सप्ताह की कविताएँ

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सुरेन्द्र अग्निहोत्री   -:पुराने रूप में लौट आने की मनुहार:- ललितपुर तुम कहां खो गये हो? जहां बजती थी घंटी की झनकार वहां गोली का प्रहा...

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सुरेन्द्र अग्निहोत्री


  -:पुराने रूप में लौट आने की मनुहार:-
ललितपुर
तुम कहां खो गये हो?
जहां बजती थी
घंटी की झनकार
वहां गोली का प्रहार!
कसम खाते थे लोग
यहां मिलता उधार
वहां होने लगा
मौत का व्यापार
अहिंसा की
प्रेम की थी पुकार
हार और
जीत की
नहीं थी कोई दरकार
प्रेम और
प्रीति की
वहती थी रस धार
नहीं चाहिए
हमें प्रगति और तकरार
बस लौट आओ तुम
पुराने रूप में एक बार
नदी शहजाद तुवन मन्दिर
क्षेत्रपाल,सदनशाह  हो गुलजार
लौट आओ
पुराने रूप में
यही हैं मनुहार।

03/02/2018
सुरेन्द्र अग्निहोत्री, ए -305, ओ.सी.आर.बिल्डिंग, विधान सभा मार्ग, लखनऊ
*ललितपुर में घर से बाहर बुलाकर एक युवक की गोली से छलनी कर मार देने की घटनाक्रम पर ।

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विन्ध्यप्रकाश मिश्र 'विप्र '


कवि हूँ प्रकृति की सुन रहा हूँ मैं ।                              ।
कुछ मन में गुन रहा हूँ मैं ।
संवेदनशीलता है मुझमें अधिक
कुछ पाने के लिए कपास सा धुन रहा हूँ मैं ।
बन जाएँ कोई नयी बात तो फिर क्या
इसी लिए नये शब्द चुन रहा हूँ मैं ।
                      कवि हूँ प्रकृति को सुन रहा हूँ मैं ।
                      पंक्तियाँ सजती रही हैं बन भाव सुंदर
                      बिम्ब बनते रहे नव रूप लेकर
                      नव मनका सा शब्द बुन रहा हूँ मैं ।
चींटी से हाथी तक है वर्ण्य विषय मेरा
शौक भी है नशा है मुझे सृजन का
चिड़ियो की चहक नदी की कल कल
महसूस कर लेता हूँ सुन रहा हूँ मैं ।
कवि हूँ शब्द बुन रहा हूँ मैं ।
    

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सुशील शर्मा


कालक्रम


काल की अनन्तता का प्रवर्तन। 
शून्य के वृत्त का सनातन आवर्तन।
वर्तमान की चेतना से काल का आरम्भ।   
प्रसूत अद्यतन क्षण का प्रारम्भ ।
प्रवाहित है अतीत की ओर।  
साथ ही बहता है भविष्य का शोर।
दोनों ओर समगतित्व।
नैरन्तर्य पुनरागमित अमरत्व।
नटराज की काल-डमरु’ मध्य।
ब्रम्ह्नाद अघोष से आबद्ध।
अतीत और भविष्य का मान 
प्रवाहित है साध्य वर्तमान ।
काल का वृत्त निरपेक्ष चिर प्रवाही।
अतीत से अनुगामित अनुप्रवाही।
कालजित भविष्य को समेटे ।
चिरन्तर वर्तमान में स्वयं को लपेटे।
जीवन संयुक्त अथवा जीवनमुक्त। 
सनातन  नित्य एवं विविक्त। 
निरवधि, प्रवहमान प्रत्यावर्ती पुरातन कर्म ।
अविखंडनीय कालाणुओं का सनातन धर्म ।
---.

हे बापू तुम फिर आ जाते


हे बापू तुम फिर आ जाते
कुछ कह जाते कुछ सुन जाते

साबरमती आज उदास है।
तेरा चरखा किस के पास है?
झूठ यहाँ सिरमौर बना है।
सत्य यहाँ आरक्त सना है।
राजनीति की कुटिल कुचालें।
जीवन को दूभर कर डालें।
अंदर पीड़ा बहुत गहन है।
मन को आकर तुम सहलाते।
हे बापू तुम फिर आ जाते।
कुछ कह जाते कुछ सुन जाते।


सर्वधर्म समभाव मिट रहा।
समरसता का भाव घट रहा।
दलितों का उद्धार कहाँ है।
जीवन का विस्तार कहाँ है।
जो सपने देखे थे तुमने।
उनको पल में तोड़ा सबने।
युवाओं से भरे देश में
बेकारी कुछ कम कर जाते।
हे बापू तुम फिर आ जाते।
कुछ कह जाते कुछ सुन जाते।


स्वप्न तुम्हारे टूटे ऐसे।
बिखरे मोती लड़ियों जैसे।
सहमा सिसका आज सबेरा।
मानस में है गहन अँधेरा।
भेदभाव की गहरी खाई।
जान का दुश्मन बना है भाई।
तिमिर घोर की अर्ध निशा में।
अन्धकार में ज्योति जगाते।
हे बापू तुम फिर आ जाते।
कुछ कह जाते कुछ सुन जाते।

स्वतंत्रता तुमने दिलवाई।
अंग्रेजों से लड़ी लड़ाई।
लेकिन अब अंग्रेजी के बेटे।
संसद की सीटों पर लेटे।
इनसे हमको कौन बचाये।
रस्ता हमको कौन सुझाये।
जीवन के इस कठिन मोड़ पर।
पीड़ा को कुछ कम कर जाते।
  हे बापू तुम फिर आ जाते।
कुछ कह जाते कुछ सुन जाते।

कमरों में है बंद अहिंसा।
धर्म के नाम पर छिड़ी है हिंसा।
त्याग आस्था सड़क पड़े हैं।
ईमानों में पैबंद जड़े हैं।
वोटों पर आरक्षण भारी।
गुंडों को संरक्षण जारी।
देख देश की रोनी सूरत।
दो आंसू तुम भी ढलकाते।
  हे बापू तुम फिर आ जाते।
कुछ कह जाते कुछ सुन जाते।
--
दोहा बन गए दीप -15
मंचीय कविता


मंचों की कविता बनी ,कम वस्त्रों में नार।
नटनी नचनी बन गयी ,कुंद हो गई धार।

नौसिखिये सब बन गए ,मंचों के सरदार।
कुछ जोकर से लग रहे ,कुछ हैं लम्बरदार।

पेशेवर कविता बनी ,कवि है मुक्केबाज।
मंचों पर अब दिख रहा ,सर्कस का आगाज।

मंचों पर सजते सदा ,व्यंग हास परिहास।
बेहूदे से चुटकुले ,श्रंगारिक रस खास।

भाषाई गुंजन बना ,द्विअर्थी संवाद।
श्रोता सीटी मारते ,कवि नाचे उन्माद।

कुछ वीरों पर पढ़ रहे ,कुछ अश्लीली राग।
कुछ अपनी ही फांकते ,कुछ के राग विराग।

संस्कार अब मंच के ,फ़िल्मी धुन के संग।
कविता शुचिता छोड़ कर ,रंगी हुई बदरंग।

मंचों से अब खो गया ,कविता का भूगोल।
शब्दों के लाले पड़े ,अर्थ हुए बेडौल।

अर्थहीन कवि  हो गए ,कविता अर्थातीत।
भाव ह्रदय के खो गए ,पैसों के मनमीत।
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योगेश किनकर


नन्हीं हसरत
दिल की उमंगों को परवान चढ़ने दो, 
इनकी नन्हीं हसरतों को नई राह चुनने दो।
ढेरों इच्छायें दबी है इन मासूम दिलों में,
मत रोको इन्हें नये-नये ख्वाब बुनने दो।
मत लादों उम्मीदों का बोझ अभी से,
नन्हीं कोंपलें है अभी पौधा तो बनने दो।
क्यों छीनना चाहते हों मासूमियत अभी से,
बचपन की शरारतों को शरारत ही रहने दो।
यॅू ही हॅसी खनकती रहें इनके होठों पर,
आजाद पंछी की तरह इन्हें आसमान को छूने दो।।


सारनी जिला-बैतूल (म.प्र.)
e-mail – ykinkar1987@gmail.com

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विन्ध्यप्रकाश मिश्र


आयी बसंत की होली
           मीठी लगती है बोली
रंग सराबोर है वन मे
           लाल सुनहरी पीली
फाग का रंग चढा है
         सब निकल पडी है टोली
प्रिय प्रियतम को रंग डाले
        सब भीज गयी है चोली
फागुन के गीत सुनाए
          मीठी लगती है बोली
कोई गुझिया पूडी खाये
          कोई भंग सो रंग जमाए
कोई पकड के रंग लगाए
       कोई करता हंसी ठिठोली
अबीर गुलाल लगे है
          सुन्दर लगती है टोली
ढोल के थाप लगे है
           सब रंग खेले हमजोली
भूल गये सब शिकवे
            खुशियां लाती है होली
रंग उडे नभ तक है
        उड रही अबीर और रोली
होली की शुभकामनाएं

            प्रवक्ता सरयूइंद्रा संग्रामगढ
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कुमार अखिलेश


“गुमनाम शहीदों को, श्रद्धा नमन हमारा है”

आजादी को भारत ने कितने बलिदान दिये होंगे
कुछ लिखें गए इतिहास में लेकिन कुछ गुमनाम रहें होंगे
जो प्राण गवाँ निज वसुंधरा पर, बने वीर बलिदानी थे
इतिहास के पन्नों पर उनके, कुछ तो अधिकार रहें होंगे
सजल भाव से जिन वीरों को, भारत ने सदा पुकारा है
उन गुमनाम शहीदों को, श्रद्धा नमन हमारा है।

निज सुख साधन सब छोड़ चले, भारत को प्रबल बनाने को
प्रत्याशा के दीप जला, अँधियारा सकल मिटाने को
वो पागल कुछ दीवाने थे, सर पर कफ़न संभाले थे
बाँध कफन वो थाम चले, भारत के विकल जमाने को
प्रत्याशा के दीप जला, अँधियारा सकल मिटाने को
जो कर्तव्यों को तत्पर थे, भारत को सकल सँवारा है
उन गुमनाम शहीदों को, श्रद्धा नमन हमारा है।

अमिट छाप जो छोड़ गये, स्मृति की दीवारों पर
स्वेद नहीं शोणित हैं उनका, भारत के श्रृंगारों पर
बलिदान हुए गुमनाम रहें, ये कैसे परिणाम रहें
इल्जाम रहा इल्जाम रहेगा, इतिहास के पहरेदारों पर
स्वेद नहीं शोणित हैं उनका, भारत के श्रृंगारों पर
इतिहास भले ही भूल गया, पर भारत ऋणी ये सारा है
उन गुमनाम शहीदों को, श्रद्धा नमन हमारा है।


देहरादून (उत्तराखण्ड)
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हर्षित भावसार

(1.) माता पिता


एक प्रश्न का उत्तर ढूंढने में चला,
माँ बाप की सेवा क्या है,
कल आयी पत्नी के पीछे वो चला,
भूल गया माता पिता का प्यार क्या है।

अनादि अनंत सालों का उत्तर यही मिला,
पूछ प्यारे उससे जिसको माता पिता का प्यार न मिला,
पत्नी तो कल की आयी परायी थी,
क्या माता पिता ने तेरी हर ख्वाहिश इसीलिए पूरी कराई थी।

वापस नहीं मिल पायेगा तुझे माता पिता का साथ,
फिर बिताना झगड़ों वाला जीवन अपनी पत्नी के साथ,
माता पिता को घर से निकालना महाअपराध है,
किसी और के कहने पर माता पिता का साथ छोड़ना महापाप है।

भगवान गणेश ने भी माता पिता को संसार माना,
जीवन में माँ पिता का प्यार न मिला तो तूने कुछ न पाया,
तुझे क्या पता क्या होता है,
जब हट जाता है माता पिता का साया।

प्रश्न में यह पूछता हूं उत्तर तू ढूंढ,
जिन्होंने तुझे पाला उन्हें घर से क्यों निकाला?
माता पिता के प्यार की वो सुगंध तू सूंघ,

जिसने तेरा बोझ सम्भाला
अब वो तेरे लिए बोझ बन चला,
इतना बड़ा हो गया तू,
अपने ही घर से अपने संसार को निकालने चला।

बुरे वक़्त में हर कोई साथ छोड़ जाएगा,
पिता का हाथ ही तुझे उस गड्ढे से निकालेगा,
जब तू भूखा मरा जा रहा होगा,
माँ का हाथ जलकर तेरे लिए खाना बना रहा होगा।

जिसने तुझे अपनी गोदी में सुलाया,
जिसने तुझे अपने कंधों पर सारा शहर घुमाया,
आज तूने उसी को अपने घर से भगाया,
क्यों संसार के पीछे पड़ा जब सारा संसार माता पिता में ही समाया।

वो कश्ती ही क्या जो नहर पार न करा सके,
वो बेटा ही क्या जो माता पिता की सेवा न कर सके,
वो पतवार ही क्या जो नाव न चला सके,
वो औलाद ही क्या जो माता पिता को खिला न सके।

मेरा एक ही निवेदन है इस कविता के माध्यम से,
बूढ़े माता पिता को न निकालो अपने घर से,
सारा संसार बसा उन्हीं में,साक्षात् देवता विराजे है उनमें,
सारी खुशियां बसी है उनमें,सारा प्यार भरा है उनमें।

अपने माता पिता की तुम पूजा करो,
उनका हमेशा आदर सम्मान करो,
ऊँचा नाम उनका तुम करो,
उनकी सेवा हर वक़्त तुम करो।

धर्म हमारा यही है कहता,
सारा संसार उन्हीं में है बसता,
बड़े आदमी बन उनको न भूल जाना,
अपने नाम के साथ उनका नाम भी तुम लगाना।

प्रश्न मेरा एक ही है उत्तर तुम ढूंढो,
माता पिता की ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है,
हमें खुशियां देने उन्होंने अपनी खुशियां त्यागी,
उन्हें हमेशा खुश रखो यह बात तुम समझो।

निवेदन है मेरा उन्हें न घर से निकालो,
बहुत कुछ सहा उन्होंने तुम्हें खुशियां देने,
यह बात तुम समझो,यह बात तुम समझो।

कलम मेरी न रुक रही है,
स्याही न कलम की सूख रही है,
माता पिता के प्रेम के आगे,
कलम स्याही भी झुक रही है।


(2.) वीर सैनिक


।।वीर जवानों का मैं सम्मान करता हूँ,
उन गद्दार दुश्मनों के मुँह पर तमाचा मैं जड़ता हूँ।।


जान जोखिम में डालकर,भिड़े वो दुश्मनों से,
सीने पर गोलियां खाते,ऐसे वीर कुर्बान देश के लिए,
भारत माता की पूजा करते वो अपने रक्त से,
खुशियां,परिवार त्यागते अपने देशवासियों के लिए।

रक्त की जंजीरों को तोड़ वे सीना तान चले,
सैनिकों के हित में जो बात करे वो इंसान भले,
कभी न आंच आने देते देश पर ऐसे वीर महान,
वीर शहीदों को देता सम्मान यह पूरा जहाँ।

वीर शहीदों के सम्मान में,उतरा हर कोई मैदान में,
इन वीरों सा साहसी बलवान न है कोई इस जहाँ में,
देश पर मर मिट जाने इनका जज्बा देखो,
सीमा पर दुश्मनों से लड़ते इनका साहस देखो।

हे वे वीर महान, जो इस देश के लिए हुए कुर्बान,
इनकी शहादत की तारीफों में कभी नहीं थमती यह जुबान,
हम अपनी खुशियों में नाच रहे होते है,जश्न मना रहे होते हैं,
वे वहां अक्सर दुश्मनों से लोहा लेते गोलियां खा रहे होते हैं।

वे न बिगड़ने देते इस देश की फिजां को,
हर वक़्त तत्पर रहते इस देश की सुरक्षा में,
वे न बिगड़ने देते हमारे देश के त्योहारों को,
वे घर न जाते कहते,पहले त्यौहार मनाने दो लोगों को।

देशभक्ति का ऐसा जज्बा,घर परिवार सब भूल गए,
इतना देश की सुरक्षा में खो गए की खुद की बारात भूल गए,
देशभक्ति सीखना हो तो सीखो इन वीरों से,
शहादत का बदला लेना है हमें उन गद्दारों से।

भूल जाते है हम उनके बलिदान को,
जो देश के लिए भूल जाते अपने परिवार को,
कवि हूँ इसीलिए लिख कर देता हूँ,
शहीदों को मैं नमन करता हूँ,सम्मान मैं देता हूँ।

सबसे निवेदन है सम्मान दो वीरों को,
वीर हमारे काट कर लाओ दुश्मनों के सिरों को,
नमन करता हूँ ऐसे शूरवीरों को,
कभी आंच न आने देना भारत की धरती को।

घर परिवार सब छोड़ वे सीमा पर चले,
दुश्मनों के सामने सीना तान वे चले,
गर्व से कहे हम भारतीय है,
न धर्म न कोई मजहब हमारा,
कहते हम तो भारतीय देशभक्त है।

।।वीर सैनिक देशभक्तों सलाम मैं करता हूँ,
                 गद्दारों के मुँह पर तमाचा मैं जड़ता हूँ....।।


......शहीद वीर सैनिकों को मेरा नमन


      

(3.) संघर्ष

जीवन में संघर्ष इस कदर करो,
अपना सपना पूरा करके मरो।
जीवन को संघर्ष बना लो,
संघर्ष को ही जीवन बना लो ।1।

विद्यार्थी हो तो विद्या ऐसी प्राप्त करो,
बुद्धि,बल,मेहनत से सब का विकास करो।
संघर्ष,बुद्धि,परिश्रम से ज्ञान बढ़ाओ,
लेकिन आलस्य से समय न गंवाओ ।2।

कवि,साहित्यकार हो तो कुछ ऐसा लिखो,
हर तरफ हवा के झोंके से शब्दों के बाण चलाओ।
संघर्ष का दिया ऐसा जलाओ,
न तुम बूझो न किसी और को बुझाओ ।3।

नेता हो तो कुछ ऐसा करके दिखलाओ,
आम आदमी को कभी न सताओ।
किसानों को उचित मूल्य दिलाओ,
भ्रष्टाचारियों को सबक तुम सिखलाओ ।4।

शिक्षक हो तो ऐसी शिक्षा दो,
अज्ञान का पर्दा हर किसी के मन से हटा दो,
कर्म अच्छे करने की सीख दो,
अच्छी सोच तुम इनकी बना दो ।5।

व्यापारी हो तो व्यापार ऐसा करो,
ईमानदारी का दिया कभी न बुझने दिया करो।
धन को लक्ष्मी बनाओ,
धन को दलाली न बनाओ ।6।

जीवन को संघर्ष बना दो,
संघर्ष को ही अपना जीवन बना लो,
मेहनत करो ईमानदारी से,
भरोसे मत रहो हाथों की लकीरों पे ।7।

संघर्ष का दिया इस कदर जलाओ,
आलस्य से इसे न बुझाओ न बुझने दो,
मेहनत का तेल डालकर इसे और चमकाओ,
आलस्य को अपने जीवन पर हावी न होने दो ।8।

।।जीवन को संघर्ष बना लो....
.......संघर्ष को जीवन बना लो।।



(4.) जातिवाद


क्या हो गया यह आलम,
जातिवाद का यह कैसा जालम,
क्यों यह दुनिया आरक्षण के पीछे पड़ी,
जातिवाद के कचरे में ये दुनिया सड़ी।

जातिवाद में ये सभ्यता फ़ँसी,
आरक्षण की खाई में एकता की गाडी जा धंसी,
राजनितिक पार्टियां दे रही जातिवाद को बढ़ावा,
हमारे वोटों का ये कैसा चढ़ावा।

बन्द करो ये आरक्षण का रोना,
जाकर गंगा नदी में अपने पाप धोना,
आरक्षण आंदोलन की भरमार,
नेता की बोलियां भी बेशुमार।

विकास का मुद्दा छोड़,
सब जातिवाद में लगे,
वोटों को मांगने की होड़,
आरक्षण पर जा पड़े।

देश है हमारा अखण्डता वाला,
जातियां विभिन्न,इंसानियत का एक मतवाला,
झांक कर देखिये बाहर का नजारा,
जातिवाद की असलियत का माजरा।

मुद्दा एक ही है नेताओं का,
जातिवाद पर मांगो वोट,
बढ़ाओ मुद्दा आरक्षण का,
चुनाव बाद खूब कमाएंगे नोट।

होना चाहिए एक ही नारा,
जातिवाद को जड़ से मिटा,
अखंडता का बीज के डंका,
ढहा दो भेदभाव की लंका।

एक ही नारा एक ही नारा,
महान बने भारत हमारा,
क्या अपना क्या तुम्हारा,
एकता जीवन का एक ही सहारा।

जातिवाद को जड़ से मिटा दो,
भारत की एकता को अखंड बना दो,
न जातिवाद का रोना,न आरक्षण की भूख,
हर भारतवासी भोगे अपने जीवन सुख।

जय हिंद जय भारत
जय श्री महाकाल


(5.) जीवन चक्र

जीवन चक्र हो हमारा इतना अनूठा,
कोई न हो हमसे रूठा।
करते रहे हम भगवान की आराधना,
कर्म ऐसे करे की पुण्य दे परमात्मा।1।

सोच हो हमारी इतनी अच्छी,
उड़ते जैसे हवा में स्वतंत्र पंछी।
अतीत हो अपना इतना प्यारा,
हो न अपना कोई पराया।2।

जिए हम इस प्रकार,
कभी न करे हम अहंकार।
नाम अपना ऐसा हो,
कोई न अपने जैसा हो।3।

हुनर अपना तरह दिखलाये,
हर किसी को कोई पाठ सिखलाये।
कर्म अच्छे करके दिखलाये,
अपना जीवन सफल बनायें।4।

खुद बनाये अपनी इसी नीत,
हर परीक्षा में हो सिर्फ अपनी जीत।
लक्ष्य हो अपने जीवन का एक,
भला हो हर किसी का,कर्म करे हम नेक।5।

जीवन चक्र हो ऐसा अनूठा,
कोई न रहे हमसे रूठा।
प्यार हमारा ऐसा बरसे,
पाने को अंग-अंग तरसे।6।

हर पल देखे एक ही सपना,
हमेशा हो हम सफल।
मेहनत ऐसी करे,
हर सपना हो पूरा अपना।7।


जीवन चक्र हो हमारा इतना अनूठा,
कोई न रहे हमसे रूठा.....

✍हर्षित भावसार✍

ई मेल :- harshitbhawsar721@gmail.com


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नवनीता कुमारी


घर और मकान में कितना अंतर होता है,
जितना जमीं और आसमान में अंतर होता है!
मकान तो बना लेते हैं सभी,
पर खुशियों का घर बनाना आसान नहीं होता,
लिखने को तो कोई किताब लिख दे,
पर इतिहास लिख देना आसान नहीं होता है!
दंभ है दुनिया में न जाने कितना,
पर हर रंज को भुलाकर अपना लेना आसान नहीं होता है!
टूटते हैं रिश्ते धागों की तरह,
पर टूटे धागों को बिन गांठ के जोड़ पाना आसान नहीं होता!
वो घर होता है स्वर्ग से सुंदर जिसमें खुशियों के रिश्ते पलते हैं,
पर जिस घर की नींव में दीमक लग जाए तो
उस घर की नींव को बचा पाना आसान नहीं होता है!
गर मकान घर में  बदल जाए तो बड़ा सुख देता है,
पर गर घर मकान में बदल जाए तो हर खुशियाँ छीन लेता है!!
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बातें, हंसाती भी है ये बातें,
तो कभी रुलाती भी है ये बातें,
तो कभी नासूर बन चुभ सी जाती है ये बातें!
कभी इतिहास रचाती है ये बातें,
तो कभी इतिहास बनकर रह जाती है ये बातें, 
जीवन में रौशनी लाती है ये बातें,
तो कभी जीवन को अंधकारमय बनाती है ये बातें,
आँखों में आँसू  कुछ बातों से है,
जीवन में संगीत कुछ बातों से ही है,
दुनिया में अजीबो-गरीब रीत कुछ बातों से ही है!
दुनिया में सम्मान कुछ बातें ही दिलाती है ,
अपमान की वजह भी कुछ बातें ही है!
अहसास भी दिलाती है कुछ बातें,
हर दर्द भुलाती हैं ये बातें,
अहम् का कारण भी हैं कुछ बातें,
तो सहज और सरलता का कारण भी हैं कुछ बातें!
याद भी आती है कुछ बातें,
तो कभी याद बनकर रह जाती है बातें!!
बचपन का हौसला   हैं कुछ बातें,
अनजान हैं बातें , नादान हैं बातें!
अहसान हैं बातें, कद्रदान हैं बातें,
चाहे जो कुछ भी हो हमारी शान
और हमारी पहचान हैं हमारी  बातें!!

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अक्षय आज़ाद भंडारी


 
भारत को स्वच्छ बनावें,सुख शांति का फल पावें।
घर पर गन्दगी नहीं होना। रोज आप गन्दगी भगाना।

स्वच्छ भारत का नाम जपे कोई।
  गन्दगी से मिले छुटकारा।
 
रोज पास गन्दगी होवे।
राक्षस प्रजाति के मच्छर होवे,
मच्छर से रोग फैले।

जो करे घर को स्वच्छ तो मच्छर से निश्चित मुक्ति होना।
घर पर कचरे का दान कचरा पात्र में करना ।

हर कदम जब घर स्वच्छ होना ।
सुख समृद्धि ओर संपत्ति अपर होना।

रोज तुम सवेरे उठना सदा यही संकल्प जपना।
जो स्वच्छता फैलाए । उसका जीवन सुखमय होना।

जय जय भारत,जय संकल्प भारत, करो स्वच्छ भारत।


राजगढ़ जिला धार मध्यप्रदेश।

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: सप्ताह की कविताएँ
सप्ताह की कविताएँ
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