राजेन्द्र कुमार के काव्य संग्रह - 'लोहा-लक्कड़' में सामाजिक संवेदनाओं का स्वरूप // धनञ्जय द्विवेदी

SHARE:

शोध-आलेख 1990 के दशक में सम्पूर्ण संसार अनेक सकारात्मक और नकारात्मक परिवर्तनों का संवाहक बना था। भारतीय समाज भी उससे अछूता न रहा। देखा जाये ...

शोध-आलेख

1990 के दशक में सम्पूर्ण संसार अनेक सकारात्मक और नकारात्मक परिवर्तनों का संवाहक बना था। भारतीय समाज भी उससे अछूता न रहा। देखा जाये तो विशेष रूप से उत्तर भारत के राजनैतिक और धार्मिक जीवन में यह समय एक तूफान लेकर आया। मण्डल कमीशन का अन्य पिछड़ें वर्गों को 7 अगस्त सन् 1990 को आरक्षण देना 24 जुलाई 1991 को उदारीकरण की नीति लागू होना तथा 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना आदि घटनाओं ने गंगा के मैदानी भाग में जो उथल-पुथल मचायी उससे हिन्दी पट्टी के नाम से पहचाना जाने वाला कोई भी नागरिक अछूता नहीं रहा । हर किसी को इस जलजले की आँच ने भस्मीभूत किया। इस आँच से तपकर सबने अपना-अपना आक्रोश व्यक्त किया चाहे वह राजनेता हो या सामाजिक कार्यकर्ता हो कवि हो या आम आदमी सबके आक्रोश के अपने ढंग थे। राजनेता अपनी राजनीति की रोटी सेंक रहे थे सामाजिक कार्यकर्ता सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे थे किन्तु कवि का आक्रोश अपने ढंग से कविता द्वारा व्यक्त हुआ। इस तरह सामाजिक बदलाव के साथ-साथ कविता भी बदली और इस बदलते परिवेश में अनेक वरिष्ठ और युवा कवियों के रचनात्मक प्रतिभा की सक्रिय भागीदारी रही खासकर कुँवर नारायण, उदय प्रकाश, विजेन्द्र, विश्वनाथ तिवारी, कुमार अम्बुज, नरेश सक्सेना, यश मालवीय, कुमार कृष्ण, अरूण कमल राजेश जोशी, शिरीष मौर्य, कुमार विकल, मंगलेश डबराल, ऋतुराज, ज्ञानेद्रपति, नरेन्द्र जैन असद जैदी, इत्यादि वरिष्ठ और युवा कवियों ने एक साथ अपना स्वर मिलाया तथा हिन्दी पाठकों में नयी संवेदना जागृत किया इन्हीं कवियों में अपनी निजता को दुनिया के औसत आदमी से जोड़कर कविता के व्यापक मानवीय संदर्भों और समस्याओं के समाधान हेतु उनके हित में इस्तेमाल करने की कोशिश वरिष्ठ कवि राजेन्द्र कुमार ने सर्वहारा वर्ग के प्रति अपनी प्रतिबद्वता को स्थापित करते हुए लोहा लक्कड़ 2017 के माध्यम से आम जन को प्रतिनिधित्व प्रदान किया है।

राजेन्द्र कुमार की आलोचना और कविता संग्रह उनकी पहचान है। आपकी कविता आपके कवि होने की नहीं अपितु आपके आदमी होने की साक्ष्य है कवि के लिए कविता लिखना महज मजबूरी नहीं बल्कि समाज के प्रति प्रतिबद्धता है। कवि समाज के सही पथ निर्देशन के लिए जरूरी और निश्चित लक्ष्य को लेकर चलते हैं। दिशाहीन होकर लक्ष्यहीन होना कवि को किसी भी दशा में स्वीकार नहीं उन्हें पता है कि स्वयं ही मार्ग भूलने वाला यात्री किसी दूसरे का मार्गदर्शन नहीं करा सकता है। आम जन का आत्मबल ऊँचा करने के लिए कवि का आत्मबली होना अत्यन्त आवश्यक है। ऐसी स्थिति में ही कवि एक निश्चित मंजिल की प्राप्ति हेतु आम आदमी की चेतना को विकसित कर सकता है। उसके सुखमय भविष्य के अनिश्चित कल्पना को निश्चित कर विश्वसनीय बना सकता है।

राजेन्द्र कुमार के संग्रह लोहा लक्कड़ के सम्यक अनुशीलन के पश्चात् यह स्पष्ट होता है कि कवि अपनी कविताओं के लिए अपने आस-पास के परिवेश सम-सामयिक घटनाओं, स्थितियों और छोटी-छोटी वस्तुओं से कच्चामाल ग्रहण किया तथा उसी को अपने अनुभव तथा श्रम द्वारा पकाकर जन समूह के सापेक्ष अपनी कविता द्वारा परोसा है। कवि का यह आनुभविक श्रम आग और पानी शीर्षक कविता में स्पष्ट परिलक्षित हुआ हैः-

‘‘आटे में व्यापता है पानी

तब उसमें रोटी का आकार

आ पाता है

फिर उसमें व्यापती है आग

तब आ पाता है रोटी का स्वाद

हाँ,

आकार के लिए पानी

स्वाद के लिए आग,1

सच है आधुनिक समाज आटे के भाँति पिसा और बिखरा है इस बिखरे-पिसे आटे में जब संवेदना और स्वाभिमान का जल मिलेगा तो एक सक्रिय संवदेनशील समाज निर्मित होगा जो अपनी अस्मिता के लिए नये सिरे से कार्य करेगा, नया परिवर्तन होगा और समाज की स्थापना नये रूप में होगी। मनुष्य-मनुष्य के लिए जियेगा उसका अपना आकार और अपना स्वरूप होगा।

राजेन्द्र कुमार की कविता उनकी रचना धर्मिता प्रयास और सार्थकता नये जीवन मूल्यों को समाज से जोड़ने का कार्य करती है यह नयी जीवन मूल्य केवल-केवल कविताई नहीं है तथा न केवल वाचिक विलाप है बल्कि उसे यथार्थ के सन्दर्भों के साथ जोड़ती है तथा समाज के विषमताओं पर सवाल खड़ी करती है एवं उसके समाधान भी प्रस्तुत करती है। कवि अपने अध्ययनाभ्यास लगन प्रतिभा तथा चिन्तन से निर्मित अपने व्यक्तित्व से सामाजिक अवस्थाओं के सुन्दर और असुन्दर सारे कार्यों को खुलकर परोसता है। तथा समाज के छिपे रहस्यों को बेबाकी से निर्भयता पूर्वक खोलता चला जाता है। कवि समाज की अस्मिता को अच्छी तरह जानता है उसे पता है कि सर्वहारा वर्ग को कितना ही दमित किया जाये वह प्रबल जिजीविषा और दृढ़ इच्छा शक्ति के माध्यम से समाज में ठोस सबूत के साथ हमेशा उपयोगी बना रहेगा। कवि की ‘लोहा लक्कड़’ कविता से यह स्पष्ट होता है-

हमें मालूम है उसकी औकात

किसी भी हाथ की उंगलियों के बीच

जब भी होगा

हद से हद होगा अँगूठी भर।

हथौड़ा भर जब भी होंगे

हम ही होंगे

लोहा लक्कड़ तो हम ही हैं न2

पूंजीवादी व्यवस्था रूपी सोने का भाव बढ़े या घटे गले का हार बने या नाक की कील बने है तो वह सौन्दर्य मात्र ही उसका विस्तार कितना भी हो जाये रहेगा हाथ की अंगूठी भर ही। जब भी हथौड़े का निर्माण करना होगा तो हथौड़े भर हम जनवादी व्यवस्था के लोग ही होंगे क्योंकि लोहा लक्कड़ तो हमीं हैं। जिस दिन हमने अपनी अस्मिता को पहचान लिया उस दिन सम्पूर्ण जनवादी व्यवस्था सौन्दर्यशील न रहकर ध्वंस हो जायेगी। कवि जानता है कि कितनी भी जनवादी व्यवस्था हो कितने भी शोषण और दमन के चक्र चलते जाये लेकिन जो सनातन सर्वहारा वर्ग की व्यवस्था है वह कभी न नष्ट होने वाली व्यवस्था है-

कोई पीसे

कहीं पिसें हम

कभी पिसें हम

खत्म न होगे

रंग पिसेगा महक बनेंगे

महक पिसेगी स्वाद बनेंगे

किसी छुअन से

अगर पीसने वाला हाथ

नाश का नियम गढ़ेगा

हम हरदम अपवाद बनेंगे3

कवि मसाले के माध्यम से जनवादी व्यवस्था को आरोपित करते हुए कहता है। कि जिस प्रकार मसाले पिसते हैं तो उसकी महक किसी न किसी रूप में बनी रहती है और जब उस महक को नष्ट करने के लिए भोजन में डाला जाता है तो वह परिवर्तित हो स्वाद बन जाती है। उसी प्रकार जनवादी व्यवस्था कभी नष्ट नहीं होती वह सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हुई किसी न किसी रूप में बनी रहती है। साथ ही साथ कवि की कभी न समाप्त होने उद्घोषणा हीनतर दृष्टि से देखे जाने वाले सामाजिक मनुष्यों को नयी जीवन शक्ति देती है। जिससे विश्वास ग्रहण कर आम आदमी भी अपने अधिकारों के प्रति सचेत होकर अपनी शक्ति को समेट लेता है।

कवि ने वर्तमान व्यवस्था के संकट को पहचाना है उसमें बहुत गहरे उतरकर वर्तमान समाज में फैली विसंगतियों के कारण को पहचानते हुए सही नब्ज पर अँगुली रखी है। अतः वे समाज में बढ़ती जन-जीवन विरोधी अपराजय सी लगने वाली ताकतों का कारण जन की चेतना को निरापद बताते हुए कहते हैं-

तिलचट्टा क्या सोचता है हमें देखकर?

हम तिलचट्टा देखते हैं

हमारी नफरत अपनी जीभ लपलपाती है

तिलचट्टा डरता नहीं

वह आदी हो चुका है-

बस लपलपाती भर है यह जीभ

हमारी नफरत की

इतनी निरापद है हमारी नफरत

इसीलिए इतनी वीभत्स भी4

समाज का शोषण करने वाले पूँजीपतियों को देखकर सर्वहारा वर्ग नफरत से जीभ लपलपाता है किन्तु वह तिलचट्टा डरता नहीं है इसे पता है कि हमारी नफरत इतनी ढुलमुल और निरापद है कि यह मात्र लपलपाती भर है इसमें इतनी आँच नहीं है जो हमें पिघला सके। कवि आगे समाज को जागृत करते हुए कहते है कि हम सर्वहारा वर्ग की ढुलमुल नफरत के कारण ही समाज की स्थिति इतनी भयावह है।

कवि का प्रतिपक्षी के प्रति दृढ़ निश्चय होकर आवाज उठाने की यह उद्घोषणा सार्थक होती है। औसत आदमी में संवेदना जगती है। उसके तेवर बदलते हैं।

अब यह जो खेत है

आखिर तो मेरे सपनों का ही है

कैसे हो जाऊँ बेपरवाह

अपने परदादा की तरह?

कैसे छोड़ दूँ उजड़ने को?5

प्रेमचन्द की कहानी पूस की रात में हल्कू साहूकारी व्यवस्था से त्रस्त होकर एक छोटी सी ऑंच से अपने खेतों को उजड़ने के लिए छोड़ देता है। परन्तु वही हल्कू का परपोता अपनी संवदेना को जागृत करके नयी संचेतना से युक्त होकर वर्तमान समय में पूंजीवाद के कारण उग आये नये साहूकारों से अपने को न केवल बचाता है अपितु अपने सपनों के खेतों को नयी फसलों के लहलहाने के लिए तैयार भी करता है।

वर्तमान समाज का औसत आदमी भी अब संवेदनशील होने लगा है। उसकी रक्त शिराओं में संचेतना दौड़ने लगी है। अब वह सूर्य और चॉद रूपी पूंजीवादी व्यवस्था के लोगों द्वारा दिये हुए आग और शीत को उसकी अनुग्रह मात्र नहीं समझता है उसे पता है कि यह जो आज के सूर्य और चाँद आग तथा शीत हमें प्रदान कर रहे हैं उसके बदले में जो मुझसे प्राप्त करेंगे इससे उनका रूप और सौन्दर्य और ही निखरेगा।

सूरज कल जब तुम उगोगे

कुछ और लाल होगे

क्योंकि मेरा लहू तुम्हारी रंगों में दौड़ रहा होगा।

चाँद कल जब तुम निकलोगे अपनी यात्रा पर

मेरी त्वचा का परस पाकर

कुछ और सुन्दर दिखोगे

कुछ और पूरे ।6

राजेन्द्र कुमार जी का मानना है कि जो कविता समाज में रहकर समाज का प्रतिनिधित्व करती है। सच्चे अर्थो में वही कविता है स्वयं कवि के शब्दों में कहते हैं कि कालजयी रचना वह होती है जो अपने समय में भी हो और फिर अपने समय का भी अतिक्रमण करे। क्या इसी तरह एक शर्त यह भी नहीं होनी चाहिए कि कविता समाज की हो लेकिन फिर समय की होकर समाज का अतिक्रमण भी करे, अपनी आंकाक्षा का समाज रचने की आकुलता भी उसमें हो, इस सूत्र में आखिरी वाले सिरे से उलटे चलकर शुरू वाले सिरे तक पहुँचे तो एक सच्चाई यह भी नजर आयेगी कि जो कविता अपने समय में रहकर समय का अतिक्रमण कर पाती है और अपने समाज में रहकर समाज का अतिक्रमण कर पाने का समय रखती है, सच्चे अर्थों में वही कविता अपने समय की होती है। और अपने समाज का प्रतिनिधित्व करती है।7 कवि की कविता समाज की है और अपने सामर्थ्य से समाज का अतिक्रमण भी करती है तथा सामान्य जन की संवेदना और संचेतना जगाते हुए उनका प्रतिनिधित्व भी करती है।

सन्दर्भ ग्रन्थ

1. राजेन्द्र कुमार, काव्य संग्रहःलोहा-लक्कड़, आग और पानी पृ0सं0-14

2. राजेन्द्र कुमार, काव्य संग्रहःलोहा-लक्कड़, लोहा-लक्कड़ पृ0सं0-11

3. राजेन्द्र कुमार, काव्य संग्रहःलोहा-लक्कड़, खत्म न होंगे पृ0सं0-31

4. राजेन्द्र कुमार, काव्य संग्रहःलोहा-लक्कड़, तिलचट्टा और हमारी नफ़रत पृ0सं0-86

5. राजेन्द्र कुमार, काव्य संग्रहःलोहा-लक्कड़, पूस की रात : नीद में बड़बड़ाता हल्कू का परपोता पृ0सं0-45-46

6. राजेन्द्र कुमार, काव्य संग्रहःलोहा-लक्कड़, सूरज और चॉद से बातचीत पृ0सं0-61

7. राजेन्द्र कुमार, कविता


संपर्क व परिचय

नाम :-धनञ्जय द्विवेदी

पिता :- श्री रामखबर द्विवेदी

माता :- कृष्णादेवी

ग्राम:- बनियांगाँ

पोस्ट:- लक्खारामपुर

तहशील:- पयागपुर

जिला :- बहराइच

पिन:- 271821

शैक्षिक योग्यता

हाइस्कूल 2006. यूपी बोर्ड

इण्टर मीडियट 2008 युपी बोर्ड

बी० ए०:- 2011 R.m.l डिग्रीकॉलेज अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद

एम०ए०:- 2013 mlk.Pg. कॉलेज बलरामपुर अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद

नेट &जे आर एफ:- 2016

शोधछात्र:- कुमांऊ विश्वविद्यालय नैनीताल

शोध निर्देशक:- कवि आलोचक प्रोफेसर शिरीष मौर्य

COMMENTS

BLOGGER: 1
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: राजेन्द्र कुमार के काव्य संग्रह - 'लोहा-लक्कड़' में सामाजिक संवेदनाओं का स्वरूप // धनञ्जय द्विवेदी
राजेन्द्र कुमार के काव्य संग्रह - 'लोहा-लक्कड़' में सामाजिक संवेदनाओं का स्वरूप // धनञ्जय द्विवेदी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUTVT4A25UJPc1PYKEDp5jsZltq9ZA5YUXkuQAOXPO1rVS9gMWS_pXJGZDpI_KjvD38Hqp6uH1qt2NLvoDHUFzAF6tWN0OyT7U48GUgh71oDFjP95-mK4UWCcPw6nGqJGnvviu/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUTVT4A25UJPc1PYKEDp5jsZltq9ZA5YUXkuQAOXPO1rVS9gMWS_pXJGZDpI_KjvD38Hqp6uH1qt2NLvoDHUFzAF6tWN0OyT7U48GUgh71oDFjP95-mK4UWCcPw6nGqJGnvviu/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_9.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_9.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content