दर्द के स्वर // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी

SHARE:

लोगों के मुस्कान भरे चेहरे हैं, हंसी के फव्वारे हैं और ठहाकों के झरने हैं। छोटे छोटे बच्चे हरे रंग के बरामदे में खेलते चिल्ला रहे हैं। मैं उ...

लोगों के मुस्कान भरे चेहरे हैं, हंसी के फव्वारे हैं और ठहाकों के झरने हैं। छोटे छोटे बच्चे हरे रंग के बरामदे में खेलते चिल्ला रहे हैं। मैं उन सभी को तटस्थ भाव से देख रहा हूं। ऐसा लग रहा है जैसे यहां पर केवल शरीर है और आत्मा दूर कहीं आकाश में है। हां, मेरा मन कहां है? मन का कोई ठिकाना नहीं, उस पर मेरा भी बस नहीं चल रहा जो उसे एक जगह रोक पाऊं। काश! मेरे मन पर मेरा बस (वश) चलता!

‘‘क्या सोच रहे हो?’’ कहीं दूर से आवाज आई। मैं हड़बड़ाकर अपने आप में लौट आया। मैं उसकी ओर देखता हूं। वह मेरे पास ही बैठी है। फिर भी उसका स्वर दूर से आया क्यों लगा? जल्दी ही वह अपनी आवाज की तरह खुद भी दूर हो जाएगी। और फिर अपनी आवाज के साथ गायब हो जाएगी। दिल किसी गहरे दर्द में डूब रहा है। मन में आ रहा है कि चिल्लाऊं।

‘‘तुम कुछ बोलते क्यों नहीं! मेरी सांस घुट रही है...’’ वह लगभग चिल्ला कर कहती है। उसकी घूरती निगाहें एकटक मुझमें घुसी हुई हैं। काश कहूं : अब बोलने के लिए कुछ बचा ही क्या है! लेकिन ऐसा कह नहीं पाया। उसके बदले कहता हूं : ‘‘तुम्हें याद है नसरीन! तुमने जब पहले प्रवेश लिया था, तब तुम क्लास में किसी से बात नहीं करती थीं। एक दिन मैंने भी तुमसे बात करने की कोशिश की थी। मैं तुमसे बातें करता रहा, लेकिन तुम चुप करके बैठी रहीं। आखिर मैंने चिल्लाकर कहा था : ‘‘ओह मोहतरमा, आप बोलती क्यों नहीं? कुछ तो बोलो, मेरी तो अब सांस घुट रही है!’’

और अब भी वह कुछ नहीं बोलती। उसके होंठों पर केवल एक उदास मुस्कान आकर लुप्त हो जाती है। सामने खड़े पेड़ हिल डुल रहे हैं, हवा है, फिर भी मुझे घुटन हो रही है। मैं पेड़ की हिलती डुलती टहनियों को देख रहा हूं। उन टहनियों के ऊपर पक्षी उड़ रहे हैं। मेरी यादें भी उन पक्षियों की तरह उड़ती कहीं की कहीं पहुंच रही हैं।

नसरीन को सब लड़के और लड़कियां घमंडी समझते थे। वह किसी से बात नहीं करती थी। हकीकत में उसके रूखे स्वभाव को देखकर कोई उससे बात करने की हिम्मत नहीं करता था। इसलिए क्लास के लड़के हों चाहे लड़कियां उसे अलग अलग तरीकों से तंग करते थे। केवल मैं ही हमेशा नसरीन का तरफ लेता था। उसके चेहरे पर उदासी की गहरी परछाइयां होती थीं, जिसमें किसी अनजाने दुख की लहरें चलती थीं। मुझे यह बात अच्छी नहीं लगती थी कि और लोग उसे बेवजह तंग करें, उस पर हसें। कभी कभी मैं उनसे लड़ भी पड़ता था, तब वे सब मिलकर मुझे चिढ़ाते थे कि तुम्हारी नसरीन के साथ इतनी हमदर्दी क्यों है? सचमुच मैं सोचता था कि मेरा क्या जाता है, मैं क्यों उसकी ओर से औरों से लड़ता फिरूं ? अगर वह इतनी घमंडी है जो किसी से बात भी नहीं करना चाहती तो फिर भले ही उससे घमंडीपन का हिसाब लिया जाए। लेकिन दिल नहीं मानता था, चुप रहना और किसी से बात न करना दोष तो नहीं है। और क्या किसी से बात न करना घमंडीपन है? उसके कई कारण हो सकते हैं। शुरू शुरू में जब मैंने उसके व्यक्तित्व में दिलचस्पी लेनी शुरू की तो उसका दूसरा कारण कोई भी नहीं था, केवल उसको जानने के। वह सचमुच बहुत सुंदर थी। कुछ लोगों का यह भी विचार था कि वह अपनी सुंदरता के कारण घमंडी है। लेकिन यह बात मुझे दिल से नहीं लग रही थी। वैसे वहां पर कुछ लड़कियां उससे भी ज्यादा सुंदर थीं।

एक दिन उसने खुद ही मुझसे बात की। बेहद गंभीरता से कहा कि ‘‘मुझे आपसे कुछ बात करनी है।’’

‘‘फरमाइये!’’

‘‘फरमाने वाली कोई बात नहीं है। एक विनती है। मेहरबानी करके आप मेरे साथ हमदर्दी करना छोड़ दीजिए।’’ वह कुछ परेशान लग रही थी।

‘‘मैं क्यों आपसे हमदर्दी करूं गा! अगर औरों को आपके खिलाफ राय देने का अधिकार है, तो मुझे भी उनका विरोध करने का अधिकार है। क्या आप ये अधिकार मुझसे छीनना चाहती हैं?’’

वह चुप रही।

‘‘आप औरों को तो मना नहीं कर रहीं, उनको जैसे अच्छा लगे कहते फिरें, बाकी आप मुझे अकेला देखकर मुझसे लड़ने आई हैं!’’

वह चुप रही।

‘‘आखिर आपने खुद को इतना रहस्यमयी क्यों बना रखा है?’’

वह चुप रही।

‘‘कहिए मोहतरमा! आप बात क्यों नहीं कर रहीं, कुछ तो बोलिए, मेरी तो अब सांस फूल रही है!’’

अचानक उसके होंठों से हंसी का फव्वारा छूट पड़ा। मैंने उसे अचरज से देखा। मैंने उसे पहली बार हंसते देखा था। ऐसी मीठी और मधुर हंसी, जिसमें संगीत भरा हो, मैंने पहली बार सुनी थी शायद। उसने हंसते कहा, ‘‘किसी के बात न करने से भी कभी किसी की सांस फूलती है क्या?’’

‘‘आपने इतने वक्त तक बात न करनेे का रिकार्ड कायम करके पूरे क्लास की सांस फुला रखी है और आपको इस बात का एहसास ही नहीं है।’’

‘‘सच! अगर मेरे चुप रहने से औरों को तकलीफ पहुंची है, तो मुझे इसका अफसोस है।’’

उसके पछताने वाले अंदाज पर मुझे हंसी आ गई।

‘‘आपको पता है कि क्लास की आपके बारे में क्या राय है?’’

‘‘राय का तो मुझे पता नहीं, बाकी यह पता है कि पूरी क्लास मेरे खिलाफ है और आप मेरी ओर से उनसे लड़ते रहते हैं।’’ उसने सादगी से कहा।

‘‘मेरी बात को छोड़िए। लड़के और लड़कियों की आपके बारे में यह पक्की राय है कि आप घमंडी हैं।’’

‘‘क्या आप भी मुझे घमंडी समझते हैं?’’ उसने उलटे मुझसे प्रश्न किया और मैं उलझ गया।

‘‘आपके व्यवहार से तो ऐसा ही लगता है।’’ मैंने हिचकते कहा।

‘‘अगर आप भी औरों की राय को सही समझते हैं तो मुझसे हमदर्दी जाहिर करके, मेरा तरफ क्यों लेते हैं?’’

मैंने कहा, ‘‘आपने गलत समझा है, पहली बात तो मैं आपके बात न करने और चुप रहने का कारण घमंड नहीं समझता। चुप रहने का कारण कुछ तो जरूर होगा लेकिन इसका मतलब घमंड नहीं। आपका किसी से बात न करने का दूसरा भी एक कारण समझा जा रहा है...’’ मैं चुप हो गया।

‘‘कौन-सा?’’ उसने मुझे चुप देखकर पूछा।

‘‘कुछ एक का विचार है कि आप अपनी सुंदरता के कारण घमंडी हैं।’’ वह शर्मा गई और कुछ कहा नहीं।

‘‘लेकिन मुझे इस बात पर भी विश्वास नहीं है।’’

‘‘तौबा! कैसी कैसी गलत बातें मशहूर हो गई हैं।’’ उसने जैसे खुद से बातें करते कहा।

‘‘हो सकता है, लोग आपको गलत समझते हों और इसलिए आप उनको गलत समझ रहे हों।’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब आपने मेरी हमदर्दी को गलत समझा है।’’

वह चुप रही।

‘‘आपके चुप रहने का उपवास फिर से शुरू हो गया है शायद।’’ दोनों से ठहाका निकल गया और दूर खड़े लड़के और लड़कियां हमें आश्चर्यचकित हो देखने लगे।

उसके बाद वह अब भी औरों से ज्यादा बातें नहीं करती थी, केवल मुझसे वक्त वक्त पर बातें करती रहती थी। उसने मुझे अब तक अपने बारे में कुछ भी नहीं बताया था, न ही मैंने उस पर जोर भरा था। कुछ समय बाद मुझे यह एहसास होने लगा कि नसरीन के व्यक्तित्व में एक आकर्षण था जिसने मुझे खींचकर उसके करीब ला दिया था। यह उसका आकर्षण ही था जिसके कारण और लोग भी उसके करीब आना और उससे बातें करना चाहते थे, लेकिन नसरीन के रूखे व्यवहार के कारण कोई भी करीब न आ सका और इस कारण ही वे उसके विरोधी बन गए थे। शायद वे मुझसे भी जलने लगे थे। मुझे यह सब पता चल गया था। उन्होंने मुझे और नसरीन को गलत समझा था। हम दोनों के बीच ऐसी कोई बात नहीं थी, जिसे गलत अर्थ दिया जाए। मैंने अपने दिल से कई बार पूछा कि क्या सचमुच मैं नसरीन को चाहता हूं, लेकिन मुझे कोई ठोस उत्तर नहीं मिला। मैं उलझ गया कि आखिर मुझे उसके लिए इतना आकर्षण क्यों महसूस हो रहा है, जबकि मुझे उससे कोई प्यार नहीं है!

जिस दिन वह क्लास में नहीं आती थी, तो मुझे बहुत उलझन और अकेलापन महसूस होता था। ज्यादातर वह गैर हाजिर रहती थी। फिर जब आती थी, तब देखता था कि मुझ पर नजर पड़ते ही उसके होेंठों पर मुस्कान आ जाती थी। लेकिन मैं यह समझ सकता था कि वह मुस्कान भी कितनी उदास थी। उस वक्त मुझे यह विचार आता था कि कहीं उसके अनजाने दुःख और उदासी ने तो मुझे खींचकर उसके करीब नहीं ला दिया। मेरी आत्मा में भी तो बयाबान की परछाइयां थीं। मैं भी तो अपने आप में उलझा हुआ और व्याकुल था। मेरे अंदर में भी किसी गहरी पीड़ा के स्वर थे, जो दिल को झंझोर रहे थे। हालातों ने बैरी की तरह मेरी आत्मा से पूरा रक्त चूस लिया था। अंदर कोई मधुरता नहीं थी, कोई भी संगीतमय सुर नहीं था तो आत्मा की तारों को छेड़कर उसमें फिर से रस भरे। मैंने नसरीन में खुद को देखा था, जैसे वह मेरा आईना थी। नसरीन से ज्यादा हमदर्दी मुझे अपने आप से थी, वह तो केवल एक lzksr थी। मैंने किसी से प्यार करना नहीं चाहा। मैंने समझा था कि मैं किसी से प्यार कर ही नहीं सकता। प्यार वे लोग कर सकते हैं जिनको प्यार की सोच के अलावा और कोई सोच नहीं होती। वे जैसे पैदा ही प्यार के लिए हुए होते हैं। मैं इसके लिए पैदा नहीं हुआ था। मैं केवल अपने कमजोर कीड़ा लगे हुए घर का खंभा बनने के लिए पैदा हुआ था। मैंने अपनी भावनाओं को अपने हाथों से गला घोंट कर मार दिया था। मैंने खुद से युद्ध किया था। नसरीन को देखकर मुझे लगा कि वह भी खुद से युद्ध कर रही थी। जब हम दोनों साथ बैठते थे तो अपने आप में अपना अपना युद्ध लड़ते थे। हमने कभी भी एक दूसरे से अपने बारे में नहीं पूछा, लेकिन उसका ज्यादातर गैर हाजिर रहना मुझे खटकता था। आखिर मैंने उससे उसका कारण पूछा। मैंने सोचा था कि वह आनाकानी करेगी, कोई भी ठोस उत्तर नहीं देगी, लेकिन उसने ठीक ठीक सीधा उत्तर दिया।

‘‘जब मेरा चाचा शहर आता है, तो मैं पढ़ने नहीं आती हूं।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस, मेरा चाचा नहीं चाहता कि मैं ज्यादा पढ़ूं।’’

‘‘लेकिन आखिर क्यों? तुम्हारा पिता होते तुम्हारा चाचा तुम्हें पढ़ने से क्यों रोक रहा है?’’

उसने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ वक्त तक दूर दूर देखती रही। उसके चेहरे पर उदासी के काले बादल छा गए थे।

‘‘क्या बात है नसरीन! मुझे बताने लायक बात नहीं है क्या?’’

उसने बेबसी से मुझे देखा।

‘‘मेरे चाचा के लड़के से मेरी सगाई हो चुकी है।’’ उसने जोर लगाकर कहा। मेरे मुंह से एक शब्द भी न निकला। मन की परेशानी बढ़ने लगी, इसलिए बात की।

‘‘तुम्हारा dft+u पढ़ा लिखा है?’’

‘‘मैट्रिक में फेल होने के बाद उसने पढ़ना छोड़ दिया। अब जमींदारी करता है।’’

‘‘तुम्हें पसंद है?’’ मुझे अपना यह प्रश्न अजीब लगा। उसने मेरी ओर देखा और फिर सर झुका दिया। कुछ देर बाद उसने खुद ही बोलना शुरू किया।

‘‘मेरी सगाई तब हुई थी जब मैं अभी पेट में ही थी।’’ कुछ पल रुककर वह जैसे दूर देखते बोलती रही, ‘‘हमारे खानदान में अपनों से बाहर लड़की को निकालना बदनामी और शर्म की बात है। उसमें लड़की की पसंद या मर्जी का कोई दखल नहीं होता है। वे चुपचाप बिना बोले सूली पर चढ़ जाती हैं।’’

‘‘तुम्हारे माँ बाप तुम्हारे चाचा की मर्जी के खिलाफ तुम्हें कैसे पढ़ा रहे हैं?’’

‘‘बहुत अर्ज करने और सर पटकने के बाद जाकर ज्यादा पढ़ने की अनुमति मिली है, लेकिन वह भी इस शर्त पर कि मैं लड़कों से बातें नहीं करूं गी।’’

तो क्या एक दिन नसरीन चली जाएगी और फिर कभी नजर नहीं आएगी! मेरे दिल को सदमा पहुंचा। तब मैंने अनुभव किया कि मुझे नसरीन से बहुत प्यार है, लेकिन उस प्यार का मुझे तब पता चला जब वह विदा होने के कगार पर पहुंच गया। मैंने कभी भी नसरीन के सामने प्यार का इजहार नहीं किया था। प्यार का इजहार केवल जबान से ही नहीं किया जाता। आँखें मन का आईना होती हैं, आँखें कोई भी बात नहीं छिपाती हैं। आँखें आँखों से बातें करती हैं और वे कुछ कह देती हैं जो मुंह से नहीं बोला जा सकता। मैंने उसकी आईने जैसी आँखों में डुबकी लगाकर देखा था।

उसकी आँखों में प्यार की परछाइयां थीं। लेकिन उसके साथ ही एक गहरे दर्द की धुंध छाई हुई थी, उसकी आँखों में मैंने सब कुछ देखा था। शायद उसने भी सब कुछ देखा था मेरी आँखों में, हमें मुंह से कुछ भी कहने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

परीक्षा में कुछ दिनों की देरी थी, तो अचानक ही नसरीन का क्लास में आना बंद हो गया। लड़के और लड़कियों ने उसके न आने की अलग अलग राय दी, केवल मैं ही सही अंदाजा लगा पाया कि उसका आना क्यों बंद हो गया है। क्लास में उसके बैठने की खाली जगह की ओर देखते दिल घबराने लगता था, मैं आँखें बंद कर देता था। वह मेरे सामने आ खड़ी होती, जैसे दर्द के पाताल से निकलकर ऊपर आ जाती थी। उसकी ऐसी शक्ल देखकर मैं सह नहीं पाता था। शायद उसकी वह शक्ल मेरे अंदर के दर्द की परछाईं थी जो नसरीन का रूप लेकर, प्रगट होता था। अचानक मैं आँखें खोल देता था और निगाहें उसकी खाली जगह से टकरा जातीं, टकराकर जैसे घायल होकर लौट आती थीं। उस वक्त मुझे दिल किसी अनजान तकलीफ में दबती, पिसती महसूस होती थी। मैं घबराकर अपनी हालत से डरकर, उठकर बाहर चला जाता था। कुछ दिनों के बाद उसकी एक संक्षिप्त चिठ्ठी मुझे मिली। वह मुझसे आखिरी बार मिलना चाहती थी। आखिरी बार! मैंने ठहाका लगाना चाहा लेकिन गले में गांठ पड़ गई थी।

और अब, इस वक्त, वह आखिरी बार मेरे करीब बैठी है। लेकिन कहां है वह, मैं कैसे कह सकता हूं कि वह यहां पर है। कुछ देर के बाद वह यहां पर नहीं होगी, और फिर सब कुछ खत्म हो जाएगा, जैसे कुछ था ही नहीं। लेकिन था भी क्या? क्या था? आखिर हमारा संबंध क्या था आपस में, जो आज आखिरी बार मिलने के कारण हम इतने दुःखी थे। जिस वक्त वह आई थी उस वक्त उसके चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं थी। उदासी में डूबी मुस्कान भी नहीं, जैसे मुस्कान मर चुकी थी। पहले मैंने ही उससे बात की थी।

‘‘नसरीन, पढ़ना छोड़ दिया क्या?’’

उसने केवल मेरी ओर देखा, जैसे कहती हो, ‘‘यह भी कोई पूछने की बात है!’’ वह चुपचाप बैठी है, अचानक सुबककर कहती है, ‘‘मेरी शादी का दिन तय हो चुका है...’’

उसका स्वर पतला और सुबकने जैसा है, फिर भी मुझे अपने आगे धमाके जैसा अनुभव हुआ। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि इस बात का कौन-सा उत्तर दूं। मन में आ रहा है कि उसे बधाई दूं। लेकिन यह समझते कि मैं उसके ऊपर ताना कस रहा हूं, और हमदर्दी! लेकिन मैं कौन होता हूं, उससे हमदर्दी करने वाला।

‘‘तुम परीक्षा भी नहीं दोगी?’’

‘‘नहीं, मेरा चाचा पिताजी से इस बात पर गुस्से में आ गया है कि उन्होंने मुझे उसके लड़के से ज्यादा क्यों पढ़ाया है। चाचा बहुत बड़ा जमींदार है, उसकी तुलना में हम कम हैसियत वाले हैं, इसलिए पिताजी उसे नाराज करना नहीं चाहते।’’

मैं कुछ नहीं पूछता, मेरे पास बात करने के लिए कुछ था ही नहीं। ऐसा नहीं है कि मैं बात करना नहीं चाहता, लेकिन क्या बात करनी चाहिए। मुझे कोई बात नहीं सूझ रही, अंदर की उलझन को प्रकट करने से क्या लाभ! अनकही बातें अनकही ही रहें तो अच्छा। सब कुछ खत्म हो जाने के बाद इन बातों का महत्व ही क्या रह जाता है।

‘‘क्लास के लड़के और लड़कियां मेरे बारे में अब भी बातें करते हैं?’’ उसके होंठों पर मृत मुस्कान है।

‘‘उनके लिए तुम अब भी रहस्य हो।’’ मैंने ऐसे ही कह दिया।

‘‘हां, औरों को क्या पड़ी है जो एक रहस्य को समझने की कोशिश करें।’’

मैं उसकी ओर देखता हूं। वह तुरंत मुंह घुमा देती है और आँखों में आए आँसुओं को छिपाकर पोंछती है। फिर आँसुओं को पीते बात करती है।

‘‘तुम भी मुझे औरों की तरह रहस्य ही समझते। तुमने मुझे समझकर क्यों खुद को दुःखी किया? क्यों दुःखी किया?’’ वह होंठ को काटकर उठ खड़ी होती है।

हवा बंद है। मेरी सांस घुट रही है। मैं पेड़ों की ओर देखता हूं, टहनियां हिल डुल रही हैं लेकिन फिर भी हवा नहीं है, चारों ओर अनंत दीवारें हैं जिन्होंने हवा को रोक रखा है। सांस घुट रही है... जैसे मन किसी मुठ्ठी में पिसता जा रहा है। ओह नसरीन! नसरीन!... चीख गले में आकर तड़पने लगी। मैं तुरंत उसकी ओर देखता हूं। उसकी जगह खाली पड़ी है - ऐसा लग रहा है जैसे वह कभी वहां पर थी ही नहीं।

lll

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: दर्द के स्वर // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
दर्द के स्वर // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-xp-0qa934SKpegirPcw_HlaRpbumQj9APWqDzVRvySsDMwnKs7eqm55IsrggM89DdGYjGvd7WW1KwavVIpf8OuWvFp_iXjqSDjHpVz5BapsVqbIzYrU_Ka3jTDVrpUJwbV0j/?imgmax=200
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-xp-0qa934SKpegirPcw_HlaRpbumQj9APWqDzVRvySsDMwnKs7eqm55IsrggM89DdGYjGvd7WW1KwavVIpf8OuWvFp_iXjqSDjHpVz5BapsVqbIzYrU_Ka3jTDVrpUJwbV0j/s72-c/?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/01/blog-post_23.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/01/blog-post_23.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content