आत्माराम यादव पीव की कविताएँ

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मुझको हँसना आता नहीं है मुझको हँसना आता नहीं है दुख में बीता सारा बचपन, जीवन मुझको भाता नहीं है। मुझको हँसना-- - - - छिछलेपन पर हँसने मे...


मुझको हँसना आता नहीं है


मुझको हँसना आता नहीं है
दुख में बीता सारा बचपन,
जीवन मुझको भाता नहीं है। मुझको हँसना-- - - -
छिछलेपन पर हँसने में तुम माहिर
भरमाकर काम निकालने में जगजाहिर
अपना लूं तुम सा व्यवहार भाता नहीं हैं। मुझको हँसना- - - -
जब भी जीवन में सुख की बूंदें आयी
तुमने गहरे तक उनको सोख लिया
सुख की राहे बंद हो मिथक नया ईजाद किया
पक्‍के धुनी हो अलमस्‍त,ये राग गाना आता नहीं है। मुझको हँसना - - -
दुख सहने का आदी हूँ
मैं कमजोर नहीं पड़ता हूँ
पीव खुशी से दुख को गले लगाकर
मैं हरदम अपने पथ पर आगे बढ़ता हूँ
स्‍वप्‍न संभालो सुनहले अपने, मुझको जीना आता  है।
मुझको हँसना आता नहीं है।


गीत-

नर्मदा मैय्‍या तू हौले हौले बहना


नर्मदा मैय्या तू हौले हौले बहना
हौले हौले बहती संग बासंती हवाएं
करती नहीं शोर हो नर्मदा मैय्या ;;;. हौले हौले  बहना
गुपचुप रहती यहाँ रात की रुनझुन
बाज रही जैसे माँ तेरे पायल की छमछम
कब आ जाती भोर गुपचुप ;;..ओ नर्मदा मैय्या  हौले हौले बहना
धीमे धीमे ओ माँ, तू जब अपने नयन खोले
ऊषा सलोनी मुख पर तेरे, लालिमा अपनी ढोले
हो जाता स्वर्णिम श्रृंगार, माँ तेरा धीरे धीरे ...ओ नर्मदा मैय्या ...
तेरे तट पर तेरी शरण में,  भक्त खड़े जयकार करे
जीवन पथ पर धूनी रमाये. साधु संत तेरा गुणगान करे
लेकर सबको अपनी शरण में ,पार लगाना माँ धीरे धीरे ...ओ नर्मदा मैय्या
उनींद से जागे लोग. तेरे जल में करते है स्नान
तू भरदे उनकी झोली, आस लिए वे करते खूब दान
एक नजर से सबको निहारे,नजरे तेरी अनमोल ....ओ नर्मदा मैय्या ...
धीमे धीमे पैदल करते परिक्रमा माँ तेरी
पीव लम्बा दुर्गम मार्ग सरल हो,कृपा होती तेरी
परिक्रमा तेरी हो जाये पूर्ण धीरे धीरे ....ओ नर्मदा मैय्या हौले हौले बहना



मन परमात्‍मा बनने को राजी नहीं?


जब तक यह नश्वर शरीर
इस धरती पर सांसे लेता है
तब तक एक-एक सांस के लिए
यह देह माटी की कर्जदार है .
शरीर में निवास करता यह हृदय
ईश्वर के अदृश्य अप्राप्त शरीर की कृपा
और वासनाओं में लबरेज
अपार संपदा और सुंदरतम नारी की कामना करता है –
ईश्वर के चरणों में भावरुपी पुष्प-सामग्री
आधे अधूरे से मन से अर्पित कर
यह शरीर शेष मन से
नारी के क़दमों में प्रेमाश्रय की याचना करता है
उधार ली वासी प्रार्थनायें दोहराते हुए
उसकी आँखों में नहीं उमड़ते आंसू
और न ही प्रभु के चरणों को भिगो पाते है
माटी के तन में मनुष्यता को खोजता
और तन से तन को प्यार करता ये आदमी
मृत्यु तक नवजीवन को संवारता है .
क्यों भूल जाता है मौत को यह आदमी?
कि मौत के आते ही उसका सारा अस्तित्व
इस माटी में मिल जाना है
तो क्यों न मौत के आने से पहले जीवन में
उस परा तत्व को खोज लेना जरुरी हो
इस जगत में जो कुछ होता है
वह होकर भी न हुआ होता है
दुनिया जहां है वहीँ होती है
यदि बदलता है तो जन्म के बाद
आदमी के शरीर से होकर बचपन, जवानी और बुढ़ापा
समय के अतिथि बनकर गुजर जाते है
एक सलोने स्वप्न की तरह,
और समय निकल चूका होता है एक जीवन का
शरीर एक बर्तन ही तो है, जैसे कुम्हार बनाता है
छोटे से इस बर्तन में आत्मा मौजूद है
शरीर उसका घर है और ब्रह्मांड की गहराइयों
मैं जीवन और परमात्मा की खोज जारी है 
शरीर क्या है ?
आखिर आदमी शरीर को भेदता क्यों नहीं
इस नश्वर देह में जो अप्रतिम है
अद्वितीय है, अलौकिक है, सुन्दरतम है
सबसे न्यारा हृदय है ...आत्मा है
क्या वह सम्राटों का सम्राट नहीं ?
क्या वह देवताओं का भी परमात्मा नहीं?
झांको, इस सुन्दरतम शरीर में झांको
स्वयं अपने अंदर गहरे में उतरो और देखो ,
वह परमात्मा बैठा है ...आत्मा से
मिलने के लिए ...सदियों से, कई जन्मों से
पीव तुम हो को अपने को मिटाकर
परमात्मा बनने को अब तक राजी नहीं हुए


आज के दौर की बात ..नई कविता


मैं नर्मदा के घाटों पर
नागफनी सी फैली
राजनीति का तिलिस्म हूँ
होशंगाबाद की रगों में भले ही
दिल्ली दौड़ती हो
और यहाँ के आदमी
राजधानी के सभागारों मैं बैठने लायक बने है
दौड़ लगाते उडान भरते
इस माटी के इन कीमती हुए आदमियों ने
मुझ होशंगाबाद को **हाशिये *** पर रखकर
नर्मदा का हौसला भी आहिस्ता आहिस्ता
मिट्टी में मिला दिया है और
इस नगर को इन्होंने दे दी है अनचाही दरिद्रता
सभासदों में विराजने वाले इन्हीं आदमियों ने
अपने चेहरे पर नकाब पहनकर
नर्मदा का माँ कहते हुए
उसका दिल चीर, अपने ओठों पर सुर्खियां और चेहरे पर
लालिमा पाई है ...
चाहे लाज हो या बगीचा
या अपवाद मैं पृथ्वीराज चौहान के तथाकथित वंशज
ठीक वैसे ही जैसे पानी भरे मटकों में प्रतिबिम्बित होते उनके चेहरे
ये सभी माचिस की तीली मैं लगे बारूद के सामान है
और जैसे माचिस की डिबिया के दोनों और
बारूद की पट्टियां शांत होती है किसी तूफान की तरह
ये होशंगाबाद की राजनीति के तिलिस्म को
पल भर मैं प्यार से उड़ा देने में सिद्धहस्त है
एक माचिस की तीली के बारूद को
दोनों और जुड़वाँ बारूद के पट्टियों से रगड़ कर
ये गुपचुप रहने वाले होशंगाबाद में
**पीव **खड़ा कर सकते है एक बड़ा भूचाल
अपनी राजनीति चलाने के लिए यहाँ के आदमी
इस नर्मदापुर की शान्ति और सौहार्द को
अदृश्य अज्ञात भय से मथना जानते है
ताकि इस शहर के बाहर और भीतर
इनकी पूछ परख बनी रहे और धंधा चलता रहे ....

तम का राज्य रहा सारी रात  


उमड़ घुमड़ कर बादल बरसे, बिजली तड़की सारी रात
सांय सांय कर चली हवाएं, बेचैन रहा दिल सारी रात
चारों और सिसके सन्नाटा, अँधेरा चीखा सारी रात
जंगल सागर सभी दिशाएं, फूट फूट रोये सारी रात
पलके थम गई दिल तड़पा है, मुझे नींद न आई सारी रात
भय से सशंकित वृक्ष सभी, थर थर कांपे सारी रात
असीम जलस्रोत ले असंख्य बादल, नापते रहे धरा सारी रात
सागर नदिया,वनपथ-जनपथ ने, रात की चादर ओढ़ी सारी रात
हृदय में उठती सभी को सिहरन, भय ने पाँव पसारे सारी रात
डरा रही है सृष्टि सबको, डर से नदिया सोई न सारी रात
घोसलों मैं डरे छिपे से विकल पक्षियों की, आँख न लगी सारी रात
खोह कंदराओं में प्राण बचाए,वन पशु भी जागे सारी रात
**पीव**घरों में कुछ जागे,कुछ सोये थे,और अँधेरा चीखा सारी रात
नभ और धरा पर उतरा तम था, तम का राज्य रहा सारी रात  

ब्रह्मांड हथेली में देनेवाला, दाता खुद बने पसारने वाला है


हाथ पसारे आने वाले हाथ पसारे जाते है
इस दुनिया में आते ही ,सभी भिखारी बन जाते है
गली गली में झोला टांगे ,कुछ तो आटा मांग रहे
कुछ सम्राटों के घर पैदा हो, खाने को मोहताज रहे
आगे बढ़ो माफ़ करो बाबा, कहा जाता है भिखारी को
जिनके घर अम्बार लगा हो,उनको पल में  मिल जाता है
भिक्षुक बनकर जो हाथ पसारे,वह उतना ही पा जाता है
रुखा सुखा भाग्य है जिनका, वह चाह छोटी ही रख पाता है
जो आदत छोड़े मांगने की और प्रेम को हृदय मैं उमंगाये
जरूरत नहीं फिर उस प्रेमी की, वह सारा साम्राज्य पा जाए
जीवन से चूके कई मांगने वाले,जो भिखारियों के आगे हाथ पसारे
छीने उनसे जिनकी झोली खाली, ,भरी तिजोरीवालों की करता न्यारे-ब्यारे
आनन्द बरसे करुणा उपजे, जहां अस्तित्व सदा से नाच रहा
*पीव * उस वीतरागी की मुठ्ठी में आने को, आनन्द स्नेह से है भरा 
पसारने के इस आनंद को पाने, जिसने भी हाथ पसारा है
ब्रह्मांड हथेली में देनेवाला , दाता खुद बने पसारने वाला है


पत्थर हो, पत्थर के भगवान हमारे ,


पत्थर हो, पत्थर के भगवान हमारे ,
कभी हिले डोले न मुस्काए
पूजन अर्चन स्नेह समर्पण,
सब व्यर्थ गए कुछ काम न आये A
सुन्दर मुख पर ममता दिखती,
पर तन पर जड़ता की छाया
विकल हृदय की सारी पीड़ा झरती
पर किसी पुकार पर भी वह न आया A
मेरी आँखों से निर्झर आंसू बहते रहे
पर उसका आंचल भीग न पाया
कैसे कह दूँ तुम भगवान हो करुणामय
पत्थर हो, पत्थर के भगवान हमारे A
सारा जीवन दर पर तेरे
जगमग ज्योति जलाता रहा हूँ
दुःख मैं गिनकर काटी रातें
और मन को मैं भरमाता रहा हूँ A
अंधकार में डूबे मेरे अंतर्मन को
भगवान तू न आलोकित कर पाया
**पीव** तुझसे तो अच्छे है भगवन!
नभ के सूरज और चाँद तारे A
तुम पत्थर के हो भगवान हमारे ...


एक दीप मेरा भी जलाये


अबकी दीवाली सबकी
हो जाए परिपूर्ण
दूर हो दुःख दर्द,
और जिन्दगी हो पूर्ण
अनुपम जीवन स्नेह भरा,
आप सबको मिल जाए
हर उम्मीद और मंजिले को
मिल जाए सही दिशाएं
हर खुशियां नाचे आंगन में
*पीव* ऐसी दीवाली आये
अपने आंगन में अपनेपन का
एक दीप मेरा भी जलाये
अमावस की रात लगे पूर्णिमा
हिल मिल कर सब दीप जलाये


हँसी में मेरे ही कफन का, मैंने साया छिपाया है


ओठों ने करके दफन सपने,
तेरे प्यार को भुलाया है।
सताया है रूलाया है
मुझे तेरी यादों ने बुलाया है।
चाहा था दिल में हम,
गम की कब्र खोदेंगे
दिल का क्या कसूर,
जो उसमें गम ही नहीं समाया है।
दिखती है मेरे लबों पर,
तुमको जमाने भर की हँसी
हँसी में मेरे ही कफन का,
मैंने साया छिपाया है।
तुम्हारी खुशी के लिये ही
ये शौक पाले थे मैंने
ये मेरी ही खता थी
जो तुमने बदनाम करवाया है।
गल्तियों को अपनी कहां,
छिपाओगे तुम यहां पर
झुकाकर नजर गुजर जाना
तूने अच्छा ये सबब अपनाया है।
कसूर ऑखों में छिपाकर जब,
कसूरवालों ने अकड़कर चलना सीख लिया
तब से हर शरीफजादा,
गली से चुपचाप निकल आया है।
दिल की बोतल से तेरी,
मैंने पी डाले न जाने कितने कड़वे घूंट
पीव जलजले जहर के मैँने,
खुदा की रहमत से पचाया है।
शमें रोशनी को कहीं और जलाओे तुम लोगों,
अंधेरों से हमें कुछ इस कदर प्यार आया है

नीम का  पेड़  ओर  मेरा  बचपन


आज भी है मेरे घर
नीम का पेड़ और देवी की मढ़िया
जब में बच्‍चा था तब
नीम के पेड़ पर
सहज ही चढ़ जाया करता था
तब चुपके से पेड़ की सबसे ऊंची
डाली/शाखा पर पहुंचकर में जोर से
मां को आवाज लगाता था।
मां नीम के पेड़ पर मुझे चढ़ा देख
जमकर चीखती चिल्‍लाती
कहती नीचे उतर गिर जायेगा
डराती नहीं उतरेगा तो पीटूंगी
मैं मां को चिढाकर खुश होता
उन्‍हें गुस्‍सा करते देख शरारतें करते
पतली डाली पर चढ़ जाता था।
मां कभी रूआंसी होती, कभी रोने लगती
और नीम से उतरने की मिन्‍नतें करती
फिर कहती तेरे पिताजी को बुलाती हूँ
पिता का नाम सुनकर मैं झटपट
नीम से नीचे उतर आता था।
जानता था सच में पिताजी आ गये
तो वे पीटेंगे और म्‍याल से हाथ बांधकर
खाना न देने का फरमान जारी कर देंगे,
तब मां, उनकी दी गयी सजा को कम
कराने की मिन्‍नतें करती तो पिताजी मां पर नाराज होते थे
मां मुझे कई बार म्‍याल से बंधा देख
रस्‍सी खोलने का ख्‍याल तो लाती,
पर पिताजी को मनाने के बाद ही वे मुझे
बचपन की मेरी शरारतों से बचा पाती,
हां उस समय पिताजी को
दादी मां और बडी अम्‍मा ही डपटकर
मुझे सजा से मुक्‍त कराने का एकमेव अधिकार रखते थे
और पिताजी
दादी मां और उनकी भाभी मां के आदेश को
आजीवन अपना कर्तव्‍य समझ निभाते रहे,
आज मैं बडा हो गया हूँ
और मेरे बेटे आज भी मुझसे ज्‍यादा
अपने दादा दादी को प्रेम करते है,
भले आज माता पिता पर उम्र हावी होने पर
वे कमजोर, बूढे हो गये हैं लेकिन
उन बूढी आँखों को आज भी अपने बेटे-बेटियों का
इंतजार होता है, मिलने पहुंचते हैं
तब मेरे मातापिता की ऑखों से
आंसू प्रेम के रूप में झरने लगते हैं
मैं माता-पिता के हर दर्द को
समझकर,भूल जाता हूँ अपने बचपन की
वे सारी सजायें, जो मुझे बचपन की
नादानी की शरारतों से उनसे मिली थी।

नीमवाली देवी की मढ़िया


आज भी है  मेरे घर नीम का पेड़,
पेड़ के नीचे देवी की मढ़िया है
मेरे दादा दयाराम जी तब
जब वे गंभीर रूप से अस्‍वस्‍थ्‍य थे
कहीं से  एक मूरत जो तलवार लेकर बैठी थी
ले आये,और मढ़िया में रख
उस मूरत की पूजा-पाठ शुरू कर दी थी।
परिवार ने चबूतरे पर गुम्‍बदनुमा
मढ़िया बना दी,और आस-पडोस में
विजयासेन देवी के नाम से
उस पत्‍थर पर उकेरी मूरत पर
सिन्‍दूरलगा कर पूजा का दौर चालू  हुआ।
और वह नीम का पेड़
अंदर से खोखला था
  जिसमें कुछ पत्‍थर की पिंडलिया निकली,
उसे सिन्‍दूर से लपेटकर
विजयासेन, कैलारस वाली
देवी के नाम से हम
आज तक पूजते  आये  हैं।
तब देवी की मढ़िया उत्‍तरमुखी थी
जहां चैत ओर वैशाख की दो नवरात्रियों
पर जस होते, पडिहार घूमा करते
दरबार में यह सिलसिला सुबह तक चलता।
अचानक परिवार के बडे घर पर
जाने कहां से विपत्तियां आने लगी
तब जगदीश पर हरदौल बाबा उतरे
पता चला,सालों से इस मढ़िया पर
मिश्रीकाका को जो देवी सीस उतरती थी
वह कोई मर चुके रामप्रसाद की अत़प्‍त आत्‍मा थी
हरदौल बाबा ने शीश में आकर
मढ़िया को उत्‍तरमुखी से पूर्वमुखी कर दिया।
पर परेशानियां कम नहीं हुई
और परिवार के मुखिया रामभरोस जी
असमय ही चल बसे,
तब एक पडिहार के कहने पर
भोपाल तिराहे पर उनका चबूतरा बना दिया गया।
बड़े परिवार पर आज भी
विपत्तियों  का दौर थमने का नाम नहीं लेता
भाईयों में परिवार के प्रति स्‍नेह,
मोह,माया और ममता ढूंढे नहीं मिलती
स्‍वार्थ के दलदल में सभी
एक दूसरे को भूले  है और घर के सामने
जो नीम का पुराना पेड़ था,
वह तीन दशक पहले धराशायी हो गया था और
उसके स्‍थान पर मैंने जो पेड़ लगाया है
वह आज विशाल हो गया है और
पहले वह मढ़िया के  पीछे  हुआ करता था
आज वह नीम का पेड़ मढ़िया के बगल में है
और परिवार बंटकर मढ़िया के
दायें-बायें और पीछे टुकड़ों में बंट गया है।

रचनाकार ...आत्माराम यादव पीव  (वरिष्ठ पत्रकार)
के-सी- नामदेव निवास, द्वारकाधीश मंदिर के सामने,
जगदीशपुरा वार्ड नम्बर -2 होशंगाबाद मध्यप्रदेश

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 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. 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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक 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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: आत्माराम यादव पीव की कविताएँ
आत्माराम यादव पीव की कविताएँ
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