कवि आलोचक भारत यायावर के जन्म -दिन पर विचार गोष्ठी हजारीबाग के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था परिवेश की ओर से हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि-आलोच...
कवि आलोचक भारत यायावर के जन्म-दिन पर विचार गोष्ठी
हजारीबाग के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था परिवेश की ओर से हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि-आलोचक डॉ. भारत यायावर के जन्मदिन 29 नवंबर को विचार गोष्ठी के रूप में मनाया गया। यह एक मायने में ऐतिहासिक परंपरा की शुरुआत भी है। क्योंकि शहर में किसी रचनाकार का जन्मदिन हजारीबाग के साहित्यकारों ने पहली बार मनाया। इसमें शहर के साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी सहभागी बने। आयोजन होटल वसुंधरा में संध्या छह बजे किया गया था। कार्यक्रम का आरंभ उनके जन्मदिन पर बधाई एवं शतायु होने की मंगलकामनाओं से हुआ। भारत यायावर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विभिन्न विद्वानों ने विचार प्रकट किये। जानेमाने कथाकार रतन वर्मा ने कहा कि हजारीबाग शहर में साहित्यिक परिवेश के निर्माण में भारत यायावर की केंद्रीय भूमिका रही है। उनकी प्रेरणा, सहयोग एवं प्रोत्साहन से आज मैं साहित्य-जगत में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुआ हूं। उन्होंने कहा कि इनका साथ नहीं मिलता तो मैं साहित्यकार नहीं बनता। वे मेरे अभिभावक के समान हैं।
परिवेश के संयोजक विजय केसरी ने कहा कि भारत यायावर की सृजनात्मकता ने देश एवं विदेश के साहित्यिक जगत में पहचान दिलायी है। इन्होंने सार्थक लिखा है और इनका लिखा हिंदी साहित्य की धरोहर है। कविता, आलोचना, संस्मरण एवं शब्द चित्र के साथ ही कई महत्पूर्ण ग्रंथों का संपादन कर हिंदी साहित्य के निर्माण में योगदान दिया। हजारीबाग में ये इकलौता रचनाकार हैं जिन्होंने सभी को एक सूत्र में बांधा. डॉ बलदेव पांडेय ने कहा कि भारत यायावर ने युवा प्रतिभाओं को उसी प्रकार आगे बढ़ाने का काम किया है जिस प्रकार आचार्य महावीर द्विवेदी ने किया था। इनका युवा पीढ़ी से काम लेने का तरीका अदभुत है। भारत यायावर ने हजारीबाग में साहित्यिक गतिविधियों से युवा पीढ़ी के साहित्यकारों के लिये साहित्यिक वातावरण निर्माण किया एवं प्रेरणा स्रोत भी बन गये।
युवा कवि गणेश चंद्र राही ने कहा कि भारत यायावर देश में हिंदी साहित्य जगत के चलते फिरते इनसाइकलोपीडिया हैं। हजारीबाग में इनका जन्मदिन मनाना एक नयी परंपरा का आरंभ होना है। यह गोष्ठी हजारीबाग साहित्य जगत में ऐतिहासिक है। उन्होंने कहा कि भारत यायावर ने हजारीबाग की उभरती प्रतिभाओं को संवारने एवं दिशा देने का काम किया है। वे तो यहां के साहित्यक परिवेश के लिये भारतेंदु के समान हैं। इनकी आलोचना में मौलिकता की तलाश रहती है। युवाओं को भी मौलिक लेखन करने को प्रेरित करते हैं। उनका मानना है कि साहित्य में मौलिक लेखन की स्थायी चीज हो सकती है। कविता, आलोचना, निबंध, संस्मरण, संपादन एवं साहित्यिक गोष्ठियों के आयोजन के माध्यम से इन्होंने हिंदी साहित्य की जो सेवा ही है, आज ऐसे साहित्यसेवी दुर्लभ हैं। उन्होंने साहित्य की साधना की है यही कारण कि हिंदी साहित्य को महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु एवं आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के समग्र साहित्य को कई खंडों में रचनावलियों के रूप प्रकाशित कर ऐतिहासिक काम किया है। टीपी पोद्यार ने कहा कि मैं भारत यायावर के संपर्क में चालीस साल से हूं। यही मुझे साहित्य के क्षेत्र में लेकर आये। कविता लिखने को प्रेरित किया। और नवतारा जैसी पत्रिका में उसे प्रकाशित कर मेरी साहित्यिक चेतना को जागरूक किया। वे हमेशा से साहित्यकारों के मददगार बन कर रहे हैं। इनके अलावा कवि एवं चित्रकार टीपी पोद्यार, कवि कथाकार डॉ. सुबोधकुमार सिंह ‘शिवगीत’, गीतकार अरविंद कुमार झा, साहित्यानुरागी राकेश ठाकुर, बृजलाल राणा, शोधार्थी ओमप्रकाश, करण कशिश, युगल राम, दीपक, प्रमोद जैसे कई हिंदी के विद्यार्थी एवं शिक्षकों ने भारत यायावर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विचार रखे एवं उनकी शतायु होने की मंगल कामना की।
प्रस्तुतिः गणेश चंद्र राही, ग्राम- डुमर, हजारीबाग
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लखनऊ में नवगीत महोत्सव का भव्य आयोजन
लखनऊः 25 तथा 26 नवम्बर 2017 को अभिव्यक्ति विश्वम द्वारा ओमैक्स सिटी ‘शहीद पथ’ में स्थित गुलमुहर ग्रीन स्कूल के भव्य सभागार में नवगीत महोत्सव का सफल आयोजन किया गया। नवगीत को केन्द्र में रखकर आयोजित होने वाला यह उत्सव वैचारिक संपन्नता के साथ साथ नवगीत को मीडिया एवं कला के विभिन्न उपादानों से जोड़ने के लिये जाना जाता है।
नवगीत समारोह का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। आरती मिश्रा एवं श्वेता मिश्रा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना के उपरान्त ‘रंग-प्रसंग’ के अंतर्गत कलाकारों द्वारा बनायी गयी कलाकृतियों के साथ विभिन्न नवगीतों पर आधारित पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया।
प्रथम सत्र में नवगीत की पाठशाला से जुड़े नये रचनाकारों द्वारा अपने दो-दो नवगीत प्रस्तुत किये गये। नवगीत पढ़ने के बाद प्रत्येक के नवगीत पर वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा टिप्पणियाँ की गयीं, इससे नये रचनाकारों को अपनी रचनाओं को समझने और उनमें यथोचित सुधार का अवसर मिलता है। कल्पना मनोरमा जी के नवगीतों पर सर्वश्री संजीव वर्मा सलिल एवं रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ ने टिप्पणियाँ की, त्रिलोचन कौर के नवगीतों पर सर्वश्री योगेंद्रदत्त शर्मा एवं राम गरीब ‘विकल’ ने अपनी टिप्पणियाँ की, धीरज मिश्र के नवगीतों पर सर्वश्री निर्मल शुक्ल एवं जगदीश पंकज द्वारा एवं नीरज द्विवेदी की रचनाओं पर सर्वश्री वेदप्रकाश शर्मा वेद एवं रमेश गौतम द्वारा विचार रखे गये। इस मध्य कुछ अन्य प्रश्न भी नये रचनाकारों से श्रोताओं द्वारा पूछे गये, जिनका उत्तर वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा दिया गया। प्रथम सत्र के अन्त में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से डा. अशोक कुमार ने गीत और नवगीत में अन्तर स्पष्ट करते हुए बताया कि नवगीत हिन्दी साहित्य की अविभाज्य विधा है और इस पर विश्वविद्यालयों में व्यापक शोधकार्य हो रहा है।
दूसरे सत्र में वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा अपने प्रतिनिधि नवगीतों का पाठ किया गया, ताकि नये रचनाकार नवगीतों के कथ्य, लय, प्रवाह, छन्द आदि को समझ सकें। इस सत्र में सर्वश्री निर्मल शुक्ल, लखनऊ, योगेन्द्र दत्त शर्मा, गाजियाबाद, डा. रामसनेहीलाल शर्मा ‘यायावर’, फिरोजाबाद, शीलेन्द्र सिंह चौहान, लखनऊ, वेदप्रकाश शर्मा ‘वेद’, गाजियाबाद, संजीव वर्मा ‘सलिल’, मंडला, मायामृग, जयपुर, राजा अवस्थी, कटनी, जगदीश पंकज, गाजियाबाद, रमेश गौतम, बरेली, संजय शुक्ल, गाजियाबाद, शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’ मेरठ, और राम गरीब ‘विकल’ सीधी, ने अपने प्रतिनिधि नवगीतों का पाठ किया। कार्यक्रम की समापन वेला में डॉ. विनोद निगम, होशंगाबाद, एवं डॉ. धनंजय सिंह, गाजियाबाद, ने काव्य-रसिकों के आग्रह पर एक-एक नवगीत सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया।
तीसरा सत्र नवगीतों पर आधारित संगीत संध्या का था, जिसमें लखनऊ से सम्राट राजकुमार के निर्देशन में विभिन्न कलाकारों ने नवगीतों की संगीतमयी प्रस्तुति की। तारादत्त निर्विरोधा के नवगीत धूप की चिरैया को स्वर दिया आरती मिश्रा ने, कृष्णानंद कृष्ण के गीत पिछवारे पोखर में को स्वर दिया पल्लवी मिश्रा ने, माहेश्वर तिवारी के गीत मूँगिया हथेली को समवेत स्वरों में प्रस्तुत करने वाले कलाकार रहे- आरती मिश्रा, पल्लवी मिश्रा, चंद्रकांता चौधरी, सुजैन और श्वेता मिश्रा। पूर्णिमा वर्मन के गीत सॉस पनीर को स्वर दिया निहाल सिंह ने तथा विनोद श्रीवास्तव के गीत छाया में बैठ एवं माधव कौशिक के गीत चलो उजाला ढूँढें को स्वर दिया अभिनव मिश्र ने।
कार्यक्रम का विशेष आकर्षण डॉ. रुचि खरे भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय, लखनऊ, द्वारा ‘कत्थक नृत्य’ रहा, जिसके अंत में उन्होंने संध्या सिंह के नवगीत हाथ में पतवार होगी तथा पूर्णिमा वर्मन के नवगीत फूल बेला पर प्रस्तुति दी। नवगीत पर आधाारित कत्थक का यह प्रयोग बहुत लोकप्रिय रहा। कार्यक्रम के अंत में भातखंडे विश्वविद्यालय की भूतपूर्व उपकुलपति एवं कत्थक विशेषज्ञ डॉ.. पूर्णिमा पांडे द्वारा नवगीतकार पूर्णिमा वर्मन के नवगीत मंदिर दियना बार पर नृत्य प्रस्तुत कर सबको आह्लादित कर दिया.
दूसरे दिन का पहला और कार्यक्रम का चौथा सत्र अकादमिक शोधपत्रों के वाचन का था। पहला शोधपत्र- ‘नवगीतों में ग्रामीण परिवेश की खोज’ पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में शोधार्थी श्री अनिल कुमार पांडेय ने पढ़ा। दूसरा, भावना तिवारी जी द्वारा ‘नवगीतों में महिला रचनाकारों का योगदान’ पर प्रस्तुत किया गया। दोनों आलेख सरस, रोचक और ज्ञानवर्धक रहे। तीसरा शोध पत्र श्री वेदप्रकाश शर्मा ‘वेद’ द्वारा प्रस्तुत किया गया। शीर्षक था- ‘नवगीत का सौंदर्य औदात्य’. यह शोधपत्र श्री देवेन्द्र शर्मा ‘इंद्र’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित था। अन्त में सीधी जनपद से पधारे श्री राम गरीब ‘विकल’ ने श्लोक चेतना के संवाहक नवगीत पर उम्दा व्याख्यान प्रस्तुत किया।
पाँचवा सत्र 2016 एवं 2017 में प्रकाशित नवगीत संग्रहों की समीक्षा पर केन्द्रित रहा। इस सत्र में श्री निर्मल शुक्ल द्वारा 2016 में प्रकाशित नवगीत संग्रहों पर विहंगम दृष्टि डाली गयी, जबकि श्री संजय शुक्ल ने दो दर्जन से अधिक नवगीत संग्रहों का उल्लेख किया, जिनका प्रकाशन 2017 में हुआ था। इसके साथ ही मालिनी गौतम जी के नवगीत संग्रह ‘चिल्लर सरीखे दिन’ पर श्री अनिल कुमार पांडेय ने समीक्षा प्रस्तुत की और संध्या सिंह जी के नवगीत संग्रह ‘मौन की झंकार’ पर लखनऊ से ही डॉ. अनिल कुमार मिश्र ने सारगर्भित टिप्पणी की। शुभम श्रीवास्तव ओम के नवगीत संग्रह ‘फिर उठेगा शोर एक दिन’ पर आचार्य संजीव सलिल ने अपने विचार प्रस्तुत किया। इस सत्र में बी एल राही जी के गीत संग्रह ‘तड़पन’ का भव्य लोकार्पण किया गया।
छठे सत्र में दो नवगीतकारों को अभिव्यक्ति विश्वम् के नवांकुर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार प्रतिवर्ष उस रचनाकार के पहले नवगीत-संग्रह की पांडुलिपि को दिया जाता है, जिसने अनुभूति और नवगीत की पाठशाला से जुड़कर नवगीत के अंतरराष्ट्रीय विकास की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। पुरस्कार में 11,000/- भारतीय रुपये, एक स्मृति चिह्न और प्रमाणपत्र प्रदान किये जाते हैं। आयोजन में 2016 का नवांकुर पुरस्कार संध्या सिंह जी को उनकी कृति- ‘मौन की झंकार’ तथा 2017 का नवांकुर पुरस्कार शुभम श्रीवास्तव जी को उनके संग्रह- ‘फिर उठेगा शोर एक दिन’ पर प्रदान किया गया।
पुरस्कार वितरण के बाद काव्य सत्र के विशिष्ट अतिथि श्री श्याम श्रीवास्तव ‘श्याम’ एवं कत्थक गुरू डॉ. पूर्णिमा पांडे रहे। श्रीवास्तव जी के नवगीत ने सभी उपस्थित रचनाकारों को आनंदित किया। इसके बाद सभी उपस्थित रचनाकारों ने अपने एक-एक नवगीत का पाठ किया।
प्रस्तुतिः अबनीश सिंह चौहान
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समकालीन महिला लघुकथा लेखन पर ‘क्षतिज’ संस्था इंदौर द्वारा लघुकथा संगोष्ठी का आयोजन
अपने अध्यक्षीय उदबोधान में डॉ. पदमा सिंह ने कहा कि लघुकथा का मूल संवेदना है। लघुकथा में विषय वैविध्य है। लघुकथा में समकालीनता के साथ व्यंजना भी है। मेरा एक आग्रह है कि लेखकों ने लघुकथा की शैली पर पढ़कर उस पर चिंतन करना चाहिए। पाठक पर अपनी बात छोड़ देना चाहिए और लघुकथा को सांकेतिकता के साथ समाप्त करना चाहिए। लघुकथा लेखन भी एक कला है और इस कला में हम जितने भीतर तक डूबेंगे, उतने ही पार उतर जाएंगे।
मुख्य अतिथि के रुप में श्रीमती संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि जीतना-हारना अलग बात होती है, आगे बढ़ते रहना चाहिए। लघुकथा ऐसी विधा है, जो जंगल की पगडंडी की तरह होकर भटकने से रोकती है और रास्ता दिखाती है। लघुकथा में लेखक का प्रवेश नहीं होना चाहिए और अनावश्यक रुप से रचना का विस्तार नहीं किया जाना चाहिए।
इस प्रसंग पर क्षितिज द्वारा श्री सतीश राठी के संपादन में प्रकाशित पत्रिका के ‘श्रद्धांजलि अंक’ का लोकार्पण प्रमुख अतिथि सुश्री संतोष श्रीवास्तव भोपाल एवं कार्यक्रम की अध्यक्ष डॉक्टर पदमा सिंह द्वारा किया गया। अतिथियों के द्वारा मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन भी किया गया।
इस प्रसंग पर सर्वश्री डॉ. दीपा व्यास, डॉ. वसुधा गाडगिल, ज्योति जैन, आशा वडनेरे, कविता वर्मा, ममता तिवारी, मीना पांडेय, सुधा चौहान, मंजुला भूतड़ा, डॉ. गरिमा दुबे, रश्मी वागले, शारदा गुप्ता, विनीता शर्मा, डॉ. पुष्पा रानी गर्ग, चेतना भाटी, अंतरा करवडे, कुसुम सोगानी द्वारा लघुकथाओं का पाठ किया गया। लघुकथाओं को श्रोताओं की विशेष सराहना प्राप्त हुई।
डॉ. अखिलेश शर्मा द्वारा संस्था का परिचय दिया गया, एवं संस्था द्वारा की गई गतिविधियों की जानकारी दी गई। संस्था की आगामी योजनाओं के बारे में भी उन्होंने सब को अवगत करवाया। श्री अशोक शर्मा ‘भारती’ एवं श्री सुरेश बजाज द्वारा अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए गए।
कार्यक्रम का संचालन अंतरा करवड़े के द्वारा किया गया, एवं आभार विनीता शर्मा के द्वारा माना गया।
प्रस्तुतिः सतीश राठी, इन्दौर
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सृजन सेवा संस्थान, श्री गंगानगर द्वारा युवा साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव को ‘सृजन साहित्य सम्मान’
साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान, समर्पण भाव एवं निरंतर साधना द्वारा समाज को अविरल योगदान देने हेतु चर्चित ब्लॉगर और साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव को 3 दिसंबर को सृजन सेवा संस्थान, श्री गंगानगर, राजस्थान द्वारा ‘सृजन साहित्य सम्मान’ से सम्मानित किया गया। संस्थान के अध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार ‘आशु’ ने कहा कि प्रशासनिक दायित्वों के साथ-साथ साहित्य सृजन और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में श्री कृष्ण कुमार यादव का योगदान महत्वपूर्ण है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशित होने के साथ-साथ, अब तक आपकी 7 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। देश-दुनिया में शताधिक सम्मानों से विभूषित श्री यादव एक लंबे समय से ब्लॉग और सोशल मीडिया के माध्यम से भी हिंदी साहित्य एवं विविध विधाओं में अपनी रचनाधार्मिता को प्रस्फुटित करते हुये अपनी व्यापक पहचान बना चुके हैं।
इस अवसर पर ‘लेखक से मिलिए’ कार्यक्रम में श्री यादव ने अपनी सृजन यात्रा की चर्चा करते हुए विभिन्न विधाओं में रचना पाठ भी किया। श्री यादव ने कहा कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और प्रशासनिक व्यस्तताओं के बीच साहित्य ऑक्सीजन का कार्य करता है। साहित्य न सिर्फ लोगों को संवेदनशील बनाता है बल्कि यह जन सरोकारों से जुड़ने का प्रबल माध्यम भी है। क्लिष्ट भाषा और रूपकों में बँधी रचनात्मकता की बजाय उन्होंने सहज भाषा पर जोर दिया, ताकि आम आदमी भी उसमें निहित सरोकारों को समझ सके। श्री यादव ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में कहा कि उनकी रचनाओं के पात्र हमारे आस-पास ही मौजूद हैं। सोशल मीडिया और हिंदी साहित्य के अंतर्संबंधों पर उन्होंने कहा कि यहाँ भी हिंदी साहित्य तेजी से विस्तार पा रहा है.
विशिष्ट अतिथि के रूप में बीएसएफ, जोधपुर के डिप्टी कमांडेंट और दोहाकार श्री विजेंद्र शर्मा ने कहा कि साहित्य का मूल संवेदना है और कृष्ण कुमार जी की रचनाओं की विशेषता उनकी संवेदनाओं से झलकती है। कविता केवल सच नहीं होता। उसका शिल्प और शैली भी प्रभावित करते हैं। इस मामले में आपकी रचनाएं हर कसौटी पर खरी उतरती हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए श्री अरोड़वंश समाज के पूर्व अध्यक्ष एवं समाज सेवी श्री कश्मीरी लाल जसूजा ने कहा कि कविता आदमी को सही दिशा की ओर अग्रसर करती है।
प्रस्तुतिः डॉ. सन्देश त्यागी, श्री गंगानगर (राज.)
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प्राची के संपादक राकेश भ्रमर को पत्रकारिता का पुरस्कार एवं सम्मान
जबलपुरः विगत 25 नवम्बर, 2017 को शहीद स्मारक के प्रेक्षागृह में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में जबलपुर की प्रतिष्ठित और देश-विदेश में विख्यात साहित्यिक संस्था कादम्बरी द्वारा रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के हाथों प्राची के संपादक एवं प्रख्यात कहानीकार, उपन्यासकार, कवि एवं गजलकार श्री राकेश भ्रमर को साहित्यिक पत्रकारिता के लिए स्व. विश्वंभरदयाल अग्रवाल सम्मान (भास्कर परिवार द्वारा प्रदत्त) एवं 5000 की पुरस्कार राशि दी गयी. इस अवसर पर देश के विभिन्न राज्यों से आए 38 अन्य साहित्यकारों को भी अलग-अलग पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. इस अवसर पर कांदम्बरी संस्था के अध्यक्ष, महासचिव एवं विख्यात साहित्यकार श्री राजकुमार ‘सुमित्र’ भी उपस्थिति थे.
ज्ञात हो कि राकेश भ्रमर प्राची के संपादक होने के अलावा प्रशासनिक सेवा में वरिष्ठ पद पर रह चुके हैं, परन्तु साहित्य साधना से कभी विमुख नहीं हुए. देश की लगभग सभी जानी-मानी पत्रिकाओं में वह निरंतर लिखते रहते हैं. अब तक उनकी 150 के लगभग कहानियां और 500 से अधिक गजलें, गीत और कवितायें विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. हिन्दी के अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेजी में भी छिट-पुट लेखन किया है. हिन्दी में उनकी 22 पुस्तकें और अंग्रेजी में एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं.
श्री राकेश भ्रमर ने कवि, गीतकार, गजलकार, कहानीकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार और निबंधकार के रूप में अच्छी ख्याति अर्जित की है. प्राची का वह विगत दस वर्षों से संपादन कर रहे हैं.
प्रस्तुतिः किरण वर्मा, जबलपुर
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बरगद के नीचे कहानी पाठ
जबलपुरः बरगद के नीचे कहानी पाठ की श्रृंखला में इस बार दो ऐसे खास बुजुर्गों को शामिल किया गया है जिनकी अपने-अपने स्तर पर खास विशेषताएं हैं. ‘कुंजी दादा’ जिन्हें अपनी उम्र तक का पता नहीं है. हर एक कार्यक्रम में शामिल कुंजी दादा का क्लब ने एक ‘डमी’ जन्मदिन मनाया. जब ‘दादा तुम जियो हजारों साल’ से उन्हें शुभाषित किया गया तो उनकी आंखों से प्रेमाशु निकल पड़े. कुंजी दादा यहां योग गुरू के नाम से जाने जाते हैं. अपनी बेटी के घर रहते हैं. ये बेटियां अपने माता-पिता का किस तरह और कितना ख्याल रखती हैं, यह कुंजी दादा को देखकर जाना जा सकता है. उनका कोई पुत्र नहीं है और उनकी बेटी ही बेटा बनकर उनका रख रखाव कर रही है. अतः बेटियों को हार्दिक नमन.
इस बार जल गोष्ठी हुई. डॉ. कुंवर प्रेमिल ने जल की महत्ता का वर्णन करते हुए ‘जल मित्र’ पत्रिका में प्रकाशित अपनी कविता पढ़ी.
कहीं सब कुछ बहा ले गया जल
कहीं समन्दर सा लहरा गया जल
मत फेंको भैया, बेशकीमती है जल
कभी युद्धों का कारण बनेगा जल
दूसरी बार एम.जी.ई.बी. से रिटायर्ड रमाकांत हरडे जी का जन्मदिन मनाया गया. हरडे जी से सभी वाकिफ थे...पर उनकी असली पहचान जो अभी तक छुपी हुई थी- उनके जन्मदिन पर सभी को ज्ञात हुई. हरडे जी की शैक्षणिक योग्यता इसी शहर से बी.ई. की उपाधि लेकर आगे बढ़ी. एस.ई. के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने अपनी नौकरी की शानदार पारी तय की.
ताज्जुब ही नहीं तो और क्या है यह- साठ वर्ष की आयु में उन्होंने एम.बी.ए. किया. तिरसठ वर्ष की आयु में पी.जी.डी. कर उन्होंने उम्र के बढ़ते प्रभाव को एकदम नकार दिया. अपने श्रम अपनी लगन के बलबूते हरडे साहब एक उदाहरण साबित हुए हैं. ऐसे व्यक्तित्व यदा-कदा दिखाई पड़ते हैं. रिटायर्ड होने के बावजूद विभाग ने आठ वर्षों तक उनसे सेवाएं लीं.
इस बार बाल साहित्य पर जोर दिया गया. जाहिर है कि पढ़ाई का प्रेसर बच्चों पर ज्यादा है. अपने कोर्स की किताबों के अलावा बाल साहित्य पढ़ने के लिए उनके पास समय नहीं है. तोता-रटन्त ही बच्चों का मुख्य ध्येय बनकर रह गया है. कल्पना का स्त्रोत सूख रहा है. बच्चों को बाल कहानियां-बाल कविताएं से परिचित कराने के लिए सच पूछो तो माता-पिता के पास भी पर्याप्त समय नहीं है. पैसे कमाने की होड़ ने बचपन को पंगु ही बना दिया है. तब मोबाइल पर ‘ब्लू व्हेल’ जैसे गेम उन्हें कहां से कहां की ओर ढकेल रहे हैं, अफसोसजनक है.
‘लटकराम’- यह बाल कविता डॉ. कुंवर प्रेमिल ने सुनाकर बच्चों के बलिदान को भी एक पाठ पढ़ाया है मानो. कविताएं बच्चों में ‘रिदम पावर’ पैदा कर स्मरण शक्ति को बढ़ावा देती हैं. अन्य सदस्यों ने भी रचना पाठ कर वातावरण को साहित्यिक परिवेश दिया.
उलटे-लटके बंदर भाई
पेड़ों पर जो चढ़ें-चढ़ाई
उलटबाजियां करती चील
उड़ती फिरती मीलों-मील
उल्टे-सीधे में क्या अंतर
चलो देखने, जंतर-मंतर - कुंवर प्रेमिल
शाबाशी- ‘प्राची’ को राशि 5000/- का पुरस्कार जबलपुर की साहित्यिक संस्था ‘कादंबरी’ द्वारा दिया जा रहा है. यह प्राची के मेहनत और लगन का निष्कर्ष है. राकेश भ्रमर संपादक ‘प्राची’ ने जो यह बिरवा लगाया है, उसे जो ऊंचाई प्रदान की है- उसकी सेवा-संभाल भी तो हमारे जिम्मे है. आज प्राची का नाम स्तरीय पत्रिकाओं के बीच चमक रहा है...अतः शाबाशी की पूर्ण हकदार है प्राची. इति.
संपादक- प्रतिनिधि लघुकथाएं जबलपुर (म.प्र.)
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मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल का आयोजन
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक कार्यो में कार्यरत संस्था ‘ग्रीन केयर सोसाइटी’ द्वारा ‘आई आई एम टी यूनिवर्सिटी’ में तीन दिवसीय ‘मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल’-2017 आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के माननीय राज्यपाल श्री राम नाईक जी रहे और सरस्वती जी के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन कर के कार्यक्रम का उद्घाटन किया.
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में सार्क विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. राजीव कृष्ण सक्सेना, कार्यक्रम अध्यक्ष वरिष्ठ शिक्षाविद व साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य डॉ. योगेन्द्र नाथ घर्मा ‘अरुण’, अति विशिष्ठ अतिथि नेपाल से श्री बसन्त चौधरी-कवि, साहित्यकार व समाजसेवी, प्रो. सरन घई वरिष्ठ साहित्यकार व हिंदी सेवी-कनाडा, श्री प्राण जग्गी वरिष्ठ साहित्यकार-अमरीका, श्री छत्रपति फुएल वरिष्ठ साहित्यकार-भूटान, मेजर गौरव आर्य रक्षा विशेषज्ञ व सैन्य लेखक, डॉ. श्वेता दीप्ती सम्पादक, हिमालिनी मासिक हिन्दी पत्रिका-नेपाल, श्री सूर्य प्रसाद लाकोजू- सम्पादक अक्षर मार्ग पत्रिका-नेपाल, श्री सच्चिदानंद मिश्रा प्रबन्ध निदेशक ‘हिमालिनी’ हिन्दी मासिक पत्रिका-नेपाल, डॉ. गणेश दत्त शर्मा उपाध्यक्ष, संस्कृत अकादमी, दिल्ली सरकार, आई आई एम टी यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति श्री योगेश मोहन जी गुप्ता, नेपाल से वरिष्ठ साहित्यकार श्री सनत रेग्मी, आर आर चौलागाई, डॉ. घनश्याम परिश्रमी, अनीता अर्याल नेपाल, सरु सुबेदी, राजेन्द्र गुरागाई जी सहित नेपाल से ही अन्य 55 साहित्यकार की गौरवमयी उपस्थिति रही.
देश के कोने कोने से 550 की संख्या में वरिष्ठ साहित्यकार-पत्रकार-लेखक-कवि-गजलकार-पर्यावरणविद बंधु व सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे.
इस अवसर पर ग्रीन केयर सोसाइटी के संस्थापक- सामाजिक कार्यकर्ता-लेखक व स्क्रीन प्रिन्टिंग इंडस्ट्री से जुड़े डॉ. विजय पंडित ने कहा कि ये आयोजन प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जायेगा और इसके माध्यम से देश दुनिया में मेरठ को एक सकारात्मक पहचान के साथ साहित्यिक नगरी के रूप में स्थापित करने के साथ साथ नवोदित साहित्यकारों-लेखकों को एक अन्तराष्ट्रीय मंच प्रदान करना है.
मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल 2017 में कवि सम्मलेन, मुशायरा, सामाजिक व साहित्यिक परिचर्चाएं, कहानी वाचन, रंगमंच के साथ कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण का केंद्र एक भव्य पुस्तक प्रदर्शनी भी रही जिसमें देश विदेश के साहित्यकारों की दुर्लभ पुस्तकें प्रदर्शित की गयी. साथ ही अनेक प्रकाशकों व स्कूली प्रतिष्ठानों की स्टाल भी लगी हुई थी.
इस आयोजन में बसन्त चौधरी फाउंडेशन-नेपाल और अमरीकन किड्स-मेरठ, हिमालिनी पत्रिका-नेपाल, अक्षर मार्ग पत्रिका-नेपाल, स्क्रीन प्रिन्ट इंडिया- मुम्बई का विशेष योगदान रहा.
कार्यक्रम का सफल संचालन अंतर्राष्ट्रीय लेखक श्री कुमार पंकज, डॉ. राम गोपाल भारतीय, सुमन द्वारा किया गया.
प्रस्तुतिः डॉ. विजय पंडित, मुख्य आयोजक
मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल, मेरठ
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