कवितायें वे होती हैं जो जीवन को शास्त्रीयता प्रदान करती है। कविता मानव जीवन को बेहतर से बेहतर बनाने का उपक्रम है, हम खराबी की ओर बढ़ रहे है ...
कवितायें वे होती हैं जो जीवन को शास्त्रीयता प्रदान करती है। कविता मानव जीवन को बेहतर से बेहतर बनाने का उपक्रम है, हम खराबी की ओर बढ़ रहे है या खराबी हमारी ओर बढ़ रही है, इन दोनों परिस्थिति में कविता हमें राह दिखाती है। जो राह दिखाती है वही कविता है। अक्सर यह मान लिया जाता है कि कविता ज़ुल्मो सितम के खिलाफ हमें लड़ना सिखाती है, यह भी सही है, कविता का एक स्वरूप यह भी है,लेकिन इसके अतिरिक्त और भी ऐसे मसले है जो हमसे छूट रहे होते हैं, हमसे बिछड़ रहे होते हैं, कविता उस छूट रहे को हमसे मिलाती है, हमें जीवन का वास्तविक आनंद से वंचित नहीं होने देती। कवि होना समाज के प्रति बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी को निभाना होता है। जिस समाज में हम रहते हैं उसे रहने लायक कवि ही बनाता है। यह बाते और अधिक स्पष्ट हो जाती है जब हम केदारनाथ सिंह की कविताएं पढ़ते हैं। यह केदारनाथ जी के रचने का ही कमाल है कि उनके रचने में दृश्य रहता है और पाठक रहता है, मैं कहना यह चाह रहा हूँ कि केदारनाथ सिंह की लेखनी का कमाल यह है कि रचना में वस्तु, दृश्य, सन्देश, मर्यादा तो मौजूद है लेकिन कवि मौजूद नहीं रहता। वह पढ़ने वाले को कवि की रचना नहीं बल्कि उसकी स्वयं की रचना लगती है। ग़ालिब के साहित्य में स्थिति इससे ठीक उलट है, ग़ालिब अपनी रचना की हर लाइन के हर शब्द में नज़र आते हैं। यह भी कहने का एक अंदाज़ था और वह भी कहने का एक अंदाज़ है।
केदारनाथ सिंह को जब हम निरंतर पढ़ते हैं तो एक बात स्पष्ट रूप से उभर कर आती है कि इनकी रचनाओं का आकर छोटा है पर प्रभाव बहुत गहरा है। इनकी छोटी रचनाओं ने ही इन्हें बड़े कद का कवि बनाया है, बानगी देखें –
आज घर में घुसा
तो वहाँ अजब दृश्य था
सुनिये – मेरे बिस्तर ने कहा –
यह रहा मेरा इस्तीफा
मैं अपने कपास के भीतर
वापस जाना चाहता हूँ।
उधर कुर्सी और मेज का
एक संयुक्त मोर्चा था
दोनों तड़प के बोले –
जी, बहुत हो चुका
आपको सहते सहते
हमें बेतरह याद आ रहे हैं
हमारे पेड़
और उनके भीतर का वह
ज़िंदा द्रव्य
जिसकी ह्त्या कर दी है
आपने
उधर आलमारी में बंद
किताबे चिल्ला रही थी
खोल दो, हमें खोल दो
हम जाना चाहती है अपने
बांस के जंगल
और मिलना चाहती है
अपने बिच्छुओं के डंक
और सांपों के चुम्बन से
सबसे अधिक नाराज़ थी
वह शाल
जिसे अभी कुछ दिन पहले कुल्लू से खरीद लाया था
बोली – साहब
आप तो बड़े साहब निकले
मेरा दुम्बा भेड़ा मुझे कब से
पुकार रहा है
और आप है कि अपनी देह
की कैद में
लपेटे हुए है मुझे
उधर टी वी और फोन का
बुरा हाल था
जोर जोर से कुछ कह रहे थे
वे
पर उनकी भाषा
मेरी समझ से परे थी
कि तभी
नल से टपकता पानी तडपा –
अब तो हद हो गई साहब
अगर सुन सके तो सुन
लीजिये
इन बूंदों की आवाज़ –
कि अब हम
यानी आपके सारे कैदी
आदम की जेल से
मुक्त होना चाहते हैं
अब जा कहाँ रहे है –
मेरा दरवाज़ा कड़का
जब मै बाहर निकल रहा था।
यह बेहद संवेदनशील रचना है, यह कवि के अंदर का ज्वार भाटा है, मन के भीतर चल रही उठा पटक है, कवि स्वयं को कटघरे में खड़ा कर स्वयं पर आरोप जड़ रहा है क्योंकि बकौल कवि - "सिर्फ मैं ही जानता हूँ / मेरी पीठ पर /मेरे समय के पंजों के कितने निशाँ है /...... कवि ने इस रचना में दृश्य डाला है बिम्ब हमें निकालना होगा। एक बात और कहना चाहूँगा कि कविता पढ़ने के पहले हमें कविता पढने की तमीज़ विकसित करनी होगी क्योंकि मंगलेश डबराल के अनुसार कविता में आने के बाद शब्द अपने अर्थ बदल देते हैं। फिर जब कवि केदारनाथ सिंह जैसा दक्ष कवि हो तो हमें अतिरिक्त चौकन्ना हो जाना होता है क्योंकि कवि स्वयं यह घोषणा कर रहा है कि " कथाओं से भरे इस देश में / मैं भी एक कथा हूँ / .... तो यह रचना रच कर कवि रचना से अलग हो जाता है और इसे इसके पाठक की रचना बना देता है और चेताता है की अपने आस पास से अनभिज्ञता मत रखो , जो तुम्हारे समीप है उन्हें उपेक्षित मत करो, क्योंकि वे ही तुमसे नहीं है, कही न कही तुम भी उनसे हो। उपन्यास शब्दों में कही गई रचना है, नाटक दृश्यों में कही गई रचना है और कविता भावों में कही गई रचना है। कवि के भावों को पकड़ना ही कविता को पढ़ने की तमीज़ है।
यह शब्दों का सौभाग्य है की वह कविता में मिश्रित होते हैं, और यह पाठकों का सौभाग्य है कि वे कविता के पाठक बनते हैं। केदारनाथ सिंह जैसे कवि हमारी सोच को धारदार बना देते हैं, हमारी समझ पर कलई कर उसे और चमकीली कर देने वाले कवि का नाम है केदारनाथ सिंह। आप उनकी रचना बांचिये, फिर उसकी गहराई में गोता लगाइये,तब तक कवि आपके लिए एक नया रचना संसार रच देगा, आप को रूपांतरित कर देगा कवि, नये पुरुष का निर्माता होता है कवि। आपको कविता के अद्भुत संसार में प्रवेश करवाता हूँ बड़े कवि की छोटी कविताओं से, जो आकार में छोटी लेकिन कद में बड़ी है –
(१)
अकेली चुप्पी
भयानक चीज़ है
जैसे हवा में गैंडे का
अकेला सींग।
पर यदि दो लोग चुप हो
पास पास बैठे हुए
तो उतनी देर
भाषा के गर्भ में
चुपचाप बनती रहती है
एक और भाषा।
(दो)
बरसो तक साथ साथ
रहने के बाद
जब वे विधिवत अलग हुए
तो सारे फैसले में
यह छोटी सी बात कही नहीं थी
कि जहां वे लौटकर जाना चाहते हैं
वह अपना अकेलापन
वे परस्पर गंवा चुके है
बरसो पहले।
(३)
जन्म मृत्यु सूचना के
उस नये दफ्तर में
पहले तय हुआ
जन्म का रजिस्टर अलग हो
मृत्यु का अलग
फिर पाया गया
यह अलगाव बिलकुल बेमानी है।
(४)
मैं जा रही हूँ – उसने कहा
जाओ – मैंने उत्तर दिया
यह जानते हुए कि जाना
हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है
(५)
सभा उठ गई
रह गए जूते
सूने हाल में दो चकित उदास
धूल भरे जूते
मुंहबाए जूते जिनका वारिस
कोई नहीं था /
चौकीदार आया
उसने देखा जूतों को
फिर वह देर तक खड़ा रहा
मुह्बाए जूतों के सामने
सोचता रहा –
कितना अजीब है
कि वक्ता चले गए
और सारी बहस के अंत में
रह गए जूते /
उस सूने हाल में
जहां कहने को अब कुछ नहीं था
कितना कुछ,कितना कुछ
कह गए जूते।
केदारनाथ सिंह का रचना संसार मात्र चार छह रचनाओं की दुनिया नहीं है, सैकड़ों कविताओं का यह रचनाकार कविता में मानवता को बचाये रखने के पवित्र काम में खुद को लगा रखा है। उसके इस मिशन में हमें यह समझना होगा कि कवि हम तक कितना पंहुचा है और हम कवि तक कितना पहुंचे हैं ? अगर कवितायें हमें बचा रही है तो बचने में हमें क्या करना है ? सिर्फ साँसे लेने के लिए कवि ने नहीं बचाया है, हमें कवि के मिशन को आगे बढ़ाना है, इसके लिए कविता के नये पाठक हमें जुटाने होंगे और गुमशुदा पाठकों की तलाश करनी होगी। कविता के दृश्यों को कविता में से निकालना होगा उसे जनसामान्य के बीच स्थापित करना होगा, कवि के स्वर को नुक्कड़ और चौराहों पर सुनाना होगा, अगर कवि और कविता ने हमारी दुनिया को बचाया है तो बचने के बाद हम दुनिया में कवि और कविता को बचाये यह हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है। अंत में केदारनाथ सिंह की इस कविता से मुझे अपनी बात खत्म करने की आज्ञा दी जाये –
नये दिन के साथ
एक पन्ना खुल गया कोरा
हमारे प्यार का
सुबह,
इस पर कही अपना नाम तो लिख दो।
बहुत से मनहूस पन्नों में
इसे भी कही रख दूंगा
और जब जब हवा आकर
उड़ा जायेगी अचानक बंद पन्नों को
कही भीतर
मोरपंख की तरह रक्खे हुए उस नाम को
हर बार पढ़ लूंगा।
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अखतर अली
आमानाका, कुकुर बेडा
रायपुर ( छत्तीसगढ़ )
ई मेल – akakhterspritwala@yahoo.co.in
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