सफर // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी

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कार शहर से निकलकर एक सिंगल पक्के रास्ते पर चलने लगी थी। रियाज को कोई विशेष जल्दी नहीं थी। वह इतनी जल्दी नहीं पहुंचना चाहता था। बैठे बैठे उसे...

कार शहर से निकलकर एक सिंगल पक्के रास्ते पर चलने लगी थी। रियाज को कोई विशेष जल्दी नहीं थी। वह इतनी जल्दी नहीं पहुंचना चाहता था। बैठे बैठे उसे विचार आ गया था। उसने किसी को नहीं बताया था। उसने अपने साथ कुछ लिया भी नहीं था। न ज्यादा कपड़े, न शेविंग का सामान। दोपहर का खाना खाने के बाद थोड़ा लेटने के बाद अचानक उठ बैठा था। मोमी सो रही थी। रियाज के उठने पर उसने अर्ध नींद स्वर में पूछा था, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मुझे तो जाना है। बात ही भूल गया था।’’

‘‘कहां जाना है?’’ मोमी ने पूछा।

‘‘मीरपुर खास। एक व्यक्ति से जरूरी काम है।’’ उसने झूठ बोला था। उसे लगा कि बिना सोचे बोला गया झूठ खुद-ब-खुद बन गया था। लेकिन अगर वह सच कहता तो क्या फर्क पड़ता। केवल इतना कि मोमी को सुनकर आश्चर्य होता और ज्यादा प्रश्न करती।

‘‘रात को लौट आओगे?’’

‘‘नहीं, रात का सफर ठीक नहीं। कल शुक्रवार है। दोपहर को किसी वक्त आ जाऊंगा।’’ उसने सोचा शाम तक लौट आएगा और बताएगा कि उसके कुछ मित्र मिल गए थे।

‘‘ठीक है,’’ मोमी ने तटस्थ होकर कहा और करवट बदली। रियाज बूट पहनकर बाहर निकला और कमरे का दरवाजा बंद किया।

सामने से एक बस आ रही थी। रियाज को पता था कि ड्रायवर बस को रास्ते से नहीं उतारेगा। वह कार को कच्चे रास्ते पर उतार ले गया और जल्दी ही बस के चले जाने के बाद पक्के रास्ते पर आया। वह दस वर्षों के बाद गाँव जा रहा था। गाँव जाने में काफी वक्त लग गया था। इसके लिए कोई खास कारण उसे नहीं सूझा। कभी जरूरत ही नहीं पड़ी। कोई काम नहीं था। गाँव में एक पिता और शादीशुदा बहन थी। कुछ जमीन थी जिससे उसका कोई संबंध नहीं था। उसने बदी का हाथ ठुकराकर पिता को क्रोधित कर दिया था। अगर पिता की मर्जी से शादी करता तो गाँव से उसका संबंध नहीं टूटता।

बाजू का शीशा उतरा हुआ था, फिर भी पूरी हवा नहीं आ रही थी। रियाज ने एक हाथ से स्टेयरिंग संभाला और थोड़ी दूर झुककर दूसरे दरवाजे का शीशा कुछ नीचे उतारा। अब हवा को रास्ता मिल गया था। तपती दोपहर थी और जून की सख्त गर्मी थी। रियाज ने सोचा कि वर्षा होनी चाहिए। दिल खुश हो जाएगी। उसका गला सूख गया था। पता नहीं गाड़ी के रेडिएटर में भी पानी था या नहीं। टेम्प्रेचर का कांटा थोड़ा ऊपर चढ़ आया था। आगे जो शहर आएगा, वहां पर उसने कार रोकने के लिए सोचा। प्यास सता रही थी। उसने एक गल्ती की थी जो अपने साथ वाटर कूलर नहीं लिया था। कम से कम थर्मस तो लेता। बिना प्रोग्राम निकलने से ऐसा ही होता है। लेकिन उसे अचानक ऐसा विचार कैसे आया... आगे कुछ भैंसें रास्ते से निकल रही थीं, उसने ब्रेक को धीरे से दबाया। कार धीमी होकर ठहर गई। दूर खेत से लड़का दौड़ता आया। उसने लाठी से भैंस को हकला (दूर किया)। रियाज ने गाड़ी को फर्स्ट गीयर में डाला और आखिरी भैंस के जाने के बाद कार चलने लगी। रास्ते के एक बाजू खेती में गनक्े की फसल थी। रास्ते के दूसरी ओर कांटेदार पौधे थे। उससे थोड़ी दूर रेल की पटरी थी। रास्ते पर ज्यादा ट्रेफिक नहीं थी। कभी कभी कोई बस या ट्रक गुजर रही थी, तब वह कच्चे रास्ते पर उतर आता था।

उसे दूर शहर की जगहें नजर आने लगीं। उसने कार वहां पर रोकने के लिए सोचा। उसने स्पीड थोड़ी बढ़ा दी। रास्ते के किनारे कुछ होटलें थीं। उसने कार एक होटल के आगे रोकी। वह होटल दूसरों के मुकाबले कुछ अच्छी थी। दूसरी होटलें कच्ची ईंटों की बनी हुई थीं। वह अंदर घुस गया। होटल में सफाई ठीक-ठाक थी। वह एक खाली टेबल पर जा बैठा। बैरा पानी का जग और ग्लास लेकर आया। रियाज ने देखा कि ग्लास को बाहर से तेल लगा था। किसी ने खाना खाकर पानी पिया था और फिर ग्लास को साफ नहीं किया गया था। उसने बैरे को बबल अप लाने के लिए कहा। उसे अपने थर्मस में पानी ले आने का विचार आया। उसने बड़ी गल्ती की थी। ऐसे गंदे ग्लासों में पानी पीने से उल्टा दिल घबरा जाता है, प्यास कहां से उतरेगी। बैरा बोतल लेकर आया था और उसके आगे खोलकर टेबल पर रखा। उसने बोतल उठाकर मुंह को हाथ से रगड़कर साफ किया और मुंह पर लाकर घूंट भरा। इतनी खास ठंडी नहीं थी। लेकिन कम से कम डिस्टिल्ड वाटर तो था। सामने वाली टेबल पर एक व्यक्ति खाना खा रहा था। वह हड्डियां नीचे फर्श पर फेंक रहा था। रियाज ने आखिरी बड़ा घूंट भरा और पानी का जग लेकर बाहर गाड़ी के पास आया। रेडिएटर का ढक्कन अभी भी गर्म था। रियाज गाड़ी साफ करने वाला कपड़ा ले आया और ढक्कन को धीरे धीरे घुमाकर खोल लिया। पानी थोड़ा कम था। उसने कार का दरवाजा खोलकर अंदर झुककर गीयर को न्यूट्रल में किया और कार को स्टार्ट किया। फिर आगे आकर रेडिएटर में पानी डालने लगा। भर जाने के बाद उसने ढक्कन लगाकर बोनेट को बंद किया। कार को बंद करके जग लेकर अंदर होटल में गया। जग टेबल पर रखकर काऊन्टर पर आया। बैरे ने चिल्लाकर पैसे बताए और पैसे भरकर वह कार की ओर गया।

कार रोड पर आई तो उसने वही स्पीड रखी। शहर पीछे रह गया और फिर से खेती और उनमें लहलहाते फसल का सिलसिला शुरू हो गया। अगर कहीं पर रास्ता रोका हो, तो वह क्या करेगा? समाचार पत्रों में रोज ये समाचार आ रहे थे कि फलां जगह पर लुटेरों ने पेड़ काटकर रोड ब्लॉक कर लूटमार की। उसने सोचा कि उसके पास क्या था। घड़ी, एक हजार रुपए कैश और यह कार। उसे रास्ते पर कोई न कोई सवारी मिल जाती, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान उसे कार लुट जाने से होता। हो सकता है कि लुटेरे उसे भी अगवा करके अपने साथ ले जाएं। फिर उसके लिए पैसा कौन देता! एक लाख रुपयों से तो ज्यादा ही मांगते। इतने पैसे कहां से आएंगे। बाप इतना पैसा नहीं देगा। इतने तो क्या बिल्कुल ही नहीं देगा। बैंक में रखा कैश और मोमी के जेवरों को मिलाकर एक लाख रुपए हो जाएंगे। लेकिन क्या वह अपने जेवर देगी! रियाज अपने आप मुस्कराया। लुटेरों को पैसे कहीं से नहीं मिलेंगे। एक सरकारी कर्मचारी को अगवा करके अपने लिए मुसीबत खड़ी करेंगे। वह एक गाँव से गुजरा। गाँव के कुत्ते भौंकते कार के साथ दौड़े। बाकी सब थककर जल्दी ठहर गए लेकिन एक कुत्ता बहुत दूर तक कार के पीछे दौड़ता रहा और पीछे रहने के बाद भी भौंकता रहा। रियाज को विचार आया कि वह कुत्ता किसी ट्रक या बस के नीचे आकर जरूर मरेगा। उस कुत्ते को औरों से कुछ ज्यादा ही चिल्ल पों थी। हायवे पर किसी गाड़ी के नीचे आकर मरे कुत्ते को देखकर उसे कुत्ते के मौत वाली कहावत याद आती थी। मौत तो केवल मौत है, फिर कुत्ते की मौत मरना क्या होता है... लोग मरना भी शान से चाहते हैं।

उसे फिर से प्यास लगी थी। उसे खुद पर गुस्सा आया। थर्मस लेना जरूरी था। कुछ बस स्टॉपों पर कच्चे होटल बने हुए थे। उसने वहां रुककर पानी पीने के लिए सोचा। उसने स्पीड बढ़ाई। दोपहर गुजर चुकी थी। शाम होने को आई, फिर भी गर्मी थी। दूर से उसे कुछ रिहायशी इलाके नजर आए। बस स्टॉप पर कुछ दुकानें और दो तीन होटलें थीं। उसने एक होटल के आगे कार खड़ी की, हॉर्न बजाया। होटल के आगे कुछ खाट पड़े थे जिन पर लोग बैठे थे।

लड़का दौड़ता उसकी ओर आया।

‘‘पानी तो पिला, लेकिन ग्लास को धोना,’’ रियाज ने लड़के को कहा।

‘‘जी, साहब,’’ लड़का वापस दौड़ता गया।

होटल के बाजू एक हैंड पंप लगा था। रियाज कार से उतरकर नीचे खड़ा हो गया। रियाज का मन हुआ कि उस हैंडपंप का ताजा पानी पीए। उसने देखा कि लड़का जग और ग्लास लेकर हैंडपंप की ओर गया। रियाज को यह बात अच्छी लगी। लड़के ने ग्लास धोया और फिर पूरा जग भरकर रियाज की ओर ले आया। पानी ठंडा और लोहे के स्वाद वाला था। वह दो ग्लास पी गया। फिर उसने एक रुपया निकालकर लड़के की ओर बढ़ाया।

‘‘नहीं साहब, पानी के पैसे लेते हैं क्या! पानी पिलाना तो पुण्य का काम है।’’ लड़का ग्लास और जग लेकर वापस गया। रियाज ने एक रुपए का नोट जेब में डाला और कार में आ बैठा। कार को टॉप में लाकर उसने कुछ ज्यादा स्पीड में चलने के लिए सोचा। वह सूर्य उतरने से पहले गाँव पहुंच जाना चाहता था।

धीरे-धीरे हवा में गर्मी और घुटन कम होती गई। खेतों में लहलहाती फसल बढ़ती शाम के रंग में रंगकर गहरा हरा लग रहा था। रियाज को गाँव में शाम का वक्त अच्छा लगता था। पेड़ों के चारों ओर बैठे पक्षी, धूल उड़ाते भैंसें अपने घरों की ओर लौट रहे थे और था गोधूली का रंग। उसके बाद धीरे धीरे रोशनी कम हो गई और चारों ओर अंधेरा छा गया। जैसे कि जमीन ने काली चादर ओढ़ ली हो। रियाज के मन पर बचपन के सभी चित्र चित्रित हो गए। गाँव को छोड़े भी कई वर्ष बीत गए। गाँव जाना भी ऐसा था जैसे कुछ वक्त के लिए परदेस जाना, और फिर लौटकर अपने देश जाना था। अब तो शहर ही उसका देश था।

अचानक उसे कुछ जाना पहचाना लगा। अब गाँव नजदीक था, कुछ मीलों के फासले पर। रियाज ने देखा कि सूर्य का गोला गनक्े की लाठियों पर आ ठहरा था। कुछ ही देर में वह गनक्े के गहरे फसल में गायब हो जाने वाला था। रियाज को कोई विचार आया और उसने रास्ते के एक बाजू कार रोकी। दरवाजा खोलकर बाहर आया। उसने लगातार दो तीन बड़ी सांसें लीं। फसल की खुशबू उसके दिमाग पर छा गई। सूर्य का ठंडा गोला नीचे होता गया। रियाज ने सोचा वह वहीं खड़ा रहे जब तक सूर्य उतरे और फिर वापस लौटकर शहर चला जाए। वह ढलते सूर्य को देखता रहा जब तक कि सूर्य गनक्े की फसल में छिप न गया। रियाज ने सोचा की अंदर घुसकर सूर्य को ढूंढे। वह कार में बैठा। थोड़ी ही दूर गाँव की ओर जाता रास्ता नजर आया। उसने कार को मोड़कर गाँव की ओर जाते कच्चे रास्ते पर डाला। गनक्े के गहरे फसल के बीच से रास्ता था। कार धीरे धीरे चलती गई। अभी अंधेरा नहीं हुआ था। जैसे ही रास्ता फसल से बाहर निकला, आगे गाँव था। वह गाँव जहां वह पैदा हुआ था, उसका बचपन गुजरा था।

उसने कार बरामदे के आगे खड़ी की। बरामदे पर पड़ी एक खाट पर उसका बाप बैठा था। दूसरी खाट खाली पड़ी थी, जिस पर चादर बिछी हुई थी। स्कूल की दो तीन बेंचोें पर कुछ लोग बैठे थे। रियाज कार का दरवाजा खोलकर बाहर आया। बेंचों पर बैठे लोग उठ खड़े हुए। वे उसके बाप के किसान थे। रियाज बाप की ओर आया जो तकिए पर टेक लगाकर बैठा था। वह सीधा होकर बैठा और रियाज ने थोड़ा झुककर उसे हाथ दिया।

‘‘कैसे हो?’’ बाप ने पूछा।

‘‘ठीक हूं।’’ उसने जवाब दिया।

‘‘बैठ,’’ बाप ने बाजू में पड़े खाट की ओर इशारा किया। खड़े लोग बारी बारी से हाथ देते गए।

‘‘बूट उतारकर आराम से बैठ,’’ बाप ने कहा। ‘‘घर पर सब कुशल मंगल है?’’

‘‘हां, सब ठीक है।’’ उसने बूट उतारकर पैर ऊपर किए और तकिए को टेक दी।

बाप ने उससे उसकी नौकरी और शहर का हालचाल पूछा। फिर उसने चिल्लाकर लड़के को बुलाया कि घर में रियाज के आने का बताए और चाय बनवाकर लाए। कुछ और लोग भी आए जो शायद खेतों से लौटे थे। वे रियाज को हाथ देकर बैंचों पर जा बैठे और उसके बाप को हालचाल देने लगे। बाप किसानों के साथ खेतों के कामकाज के बारे में बातें करने में e'kxwy हो गया। रियाज की इन बातों में दिलचस्पी नहीं थी। उसने वहां खुद को अकेला (पराया) महसूस किया, जैसे कि शहर का कोई व्यक्ति था जो किसी काम से इस गाँव में आया था। लड़का केतली और दो खाली कप ले आया। कप भरकर एक उसके बाप को और दूसरा उसे दिया। इतने लोगों के बीच केवल खुद और बाप चाय पी रहे थे। रियाज को यह अच्छा नहीं लगा। शुद्ध दूध की गहरी मीठी चाय उसे अच्छी नहीं लगी। लेकिन उसे कुछ भूख भी लग रही थी, इसलिए वह पूरा कप पी गया। खाली कप लड़के को देकर वह फिर से लेट गया। कचहरी लगी हुई थी। रियाज को लगा कि उसका दिमाग थक गया है। यहां क्यों आया था? उसे विचार आया। उसने ध्यान से लोगों को देखा। अंधेरे में किसी का भी चेहरा साफ नहीं था। सभी चेहरे धुंधले थे। सामने खाट पर बैठा व्यक्ति भी धुंधला था। रियाज को यह सब अजीब लगा। वह किसी अनजान जगह पर बैठा था। उसका वहां पर क्या काम था! उसके मन में अंधेरा छा गया था। मन में और बाहर सब गुंथा हुआ था और अंधेरे में बंधा हुआ था। कोई व्यक्ति उसके आगे आ खड़ा हुआ था और उसकी ओर हाथ बढ़ाया था। रियाज ने तकिए से उठकर हाथ दिया। वह व्यक्ति उसके ही खाट पर बैठ गया था।

‘‘कब पहुंचे?’’ उस व्यक्ति ने पूछा।

‘‘शाम को,’’ उसने उत्तर दिया। लेकिन वह समझ नहीं पाया कि वह व्यक्ति क्यों उसके नजदीक आ बैठा था। उसने चाहा कि उसे अकेला छोड़ दिया जाए।

‘‘घर से होकर आए हैं?’’ उस व्यक्ति ने फिर से पूछा।

‘‘घर? यहां पर घर कहां से आया?’’ रियाज ने खुद से पूछा।

सामने खाट पर बैठे व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति को उत्तर में कुछ कहा और दूसरी बात पूछी। वे दोनों आपस में बातें करने लगे। रियाज ने अपनी जान आजाद महसूस की। उसने तकिए पर टेक लगाई। cki सामने खाट पर बैठा क्रोध से सख्त आवाज में बातें कर रहा था और बैंचों पर बैठे लोगों में से कोई हाथ बांधकर मेमने जैसी आवाज में बातें कर रहा था। दूर कहीं कुत्ते भौंक रहे थे। रियाज को लगा कि वह फंस चुका था। भागने की कोई जगह नहीं थी। उसकी पूरी शक्ति खत्म हो चुकी थी और मन भी सूना सूना लग रहा था। उसने गल्ती की थी यहां आकर।

खाट पर साथ बैठे व्यक्ति ने उससे कुछ कहा। रियाज ने समझा नहीं और नजरअंदाज किया।

‘‘शायद सो गया है। थक गया होगा।’’ किसी ने कहा।

उसका नाम लेकर किसी ने बुलाया। उसने आंखें खोलकर देखा। सब लोग खड़े हो गए थे और सामने खाट पर बैठा व्यक्ति उठकर उसके आगे आ खड़ा हुआ था।

‘‘सो गए हो क्या? उठ, घर चलें।’’

रियाज चुपचाप उठा और दोनों लोगों के साथ चलने लगा। भागने की कोई जगह नहीं थी। वे घर में घुसे। औरतें ने रियाज को घेर लिया। उससे उसका, घर का और बच्चों का हालचाल पूछने लगीं।

‘‘अच्छा अच्छा, अब बाकी हालचाल कल पूछना। बेचारा बहुत थका हुआ है। जल्दी खाना लेकर आओ तो खाकर सोए।’’ बाहर जो व्यक्ति उसके साथ बैठा था उसने सख्ती से कहा। रियाज के मन में भरपूर इच्छा जागी कि वह तो अभी ही शहर वापस चला जाए। उसकी भूख खत्म हो चुकी थी। इसके बावजूद उसके आगे जो खाना आया उसने खाकर पूरा किया।

‘‘आप चाहें तो सो जाइए, कल बातें करेंगे।’’

रियाज खाट पर लेट गया और साफ आकाश पर झिलमिल करते अनंत तारों को देखने लगा। उसकी पलकें भारी होती गईं और फिर आंखों को ढक लिया।

उसकी आंख खुली तो उसके ऊपर हल्की धूप पड़ रही थी। सूर्य चढ़ आया था। उसके आसपास की खाट खाली पड़ी थी। सब चले गए थे। उसे याद आ गया और उसे आश्चर्य हुआ कि रात को क्या हुआ था। रात को नशे जैसी हालत में था। उसने कोई ऐसी चीज खाई भी नहीं थी। केवल चाय पी थी, लेकिन वह तो ठीक थी। वह खाट से उठा। सामने से उसका जीजाजी दातुन करता हुआ आ रहा था। उसे देखकर दातुन मुंह से निकालकर थूक फेंककर, हंसता हुआ उसकी ओर आया।

‘‘रात को तबियत ठीक नहीं थी क्या?’’

उसे लग रहा है कि शायद मैं नशे में था, रियाज ने सोचा।

‘‘नहीं, बहुत थक गया था।’’ रियाज ने उत्तर दिया।

‘‘तैयार हो जाईए तो नाश्ता करें।’’

रियाज हाथ मुंह धोकर बरामदे में रखी कुर्सियों पर आ बैठा। उसे देखकर उसकी बहन उसकी ओर बढ़ आई।

‘‘भाई, तुमने तो हमें बिल्कुल भुला ही दिया है। इतने वर्ष बीत जाते हैं और हमारा कोई हालचाल नहीं पूछते।’’ बहन ने ताना दिया।

‘‘नहीं, भूला नहीं हूं। तुम तो याद आती हो...’’

‘‘HkkHkh और बच्चे खुश हैं? उनको भी लेकर आते।’’

‘‘हां, लेकर आऊंगा, लेकिन तुम भी तो कभी आओ न!’’ रियाज ने हंसते कहा।

‘‘बस भाईजान, लेकर आने वाले कभी लेकर आएं न।’’

उनका बाप भी आकर वहां बैठा था।

‘‘नाश्ता तैयार हो तो लेकर आओ,’’ उसने अपनी लड़की को कहा। उसके जाने के बाद उसने धीरे से बेटे को कहा, ‘‘ये अचानक कैसे आए, कोई जरूरी काम था?’’

‘‘नहीं नहीं, कोई काम नहीं था। ऐसे ही अचानक विचार आ गया।’’

‘‘अच्छा किया, अच्छा किया। बच्चे तो खुश हैं? उनको लेकर नहीं आए?’’

‘‘दोपहर की गर्मी में निकला था, बच्चों को तकलीफ होती। अगली बार ले आऊंगा।’’ उसने उत्तर दिया। उसे पता था कि बाप मोमी के बारे में कुछ नहीं पूछेगा। उसका जीजाजी भी आकर बैठ गया और उसके पीछे नाश्ता भी आ गया। खाना खाते वक्त दोनों ने रियाज से उसकी नौकरी और तरक्की के इमकान के बारे में पूछा। रियाज को विचार आया, कि बच्चों को स्कूल जाने में तकलीफ हुई होगी। मोमी गुस्से में बच्चों को रिक्शा में ले गई होगी... लेकिन फिर उसे याद आया कि आज शुक्रवार था। रात को बच्चों ने वी.सी.आर. पर फिल्म देखी होगी। हो सकता है दो फिल्में देखी हों और अभी तक सो रहे हों।

चाय पीकर खाली कप रखते रियाज ने कहा, ‘‘अब मैं चलूंगा।’’

‘‘कहां?’’ बाप ने अचरज से पूछा।

‘‘शहर।’’

‘‘लेकिन आज तो तुम्हें छुट्टी है। अभी ही जाने की क्या जल्दी है?’’

‘‘कुछ लोगों में जरूरी काम है। उनसे वक्त ले चुका हूं।’’

‘‘खेती तो घूमते,’’ उसके जीजाजी ने कहा।

‘‘अगली बार छुट्टी लेकर आऊंगा, फिर दो तीन दिन रह जाऊंगा।’’

‘‘भाईजान, कौन-सा रोज रोज आते हैं? आज भी पता नहीं किस भाग्य से आए हैं। आज का दिन तो रह जाइए,’’ बहन ने कहा।

‘‘अब जल्दी आऊंगा। आप भी तो आइए न,’’ उसने जीजा की ओर देखते कहा।

‘‘छोड़ो, मानेगा नहीं,’’ बाप को उसकी जल्दबाजी अच्छी नहीं लगी थी। ‘‘आदमी आए तो शांति से आए, बाकी ऐसे आने से क्या लाभ!’’

दोनों उसे कार तक छोड़ने आए। कार मिट्टी से सनक् गई थी।

‘‘ऐ लड़के, कार को तो पोंछ लो,’’ जीजा ने कहा। ‘‘मुझे चाबी दीजिए तो पानी चेक कर लूं।’’

रियाज ने उसे चाबी दी।

‘‘आए भी जल्दी, जा भी जल्दी रहे हो। है तो सब खैर?’’ बाप ने अविश्वास से पूछा।

‘‘नहीं नहीं, ऐसी कोई खास बात नहीं है। बस ऐसे ही...’’ रियाज हंस पड़ा।

‘‘अजीब आदमी हो तुम, बाल बच्चों वाले हो गए हो लेकिन अभी तक ऐसी आदतें नहीं गई हैं...’’ बाप ने गुस्से में कहा। उसके बाद दोनों में से कोई नहीं बोला।

कार साफ हो चुकी थी। रियाज ने दोनों से विदा ली और कार में जा बैठा। उसने कार स्टार्ट कर इंजन को थोड़ा गरम होने दिया। वे दोनों अभी भी खड़े थे। रियाज ने बांह बाहर निकालकर उनकी ओर हाथ हिलाया और फिर कार को मोशन में किया। पक्के रास्ते पर चढ़ने के बाद कार को टॉप में लाकर उसने स्पीड बढ़ा दी। वह जल्दी शहर पहुंचना चाहता था। खेत और पेड़ तेजी से भागते गए और उसकी नजर सीधे आगे के रास्ते पर थी।

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: सफर // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
सफर // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
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