यह चित्र पद्मावत की एक सचित्र पांडुलिपि (1750) से लिया गया है. पद्मावत को अवधी भाषा की पहली प्रमुख रचना माना जाता है. इसमें जायसी ने नायक र...
यह चित्र पद्मावत की एक सचित्र पांडुलिपि (1750) से लिया गया है. पद्मावत को अवधी भाषा की पहली प्रमुख रचना माना जाता है. इसमें जायसी ने नायक रतनसेन और नायिका पदि्मिनी की प्रेमकथा को विस्तारपूर्वक कहते हुए प्रेम की साधना का संदेश दिया है. रतनसेन ऐतिहासिक व्यक्ति है, वह चित्तौड़ का राजा है, पद्मावती उसकी वह रानी है जिसके सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर तत्कालीन सुल्तान अलाउद्दीन चिल्जी उसे प्राप्त करने के लिये चित्तौड़ पर आक्रमण करता है और यद्यपि युद्ध में विजय प्राप्त करता है तथापि पद्मावती के जल मरने के कारण उसे नहीं प्राप्त कर पाता है.
मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा लिखित ‘पद्मावत’ हिंदी काव्य की अमूल्य धरोहर है. जायसी जी प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की शिष्य परंपरा में थे और ‘पद्मावत’ का रचनाकाल अनुमानतः 1520 से 1540 ई. के मध्य है. यह एक ऐसा प्रेम आख्यान है, जो कि अवधी भाषा में लिखा गया है. इसमें सभी मानवीय भावनाओं, रस, छंद, अलंकार, ज्योतिष, सामाजिक रीति रिवाजों का विस्तार से वर्णन किया गया है.
जायसी सिंहल द्वीप का वर्णन करते हैं. सिंहल द्वीप के राजा गंधर्वसेन और रानी चंपावती की एक पुत्री पद्मावती के जन्म का उल्लेख करते हैं. राजभवन में हीरामन नाम का एक अद्भुत सुआ था, जिसे राजकुमारी पद्मावती बहुत चाहती थी. युवा होने पर पद्मावती सुआ से अपने विवाह की चर्चा करती थी. राजा को बातचीत पता लगने पर क्रुद्ध होकर सुआ को मारने की आज्ञा देता है. एक दिन सुआ उड़कर जंगल में गया, जहां बहेलिए ने उसे पकड़कर एक व्यापारी को बेच दिया. व्यापारी सुआ को लेकर चित्तौर आया. चित्तौर में उस समय राजा चित्रसेन का स्वर्गवास हो गया था और उनका पुत्र रत्नसेन अपनी पत्नी रानी नागमती के साथ भोग-विलास में रत था. व्यापारी ने सुआ राजा चित्रसेन को बेच दिया. एक दिन रानी नागमती ने सुआ से पूछा- ‘मेरे समान सुंदरी और भी कोई संसार में है?’
सुआ ने सिंहल द्वीप की पद्मनी स्त्रियों का वर्णन करते हुए उनको रानी नागमती से अधिक सुंदर बताया. रानी ने क्रोधित होकर धाय से सुआ मारने को कहा. लेकिन धाय ने सुआ को छिपा दिया. राजा के आने पर सुआ ने राजकुमारी पद्मावती की सुंदरता का मोहक वर्णन किया. राजा के हृदय में उत्कट प्रेम जागा और वह सुआ को लेकर घर से सिंहलद्वीप को निकल पड़ा. राजा के साथ सोलह हजार कुंवर भी जोगी के भेष में साथ चले. सात समंदर पार कर सिंहल द्वीप पहुंचे. राजा महादेव मंदिर में बैठकर तप और पद्मावती का ध्यान करने लगा. हीरामन सुआ ने पद्मावती से भेंट कर राजा के आगमन की सूचना दी. पद्मावती वसंत पंचमी के दिन मंदिर में पूजा करने आई तो राजा ने पद्मावती को देखा और वह मूर्छित हो गया. होश में आने पर पता चला कि पद्मावती जा चुकी है. वह बहुत पछताया और जल मरने को तैयार हो गया. देवलोक में भय उत्पन्न हुआ और शंकर-पार्वती ने वेष बदलकर राजा की परीक्षा ली. राजा के सफल होने पर उसे सिद्धि गुटिका दी. जब सिंहलद्वीप के राजा गंधर्वसेन को समाचार मिला तो उन्होंने राजा रत्नसेन को बंदी बना लिया तथा सूली पर चढ़ाने का विचार किया. यह सुनकर पद्मावती की बुरी दशा हो रही थी. महादेव, हनुमान आदि देवताओं ने राजा रत्नसेन की रक्षा की और राजा ने पद्मावती के साथ रत्नसेन का विवाह कर दिया.
इधर रानी नागमती राजा के वियोग में दुखी थी. उनके साथ पशु-पक्षी विकल हो गए. रानी नागमती ने एक पक्षी के द्वारा राजा को संदेश भेजा. राजा रत्नसेन, रानी पद्मावती तथा विदाई की संपत्ति के साथ चित्तौर लौट पड़ा. मार्ग में लक्ष्मी जी ने राजा रत्नसेन की परीक्षा ली और परीक्षा में सफल होने पर पांच पदार्थ- अमृत, हंस, राजपक्षी, शाद्रूल और पारस पत्थर दिए. चित्तौर पहुंचने पर राजा दोनों रानियों (नागमती और पद्मावती) के साथ सुखपूर्वक रमण करने लगा. नागमती से नागसेन और पद्मावती से कमलसेन दो पुत्र राजा को राजकुमार के रूप में हुए.
चित्तौर की राजसभा में राघव चेतन नाम का एक पंडित था, जिसे यक्षणी सिद्ध थी. तिथि-पर्व को लेकर राजा ने राघव चेतन को देश निकाला दे दिया. पद्मावती ने जब यह सुना तो गुणी पंडित का राज्य से जाना अच्छा नहीं लगा. दान स्वरूप उसने अपना एक अमूल्य कंगन पंडित राघव चेतन को झरोखे से फेंका. झरोखे पर पद्मावती की एक झलक देखते ही राघव चेतन बेसुध हो गया. चेत आने पर वह कंगन लेकर दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन के दरबार में पहुंचा. बादशाह को कंगन दिखाकर उसने पद्मावती के रूप का वर्णन किया. अलाउद्दीन ने अपने दूत सखा को चित्तौर भेजा और पद्मावती का डोला मांगा. राजा रत्नसेन ने दूत को भगा दिया. अलाउद्दीन ने चित्तौरगढ़ पर चढ़ाई कर दी. आठ वर्ष तक मुसलमान सेना चित्तौर का घेरा डाले रहे, पर गढ़ नहीं टूट सका. बादशाह ने छल का सहारा लिया और राजा रत्नसेन के पास संधि का प्रस्ताव भेजा और यह कहलाया कि उसे पद्मावती नहीं चाहिए. समुद्र से जो पांच अमूल्य वस्तुएं मिली हैं, उन्हें देकर संधि कर लो.
राजा ने स्वीकार कर लिया और बादशाह को चित्तौर गढ़ के भीतर ले जाकर उसका स्वागत किया. शतरंज खेलते समय एक दिन अलाउद्दीन ने पास में रखे दर्पण में पद्मावती का प्रतिबिंब देख लिया, जो झरोखे में आई थी. प्रतिबिंब देखते ही वह बेहोश हो गया.
अंत में बादषाह ने विदा मांगी. राजा गढ़ के द्वार तक उसे पहुंचाने गया तो राघव चेतन के इशारे पर मुस्लिम सेना ने राजा को पकड़कर बंदी बना लिया और बांधकर अपने साथ दिल्ली ले गया.
पद्मावती दुखित होकर गोरा और बादल के घर गई और उन शूरवीर क्षत्रियों से अपने दुख निवारण की प्रार्थना की. दोनों ने रानी को धीरज बंधाया. गोरा और बादल ने ढकी पालकियों में सोलह हजार सशस्त्र राजपूतों को बिठाया. इस प्रकार वे यह प्रसिद्ध करते हुए चले कि सोलह सौ दासियों के साथ पद्मावती दिल्ली जा रही है.
गोरा के पुत्र बादल की अवस्था बहुत कम थी. जिस दिन दिल्ली जाना था, उसी दिन उसका गौना हुआ था. नवागता
बधू ने उसे युद्ध में जाने से बहुत रोका, पर वह वीर कुमार न माना. दिल्ली पहुंचकर रानी पद्मावती ने बादशाह को सूचना दी कि वह राजा को खजाने की चाभी सौंकर हरम में आ जाएगी. रानी के रत्नसेन से मिलने पर सैनिक पालकियों से बाहर आ गए. राजा को बंदीगृह से मुक्त कर घोड़े पर बैठाकर भाग जाने को कहा. इस प्रकार राजा को बादल कैद से छुड़ा लाए.
जब बादशाह अलाउद्दीन को पता चला तब उसकी सेना ने पीछा किया. युद्ध में गोरा वीरगति को प्राप्त हुए. इस बीच राजा चित्तौर पहुंच गया. पद्मावती ने राजा को कुंभलनेर के राजा देवपाल की दुष्टता का वर्णन किया, तो राजा रत्नसेन ने कुंभलनेर पर चढ़ाई कर दी. देवपाल की सांग राजा रत्नसेन की नाभि में घुसकर पार निकल गई. राजा ने देवपाल का सिर काटकर उसके हाथ-पांव बांधे. चित्तौरगढ़ का रक्षाभार बादल को सौंपकर राजा रत्नसेन ने प्राण त्याग दिए.
राजा के पार्थव शरीर को लेकर पद्मावती और नागमती दोनों रानियां सती हो गईं. इतने में शाही सेना आ पहुंची. बादशाह ने पद्मावती के सती होने का समाचार सुना. बादल ने प्राण रहते चित्तौर की रक्षा की और वीरगति को प्राप्त हुए.
चित्तौरगढ़ पर मुसलमानों का अधिपत्य हो गया. जायसी ने महाकाव्य में इतिहास और कल्पना का मिश्रण करके ‘पद्मावत’ की अद्भुत रचना की.
सम्पर्क- 282, राजीव नगर, नगरा, झाँसी- 284003
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