दोहे रमेश के प्रेम दिवस पर -------------------------------------- प्रेम दिवस पर कामना, रहती यह हर बार ! देगा अच्छा प्यार से, .प्रेमी फिर ...
दोहे रमेश के प्रेम दिवस पर
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प्रेम दिवस पर कामना, रहती यह हर बार !
देगा अच्छा प्यार से, .प्रेमी फिर उपहार !!
हर रिश्ता इस दौर में, बना जहाँ व्यापार !
प्रेम दिवस का फिर वहाँ,रहा नहीं कुछ सार!!
भेजा था ईमेल से, मैंने उन्हें गुलाब!
आया क्यों अब तक नहीं,उनका सुर्ख जवाब!!
वेलनटाइन का चढा, ..ऐसा यार बुखार!
जिसको देखो ले रहा,मन चाहा उपहार!!
बाजारों में बिक गये,..बेहिसाब उपहार!
इसे कहूँ मैं प्यार अब, या समझूँ व्यापार!!
वेलनटाइन पर अगर, महबूबा हो साथ!
खीसे में देना पड़े,…बार बार फिर हाथ! !
बना दिया है प्यार को, लोगों ने व्यापार!
वेलनटाइन रह गया,बन कर इक बाजार! !
रमेश शर्मा.
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सुशील शर्मा
प्रेमगीत
तुम मेरे दिल की बाती हो।
जब चाहूं तब जल जाती हो।
प्रेम समंदर इतनी पैठी
हरदम प्रेम में मदमाती हो।
स्नेह स्वर्ण सी सिंचित तुम।
मेरे मन में अनुमोदित तुम।
जन्म जन्म से तुझ से रिश्ता।
मेरी अर्धांगिनी घोषित तुम।
तुमने अब स्वीकार किया
मैं तेरे मन में जला दीया।
अब न छुपाओ खुद को तुम
तेरी आँखों ने इज़हार किया।
पल पल तेरे बिन अब रहना मुश्किल है।
बिन तेरे जीवन ये जीना मुश्किल है।
आज से तुम मेरी वेलेंटाइन बन जाओ।
अब तन से तन की दूरी सहना मुश्किल है।
तुम बिन जीवन लगे अधूरा सा।
घर तुम बिन लगता घूरा सा।
तन मन धन समर्पित तुमको है।
मिल कर कर दो मुझको पूरा सा।
तेरे संग हरपल अब वेलेंटाइन है।
तेरे संग जीवन मीठा गायन है।
हर पल जीवन का अब तेरा है।
तू मेरे दिल की ठाकुरायन है।
शिव उवाच
पूजन तुम्हारी कैसे स्वीकार करूँ।
मन मैला तन का कैसे आधार करूँ।
भाव नहीं पूजन के तेरे मन में फिर।
भोग को बोलो कैसे अंगीकार करूँ।
हर तरफ मुखौटों की भरमार है।
जिसको देखो वही गुनाहगार है।
अब नहीं ईमानों का मौसम यहां।
हर शख्स पैसों का तलबगार है।
हर शख्स से मैं जब भी मिला।
अंदर से मुझको वो टूटा मिला।
हर चेहरे का एक अलग विन्यास है।
हर चेहरे के ऊपर मुखोटा मिला।
हर जगह मंदिरों में पत्थर रखे।
मेरी सूरत मैं मुझको मुखौटे दिखे।
सोने चांदी में मेरी पूजन बिकी।
मन के कोने मुझे सब खाली दिखे।
दीन दुखियों का कष्ट हरता हूँ मैं।
टूटे दिलों की मदद करता हूँ मैं।
एक विल्वपत्र बस चढ़ाना मुझे।
जीवन को सुखों से भरता हूँ मैं।
सबने पूजा मुझे अलग ताव से।
सबने मांगा मुझे अलग चाव से।
जिसका दामन था जितना बड़ा।
उसको ज्यादा दिया उसी भाव से
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रवि भुजंग की प्रेम कविता
कभी बनारस की सुबह बन जाती हो।
तो भोपाल की शाम हो जाती हो।
तुम रास्ते के दृश्य हो,
या दोनों पर एक आसमां।
तुम चेतन की किताब का किरदार
तो नहीं हो,
तुम जो हो
हमेशा हो। चार कोनों में नहीं
होती तुम, तुमने ही तुम्हें रचा है।
अब प्रेम का क्या वर्णन करूँ,
मेरा प्रेम तो तुम्हारा हँसना है।
और तुम्हारी भीगी कोर
मेरा मर जाना हैं।
शुरू हुआ प्रेम और अमरता का
प्रेम, दोनों के बीच का
तुम प्रश्न हो।
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विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र की विचारशील कविताएँ
तब कोई कवि बन पाता है ।
आंखों का आंसू लुढ़क लुढ़क
जब हृदय तक बढ़ आता है
अमूर्त बात जब लिपि पाकर
कागज पर आ जाता है
तब कोई कवि बन पाता है ।
श्रम की मसि दर्द अश्रु पाकर
जब अक्षर रूप में आता है
मन बेचैनी से घबराकर
दर्द अधिक बढ़ जाता है
तब कोई कवि बन पाता है ।
ठोकर खाकर भी चढ़ते रहना
जो बातों बातों में समझाता
जब सुख को छोड़ त्याग करके
मेहनत की रोटी खाता है ।
सही गलत का भेद समझ
जो सही राह अपनाता है ।
तब कोई कवि बन पाता है ।
चिंतन जब चरम पहुँच जाए
विम्ब मन में आ जाता है
वह मूक भाव को पढ़के
लिपि में अंकित कर जाता है
जब कलम शक्ति के साथ सदा
परिवर्तन बिगुल बजाता है ।
तब कोई कवि बन पाता है ।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र विचार
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*शब्द ताकत है शब्द दुआ है
*शब्द घातक है शब्द दवा है
*शब्द वेद है शब्द कुरान है
*शब्द बाइबिल शब्द पुराण है
शब्द अल्लाह शब्द भगवान है
शब्द उपदेश शब्द गीत गान है
शब्द में समाहित आस्था महान है
शब्द मंत्र शब्द फरमान है
शब्द पूजा है शब्द अजान है
शब्द बडाई है शब्द सम्मान है
शब्द गीत है शब्द तान है
शब्द ही अंधे का भान है
शब्द अधिगम की जान है
शब्द से होता मानव की पहचान है
सबको इसका संज्ञान है।
शब्द शक्ति है शब्द ही ज्ञान है
शब्द कवि लेखक का प्राण है।
शब्द से बढ़ती मानव की शान है
शब्द ही नाम शब्द ही ईमान है ।
शब्द ही उपाधि शब्द उपनाम है ।
शब्द का पढ़ना ही ईश्वर का ध्यान है।
शब्द ही पूजा है शब्द ही अजान है ।
शब्द जो न जाने वह अज्ञान है ।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र * विप्र *
प्रवक्ता सरयूइंद्रा महाविद्यालय संग्रामगढ प्रतापगढ
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कवि राजेश पुरोहित की फाल्गुनी, रंग बिरंगी कविता
फागुन आयो
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अलविदा बसंत
फागुन आयो
रंग बिरंगी
संग होली लायो
चंग ढप ढोल
डफली बजी
ढोल की थाप पर
नाचे नर नार रे
टेसू के फूल खिले
रंग करो तैयार
इन रंगों में छिपा
मधुर प्रेम व्यवहार
होलिका जलेगी
सब होली मनाएंगे
राक्षसी वृतियां जलेगी
होगा पाप का
धर्म का प्रह्लाद बचेगा
होगी हरि की जयकार
आयो फागुन को त्योहार
मौसम में सूरज की गर्मी
लगती नहीं अब अच्छी
बैठ न पाते कोई धूप में
फागुन की ये गर्मी
लठमार बृज की होली
और बिहारी जी के दर्शन
फागुन की ये रेलमपेल
देखो कैसे कैसे खेल
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