खोई हुई परछाईं (सिंध की कहानियां) लेखक श्री. शौकत हुसैन शोरो अनुवाद डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी भारतीश्री प्रकाशन , दिल्ली-110032 KHOI HUI PARC...
खोई हुई परछाईं
(सिंध की कहानियां)
लेखक
श्री. शौकत हुसैन शोरो
अनुवाद
डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
भारतीश्री प्रकाशन, दिल्ली-110032
KHOI HUI PARCHHAI (Sindh Ki Kahaniyan)
by Shri Shoukat Hussain Shoro
© Translator, Dr. Sandhya Chander Kundnani
B-2/31, BEST Officers Quarters,
Devidayal Road, Mulund (W),
Mumbai - 400 080.
ISBN : 978-81-88425-74-7
लेखक : श्री शौकत हुसैन शोरो
कॉपीराईट : अनुवादक
आवरण डिजाईन : प्रवीण राज
प्रथम संस्करण : 2017
मूल्य : ` 450
प्रकाशक : भारतीश्री प्रकाशन
10/119, पटेल गली, विश्वास नगर,
शाहदरा, दिल्ली-110032
फोन : 011-22303184
e-mail : shilalekhbooks@rediffmail.com
शब्द-संयोजन : गणपति कम्प्यूटर्स, दिल्ली-110032
मुद्रक : बी.के. आफसैट, दिल्ली-110032
भूमिका
शौकत हुसैन शोरो : सशक्त कहानीकार
‘सिंधी कहानी की यह बदनसीबी है कि उसे समालोचक नहीं मिले हैं, जो सिंध में लिखने वाली कहानी का मूल्यांकन करें और परखें। हां बाकी परम्परायी कहानी को मास्टर टाईप और सरसरी नजर डालने वाले समालोचक मिले हैं । नई कहानी को समझने के बदले ऐसे नकादों माणिक, मुश्ताक शोरो, मदद अली ने सिंधी कहानी और नए कहानीकारों पर अंतर्मुखी निराशाजनक और भगोड़े टाईप साहित्य पेश करने के इल्जाम लगाकर उन्हें बदनाम कर दिया है... अकेलापन वर्तमान दौर की विशेष समस्या है और इसलिए नए लेखक का खास शीर्षक, परंतु यह ठीक नहीं है कि नया लेखक अकेलेपन का इतना दावेदार है जो उसे समाज और उसकी समस्याओं में दिलचस्पी नहीं। वह अपने माहौल और समाज का Parasite नहीं, बल्कि एक जिंदा रुकन है...फर्क केवल इतना है कि वह उस तस्सूर को किसी राजनैतिक मुहावरे में पेश नहीं करता और न अपने तस्सूर को नारों और मंशूरों की शक्ल देता है। उसका जिंदगी से सरसरी नजर के तौर पर कोई संबंध नहीं...नई कहानी में जिस परायेपन, अकेलेपन या मानसिक संघर्ष या बेदिली और बेबसी का इज्हार किया जाता है, उसके कारण हमारे अपने माहौल में हैं। इलामती और तजरीदी कहानियों में निराशाजनक, हारे हुए का एहसास और मायूसी का जो माहौल मिलता है, उसका संबंध देश के मौजूदा हालातों से है और भावनात्मक लेखकों का उनसे मानसिक तौर पर आकर्षित होना स्वाभाविक बात है।
शौकत हुसैन शोरो की कहानियों के दूसरे भाग ‘आखों में टंगे सपने’ (सन् 1983) के दो शब्द में उनका ही नाम देने की इच्छा यह है कि उनकी यादगार कहानी, मैंने व्याख्या के लिए चुनी है, उसका कुछ भाग समझने में हमें मदद मिले।
मेरा करीबी मित्र कहानीकार शौकत शोरो, सिंध में लिखने वाली कहानी के बहाव में उस वक्त दाखिल हुआ, जिस वक्त यहां भारत में भी बंटवारे के बाद, कहानी में तरक्की पसंद कहानी, रोमानवी या प्रयोगशील कहानी की दो पीढ़ियों के बाद, बीती सदी के सातवें दशक में नई या मॉडर्न कहानी की तीसरी लहर बेबाक नमूने, एक जोरदार तरीके से शुरू हुई । सरहद के आरपार, सिंधी साहित्य में, बावजूद देशों के हालात, राजनीति और माहौल के, मैं ऐसा समझता हूं, कई फर्कों के बावजूद, समालोचकी साहित्य के बनने और छपने में यह एक समान इत्तेफाक नहीं था। शेरो शायरी या अफसानवी साहित्य में, अपनी अपनी कला के बदौलत, या मुशायदे या अनुभव की अलग अलग भागों के फर्क, इज्हार, प्लान या विषय की पेशकश में अलग अलग हो सकते हैं या हैं, परंतु वर्ल्ड साहित्य के अभ्यास और आलमी फिकरी महिरकन की हद में अहसास लगभग वही रहते हैं । यहां पर हिन्द की कहानी में तीन पीढ़ियों का सिलसिला यहां पर फिर से दोहराना जरूरी समझता हूं, क्योंकि यहां उन पड़ावों से हम वाकिफ हैं। सिंध में, बंटवारे के बाद पहली पीढ़ी जमाल अबड़ी, हमीद सिंधी, या किसी हद तक शेख अयाज़ की कहानियों से, अपना अलग, परंपरायी ही सही, महत्वपूर्ण श्रेणी रखती है। उसके बाद दूसरी पीढ़ी में नसीम खरल, अमर जलील, आगा सलीम, सम्रीन ज़रीन, इसके अलावा माहताब मेहबूब ने सिंधी कहानी को भरपूर और मजबूत पहचान दी, तो उसके बाद मॉडर्न साहित्य से भरपूर तीसरी पीढ़ी में माणिक, मुश्ताक शोरो, अली बाबा, मुम्ताज़ महर, खेर अलंसाइ जाफरी, मदद अली सिंधी और शौकत शोरो ने हमारे हिन्द की नई कहानी को नई दिशा दी और नकारात्मक दिशाएं दूर कर दीं। शौकत हुसैन के साथ साथ सिंध के अभ्यासियों में, खास तौर पर मुमताज़ महर जैसे समालोचक ने भी यह बात मानी है कि मॉडर्न कहानी, अपने नए रंग रूप में पहले भारत की सिंधी कहानी में प्रकट हुई और वे खुद भी उनसे रूबरू हुए। खैर।
यहां पर मुझे बात शौकत शोरे की कहानी की करनी है तो नए अहसासों, नए रंग रूप और गैर जज्+बाती रचनात्मक साहित्य से सराबोर रहकर मेरा करीबी मित्र शौकत हुसैन शोरो, देश के बंटवारे से एक महीना पहले 4 जुलाई 1947 ई. पर संयुक्त हिन्दुस्तान में जन्म लिया बौर बीती सदी के सातवें दशक में, अपनी पहली कहानी ‘आंखें रो पड़ीं, (1964 ई.) से नई मॉडर्न पीढ़ी के समालोचकों में शामिल हुआ। अब तक उनकी पचास कहानियां छप चुकी हैं । अब तक उनकी दो रचनाएं (1) गूंगी धरती बहरा आकाश (1981 ई.) और (2) आंखों में टंगे सपने (1983 ई.) छप चुकी हैं, जिनमें कुछ 21 कहानियां हैं । ताजा पता चला है कि सिंधी अदबी बोर्ड जैसा पुराना और महत्वपूर्ण बोर्ड शौकत शोरे की कहानियों का मजमूआ छपवा रहा है। मेरा विचार है कि साहित्य में गिनती का इतना स्थान नहीं है जितना उसकी समालोचक क्षमता की है।
इस लिहाज से सिंध के कहानीकारों में इससे पहले जमाल अबड़े या उसके बाद दूसरी पीढ़ी के उच्च कहानीकार नसीम खरल, अमर जलील या आगा सलीम की बात न भी करें, खुद तीसरी पीढ़ी के मॉडर्न कहानीकारों माणिक, मुश्ताक शोरो, अली बाबा, खैर अलंसा जाफरी की कहानियों जितनी हिम्मत, इज्हार करने की क्षमता यह मुझे मानना पड़ेगा, शौकत शोरो की कहानियों में नहीं मिलती । लेकिन उनकी कहानियां विषयी कैन्वास ठंडा और शांत लेकिन बेबाक अंदाज इसके अलावा उनका मानसिक धरातल, बिल्कुल विचित्र, पढ़ने वालों को अंदर से बेचैन कर देता है और आज के जीवन की कड़ी सच्चाईयों से सामना करवाती है, यही उनका खास अंदाज है । शौकत हुसैन वर्ल्ड साहित्य, खास तौर पर मॉडर्न अफसानवी से अच्छी तरह वाकिफ है लेकिन एक शान्त और अच्छे व्यक्ति की भांति, हालातों के संघर्ष की नब्ज पर अपने दाएं हाथ की उंगली रखकर, कहानी को बुनता है । वैसे उनकी कहानियों में कोई भी घटनात्मक उथल पुथल, ड्रामाई अंदाज, शीर्ष पर पहुंचकर कोई चमत्कार इत्तेफाक से नजर आता है । इतने कदर कि फैंटसी की तर्ज पर लिखी उनकी कुछ कहानियों जैसे कि ‘समुद्र और डरी हुई रूह’ या ‘सुरंग’ में डरावने हालात ‘लो कीज़’ के सुरों में, पढ़ने वाला जब ध्यान से कान लगाकर सुनने की कोशिश करेगा, तो ही उसमें डूबकर उसे समझ पायेगा।
शौकत शोरो की कहानियों की इन शान्त अंदाज वाली कहानियों से मैंने उसकी एक ऐसी ही यादगार कहानी ‘एक भयभीत व्यक्ति’ चुनी है । ‘कूंज’ की इस खास शुमारी में शामिल इस कहानी के अलावा और भी दो कहानियां जो शामिल हैं (1) खौफ की मौत और (2) ‘खाली पेज’ मैं समझता हूं पाठकों को उसका भरपूर अहसास करवा सकेंगी।
अपने स्वभाव, व्यवहार और जाहिरी प्रोफाइल में मानसिकता से भरपूर लेकिन बहुत कम बात करने वाला और शांत लगने वाले इस भले व्यक्ति की यह कहानी ‘एक डरा हुआ व्यक्ति’ ऐसे ही ठंडे नश्तर समान पढ़ने वाले के अहसास को चीरती है।
उनकी vU; कहानियों समान, इस कहानी में भी अकेलेपन, आत्म बेगानियत और बोरियत, उस दौर के जागृत नौजवान, दरम्यानी दर्जे के फर्द का नसीब थी । धीरे धीरे, कहानी की प्रोटोगान्स्ट सरकारी दर्जे के एक कर्मचारी की जिंदगी में बुनी हुई है। वह अकेला है, शायद भाड़े की जगह के एक कमरे में रहता है। एक शाम कराची के खास रास्तों की भीड़ में पिसता, घूमता, फुटपाथ पर रद्दी पुस्तकों की दुकान से नोबोकोफ का मशहूर उपन्यास ‘लोलीता’ सस्ते भाव में खरीदकर, किसी सस्ते होटल में बैठकर चाय के साथ, उस उपन्यास को पढ़ने का इरादा करता है। ‘शाम की यातना उसे कैसे भी करके सहकर बितानी थी।’ लेकिन रास्ता लांघने के इंतजार में वह अकेली खड़ी 28 या 30 वर्ष की प्राईवेट कालगर्ल को देखता है। उसे लगा की वह किसी ग्राहक की ताक में थी। उस डरे व्यक्ति ने उस प्राईवेट, सांवले रंग की, लेकिन आकर्षक कद वाली कालगर्ल से आखिर बातचीत करने में liQyrk ikbZ।
पूरी कहानी में दोनों की पहली मुलाकात, उसके बात किसी मशहूर बड़े होटल की कैबिन में बैठकर बातचीत करना, अकेलेपन और बोरियत के लिए चंद घंटे खरीदकर उसके साथ बिताना चाहता है। नौजवान कर्मचारी ने चाहा कि और कुछ नहीं तो ‘उस औरत का चेहरा अपने हाथों में पकड़कर उसकी आंखों में देखता रहे और उसमें खुद को ढूंढे’ लेकिन ऐसा कर नहीं पाता।
वह पूछती है, ‘मुझे इस प्रकार क्यों देख रहे हो? मैं इतनी सुंदर तो नहीं।’ उसका उत्तर : ‘मैं तुम्हारी आंखों में कुछ ढूंढ रहा हूं।’
औरत चकित रह गई।
औरत फिर से पूछती है, ‘कोई जगह या होटल का कमरा लेना पड़ेगा?’
‘उसकी कोई जरुरत नहीं।’
‘और जेब से उस दिन की मिली पगार के पैसे निकालकर टेबल पर रख देता है और कहता है, दो तीन घंटे की तुम्हारी जितनी फीस है, वह उनमें से निकाल ले।’
अपने धंधे में ऐसे व्यक्ति से उसका कभी पाला नहीं पड़ा था। ‘नहीं मुझे ऐसे पैसे नहीं चाहिएं।’
और कहानी में, वहीं होटल में बैठते दोनों की एक खास मुफासले पर रहते बातचीत करने का अपना ही अंदाज है।
दोनों मामूली, मर्द ग्राहक और प्राईवेट औरत, विशेष प्रकार के व्यवहार में चित्रित किए गए हैं। मर्द इस प्रकार की खरीद की औरत के जनाने साथ के व्यवहार से बिल्कुल अनजान है या शरीफ व्यक्ति और डरा हुआ है। और औरत प्राईव्हेट कालगर्ल के अपने पेशे में इस प्रकार के अनोखे संबंध में बिना एक दूसरे के नाम पूछने, बिना शारीरिक संबंध, इत्यादि के कहानीकार, इन चंद घंटों के साथ में, सहज स्वभाव ऐसा चित्रित किया है जो बिल्कुल प्यारे जैसे कि घरेलू व्यवहार में, शुद्ध जनाने अंदाज से, कभी ऐसा लगे कि जैसे अपने पति के साथ, प्यार भरा व्यवहार कर रही है।
मिसाल के तौर पर, होटल से निकलकर, ईद करीब होने के कारण, प्राईव्हेट की फी के बदले उसे खुद के लिए भी कुछ खरीद करने के लिए मनाकर, फिर से जब रास्तों पर निकलते हैं, तब उसके इसी संक्षिप्त व्यवहार की कुछ झलकें इस प्रकार हैं।
‘मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कि हम दोनों रोज रात को कराची के रास्तों पर घूमने निकलते हैं।’
‘हां, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है... जैसे हम वर्षों से एक दूसरे को पहचानते हैं और साथ रहते हों।’ औरत ऐसा कहकर सचमुच शर्मा गई और मर्द मजा लेकर ठहाका लगाने लगा। ‘गंदे’ कहकर झूठे गुस्से से उसके कंधे पर चपत लगाई और दोनों हंसने लगे।
‘तो मैडम कैसी खरीदारी करने का इरादा रखती हैं’, चलते चलते मर्द ने पूछा।
एक ओर वह मजबूर कालगर्ल, शायद पति पत्नी के बीच के अपनेपन के व्यवहार से बेदखल, ईद की रात की भीड़भाड़ में क्लाथ मार्केट में अपने लिए, कंजूसी से कपड़ा खरीदना चाहती है ।
‘तुम चुप करके खड़े रहो, तुम मर्दों को वैसे ही दुकानदार लूटते हैं ।’
जब मोलभाव में वह सफल होती है और मुस्कराकर कहती है, ‘देखा ये दुकानदार बड़े हरामी होते हैं ।’
संक्षेप यह कि होता कुछ नहीं लेकिन शांत और ठंडी उधेड़बुन में बहुत कुछ हो जाता है। समालोचक ने यही दिखाना चाहा है। शैकत शोरे की लगभग सभी कहानियों की ‘टूं’ और ‘टेम्पर’ इसी अंदाज में हैं। वैसे जिस प्रकार की घटनात्मक कहानी के लिए चुना गया है, उसमें परम्परायी तौर पर कहानकार नाटकी मोड़ भी ला सकता था या मॉडर्न कहानीयों में भी कई चीजें कलात्मक ढंग से स्वाभाविक तौर पर आ सकती थीं, लेकिन ये सब हम पाठकों के केवल अनुमान हैं । प्रोटोगांस्ट कहता है ‘खैर, मेरी शाम तुम्हारे नाम है । शायद मेरे जिदंगी की यह पहली शाम है, जो तुम्हारे कारण बोरियत के बिना गुजर गई और मुझे पता भी न चला ।’
लड़की उत्तर देती है, ‘लेकिन मैंने तो कुछ भी नहीं किया...’
आखिर में बीच रास्ते पर टैक्सी को रोककर, डा्रईव्हर को भाड़ा एडव्हांस में देकर लड़की को बिठाने से एक घंटा पहले मर्द कहता है, ‘अगर फिर से तुम कहीं पर मुझे मिल जाओगी तो मुझे पहचानोगी।’
‘मैं तुम्हें नहीं भूल पाऊंगी,’ कालगर्ल ने उदासी से, संजीदा बनते उत्तर दिया । ‘बस उसकी आंखें भीग गई थीं।’
और कहानी का यह शरीफ डरा व्यक्ति, अपने घर की सुनसान गल्ली लांघकर दरवाजा खोलता है । अंदर से अंधेरे में हाथ लगाकर बटन ढूंढकर लाईट जलाता है और कमरे की वीरानी और बकेलेपन की दहशत उसे अस्तित्व को घेर लेती है । उसने चाहा कि पीछे भागे, लेकिन उसके पैर पथरा गये थे ।
महत्वपूर्ण बात, मेरे विचार से यह है कि उसकी भाषा, शब्दों का जुड़ाव और Context गैर भावनात्मक, बढ़ा चढ़ाकर कहने से दूर, लेकिन इन्सानी भावनाओं की पतली लकीरों से बुनी, पाठकों के मन में दिमाग में किसी लो कीज की सिंफनी की लहरों से देर तक गूंजता रहता है ।
- हीरो शेवकानी
(प्रिंसिपल)
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डॉ. संध्या कुंदनाणी : सिंधी साहित्यिक कार्यक्रमों, गोष्ठियों की सक्रिय पहचान
संध्या उसका नाम है, लेकिन अपने जीवन की इस संध्या बेला में मैंने अनुभव किया है कि चांदीबाई कॉलेज के सिंधी विभाग की अध्यक्ष डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी अपने प्रोफेशनल कर्त्तव्यों को बखूबी निभाते हुए भी आज हमारी साहित्यिक सरगर्मियों में शायद सबसे अधिक, प्रायः अकेली, खुलेमन, सहृदयता से सभी सिंधी साहित्यकारों को निमंत्रित करके अपने कॉलेज के विद्यार्थियों से मुलाकात करवाती है और विद्यार्थियों को सिंधी भाषा, साहित्य व संस्कृति से न केवल अवगत करवाती है बल्कि उनमें वह लगाव और जागृति भी भरती है और बुजुर्ग पीढ़ी और नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए एक पुल के समान सराहनीय कार्य कर रही है । मैंने अपने जीवन में ऐसी निर्विकार, समर्पित प्राध्यापिका नहीं देखी है ।
सिंध में मेरे परम मित्र और प्रसिद्ध कहानीकार सिंधालाजी के पूर्व डायरेक्टर जनाब शौकत हुसैन शोरो की कहानी संग्रह ‘‘रात का रंग’’ का सम्पूर्ण हिन्दी अनुवाद ‘खोई हुई परछाई’ के शीर्षक से अनुवाद कर प्रकाशित कर भारत के अन्य पाठकों के सामने हमारी साहित्यिक पहचान बनायी है।
मेरी संध्या के लिए हार्दिक शुभकामना है कि वह जिंदगी के हर मोड़ पर सफल होकर आगे बढ़ती रहे।
- हीरो शेवकानी
(प्रिंसिपल)
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सिंध की कहानी के एक सशक्त हस्ताक्षर
जनाब शौकत हुस्सैन शोरा
कला के विभिन्न प्रकारों में साहित्य एवं साहित्य के विभिन्न प्रकारों में कहानी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। कहानी उतनी ही प्राचीन है, जितना मानव। मानव का जीवन ही कहानी है। मानव में जब चेतना उत्पन्न हुई, उसका चिंतन प्रारंभ हो गया, ‘‘मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, क्यों आया हूँ?’’ और फिर चिंतन करते करते, उसने प्रश्नों के उत्तर भी स्वयं ही देने शुरू कर दिए। न उसके प्रश्नों का ही कभी अंत हुआ और न उत्तरों से पूर्ण संतोष की प्राप्ति। मानव-मन में जानने की इच्छा भी है, तो अभिव्यक्ति की भावना भी। इस सुनने कहने की प्रवृत्ति ने ही कहानी को जन्म दिया है। कहानी सुनना-सुनाना मानव की स्वाभाविक एवं स्थाई प्रवृत्ति है। विश्व साहित्य में कहानी प्राचीनकाल से किसी न किसी रूप में व्याप्त है; लेकिन वर्तमान रूप में कहानी (Genre) अपने रूप, विषय वस्तु एवं शिल्प विधानों प्राचीन कहानी से बिल्कुल ही भिन्न है।
सिंध के जिन कहानीकारों ने मुझे प्रभावित किया है, वे हैं माणिक, अलीबाबा, अमर जलील, मुश्ताक शोरा एवं शौकत हुस्सैन शोरो। यह मेरी खुशनसीबी है कि माणिक को छोड़ बाकी महानुभावों से न केवल मिल पाया हूँ, किंतु अनेक बार गुफ्तगू एवं साहित्यिक वार्तालाप करने का भी अवसर प्राप्त हुआ है। यह मेरी व्यक्तिगत धारणा है कि इन समृद्ध साहित्यकारों को सशक्त समालोचक प्राप्त नहीं हुए। भारत की स्थिति इससे भिन्न है। भारत में सिंधी कहानी के विकास में आलोचकों ने एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। खैर, आज मुझे अत्यंत ही प्रसन्नता हो रही है कि मेरे प्रिय मित्र एवं स्नेही जनाब शौकत हुस्सैन शोरो की कहानियों का प्रो. संध्या कुहनाणी द्वारा हिंदी में अनुवाद हो रहा है।
मैं समझता हूँ इनकी कहानियों का रचनाकाल वीं शती के लगभग साठवें दशक से प्रारंभ होता है। यह वह समय था जब सिंध एवं हिंद पर माक्र्सवाद हावी था। शौकत हुस्सैन द्वारा लिखी प्रारंभिक कहानियों पर प्रगतिवादी धारा का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। उनकी कहानियाँ प्रगतिवादी पृष्ठभूमि से प्रारंभ होकर वैयक्तिक सामाजिक धरातल को छूती हुई अनेक आयामों में फैल गई है। उनकी प्रारंभिक कहानियों में प्रताडि़त किसानों एवं अत्याचारी ज़मींदारों आदि के दर्शन प्राप्त होते हैं। फिर उन्होंने सामाजिक वर्ग-भेद आदि विषयों का परित्याग करके सिंध एवं सिंधियों पर होने वाले अत्याचारों पर लिखना प्रारंभ किया।
सन् 1955 ई. के आसपास ‘वनयुनिट’ के उपरांत, सिंध एवं सिंधियों को अनेक यातनाओं से गुजरना पड़ा। सरकार ने पश्चिमी पाकिस्तान के चारों प्रदेशों का नामो-निशान मिटाकर ‘वनयुनिट’ का निर्माण किया, जिसने सिंधियों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया। सिंध के प्राय: समस्त साहित्यकारों का ध्यान इस ओर आकर्षित हो गया। ‘वनयूनिट’ तो टूटा, प्रदेश फिर बहाल हुए, किंतु नयी पीढ़ी की परेशानियों का अंत नहीं हुआ। वे डिग्रियां हाथ में लेकर नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खाते रहे। सियासतदानों, कामोराशाही एवं उच्चवर्ग ने सिंध का हाल ही खस्ता कर दिया। ऐसी ही असमंजस की परिस्थिति में सिंध की कहानी साहित्य में एक ऐसी नयी पीढ़ी आई जिसने नए सिरे से परिस्थितियों पर चिंतन-मनन करना प्रारंभ किया और ज़मीनी हकीकतों को कहानी के ढांचे में ढालने की कोशिश हुई।
नयी कहानी एवं अकहानी का साहित्य में आगमन हो चुका था। यह कहानी मनोवैज्ञानिक कहानियों की किस्सागोई परम्परा का त्याग कर, काल संदर्भ में बदते हुए सामाजिक जीवन की अभिव्यक्ति करने लगी थी। अब तक पश्चिम में कहानी गई मोड़ एवं पड़ाव पार कर चुकी थी। सिंध की कहानी में भी 20वीं शताब्दी के सातवें दशक में कहानी-लेखकों का एक ऐसी पीढ़ी सामने आई, जिनका विज्ञान एवं टेक्नोलाजी के कारण परिवर्तित परिवेश से सामना हुआ। भारत में नयी कहानी का पदार्पण सिंध से कुछ पहले हो चुका था। सिंध में वह कुछ देर से आर्विभूत हुई। सिंध की नयी कहानी जो त्रिमूर्ति उभरी, उसमें शामिल थे $कमर शहबाज़, मुश्ताक शोरो एवं मेरे आत्मीय मित्र शौकत हुस्सैन शोरो। उनका विरोध भी हुआ। आगे चलकर इस त्रिमूर्ति में शौकत हुस्सैन शोरो एक बड़े हस्ताक्षर होकर उभरे। नयी कहानी पर नित्शे, कीर्केगार्ड, सात्र्र, कालू एवं अस्तित्ववादी दर्शन का प्रभाव है। लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि शौकत हुस्सैन शोरा की कहानियों में आसपास के जीवन की सच्चाई के साथ अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने नये भाव-बोध एवं शिल्पविधि पर आधारित कहानियां रचकर साहित्य में बड़ा नाम अर्जित किया। जनाब शौकत हुस्सैन शोरो की कहानियों पर अन्तर्चेतना प्रवाह (Lerature of Stream of Consciousness) का प्रभाव भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है। ‘‘रात जा रंग’’ ‘‘रात का रंग’’ शौकत हुसैन शोरा का कहानी-संग्रह पठनीय है।
डॉ. जगदीश लच्छानी
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दो शब्द
डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी अपने नाम के विपरीत, सिन्धी साहित्य क्षेत्र में सूर्योदय के मधुरिम प्रकाश की भांति उदित हुई है । सिन्धी साहित्य की चन्द पुस्तकों का अनुवाद कर उसने हिन्दी साहित्य को भी समृद्ध किया है। उसका यह अमूल्य योगदान प्रशंसनीय है । सिंध के प्रसिद्ध कहानीकार श्री शौकत हुसैन शोरो जी का छयालीस कहानियों का कहानी संग्रह ‘रात जो रंग’ का हिन्दी अनुवाद ‘खोई हुई परछाई’ के शीर्षक से सुंदर ढंग से किया गया है । भाषा और भावों के अनुवाद का सही संतुलन है ।
बड़े लंबे अरसे से इसका यह अनुवाद कार्य चल रहा है । संध्या को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है । आशा है कि इन दोनों भाषाओं का यह योग-कार्य इसी प्रकार करती रहे ।
माया राही
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सिंधी साहित्य जगत की सतरंगी शख्सियत
सिंधी साहित्य जगत के कोहिनूर सतरंगी शख्सियत के मालिक श्री. शौकत हुसैन शोरो सिंधी साहित्यिक क्षेत्र के अनमोल, समालोचक और भिन्न भिन्न रचनाओं खास तौर पर कहानी, मज्मून और नाटक क्षेत्र में उच्च मुक्काम पाते कितनी ही सांस्कृतिक, सभ्यतिक संस्थाओं से जुड़े रहकर काफी सक्रिय और अमली कार्य करते अपनी मेहनत, लगन और आत्मविश्वास की हाक धाक विशाल सतह पर फैलाते अपनी बहुगुणे व्यक्तित्व का चित्र जनता के सामने उभर आया है।
शौकत जी सिंध यूनिवर्सिटी के सांस्कृतिक व समालोचक संस्था सिंधालाजी के डायरेक्टर का पद बखूबी निभाते हुए अपनी गंभीरता और ईमानदारी के कारण उसकी नेतृत्व में सिंधालाजी ने न केवल चारों ओर विकास किया लेकिन दुनियाभर में नाम कमाया और सिंधी सभ्यता के तौर पर काफी उच्च विकास किया।
शौकत जी की साहित्यिक पूंजी अनमोल है। इनका कहानियों में विशेष योगदान रहा है। जब वे 17 वर्ष के नौजवान थे तो इनकी पहले कहानी ‘रुह रिहाण’ (सिंध) में प्रकाशित हुई। इनके सिंधी कहानी संग्रह की पहली पुस्तक ‘गूंगी धरती बहरा आकाश’ (1981) में सिंध में प्रकाशित हुई और इनका दूसरा कहानी संग्रह ‘आखों में टंगे सपने’ (1983) सिंध में प्रकाशित हुई । इनकी कहानियों की तारीफ न के वल पूरी सिंध में फैली लेकिन पूरे भारत में भी इनके कहानियों की महक इतनी फैली कि मुंबई यूनिवर्सिटी के विभागाध्यक्ष डॉ. नारायण भारती ने इनका कहानी संग्रह ‘खोई हुई परछायी’ (1989) में सिंधी टाईम्स (हिन्दुस्तान) की ओर से प्रकाशित की।
सदा हयात हरी मोटवानी जी की इच्छा पूरी करते हुए श्री. नंद छुगानी जी ने ‘कुंज’ पत्रिका का एक अंक सन् 2007 में खास शौकत हुसैन शोरो पर प्रकाशित किया और इनके कहानी संग्रह की दूसरी पुस्तक ‘रात का रंग’ सिंधी अदबी बोर्ड की ओर से 2010 में प्रकाशित हुई जिसमें इनकी 46 कहानियां हैं। शौकत जी ने कम से कम 100 कहानियों से ज्यादा और फ्लैश कहानियां भिन्न भिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं । सिंध में रेडियो, टी.व्ही पर इनकी कितनी ही रचनाएं और ‘‘बाख’’ और ‘‘मिल्कियत’’ दोनों नाटकों के कम से कम 100 एपिसोड प्रसारित हुए हैं।
जिंदगी के बहाव के हर मोड पर कितनी ही घटनाएं व्यक्ति के चारों ओर घूमती हैं। जिन घटनाओं को हम नजरअंदाज करते हैं। ऐसी अनगिनत घटनाओं को इन्होंने कहानियों में तब्दील किया है। समाज की ऐसी कोई भी घटना या सामाजिक समस्या या समाजिक विषय नहीं है जिस पर इन्होंने कलम न चलाई हो। इस प्रकार हिन्द-सिंध में वे प्रसिद्ध हुए ।
डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
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अनुक्रम
शौकत हुसैन शोरो : सशक्त कहानीकार 5
डॉ. संध्या कुंदनाणी : सिंधी साहित्यिक कार्यक्रमों,
गोष्ठियों की सक्रिय पहचान 10
सिंध की कहानी के एक सषक्त हस्ताक्षर
जनाब शौकत हुस्सैन शोरा 11
दो शब्द 14
सिंधी साहित्य जगत की सतरंगी शख्सियत 15
कहानियाँ:
1 समुद्र और डरी हुई रूह 19
2 सुरंग 28
3 गूंगी धरती, बहरा आकाश 33
4 आखिरी दिन 40
5 सफर 46
6 मशालें 54
7 बहता पानी 60
8 भूखी सुंदरता 64
9 आधा बुना स्वेटर 71
10 जिंदगी-तूर का पेड़! 77
11 दर्द के स्वर 82
12 उलझी लकीरें 89
13 दर्द की लपट 95
14 काली रात, रक्त बूँदें 101
15 कभी न खत्म होने वाला अंत 106
16 टूटती दीवारें 109
17 हारे हुए व्यक्ति की डायरी 111
18 चाँदनी और आग 114
19 निर्णय 120
20 टूटे फूटे ठहाके 126
21 टोकना 135
22 आखिर बहार आएगी 141
23 क्षितिज पर उजाला हुआ 152
24 आईने समान सपने 157
25 आजादी 160
26 हम कौन हैं? 162
27 परिवर्तन 166
28 रक्त की सींच 168
29 खाली पेज 174
30 मालिक की कयामत 178
31 रात का रंग 185
32 छात्र नेता 193
33 एक भयभीत व्यक्ति 202
34 आँखों में टंगे सपने 211
35 गले में फंसी सिसकी 222
36 आसी 226
37 चिथड़े जितना आकाश 232
38 भयभीत हृदय, उतावली उल्का 239
39 अनुमान 244
40 भयानक मौत 251
41 शहर और सपने 258
42 इशारा 262
43 मृत विश्वास 269
44 दोषी व्यक्ति 274
45 ठहरा पानी 278
46 खोई हुई परछाईं 281
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(प्रस्तुति - देवी नागरानी)
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