भयभीत हृदय, उतावली उल्का // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी

SHARE:

एक बड़ा चाकू सूर्य की रोशनी में चमकता, एक बूढ़े ग्रामीण की कोख को चीरता, उदर फाड़ता, बाहर निकल आया, रक्त से भरा हुआ और मरने वाले की केवल एक दबी...


एक बड़ा चाकू सूर्य की रोशनी में चमकता, एक बूढ़े ग्रामीण की कोख को चीरता, उदर फाड़ता, बाहर निकल आया, रक्त से भरा हुआ और मरने वाले की केवल एक दबी हुई हिचकी, और चारों ओर नारे और शोर... इसके कानों में नारे व गालियां, जलता हुआ सीसा बन गया व दिमाग में अंगारे उबलने लगे। गुस्से व डर के कारण उसका कण कण सूख गया। कुछ भी न कर सकने के कारण, बेबसी, आंखों के सामने मौत व टांगों में रक्त जम गया, फिर भी वह मुंह उठाकर भागने लगा। वह चारों ओर से घिरा हुआ था और जल्लादों से घिरा। माहौल में रक्त और बारूद की अजीब बू थी। उसका दिमाग उस बू और डर के अहसास से सुनक् हो चुका था। आवाज उसके पीछे, बाजू से और आगे उसके साथ दौड़ते रहे, और वह उन आवाजों से दूर होने के लिए आवाज से तेज दौड़ने की कोशिश कर रहा था। वह भागता गया, सहमे और डरे कुत्ते की तरह। लेकिन उसे लगा : वह भाग नहीं रहा था, चारों ओर घूम रहा था आवाजों के घेरे में। फिर भी वह भागता रहा। अचानक उसके आगे धमाके के साथ धरती हिल गई। शायद बम फटा था। उसने घूमकर पीछे भागना चाहा, लेकिन उसके आगे काले लाल हरे पीले तारे आ गए, और दिमाग और पैरों का साथ टूट गया। पीछे से, बाजू से, आगे दौड़ते आवाज भी धीरे धीरे कम होते, दूर होते, अचानक बंद हो गए।

वह भागता गया और उसे लगा : वह बहुत दूर निकल आया था, कहां? उसे पता न लग सका। ‘अजीब जगह है, लेकिन नहीं, यह मेरी जानी पहचानी है।’ उसने सोचा। चारों ओर रेत के बड़े बड़े टीले थे, वीरानी थी और वह उस वीराने में अकेला था। रेत पहाड़ों जितने टीलों पर चढ़ चढ़कर उसकी सांस फूल गई। उसे लगा कि यहां भी लोग उसका पीछा कर रहे हैं। उसने तेज चलना चाहा, लेकिन पैर की ऐड़ियां रेत में घुस रही थीं। ‘मैं भाग क्यों रहा हूं! मैंने कौन-सा गुनाह किया है?’ उसने अपने दिमाग पर जोर दिया, लेकिन उसे कुछ भी याद नहीं आया। कुछ लोग मुझे मारने के लिए पीछे पड़े हैं! और कुछ अजीब धुंधली, नहीं लिखी और बे मतलब तस्वीरें उसके दिमाग में उभरकर मिटती रहीं, जो शायद उसके भूतकाल की थीं या वर्तमान की थीं, लेकिन कुछ भी साफ नहीं था। अचानक एक विचार उसके सुनक् हुए दिमाग में बिजली की तरह कड़ककर पैदा हुआ और उलझी लकीरों को मिटाता गया-जिंदगी का बड़ा और भरपूर भाग व्यर्थ और बे मतलब गुजर गया... वह सुनक् हो गया। तभी... तभी... लेकिन मैं उस बे मतलब की जिंदगी व्यतीत करने के लिए मजबूर किया गया हूं। इसमें मेरा कोई दोष नहीं। मुझे अब पता चला है कि मैं उसे बे मतलब में ही पैदा हुआ हूं और मेरे चारों ओर बे मतलब और अजनबीपन है। मैंने पूरी उम्र उस अजनबीपन के धुएं में सांस ली है। मेरी सांस घुट रही है।’ उसे सख्त तकलीफ महसूस होने लगी। मैंने भी सपने देखे थे, अपने घर के, अपने देश के। लेकिन यह मेरा देश नहीं था, मैंने खुद को अपने ही देश में पराया महसूस किया है। अपने ही देश में पराया और बे घर! तभी जिंदगी ऐसे बे मतलब गुजर गई...’ यह पंक्ति बार बार उसके दिमाग में घूमने लगी। ‘लेकिन मैंने उस परायेपन और बे मतलबी को कभी भी दिल से स्वीकार नहीं किया है। मैंने हालातों से समझौता नहीं किया है, इसीलिए तो मुझे देश छोड़ने की सज़ा दी गई है। मैं भाग भागकर यहां आकर पहुंचा हूं, लेकिन यहां भी लोग मेरे पीछे हैं...’ वह सहम गया और जल्दी जल्दी चलना चाहा। ‘यह अजीब बात है कि गुलामों को अपनी गुलामी का अहसास नहीं है और वे उस बेबसी में ही खुश हैं!’ सोच टुकड़े टुकड़े हो गई और टूटे टुकड़े उसके अंदर चुभने लगे। काफी देर तक केवल वही चुभन थी और बेहद पीड़ा थी। धीरे धीरे आकाश में बादल छने लगे और उसके बाद कुछ नहीं था।

होने का अहसास आकाश में भरे बादलों को चीरकर उभरकर आया। उसने खुद को अकेला पाया और चारों ओर रेती का न खत्म होने वाला रेगिस्तान था। उसे विचार आया कि यह रेगिस्तान कभी भी जाग नहीं पाएगा। आखिर वह कहां जाए-कदम कदम पर उसके आगे कई राहें निकल रही थीं और वह उलझा खड़ा था। निर्णय नहीं कर पा रहा था कि कौन-सी राह चुने। राहें अलग अलग थीं और एक दूसरे से जुड़ी हुई थीं और उलझी हुई थीं। कभी कभी वह चल चलकर फिर उसी जगह लौटकर आता था, जैसे कि चला ही नहीं था। उसे लगा कि जैसे वह एक ही चक्कर में फंसा हुआ था जहां से निकलने का कोई भी उपाय उसे नहीं सूझ रहा था। वक्त कैसे बीत गया और बीत रहा था! कभी उसे लगता कि अभी अभी ही यहां पर पहुंचा है, कभी वह समझ रहा था कि उसे चलते चलते कई वर्ष बीत गये हैं। लेकिन वह कुछ भी सही अंदाजा नहीं लगा पाया। इतना समझ रहा था कि उसे काफी वक्त हो गया है। लेकिन अब तो वक्त बीतने का कोई पता ही नहीं चल रहा था।

पैर आग जैसे तपे हुए तवे पर रखे हुए थे और दिमाग थकान से भरा हुआ था। थकावट, लाचारी और एक अजीब दुख का दबा अहसास सभी बांध तोड़कर बाहर निकलने के लिए उतावले थे। अचानक उसके आगे धूल का एक भवंडर उठा और नाचते नाचते दूर होते गायब हो गया। उसे लगा : वह भी केवल एक धूल का बवंडर है और बाकी सब खत्म हो चुका था।

‘क्या, सच में सब कुछ खत्म हो चुका है!’ वह हड़बड़ाया।’ लेकिन मैं लड़े बिना ही हार चुका हूं...’ उसे विश्वास नहीं हो रहा था। ‘मैं एक हारा हुआ इन्सान हूं।’ चारों ओर दूर दूर तक रेत के टीले थे। उसने खुद को देखना चाहा। केवल महसूस करने की हद तक वह वही था, नहीं तो उसमें कोई भी बात ऐसी नहीं रही थी जिसे देखकर कहा जा सके कि वह वही था-या शायद वह था ही नहीं।

‘और मैं सहमा और दुखी हूं!’ उसने खुद को ताने से कहा और हंसना चाहा। ठहाका लगाते उसे आभास हुआ कि वह चीखें और शिकायत कर रहा था। वह एकदम चुप हो गया और इसके साथ सोच भी चुप हो गई।

‘... व्यक्ति केवल एक ही बात पर क्यों ठहर जाता है। घड़ी के पेन्डुलम की हदें हैं, बार बार फिर से उसी जगह लौटकर आता है। वही रास्ता। वही चलना। लेकिन व्यक्ति का ठिकाना एक जगह है ही नहीं, या कम से कम दिमाग तो एक जगह टिककर खड़ा नहीं होता। मैं बहुत तेज चला हूं। मैंने कहीं पहुंचना चाहा। लेकिन कहां? किसी ऐसी जगह जहां आराम मिले। मैं कहीं भी रुका नहीं, या रुका तो मैंने रुकना नहीं चाहा, लेकिन मुझे रुकना पड़ रहा था। हे भगवान! मैं समझ रहा था कि मैं कुछ करूं गा। और लोग भी ऐसा ही कह रहे थे। माँ कह रही थी कि मेरा बेटा बड़ा आदमी बनेगा और हमारे दुख उतर जायेंगे। मुझे ये बातें सुनकर रोना आ रहा था या गुस्सा आ रहा था खुद पर। मैं अपनी माँ के मुंह से उम्र की रेखाएं मिटा नहीं सकता था लेकिन दुख की रेखाएं तो मिटा सकता था और उसने मुझसे कितनी गलत उम्मीदें रखीं। मैं बचपन से ही सपने देखकर खुश हुआ हूं। मैंने तेज दौड़ना चाहा। मैं नहीं दौड़ा था क्या? लेकिन मैंने देखा कि रास्ता बंद था। मैंने इस बंद को तोड़ना चाहा। मैंने सबसे कहा कि माहौल में गुलामी का धुआं है। आप अंधे हैं, गूंगे हैं, बहरे हैं, बेबस हैं। सुस्त हैं। आप गुलाम हैं और गुलामी में खुश हैं। लानत है आप पर। मैं ऐसे माहौल में नहीं रह सकता। नहीं रह सकता... नहीं रह सकता... लेकिन मैं तो रहा हूं। मैं तो हमेशा ही ऐसे माहौल में रहा हूं, मेरे लिए कोई भी भविष्य नहीं। केवल वर्तमान है और कितना तकलीफदेह... कितना डरावना। लेकिन मैं नहीं डरता। डरने की चिंता करने की ज़रूरत क्या है। फिर भी मैं भाग क्यों रहा हूं। जबकि व्यक्ति जानता भी है कि भागने का बचने का कोई रास्ता नहीं। कितना थक चुका हूं भाग भागकर...’

रेत बहुत गर्म थी। नाखुन से चोटी तक दर्द की असंख्य लहरें थीं। वह बैठ गया सांस लेने के लिए। उसे बैठे अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि अचानक पीछे से किसी ने उसे धक्का दिया। उसने खुद को गिरने से बचा लिया और हड़बड़ाकर उठ बैठा। उसने पीछे मुड़कर देखा। केवल अंधकार था जो तेजी से आगे बढ़ता और फैलता गया। उसके बाल खड़े हो गए। ‘आखिर पहुंच गए...’ उसने भागना चाहा लेकिन वह दसों दिशाओं से घिर चुका था। हवा रेत की मुठ्ठी भरकर उसके मुंह, छाती और पीठ को पीट रही थी। उसने अपनी आंखें बंद कर दी थीं। रेत के धक्कों से खुद को बचाने के लिए वह इधर उधर व्यर्थ दौड़ रहा था। ‘पता नहीं चल रहा था कि कब कहां से धक्का लग रहा था। लेकिन अगर पता चले भी, तो उससे क्या फर्क पड़ता। कहीं से भी कोई भी वार हो और भले व्यक्ति देखे, लेकिन जब बचाव कर भी सके। सवाल यह नहीं कि वार हो रहा है। वार हर ओर से और हर तरह का होता है, लेकिन सवाल यह है कि बचाव कैसे करें। समस्या है ही बचाव की। और यहां बचाव की सभी राहें बंद हैं।’ उसे अपनी सांस घुटती हुई महसूस हुई। उसने मुंह को जोर से बंद कर दिया... लेकिन रेत नाक में घुस रही थी। जैसे कि उसके सर पर कोई जोर दे रहा था और उसका दर्द पूरे शरीर में नसों में दौड़ रहा था। उसके पैर रेत में धंसे हुए थे और जैसे वह रबर का गुड्डा था, जिसे कोई जोर देकर फिर से छोड़ रहा था। कंपकंपी थी, लेकिन शरीर के किस भाग में! शायद टांगें कंपकंपा रही थीं या दांत या छाती या शायद पूरा वजूद... ‘किसी भी बात का विश्वास नहीं। हर वक्त बे विश्वास की हालत, अगले पल में क्या होगा, कोई विश्वास नहीं, कुछ भी विश्वास से नहीं कहा जा सकता। क्या पता कब तूफान खत्म हो जाए और यहां तो कई तूफान आए हैं और गुजर चुके हैं। मैंने किसी को कहते सुना है कि हम टीले हैं : उभरने और कुचलने के बाद भी फिर से जन्म लेंगे। खत्म हो जाएंगे और फिर से जन्म लेंगे और केवल टीले ही रहेंगे...’

उसे अहसास हुआ कि उसका मुंह खुला है। उसने जोर से मुंह को बंद किया। दांतों का आपस में या दांतों में रेत की आवाज हुई और वह डर गया। किसी ने दांत तोड़े! उसने हड़बड़ाकर चारों ओर देखा। रेत के बवंडर थे, जो उसके चारों ओर भूतों की तरह घूम रहे थे और वह उन भूतों से डरता, तेज हवा में धक्के खाता, भागता गया। उड़ती रेत उसकी आंखों में घुस रही थी और वह आंखें न्हीं खोल पा रहा था। रेत में दौड़ते गिर गया, फिर भी वह भागने की कोशिश कर रहा था, शायद केवल कोशिश ही कर रहा था। ‘मैं जानता हूं कि यह सारी कोशिश व्यर्थ है। बचने के सभी रास्ते बंद हैं और चारों ओर तलवारें हैं, जो व्यक्ति को धकेलकर लातें मारकर फिर उसी जगह पर ला पटकते हैं जहां से वह भागा था। कोई भी इस कैदखाने से भाग नहीं सकता। मैं चारों ओर से घिरा हूं। मुझे लग रहा है कि कहीं न कहीं से अचानक कोई जाल मेरे ऊपर फेंका जाएगा और मैं फंस जाऊंगा, तड़पूंगा लेकिन सब व्यर्थ और अचानक एक तलवार मेरी छाती में घुस जाएगी...’

उसे भागने का विचार आया और उसने अपनी पूरी ताकत समेटकर भागना चाहा, लेकिन ताकत जैसी कोई चीज बची नहीं थी। पूरा रक्त जैसे रेत चूस गई थी और टांगें सूखकर पथरा गई थीं। केवल हड्डियां थीं जिस पर सूखी चमड़ी चढ़ी हुई थी और हड्डियों के खांचों में पीड़ा भरी हुई थी। उसने जैसे ही पूरा जोर देकर आगे बढ़ना चाहा, तो उसकी टांगें रेत में धंस गईं। वह घुटनों तक फंस चुका था। उसने रेत से पैरों को निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन पैर तो जैसे उसके थे ही नहीं, केवल उसके साथ जुड़े हुए थे। तेज हवा ने उसके आसपास रेत का टीला बनाना शुरू किया, और टीला उसके घुटनों से ऊपर चढ़ता गया। उसने अपने मुंह से और आंखों से रेत हटानी चाही, लेकिन उसे ऐसे लगा जैसे कि उसके हाथ और सर के बीच मीलों का फासला हो। बांहें उसके कंधों से केवल चिपटी हुई थीं। दिमाग का शरीर के किसी भी भाग पर इख्तियार नहीं था और केवल दर्द की बेअंत लहरें थीं।

lll

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: भयभीत हृदय, उतावली उल्का // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
भयभीत हृदय, उतावली उल्का // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-xp-0qa934SKpegirPcw_HlaRpbumQj9APWqDzVRvySsDMwnKs7eqm55IsrggM89DdGYjGvd7WW1KwavVIpf8OuWvFp_iXjqSDjHpVz5BapsVqbIzYrU_Ka3jTDVrpUJwbV0j/?imgmax=200
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-xp-0qa934SKpegirPcw_HlaRpbumQj9APWqDzVRvySsDMwnKs7eqm55IsrggM89DdGYjGvd7WW1KwavVIpf8OuWvFp_iXjqSDjHpVz5BapsVqbIzYrU_Ka3jTDVrpUJwbV0j/s72-c/?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/01/blog-post_24.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/01/blog-post_24.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content