संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 32 : चम्पारण्य- जहाँ कृष्ण मार्गी शाखा के प्रणेता ने जन्म लिया // उर्मिला शुक्ल

SHARE:

प्रविष्टि क्र. 32 चम्पारण्य- जहाँ कृष्ण मार्गी शाखा के प्रणेता ने जन्म लिया उर्मिला शुक्ल छत्तीसगढ़ स्थित चम्पारण्य यॅू तो एक तीर्थ स्थल के र...

image

प्रविष्टि क्र. 32

चम्पारण्य- जहाँ कृष्ण मार्गी शाखा के प्रणेता ने जन्म लिया

उर्मिला शुक्ल

छत्तीसगढ़ स्थित चम्पारण्य यॅू तो एक तीर्थ स्थल के रूप में ख्यात है। यहाँ स्थित चम्पेश्वर महादेव की बड़ी ख्याति है,मगर यह वैष्णव धमावलंबियों का भी प्रमुख तीर्थ स्थल है। कारण हिंदी साहित्य को कृष्ण भक्ति शाखा का अवदान देने वाले श्री वल्लभाचार्य का इस स्थान से गहरा संबंध रहा है। ये संबंध इतना गहरा है कि अगर चम्पारण का जिक्र न किया जाय तो वल्लभाचार्य की जीवनी ही अधूरी रह जायेगी।

हिंदी साहित्य का भक्ति काल वह काल था,जब भारतीय जनमानस आतताइयों से भयाक्रांत था। उसका आत्मबल टूट सा गया था। ऐसे में उसके भीतर के सोये आत्मविश्वास को जगाने का काम किया भक्त कवियों ने और पूरे देश में भक्ति की एक लहर सी उठ खड़ी हुई थी। इसमें सगुण और निगुर्ण दोनों कवियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा हे। दोनों का उदेश्य जनता के आत्मविश्वास को जगाना था। तथ्यात्मक बात तो यह थी कि शंकराचार्य के अद्वैतवाद की कठिनाइयों के कारण आमजन का जुड़ाव सनातन धर्म से नहीं हो पा रहा था। इसलिये वैष्णव धर्म एक आंदोलन के रूप् में सामने आया और राम और कृष्ण इसके आधार बने। यह आंदोलन इतना व्यापक हो गया कि भारत की चारों दिशायें राम और की लीलाओं से गुंजारित हो उठा। इस वैष्णव आंदोलन की बागडोर थामने वाले वल्लभाचार्य की जन्मभूमि है चम्पारण्य। पहले इसका नाम चम्पाझर हुआ करता था। रायपुर से पचास कि.मी.की दूरी पर स्थित ये एक सुरम्य स्थल है। नाम की समानता के कारण कुछ लोग भ्रमवश इसे बिहार स्थित चम्पारण समझ लेते हैं,मगर इसके उच्चारण पर ध्यान दिया जाय तो दोनों के नाम में बहुत अंतर है। बिहार में चम्पारण है और छत्तीसगढ़ में चम्पारण्य। इसमें रण नहीं, अरण्य है। किसी जमाने में यहाँ बहुत घना जंगल हुआ करता था। जंगल तो अभी भी है पर पहले जैसा सघन नहीं है।

मैंने बिहार स्थित चम्पारण की यात्रा भी की है,मगर छत्तीसगढ़ के इस चम्पारण्य की यात्रा तो कई कई बार की है। कारण एक तो ये रायपूर के करीब है; इतने करीब कि आसानी से जाया जा सकता है। दूसरे ये तीर्थ स्थल भी है। शायद यही कारण है कि घर में जब भी जब भी कोई मेहमान आता हम उसे लेकर चम्पारण्य जरूर जाते। पर इस बार की यात्रा कुछ अलग थी। ये यात्रा धार्मिक नहीं साहित्यिक थी। हूआ ये था कि अपने अकादमिक कार्य से कवि दिनेश कुशवाहा जी सपरिवार रायपुर आये थै। उनके पास दिन भर का ही समय था। उनकी इच्छा थी कि उन्हें आसपास के किसी दर्शनीय स्थल की सैर करा दी जाय। छत्तीसगढ़ में दर्शनीय स्थलों की कमी है ही नहीं। जंगलों ,नदियों और पहाड़ों से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के साथ साथ अपने पुरातात्विक सौंदर्य के लिये भी जाना जाता है। अगर उनके पास अधिक समय होता ,तो यहाँ के पुरातत्व और वन संपदा से भी उनका परिचय कराना उचित होता;मगर समय की कमी के चलते रायपुर के आसपास जाना तय हुआ था और। रायपुर के आसपास जाना हो तो चम्पारण्य से बेहतर भला और क्या हो सकता था।

सुबह लगभग आठ बजे हम चम्पारण्य की ओर रवाना हुये। रायपुर से चम्पारण्य जाने के कई रास्ते हैं; मगर हमने आरंग वाला रास्ता चुना ,जो कुछ लंबा तो जरूर है ;मगर सड़क बहुत अच्छी है। आरंग के पास से चम्पारण्य के लिये जो रास्ता कटता है,वह हरा भरा और रमणीय है। सो यही रास्ता उपयुक्त था। सितंबर का महीना था। धान के हरे भरे खेतों के साथ साथ तालाब भी कमल के फूलों से आच्छादित थे। उन तालाबों के पास से गुजरने का भी अपना अलग ही आनंद था। पुरइन के पत्तों से आच्छादित तालाब में खिले हुये गुलाबी कमल मन को आल्हादित कर रहे थे। राह में ऐसे कई तालाब थे। दरअसल छत्तीसगढ़ की संस्कृति तालाबों सें रची बसी है। इसीलिये इस अंचल में जगह जगह छोटे बड़े अनेक तालाब मिलते हैं।

छत्तीसगढ़ के लोगों ने शायद जल संग्रह के महत्व को बहुत पहले से समझ लिया था। इसीलिये यहाँ बारिश के पानी के संग्रह के लिये तालाब खुदवाये जाते थे। इसीलिये यहाँ गांव से लेकर शहर तक असंख्य तालाब नजर आते हैं। हमारी राजधानी रायपुर में भी छोटे बड़े कई तालाब थे। ;मगर अब आधुनिकता के चलते तालाब खत्म होते जा रहे हैं। मुझे याद है आज जहाँ आमापारा बाजार है मेरे बचपन में वहाँ भी एक तालाब हुआ करता था,जो मौसम में कमल के फूलों से भरा रहता था;मगर आज वहाँ तालाब का नामोनिशान तक नहीं है। तालाब को पाटकर मॉल और बाजार बना दिया गया है। यही हाल यहाँ के मच्छी तालाब का भी है। उसका भी अधिकॉश हिस्सा पट चुका है और भी कई तालाब थे जो पाट दिये गये हैं। परिणामतः आज राजधानी में जल संकट इतना गहरा गया है कि मोहल्लों में पानी के लिये आये दिन मारपीट की होती है। भविष्य में तो और भी बुरी स्थिति होने वाली है;मगर अपनी भौतिक हवस के चलते कोई इस विषय में सोचना ही कहाँ है। गनीमत है कि छत्तीसगढ़ के भीतरी गांव अभी इस भौतिकतावादी सोच के जाल से बाहर हैं। शायद इसीलिये उनके ये तालाब बचे हुये हैं।

हमारी कार खेतों के बीच से गुजर रही थी । मैंने देखा सड़क के दोनों ओर धान के खेत लहलहा रहे थे। कुछ खेतों में तो धान में बालियॉ भी आ गयी थीं। 'धान की कच्ची बालियों से एक दूधिया सी महक आती है। छत्तीसगढ़ के धान की कुछ किस्मों की कच्ची बालियों से भी उसके चावल जैसी महक आती थी;मगर अब वो महक गायब हो चुकी है। रसायनिक खाद के अत्याधिक प्रयोग ने वो खुश्बू ही छीन ली है,वरन छत्तीसगढ़ अंचल तो चावल की बेहतरीन किस्मों के लिये ही विख्यात रहा है। यहाँ होने वाले विष्नुभोग ,दुबराज ,जवाफूल में इतनी खुश्बू आती थी कि इसके खेत दूर से ही अपनी उपस्थिति जता दिया करते थे। और चावल?उसकी तो बात ही और थी। मोहल्ले में किसी एक घर में दुबराज का भात पकता तो उसकी खुश्बू आस पास के सभी घरों में समा जाती थी;मगर अब?अब तो इनका बस नाम ही रह गया है। खुश्बू से अब इनका कोई रिश्ता नहीे रहा। इसमें गलती धान के इन पौधों की तो कतई नहीं है। फिर? 'मैं अपनी इन्हीं सोचों में घिरी हुई थी कि ''आपके यहाँ के चावल तो अपनी खुश्बू और स्वाद के लिये दूर दूर तक मशहूर हैं। '' कुशवाहा जी ने कहा ,तो भाभी जी ने भी हामी भरते हुये कहा ''हाँ ये तो हमने भी सुना है। अब आये हैं तो एक दो किलो चावल तो ले ही जायेंगे। ''

''हाँ!हाँ क्यों नहीं। ''कहने को तो मैंने कह दिया था ,मगर 'क्या इन्हें अच्छा चावल मिल पायेगा?या फिर?। 'सोचते हुये मैंने अपने वाहन चालक से पूछा-'' मनराखन !क्या किसी दुकान पर नगरी का दुबराज मिल पायेगा?''

''पता नहीं मैडम। पता करना पड़ेगा। गोल बाजार में शायद मिल जाये । '' उसने कहा तो कुछ आस बॅधी थी। 'जंगल और पहाड़ से घिरे नगरी क्षेत्र ने आज भी दुबराज की गुणवत्ता बरकरार रखी है। धान का कटोरा कहे जाने वाले इस छत्तीसगढ़ की नाक तो बचेगी। वरना...? 'इन्हीं सोचों के बीच चम्पारण्य आ गया था। चम्पारण्य ! श्री वल्लभाचार्य की जन्मभूमि के अतिरिक्त चम्पारण्य में चम्पेश्वर महादेव का मंदिर भी है ,जो इस क्षेत्र बहुत विख्यात है। दरअसल प्राचीन छत्तीसगढ़ में शैव और शाक्त मतों का बोलबाला था। यही कारण है कि यहाँ शिव और देवी आराधना का विशेष महत्व रहा है। छत्तीसगढ़ स्थित रतनपुर का शक्तिपीठ ,डोंगरगढ़ में बमलेश्वरी का मंदिर और बस्तर राजघराने की कुलदेवी दंतेश्वरी की ख्याति आज भी इस बात की प्रमाण हैं। जहाँ तक शैव मत की बात है,तो इस अंचल के अधिकांश आदिवासी समुदाय भी शिव को ही अपना इष्ट मानते हैं और उन्हें बूढ़ादेव की संज्ञा देते हैं। रायपुर स्थित बूढेश्वर महादेव,खरौद के लक्ष्मणेश्वर महादेव और चम्पारण्य के चम्पेश्वर महादेव इसका प्रमाण हैं।

चम्पारण्य अपने नाम के मुताबिक अरण्य ही प्रतीत होता है। मंदिर के प्रवेश द्वार से लेकर श्री वल्लभाचार्य के जन्म स्थल तक पूरा मार्ग सघन पेडों और लता गुल्मों से आच्छादित है। भारत के हर मंदिर की तरह यहाँ भी राह में प्रसाद बंचने वालों की एक लम्बी कतार मिलती है और इसके साथ ही मिलते हैं असंख्य बंदर। छोटे बड़े बंदरों का पूरा का पूरा हुजूम ही वहाँ बसता है। मंदिर जाने वाले लोग उन्हें श्रद्धा से फल खिलाते हैं ;मगर कुछ दादा किस्म के बंदर हैं ,जो किसी के देने का इंतजार ही नहीं करते। वे राह चलते लोगों के हाथों से प्रसाद और कई बार तो उनका सामान तक छीन लेते हैं। इतना ही नहीं उन्हें डराते भी हैं। सो उन बंदरों से बचते बचाते हम मंदिर परिसर में दाखिल हुये यॅू तो ये मंदिर भी भारत के अन्य मंदिरों की तरह ही है;चॅूकि वल्लभाचार्य का संबंध कृष्ण से रहा है ,इसलिये यहाँ कृष्ण जन्म से लेकर उनकी रासलीला तक की संपूर्ण झॉकियॉ दीवारों पर अंकित हैं। मगर इसमें एक खासियत है, जो इसे अन्य मंदिरों से अलगाती है । वो यह है कि ये सघन पेड़ों के बीच स्थित है और ये पेड़ मंदिर बनने के बाद नहीं लगाये गये हैं;इन्हें बचाते हुये मंदिर बनाया गया है। यानि पेड़ों को काटे बगैर ही इस मंदिर को बनाया गया है और उन्हें इस तरह बचाते हुये छत ढ़ाली गयी है कि पेड़ों के तने स्तंभ की तरह नजर आते हैं। इसके कारण मंदिर परिसर में शीतलता भी बनी रहती है। इस तरह ये मंदिर एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि पेड़ों को काटे बगैर भी निर्माण किया जा सकता है। मंदिर तक पहुँचते पहुँचते बारह बज गये थे। ये भगवान के सोने का समय सो मंदिर का द्वार बंद हो चुका था। पूछने पर लोगों ने बताया कि अब मंदिर के पट चार बजे ही खुलेंगे। इसी परिसर में चम्पेश्वर महादेव का मंदिर भी है,जो अपने पुरातात्विक महत्व के लिये भी विख्यात है। हमें समय का सदुपयोग करना था। सो हम चम्पेश्वर महादेव की ओर बढ़ चले थे।

प्रसिद्ध स्थानों, खासकर देव स्थानों से कुछ कथायें जुड़ी होती हैं। चम्पारण्य स्थित चम्पेश्वर महादेव से जुड़ी एक रोचक कथा सुनने को मिलती है। जिसे यहाँ के पुजारी सभी आने जाने वालों को सुनाया करते हैं;मगर सामान्य दिनों में। पर्व के समय में तो उन्हें प्रसाद चढ़ाने तक की फुर्सत ही नहीं मिलती है। उस समय तो प्रसाद भी मंदिर के बाहर ही रखवा दिया जाता है। अभी पर्व का समय नहीं था। सो पुजारी हमें चम्पेश्वर महादेव की कथा सुना रहे थे। मैंने वो कथा पहले भी कई बार सुनी थी। उन्होंने हमें बताया कि चम्पेश्वर महादेव का ये मंदिर स्वयं भू है। अर्थात इसे किसी के द्वारा स्थापित नहीं किया गया, एक शिवलिंग यहाँ स्वयं ही प्रकट हुआ है। वे तन्मय होकर हमें उसकी कथा सुना रहे थे-''लगभग आठ सौ वर्ष पूर्व की बात है,तब ये चम्पारण्य सघन वनों से आच्छादित था। इस जंगल में एक ग्वाला गायें चराने आता था। चूंकि जंगल बहुत घना था ;इसलिये अपनी गायों को जंगल के बाहर ही चराता था;मगर उसकी एक गाय आते ही दौड़कर जंगल के भीतर चली जाती थी और तब वो बाहर आती तो उसके थन का सारा दूध निचुड़ा हुआ होता था। ग्वाले को शंका हुई कि जंगल के भीतर जरूर कोई है,जो उसकी गाय का सारा दूध चुरा लेता है। उसे रंगे हाथों पकड़ना चाहिये । ये सोचकर एक दिन वो गाय के पीछे पीछे जंगल के भीतर गया। वहाँ जाकर उसने जो कुछ देखा,उसे देखकर वो चकित ही रह गया था। उसने देखा कि उसकी गाय के थन का सारा दूध अपने आप ही एक पत्थर गिरता जा रहा है। यह देखकर जिज्ञाशावश वो और पास गया ,तो उसने देखा कि वह एक अद्भुत शिवलिंग था। अदभुत इस मायने में कि उस पर एक साथ महादेव का पूरा परिवार ही अवस्थित था। यानि उस पर पार्वती और गणेश की छवि भी बनी हुई थी। उसने इसकी सूचना गांव वालों को दी। गांव वालों ने आकर देखा ,तो इस अद्भुत शिवलिंग को पाकर उन्हें अपार प्रसन्नता हुई। सबने मिलकर झाड़ियों की सफाई की और शिवलिंग को हटाये बिना उसी जगह पर ये मंदिर बनाया। ये मंदिर सावन में होने वाली छत्तीसगढ़ की पंचकोसी यात्रा का एक पड़ाव भी है।

पुजारी ने हमें ये भी बताया कि इस मंदिर से लगा हुआ जो जंगल है ,वो भी बहुत अदभुत है। वो बहूत से मायने में साधारण जंगल से एकदम ही अलग है। '' जंगल तो जंगल ही है। फिर उसमें भला ऐसी कौन सी खास बात है?''मैंने पूछा तो उसने उस जंगल की कई विशेषतायें गिनायीं और साथ ही ये भी बताया कि उस जंगल में मधुमक्खियों की बहुतायत है,तो अन्यत्र नहीं मिलता हैं। चम्पेश्वर महादेव मंदिर से हम जंगल की ओर चल पड़े। मंदिर परिसर के भीतर से ही जंगल में प्रवेश का रास्ता था। पेड़ों की सधनता के साथ ही सघन झाड़ियॉ भी थीं इसलिये वो बहुत ही सघन नजर आ रहा था। सितंबर का महीना था मगर बारिश अभी भी खत्म नहीं हुई थी । इसलिये जंगल के भीतर जाने वाला रास्ता कीचड़ से भरा था। इसलिये जंगल के भीतर जाना संभव नहीं हुआ। हमें चार बजे तक का समय तो बिताना ही था। सो हम मंदिर के पिछवाड़े की ओर बढ़ चले थे। मंदिर के पिछवाड़े भी घना जंगल है;मगर झाड़ियॉ नहीं है और पक्का रास्ता होने के कारण कीचड़ भी नहीं था। सो वहाँ तक पहुँचना आसान था। मंदिर के पीछे से होकर एक छोटी सी नहर जैसी नदी भी बहती है,जिसे यहाँ यमुना कहा जाता है। उस पर छोटा सा बहुत खूबसूरत सा पुल भी बनाया गया है। उस नदी के पार भी झाड़ियों वाला सघन जंगल है। चम्पारण्य से होकर महानदी भी गुजरती है। महानदी छत्तीसगढ़ की बड़ी नदी है;जिसका उद्गम यहाँ के सिहावा पहाड़ से हुआ है और ये उड़ीसा के पारादीप के पास बंगाल की खाड़ी में मिलती है। चित्रोत्पला कहलाने वाली इस महानदी के तट पर छत्तीसगढ़ का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल राजिम स्थित है,जहाँ इसमें पैरी और सोढूर नामक दो नदियों का संगम है।

हमने यमुना कहलाने वाली उस नदी के तट पर बैठकर भोजन किया फिर कृष्ण पर रचे साहित्य के साथ ही हिन्दी साहित्य में कृष्ण मार्गी शाखा के प्रवर्तक श्री वल्लभाचार्य के अवदानों पर भी बातें कीं। वल्लभाचार्य उच्च कोटि के ऐसे विद्वान आचार्य रहे हैं,जिन्होंने शंकराचार्य के निर्गुण ब्रहम को उलटकर सगुण की उपासना पर बल दिया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के मतानुसार उन्होंने पूर्व मीमांसा भास्य,उत्तर मीमांसा भास्य,श्रीमदभागवत की सुक्ष्म टीका,सुबोधनी टीका ,तत्वदीप निबंध तथा अनेक प्रकरण ग्रंथों की रचना की । अणुभास्य नाम का उनका एक ग्रंथ अधूरा रह गया था ,जिसे बाद में उनके पुत्र बिट्ठल नाथ ने पूरा किया। सूरदास को अपना शिष्य बनाकर उन्हें पुष्टि मार्ग में दीक्षित करने वाले वल्लभाचार्य के अवदानों पर बात करते हुये समय का पता ही नही चला। मंदिर खुलने का समय हो चुका था। सो हम सब मंदिर की ओर रवाना हुये।

चम्पारण्य स्थित श्री वल्लभाचार्य का य भव्य मंदिर महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्रकाट्य सथल कहलाता है। इसके भीतरी भाग के गलियारों में मूर्तियों के द्वारा कृष्ण जन्म और क्ष्ण की रासलीला की झॉकियॉ दर्शायी गई हैं। दीवारों पर भी चित्र रूप में कृष्ण के जीवन प्रसंगों को उकेरा गया है। साथ ही भागवत में उल्लिखित कई कथाओं की चित्रात्मक झॉकी भी रची गयी है। वललभाचार्य! रामानंद ,कबीर और तुकाराम के समकालीन माने जाते हैं। सूरदास को कृष्ण मार्गी शाखा से जोड़ने का श्रेय वल्लभाचार्य को ही जाता है। चम्पारण्य में इनके जन्म के विषय में मिलने वाली कथा के अनुसार दक्षिण भारत के कृष्णा नदी के तट पर स्तभाद्री के निकट कुंभकार का जन्म हुआ था। कालांतर में वे काकखंड में जाकर बस गये और वहीं से तीर्थयात्रा के लिये सपरिवार काशी पहॅुचे मगर मुस्लिम आक्रमणकारियों के भय के कारण वे बहुत दिनों तक वहाँ रह नहीं पाये ओर अपने मूल स्थान की ओर लौट रहे थे । रास्ते में वे राजिम के निकट इसी चम्पाझर में चम्पेश्वर महादेव के दर्शन के लिये रूक गये थे। संवत 1535 बैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को यहीं उनकी पत्नी वल्लभागारू ने एक बालक को जन्म दिया था। कहते हैं कि जन्म के समय वो बालक बहुत कमजोर था। वो इतना कमजोर था कि उसके बचने की उम्मीद ही नहीं थी। ?,इसलिये वे उसे वहीं छोड़कर आगे बढ़ गये थे मगर मन नहीं माना तो दूसरे दिन फिर उसी जगह पर लौट कर देखा ,तो बालक जीवित था। इसी बालक ने आगे चलकर वल्लभाचार्य के नाम से ख्याति प्राप्त की और द्वैत मत का समर्थन करते हुये पुष्टि मार्ग की स्थापना की और अष्टछाप के रूप में। हिन्दी जगत को सूरदास जैसा कवि दिया।

चम्पारण्य में वल्लभाचार्य जी भगवान के रूप में पूजे जाते हैं। इसलिये उनके जन्म दिवस को यहाँ बहुत बड़े पर्व के रूप में मनाया जाता है। जब किसी को देव रूप में स्वीकार कर लिया जाता है ,तब उसके साथ बहुत सी चमत्कारी कथायें जुड़ जाती हैं। कबीर के जन्म और उनकी मृत्यु से जुड़ी कई चमत्कारी कथायें है। वल्लभाचार्य के भी विषय में भी ऐसी कथायें मिलती हैं। कहा जाता है कि जब उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी ,तब एक शमी वृक्ष की कोटर में उन्हें छोड़कर उनके माता पिता अपने पैतृक स्थान की ओर बढ़ चले थे; मगर अपनी ममता से विवश होकर वे दो दिन बाद ही लौट आये थे। वे जब वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि साक्षात अग्निदेव बालक की रक्षा कर रहे थे।

वल्लभाचार्य जी देवपुरूष हों या न हों एक महामानव तो अवश्य रहे होंगे;जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में समाज को संबल दिया। उन्होंने पूरे देश की पैदल यात्रायें कीं और लोगों को अपने ज्ञान से लाभान्वित किया। उनकी इन यात्राओं के पड़ावों को बैठक कहा जाता है। देशभर में उनकी चौरासी बैठकें हैं जिनमें से चम्पारण्य में उनकी दो बैठकें हैं। एक उनके जन्म स्थल शमी पेड़ के नीचे;दूसरी घटी पूजन के स्थान पर। मंदिर परिसर में घूमते हुये हम देर तक हिन्दी साहित्य की कृष्ण काव्य धारा में अवगाहन करते रहे। इस मंदिर का वातावरण इतना सौम्य और शांत है कि वहाँ से आने का मन ही नहीं होता है,मगर लौटना तो होता ही है। हर यात्रा ही नियति लौटना है। सो शाम ढलते ढलते हम भी लौट चले थे।

---

A -21

स्टील सिटी

रायपुर छत्तीसगढ़

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 32 : चम्पारण्य- जहाँ कृष्ण मार्गी शाखा के प्रणेता ने जन्म लिया // उर्मिला शुक्ल
संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 32 : चम्पारण्य- जहाँ कृष्ण मार्गी शाखा के प्रणेता ने जन्म लिया // उर्मिला शुक्ल
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxv4X-YXL-az58M_Qd8JZd5fvRKk62JCAeqE1E9FDcPcxFdlGHQaFojgBAaWIfg5QEdaqD3mlelbDvb6AAraIhCfDCAgXekSeyiitv9BG6hk3s4gdRk6OmP44aMTn4lOMKMfBD/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxv4X-YXL-az58M_Qd8JZd5fvRKk62JCAeqE1E9FDcPcxFdlGHQaFojgBAaWIfg5QEdaqD3mlelbDvb6AAraIhCfDCAgXekSeyiitv9BG6hk3s4gdRk6OmP44aMTn4lOMKMfBD/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/02/32.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/02/32.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content