केदारनाथ की कविता में केदारनाथ सी पवित्रता है // अखतर अली

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कवितायें वे होती हैं जो जीवन को शास्त्रीयता प्रदान करती है। कविता मानव जीवन को बेहतर से बेहतर बनाने का उपक्रम है, हम खराबी की ओर बढ़ रहे है ...

दिनेश दुबे की कलाकृति
कवितायें वे होती हैं जो जीवन को शास्त्रीयता प्रदान करती है। कविता मानव जीवन को बेहतर से बेहतर बनाने का उपक्रम है, हम खराबी की ओर बढ़ रहे है या खराबी हमारी ओर बढ़ रही है, इन दोनों परिस्थिति में कविता हमें राह दिखाती है। जो राह दिखाती है वही कविता है। अक्सर यह मान लिया जाता है कि कविता ज़ुल्मो सितम के खिलाफ हमें लड़ना सिखाती है, यह भी सही है, कविता का एक स्वरूप यह भी है,लेकिन इसके अतिरिक्त और भी ऐसे मसले है जो हमसे छूट रहे होते हैं, हमसे बिछड़ रहे होते हैं, कविता उस छूट रहे को हमसे मिलाती है, हमें जीवन का वास्तविक आनंद से वंचित नहीं होने देती। कवि होना समाज के प्रति बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी को निभाना होता है। जिस समाज में हम रहते हैं उसे रहने लायक कवि ही बनाता है। यह बाते और अधिक स्पष्ट हो जाती है जब हम केदारनाथ सिंह की कविताएं पढ़ते हैं। यह केदारनाथ जी के रचने का ही कमाल है कि उनके रचने में दृश्य रहता है और पाठक रहता है,  मैं कहना यह चाह रहा हूँ कि केदारनाथ सिंह की लेखनी का कमाल यह है कि रचना में वस्तु, दृश्य, सन्देश, मर्यादा तो मौजूद है लेकिन कवि मौजूद नहीं रहता। वह पढ़ने वाले को कवि की रचना नहीं बल्कि उसकी स्वयं की रचना लगती है। ग़ालिब के साहित्य में स्थिति इससे ठीक उलट है, ग़ालिब अपनी रचना की हर लाइन के हर शब्द में नज़र आते हैं। यह भी कहने का एक अंदाज़ था और वह भी कहने का एक अंदाज़ है।


             केदारनाथ सिंह को जब हम निरंतर पढ़ते हैं तो एक बात स्पष्ट रूप से उभर कर आती है कि इनकी रचनाओं का आकर छोटा है पर प्रभाव बहुत गहरा है। इनकी छोटी रचनाओं ने ही इन्हें बड़े कद का कवि बनाया है, बानगी देखें –


आज घर में घुसा
तो वहाँ अजब दृश्य था
सुनिये – मेरे बिस्तर ने कहा –
यह रहा मेरा इस्तीफा
मैं अपने कपास के भीतर
वापस जाना चाहता हूँ।

उधर कुर्सी और मेज का
एक संयुक्त मोर्चा था
दोनों तड़प के बोले –
जी, बहुत हो चुका
आपको सहते सहते
हमें बेतरह याद आ रहे हैं
हमारे पेड़
और उनके भीतर का वह
ज़िंदा द्रव्य
जिसकी ह्त्या कर दी है
आपने

उधर आलमारी में बंद
किताबे चिल्ला रही थी
खोल दो, हमें खोल दो
हम जाना चाहती है अपने
बांस के जंगल
और मिलना चाहती है
अपने बिच्छुओं के डंक
और सांपों के चुम्बन से

सबसे अधिक नाराज़ थी
वह शाल
जिसे अभी कुछ दिन पहले कुल्लू से खरीद लाया था
बोली – साहब
आप तो बड़े साहब निकले
मेरा दुम्बा भेड़ा मुझे कब से
पुकार रहा है
और आप है कि अपनी देह
की कैद में
लपेटे हुए है मुझे

उधर टी वी और फोन का
बुरा हाल था
जोर जोर से कुछ कह रहे थे
वे
पर उनकी भाषा
मेरी समझ से परे थी
कि तभी
नल से टपकता पानी तडपा –
अब तो हद हो गई साहब
अगर सुन सके तो सुन
लीजिये
इन बूंदों की आवाज़ –
कि अब हम
यानी आपके सारे कैदी
आदम की जेल से
मुक्त होना चाहते हैं

अब जा कहाँ रहे है –
मेरा दरवाज़ा कड़का
जब मै बाहर निकल रहा था।


             यह बेहद संवेदनशील रचना है, यह कवि के अंदर का ज्वार भाटा है, मन के भीतर चल रही उठा पटक है, कवि स्वयं को कटघरे में खड़ा कर स्वयं पर आरोप जड़ रहा है क्योंकि बकौल कवि - "सिर्फ मैं ही जानता हूँ / मेरी पीठ पर /मेरे समय के पंजों के कितने निशाँ है /...... कवि ने इस रचना में दृश्य डाला है बिम्ब हमें निकालना होगा। एक बात और कहना चाहूँगा कि कविता पढ़ने के पहले हमें कविता पढने की तमीज़ विकसित करनी होगी क्योंकि मंगलेश डबराल के अनुसार कविता में आने के बाद शब्द अपने अर्थ बदल देते हैं। फिर जब कवि केदारनाथ सिंह जैसा दक्ष कवि हो तो हमें अतिरिक्त चौकन्ना हो जाना होता है क्योंकि कवि स्वयं यह घोषणा कर रहा है कि " कथाओं से भरे इस देश में / मैं भी एक कथा हूँ / ....  तो यह रचना रच कर कवि रचना से अलग हो जाता है और इसे इसके पाठक की रचना बना देता है और चेताता है की अपने आस पास से अनभिज्ञता मत रखो , जो तुम्हारे समीप है उन्हें उपेक्षित मत करो, क्योंकि वे ही तुमसे नहीं है, कही न कही तुम भी उनसे हो। उपन्यास शब्दों में कही गई रचना है, नाटक दृश्यों में कही गई रचना है और कविता भावों में कही गई रचना है। कवि के भावों को पकड़ना ही कविता को पढ़ने की तमीज़ है।


             यह शब्दों का सौभाग्य है की वह कविता में मिश्रित होते हैं, और यह पाठकों का सौभाग्य है कि वे कविता के पाठक बनते हैं। केदारनाथ सिंह जैसे कवि हमारी सोच को धारदार बना देते हैं, हमारी समझ पर कलई कर उसे और चमकीली कर देने वाले कवि का नाम है केदारनाथ सिंह। आप उनकी रचना बांचिये, फिर उसकी गहराई में गोता लगाइये,तब तक कवि आपके लिए एक नया रचना संसार रच देगा, आप को रूपांतरित कर देगा कवि, नये पुरुष का निर्माता होता है कवि। आपको कविता के अद्भुत संसार में प्रवेश करवाता हूँ बड़े कवि की छोटी कविताओं से, जो आकार में छोटी लेकिन कद में बड़ी है –


(१)
अकेली चुप्पी
भयानक चीज़ है
जैसे हवा में गैंडे का
अकेला सींग।
पर यदि दो लोग चुप हो
पास पास बैठे हुए
तो उतनी देर
भाषा के गर्भ में
चुपचाप बनती रहती है
एक और भाषा।



(दो)
बरसो तक साथ साथ
रहने के बाद
जब वे विधिवत अलग हुए
तो सारे फैसले में
यह छोटी सी बात कही नहीं थी
कि जहां वे लौटकर जाना चाहते हैं
वह अपना अकेलापन
वे परस्पर गंवा चुके है
बरसो पहले।


(३)
जन्म मृत्यु सूचना के
उस नये दफ्तर में
पहले तय हुआ
जन्म का रजिस्टर अलग हो
मृत्यु का अलग
फिर पाया गया
यह अलगाव बिलकुल बेमानी है।


(४)
मैं जा रही हूँ – उसने कहा
जाओ – मैंने उत्तर दिया
यह जानते हुए कि जाना
हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है


(५)
सभा उठ गई
रह गए जूते
सूने हाल में दो चकित उदास
धूल भरे जूते
मुंहबाए जूते जिनका वारिस
कोई नहीं था /
चौकीदार आया
उसने देखा जूतों को
फिर वह देर तक खड़ा रहा
मुह्बाए जूतों के सामने
सोचता रहा –
कितना अजीब है
कि वक्ता  चले गए
और सारी बहस के अंत में
रह गए जूते /
उस सूने हाल में
जहां कहने को अब कुछ नहीं था
कितना कुछ,कितना कुछ
कह गए जूते।


             केदारनाथ सिंह का रचना संसार मात्र चार छह रचनाओं की दुनिया नहीं है, सैकड़ों कविताओं का यह रचनाकार कविता में मानवता को बचाये रखने के पवित्र काम में खुद को लगा रखा है। उसके इस मिशन में हमें यह समझना होगा कि कवि हम तक कितना पंहुचा है और हम कवि तक कितना पहुंचे हैं ? अगर कवितायें हमें बचा रही है तो बचने में हमें क्या करना है ? सिर्फ साँसे लेने के लिए कवि ने नहीं बचाया है, हमें कवि के मिशन को आगे बढ़ाना है, इसके लिए कविता के नये पाठक हमें जुटाने होंगे और गुमशुदा पाठकों की तलाश करनी होगी। कविता के दृश्यों को कविता में से निकालना होगा उसे जनसामान्य के बीच स्थापित करना होगा, कवि के स्वर को नुक्कड़ और चौराहों पर सुनाना होगा, अगर कवि और कविता ने हमारी दुनिया को बचाया है तो बचने के बाद हम दुनिया में कवि और कविता को बचाये यह हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है। अंत में केदारनाथ सिंह की इस कविता से मुझे अपनी बात खत्म करने की आज्ञा दी जाये –


नये दिन के साथ
एक पन्ना खुल गया कोरा
हमारे प्यार का

सुबह,
इस पर कही अपना नाम तो लिख दो।

बहुत से मनहूस पन्नों में
इसे भी कही रख दूंगा
और जब जब हवा आकर
उड़ा जायेगी अचानक बंद पन्नों को
कही भीतर
मोरपंख की तरह रक्खे हुए उस नाम को
हर बार पढ़ लूंगा।

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अखतर अली
आमानाका, कुकुर बेडा
रायपुर ( छत्तीसगढ़ )
ई मेल – akakhterspritwala@yahoo.co.in            

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: केदारनाथ की कविता में केदारनाथ सी पवित्रता है // अखतर अली
केदारनाथ की कविता में केदारनाथ सी पवित्रता है // अखतर अली
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रचनाकार
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