेरी कलाई अभी भी सुनी है क्योंकि मुझे शादी के बाद तो कभी भी घड़ी की ज़रूरत महसूस ही नहीं हुई. घड़ी चौबीस घंटे टिक-टिक करती है और पत्नी को भी एक घड़ी का चैन नहीं हैं वह भी दिन-रात किट-किट करती रहती हैं. मेरी पत्नी उस घड़ी को कोसती है जिस घड़ी में हमारी शादी हुई थी. घड़ी वाले अंकल अर्थात मेरे ससुर, वे तो अपना घड़ियाल मेरे गले में लटकाकर बेफ़िक्र हो गये थे. मेरी पत्नी घर के दो काम बड़े शौक से करती है. एक कपड़ों की धुलाई और दूसरा कपड़ों की घड़ी. उसका बस चले तो तो कपड़ों के साथ मेरी व बच्चों की भी धुलाई करके घड़ी करके रख दे. कपड़े वो घड़ी डिटरजेंट से ही धोती हैं और कहती है कि देखो घड़ी डिटरजेंट से कपड़े कितने साफ धुलते हैं. मैं हमेशा धीमी आवाज़ में उसकी इस बात का जवाब देता `धुले हुए कपड़ों को बार-बार धोओगी तो वे तो साफ ही निकलेंगे.` वो मेरी बात सुन नहीं पाती और पूछती कि `क्या बोल रहे हो?` मैं ज़ोर से बोलता `घड़ी तो घड़ी हैं. घड़ी जैसा कोई दूसरा डिटरजेंट नहीं.` तभी पड़ोस में चौकीदार की झोपड़ी में चलते रेडियो पर फिल्म क्रांति का गाना नितिन मुकेश और लता मंगेशकर की आवाज़ में हमारे कानों पर पड़ा `ज़िंदगी की ना टूटे लड़ी प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी.`
मेरे बैंक के साथी मेरे से बहुत बार एक ही सवाल पूछते है कि तुम अपनी कलाई पर घड़ी क्यों नहीं बाँधते हो? क्या तुमको घड़ी से एलर्जी तो नहीं हैं? अब मैं उनको क्या बताता. मैं दार्शनिक बनकर हमेशा एक ही जवाब देता `कुछ लोग शौकिया तौर पर घड़ी बाँधते है तो कुछ लोग अपने प्रियजन की निशानी के रूप में बाँधते है लेकिन कुछ लोग अपटूडेट दिखने के लिए कलाई पर घड़ी बाँधते है. आजकल कोई भी अपने प्रियजनों को तोहफे में घड़ी नहीं देता है. आजकल तोहफों में स्मार्ट फ़ोन दिए जाते हैं. आपको मालूम ही है कि मुझे भी शादी में धर्मपत्नी के रूप में स्मार्ट फ़ोन ही मिला था. तो आप ही बताएं कि क्या मुझे अपनी कलाई पर घड़ी बाँधने की ज़रूरत है? मित्रों, भविष्य में घड़ियों की माँग कम होती जाएगी. स्मार्ट जमाने में हर किसी की घड़ी हो जाती है तो घड़ियों की क्या मज़ाल है. भविष्य में घड़ियाँ म्यूज़ियम की शोभा बढ़ाएगी. समय अमूल्य है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं की घड़ी भी एक दिन अमूल्य हो जाएगी.`
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दीपक गिरकर
संप्रति : भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत
उपलब्धियाँ : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक, राजनैतिक, कृषि, बैंकिंग, आर्थिक आदि विषयों पर आलेख एवं सामयिक विषयों पर व्यंग रचनाओं का निरंतर प्रकाशन
संपर्क:
दीपक गिरकर
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर- 452016
मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com
बहुत बढ़िया संस्मरण। बहुत रोचक और बहुत जीवंत। हार्दिक बधाई स्वीकारें दीपक गिरकर जी।
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