लक्ष्मीकांत मुकुल की पंद्रह कवितायें

SHARE:

इतिहास  का गढ़ पहले पहल बगीचे में जाते हुए पहली ही बार हमें दिखा था मूंजों से ढंका रेड़ों से जाने कब का लदा खेतबारी के पास यूँ ही खड़ा पड़...

image


इतिहास  का गढ़


पहले पहल बगीचे में जाते हुए
पहली ही बार हमें दिखा था
मूंजों से ढंका
रेड़ों से जाने कब का लदा
खेतबारी के पास यूँ ही खड़ा पड़ा
हमें मिला था पहली ही बार
मैरवां का गढ़

मगर ये गढ़ है क्या
ऊँचे टीले की आकृति लिए
सबका ध्यान क्यों खींचता है अपनी ओर
आखिर क्यों आधी रात गए
गढ़ में हुए धमाके से
हिलने लगता है सारा गाँव

बंसवार से निकलते हैं शब्द
पेड़ों से निकलती है कहानियाँ
कहानियों से बनती हैं पहेलियाँ
जिन पहेलियों को बुझाते हैं लोग
कि कब बना होगा यह गढ़ 

पगडंडियों से गुजरता आदमी
पहुंचता है जब नदी के पास
तो उसे बबूल की
कांटेदार झाड़ियों के बीच से ही
कांपता दीखता है गढ़

तुम्हें सच नहीं लगता
कि बस्ती के लोग
जब दोपहरी में करते हैं आराम
तो पछुआ बयार से तवंका हुआ
सूखे झंखाड़ – सा भयावह दिखता है यह गढ़

कितने लगे होंगे मिटटी के लौंदे
पत्थर कितने लगे होंगे
उस गढ़ को बनाने में कितने लगे होंगे हाथ
तुम भी देखोगे उसे एक बार
शायद कहीं दिख जाए उनकी परछाइयाँ

कितने अचरज की खान है गढ़
इस बस्ती के लिए सबसे बड़ा अचरज
कि हर के होश संभालने के पूर्व से ही
हर किसी के अन्दर
कछुए – सा दुबका पैठा है यह गढ़ .
000000000000

नया साल


पेड़ों में आते हैं नन्हें टूसे
खलिहान से आती है नवान्न की गंध
तुम आती हो ख्यालों में लीची की
मधुर आभास लिए
मसूर के नीले फूलों - सी साड़ी लहराती
जैसे जीवन में
पहली बार आया हो नया साल का सवेरा.    

000000000000000

सिक्के


हमारे जन्म से बहुत पहले ही
केंचुल की तरह छुट गयीं मुद्रायें
चित्ती – कौड़ी – दाम – छदाम
अंगूठा , ढेंगुचा , सवैया , अढईया के पहाड़े
कोकडऊर बुकवा , माठ , गाजा , कसार
सरीखी देसी मिठाइयाँ
अमेरिका ने नहीं , शहरी बन चुके लोगों ने
घोल दिए हैं हमारी इच्छाओं के कुएं में नमक

छुटपन के साथी थे पांच – दस पैसे के सिक्के
जिससे खरीदते थे मेले में गुड की रस भरी जिलेबियां
हमारे गुल्लक भर जाते थे चवन्नी – अठन्नी से
पंद्रह के पोस्टकार्ड पर दूर से आते थे सन्देश
जिसकी आहट से भर जाती थी खुशियों की झोली
प्रेमचंद्र का कथानायक हामिद तो तीन पैसे में ही
खरीद लाया था दादी के लिए चिमटा

किसने छीने सिक्के , वे गुब्बारे , वे गुल्लक ......
तुम्हें दिखा नहीं हज़ार पंसौवा बदलने वालों को
चीटियों से लगी थीं कतारें
देखना कभी एक – दो सिक्के भी
हो जायेंगे चलन से बाहर
सूखे रेत पर पड़े केकड़े की तरह
असहाय , उपेक्षित , बेबस .

0000000000000


00000000000000

गीत


आओ चलें परियों के गाँव में ,
नदिया पर पेड़ों की छाँव में.
सूखी ही पनघट की आस है
मन में दहकता पलास है
बेड़ी भी कांपती औ’ ज़िन्दगी
सिमटी लग रही आज पांव में .

अनबोले जंगल बबूल के
अरहर के खेतों में भूल के
खोजें हम चित्रा की पुरवाई
बरखा को ढूँढते अलाव में .

बगिया में कोयल का कूकना
आँगन में रचती है अल्पना
झुटपुटे में डूबता सीवान वो
रिश्ते अब जलते अब आंव में .

डोल रही बांसों की पत्तियां
आँखों में उड़ती हैं तीलियाँ
लोग बाग़ गूंगे हो गए आज
टूटते रहे हैं बिखराव में .
0000000000000

छोटी लाइन की छुक-छुक गाड़ी


बचपन में एक्का पर जाते हुए ननिहाल
मन ही मन दुहराते थे की अब आया मामा का गाँव
रास्ते में दिखती थीं छोटी लाइन की पटरियां
बताती थीं माँ – ‘तेरे मामा इसी छुक – छुक गाडी में आते थे पटना से’

अब नहीं चलती वह छुक – छुक गाड़ी
बस घुमती है माँ की यादों में लगातार
नहीं आये मामा बरसों से पटना से, न आयीं उनकी चिट्ठियां......!
आरा – सासाराम मीटर गेज की लाईट रेलवे
चलती हुई किन्हीं सपनों से कम नहीं थीं उन दिनों
कोयला खाती, पानी पीती ,धुंआ उगलती
खेतों के पास से गुजरती भोंपू बजती हुई
उसकी रफ्तार भी इतनी मोहक
की चलती हालत में कूदकर कोई यात्री
बेर तोड़कर खता हुआ फिर चढ़ सकता था उस पर

देहाती लोगों के लिए छकडा गाड़ी थी वह
एक इंजन कुछ डब्बे साथ लिए
दौड़ा करती थी जैसे धौरी - मैनी - सोकनी गायें
जा रही हो घास चरने के लिए पार्टी पराठ में
मुसाफिर ठुसकर, लटककर ,इंजन के ऊपर भी बैठ-पसर
टिकट-बेटिकट पूरा करते थे सफ़र ,पहुँचते ठिकाना
अपाहिजों,गिरते यात्रियों को थाम लेने को उठते थे कई हाथ
सामने वालों के दुखों को बाँट लेने की ललक होती थी उनमे
दिखता था जलकुम्भी  के खिले फूलों की तरह सबके चहरे

नोखा के पिछवाड़े में उन दिनों मुझे दिखा था मार्टिन रेलवे का डिब्बा
गंदे पोखर में नहाये नंगे – धडंग बच्चे जिसमें
खेला करते थे छुपा – छुप्पी , चिक्का – बीत्ति के खेल

नैहर जाती हुई नयी दुल्हनों के मन में थिरकती थी छुक – छुक गाड़ी
बूढों के लिए सहारे की लाठी
तो नौजवानों का खास याराना था उससे
यात्री लोककवि को बेवफा महबूबा की तरह लगी थी छुक-छुक गाड़ी
बाँधा था कविता के तंतुओं में जिसने –
           ‘आरा से अररा के चललू , उदवंतनगर उतरानी
            कसाप में आके कसमस कईलु , गडहनी में पियलू पानी
            हो छोटी लाइन चल चलेलु मस्तानी .’
बुलेट ट्रेन के चर्चा के ज़माने में
अब कही नहीं नज़र आतीं उसकी पटरियां
पुराने डिब्बे ,गार्ड की झंडियाँ
राह चलते बुजुर्ग उँगलियों से बताते है
उसके गुजरने के मार्ग
जिसकी शादी में पूरी बारात गयी थी ट्रेन से

यादों को टटोलते है वे की रेल-यात्रा में
किस कदर अपना हो जाते थे अपरिचित चहरे
निश्छल ,निःस्वार्थ जिनसे बांध जाते थे लीग भावना की बवंर में
अँधेरे में उतरा अनचीन्हा ,अनजाना किओ यात्री
बन जाता था किसी भी दरवाजे का मेहमान
स्मृतियों को सहेजते लोग अचानक जुड़ जाते थे
घर – परिवार – गाँव के भूले बिसरे संबंधों के धागे में
गुड की पाग व कुँओं के मीठे जल सा तृप्त हो जाता यह सहयोगियों का साथ
मोथा की जड़ों की तरह गहरी हो जाती थी उसकी दोस्ती

भलुआही मोड़ की फुलेसरी देवी के मन में बसी है छोटी लाइन
वह बालविवाहिता दहेज़ दानवों से उत्पीड़ित खूंटा तोड़कर भागी थी घर से
इसी रेलगाड़ी पर किसी ने दी थी उसे पनाह
जोगी बन गए रमेसर के बेटे को खोजने में
दिन रात एक कर दिए थे छोटी लाइन के यात्री
जैसे हेरते है बच्चे भूसे की ढेर में खोयी हुई सुई

अब शायद ही याद करता है कोई छोटी लाइन के ज़माने को
स्मार्टफोन में उलझी कॉलेज की लड़कियों की
खिलखिलाहट में उड़ाते है छोटी लाइन के किस्से
गाँव के बच्चे खुले में शौच करने जाते है उसके रास्ते में

भैसों के चरवाहे बरखा – धूप में छिपाने आते थे
घोसियाँ कलां की छोटी लाइन की कोठरी में
संझौली टिकट – घर में चलता है अब थाना
कही वीरान में पड़ा एक शिवमंदिर 
जिसे बनवाया था छोटी लाइन के अधेड़ स्टेशन मास्टर ने
लम्बी प्रतीक्षा के बाद
उसके आँगन में गूंजी थी नन्हा की किलकारी
टूट – फुटकर बिखर रहा है वो मजार
जिसके अन्दर सोया है वह साहसी आदमी
जो मारा गया था रेल लुटेरों से जूझते हुए

नयी बिछी बड़ी लाइन की पटरियों पर दौड़ रही है सुपरफास्ट ट्रेन
सडकों पर सरक रही है तेज चल की सवारियां
गावों से शहरों तक की भागम – भाग, अंधी थकन में भी
अचानक मिल जाता है बरसों का बिछड़ा कोई परिचित
भोला - भला , सीधा – साधा दुनियादारी के उलझनों से दूर
सहसा याद आता है छोटी लाइन की छुक – छुक गाडी वाले दिन
ममहर के रास्ते में फिर जाते हुए

धीमी रेलगाड़ी , धीमी चलती थी सबकी जीवनचर्या
तब मिलते थे लोग हाथ मिलाते हुए , बल्कि
गलबहियां करने को आतुर खास अंदाज में
छा जाती थी रिश्ते नाते के उपस्थिति की महक .  
                                                                                                  

000000000000000

बारहमासा


सावन भादों के रिमझिम फुहारों के बीच
कुदाल लेकर जाऊँगा खेत पर
तुम आओगी कलेवा के साथ
चमकती बिजली , गरजते बादलों के बीच
तुम गाओगी रोपनी के अविरल गीत
बिचड़े डालते मोर सरीखे थिरकेगा मन

खडरिच – सा फुदकेंगे कुआर – कार्तिक में
कास के उजले फूलों के बिच
सोता की धार - सी रिसती रहेगी तुम
गम्हार वृक्ष – सा जडें सींचता रहूँगा कगार पर

धान काटते , खलिहान में ओसाते
अगहन – पूस के दिनों में बहेगी ठंढी बयार
तुम सुलगाओगी अंगीठी भर आग
चाहत की तपन से खिल उठेगा मेरी देह का रोंवा

माघ – फागुन के झड़ते पत्तों के बीच
तुम दिखोगी तीसी के फूल जैसी
छाएगी आम के बौराए मंज़र की महक
तुमसे मिलने को छान मारूंगा 
चना – मटर – अरहर से भरी बधार

चैत्र – बैसाख में चलेगी पूर्वी – पश्चिमी हवाएं
गेहूं काटने जायेंगे हम सीवान में
लहराओगी रंग – बिरंगी साड़ी का आँचल
बोझा उठाये उडता रहूँगा
सपनों की मादक उड़ान में

तेज़ चलती लू में बाज़ार से लौटते हुए
जेठ – आसाढ़ के समय
सुस्तायेंगे पीपल की घनी छाँव में
पुरखे तपन में ठंढक देते हैं वृक्षों का रूप धर
हम बांटेंगे यादें अपने बचपन की
तुम कहोगी हिरनी – बिरनी के साहसिक किस्से 
खडखडाउंगा कष्टप्रद दिनों से जूझने की
शिरीषं फलियों की अपनी खंजड़ी .

0000000000

बिहारी


दुखों के पहाड़ लादे
चले जाते हैं ये बिहारी
सूरत , पंजाब , दिल्ली , कहाँ – कहाँ नहीं
हड्डियाँ तोडती कड़ी मेहनत के  बीच   
उनके दिलों के कोने में बसा होता है गाँव
बीबी , बच्चों की चहकती हंसी
महानगरों के सतरंगी भीड़ में भी
कड़ी धूप में भी बोझ ढोते हुए
आती है उनके पसीने से देहात की गंध

परदेश कमाने गए इन युवकों की
जड़ें पसर नहीं पाती वहां की धरती में
बबूल की पेड़ों पर छाये बरोह की तरह
गुजारते हैं वे अपना जीवन
मूल निवासियों की वक्रोक्ति से झुंझलाए
कम मजदूरी पर खटते हुए
लौटना चाहते है अपने गाँव
कि याद आ जाता है बारिश की बौछार से ढहता हुआ घर
पिता का मुरझाया चेहरा , पत्नी का सूना चौका
पेबंद से अंग ढंकते बच्चे
शहरी बने नौकरीपेशा , व्यापार की मकसद से
गाँव छोड़े लोगों की तरह नहीं हैं ये युवक
जो पुश्तैनी गांवों को समझते हैं अपना जैविक उपनिवेश

बिहार से बाहर कमाने गए
युवकों के अंतस में महकती है मट्टी की गंध
उनके पसीने की टपकन से
खिलखिलाता है गाँव का गुलाबी चेहरा .     

000000000000000000

पंचायत चुनाव में गाँव


नदी में फेंकता है मछुआरा जाल
खदबदाने लगती हैं मछलियाँ
पंचायत चुनाव की घोषणा होते ही
चिरनिद्रा से जागते हैं नर्मेद्य
वोटों के सौदागर
अपने आप लोग फंसते जाते हैं उसके घेरे में

राजनीति की पेंच लड़ाने वाले
पारंगद पतंगबाजों की पताकायें दिख जाती हैं दूर से
घर – घर में हो रही सेंधमारियों से पुलकित हैं चेहरे
अश्पृश्यता का खात्मा जहाँ अब तक न कर सका संविधान
उसकी दीवाल टूट रही है हौले से
गोश्त भरी थाली और दारु कि बोतलों में
कई जिन्दा गोश्तें दौड़ती हैं मादकता बिखेरती
पंचायत के भीतर बाहर

चुनाव पूर्व ही योद्धाओं द्वारा
की जाती है मौखिक रूप से ही योजनायें आवंटित
जाति , धर्म , संबंधों के
मकडजाल के बीच मच्छर हाट की तरह ख़रीदा जाता है वोट
बिकने को आतुर दिखता है गाँव का चेहरा
क्रेता – बिक्रेता के प्यार से रंग जाता है चुनावी बाज़ार

जो बेचते नहीं अपना वोट सौदागरों को
नरमेद्यों की गिद्ध दृष्टि लगी रहती है उन पर
उनके खेत रखे जाते है बिन पटे
उनके बच्चे निकाल दिए जाते हैं स्कूलों से
घर से निकलने के रोके जाते हैं उनके रास्ते
उनकी औरतें रहतीं हैं हरदम असुरक्षित .

00000000000000

पीडाओं के दीप


दीपावली के बाद मुंह अँधेरे में
हंसिया से सूप पिटते हुए लोग बोलते हैं बोल
‘इसर पईसे दलिदर भागे , घर में लछिमी बास करे’
और फेंक देते हैं उसे जलते ढेर में

हर साल भगाया जाता है दरिद्र को
चुपके से लौट आता है वह
हमारे सपनों , हमारी उम्मीदों को कुचलता हुआ

कद्दू के सूखे तुमड़ी में माँ
घी के दिए जलाकर छोड़ती है नदी में
जिसमें मैं बहा आता था कागज़ की नाव
झिलमिल धार में बहती हुई जाती थी किसी
दूसरे लोक में

कितनी दीपावलियाँ आई जीवन में
जलते रहे दीप फिर भी अंतस में पीडाओं के .
00000000000

सय्यद मियां की टांगी


कमरे की दीवाल पर
खूंटियों के सहारे टंगी
टांगी को बहुत गौर से निरखते हैं सय्यद मियां
जिसे उनके वंश के नवाब पुरखे
शिकार करने साथ ले जाते थे
सवार होकर अरबी घोड़े की पीठ पर
अपने सिपहसलारों के साथ 

पुरखों की निशानी को बड़ी
जतन से संजोते हैं वे
पिटवा खालिस लोहे की बनी टांगी
जिसमे लगा है सखुवे का बेंट
जिसे देखकर याद करते हैं अपने बुजुर्गों की वीरता
कि अंग्रेजों से कैसे मुकाबिल होते थे वे लोग
कैसे करते थे लूटेरों का सामना
अन्याय से लड़ने का कैसे अपनाते थे हौसला

आँगन में उगे अमरूद की गांछों को
दरवाजों की फांक से दिखती टांगी से
कटने का अब कोई भय नहीं होता
पिंजड़े का मिट्ठू सुग्गा उड़कर
जाना चाहता है टांगी पास
छतों पर टिक – टिक कराती गिलहरियाँ
खिलवाड़ करना चाहती है टांगी से

टांगी वाले कमरे से कुछ दूर बैठी
सय्यदा मोहतरमा पका रही होती है रसोई में
अनोखे पकवान
चींटियों के लिए छिड़क रही होती है अंजुरी भर चीनी
घर के मुंडेर पर आयी चिड़ियों को
चुगा रही होती है नवान्न के दाने
बधना से जल ढरकाकर
बुझा रही होती है उन कौवों की प्यास
जो सुनाते रहते हैं संसार भर की अच्छी खबरें
जिसे सुनकर बजती है घर – घर में कांसे की थाली
गाये जाते हैं गीत बधावे के
दरवाजे से आता है मेहमान का आने का सगुन

आँगन में रोपे तुलसी पौधे के समक्ष
मांगती हैं बारहां मन्नतें 
तिलावत पर करती हैं अनगिनत दुआयें
कि हंसते खिलखिलाते लौट आये सबके बच्चे
सबकी बेटियों की हाथों में सजे खुशियों की मेहंदी
सबके चहरे पर छा जाये सावन के घुमड़ते बादल
गाँव की पगडंडियों की तरह शांत रहे हर का अंतरम
दीवाल की जानिब देखकर सोचते हैं सय्यद मियां
कि अपने भोथरे धार से
कैसे काट पाएगी टांगी
दुनियां – जहान के दुख – दलिदर वाले दिनों को .
000000000000

अवकाश पाये शिक्षक


शाम ढ़लते ही लौट आते हैं हारिल पंछी
चोंच में तिनका डाले
बधार से लौट आते हैं पखेरू
लौटते हैं लोग खेतों से काम निपटाकर
अवकाश पाये शिक्षक
लौट आते हैं अपने घरों में
गहरी उदासीनता के साथ
                                                             उनकी उदासीनता में
शामिल होती हैं विनम्रता की लहरें
विनम्रता के साथ प्रार्थनाएँ
प्रार्थनाओं के साथ उमंगती आशाएँ
जिसमें छिपी होती हैं पुरानी यादें
सहकार्मियों के साथ बीते अनगिन दिन
छात्रों को दिये स्नेहिल स्पर्श
पूरे समय का काफिला होता है उनके साथ
                                                        अवकाश पाये शिक्षक करते हैं कामनाएँ
किय विशाल पोखरे जैसे उनके विद्यालय में
उगते रहें श्वेत कमल, नीलोत्पल, नील कुसुम
जिसमें ज्ञान के भौरें करते रहें गुंजार
पूरा इलाका हो उनके सुगंधों से आच्छादित
                                                         अवकाश पाये शिक्षक
लौटना चाहते हैं अपने शुरू के दिनों में
वे खेलना चाहते हैं बचपन के खेल
वे फिर से लिखना चाहते हैं खड़िया से बारहखड़ी
वे बच्चों की तरह परखना चाहते हैं
शिक्षा की गुणवत्ता का रहस्य
                                                         अवकाश पा चुके शिक्षक
उमंगो से कबरेज होकर
करना चाहते हैं बुकानन की तरह यात्राएँ
वे जाना चाहते हैं धरकंधा
देखना चाहते हैं एक मुस्लिम दर्जी दरियादास को
कि वह एकांत में कैसे लिखता है अपनी कविताएँ
उसके आध्यात्मिक रहस्य को वे छू लेना चाहते हैं
वे कर्नल टांड जैसा घूमना चाहते हैं
‘राजपुताना’ में। जहाँ एक भक्तिमय राज कन्या मीराबाई
परमेश्वर को ही पति मानकर करती है नृत्य
उसके गीतों के दोशाले को ओढ़ना चाहते हैं वे
                                                         अवकाश पाये शिक्षक को अभी करने हैं ढेर सारे काम
उन्हें फेंकनी हैं ‘टॉर्च’ की तरह ज्ञान की रोशनी, जो चीर दे समय के अंधेरे को!


0000000000000

घने बरगद थे लोहिया


•   
झाड-झंखाड़ नहीं ,घने बरगद थे लोहिया
जिसकी शाखाओं में झूलती थी समाजवाद की पत्तियां
बाएं बाजू की डूलती टहनियों से
गूंजते थे निःशब्द स्वर
‘दाम बांधो ,काम दो,
सबने मिलकर बाँधी गाँठ,
पिछड़े पाँवें सौ में साठ’
दायें बाजू की थिरकती टहनियों से
गूंजती थी सधी आवाज़
‘हर हाथ को काम ,हर खेत को पानी’
बराबरी ,भाईचारा के उनके सन्देश
धुर देहात तक ले जाती थीं हवाएं दसों दिशाओं से
सामंतवाद , पूंजीवाद की तपती दुपहरी में
दलित, गरीब , मजदूर-किसान
ठंढक पाते थे उसकी सघन छाँव में 
 
बुद्धीजीवियों के सच्चे गुरु
औरतों के सच्चे हमदर्द
भूमिहीनों के लिए फ़रिश्ता थे लोहिया
बरोह की तरह लटकती आकांक्षाओं में
सबकी पूरी होती थी उम्मीदें

अपराजेय योद्धा की तरह अडिग
लोहिया की आवाज़ गूंजती थी संसद में
असमानता के विरुद्ध
तेज़ कदम चलते थे प्रतिरोध में मशाल लिए
उनकी कलम से उभरती थी तीखी रोशनी
चश्मे के भीतर से झांकती
उनकी आँखें टटोल लेती थीं
देश के अन्धेरेपन का हरेक कोना !


    
0000000000000

बबूल का फूल


चट्टानों पर तैरती
सुबह की पिली धूप
अब नहीं दिखती मेरे आस – पास
झड रहे हैं शिरीष के पत्ते
जैसे सिमटता जा रहा हो
मेरे उपर का आसमान

गौरैये की चोंच
कूंचा गई है इस बार भी
हवा में उछलते धूलकडों से
और पत्त्थरों की वर्षा से
कहर उठा है सारा गाँव

काकी भूल जाती
घर की बटुली
पिता खो आते
बाज़ार में
पूर्वजों की रखी हुई शान

अब क्या किया जाए
कहीं दिखता नहीं हमें
घर के पिछवाड़े में उगा
बबूल का एक भी फूल .
000000000

नीलकंठ


कहते थे दादा जी – ‘दशहरा में
नीलकंठ का दर्शन होता है शुभकारी’
कहीं नहीं दिखता नीली गर्दन वाला वह पंछी
चिलबिल , बांस ,इमली , गुलर के पेड़ों पर
फुदकता हुआ , फुसफुसाती है हवा कानों में
‘दबोच ले गयी है उसे भी
विकास की आंधी ने’.

00000000000000000

परिचय
लक्ष्मीकांत मुकुल
जन्म – 08 जनवरी 1973
शिक्षा – विधि स्नातक
संप्रति - स्वतंत्र लेखन / सामाजिक कार्य
कवितायें एवं आलेख विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित .
पुष्पांजलि प्रकाशन ,दिल्ली से कविता संकलन “लाल चोंच वाले पंछी’’ प्रकाशित.

संपर्क :-
ग्राम – मैरा, पोस्ट – सैसड,
भाया – धनसोई ,
जिला – रोहतास
(बिहार) – 802117

ईमेल – kvimukul12111@gmail.com

.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: लक्ष्मीकांत मुकुल की पंद्रह कवितायें
लक्ष्मीकांत मुकुल की पंद्रह कवितायें
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOuyVbEPjMcys0Uw29lVgm775FlMGuWziMDDfpusNvesAju4_tenWJ5W3giGAp4Ba8T6iUHBVu742D41wPeqgB2y9MM0J30yR7L-iu_mt39X1rIMofjgsQOxwbouHo_Pzx4ysx/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOuyVbEPjMcys0Uw29lVgm775FlMGuWziMDDfpusNvesAju4_tenWJ5W3giGAp4Ba8T6iUHBVu742D41wPeqgB2y9MM0J30yR7L-iu_mt39X1rIMofjgsQOxwbouHo_Pzx4ysx/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/01/blog-post_39.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/01/blog-post_39.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content