जैसे ही वह नींद से जागा तो रात वाला डर फिर से उसके मन में घुस आया। वह रात को भी देर रात तक उस बारे में सोचता रहा था कि आने वाले दिन का वह कि...
जैसे ही वह नींद से जागा तो रात वाला डर फिर से उसके मन में घुस आया। वह रात को भी देर रात तक उस बारे में सोचता रहा था कि आने वाले दिन का वह किस प्रकार सामना करेगा। दस वर्ष पहले भी उसके साथ वही घटा था। जब काफी वक्त तक बेरोजगार रहने के बाद उसे अभी ताजा ही एक नौकरी मिली थी, तो वह पूरी रात सो न सका था। नौकरी मिलने की खुशी के साथ उसे डर भी था। वह उसकी पहली नौकरी थी, इसलिए वह डर रहा था कि पता नहीं ऑफिस वालों का उसके साथ कैसा व्यवहार रहेगा। लेकिन उस बात को दस वर्ष बीत चुके थे और अब वह नौकरी से इस्तीफा देकर दूसरी जगह जा रहा था। ‘दस वर्ष!’ उसने सोचा कि उसकी जिंदगी के दस वर्ष नौकरी में चले गए थे और इससे ज्यादा वक्त दूसरी नौकरी में चला जाएगा। व्यक्ति की पूरी उम्र केवल रोजी रोटी के चक्कर में ही पूरी हो जाती है। ‘जहां तक पेट पालने का प्रश्न है तो यह नौकरी ही ठीक है। दूसरी में कौन-सा धन इकठ्ठा करूंगा। यहां घुल मिल गया हूं, नई जगह पर पता नहीं दिल लगे या न लगे...! यह सोचकर उसने दूसरी नौकरी के लिए कभी भी कोई कोशिश नहीं की थी। यहां पर उसे यह सहूलियत थी कि वह अपने घर वालों के साथ रहता था और बदली का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता था। किसी और नौकरी में तो शायद उसे बाहर जाना पड़ता और यह बात वह और उसके घर के लोग नहीं चाहते थे। लेकिन कुछ वक्त से वही रुटीन काम करते करते वह परेशान हो गया था। वही ऑफिस, वही घर, घर से ऑफिस और ऑफिस से घर जाने का वही रास्ता। हैदराबाद की तंग, कई मोड़ों वाली गंदी गलियां। जिन पर हर वक्त नालियों का गंदा पानी पड़ा रहता था। अचानक कराची से उसे एक नौकरी की ऑफर हुई और उसने रुटीन लाइफ से जान छुड़ाने के लिए वह ऑफर स्वीकार की थी। अब उसे जो नौकरी मिली थी उसमें न केवल पगार कुछ ज्यादा थी, उसे प्रमोशन की भी उम्मीद थी। वैसे पोस्ट कोई खास नहीं थी, इसलिए उसे कोई खुशी भी नहीं थी। उसने सोचा कि और नहीं तो एक प्रकार का परिवर्तन तो है। अगर यहां पर भी परेशान हो गया (और परेशान होगा, यह उसे पता था, उसका स्वभाव ही ऐसा था) तो कहीं और जगह पर कम से कम ऐसी नौकरी तो मिल ही जाएगी। पूरी उम्र एक ही जगह पर बैठकर तो उसे कैरियर बनाना नहीं था।
इस्तीफा लिखने पर उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे अपनी किसी पुरानी चीज को छोड़ने पर होता है। उसने जिस ऑफिस में दस वर्ष बिताए थे, वहां से वह हमेशा के लिए जा रहा था। इतना वक्त किसी जगह पर रहने से लगाव तो पैदा हो ही जाता है। उसने ऐसे लोग देखे थे, जिन को अपनी ऑफिस से बहुत प्यार था-घर से भी ज्यादा। इतनी हद तक कि उनको घर से ज्यादा ऑफिस में सुख मिलता था। ऐसे लोग जब रिटायर करते थे या इस्तीफा देते थे तो वे रो देते थे। वह ऐसे लोगों पर हँसता था, लेकिन अब उसे डर लग रहा था। वह खुद भी एक भावुक व्यक्ति था, इसलिए हो सकता है ऑफिस से विदा होते समय उसका मन भर आए, उसकी आंखें गीली हो जाएं और हो सकता है कि आँसू निकल आएं। विदाई की दावत में बातें करते उसका गला भर आएगा, गले में कुछ अटक जाएगा और उसके मुंह से एक भी अक्षर नहीं निकलेगा। इतने लोगों के आगे रोनी सूरत बनने वाली बात उसे अच्छी नहीं लगती। लेकिन खुद को रोक सकना भी तो उसके वश में नहीं था।
‘ऑफिस में मैंने कौन-से शेर मारे हैं जो मेरे लिए पार्टी कर रहे हैं! छोड़ दें तो चुपचाप चला जाऊं।’ तभी उसे विचार आया कि अगर ऑफिस वाले उसके जाने की दावत न करते तो वह ऐसा सोचता कि ऑफिस वालों ने उसे कोई महत्व ही नहीं दिया। उसे थोड़ी खुशी हुई, लेकिन फिर डर गया कि इस मौके पर वह कोई ऐसी वैसी हरकत न कर बैठे।
आखिर वह खाट से उठा। उसने घड़ी में वक्त देखा तो दस्तूर (परम्परा-तय वक्त) के खिलाफ उसे एक घंटा देर हो गई थी। अब उसे यह डर नहीं था कि ऑफिस में देर से पहुंचेगा, इसलिए वह आराम से तैयार होने लगा। लेकिन उसे लगा कि इस ढीलेपन की वजह उसे आज के दिन का डर था। उस वक्त उसे याद आया कि ऑफिस की ओर से एक फोटोग्रॉफर को भी बुलवाया गया है। उसने सोचा कि इस अवसर पर उसे विशेष तैयारी करनी चाहिए। लेकिन ढीलेपन की वजह से वह कोई विशेष तैयारी नहीं कर पाया और पहले की तरह ही साधारण कपड़ों में ऑफिस की ओर रवाना हुआ। उसने खुद को यह बात समझानी चाही कि हमेशा की तरह वह आज भी ऑफिस जा रहा था। उसने कोशिश की कि आखिरी दिन वाली बात को कुछ वक्त के लिए मन से निकाल दे लेकिन यह कोशिश बेकार थी। विदाई वाला भूत उसके मन में पूरी तरह से घुस चुका था।
उसे अपने भावुक स्वभाव पर क्रोध आने लगा। उसने सोचा कि ऑफिस जाकर इस्तीफा वापस ले और खुद को अपने ऐसे स्वभाव पर सजा दे। आखिर पूरी उम्र तो वह ऑफिस में रह नहीं सकता। कभी न कभी तो उसे ऑफिस को छोड़ना ही था। आज नहीं तो कल। इतना भावुक लगाव भी नहीं होना चाहिए जो आदमी आँखें बंद करके, सब कुछ त्याग दे। अभी वह नौजवान था और उसे ऐसी जगह होना चाहिए जहां आगे बढ़ने के लिए मैदान (मौका) हो। यह तर्क देकर खुद को समझाता रहा, लेकिन उसे लगा कि वह जितना पानी को शान्त करने की कोशिश कर रहा था, उतना ही नीचे तल में तूफान उठ रहा था।
वह सोचने लगा कि दावत में अगर भाषण किया गया तो उसे उत्तर में क्या कहना पड़ेगा। वह जवाबी भाषण के लिए शब्द ढूंढने लगा : ‘मैं आपका बहुत शुक्रगुजार हूं जो आपने मुझे इस लायक समझा। मैंने इसे ऑफिस को ऑफिस नहीं बल्कि अपना घर समझा था।’ ऑफिस के लिए घर का शब्द उसे अच्छा नहीं लगा। आदमी (व्यक्ति) इस बात को अनुभव कर सकता है, परंतु जबान से कहना ठीक नहीं था, इसलिए उस पंक्ति को उसने रद्द कर दिया। ‘हमने इस ऑफिस में मिलकर ईमानदारी और मेहनत से काम किया है। उसने ऑफिस के काम को अपना खुद का काम समझा है। सच पूछें तो आपसे और इस ऑफिस से अलग होते मुझे कितना दुःख हो रहा है, वह शब्दों में बयान नहीं कर सकता। चाहे कहीं पर भी होऊं, लेकिन आपको और इस ऑफिस को भूल नहीं पाऊंगा...’ उसे लगा कि वहां पर वह रो पड़ेगा। हो सकता है कि उसकी आँखों में आँसू भर आएं। उसके बाद औरतों की तरह रुमाल से आँखें साफ करते वह कितना अजीब और मजाकिया लगेगा।
‘लेकिन दस वर्ष कोई छोटा वक्त तो नहीं! इतने वक्त तक जिन लोगों के साथ रहा हूं उनसे विदा लेते वक्त अगर मन भर आया तो कितनी बुरी बात है! दुःख तो होगा ही और ऑफिस के लोगों को भी दुःख हुआ होगा। इतने वक्त तक मैंने किसी से बुरा व्यवहार नहीं किया है, सभी से अच्छा चला हूं...’’ तभी उसे विचार आया कि भाषण में उसे ये शब्द भी कहने चाहिए ‘अगर मुझसे कोई भी गल्ती हो गई हो या अनजाने में मैंने किसी का दिल दुखाया हो तो मुझे माफ कीजिएगा।’ मन में यह पंक्ति टोकते मंज़ूर ने महसूस किया कि उसके दिल को एक हल्का झटका आया था।
उसने जैसे ही ऑफिस के अंदर प्रवेश किया तो सामने आलिम चौकीदार मिल गया।
‘‘साहब, आज हमसे अलग हो रहे हैं।’’
‘‘इन्सान दुनिया में हमेशा नहीं रहता, यह तो ऑफिस है।’’ उसने मुस्कराकर उत्तर दिया।
‘‘साहब मैं खुशामद नहीं कर रहा हूं लेकिन आपके जाने पर बहुत दुःख हुआ है...’’
वह आगे बढ़ गया। उसे पता था कि ठहरने पर आलिम तिल का ताड़ बना देगा। उसे विचार आया कि ऑफिस के सभी लोगों को कह दे कि मेरे आगे कोई भी मेरे जाने का जिक्र नहीं करे। लेकिन औरों को यह बात अजीब लगती। उसे खुद पर क्रोध आने लगा। मैं भी अजीब हूं। कई सौ हजारों लोग नौकरी छोड़ते और बदली करते हैं। आखिर मेरे साथ ऐसी क्या समस्या है?’’
उसे आता देख उसका चौकीदार उसके लिए ऑफिस का दरवाजा खोल खड़ा हो जाता है।
‘‘साहब, आज आखिरी बार ऑफिस में बैठिए।’’
उसने चाहा कि चीखकर कहे, ‘बंद करो यह बकवास। मैं नौकरी छोड़ रहा हूं, मर तो नहीं रहा।’ लेकिन मुंह पर बनावटी मुस्कान बिखेरकर वह अंदर चला गया और अपनी कुर्सी पर जा बैठा। उसे लगा कि कुछ कुछ उसकी साँस फूल रही थी। ‘अगर अंदर आकर चौकीदार वही बकवास करने लगा तो मैं कैसे खुद को रोक पाऊंगा और अगर मेरे मुंह से कोई ऐसी बात निकल गई तो सभी ऐसे ही समझेंगे कि मैं होश में नहीं हूं।
उसने अपने शरीर को कुर्सी पर ढीला छोड़ दिया और टांगे फैलाकर पसर गया। ‘अच्छा तो आज मेरा ऑफिस में आखिरी दिन है! आखिरी दिन... आखिरी दिन...क्या बकवास है...’ उसने दांत कटकटाकर खुद को डांटा। उसके दिल ने चाहा कि मेज पर जोर से घूंसा मार दे, लेकिन उस वक्त चौकीदार अंदर घुस आया।
‘‘साहब, बड़े साहब आपको बुला रहे हैं।’’
बिना कुछ कहे वह उठा और जल्दी बाहर निकलकर बड़े साहब की ऑफिस में चला गया।
‘‘हाँ भाई, एक मिनट,’’ साहब ने मेज पर पड़े कागजों के ऊपर से सर उठाकर, सामने कुर्सी की ओर इशारा करके उसे कहा और फिर से कागजों को देखने लगा। उसका साहब के साथ व्यवहार हमेशा अच्छा रहा था। अलविदा पार्टी भी साहब की इच्छा अनुसार हो रही थी। वह उस घड़ी का इन्तजार करने लगा जब साहब औरों की तरह उसके जाने के बारे में बातें करेगा।
साहब ने कागजों के ऊपर से सर उठाकर उसकी ओर देखा।
‘‘हां तो...’’ फोन की घंटी ने उसे आधे में रोक दिया।
‘‘एक मिनट,’’ उसने रिसीवर उठाते कहा।
फोन साहब के किसी गहरे मित्र का था। इसलिए फोन पर कचहरी होने लगी। वह बैठे बैठे बोर होने लगा। उसने सोचा कि उठकर चला जाए। पहले जब भी साहब के पास कोई महत्त्वपूर्ण फोन आता था तो वह उठकर चला जाता था। लेकिन इस बार उठकर चले जाना उसे खराब लग रहा था। बातचीत के जल्दी खत्म होने के आसार नजर नहीं आ रहे थे। उसकी बोरियत बढ़ती गई। ‘ऐसा बेकार दिन मैंने कभी नहीं देखा है,’ उसने सोचा। उस वक्त साहब ने मित्र से विदा लेकर रिसीवर नीचे रखा।
‘‘तबियत तो ठीक है न, थके थके लग रहे हो,’’
साहब ने उससे पूछा।
‘‘मेरे मुंह में धूल,’ उसने कहना चाहा। ‘‘नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ उसने मुस्कराकर उत्तर दिया।
‘‘अभी मैं एक जरूरी काम से बाहर जा रहा हूं, शायद थोड़ी देर हो जाए। मैं आऊं तो फिर साथ मिलकर खाना खाएंगे।’’ साहब ने उठते कहा और बाहर चला गया।
वह अपनी ऑफिस में लौट आया। उसने कुर्सी पर बैठकर अपनी ऑफिस पर नजर डाली। उसे कुछ अजीब अजीब लगा। जैसे वह किसी पराई ऑफिस में काम के लिए आकर बैठा था और वहां बोर होकर जल्दी से वहां से बाहर निकलने के लिए उतावला था। उसके मन में आया कि उठकर भागकर, घर चला जाए।
‘‘आज तो बेचारा मेहमानों के जैसा बैठा है।’’ उसके दो तीन साथी अंदर घुस आए थे।
‘‘बस साहब, भाग्यशाली है जो जान छुड़ाकर गया, नहीं तो यहां भुखमरी के अलावा और कुछ नहीं है।’’
‘‘हां यार, उसे नौकरी मजे वाली मिली है। हमें खुशी है कि हम में से एक मित्र तो कम से कम सुधरा।’’
उसने औरों के साथ हंसने की कोशिश की, लेकिन उसके गले से कोई आवाज नहीं निकली, केवल बनावट नजर आ रही थी। वह समझ रहा था कि उसके साथी इसलिए खुश नहीं हुए थे कि उसे अच्छी नौकरी मिली थी, लेकिन हकीकत में वे उसके जाने पर खुश हो रहे थे। ‘हो सकता है कि अंदर में जल रहे हों। लेकिन अगर मेरी जगह पर कोई और जाता तो फिर बाहर मैं उनके साथ मिलकर हंसता और अंदर में जलता।’ उसे खुद पर हंसी आने लगी। और उसने देखा कि उसके ठहाकों के नीचे औरों के ठहाके दब गए थे। लेकिन उन ठहाकों में मजबूती नहीं थी और उसके मन पर पड़ा भार थोड़ा चलकर फिर से जम गया।
‘‘साहब आ गया है। कहा है कि फोटोग्राफर पहुंच गया है। चलकर फोटो निकलवाइये।’’ चौकीदार ने अंदर आकर जानकारी दी।
जैसे ही वह पंक्तियों में रखी कुर्सियों के बीच बैठा तो साहब ने उसे फूलों का हार पहनाया।
‘‘मेहरबानी।’’ उसने कहा। उसे आश्चर्य हुआ कि उसकी आवाज मृत थी। फोटो निकलते वक्त भी उसे कुछ महसूस नहीं हुआ। कुछ वक्त के बाद खाना खाते वक्त उसे ऐसा लगा जैसे वह किसी आम दावत में बैठा था। वह समझ नहीं पाया कि उसके अंदर अचानक इतनी गहरी खामोशी क्यों छा गई थी!
‘‘रिवाजी भाषण करने की जरूरत नहीं है। अपने चाहे कहीं पर भी जाएं, उनको अपने साथ ही समझा जाएगा।’’ खाना खत्म होने के बाद साहब ने कहा और सब हंसते हुए टेबल पर से उठे।
वह साहब के साथ उसकी ऑफिस में गया। थोड़ी देर बैठने के बाद उसने कहा ः ‘‘अच्छा साहब, अब मुझे इजाजत दीजिए।’’ साहब ने उठकर उसे गले से लगाया।
‘‘जब भी कोई काम हो तो बे झिझक आना।’’ साहब ने कहा।
वह डरा कि अब उसका दिल जरूर भर आएगा।
‘‘मेहरबानी,’’ उसने कहा, लेकिन उसका स्वर साधारण था। वह साहब के ऑफिस से बाहर निकल आया। बरामदे से देखा कि सामने दूर से रास्ते पर बस आ रही थी। पहले उसने सोचा कि बाकी साथियों से विदा ले, लेकिन ज्यादा सोचे बिना वह दौड़कर रास्ते पर आया और बस में चढ़ गया।
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