संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 48 : कब आ रहे हो // मनमोहन भाटिया

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प्रविष्टि क्र. 48 कब आ रहे हो मनमोहन भाटिया "कब आ रहे हो?" "अभी तो कुछ कह नहीं सकता।" "मेरा दिल नहीं लगता। जल्दी...

प्रविष्टि क्र. 48

कब आ रहे हो

मनमोहन भाटिया


"कब आ रहे हो?"
"अभी तो कुछ कह नहीं सकता।"
"मेरा दिल नहीं लगता। जल्दी आओ।"
"बस काम की मजबूरी है। दस दिन तो लग ही जाएंगे।"
"पंद्रह दिन तो हो ही गए हैं, अब दस दिन और। पूरा महीना हो जाएगा। मैं कुछ नहीं जानती।"
"तेरी तबीयत कैसी है?"
"सब ठीक है।"
"सही बता। तेरी आवाज कुछ ढीली लग रही है।"
"सब ठीक है, बस तुम आ जाओ।"
"आऊंगा। यहां घर तो नहीं बसाना।"
"महीना भर दूर रहोगे तब घर बसा समझो। तुम समझते नहीं, मैं सारा दिन अकेली, रात को नींद नहीं आती है। बार-बार खुल जाती है। कुछ अच्छा नहीं लगता। बस तुम आ जाओ।"
"आ रहा हूं। तू चिंता न कर।"
राकेश और रीना का वार्तालाप उनका पौत्र शौर्य तोड़ता है जब वह दादी रीना के हाथ से फोन खींच कर बात करता है। "हैलो दादू, मेरे लिये क्या लिया?"
"आपको क्या चाहिए, बताओ?"
"दादू मेरे लिये उड़ने वाला हेलीकाप्टर लाना।"
"ठीक है, जरूर लाऊंगा।"
"लो दादी से बात करो।" फोन दादी को पकड़ा कर शौर्य नाचने लगता है। "दादू मेरे लिए उड़ने वाला हेलीकाप्टर लाएंगे।"
"शौर्य की फरमाईश पूरी करनी है। उसका खिलौना जरूर लाना। बच्चों की खुशी खिलौनों में होती है। उनके लिये जितनी चीजे ले लो, उनको खुशी एक छोटे से खिलौने से मिलती है।"
"हां यह बात तो है। उनको महंगे कपड़े नहीं चाहिए, सस्ते से खिलौने से खुश हो जाते है। उसकी पसंद का खिलौना जरूर लाऊंगा।"
"बस अब जल्दी आ जाओ। किसी भी काम ने चित नहीं लगता।"
"ठीक है।"
"क्या ठीक है?"
"नाराज लग रही हो?"
"मेरी नाराजगी से किसी को कोई फर्क पड़ता है क्या?"
"मुझे पड़ता है।"
"पड़ता होता तब महीना भर मेरे से दूर रहते?"
"मजबूरी है श्रीमती जी।"
"मैं समझती हूं। ठीक है सुबह बात करते हैं। थके हुए होंगे। गुड नाईट।"
"गुड नाईट।"

लगभग बीस दिन से राकेश टूर पर है और अभी दस दिन और लग सकते है। साठ की उम्र में उसके अधिकांश साथी सरकारी नौकरी से रिटायर होकर आराम फरमा रहे है वहीं राकेश निजी क्षेत्र में अभी भी नौकरी कर रहा है। कभी सोचता था कि इस उम्र में नौकरी छोड़ कर किसी पर्वत श्रृंखला के नीचे प्रकृति की गोद मे दिल्ली की भागदौड़ से दूर सुकून से उम्र का अंतिम पड़ाव पूरा करेगा पर नियति कुछ और करवाती है। आदमी जो चाहता है अक्सर पूरा नहीं होता। कुछ ऐसा ही राकेश के साथ हुआ। पत्नी रीना की लंबी बीमारी पर, बच्चों की उच्च शिक्षा और विवाह और माता-पिता की बीमारी पर सभी जमापूंजी खर्च हो गई और कुछ उधार चढ़ गया। नौकरी राकेश की मजबूरी बन गई।

रात को दोनों की हालत एक समान होती है। रीना आधी रात जागती है, थोड़ी देर नींद आती है। करवट बदलते हाथ रखती है, राकेश नहीं है। बच्चे अपने कमरे में है।  अंधेरे में कभी  घबराहट होती है, चौंक कर उठती है, पानी पीकर लेटती है, प्रभु का समरण करते नींद की गोद में लुढ़क जाती है।

काम से सारा दिन थक कर राकेश को बिस्तर पर लेटते ही नींद आ जाती है। आधी रात दो बजे तो कभी ढाई बजे नींद खुलती है। रीना की याद आती है। करवटें बदलते हुए तो कभी उठ कर कमरे में राकेश टहलने लगता है। संगीत सुनते हुए नींद आ जाती है।

सुबह उठते फिर राकेश फोन करता है।
"तबीयत कैसी है?"
"तुम सुनाओ, दवा समय से लेते हो न।"
"बिल्कुल घबराने की जरूरत नहीं है। दवाई तो समय पर लेता हूं। तुम्हारी दवाई है न, खत्म हो गई हो तब बच्चों से मंगवा  लेना।"
"एक महीने की दवा एक साथ लेकर दे गए थे। आपको मालूम था न कि एक महीने का टूर है?"
"नराज हो?"
"यह कोई नाराज होने की उम्र है, मजाक करते हो।" रीना की आवाज में थोड़ी चुलबुलाहट थी।"
"आज कुछ खुश लगती हो?"
"बच्चे शैतान हो गए हैं। उनकी शैतानियां और मस्तियां देख कर हंसी आ जाती है।"
"शाम के समय घर आने पर दोनों बच्चे दादू दादू कहते हुए पैरों से लिपट जाते हैं तब पूरे दिन की थकान मिट जाती है।"
"हां यह तो है। इस उम्र में पोते-पोतियों के सहारे ही जीवन में खुशी आती है।"
"बच्चों का इसमें दोष नहीं देखना चाहिए। उनको भी अपने अनुसार जीवन बिताने का हक है। उनकी प्राथमिकताएं हमारे से जुदा रहेंगी। पोते-पोतियां भी सात-आठ वर्ष के बाद अपने कार्य स्वयं करते हैं और फिर हम एकदम अकेले हो जाएंगे।"
"अभी तो पोते-पोतियों की आया का काम हो रहा है।"
"नहीं, मैं इसे नौकरों वाला काम नहीं समझता, बल्कि अभिभावकों वाला काम समझता हूं। दादा-दादी के साथ जुड़ाव से पोते-पोतियों को परिवार में रहने की परवरिश मिलती है। वे छोटी उम्र में भटकते नहीं हैं। परिवार का महत्व समझते हैं।"
"दार्शनिक महोदय सुबह के समय अधिक बातें करने का समय नहीं है। बच्चों का नाश्ता बनाना है। उनके स्कूल जाने का समय हो रहा है। रात को बात करते हैं।"
रीना और राकेश की फोन पर बातचीत समाप्त होती है। रीना रसोई में बच्चों का नाश्ता बनाती है और राकेश नहाने के लिए गुसलखाने जाता है। स्नान के पश्चात राकेश डाइनिंग टेबल पर आता है। समाचारपत्र पढ़ते हुए नाश्ता करता है।

कंपनी का गेस्ट हाउस एक फ्लैट में है। फ्लैट बीसवीं मंजिल पर है। पांच कमरों के गेस्ट हाउस में आज राकेश अकेला है। उसके दो सहपाठी रात को ही दिल्ली वापिस गए थे और तीन दिन तक किसी ने नहीं आना है। गेस्ट हाउस के महाराज ने आज नाश्ते में पूरी के साथ काले चने बनाये।
"सर जी, घर से फोन आया है। बच्ची की तबीयत ठीक नहीं है। आप चार दिन की छुट्टी दे दें तब गांव जाकर अस्पताल में बच्ची को दिखा दूंगा।"
"गांव कितनी दूर है तुम्हारा?"
"बस में तीन घंटे लगते हैं। आप कहें तो अभी चला जाऊं। शाम को अस्पताल में बच्ची को दिखा दूंगा।"
"कितनी बड़ी है बच्ची?"
"चार वर्ष की है। दो दिन से बुखार नहीं उतर रहा है।"
"अस्पताल आसपास है या दूर है?"
"बस से एक घंटा लगेगा।"
"ठीक है तुम चले जाओ। ऑफिस में फोन कर दो। मेरी मंजूरी है।"
"आपको खाने की दिक्कत होगी?" महाराज ने चिंता जाहिर की।
"मेरे खाने से अधिक जरूरी तुम्हारे बच्चे का स्वास्थ्य है। उसको पहले देखो।"

नाश्ते के पश्चात महाराज गांव चला गया और राकेश ऑफिस। गेस्ट हाउस की रसोई में खाने का सभी सामान मौजूद था किंतु राकेश को रसोई ज्ञान नहीं था। चाय बनाना और टोस्ट सेंकने से अधिक कुछ नहीं आता था। सुबह का खाना ऑफिस की कैंटीन में और रात का खाना होटल या ढाबे में।

अगला दिन रविवार का छुट्टी वाला दिन था। राकेश गेस्ट हाउस में अकेला था। रीना को फोन मिलाया।
"कैसी हो?"
"तुम कहो। पोता और पोती दोनों शैतान होते जा रहे हैं। हर समय एक नई शैतानी और मस्ती में मगन रहते हैं।"
रीना की बात सुनकर राकेश को हंसी आ गई।
"इतना खुश क्यों हो रहे हो?"
"बड़े खुशनसीब होते हैं जिनके घर बच्चे किलकारी मारते हुए मस्तियां और शैतानियां करते हैं।"
"हां यह तो यह। अच्छा अब बताओ आज छुट्टी के दिन साहब जी का क्या कार्यक्रम है?"
"थोड़ा बाजार का चक्कर लगाता हूं। कुछ जेब को ढीली करता हूं।"
"साहब जी के मजे है, घूमना हो रहा है। यहां तो घर में कैद हो गई हूं। जब भी टूर पर जाते हो, दिल उदास हो जाता है। अब जल्दी आओ।"
"क्या करूं। काम की मजबूरी ने रोक रखा है, वर्ना एक महीने का लंबा टूर किसको अच्छा लगता है।"
"आपको और किसको। तभी तो साठ की उम्र में एक महीने का लंबा टूर बना लिया।"
तभी शौर्य फोन लपक लेता है। "दादू मेरा हेलीकाप्टर खरीद लिया?"
"आज मेरी छुट्टी है, आज जरूर लूंगा।"
"दादू आज आपकी छुट्टी है?
"हां शौर्य आज संडे की छुट्टी है।"
"अच्छा दादू उड़ने वाला हेलीकाप्टर लेना। ओके दादू, फोन कट कर रहा हूं।"
कह कर शौर्य ने फोन कट कर दिया। राकेश और रीना मंद-मंद मुस्कुराने लगते हैं।
राकेश ने टोस्ट पर मक्खन लगाया और जूस फ्रिज से निकला। केकरस, मक्खन वाला टोस्ट के साथ राकेश ने जूस पिया।

नाश्ते के पश्चात राकेश बाजार जाते हैं। सर्वप्रथम बच्चों के लिये खिलौनों की खरीदारी और उसके बाद रीना के लिए साड़ी, सूट, नाइटी और बेडशीट, तौलिये के साथ ढेरों सामान। दोपहर का खाना होटल में खाने के पश्चात गेस्ट हाउस में वापिसी शाम के चार बजे हुई।
थक कर चूर राकेश को नींद आ गई। छ बजे रीना के फोन से नींद खुली।
"हैलो दादू मेरा खिलौना लिया?" शौर्य ने सीधे प्रश्न पूछा।
"सबसे पहले मैंने आपके लिए हेलीकाप्टर लिया।"
"दादू वो उड़ने वाला है न?"
"बिल्कुल उड़ने वाला है।"
इतना सुन शौर्य नाचने लगा और रीना को फोन पकड़ा कर मम्मी को बताने लगा कि दादू ने उड़ने वाला हेलीकाप्टर लिया है। उसकी खुशी की सीमा का कोई अंत नहीं था।
"और क्या किया आज साहब जी ने?" रीना ने पूछा।
राकेश ने खरीदारी की पूरी सूची रीना को फोन पर सुना दी।
"इस बार तो बहुत खर्चा कर दिया?"
"सब तुम्हारा है अब इस उम्र में क्या मेरा और क्या तेरा।"
"दार्शनिक मत बनो यह बताओ कब आ रहे हो?"
"दस से बारह दिन लग ही जाएंगे। कोशिश करता हूं जल्दी आने की।"
"रात को नींद नहीं आती। याद में करवटे बदलती हूं। डर कर नींद खुल जाती है। रात काटना मुश्किल है राकेश। मेरे से दूर मत जाया करो।"
राकेश रीना का दर्द समझता था लेकिन हालात के मजबूर राकेश रीना से दूर था।

रात को लगभग साढ़े ग्यारह बजे राकेश की नींद खुली। बिजली चमक रही थी और बादल गरज रहे थे। खिड़की खोल कर देखा। बरसात शुरू हो गई थी। तेज बिजली चमकने से साथ बादल चीख रहे थे। बरसात ने तीव्र और उग्र रूप धारण किया। पल भर में तेज बरसात होने लगी। राकेश ने खिड़की बंद की। गेस्ट हाउस में अकेला राकेश बिस्तर पर लेटे हुए सोने की ख्वाहिश रख रहा था पर नींद नहीं आ रही थीं। रीना की याद सताने लगी। रीना सही कहती है कि अकेले नींद नहीं आती। विवाह को पैंतीस वर्ष हो गए। पहले पच्चीस वर्ष राकेश के कभी टूर नहीं लगे। दो-तीन वर्ष में कभी दो-चार दिन के लिए टूर लगा न लगा, एक बराबर। हमेशा साथ रहे। अब टूर लगने शुरू हुए तो छोटे-छोटे टूर लंबे होते गए। बच्चे अपने कमरे में और रात को रीना अकेली। अकेलापन काटने को दौड़ता है। रीना राकेश को याद करती रहती है सारी रात और आज राकेश रीना को याद कर रहा है। दोनों दूर लेकिन दिल पास में। उम्र के इस पड़ाव में जुदाई बर्दास्त नहीं होती। काम में व्यस्त और डूबा राकेश सब समझता है पर अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं करता। रीना व्यक्त करती है तब राकेश मुस्कुरा कर अपनी भावना व्यक्त करता है।

देर तक रात की नींद खराब हुई जिस कारण राकेश सुबह देर तक सोता रहा। नींद रीना के फोन ने खोली।
"क्या बात है, आज सुबह फोन नहीं किया?"
राकेश ने रात की घटना बताई। रीना ने मुस्कुरा कर कहा। "जनाब उम्र का तकाजा है, जल्दी आ जाओ।"
"मैं अपनी मर्जी से तो यहां बैठा नहीं हूं। काम समाप्त करके जल्दी आ जाऊंगा ताकि फिर से लंबा टूर न हो।"
"जल्दी आ जाओ।"
"हूं।"
"हूं नहीं चलेगा।"
"ठीक है।"
फोन पर बात समाप्ति के पश्चात राकेश ने खिड़की खोल कर बाहर का दृश्य देखा। रात की उग्र बरसात अभी भी हो रही थी। बाहर सड़क पर पानी एकत्रित हो गया। बरसात की उग्रता कम थी परन्तु तेज हवा के साथ अभी भी बरसात हो रही थी। नाश्ते के पश्चात राकेश ने कंपनी के ड्राइवर को फोन किया।
"मंजुल तुम आज आये नहीं, कब तक आओगे?"
"साहब जी, रात की बरसात से सड़कें पानी में डूब गई है। घुटने तक पानी है। कार नहीं आ सकती। चारों तरफ ट्रैफिक जाम है। आप गेस्ट हाउस रुकिए। गेस्ट हाउस के बाहर की सड़क भी पानी में डूबी हुई है। आप बाहर भी नहीं निकल सकते।"

राकेश ने नीचे उतर कर हालात का निरीक्षण किया। मंजुल ठीक कह रहा था। जलभराव के कारण कोई भी काम पर नहीं गया। स्कूल जाने वाले बच्चे बारिश में भीग कर पानी उछालते हुए मस्ती कर रहे थे। राकेश ने आफिस फोन किया। किसी ने फोन नहीं उठाया। बरसात ने आज छुट्टी घोषित कर दी। राकेश कमरे में टीवी पर न्यूज़ चैनल देखने लगा। पूरा नगर पानी में डूबा हुआ था। बहुत जगह बाढ़ का खतरा भी बन गया। अगले दो दिन तक तूफानी बारिश की चेतावनी के साथ लोगों को घरों के भीतर रहने की सलाह दी।

राकेश अब गेस्ट हाउस में कैद हो गया। आफिस बंद और प्रोजेक्ट स्थल पर निर्माण ठप। पूरा दिन आसमान काले बादलों से पटा रहा। नगर में जलभराव अधिक हो गया। राकेश के गेस्ट हाउस की बिल्डिंग में पानी नहीं भरा अलबता नगर के अधिकांश भाग एक दूसरे से कट गए। घुटने-घुटने पानी नगर के निचले भागों में भर गया। गेस्ट हाउस में कैद राकेश एक स्वतंत्र पक्षी की भांति उड़ कर रीना के पास जाना चाहता था परन्तु उसकी चाह पूरी न हो सकी। बोझिल वातावरण नकारात्मक सोच उत्पन्न करने लगा। राकेश के जीवन में ये पल पहली बार आये। बरसात का उग्र तेवर पहले दो-तीन बात राकेश देख चुका था। उस समय वह रीना और परिवार के साथ था। एक पिकनिक सा माहौल घर में रहता। समीप रहने वाले मित्रों और संबंधियों संग घर में ताश, कैरम के साथ चाय पकोड़ों की दावत का लुत्फ उठाया था।

आज राकेश उन पलों को याद करते हुए रुआंसा हो गया। दिल बैठा जा रहा था। कोई संग नहीं। टीवी में न्यूज़ चैनल देख कर दिमाग की उलझन बढ़ती जा रही थी। राकेश के तन मन में मायूसी छा गई। अकेलापन काटने को दौड़ने लगा।
बिगड़े मौसम का समाचार सुन रीना व्याकुल हो गई।
"कैसे हो?"
"मौसम ने कैद कर लिया। कमरे से बाहर नहीं निकल सकते।"
"तभी रोज कहती थी जल्दी आओ।"
"क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा है।"
"मेरी बात मानो, पहली फ्लाइट पकड़ कर आ जाओ।"
"फ्लाइट बंद है। रेल भी बंद है। सारे रास्ते बंद हैं।"
"जैसे फ्लाइट शुरू हो, पहली पकड़ कर आ जाओ।"
"अब तो आना ही पड़ेगा।"
राकेश ने रसोई में झांका। कच्चा सामान था लेकिन समस्या पकाने की थी। फल, नमकीन, बिस्कुट, केक और जूस पर्याप्त मात्रा में थे।
दोपहर के बाद बरसात धीरे-धीरे कम होने लगी और शाम तक रुक गई। राकेश नीचे उतरा। सोसाइटी के सामने सड़क पार एक ढाबा था। राकेश ढाबे पर अक्सर खाना खाता था। राकेश को देख कर ढाबे वाले ने कहना शुरू किया।
"साहब जी, मैंने इतना उग्र तूफान कभी नहीं देखा। पूरे नगर में जलभराव हो गया। सड़क और रेल मार्ग भी कट गए हैं।"
"ठीक कह रहे हो। कल से कमरे में कैद हूं। क्या बना रहे हो?"
"समोसे और जलेबी बना रहा हूं। बस पांच मिनट दो। अभी गर्मा गर्म परोसता हूं।"
"एक कड़क चाय भी बना देना।"
"बिल्कुल साहब जी।"
समोसे और जलेबी की खबर आग की तरह फैली। सोसाइटी से बच्चे-बूढ़े सभी ढाबे पर एकत्रित हो गए। समोसे और जलेबी के संग सोसाइटी के लोगों से बातचीत करके राकेश का मन शांत हुआ।
अगले दिन आफिस जाकर काम का जायजा लिया। दूरदराज के कर्मचारियों से संपर्क अभी भी टूटा हुआ था। प्रोजेक्ट निर्माण स्थल पर जलभराव से बहुत नुकसान हुआ। कंपनी ने काम को समाप्त करने की नई समय सीमा निर्धारित की गई। नई समय सीमा निर्धारित होने पर राकेश ने चैन की सांस ली।
हवाई यात्रा अगले दिन आरम्भ होने पर राकेश वापस घर आ गया।
"वेलकम होम।" रीना ने राकेश का मुस्कुराते हुए स्वागत किया।
"दादू मेरा हेलीकाप्टर?" शौर्य राकेश से चिपक गया।
राकेश ने शौर्य को हेलीकाप्टर दिया। शौर्य उसे उड़ाने छत पर चला गया।
"कपड़े बदल लो। चाय बनाती हूं। चाय पीकर थोड़ा आराम कर लो।
रात को राकेश और रीना ने एक दूसरे को देखा और मुस्कुराए। आज एक महीने बाद दोनों निश्चिन्त हो कर सोए।

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सेक्टर 13, रोहिणी

दिल्ली 110085

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 48 : कब आ रहे हो // मनमोहन भाटिया
संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 48 : कब आ रहे हो // मनमोहन भाटिया
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