सम्वहनीय विकास और गांधी जी // डॉ. सुरेन्द्र वर्मा

SHARE:

सम्वहनीय(ता) अपेक्षाकृत एक नई अवधारणा है। यह एक बहुकोणीय, बहुआयामी, जटिल संकल्पना है। अंग्रेज़ी शब्द, ‘सस्टेनेबल’ (sustainable) का यह हिन्दी ...

सम्वहनीय(ता) अपेक्षाकृत एक नई अवधारणा है। यह एक बहुकोणीय, बहुआयामी, जटिल संकल्पना है। अंग्रेज़ी शब्द, ‘सस्टेनेबल’ (sustainable) का यह हिन्दी पर्याय है। हिन्दी में इसके लिए सतत, समग्र, सम्पूर्ण, निरंतर धारणीय या संधारणीय आदि, शब्द भी प्रचलित हैं। शब्द, ‘संवहनीय’ का अधिकतर विकास के सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है। विकास ऐसा होना चाहिए कि जो धारण किया जा सके और आगे निरंतर बढ़ता रहे। ऐसे विकास को ही ‘संवहनीय-विकास’ की संज्ञा दी गई है। अक्सर विकास की उतावली में विकसित राष्ट्र अपने स्वार्थ और लोभ के आगे न तो पर्यावरण के संरक्षण की तरफ और न ही उससे होने वाले आर्थिक और सामाजिक वैषम्य पर ध्यान दे पाते हैं। इसी स्वार्थ और लोभ को जुटाने के चक्कर में कई लोगों / देशों का आर्थिक विकास तो बेशक अंधाधुंध तेज़ हुआ और उन्होंने अधिक से अधिक धन-संपदा इकट्ठा कर ली किन्तु समाज के सबसे पिछड़े लोगों पर और पर्यावरण पर इसकी चोट सबसे ज्यादह पडी। ‘संवहनीय-विकास’ आर्थिक, सामाजिक एवं भौतिक-पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने का उपाय ढूँढ़ता है और इस तरह आने वाली पीढी के लिए भी सतत विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। संवहनीय-विकास की सर्वग्राह्य परिभाषा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा गठित ब्रण्डलैंड कमीशन की रिपोर्ट ‘हमारा साझा भविष्य’ में दी गई है। इसके अनुसार –

-संवहनीय-विकास वह है, जो आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बगैर वर्तमान पीढी की आवश्यकताओं को पूरा करे-

इस मोटे उद्देश्य को लेकर जब हम विकास की बात करते हैं तो इसमें अन्य अनेक लक्ष्य स्वत: सम्मिलित हो जाते हैं जिनकी विकास की योजना बनाते समय अनदेखी नहीं की जा सकती। जैसे भुखमरी और गरीबी उन्मूलन, स्वस्थ जीवन, गुणवतापूर्ण शिक्षा, लैंगिक समानता, साफ़ जल एवं स्वच्छता का प्रबंधन, सस्ती एवं संवहनीय ऊर्जा की उपलब्धि, सर्व-समावेशी आर्थिक उन्नति, वैषम्य और असमानता का अधिक से अधिक निराकरण, गैर-ज़िम्मेदार उपभोग और उत्पादन पर अंकुश, जल, थल और वायु को अप्रदूषित रखने का संकल्प, इत्यादि।

गांधी जी के समय में विकास के सन्दर्भ में ‘संवहनीय’ शब्द अधिक प्रचलित नहीं था। किन्तु गांधी जी इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि भारत की कीमत पर इंग्लैण्ड का आर्थिक और सामाजिक विकास तो बेशक हो रहा है और कहने के लिए भारत में भी तथाकथित विकास की प्रक्रिया साम्राज्यवाद के हाथों ही, भारत में स्थापित संस्थाओं को ध्वंस कर, डाली जा रही है। किन्तु यह न तो भारत के हित में है और न ही उसे ऐसे विकास की संज्ञा दी जा सकती है जो भारत के लिए उपयुक्त और संधारणीय हो। भारत इस तरह के विकास के लिए न तो समर्थ है और न ही इसे वहन कर सकता है।


आधुनिक विकास का एक महत्वपूर्ण माध्यम मशीनों का उपयोग है। लेकिन विकास के लिए मशीनों का उपयोग कितना, कैसे और किस दृष्टि से किया जाए इसपर गांधी जी ने समुचित प्रकाश डाला है। प्राय: जैसा माना जाता है कि गांधी जी मशीनों के सख्त खिलाफ थे। किन्तु ऐसा नहीं है। वे कहते हैं कि वे भला मशीनों के विरुद्ध कैसे हो सकते हैं जबकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि यह शरीर भी तो एक बहुत नाज़ुक यंत्र ही तो है। और चरखा भी तो, जिसकी वकालत करते हुए वे कभी थकते नहीं, एक यंत्र ही है। गांधी जी को आपत्ति विकास के लिए यंत्रों के प्रति जो एक प्रकार का पागलपन दिखाई देता है, उससे है। उन्होंने नोट किया है कि आज यंत्र की बदौलत चंद लोग लाखों- लोगों की पीठ पर सवार हैं। ऐसी स्थितियों के खिलाफ गांधी जी अपनी पूरी ताकत से लड़ते की बात करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो गांधी जी यंत्र को पूंजीवाद के औज़ार के रूप में जो गरीब को बेरोजगार कर उसकी की रोटी छीनता है और आर्थिक विषमता को जन्म देता है, अभिशाप मानते हैं। उनके अनुसार शहरों में स्थापित बड़ी मशीनों और उनके अधिक उपयोग से निश्चित ही भारत जैसे देश में बेरोजगारी और भी बढ़ेगी और गाँवों से लोगों का शहर की और पलायन होने लगेगा। ज़रूरत इस बात की है कि हम गाँवों में ही बेकार बैठे लोगों को रोज़गार मुहैया कराएं और इसके लिए बड़ी मशीनों की, जो ज़रूरत से कहीं ज्यादह उत्पादन करती हैं, आवश्यकता नहीं है। गाँवों में तो केवल ऐसी मशीनों की आवश्यकता है जिसे गाँव संवहन कर सके, उन्हें आसानी से चला सके। गांधी जी ने अपने समय में यह पाया कि चरखा एक ऐसा ही यंत्र है जो घर घर कपड़ा और रोटी का इंतजाम कर सकता है और इसका उपयोग इस प्रकार मुंह-बाये खड़ी बेरोजगारी पर अंकुश लगाने में सफल हो सकता है। गांधी जी का कहना है कि मेनचेस्टर में उपयोग होने वाली मशीनरी ने भारत को दरिद्र बनाया है। ऐसी मशीनों के सम्बन्ध में गांधी जी एक भी अच्छी बात तलाश नहीं कर सके। उसकी बुराइयों पर, जैसा कि वे अपनी पुस्तक ‘हिन्द-स्वराज्य’ में वे कहते हैं, बेशक ‘ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं।’

आज की भाषा में कहें तो गांधी जी भारी मात्रा में उत्पादन करने वाली उन मशीनों के खिलाफ थे जो असहाय, गरीब और बेरोजगारों के प्रति हमारे सह-सरोकार और संवेदनाओं को खत्म करती हैं, तथा मानवीय भावनाओं को कुंठित करने में सहायक होती हैं। बड़ी बड़ी मशीनों से बने आकर्षक उत्पादों द्वारा उपभोक्ताओं को रिझाया जाता है और ये यंत्र उत्पादकों की षड्यंत्रपूर्वक स्वार्थ-सिद्धि का माध्यम बन जाते हैं। गांधी जी केवल उन मशीनों के ही हिमायती हैं जो मानवीय कोमल भावनाओं से प्रेरित होकर बनाई जाती हैं और अनावश्यक श्रम को थोड़ा आसान बनाती हैं। इसका एक उदाहरण गांधी जी के अनुसार ‘सिंगर सिलाई मशीन’ है। सिंगर महोदय ने अपनी पत्नी को बड़ी मेहनत से हाथ से सिलाई करते देखा था। रोजी रोटी के लिए सिलाई करना उसे आवश्यक था। अत: उन्होंने एक ऐसी मशीन बनाई जो सिलाई के श्रम को थोड़ा कम कर सके। सिंगर सिलाई मशीन के आविष्कार के पीछे इस प्रकार किसी तरह का लालच न होकर करुणा की वह भावना थी जो सिलाई करने वाले श्रमिक के काम को आसान कर सके न की अन्यान्य सिलाई करने वालों को बेरोज़गार बना दे।

गांधी जी ने तथाकथित आधुनिक सभ्यता को, जिसे हम आधुनिक विकास का पर्यायवाची मान बैठे हैं, हमारी सबसे बड़ी मुसीबत बताया है। ‘हिन्द-स्वराज्य’ में गांधी जी ने इस सभ्यता को ‘एक रोग’ और ‘बिगाड़ करने वाली’ सभ्यता कहा है। इस तरह का विकास उनके अनुसार ‘बिगाड़’ ही नहीं विनाश का कारण भी बन सकता है। यदि हम ध्यान से देखें तो यह स्पष्ट है कि विकास की इन योजनाओं का इन्द्रीय सुख और उपभोग की लालच भरी सुविधाओं को प्रदान कराना ही एक मात्र लक्ष्य है। इससे आर्थिक विषमता और पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ता ही चला जा रहा है। जो अंतत: मानव-जाति को ही विनाश की ओर अग्रसर किए बगैर नहीं रह सकता। ज़ाहिर है, गांधी जी ऐसे सारे विकास को निरस्त कर देना चाहते हैं। इस तरह का विकास न तो वहन किया जा सकता है और न ही वांछनीय है। आज हमें एक भिन्न प्रकार की प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है जिसे, बिना किसी विनाश के खतरे के, धारण की जा सके; जो बिना किसी भेद-भाव के समावेशित हो और जिसको बिना किसी रुकावट सतत संवहन किया जा सके।

यह एक शुभ संकेत है कि आज की राजनीति और अर्थशास्त्र भी ऐसी ही एक वैकल्पिक प्रौद्योगिकी की तलाश में जुटा हुआ है। जिस तरह आधुनिक विकास के चलते प्रर्यावरण अत्यधिक प्रदूषित होता जा रहा है तथा ओ-ज़ोन में छिद्र होने से मानव अस्तित्व के लिए संकट गहराने लगा है, साथ ही गरीबी और अमीरी के बीच की खाई दिन ब दिन बढ़ती जा रही है- इसे रोकने के लिए उपाय ढूँढे जाने लगे हैं। वस्तुत: इन्हीं कठिनाइयों को दूर करने के लिए “संवहनीय विकास” की अवधारणा सामने आई है।

जहां तक गरीब और अमीर की खाई पाटने का प्रश्न है, गांधी जी का चिंतन आज एक वैकल्पिक सुझाव देने में सफल प्रतीत होता है। यह सुझाव मुख्यत: ‘नैतिक’ है और शायद इसीलिए आज का आर्थिक विकास जो पूरी तरह नैतिक रूप से पतित हो गया है, इसे स्वीकार कर पाने में असमर्थ सा दिखता है। लेकिन हम सभी जानते हैं कि उत्पादन और बाज़ार का मुख्य लक्ष्य हमारी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। गांधी जी ने एक बार कहा था कि प्रकृति के पास हर इंसान की आवश्यकताओं (needs) की संतुष्टि के लिए सब कुछ है किन्तु हमारे लालच (greed) को वह संतुष्ट नहीं कर सकती। पर विडम्बना यह है कि आज बड़ी-बड़ी मिलें और कारखाने बजाय इसके कि बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करें वे भारी मात्रा में अपने उत्पादन को ठिकाने लगाने के लिए उपभोग की कृत्रिम मांगों को पैदा करके उनकी पूर्ती में दिलचस्पी दिखा रहे हैं ताकि उत्पादकों को अंधाधुंध लाभ दिया जा सके। साथ ही कृत्रिम मांगों की जाल में फंसा उपभोक्ता भी पूरी तरह गैर-ज़िम्मेदार होकर इस पूरी प्रक्रिया में अपना सहयोग दे रहा है। ऐसे में गांधी जी के नैतिक हस्तक्षेप को हम निरस्त नहीं कर सकते। गांधी जी का ‘अपरिग्रह’ पर बल और ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ भावना (त्यागपूर्ण भोग) का समर्थन विकास के इस अनैतिक प्रवाह को निश्चित ही रोक सकता है। गांधी जी का अपरिग्रह से आशय केवल उतना ही परिग्रह करने से है जितनी कि हमारी आवश्यकता है, लेकिन हम अपने लालच में परिग्रह करते ही चले जाते हैं जो दूसरों की आवश्यकताओं की पूर्ती में बाधक बनाता है। इसी लिए “तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ त्याग-पूर्ण भोग ज़रूरी है। भोग करते समय हमें अपने लालच को त्यागना होगा ताकि सभी सम्यग-भोग कर सकें और कोई गरीबी के कारण व्यापक अर्थ में ‘भूखा’ न रहे। गांधी जी का कहना था कि यदि अमीर लोग साधारण ढंग से रहना सीख लेंगे तो गरीब लोग भी साधारण ढंग से रह सकेंगे। वस्तुत: प्रौद्योगिकी वही श्रेष्ठ है जो सबके लिए रोज़गार के अवसर पैदा कर सके, न कि अधिकाधिक उत्पादन कर लोगों को बेरोजगार बनाए – अमीर को अमीर तथा गरीब को और गरीब बनाए।

इसी प्रकार गांधी जी का ‘ट्रस्टीशिप’ का सिद्धान्त भी, अब ऐसा प्रतीत होता है, अपनाने का वक्त आ गया है। यदि सामूहिक रूप से पूंजीपति वर्ग यह समझ-बूझ कर कि उसने जो पैसा कमाया है उसमें गरीब श्रमिकों का भी अपना योगदान है अत: ‘ह्रदय परिवर्तन’ कर उस पैसे का केवल “ट्रस्टी” के रूप में वह अपने पास रख सके तो बेहतर है, लेकिन यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो क्या (१) अपने योगदान के हित में मजदूर वर्ग अहिंसक प्रतिरोध या सत्याग्रह नहीं कर सकता ? और (२) ट्रस्टीशिप को क्या राज्य-नियमित नहीं किया जा सकता ? गांधी जी पहले विकल्प का तो समर्थन बेशक करते ही करते, हालांकि ऐसा उनके जीवन काल में हो नहीं पाया, किन्तु दूसरे विकल्प को भी स्वीकार करने में गांधी जी को कोई हिचक नहीं थी। यह नियम आखिर वृहत्तर समाज के हित में ही तो है।

यह ज़रूरी है कि आर्थिक और सामाजिक विकास के सन्दर्भ में गांधी जी के नैतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता को, इससे पहले की पानी सिर से ऊपर आ जाए, हम समझ सकें और उसे राजनैतिक स्तर पर अपनाने के लिए राज्य को बाध्य कर सकें। जब तक हम इस नैतिक आयाम को विकास में सम्मिलित नहीं का पाते हमारी “संवहनीय-विकास” की परिकल्पना मूर्त रूप नहीं ले सकती।

--डा. सुरेन्द्र वर्मा

१० एच आई जी / १,सर्कुलर रोड

इलाहाबाद – २११००१

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सम्वहनीय विकास और गांधी जी // डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
सम्वहनीय विकास और गांधी जी // डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWM-5_nPO1B7lKUCXjNgip-h5NwGGD4OsxLXCnNhqr1h_BpqjYCnqVUVIYSTuCDv3rSbrsqCSZN3sP3F7c_ZQpD8tSWaxw_rZegxziIQdaqg2jVkyxRQdhEy85moqMudRJ0tI4/?imgmax=200
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWM-5_nPO1B7lKUCXjNgip-h5NwGGD4OsxLXCnNhqr1h_BpqjYCnqVUVIYSTuCDv3rSbrsqCSZN3sP3F7c_ZQpD8tSWaxw_rZegxziIQdaqg2jVkyxRQdhEy85moqMudRJ0tI4/s72-c/?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_75.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_75.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content