हैदराबाद में आतंकवादियों को जब इन्सानों का खून बहाना होता था तो पहले वे उसकी रिहर्सल करते थे। पहले पहले सिंधी गाँव वालों से मारपीट और उनकी ब...
हैदराबाद में आतंकवादियों को जब इन्सानों का खून बहाना होता था तो पहले वे उसकी रिहर्सल करते थे। पहले पहले सिंधी गाँव वालों से मारपीट और उनकी बेइज्जती की जाती है। इसके अलावा स्कूलों में पढ़ने वाले सिंधी बच्चों को डराने की कार्यवाहियां होती हैं।
यह रिहर्सल कुछ दिनों से चल रही थी। तीन चार आतंकवादी कलेशनकोफ लेकर एम नामचीन स्कूल के अंदर घुस गए। उस स्कूल में शहर के अमीरों और साहूकार लोगों के बच्चे पढ़ते थे। आतंकवादी एक क्लास के अंदर घुस गए। उस वक्त उनकी हम जबान टीचर क्लास ले रही थी। आतंकवादियों ने उसे बाहर निकल जाने का इशारा किया।
वह बच्चों को आतंकवादियों के रहमो करम पर छोड़कर बाहर निकल गई।
‘‘यहां पर जो सिंधी हैं वे खड़े हो जाएं!’’ आतंकवादियों के नेता ने आदेश दिया।
क्लास में कुल तीस बच्चे थे जिनकी उम्र लगभग छः से सात वर्ष के बीच थी।
‘‘अगर कोई झूठ बोला तो उसे गोली मार देंगे...’’ दूसरे आतंकवादी ने धमकी दी।
दस बच्चे डरते डरते खड़े हो गए। पहली बार उनकी आँखों में मौत का खौफ दिख रहा था।
‘‘सभी यहां कोने में कतार में खड़े हो जाओ!’’
डरे हुए बच्चे एक कोने में खड़े हो गए।
दो आतंकवादी उन्हें थप्पड़ मारते उनकी घड़ियां, पेनें और जेब में पड़ी खर्ची छीनते गए।
‘‘अभी भी कोई रह तो नहीं गया है?’’ दरवाजे पर खड़े आतंकवादी ने अपनी हम जबान बच्चों की ओर देखकर कहा। ‘‘कोई झूठ तो नहीं बोला है?’’
एक बच्चे ने दूसरे की ओर इशारा किया।
‘‘खड़े हो जाओ!’’ आतंकवादी चीखा।
बच्चा डरकर उठ खड़ा हुआ।
‘‘कौन हो तुम?’’ डांटता है।
‘‘मैं सैद हूं।’’
‘‘मुहाजर सैद या सिंधी सैद?’’ दुबारा डांट।
बच्चा उलझ गया। थोड़ा सोचकर कहा, ‘‘पता नहीं!’’
‘‘घर पर कौन-सी भाषा बोलते हो?’’ आतंकवादी ने अब कुछ नरमी से पूछा।
‘‘इंग्लिश और उर्दू।’’ बच्चे ने उत्तर दिया।
आंतकवादी मुस्कराये।
‘‘फिर यह सिंधी कैसे हुआ?’’
एक आतंकवादी ने दूसरे से कहा।
‘‘हूं!’’ आतंकवादी नेता ने कुछ सोचा। समस्या को सुलझाना जरूरी था। उसके बाद उसे एक युक्ति सूझ आई। ‘‘तुम्हारा बाप क्या करता है?’’
‘‘ज़मींदार है।’’
‘‘हूं!’’ आतंकवादियों ने अर्थ भरी नजरों से एक दूसरे को देखा।
‘‘कहां पर जमीनें हैं तेरे बाप की?’’
‘‘सुकरंड में...’’ अचानक एक थप्पड़ बच्चे के गाल पर पड़ गया। वह बेंच पर जा गिरा।
‘‘हमें बेवकूफ बना रहा था उंगली जितना छोकरा!’’ आतंकवादी ने टोकते हुए कहा।
‘‘उठाओ इस सिंधी पूंगरे को...’’ आतंकवादी नेता ने आदेश दिया।
आतंकवादी बाज़ों की तरह बच्चे को उठाकर बाहर चले गए। स्कूल के कॉरीडोर में सन्नाटा छा गया था। विद्यार्थी और मास्टरनियां क्लासों और कामन रूमों में सांस रोककर बैठे थे।
आतंकवादियों ने बच्चे को उठाकर बाहर खड़ी जीप में फेंका। जीप तेज रफ्तार से चली गई। आतंकवादी बच्चे को पंजे, थप्पड़ मारते और गालियां देते रहे।
‘‘वे साले उर्दू पढ़ लिखकर हमारे अधिकार छीन ले गए और अब सिंधियों ने यह हरामखोरी शुरू की है,’’ आतंकवादी नेता ने औरों को इस साजिश से रूबरू किया।
‘‘हूं!...’’ दूसरे आतंकवादियों ने भयानक हुंकार से बच्चे को घूरकर देखा। उन्हें बच्चा साजिश का हिस्सा लगा।
‘‘इसका बाप सैद है और बड़ा जमींदार है। पक्का ही सूअर अधिकारी भी होगा और लोगों का अपहरण करवाकर पैसे भी लेता होगा!’’
‘‘आज उसके बेटे का अपहरण हुआ है। भले सूअर के बच्चे को पता चले...’’ आतंकवादी ठहाके लगाने लगे।
‘‘फिर कैसा मास्टर? ले चलें इसे टार्चर रूम में...’’ जीप चलाने वाले आतंकवादी ने पूछा।
‘‘छोरा टार्चर रूम की डांट सह नहीं पाएगा। मर जाएगा,’’ दूसरे ने कुछ डर जताया।
‘‘लेकिन अभी केन्द्र से ग्रीनी सिगक्ल नहीं मिला है। अभी केवल मारपीट करने का ऑर्डर है,’’ आतंकवादी नेता ने कहा।
‘‘ठीक है तो फिर इसे किसी भीड़ में फेंककर चले जाएंगे।’’ उन्होंने निर्णय किया।
जीप होम स्टेड हॉल वाली चढ़ाई चढ़कर ऊपर आई। एक आतंकवादी कलेशनकोफ के साथ पक्के किले के दरवाजे पर उतर गया। जीप किले के आड़े तिरछे रास्तों से होते नीचे आई और फकीर की पौढ़ी की ओर जाने वाले चौक पर भीड़ के बीच आ खड़ी हुई। एक आतंकवदी ने बच्चे को जीप से नीचे उतारा और जीप फुलेली की ओर जाने वाले रास्ते पर चली गई।
बच्चा डर के मारे कांप रहा था। उसका गला सूख गया था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहां पर है। किसी से कुछ पूछने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। बच्चा सिटी कॉलेज के आगे बनी दुकानों के फुटपाथ पर बैठ गया।
इस बीच स्कूल के प्रिंसिपल ने पुलिस को और बच्चे के रिश्तेदारों को सूचना दे दी थी। पुलिस की मोबाइल टीमें और बच्चे का बाप शाह साहेब जी पजेरो जीप की तलाश में निकल चुके थे। शहर से बाहर जाने वाले रास्तों पर बनी पुलिस चौकियों पर कड़ी छानबीन शुरू हो गई थी।
पुलिस की एक गाड़ी डोमण नदी, निशात सिनेमा से होते फकीर की पौड़ी की ओर आई। ए.एस.आई. की नजर अचानक फुटपाथ पर बैठे बच्चे पर पड़ी। सिंधी लग रहा था और किसी बड़े घर का खानदानी था। उसने ड्राईव्हर को गाड़ी रोकने के लिए कहा।
ए.एस.आई. नीचे उतर आया और बच्चे के पास गया।
‘‘कौन हो तुम?’’ उसने पूछा। बच्चा डरकर उठ खड़ा हुआ। डर के मारे वह कोई उत्तर न दे पाया।
‘‘भाई, तुम कौन हो? किसके लड़के हो? कहां रहते हो?’’
‘‘डिफेंस सोसायटी में,’’ बच्चे ने डरते डरते आखिरी प्रश्न का उत्तर दिया।
ए.एस.आई. को विश्वास हो गया कि यह सैदों का लड़का है। ‘‘सैद अहमद अली शाह के लड़के हो?’’
‘‘हां,’’ बच्चे ने उत्तर दिया।
ए.एस.आई. की बांछें खिल गईं।
‘‘ज़ोरावर! पहले क्यों नहीं बताया कि कौन हो। अच्छा बैठ गाड़ी में, शाह साहब खुद थाने में बैठा है...’’
उसने बच्चे को अपने साथ आगे बिठाया और वायरलेस पर बच्चे के मिलने की सूचना दी।
गाड़ी पुलिस चौकी पहुंची तो शाह साहब पहले ही से बाहर खड़ा मिला। उसने बच्चे को ऐसे गले लगाया कि उसे अपने से अलग ही नहीं कर रहा था। बच्चा बिल्कुल अचंभित और उलझन में था। उसने एक शब्द नहीं कहा।
शाह साहब ए.एस.आई. का लाख लाख बार शुक्रिया अदा कर रहा था।
‘‘साहब, हम तो अपनी पूरी कोशिश करते हैं। जान हथेली पर लेकर आपकी खिदमत करते हैं। फिर भी लोग कहते हैं कि पुलिस निक्कमी है। क्राइम पर कंट्रोल नहीं करती।’’
‘‘नहीं नहीं, आज का काम तो सभी बातों का उत्तर है,’’ शाह साहब ने कहा।
बयान लिखाने के लिए बच्चे को इंस्पेक्टर के कमरे में लाया गया।
‘‘शाह साहब पर अपनी मेहरबानी हो गई। पता है?’’ ए.एस.आई. ने पीछे जाते हवलदार को आंख मारी। ‘‘शाह साहब जल्दी ही मंत्री बनने वाले हैं।’’
कानूनी कार्यवाही पूरी होने के बाद शाह साहब बच्चे को लेकर बंगले पर पहुंचा। बच्चे की माँ, मौसी, फूफी रोती आयीं और बारी बारी से बच्चे को गले से लगाया।
बच्चा चुपचाप सबको देखता रहा। फिर पूरी टोली ड्राईंग हॉल में आ बैठी। वे बच्चे से अलग अलग तरह के प्रश्न पूछने लगे और बच्चा ‘‘हां ना’’ में उत्तर देता रहा। जैसे कि वह अभी तक थाने में बैठा हो।
‘‘बेचारा थका हुआ है, पूरे दिन का भूखा है। इसे खाना तो दो, या ऊपर बैठकर खाने बैठ गईं हो सब,’’ शाह साहब ने सबको झिड़क दिया। बच्चा मिलने की खुशी में घर वाले यह बात भूल ही गये थे कि बच्चा भूखा है।
‘‘नहीं मुझे भूख नहीं है।’’
बच्चे ने पहली बार बात की। फिर अचानक वह उठ बैठा। उसने अपने माँ बाप की ओर चेहरा करके पूछा : ‘‘हम कौन हैं?’’
घर वालों ने आश्चर्य से एक दूसरे की ओर देखा।
‘‘हम सैद हैं, भाई!’’ शाह साहब ने उसे बताया।
‘‘इसे यह भी पता नहीं कि हम सैद हैं!’’ बच्चे की माँ को पूरे दिन की मानसिक पीड़ा भोगने के बाद पहली बार अपने बेटे की सादगी पर हंसी आई।
‘‘नहीं, तुम सब लोग झूठ बोल रहे हो। हम सिंधी हैं...’’ बच्चा चीखकर कहने लगा। ‘‘हम सिंधी हैं, तभी तो उन्होंने मुझे मारा...’’ वह दौड़ते अपने कमरे में चला गया।
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