जिंदगी-तूर का पेड़! // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी

SHARE:

जिंदगी-तूर का पेड़! यहां आ, इस पत्थर पर चढ़कर बैठ। शाम के वक्त तालाब का नजारा कितना अच्छा लगता है! सूर्य थके हारे मुसाफिर की तरह सरकता पहाड़ों ...

जिंदगी-तूर का पेड़!

यहां आ, इस पत्थर पर चढ़कर बैठ। शाम के वक्त तालाब का नजारा कितना अच्छा लगता है! सूर्य थके हारे मुसाफिर की तरह सरकता पहाड़ों के दूसरी ओर जा रहा है। बहते पानी में नीले आकाश की परछाईं ने शाम को मैला और धुंधला बना दिया है, बादल भी मैले हैं। क्या कहते हो, माहौल काफी उदास और डूबा हुआ है। होगा! मुझे तो शाम का यह रूप बहुत अच्छा लगता है। मुझे लगता है कि उस मैले नीलेपन में गायब हो गया हूं, मेरा व्यक्तित्व (वजूद) उस शाम से अलग (पृथक) नहीं, लेकिन मैं भी उसका एक भाग हूं, मेरी आत्मा मैले पानी में डुबकी लगा रही है। कभी कभी दिल चाहता है कि बांहें फैलाकर, आंखें बंद करके उस चिकने फर्श जैसे पानी पर लेट जाऊं और लहरें झूले की तरह मुझे झुलातीं, अपने साथ लेकर कहीं दूर, बहुत दूर जा छोड़े। तुम्हें मेरी बातों पर आश्चर्य हो रहा है। मेरी उम्र ऐसी बातें करने के लायक नहीं है, यह तो लापरवाही और मस्ती का वक्त होता है। मुझे यह एहसास जहर से भरे खंजर की तरह चुभ रहा है, लेकिन इसमें किसी का दोष नहीं है। यह वक्त सबसे ज्यादा हंगामे वाला दौर है और शायद इंतहा के बहुत करीब! इन्सान बेचारा तो हमेशा से कठपुतली रहा है, लेकिन इस वक्त कठपुतलियों के नृत्य में बहुत तेजी आ चुकी है। इस कदर कि इन्सान अपने आप से भी खो गया है। तुम बोर तो नहीं हो रहे! मैं जानता हूं कि तुम जरूर ये कहोगे कि नहीं तुम्हारी बातें दिलचस्प हैं। मेरे भाई, यह कितनी बड़ी ज्यादती है कि इन्सान किसी न किसी डर की वजह से अपने मन की बात साफ साफ नहीं कह पाता। बेचारा इन्सान! नहीं भाई, मैं बात को घुमा नहीं रहा हूं। आप को शायद कोई गलतफहमी हो गई है। मैं शाम के इस नजारे में खोकर पता नहीं क्या क्या कह गया। मानसिक परेशानियां और उलझनें तो आज के इन्सान के लिए इस वक्त के खास तोहफे हैं।

चाहे दुनिया की और चीजें कुछ लोगों के लिए ज्यादा ही नसीब हों और कुछ इनके लिए तरसते रहें, लेकिन मानसिक परेशानियां और उलझनों का तोहफा हर इन्सान को मिला हुआ है। मैं भी चाहे दुनिया के और मामलों में बदनसीब होऊं, लेकिन इस तोहफे की मेरे पास कमी नहीं। तुम्हारी हमदर्दी और दया के लिए मेहरबानी, लेकिन आखिर मैं तुम्हें क्या बताऊं! हकीकत में मुझे अपने बारे में बताते कुछ अजीब अनुभव हो रहा है। आप पहले व्यक्ति हैं, जो मेरी जाति में इतनी दिलचस्पी ले रहे हैं, नहीं तो मेरे मित्र मुझे एक ऐसा व्यक्ति समझते हैं, जो इन बातों से अभी तक बेखबर और अनजान है। मैं बचपन से ही दुनिया की ज्यादतियों का शिकार बन गया। मेरी मासूम दिल ज़ख्मों से चूर चूर हो गई। मेरे दिल का दर्द धुएं जैसा अंदर ही अंदर सुबकता और घुटता रहा। दुर्भाग्य से यह धुआं किसी भी तरीके से बाहर नहीं निकल पाया है। मैं चालाक और तेज नहीं हूं, इसलिए अच्छे मित्र पैदा करने की मुझमें शक्ति नहीं। मैं किसी के नजदीक जाना नहीं चाहता हूं, और चाहता हूं कि शुरुआत कोई और करे, शायद इसलिए ही वह मित्र मुझे केवल अपने दिल का दर्द हल्का करने का एक जरिया (चीज) समझता है। मैं ज्यादा बातें करना नहीं जानता, मेरे मित्र शायद ज्यादा सुनना नहीं जानते हैं। इसलिए वे केवल बातें करते और मैं केवल सुनता रहता हूं। मुझे बातें करने का ढंग नहीं आता, और मुझे कुछ हिचक भी अनुभव होती है। मैं बहुत ही कम बातें करने वाला, शर्मीला और कुछ कदर आत्मविश्वास की कमी का शिकार हूं, इसलिए ज्यादातर लोगों को मेरे बारे में गलत फहमियां होती हैं। मुझमें कुदरती शक्ति नहीं जो कोई बात साफ साफ कह पाऊं। कभी कभी मेरी शिकायतें और मुझसे हुई ज्यादतियां भी उल्टे मेरा ही दोष बन जाती हैं। दुर्भाग्य से मैं हद से ज्यादा भावुक व्यक्ति हूं, और प्रभावित भी जल्दी ही हो जाता हूं। कुदरत (प्रकृति) ने मुझे और तो कोई खूबी नहीं भेंट की है केवल एक भावुक मन और सोच के। किसी मामूली सी बात या हरकत पर भी सोचता ही रहता हूं, पछताता ही रहता हूं। यह सोच मेरे मन पर एक भार और एक यातना बन जाती है। सोच ने मुझे जलाकर राख कर दिया है, इसकी यातना नर्क से किसी भी हालत में कम नहीं। काश! कुदरत मुझसे सोचने और अनुभव करने की खासियतें (विशेषताएं) छीन ले।

बस बहुत हुआ दोस्त, मुझे मेरे मकड़ी के जाले जैसे भूतकाल पर निगाह डालने के लिए मजबूर मत कर। मेरे भूतकाल और वर्तमान में फर्क ही क्या है। मैं उस जाल में ऐसा फंस चुका हूं जो जितना ज्यादा छुड़ाने के लिए तड़पता हूं उतना ही और ज्यादा फंस जाता हूं। मेरी उम्र कोई ज्यादा नहीं। लेकिन इस उम्र में मैंने बहुत कुछ सहन किया है। मैं बहुत जल्दी वक्त की चक्की में पिस गया। मैंने लापरवाही और जवानी (आजादी) का वक्त देखा ही नहीं। मैं जवानी का मजा नहीं ले पाया। हे भगवान, मैंने अभी गुलशन (बगीचा) में पैर ही रखा था कि कांटा चुभ गया। तभी मेरी जिंदगी में जवानी का बवंडर उठा ही था। मेरे मन की उमंगों ने अभी उछलना शुरू ही किया था, और उसकी भी वही हालत थी। जानना चाहते हो कि वह कौन थी! वह मेरी एक करीबी रिश्तेदार थी। जब हमें समझ भी नहीं थी, कि हमारे रिश्तेदारों ने हमारी सगाई कर दी। उसके बाद हालात ऐसे बने कि हमारे बड़ों के आपस में झगड़े हो गए, और वे गाँव छोड़कर एक बड़े शहर में जा बसे। मेरे मन में केवल उस लड़की की याद बाकी थी, जिसके साथ खेलते खेलते मैं उसे मारकर भाग जाता था। माँ के द्वारा उसके बारें में बातें सुनकर मेरे मासूम दिल में उसे देखने का जोरदार शौक जाग उठा। एक दिन घर में किसी को कुछ बताए बिना मैं उधर के लिए निकला। काफी वक्त के बाद अपना एक संबंधी देखकर उन्होंने मुझे बहुत प्यार दिया और वहां पर मैंने उसे देखा। पता नहीं क्यों, जब उससे मेरी निगाहें मिलती थीं तो मुझे कुछ अजीब अनुभव होता था। पूरे शरीर में जैसे करंट दौड़ जाता था और मीठी मीठी गुदगुदी होने लगती थी। शुरू शुरू में वह एकदम घबरा और शर्मा जाती थी। काफी वक्त के बाद वह मुझसे अच्छी तरह बातें करने लगी। फिर वह मासूमियत और सादगी से मेरी आंखों में देखती रहती थी। मुझे एक अजीब आनंद आता था। जब उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ हिलने लगते थे तो अचानक घबराकर नजरें हटा देती थी। वैसे वह बहुत ही बातूनी थी और मैं काफी संजीदा। लेकिन उसके साथ मैं भी बातूनी और एक बच्चा बन जाता था। उसके मुंह से ‘अरे हां’ कहने का अंदाज मेरे दिल को एक अजीब आनंद में डुबो देता था। वह मुझे ‘गावठी’ कहकर चिढ़ाने की कोशिश करती थी। ज्यादातर मैं गुस्से में आ जाता था, तो वह एकदम संजीदा बन जाती थी और एक अजीब प्यारे ढंग से माफी मांगती थी : ‘‘गुस्से में हो? मुझसे भी गुस्सा हो जाते हो, मेरी ओर तो देख...’ और मेरा दिल चाहता था कि मैं उसकी तालाब जैसी बड़ी आँखों में गोता लगाकर गायब हो जाऊं।

आखिर तो मुझे गाँव वापस लौटना था। जब उसे पता लगा कि मैं गाँव जा रहा हूं, तब उसका गुलाब जैसा चेहरा बुझ (कुम्हला) गया। दूसरी सुबह उसकी थकी और लाल आँखें देखकर मैं समझ गया कि वह देर रात तक रोती रही है। मैंने उसकी आँखों में देखकर कहा : ‘लगता है रात को नींद नहीं आई है, पूरी रात रोई हो...’

उसके होंठो पर एक फीकी मुस्कान आ गई। कहा : ‘मुझे लगता है तुम भी रात को नहीं सोये हो; लेकिन तुम्हें तो गाँव जाने की खुशी में नींद नहीं आई होगी।’ मैं उसकी आँखों की गहराई में डूब गया। जिस वक्त जा रहा था, तो वह बर्तन मांझ रही थी। उसका सर नीचे झुका हुआ था। करीब जाकर मैंने उसे बुलाया। उसने सर ऊपर उठाया तो मैंने देखा : वह रो रही थी, उसकी आँखों से आँसू भरी शराब की तरह छलक रहे थे। कितना जहर भरा है उन यादों में! मुझे उन गुजरे पलों से, जिन्हें आम तौर पर हसीन और रंगीन पल कहा जाता है, नफरत है। अब मैं उस प्यार को बचकाना और बेवकूफी मानता हूं, लेकिन फिर भी उस जहर को किसी भी सूरत में खुद में से निकाल नहीं पाया हूं। हाय वक्त का यह सितम! मैंने यह नहीं सोचा था कि शहरी और गाँव के माहौल के कारण हम में इतना बड़ा फर्क (अंतर) है। मेरे परिवार के सदस्य इस काबिल नहीं थे जो ऐसी लड़की को अपने घर में लाने के लिए केवल सोच भी सकें।

जब मैं दूसरी बार उनके पास गया, तो पिछली तकलीफ वाली भावना खत्म हो चुकी थी। मुझे अपनी हैसियात का अहसास दिलाया गया। जैसे एक बहुत ही हसीन और प्यारा सपना देखते किसी ने मुझे नींद में से जगा डाला और मैं हड़बड़ा गया। बेचारे उठाने वाले का क्या दोष! मैं खुद पर रो पड़ा।

हद से ज्यादा भावुक होने के कारण अपने घर की समस्याओं और आसपास का माहौल देखकर मेरे दिल में एक प्रकार की नफरत (घृणा) उभरने लगी। मैंने मध्यम घर के एक अच्छी हैसियत वाले घर में जन्म लिया। तुम्हें पता होगा कि ऐसे घर को समाज में इज्जत की निगाह से देखा जाता है। इसलिए उनके अपने उसूल होते हैं, जिन्हें वे किसी भी हालत में नहीं छोड़ते। मेरी देखभाल (पालन पोषण) भी ऐसे माहौल में हुई। जब मैंने आंख खोली तो मेरा पिता एक बड़ा व्यक्ति था और रिश्तेदार भी बहुत बड़े साहूकार, बड़ी जायदाद वाले थे। उसके बाद जमाने की गर्दिश के कारण हालात बदल गए। लेकिन समस्याओं और खराब हालातों के बावजूद हम अपनी झूठी शान को कायम रखते आए। मेरे बचपन के पालन पोषण और होश में आने के बाद खुद को एक अच्छे खानदान का व्यक्ति समझना, आसपास का माहौल, स्वाभाविक रुझान और उसके बाद खराब हालात होते हुए भी आराम से घर पर बैठे रहना... इन सब बातों ने मिलकर मेरे ऊपर पता नहीं कैसे कैसे असर छोड़े। मैंने अपने सम दर्जे के लड़कों के बीच उठना बैठना चाहा लेकिन इस लायक नहीं था। उच्च दर्जे से संबंधित लोग नाम मात्र भी निचले दर्जे के लोगों से संबंध रखना दोष समझते हैं। मैं तो जैसे जमीन और आकाश के बीच फंसा हुआ था। भावुक तौर पर इन बातों का मेरे ऊपर बहुत गहरा असर हुआ। कभी कभी मैं रो पड़ता था कि ऐसे घर में क्यों पैदा हुआ। अगर किसी गरीब घर में जनम लेता तो मानसिक और जातिगत दर्जे की समस्याओं से तो छूट जाता। सही कारण थे जिनके कारण खुद से, अपने घर से और उच्च दर्जे की ओर मेरी नफरत ने मेरे दिल में घर कर लिया।

दोस्त, मैं भटका हुआ था तो मुझे एक राह नजर आई। मैंने भावुक बनकर समझा कि यही सही राह है, इसी में छुटकारा है। वक्त और हालातों ने मुझ पर कुछ नजरिये (सोच) मढ़ दिए। मैंने सोचा कि आज के समाज में मेरे जैसे लाखों लोग जलते, सड़ते और तड़पते रहेंगे, जब तक कि यह परम्परा न बदल दी जाए। मैंने मकसद को ही सबसे उच्च समझा। प्यार और मुहब्बत को एक बेकार बात और ऊपरी भावुकता समझने लगा। मैंने सोचा कि यह मानसिक ऐश है, दुनिया की कड़वी सच्चाई से दूर है। पूरी दुनिया का दर्द मुझमें आ समाया और मैं अपनी जाति को भूल गया। मेरे पास केवल दूरबीन थी जिससे मैं दूर दूर तक देख सकता था; लेकिन दूरबीन के साथ मुझे माइक्रोस्कोप मिल न सका जिससे अपने अंदर भी झांक सकूं। हालातों के कारण मैं अंतर्मुखी बन गया। असल में मैं एक कार्यात्मक व्यक्ति नहीं था, मेरा स्वभाव और रुझान उन नजरियों के विपरीत थे। मैंने तो आत्मा की शांति के लिए सोचा था, लेकिन शांति कहीं पर भी नहीं मिली। मैं तो जैसे पानी की तलाश में रेगिस्तान भटक रहा था, इधर उधर देखते, दूर कुछ सफेदी देखकर उसकी ओर भागता रहा लेकिन केवल भ्रम के मुझे कुछ नसीब नहीं हुआ। तब मैंने जाना कि मेरी जिंदगी रेगिस्तान में खड़े उस तूर के पेड़ की तरह है, जिसे पानी की कोई जरूरत नहीं होती है; जिसका कोई महत्व नहीं होता है; और जिसमें कांटों के अलावा और कुछ नहीं होता।

नहीं मुझमें इतनी सख्तियां सहने की शक्ति नहीं, हिम्मत नहीं। मैं जैसे एक तूफान में जकड़ा हुआ हूं जिसने मेरे पूरे होश हवास गायब कर दिए हैं। जो देर से होना चाहिए था, वह बहुत जल्दी हो गया। उस बेदर्द वक्त ने मेरी अंदर की उमंगों को दबा दिया, मेरी आत्मा की चीखों का गला घोंट दिया।

भगवान?... नहीं दोस्त मुझे तुम्हारे रहमदिल भगवान पर कोई विश्वास नहीं रहा है। हकीकत में हालातों ने ही मुझे मजबूर किया कि ऐसे समझूं। हो सकता है कि मैं भटका हुआ होऊं, लेकिन इसमें मेरा क्या दोष! मुझे भी जिंदा रहने की चाहना है, मुझे भी जिंदगी से प्यार है, चाहे मेरी जिंदगी बिल्कुल खाली और पुरानी बोतल की तरह हो गई है। मैं रोना चाहता हूं लेकिन रो भी नहीं सकता। मेरी हिचकियों ने घुट घुटकर दम तोड़ दिया है... मैं वे घाव देखना चाहता हूं जो एक छोटे से वक्त में मुझे लगे। माफ करना, मैं शायद कुछ भावुक बन गया। दोस्त, इस वक्त मेरे हालात एक ही जगह ठहर गए हैं। इस बेरंग दुनिया ने मुझे अपनी जिंदगी से ही बोर कर दिया है। मेरी आत्मा असल में भटक रही है, और मैंने जैसे उसे एक ही जगह कैद कर रखा है। मैं चाहता हूं कि एक मुसाफिर बनकर, भटकता रहूं, घूमता रहूं।

lll

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: जिंदगी-तूर का पेड़! // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
जिंदगी-तूर का पेड़! // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-xp-0qa934SKpegirPcw_HlaRpbumQj9APWqDzVRvySsDMwnKs7eqm55IsrggM89DdGYjGvd7WW1KwavVIpf8OuWvFp_iXjqSDjHpVz5BapsVqbIzYrU_Ka3jTDVrpUJwbV0j/?imgmax=200
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-xp-0qa934SKpegirPcw_HlaRpbumQj9APWqDzVRvySsDMwnKs7eqm55IsrggM89DdGYjGvd7WW1KwavVIpf8OuWvFp_iXjqSDjHpVz5BapsVqbIzYrU_Ka3jTDVrpUJwbV0j/s72-c/?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/01/blog-post_53.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/01/blog-post_53.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content