जीने का ढंग इससे पहले कि एक बूंद रोशनी के मोह्ताज हो जायें कुछ चमकीले जुगनू आंखों में भर लेवें दुआओं की बारिश थमने से पहले कुछ पानी ...
जीने का ढंग
इससे पहले कि
एक बूंद रोशनी के मोह्ताज हो जायें
कुछ चमकीले जुगनू आंखों में भर लेवें
दुआओं की बारिश थमने से पहले
कुछ पानी जीने के लिये रख लेवें
पहाडों से रास्ता देने की गुजारिश करें
तूफान की तरफ नौका बढायें
एक चम्मच विश्वास समेट कर
अजनबी रास्तों पर बढ़ जायें
रेत पर सपनों के महल बनायें
सीढी से आसमान तक सीढी लगायें
पीले उम्रदराज पत्तों को हटा कर
नई उम्मीदों की अलख जगायें
संस्कारों की झाडू से
घर का टायलेट साफ करें
सहनशीलता की गाजरघास पर
सुबह शाम उछल कूद मचायें
अपनी अस्मिता पर प्रश्न चिन्ह लगाते
समझौतों को ठेंगा दिखायें
जबरिया थोपे गये नायक
जो असल में खलनायकों से भी बदतर थे
उन्हें इतिहास की कब्र से निकाल आईना दिखायें
इससे पहले कि सूरज बर्फ बन जाये
जीने का तरीका सीख लेवें
आखिरी कोशिश
माना कि
हमारे रास्ते जुदा जुदा हैं
सोचने का तरीका भी जुदा जुदा है
लेकिन फिर भी
एक कोशिश तो की ही जा सकती है
माना कि दूरियां बहुत बढ चुकी हैं
सब कुछ असम्भव सा है
और ये सब कुछ ऐसे ही नहीं हुआ
इसके पीछे कुछ लोग थे
जिनके अपने स्वार्थ थे
उन्होंने हमें तुम्हें ठीक से सोचने ही नहीं दिया
लेकिन फिर भी इस कठिन समय में
एक उम्मीद का दिया तो जलाया जा सकता है
हां, एक काम करना
इस बार मिलना होगा
तो हम अपना अपना खोल
बाहर दरवाजे पर ही उतार देंगे
मिट्टी लगे जूतों के साथ
ये हमारे खोल ही हैं जो तनाव देते हैं
बगैर खोल के हम शायद
ज्यादा स्वाभाविक तरीके से मिलेंगे
तुम अपनी वीरता की गौरव गाथा
सुनाने मत बैठ जाना
हम भी नहीं बखान करेंगे
अपनी नेकदिली के किस्से
चुप निहारेंगे एक दूजे को
कोई आवाज नहीं .... एक मुकम्मल मौन
जो कहना होगा आंखें कहेंगी
और तुम देखना
सारे गिले शिकवे बह जायेंगे
तुम समय को
अपनी मुट्ठी में जकड़ लेना
मैं सारा समुद्र पी जाउंगा.
नसीब आदमी का
आदमी इश्तहार बनने की चाह में
खूंटे पर लटकी कमीज जैसा हो गया है
आगे जाने की कोशिश में
बार बार पीछे खिसक जाता है
वक्त है कि उस पर
सपाटे पर सपाटे दिये जा रहा है
भूल भुलैया में भटकना भर ही
लिखा है आदमी के नसीब में
चंद सिक्के भी गिरोह बना कर
आदमी को खरीद रहे हैं
नदियों के गर्भ में
बेशुमार सिक्के कैद हैं
और पानी का देवता
झूठे आस्वासनों की पोटली थमाने को बेचैन है
अब झूठ बोलने के लिये
जोर नहीं लगाना पड़ता
मुंह खुलता है तो झूठ ही निकलता है
सत्य इंतिहा की किताबों से
कब का डिलीट कर दिया गया था
झूठे सत्य की तलाश में
लोग स्वर्ग पहुंचने की तैयारी में जुटे हैं
और मैं अभी तक फोंटाना द त्रेवी का
रूट मैप ही गूगल पर खोज रहा हूँ
अब जबकि नींद में
सब कुछ जल रहा है
मेरे हाँथों में गर्म दस्ताने हैं .
झोपड़ पट्टियों के बच्चे
धूल मिट्टी से सने
झोपड़ पट्टियों से पेट के लिये निकले बच्चे
पेट में ही सिमट गये
दिन भर उदासे को लिखते
फीकी रोशनी को गटकते रहे
बूढा लाचार बाप खडा
जवान होती बेटियों के देखता रहा
ऐसे ही हालातों से रोज दो चार हुए
धूल मिट्टी से सने झोपड़ पट्टियों के बच्चे
खेलने की उम्र में खिलौने बनाते
स्कूल जाने की उम्र में ढाबों में कप प्लेट धोते
गली गली घूम अखबार बेचते
ऐसे ही किस्मत से लड़ते रहे
धूल मिट्टी से सने झोपड़ पट्टियों के बच्चे
अमीर होने का सपना देखते
खूबसूरत प्रेमिका पाने की चाह रखते
सस्ती दारू पीते, जर्दा खाते, बीडी फूंकते
इधर उधर उड़ते रहे
धूल मिट्टी से सने झोपड़ पट्टियों के बच्चे
एक दिन यही लड़के
रोटी चुराते पकडे गये
और रात भर पुलिसिया जुल्म के शिकार हुए
पुलिस ने कहा- ये नक्सली हैं
कई हत्याओं में इनका हाथ है
हमारे बच्चे कभी अपराधी नहीं हो सकते
बूढे मां बाप ने कहा
लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई
वे भटकते रहे एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे
लगाते रहे न्याय की गुहार
वे धूल मिट्टी से सने
झोपड पट्टियों के बच्चे थे
यही उनका दोष था.
मेरी ख्वाहिश
मैं कभी नहीं चाहूंगा
कि सत्य की सूखी टहनियों से लटक
तुम अपनी जान दे दो
कि नैतिकता का फीका शर्बत पी
तुम अपने जीवन को बेस्वाद बना लो
कि जब नापाक आततायी तुम्हें घेर कर मारें
तुम्हारे पास फल काटने वाला चाकू भी न हो
कभी नहीं चाहूंगा यह कहना
कि बगैर किसी ठोस आधार के हवा में
तुम आसमान छूने की सीढियां बना लो
बगैर खाद पानी के
तुम्हारी बुनियाद मजबूत हो
कि भूखे पेट तुम राष्ट्र के गीत गाए जाओ
मैं चाहता हूँ
तुम सत्य को जानो
एक बच्चे की तरह सत्य की परवरिश करो
कि वह बढे और वटवृक्ष बन जाये
तुम्हारी बुनियाद मजबूत हो
नये परिवर्तन को स्वीकारने का साहस हो
समय को पहचान सको
कि लोग आस्तीन में खंजर छिपाते है
और मुस्कराहट के पीछे
नफरत छिपी रहती है .
जीवन पथ
घर में आटा
खत्म हो गया है
बिटिया की चप्पल
टूट गई है
बिट्टू की फीस भी जमा करनी है
गैस सिलेंडर खत्म होने की कगार पर है
पगार भी तो कितनी जरा सी है
उसमें मकान का किराया
बिजली का बिल
सब्जी राशन
बच्चों की फीस
कुछ बच ही नहीं पाता है
हर महीने हाथ फैलाना पड़ता है
किसी न किसी के सामने
बच्चे कब का दूध पीना छोड़
चाय पर आ गये हैं
पत्नी के पास नहीं है
एक ढंग की साडी भी
कैसे पढेंगे बच्चे ?
कैसे होगी बिटिया की शादी ?
क्या जीवन भर रहना होगा
भाडे के मकान में ?
कितना मुश्किल है अभावों में जीना
रोज रोज मरना
सपनों का टूटना
फिर भी जीना .
तुम्हारे लिये
मैं नदी तक गया
किया उसकी लहरों को स्पर्श
चूम कर उसे अनुभव किया अपने सीने में
गया एक बहुत पुराना गीत
लिखी तमाम अधूरी कवितायें / जो कभी पूरी नहीं हो पाईं
तुम्हारे लिये
मैंने ठंड में भी आइस्क्रीम खाई
दीवारों से बातें कीं
पहाडों को समझने की कोशिश की
पेड़ पौधों की बाते सुनी
बचपन में फिर से गया
तुम्हारे लिये /
मैंने मोल ली अपनों से नाराजगी /
रचा छोटा सा सुंदर परिवार
पता नहीं तुमने ये सब समझा या नहीं /
लेकिन मैंने हमेशा कोशिश की /
कांटों के बीच भी तुम मुस्कराओ
यह बात और है /
कि एक दरवाजा बंद होता है /
तो दूसरा खुल जाता है
खुश रहने के लिये वजहों की कमी नहीं है दुनिया में
लेकिन अंधेरे में कैद चिडिया की तरह /
मैंने आसमान को निहारा /
सिर्फ तुम्हारे लिये ही .
( अनुपम सक्सेना)
वरि. कार्यपालक (न .प्र - विधि एवं सुरक्षा.)
भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड
प्रकाशित कृति -
2016 में कविता संग्रह " अपने अपने आकाश " इलाहाबाद के अंजुमन प्रकाशन से प्रकाशित हो चुका है.
सम्मान -
2016 में रंजन कलश सम्मान , 2017 में विश्व हिंदी रचनाकार मंच से हिंदी सागर सम्मान एवं अन्य सम्मान प्राप्त हो चुके हैं.
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